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डेली न्यूज़

  • 08 Sep, 2023
  • 70 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

फिनटेक उद्योग, क्रिप्टो संबंधी खतरे, साइबर खतरे, टैक्स हैवन और कर चोरी

मेन्स के लिये:

वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष प्रमुख खतरे, क्रिप्टो-खतरों और साइबर खतरों से निपटने में वैश्विक सहयोग का महत्त्व

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय वित्त एवं कॉर्पोरेट कार्य मंत्री ने मुंबई में ग्लोबल फिनटेक फेस्ट 2023 को संबोधित किया।

  • इस अवसर पर उन्होंने वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र के खतरों से निपटने में वैश्विक सहयोग के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
  • G20 की अध्यक्षता के तहत भी भारत ने वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष प्रमुख खतरे से निपटने में वैश्विक सहयोग और सहभागिता की मांग की है।

ग्लोबल फिनटेक फेस्ट (GFF):

  • यह एक सबसे बड़ा फिनटेक सम्मेलन है जो नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI), पेमेंट्स काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) और फिनटेक कन्वर्जेंस काउंसिल (FCC) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है।
  • इसका उद्देश्य फिनटेक अधिनायकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने और उद्योग के भविष्य के लिये खाका विकसित करने हेतु एक अद्वितीय मंच प्रदान करना है।
  • यह एक ऐसा मंच है जहाँ नीति निर्माता, विनियामक, उद्योग क्षेत्र के अग्रणी, शिक्षाविद् और सभी प्रमुख फिनटेक पारिस्थितिकी तंत्र हितधारक विचारों का आदान-प्रदान, अंतर्दृष्टि साझा करने तथा नवाचार को बढ़ावा देने के लिये वार्षिक सम्मेलन का आयोजन करते हैं।
  • GFF’23 की थीम:
    • ‘एक ज़िम्मेदार वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिये वैश्विक सहयोग’ (Global Collaboration for a Responsible Financial Ecosystem)।
      • यह थीम एक समावेशी, लचीला और धारणीय वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में वैश्विक सहयोग की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।

नोट: 

  • भारतीय भुगतान परिषद (Payments Council of India- PCI): यह भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में 85% से अधिक गैर-बैंकिंग कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था है और इसका गठन डिजिटल भुगतान उद्योग की आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिये किया गया था।
  • PCI में निम्नलिखित उप-समितियाँ शामिल हैं:
    • भुगतान एग्रीगेटर/भुगतान गेटवे
    • प्रीपेड भुगतान साधन/प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट (PPI)
    • भुगतान नेटवर्क
    • भुगतान बैंक
    • भारत बिल भुगतान परिचालन इकाई समिति (BBPOU)
    • यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI)
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रेषण और व्यापार समिति
    • प्रौद्योगिकी समर्थक
  • फिनटेक कन्वर्जेंस काउंसिल (FCC): वर्ष 2017 में एक फिनटेक समिति के रूप में स्थापित FCC को बाद में 70 से अधिक सदस्यों के साथ एक स्वतंत्र गवर्निंग बोर्ड के तौर पर स्वतंत्र परिषद में बदल दिया गया था।
    • FCC फिनटेक, बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विभिन्न अभिकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करती है।

फिनटेक:

  • फिनटेक (वित्तीय प्रौद्योगिकी) का उपयोग नई तकनीक का वर्णन करने के लिये किया जाता है जो वित्तीय सेवाओं के वितरण और उपयोग को बेहतर बनाने तथा स्वचालित करने का प्रयास करती है।
    • फिनटेक क्षेत्र के प्रमुख खंडों में डिजिटल भुगतान, डिजिटल ऋण, बैंकटेक और क्रिप्टोकरेंसी शामिल हैं।
  • फिनटेक शिक्षा, खुदरा बैंकिंग, अनुदान संचयन, गैर-लाभकारी और निवेश प्रबंधन सहित विभिन्न क्षेत्रों तक फैला हुआ है, जो इसे महत्त्वपूर्ण व्यवसाय विस्तार तथा रोज़गार सृजन के साथ तेज़ी से बढ़ने वाला उद्योग बनाता है।
    • इसके अतिरिक्त फिनटेक वित्तीय समावेशन लक्ष्यों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र के समक्ष चुनौतियाँ:

  • क्रिप्टो खतरे:
    • साइबर सुरक्षा:
      • क्रिप्टोकरेंसी अपनी गुमनामी और विकेंद्रीकरण के कारण साइबर हमलों, हैकिंग, चोरी, धोखाधड़ी तथा घोटालों के प्रति संवेदनशील हैं।
    • विनियमन:
      • क्रिप्टो को वैश्विक स्तर पर नियामक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे देशों के बीच दृष्टिकोण और मानकों में अनिश्चितता एवं असंगतता की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • अस्थिरता:
      • क्रिप्टोकरेंसी की कीमतें अत्यधिक अस्थिर हैं, जो उपयोगकर्ता के विश्वास और व्यावसायिक निवेश को प्रभावित कर रही हैं।
    • वहनीयता:
      • क्रिप्टो माइनिंग में विद्युत की अत्यधिक खपत होती है और इससे इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिससे पर्यावरण संबंधी चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
  • साइबर खतरे:
    • फिशिंग (Phishing):
      • धोखाधड़ी वाले ईमेल और संदेश उपयोगकर्त्ताओं को संवेदनशील जानकारी प्रकट करने और वित्तीय संस्थानों से समझौता करने के लिये बरगलाते हैं।
    • रैनसमवेयर:
      • मैलवेयर अनुचित तरीके से फाइलों को एन्क्रिप्ट कर सकता है और जबरन वसूली के लिये वित्तीय सेवाओं को निशाना बनाकर फिरौती की मांग करता है।
    • डेटा उल्लंघन: 
      • गोपनीय डेटा तक अधिकृत पहुँच वित्तीय संस्थाओं और व्यक्तियों की गोपनीयता, पहचान एवं संपत्ति से समझौता कर सकती है।
    • आपूर्ति शृंखला पर आक्रमण :
      • वित्तीय संगठनों की प्रणालियों और सेवाओं में सेंध लगाने के लिये हैकर्स उनके सेवा प्रदाताओं को निशाना बनाते हैं।
  • नशीली दवा और माफिया:
    • नशीली दवाओं के तस्कर और माफिया अवैध धन को वैध वित्तीय प्रणाली में एकीकृत करने के लिये  मनी लॉन्ड्रिंग का उपयोग करते हैं।
  • टैक्स हैवन और चोरी:
    • टैक्स हैवन एक ऐसा देश या क्षेत्राधिकार है जहाँ विदेशी नागरिकों और व्यवसायों को बहुत कम या कोई कर नहीं देना पड़ता है।
    • कर चोरी यानी अवैध आय या संपत्ति को छुपाकर या गलत तरीके से दर्शाकर करों से बचना या छूट प्राप्त करना है।
    • टैक्स हैवन और कर चोरी से उत्पन्न प्रमुख खतरे:
      • राजस्व हानि:
        • टैक्स हैवन और कर चोरी के कारण सरकारों को अत्यधिक राजस्व की हानि का सामना करना पड़ता है, खासकर विकासशील देशों में।
      • असमानता: 
        • टैक्स हैवन और कर चोरी ज़्यादातर अमीरों को लाभ पहुँचाता है और  आय असमानताओं को और बढ़ा देता है।
      • भ्रष्टाचार:
        • ये प्रथाएँ अवैध वित्तीय प्रवाह और कर धोखाधड़ी के लिये सुरक्षित आश्रय प्रदान करके भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती हैं।

वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिये आवश्यक वैश्विक सहयोग: 

  • खतरों की जटिलता:
    • वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरे, जैसे- साइबर हमले, क्रिप्टो चुनौतियाँ और ड्रग माफिया, बहुआयामी और राष्ट्रीय सीमाओं से परे हैं।
      • इन चुनौतियों का मुकाबला करने और एक ज़िम्मेदार, समावेशी, लचीला एवं टिकाऊ वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र बनाने हेतु मिलकर कार्य करने के लिये वैश्विक सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता है।
  • सीमा पार प्रकृति:
    • साइबर हमले और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे कई वित्तीय खतरे एक देश में उत्पन्न होते हैं लेकिन विश्व के संस्थानों और व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं।
      • इन खतरों को प्रभावी ढंग से ट्रैक करने और कम करने के लिये  सहयोग आवश्यक है।.
  • विनियमन में स्थिरता:
    • विभिन्न देशों में असंगत नियम, अपराधियों के लिये नियामक कमियों का फायदा उठाने के अवसर पैदा करते हैं।
      • वैश्विक सहयोग समान मानकों और विनियमों को स्थापित करने में मदद कर सकता है, जिससे नियामक मध्यस्थता का ज़ोखिम कम हो सकता है।
  • जानकारी साझा करना:
    • यह सहयोग प्रभावी ढंग से खतरों को कम करने के लिये सूचना साझा करने, कौशल विकास और एकीकृत नियमों को सक्षम बनाता है। यह साझाकरण खुफिया जानकारी के माध्यम से संभावित वित्तीय संकटों की सक्रिय पहचान एवं रोकथाम की भी अनुमति देता है।

फिनटेक वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र के खतरों का समाधान:

  • फिनटेक कंपनियाँ उपयोगकर्ता डेटा और वित्तीय लेन-देन की सुरक्षा के लिये उन्नत एन्क्रिप्शन तथा अन्य उपायों का उपयोग करके प्रबल सुरक्षा उपायों में भारी निवेश कर सकती हैं। 
  • फिनटेक कंपनियाँ साइबर सुरक्षा को मज़बूत करने के साथ ही दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों को रोकने के लिये मशीन लर्निंग और ब्लॉकचेन जैसे नवीन समाधानों का उपयोग करती हैं।
  • फिनटेक वंचित आबादी को ऐसी सेवाओं तक पहुँच प्रदान करके वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दे सकती हैं जो आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देने के साथ ही  वित्तीय भेद्यता को कम करती हैं।
  • फिनटेक क्रिप्टो परिसंपत्तियों जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के लिये नियामक ढाँचे को विकसित करने और लागू करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जो वित्तीय क्षेत्र में नवाचार एवं विकास को बढ़ावा देते हुए इन परिसंपत्तियों से जुड़े ज़ोखिमों को कम करने में मदद कर सकती है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. बैंकों का राष्ट्रीयकरण 
  2. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का गठन 
  3. बैंक शाखाओं द्वारा गाँव  को गोद लेना

उपर्युक्त में से किसे भारत में "वित्तीय समावेशन" हेतु उठाए गए कदमों के रूप में माना जा सकता है?

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 3
(D) 1, 2 और 3

उत्तर: (D)


शासन व्यवस्था

भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के शैक्षिक सशक्तीकरण की स्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, सच्चर समिति की रिपोर्ट, नया सवेरा, नई उड़ान

मेन्स के लिये:

धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, अल्पसंख्यकों के शैक्षिक सशक्तीकरण के लिये कल्याणकारी योजनाएँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के शैक्षिक सशक्तीकरण योजनाओं की स्थिति को लेकर चर्चाएँ शुरू हो गई हैं।

  • इन कार्यक्रमों को देश में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच शैक्षिक अंतर को कम करने और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिये अभिकल्पित किया गया था।
  • उल्लेखनीय परिवर्तनों और विवादों के परिणामस्वरूप अल्पसंख्यक आबादी पर इन कार्यक्रमों के प्रभावों को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं।

भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के शैक्षिक सशक्तीकरण योजनाओं की स्थिति:

  • परिचय
    • भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक, जिनमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी शामिल हैं, आबादी का लगभग 20% है।
      • वर्ष 2006 में जारी सच्चर समिति की रिपोर्ट ने इन असमानताओं को उजागर किया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि मुसलमान विकास संकेतकों में कई अन्य समूहों से पीछे हैं।
    • इन असमानताओं को दूर करने के लिये भारत सरकार ने वर्ष 2006 में शैक्षिक सशक्तीकरण, आर्थिक विकास, बुनियादी ढ़ाँचे में सुधार तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों की विशेष ज़रूरतों के लिये अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की स्थापना की।
      • सरकार द्वारा किये जाने वाले प्रयासों में अल्पसंख्यक छात्रों के लिये छात्रवृत्ति एक महत्त्वपूर्ण घटक रही, जिसका उद्देश्य वित्तीय सहायता तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
  • अल्पसंख्यकों के शैक्षिक सशक्तीकरण के लिये कल्याण योजनाओं की वर्तमान स्थिति:  
    • प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना: प्रारंभ में यह कक्षा 1 से 10 तक के अल्पसंख्यक छात्रों को प्रदान की गई। बाद में कक्षा 1 से 8 के लिये बंद कर दी गई, इसके संशोधित रूप में केवल कक्षा 9 और 10 को शामिल किया गया।
    • पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना: वर्ष 2023-24 में कक्षा 11 और उससे ऊपर (PHD तक) के छात्रों के लिये फंड 515 करोड़ रुपए से बढ़कर 1,065 करोड़ रुपए हो गया।
    • योग्यता-सह-साधन आधारित छात्रवृत्ति योजना: स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर लक्षित व्यावसायिक एवं तकनीकी पाठ्यक्रम, हालाँकि 2023-24 में इसे फंड में उल्लेखनीय कमी का सामना करना पड़ा।
    • मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप (MANF): इसके अंतर्गत एम.फिल और पीएचडी करने वाले शोधार्थियों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। हालाँकि इसे वर्ष 2022 में बंद कर दिया गया था।
    • पढ़ो परदेश: विदेशी अध्ययन के लिये शिक्षा ऋण पर ब्याज सब्सिडी प्रदान की गई। हालाँकि इसे वर्ष 2022-23 से बंद कर दिया गया था।
    • बेगम हज़रत महल राष्ट्रीय छात्रवृत्ति: यह उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिये मेधावी छात्राओं हेतु छात्रवृत्ति योजना है। हालाँकि वर्ष 2023-24 में इसके अंतर्गत कोई धनराशि आवंटित नहीं की गई है।
    • नया सवेरा: इसमें प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये अल्पसंख्यक छात्रों को मुफ्त कोचिंग प्रदान की गई। हालाँकि वर्ष 2023-24 में इसे बंद कर दिया गया।
    • नई उड़ान: विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अल्पसंख्यक छात्रों को सहायता प्रदान की गई। हालाँकि वर्ष 2023-24 में कोई धनराशि आवंटित नहीं की गई है।
    • मदरसों/अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्रदान करने की योजना (SPEMM): इसका उद्देश्य मदरसा शिक्षा को आधुनिक बनाना है। वर्ष 2023-24 में आवंटन घटाया गया।

