सामाजिक न्याय
फूड फोर्टिफिकेशन के माध्यम से पोषण सुरक्षा
- 31 Aug 2021
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यह एडिटोरियल दिनांक 30/08/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Biofortified food can lead India from food security to nutrition security’’ लेख पर आधारित है। इसमें पोषण संबंधी असुरक्षा के समाधान के लिये ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ के विचार का मूल्यांकन किया गया है और आवश्यक उपायों की चर्चा की गई है।
प्रधानमंत्री ने देश की महिलाओं और बच्चों के पोषण को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने घोषणा की है कि वर्ष 2024 तक किसी भी सरकारी योजना—पीडीएस, मिड-डे-मील, आंगनवाड़ी के तहत निर्धनों को उपलब्ध कराए गए चावल को ‘फोर्टिफाइड’ किया जाएगा।
कुपोषण (विशेष रूप से संतुलित विविध आहार ग्रहण कर सकने में अक्षम समाज के निम्न-आय और कमज़ोर वर्गों में व्याप्त कुपोषण) की जटिल चुनौती से निपटने के लिये विज्ञान का लाभ उठाना एक अच्छा हस्तक्षेप हो सकता है। हालाँकि इस कदम की अपनी चुनौतियाँ हो सकती हैं।
फूड फोर्टिफिकेशन के लाभ
- पोषक मूल्य में वृद्धि: बायो-फोर्टिफाइड फसलों में पारंपरिक किस्मों की तुलना में प्रोटीन, विटामिन, खनिज और अमीनो एसिड का 1.5 से 3 गुना अधिक उच्च स्तर पाया जाता है।
- फोर्टिफिकेशन की सुरक्षित विधि: उल्लेखनीय है कि ये किस्में आनुवंशिक रूप से संशोधित नहीं हैं बल्कि इन्हें वैज्ञानिकों द्वारा पारंपरिक फसल प्रजनन तकनीकों के माध्यम से विकसित किया गया है।
- इसके अलावा, भोजन में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों (micronutrients) को शामिल करने से लोगों के स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं होता है। संयुक्त की गई मात्रा इतनी कम और निर्धारित मानकों के अनुसार इतनी अच्छी तरह से विनियमित होती है कि पोषक तत्वों की अधिकता की संभावना नहीं होती।
- बड़े पैमाने पर पोषण सुरक्षा: चूँकि व्यापक रूप से उपभोग किये जाने वाले प्रमुख खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों का योग किया जाता है, यह आबादी के एक बड़े हिस्से के स्वास्थ्य में एक साथ सुधार लाने का एक उत्कृष्ट तरीका है।
- व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता नहीं: इसके लिये लोगों की आहार आदतों और पैटर्न में किसी भी बदलाव की आवश्यकता नहीं होती है। यह आबादी में पोषक तत्व की सुनिश्चितता का सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य तरीका है।
- यह खाद्य के गुणों—स्वाद, तृप्ति या रूप में कोई परिवर्तन नहीं लाता।
- त्वरित परिणाम: इसका त्वरित कार्यान्वयन किया जा सकता है और यह अपेक्षाकृत कम समय में स्वास्थ्य में सुधार परिणाम दर्शा सकता है।
- लागत प्रभावी: यह विधि लागत प्रभावी है, विशेष रूप से यदि मौजूदा प्रौद्योगिकी और वितरण प्लेटफॉर्म का समुचित लाभ उठाया जाए।
- कोपेनहेगन सहमति (Copenhagen Consensus) का अनुमान है कि फूड फोर्टिफिकेशन पर व्यय किया गया प्रत्येक 1 रुपया अर्थव्यवस्था के लिये 9 रुपये का लाभ उत्पन्न करता है।
- यद्यपि उपकरण और विटामिन एवं खनिज प्रीमिक्स—दोनों की खरीद के लिये आरंभिक निवेश की आवश्यकता होती है, लेकिन फोर्टिफिकेशन की कुल लागत बेहद कम है। यहाँ तक कि जब सभी कार्यक्रम लागत उपभोक्ताओं पर डाल दिये जाते हैं, तब भी मूल्य वृद्धि लगभग 1-2% ही होती है, जो सामान्य मूल्य भिन्नता से कम है। इस प्रकार इसका उच्च लाभ-लागत अनुपात (high benefit-to-cost ratio) है।