नोट: अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के लिये बजट आवंटन में भारी कमी देखी गई, वर्ष 2022-23 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिये 38% की कमी हुई। फंडिंग में इस कटौती का विभिन्न कार्यक्रमों के कार्यान्वयन पर सीधा प्रभाव पड़ा है, फंड का कम उपयोग एक आम प्रवृत्ति है।

धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 25: यह सभी व्यक्तियों को अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म के मुक्त पेशे, अभ्यास और प्रचार की गारंटी देता है।
  • अनुच्छेद 26: यह प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके अनुभाग को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थानों की स्थापना एवं रखरखाव करने तथा धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 29: इसमें प्रावधान है कि भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग की अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे संरक्षित करने का अधिकार होगा।
  • अनुच्छेद 30: अनुच्छेद के तहत सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार होगा।

नोट: भारतीय संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। हालाँकि संविधान केवल धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को मान्यता देता है।

धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित अन्य प्रमुख चुनौतियाँ:

  • सांप्रदायिक हिंसा: एक प्रमुख चुनौती सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ हैं, जहाँ धार्मिक आधार पर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
    • इन घटनाओं के परिणामस्वरूप जीवन की हानि, संपत्ति की क्षति तथा अल्पसंख्यक समुदायों का विस्थापन होता है।
    • यह चुनौती राजनीतिक हेरफेर, आर्थिक असमानता तथा ऐतिहासिक तनाव जैसे कारकों में निहित है जिनकी सावधानीपूर्वक जाँच की आवश्यकता है।
  • अंतर-अनुभागीय भेदभाव: धार्मिक भेदभाव से परे, धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर महिलाओं को अंतर-अनुभागीय भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है।
  • सामाजिक अलगाव: धार्मिक यहूदी बस्ती (Ghettoization), जहाँ अल्पसंख्यक समुदाय विशिष्ट क्षेत्रों में एकत्रित होते हैं, जो उनके सामाजिक एकीकरण एवं आर्थिक अवसरों पर प्रभाव डालता है।
  • साइबरबुलिंग तथा ऑनलाइन उत्पीड़न: धार्मिक अल्पसंख्यकों अथवा समूहों को लक्षित करने के लिये साइबरबुलिंग तथा ऑनलाइन उत्पीड़न का बढ़ना, उनकी ऑनलाइन सुरक्षा एवं मानसिक कल्याण को प्रभावित कर रहा है।

आगे की राह 

  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी का लाभ: अल्पसंख्यक शिक्षा पहल हेतु वित्तपोषण तथा संसाधनों के पूरक के लिये सरकार, निजी क्षेत्र एवं गैर-लाभकारी संगठनों के मध्य सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये।
    • इससे बजट कटौती की भरपाई करने तथा इन योजनाओं के लिये निरंतर समर्थन सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
  • डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम: धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लिये तैयार किये गए  डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों को लागू करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे डिजिटल युग में पीछे न रहें। इससे सूचना तथा अवसरों तक उनकी पहुँच बढ़ सकती है।
  • स्थानीय स्तर पर पहल: अंतर-धार्मिक संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाने के लिये स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने हेतु ज़मीनी स्तर पर की गई पहल विश्वास एवं सामाजिक एकजुटता के निर्माण में महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।
    • समुदाय-आधारित संघर्ष समाधान केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है जो अंतर-धार्मिक और अंतर-सामुदायिक विवादों को संबोधित करने में विशेषज्ञ हों।
    • ये केंद्र मध्यस्थता और परामर्श सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं।
  • पारंपरिक ज्ञान संरक्षण: धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों की पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों और प्रथाओं को पहचानना तथा संरक्षित करना। यह डिजिटल दस्तावेज़ीकरण और सांस्कृतिक संरक्षण परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण के माध्यम से किया जा सकता है।
  • सामाजिक प्रभाव आकलन और निवेश: समयबद्ध सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन करने और धार्मिक अल्पसंख्यक-स्वामित्व वाले व्यवसायों एवं स्टार्टअप में सामाजिक प्रभाव निवेश को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इससे आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और असमानताओं को कम करने में मदद मिल सकती है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में यदि 7किसी धार्मिक संप्रदाय/समुदाय को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है, तो वह किस विशेष लाभ का हकदार है? (2011)

  • यह विशिष्ट शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कर सकता है।  
  • भारत का राष्ट्रपति स्वतः ही लोकसभा के लिये किसी समुदाय के एक प्रतिनिधि को नामित करता है।  
  • इसे प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम का लाभ मिल सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल  2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मानव विकास में बाधा

प्रिलिम्स के लिये:

फास्ट इनफिनिटेसिमल टाइम कोलेसेंट प्रोसेस (FitCoal), जीनोमिक सीक्वेंसिंग

मेन्स के लिये:

जीनोम सीक्वेंस और इसका महत्त्व, मानव विकास में जनसंख्या बाधा और आधुनिक मानव के लिये इसके निहितार्थ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन जनसंख्या/समष्टि बाधा से चिह्नित मानव विकास में एक महत्त्वपूर्ण अवधि पर प्रकाश डालता है, जो हमारे प्रारंभिक/आदिम पूर्वजों के समक्ष आने वाली चुनौतियों और आधुनिक मनुष्यों को आकार देने वाले आनुवंशिक परिवर्तनों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

  • चीन, इटली और अमेरिका के शोधकर्ताओं ने इस बाधा की जाँच करने के लिये फास्ट इनफिनिटेसिमल टाइम कोलेसेंट प्रोसेस ((FitCoal) नामक एक नवीन जीनोमिक विश्लेषण तकनीक का उपयोग किया।

फिटकोल (FitCoal):

  • यह आधुनिक मानव जीनोमिक अनुक्रमों का प्रयोग कर प्राचीन समष्टि आकार और जनसांख्यिकीय इतिहास का अनुमान लगाने की एक विधि है तथा साइट फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम (SFS) के लिये समग्र संभावना की गणना करती है, जो अनुक्रमों में अलील (Allele) आवृत्तियों का वितरण है।
  • फिटकोल मानव विकासवादी इतिहास में गंभीर बाधाओं और प्रजाति की घटनाओं का पता लगा सकता है जिन्हें जीवाश्म रिकॉर्ड से देखना मुश्किल है।

जीनोम अनुक्रमण:

  • जीनोम अनुक्रमण एक जीनोम में DNA न्यूक्लियोटाइड्स या आधारों के क्रम अर्थात्एडेनिन, साइटोसिन, गुआनिन और थाइमिन का क्रम जो एक जीव का DNA बनाते हैं, का पता लगाता है।
  • जीनोम अनुक्रम एक मूल्यवान संक्षिप्त/सरलतम उपाय का प्रतिनिधित्व करेगा, जिससे वैज्ञानिकों को जीन को अधिक आसानी से एवं तेज़ी से ढूँढने में मदद मिलेगी।
    • जीनोम अनुक्रम में जीन की उपस्थिति कहाँ हैं, इसके बारे में कुछ सुराग होते हैं, हालाँकि  वैज्ञानिक इन सुरागों की व्याख्या करना सीख रहे हैं।

अध्ययन से संबंधित मुख्य बातें:

  • जनसंख्या बाधा:
    • जनसंख्या बाधा का आशय पर्यावरणीय घटनाओं अथवा मानवीय गतिविधियों के कारण आबादी के आकार में तीव्र कमी से है जो आबादी के एक बड़े प्रतिशत के प्रजनन को समाप्त कर देती है अथवा रोक देती है।
      • इससे शेष आबादी की आनुवंशिक विविधता तथा बदलती परिस्थितियों के अनुकूल ढलने की क्षमता कम हो जाती है
    • इस अध्ययन से पता चलता है कि 800,000 से 900,000 वर्ष पूर्व एक गंभीर जनसंख्या बाधा उत्पन्न हुई थी जिससे मानव प्रजाति लगभग विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गई थी।
      • इस बाधा के दौरान केवल लगभग 1,280 प्रजनन सक्षम व्यक्तियों ने ही पूरी मानव आबादी का भरण-पोषण किया तथा यह स्थिति लगभग 117,000 वर्षों तक बनी रही।
  • जनसंख्या बाधा के कारण:
    • वातावरणीय कारक:
      • हिमाच्छादन की घटनाओं, तापमान में बदलाव तथा गंभीर सूखे को मानव पैतृक आबादी के आकार में गिरावट के कारणों के रूप में बताया गया था।
        • इस अध्ययन से पता चलता है कि लगभग 930,000-813,000 वर्ष पूर्व, बाधा अवधि के दौरान मनुष्य संभवतः विकट परिस्थितियों में जीवन बिता रहे थे।
      • अन्य प्रजातियों की जान की हानि ने भी जनसंख्या बाधा में योगदान दिया, जो पूर्वजों के लिये संभावित भोजन स्रोत थे।
    • आनुवंशिक विविधता का नुकसान:
      • प्रारंभिक/आदिम मानव पूर्वजों ने बाधा अवधि के दौरान जीवन की गंभीर हानि का अनुभव किया।
      • इसके परिणामस्वरूप आनुवंशिक विविधता का काफी नुकसान हुआ, अनुमान के मुताबिक प्रारंभिक से मध्य प्लेइस्टोसिन युग (दो मिलियन से 11,000 वर्ष पहले) के दौरान मनुष्यों की वर्तमान आनुवंशिक विविधता का 65.85% संभावित रूप से नष्ट हो गया।
  • विशिष्टता की घटना:
    • मानव विकास में बाधा उत्पन्न करने वाली घटना के परिणामस्वरूप दो पैतृक गुणसूत्रों का संलयन हुआ, जिससे आधुनिक मनुष्यों में गुणसूत्र 2 का निर्माण हुआ, जो एक विशिष्ट लक्षण है जो अन्य प्राइमेट्स में नहीं पाया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में प्रायः समाचारों में आने वाले 'जीनोम अनुक्रमण (जीनोम सीक्वेंसिंग)' की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017)

  1. विभिन्न फसली पौधों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने हेतु जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है।
  2. यह तकनीक, फसली पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने में मदद करती है।
  3. इसका प्रयोग, फसलों में पोषी-रोगाणु संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


शासन व्यवस्था

स्वच्छ वायु सर्वेक्षण 2023 और NCAP

प्रिलिम्स के लिये:

स्वच्छ वायु सर्वेक्षण 2023, स्वच्छ वायु सर्वेक्षण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) नीले आसमान के लिये स्वच्छ वायु का अंतर्राष्ट्रीय दिवस, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP), स्वच्छ वायु सुनिश्चित करने की पहल, PM2.5, PM10, NAAQS, वायु प्रदूषण

मेन्स के लिये:

वायु प्रदूषण की समस्या और इससे निपटने के लिये सरकारी पहल

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में स्वच्छ वायु सर्वेक्षण (Clean Air Survey) 2023 के पुरस्कारों की घोषणा की गई। यह सर्वेक्षण केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा किया गया था।

टिप्पणी: 

  • वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये जागरूकता बढ़ाने और कार्यों को सुविधाजनक बनाने के लिये प्रत्येक वर्ष 7 सितंबर को नीले आसमान के लिये स्वच्छ वायु का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of Clean Air for Blue Skies) मनाया जाता है।
  • नीले आसमान के लिये स्वच्छ वायु के चौथे अंतर्राष्ट्रीय दिवस (स्वच्छ वायु दिवस 2023) की थीम- "स्वच्छ वायु के लिये एक साथ" (“Together for Clean Air”) है।  

SVS 2023 के संदर्भ में मुख्य निष्कर्ष:

  • परिचय: 
    • स्वच्छ वायु सर्वेक्षण (SVS) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा वायु गुणवत्ता के आधार पर शहरों को रैंक प्रदान करने और 131 गैर-प्राप्ति शहरों में शहर कार्य योजना (NCAP) के तहत अनुमोदित गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिये एक नई पहल है।
    • यदि शहर 5 वर्ष की अवधि में लगातार PM10 या NO2 के लिये NAAQS शर्तों को पूरा नहीं करते हैं तो उन्हें गैर-प्राप्ति घोषित कर दिया जाता है।
    • शहरों का वर्गीकरण 2011 की जनसंख्या जनगणना के आधार पर किया गया है।
  • मानदंड: शहरों का मूल्यांकन आठ प्रमुख बिंदुओं पर किया गया:
    • बायोमास का नियंत्रण
    • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट दहन
    • सड़क की धूल
    • निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट से उत्सर्जित धूल
    • वाहन उत्सर्जन
    • औद्योगिक उत्सर्जन
    • जन जागरण
    • PM10 सांद्रता में सुधार
  • प्रदर्शन: 
    • प्रथम श्रेणी के तहत शीर्ष 3 शहर (मिलियन से अधिक जनसंख्या): इंदौर के बाद आगरा और ठाणे हैं।
      • सबसे खराब प्रदर्शन: मदुरै (46), हावड़ा (45) और जमशेदपुर (44)।
      • भोपाल 5वें और दिल्ली 9वें स्थान पर है।
    • द्वितीय श्रेणी के अंतर्गत शीर्ष 3 शहर (3-10 लाख जनसंख्या): अमरावती के बाद मुरादाबाद और गुंटूर हैं।
      • सबसे खराब प्रदर्शन: जम्मू (38), गुवाहाटी (37) और जालंधर (36)।
    • तृतीय श्रेणी के अंतर्गत शीर्ष 3 शहर (3 लाख जनसंख्या): परवाणु के बाद काला अंब और अंगुल का स्थान है।
      • सबसे खराब प्रदर्शन: कोहिमा (39)। 
  • तुलना:
    • SVS 2022 में पहले तीन स्थान उत्तर प्रदेश के शहरों (मिलियन-प्लस श्रेणी)- लखनऊ (1), प्रयागराज (2) और वाराणसी (3) के थे।
      • इस वर्ष तीनों शहरों को निम्न रैंकिंग दी गई है।

नोट:

  • वर्ष 2020 में भारत के प्रधानमंत्री ने समग्र दृष्टिकोण के माध्यम से 100 से अधिक शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार हेतु योजना की घोषणा की।
    • इस संदर्भ में MoEFCC वर्ष 2019 से भारत में शहर और क्षेत्रीय स्तर पर वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिये कार्यों की रूपरेखा तैयार करते हुए एक राष्ट्रीय स्तर की रणनीति के रूप में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) लागू कर रहा है।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP):

  • परिचय:राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) का उद्देश्य सभी हितधारकों को शामिल करके और आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित कर वायु प्रदूषण को व्यवस्थित रूप से संबोधित करना है।
    • NCAP के तहत शहर विशिष्ट कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये 131 शहरों की पहचान की गई है।
  • लक्ष्य: समयबद्ध कमी के लक्ष्य के साथ वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये एक राष्ट्रीय ढाँचा तैयार करने का यह देश में पहला प्रयास है।
    • इसका लक्ष्य अगले पाँच वर्षों (तुलना के लिये आधार वर्ष- 2017) में मोटे (PM10) और महीन कणों (PM2.5) की सांद्रता में कम-से-कम 20% की कमी करना है।
  • निगरानी: MoEFCC द्वारा "प्राण" पोर्टल भी लॉन्च किया गया है:
    • NCAP के कार्यान्वयन की निगरानी करना।
    • शहरों की कार्य योजनाओं और कार्यान्वयन की स्थिति की निगरानी करना।
    • शहरों द्वारा अपनाई गई सर्वोत्तम प्रथाओं को दूसरों के अनुकरण के लिये साझा करना।

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. WHO के वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. PM2.5 का 24 घंटा माध्य 15 µg/m³ से अधिक नहीं बढ़ना चाहिये और PM2.5 का वार्षिक माध्य 5 µg/m³ से अधिक नहीं बढ़ना चाहिये।
  2. एक वर्ष में ओज़ोन प्रदूषण का उच्चतम स्तर प्रतिकूल मौसम के दौरान होता है।
  3. PM10 फेफड़े के अवरोध का वेधन कर रक्त-प्रवाह में प्रवेश कर सकता है।
  4. वायु में अत्यधिक ओज़ोन दमा को उत्पन्न कर सकती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा सही है?

(a)  केवल 1, 3 और 4 
(b) केवल 1 और 4 
(c)  केवल 2, 3 और 4 
(d) केवल 1 और 2 

उत्तर: (b) 


प्रश्न . निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. अल्पजीवी जलवायु प्रदूषकों को न्यूनीकृत करने हेतु जलवायु एवं स्वच्छ वायु गठबंधन (CCAC) G20 समूह के देशों की एक अनोखी पहल है।
  2. CCAC मीथेन, काला  कार्बन एवं हाइड्रोफ्लोरोकार्बनों पर केंद्रित करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों  
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. मुंबई, दिल्ली और कोलकाता, देश के तीन मेगा शहर हैं लेकिन दिल्ली में अन्य दो की तुलना में वायु प्रदूषण अधिक गंभीर समस्या है। ऐसा क्यों है? (2015)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में बेरोज़गारी का मापन

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में बेरोज़गारी की माप, बेरोज़गारी दर, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), विश्व बैंक, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO)

मेन्स के लिये:

भारत में बेरोज़गारी की माप, भारत में बेरोज़गारी के कारक

स्रोत : द हिंदू

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2021-22 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के अनुसार, वर्ष 2021-22 में भारत की बेरोज़गारी दर गिरकर 4.1% हो गई, लेकिन यह अमेरिका से अधिक (3.5% और 3.7% के बीच उतार-चढ़ाव) है , साथ ही यह दोनों देशों के बीच विपरीत आर्थिक परिदृश्य को उजागर करती है। इस प्रकार बेरोज़गारी को मापने के लिये अलग-अलग तरीके हैं।

बेरोज़गारी: 