भारतीय परिदृश्य
- FAO की नवीनतम रिपोर्ट—‘विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति, 2021 (The State of Food Security and Nutrition in the World, 2021) के अनुसार वर्तमान में देश की 15.3% आबादी कुपोषित या अल्पपोषित (undernourished) है और भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के "स्टंटेड" (30%) और "वेस्टेड" बच्चों (17.3%) का अनुपात सबसे अधिक है।
- इन आँकड़ों से संकेत मिलता है कि भारत पोषण सुरक्षा के मामले में एक जटिल मोड़ पर है और यथास्थिति परिदृश्य में वर्ष 2030 तक सभी प्रकार के कुपोषण को समाप्त करने के संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य (SDG) को प्राप्त करने में सक्षम नहीं होगा।
- पोषाहार असुरक्षा के कारक: पौष्टिक भोजन तक पहुँच पोषण का केवल एक निर्धारक है। सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता (विशेष रूप से शौचालय) तक बदतर पहुँच, टीकाकरण एवं शिक्षा का निम्न स्तर (विशेष रूप से महिलाओं में) आदि वे अन्य कारक हैं जो इस निराशाजनक स्थिति में समान रूप से योगदान करते हैं।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) की वेबसाइट के अनुसार, वर्ष 2019-20 तक गेहूँ, चावल, मक्का, बाजरा, सरसों, मूंगफली सहित बायो-फोर्टिफाइड अनाजों की 21 किस्में विकसित की जा चुकी थीं।
- राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, मोहाली के एक शोध दल ने बायो-फोर्टिफाइड रंगीन गेहूँ (काला, नीला, बैंगनी) भी विकसित किया है जो जिंक और एंथोसायनिन से समृद्ध हैं।
- गेंहूँ की इस किस्म के उत्पादन को बढ़ाने के लिये पंजाब और हरियाणा के किसानों को सहमत किया गया है। यह खाद्य सुरक्षा से पोषण सुरक्षा की ओर एक नई यात्रा के आरंभ की सूचना देता है।
फूड फोर्टिफिकेशन के प्रतिकूल प्रभाव
- सुपोषण का विकल्प नहीं: हालाँकि फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों में चयनित सूक्ष्म पोषक तत्वों की अधिक मात्रा होती है, वे एक अच्छी गुणवत्ता वाले आहार का विकल्प नहीं हो सकते जो इष्टतम स्वास्थ्य के लिये आवश्यक पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा, प्रोटीन, आवश्यक वसा और अन्य खाद्य घटकों की आपूर्ति करे।
- जनसंख्या के निर्धनतम वर्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति में अक्षम: कमज़ोर क्रय शक्ति और एक अविकसित वितरण चैनल के कारण आम आबादी के निर्धनतम वर्ग खुले बाज़ारों में इन फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों तक पहुँच ही नहीं रखते।
- अनिर्णीत साक्ष्य:
- फोर्टिफिकेशन का समर्थन करने वाले साक्ष्य अनिर्णीत या अधूरे हैं और निश्चित रूप से पर्याप्त नहीं हैं कि इनके आधार पर वृहत राष्ट्रीय नीतियों का कार्यान्वयन किया जाए।
- फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने के लिये FSSAI जिन कई अध्ययनों पर निर्भर है, वे उन खाद्य कंपनियों द्वारा प्रायोजित अध्ययन हैं जो इससे लाभान्वित होंगे और इससे हितों के टकराव (conflicts of interest) की स्थिति बनती है।
- हानिकारक प्रभाव की संभावना: एक या दो सिंथेटिक रासायनिक विटामिन और खनिजों का योग कर देने से वृहत समस्या का समाधान नहीं होगा, जबकि अल्पपोषित आबादी में विषाक्तता जैसे कई हानिकारक प्रभाव भी उत्पन्न हो सकते हैं।