  • ILO की परिभाषा: 
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, बेरोज़गारी में रोज़गार से बाहर होना, काम के लिये उपलब्ध होना और सक्रिय रूप से रोज़गार की खोज करना शामिल है।
    • एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि सक्रिय रूप से काम की खोज नहीं करने वालों को बेरोज़गार नहीं माना जाता है।
  • श्रम बल:
    • इसमें नौकरीपेशा और बेरोज़गार शामिल हैं। जो लोग इन श्रेणियों में नहीं हैं (उदाहरण के लिये छात्र, अवैतनिक घरेलू कामगार) उन्हें श्रम बल से बाहर के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • बेरोज़गारी दर की गणना बेरोज़गारों और श्रम शक्ति के अनुपात के रूप में की जाती है।
      • यदि कोई अर्थव्यवस्था पर्याप्त नौकरियाँ नहीं उत्पन्न कर रही है अथवा यदि लोग काम की तलाश न करने का निर्णय लेते हैं, तो बेरोज़गारी दर गिर सकती है।
  • बेरोज़गारी के प्रकार:
    • प्रच्छन्न बेरोज़गारी:
      • यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार में शामिल किया जाता है।
      •  यह मुख्य रूप से भारत के कृषि तथा असंगठित क्षेत्रों में पाई जाती है।
    • मौसमी बेरोज़गारी:
      • यह वह बेरोज़गारी है जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान होती है।
      • भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर शायद ही कभी काम होता है।
    • संरचनात्मक बेरोज़गारी:
      • यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों तथा श्रमिकों के कौशल के मध्य असमानता से उत्पन्न होने वाली बेरोज़गारी की एक श्रेणी है। 
      • भारत में कई लोगों को अपेक्षित कौशल की कमी के कारण नौकरी नहीं मिल पाती है तथा शिक्षा का स्तर निम्न होने के कारण उन्हें प्रशिक्षित करना मुश्किल हो जाता है।
    • चक्रीय बेरोज़गारी:
      • यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है तथा आर्थिक विकास के साथ इसमें गिरावट आती है।
      • भारत में चक्रीय बेरोज़गारी के आँकड़े नगण्य हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जो अधिकतर पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में पाई जाती है।
    • तकनीकी बेरोज़गारी:
      • यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों में हुई कमी को दर्शाती है।
      • वर्ष 2016 में विश्व बैंक के आँकड़ों में पूर्वानुमान लगाया था कि भारत में स्वचालन से खतरे में पड़ी नौकरियों का अनुपात साल-दर-साल 69% है।
    • प्रतिरोधात्मक रोज़गार:
      • प्रतिरोधात्मक बेरोज़गारी नौकरियों के बीच के समय अंतराल को संदर्भित करती है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश कर रहा होता है या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है।
    • असुरक्षित रोज़गार:
      • इसका अर्थ है, लोग बिना किसी उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से काम कर रहे हैं और इस प्रकार उन्हें कोई कानूनी सुरक्षा नहीं मिल रही है।
      • इन व्यक्तियों को 'बेरोज़गार' माना जाता है क्योंकि उनके काम का रिकॉर्ड कभी नहीं रखा जाता है।
      • यह भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकारों में से एक है।

भारत में बेरोज़गारी का निर्धारण: 

  • NSSO वर्गीकरण विधियाँ:
    • सामान्य गतिविधि और सहायक स्थिति (UPSS): इस गतिविधि का दर्जा उस गतिविधि के आधार पर निर्धारित किया जाता है जिस पर किसी ने पिछले वर्ष सबसे अधिक समय बिताया था।
      • कम-से-कम 30 दिनों तक चलने वाली सहायक भूमिकाओं को भी रोज़गार माना जाता है। यह विधि बेरोज़गारी दर को कम करती है।
    • वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS):
      • एक सप्ताह की छोटी संदर्भ अवधि अपनाई जाती है। ऐसे व्यक्तियों जिन्होंने पिछले सात दिनों में कम-से-कम एक दिन एक घंटा काम किया है, उन्हें नियोजित माना जाता है।
      • छोटी संदर्भ अवधि के कारण CWS के परिणामस्वरूप प्रायः UPSS की तुलना में बेरोज़गारी दर अधिक होती है।

टिप्पणी: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) को वर्ष 2019 में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) बनाने के लिये केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के साथ विलय कर दिया गया।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार बेरोज़गारी दर-

भारत में बेरोज़गारी को मापने में जटिलताएँ:

  • सामाजिक मानदंड के कारण उत्पन्न बाधाएँ:
    • विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में काम तलाशने के निर्णयों पर सामाजिक मानदंड का काफी प्रभाव पड़ता है, जिससे श्रम बल भागीदारी दर में भिन्नता आती है।
      • उदाहरण के लिये वर्ष 2009-10 के NSSO सर्वेक्षण से पता चलता है कि घरेलू काम में लगी 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की 33.3% ग्रामीण महिलाओं तथा 27.2% शहरी महिलाओं ने बताया कि वे काम करने को तब तैयार होंगी यदि काम उनके घर के आस-पास उपलब्ध हो, लेकिन उन्हें बेरोज़गारों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता क्योंकि वे सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश में नहीं हैं।
  • अनौपचारिक क्षेत्र की जटिलता: 
    • विकसित अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत भारत में रोज़गार की अनौपचारिक प्रकृति बेरोज़गारी माप को और जटिल बनाती है।
      • विकसित अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत काफी लोग साल भर विभिन्न प्रकार के कामों में लिप्त होते है, अर्थात् वे एक ही काम पूरे साल भर नहीं करते।
    • लोग अक्सर पूरे वर्ष विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं, जिससे उन्हें नियोजित अथवा बेरोज़गार के रूप में वर्गीकृत करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
      • ऐसे में हो सकता है कि कोई व्यक्ति इस सप्ताह बेरोज़गार हो लेकिन हो सकता है कि उसने पिछले महीने एक आकस्मिक मज़दूर के रूप में और वर्ष के अधिकांश समय एक किसान के रूप में काम किया हो।
  • ग्रामीण बनाम शहरी असमानताएँ: 
    • UPSS में रोज़गार की कम दर बताती है कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर आमतौर पर कम क्यों है।
    • कृषि अर्थव्यवस्थाओं में पारिवारिक खेतों अथवा आकस्मिक कृषि कार्यों तक पहुँच से कुछ काम मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

भारत में बेरोज़गारी के प्रमुख कारण

  • सामाजिक कारण:
    • भारत में जाति व्यवस्था प्रचलित है। कुछ क्षेत्रों में विशिष्ट जातियों के लिये कार्य करना वर्जित है।
    • बड़े व्यवसाय वाले बड़े संयुक्त परिवारों में ऐसे कई व्यक्ति मिल जाएंगे जो कोई कार्य नहीं करते और परिवार की संयुक्त आय पर निर्भर रहते हैं।
  • जनसंख्या की तीव्र वृद्धि:
    • भारत में जनसंख्या में लगातार वृद्धि एक बड़ी समस्या रही है।
  • कृषि का प्रभुत्व:
    • भारत में अभी भी लगभग आधा कार्यबल कृषि पर निर्भर है।
      • हालाँकि भारत में कृषि अविकसित है।
      • साथ ही यह मौसमी बेरोज़गारी में भी योगदान करती है।
  • कुटीर एवं लघु उद्योगों का पतन:
    • औद्योगिक विकास का कुटीर एवं लघु उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
    • कुटीर उद्योगों का उत्पादन गिरने लगा और कई कारीगर बेरोज़गार हो गए।
  • श्रम की गतिहीनता:
    • भारत में श्रमिकों की गतिशीलता कम है। परिवार से लगाव के कारण व्यक्ति रोज़गार के लिये दूर-दराज़ के इलाकों में नहीं जाते।
    • भाषा, धर्म और जलवायु जैसे कारक भी कम गतिशीलता के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • शिक्षा प्रणाली में दोष:
    • पूंजीवादी विश्व में रोज़गार अत्यधिक विशिष्ट हो गया है लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली रोज़गार के लिये आवश्यक प्रशिक्षण और विशेषज्ञता प्रदान नहीं करती है।
    • इस प्रकार कई व्यक्ति जो कार्य करने के इच्छुक हैं, कौशल की कमी के कारण बेरोज़गार हो जाते हैं।