- एक अध्ययन से पता चला है कि आयरन फोर्टिफिकेशन के कारण कुपोषित बच्चों में आंत के सूजन (gut inflammation) और रोगजनक गट माइक्रोबायोटा प्रोफाइल (gut microbiota profile) जैसी चिंताजनक स्वास्थ्य स्थिति उत्पन्न हुई।
- प्राकृतिक खाद्य का महत्त्व कम होना: यदि आयरन-फोर्टिफाइड चावल को एनीमिया के उपचार के रूप में बेचा जाएगा तो बाजरा, विभिन्न हरी पत्तेदार सब्जियाँ, माँस खाद्य पदार्थ, यकृत जैसे प्राकृतिक रूप से लौह-युक्त खाद्य पदार्थों का महत्त्व और चयन एक मौन नीति के माध्यम से दबा दिया जाएगा।
आगे की राह
- महिलाओं की पोषण साक्षरता में वृद्धि करना: माता की शिक्षा और बच्चों की सेहत के बीच प्रत्यक्ष संबंध होता है। जिन बच्चों की माताएँ अशिक्षित हैं, उन्हें न्यूनतम आहार विविधता प्राप्त होती है और वे स्टंटिंग एवं वेस्टिंग से पीड़ित होते हैं तथा एनीमिक होते हैं।
- इसलिये, बालिकाओं की शैक्षिक स्थिति में सुधार लाने और उनके स्कूल ड्रॉप-आउट दर को कम करने (विशेष रूप से माध्यमिक और उच्च शिक्षा के स्तर पर) के लिये विभिन्न कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- वैश्विक पोषण रिपोर्ट (2014) के आकलन के अनुसार किसी सुदृढ़ पोषण कार्यक्रम में एक डॉलर का निवेश 16 डॉलर का लाभ प्रदान करता है।
- कृषि-अनुसंधान एवं विकास पर व्यय में वृद्धि करना: बायोफोर्टिफाइड खाद्य में नवाचार केवल तभी कुपोषण को कम कर पाएगा जब उन्हें सहायक/अनुपूरक नीतियों के साथ आगे बढ़ाया जाए।
- इसके लिये कृषि-अनुसंधान एवं विकास पर व्यय की वृद्धि करनी होगी और संवहनीय मूल्य श्रृंखलाओं एवं वितरण चैनलों के माध्यम से किसानों के उत्पादन को आकर्षक बाज़ारों से जोड़कर उन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता होगी।
- निजी निवेश: सरकार निजी क्षेत्र से एक विशेष बाज़ार खंड के निर्माण की अपेक्षा कर सकती है जहाँ हाई-एंड उपभोक्ताओं के लिये उच्च गुणवत्तायुक्त बायो-फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ उपलब्धता हों।
- उदाहरण के लिये, टाटा समूह द्वारा संचालित ट्रस्ट विभिन्न राज्यों को विटामिन A और D के साथ दूध के फोर्टीफिकेशन की पहल करने में मदद कर रहे हैं ।
- अन्य निजी डेयरियों को भी देश भर में दूध की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम: साधारण नमक को आयोडीन युक्त नमक से बदलने के लिये वर्ष 1962 में सरकार द्वारा शुरू किये गए "नमक आयोडीनीकरण कार्यक्रम" की तर्ज पर संचालित एक राष्ट्रीय जागरूकता अभियान सबके लिये पोषण के वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- ब्रांडिंग, जागरूकता अभियान, सामाजिक एवं व्यवहारगत परिवर्तन की पहल (समुदाय-स्तरीय परामर्श, संवाद, मीडिया संलग्नता एवं पैरोकारी) निर्धनों और बच्चों के बीच स्थानीय रूप से उपलब्ध, पोषक तत्वों से भरपूर सस्ते खाद्य पदार्थों की खपत को बढ़ावा दे सकते हैं।
- बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता: यह स्वीकार किया जाना चाहिये कि दीर्घावधि में भारत को इस जटिल समस्या के मूल कारण की समाप्ति के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण (जैसे बुनियादी अवसंरचना, बिजली, पेयजल और स्वच्छता तक पहुँच) की आवश्यकता है।
अभ्यास प्रश्न: फूड फोर्टिफिकेशन आबादी के एक वृहत हिस्से के पोषण स्वास्थ्य में सुधार लाने का एक उत्कृष्ट तरीका है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।