आगे की राह 

  • भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में बेरोज़गारी माप में अनौपचारिक रोज़गार बाज़ार, श्रम बल भागीदारी में भिन्नता और अलग-अलग मानदंडों से उत्पन्न जटिल चुनौतियाँ शामिल हैं।
  • बेरोज़गारी को प्रभावी ढंग से संबोधित करने और सूचित नीतिगत निर्णय लेने के लिये इन जटिलताओं को समझना महत्त्वपूर्ण है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ है कि:  (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (c)


जैव विविधता और पर्यावरण

पारिस्थितिकी-संहार को अपराधीकृत करने पर वैश्विक दबाव

प्रिलिम्स के लिये:

पारिस्थितिकी-संहार, माया स्थल, संयुक्त राष्ट्र का अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय, रोम संविधि, जैविक विविधता अभिसमय, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय, वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण, 2016 (CAMPA)

मेन्स के लिये:

भारत में पारिस्थितिकी-संहार स्वीकृति की वर्तमान स्थिति, पारिस्थितिकी-संहार के अपराधीकरण के पक्ष और विपक्ष में तर्क

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

मेक्सिको में विवादास्पद माया ट्रेन परियोजना का उद्देश्य पर्यटकों को ऐतिहासिक माया स्थलों से जोड़ना है, जिससे इसके संभावित पर्यावरणीय और सांस्कृतिक प्रभाव पर चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं।

  • इस परियोजना से जुड़ी बहस "पारिस्थितिकी-संहार" की अवधारणा और पर्यावरण विनाश को अपराध घोषित करने के बढ़ते वैश्विक आंदोलन/संचार पर ध्यान केंद्रित करती है।

पारिस्थितिकी-संहार:

  • परिचय:  
    • पारिस्थितिकी-संहार, ग्रीक और लैटिन से लिया गया है, जिसका अनुवाद 'किसी के घर या 'पर्यावरण को खत्म करना' है।
    • हालाँकि वर्तमान में पारिस्थितिकी-संहार का कोई सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त कानूनी विवरण नहीं है, जून 2021 में स्टॉप इकोसाइड फाउंडेशन नामक एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा बुलाए गए वकीलों के एक समूह ने एक परिभाषा तैयार की जो पर्यावरणीय विनाश को मानवता के खिलाफ अपराधों के समान दायरे में रखेगी।
    • उनके प्रस्ताव के अनुसार, पारिस्थितिकी-हत्या को "इस जागरूकता के साथ किये गए गैर-कानूनी या लापरवाह कार्यों के रूप में परिभाषित किया गया है कि पर्यावरण को गंभीर और व्यापक या स्थायी हानि होने की पर्याप्त संभावना मौजूद है।"
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • वर्ष 1970 में जीवविज्ञानी आर्थर गैलस्टन पर्यावरणीय विनाश और नरसंहार (जिसे एक अंतर्राष्ट्रीय अपराध के रूप में मान्यता प्राप्त है) के बीच संबंध स्थापित करने वाले पहले व्यक्ति थे।
      • उन्होंने वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना द्वारा एजेंट ऑरेंज, एक जड़ी-बूटी नाशक दवा के उपयोग को संबोधित करते हुए यह लिंक बनाया था।
    • स्वीडिश प्रधानमंत्री ओलोफ पाल्मे ने भी संयुक्त राष्ट्र में एक भाषण में इस अवधारणा के विषय में चर्चा की थी।
    • वर्ष 2010 में एक ब्रिटिश वकील ने संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) से आधिकारिक तौर पर पारिस्थितिक हत्या को अंतर्राष्ट्रीय अपराध के रूप में स्वीकार करने का आग्रह कर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई
      • वर्तमान में ICC का रोम कानून चार प्रमुख अपराधों को अंतर्राष्ट्रीय अपराध के रूप में संबोधित करता है: नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध, युद्ध अपराध और आक्रामकता का अपराध ।
      • युद्ध अपराधों से संबंधित प्रावधान एकमात्र कानून है जो अनुचित कार्य  करने वाले को पर्यावरण के विनाश के लिये ज़िम्मेदार ठहरा सकता है, लेकिन केवल तभी जब यह सशस्त्र संघर्ष के समय जान-बूझकर किया गया हो।

भारत में इकोसाइड स्वीकृति की वर्तमान स्थिति:

  • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के रोम कानून पर न तो हस्ताक्षर किये हैं और न ही इसकी पुष्टि की है तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पारिस्थितिकी-हत्या को अपराध घोषित करने के प्रस्ताव पर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।
  • हालाँकि कुछ भारतीय अदालती फैसलों में लापरवाही से 'इकोसाइड' शब्द का उपयोग किया गया है, लेकिन इस अवधारणा को औपचारिक रूप से भारतीय कानून में एकीकृत नहीं किया गया है।
    • चंद्रा CFS और टर्मिनल ऑपरेटर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम सीमा शुल्क तथा अन्य आयुक्त (2015) के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने मूल्यवान वनों (Timbers) को हटाने से संबंधित पारिस्थितिकी-संहार की निरंतर एवं बेलगाम गतिविधियों पर ध्यान दिया।
    • टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ और अन्य (1995) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरणीय न्याय प्राप्त करने के लिये मानवकेंद्रित दृष्टिकोण से पारिस्थितिक दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित किया।

पारिस्थितिकी-संहार को अपराध घोषित करने के पक्ष में तर्क:

  • स्वयं में एक लक्ष्य के रूप में पर्यावरण की रक्षा: पारिस्थितिकी तंत्र प्रजातियों तथा अंतःक्रियाओं का जटिल जाल है जो लाखों वर्षों में विकसित हुआ है।
    • पर्यावरण की रक्षा करना अपने आप में एक लक्ष्य है, जो इन पारिस्थितिक तंत्रों की अखंडता और विकासवादी क्षमता को बनाए रखने के लिये उनकी प्राकृतिक अवस्था में उन्हें संरक्षित करने के महत्त्व को बढ़ावा देता है।
    • पारिस्थितिकी-संहार कानून, पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक कमी को पूरा करता है तथा पर्यावरण को सुरक्षा के योग्य इकाई के रूप में मान्यता देता है।
  • अंतर-पीढ़ीगत न्याय: अधिवक्ताओं का तर्क है कि पारिस्थितिकी-संहार को "जैवविविधता ऋण" के संचय के रूप में देखा जा सकता है जिसका भुगतान आने वाली पीढ़ियों को करना होगा।
    • पारिस्थितिकी-संहार को एक अपराध के रूप में मान्यता देकर समाज आने वाली पीढ़ियों के लिये एक सतत् तथा रहने योग्य ग्रह छोड़ने के अपने दायित्व को स्वीकार करता है।
  • जलवायु परिवर्तन शमन: आपराधिक कानून के माध्यम से पारिस्थितिक विनाश को संबोधित करना जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों को सीधे लक्षित करके अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौतों के लिये एक महत्त्वपूर्ण पूरक के रूप में कार्य करता है।
    • बड़े पैमाने पर वनों की कटाई तथा अनियंत्रित जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण जैसी सभी गतिविधियों को पारिस्थितिक विनाशकारी गतिविधियाँ माना जाता है।
    • पारिस्थितिकी-संहार का अपराधीकरण पर्यावरण संरक्षण में एक मज़बूत कानूनी आयाम जोड़ता है जो जलवायु को हानि पहुँचाने वाले कार्यों के लिये व्यक्तियों तथा संस्थाओं को उत्तरदायी बनाता है।

नोट: मार्च 2023 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वैश्विक जलवायु कार्रवाई अभी भी अपर्याप्त है। बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन का दहन, स्थलीय और जलीय वातावरण में प्लास्टिक एवं उर्वरकों के माध्यम से प्रदूषण तथा प्रजातियों की जान की हानि जैसी गतिविधियाँ सामूहिक रूप से एक नए भू-वैज्ञानिक युग का संकेत देती हैं जिसे एंथ्रोपोसीन के रूप में जाना जाता है।

  •   वैश्विक मान्यता और कानूनी कार्रवाई का विस्तार: इकोसाइड को 11 देशों में पहले से ही एक अपराध माना जाता है, 27 और देश इसी प्रकार के कानून पर विचार कर रहे हैं।
    •  इकोसाइड कानून न्याय के लिये शक्तिशाली आह्वान के रूप में भी काम कर सकते हैं, विशेषकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिये जो विषम मौसम की घटनाओं का खामियाज़ा भुगत रहे हैं।
      •  वानुअतु और बारबुडा जैसे छोटे देश ICC से पर्यावरणीय अपराधों को अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के रूप में वर्गीकृत करने का आग्रह कर रहे हैं।

पारिस्थितिकी-संहार को अपराध घोषित करने के विरुद्ध तर्क: 

  •  विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण: पारिस्थितिकी-संहार को अपराध घोषित करने के विरुद्ध एक प्रमुख तर्क विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच तनाव से संबंधित है।
    • आलोचकों का तर्क है कि पारिस्थितिकी-संहार को परिभाषित करना अनजाने में विकास लक्ष्यों को पर्यावरण संरक्षण के विरुद्ध खड़ा कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये भारत में ग्रेट निकोबार परियोजना को स्वदेशी समुदायों और जैवविविधता को संभावित रूप से नुकसान पहुँचाने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा, जबकि सरकार ने इसका "समग्र विकास" की पहल के रूप में बचाव किया।
  • संप्रभुता में हस्तक्षेप: कुछ लोगों का तर्क है कि पारिस्थितिकी-संहार को अपराध घोषित करना किसी देश की संप्रभुता का उल्लंघन हो सकता है।
    • देश ऐसे कानूनों को अपनी पर्यावरण नीतियों और संसाधनों के प्रबंधन की क्षमता पर अतिक्रमण के रूप में देख सकते हैं, जिससे प्रतिरोध या गैर-अनुपालन हो सकता है।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान पर भयावह प्रभाव: संभावित कानूनी नतीजों के डर से वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को ऐसे अध्ययन करने से रोका जा सकता है जिनमें पर्यावरणीय हेर-फेर या प्रयोग शामिल हों।
    • यह वैज्ञानिक प्रगति और जटिल पारिस्थितिक तंत्रों की समझ में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • प्रभावकारिता और प्रवर्तन चुनौतियाँ: कई आलोचक पर्यावरणीय क्षति को रोकने में पारिस्थितिकी- संहार को अपराध की श्रेणी में शामिल करने की प्रभावशीलता पर सवाल उठाते हैं।
    • उनका तर्क है कि मौजूदा पर्यावरण विनियम, यदि सख्ती से लागू किये जाएँ तो ये नए आपराधिक ढाँचा बनाने की तुलना में अधिक प्रभावी हो सकते हैं जिन्हें लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

आगे की राह

  • एक मौलिक अनिवार्यता के रूप में पर्यावरण संरक्षण: चाहे पारिस्थितिकी-संहार को अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाए या नहीं, लेकिन हमारा सर्वोपरि उद्देश्य हमेशा पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण होना चाहिये।
  • पारिस्थितिकी पुनर्प्राप्ति बॉण्ड: इस प्रकार के बॉण्ड की अवधारणा की शुरुआत भी एक अहम कदम साबित हो सकती है।
    • महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव वाली परियोजनाओं में शामिल कंपनियों को अपनी लाइसेंसिंग अथवा अनुमति प्रक्रिया के हिस्से के रूप में इन बॉण्डों को खरीदना अनिवार्य किया जा सकता है।
    • पर्यावरणीय क्षति की स्थिति में इन बॉण्ड से प्राप्त धनराशि का पारिस्थितिकी पुनर्प्राप्ति के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • अनिवार्य पर्यावरण शिक्षा: पर्यावरणीय अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये स्कूलों और विश्वविद्यालयों में अनिवार्य पर्यावरण शिक्षा लागू करने की आवश्यकता है।
    • यह शिक्षा नागरिकों को पर्यावरण की सुरक्षा करने और पारिस्थितिकी-संहार से संबंधित चर्चाओं में शामिल होने के लिये सशक्त बनाएगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2019)

  1. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत को सशक्त करता है कि:
  2. वह पर्यावरणीय संरक्षण की प्रक्रिया में लोक सहभागिता की आवश्यकता का और इसे हासिल करने की प्रक्रिया और रीति का विवरण दे।
  3. वह विभिन्न स्रोतों से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन या विसर्जन के मानक निर्धारित करे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1       
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. सरकार द्वारा किसी परियोजना को अनुमति देने से पूर्व, अधिकाधिक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन किये जा रहे हैं। कोयला गर्त-शिखरों (पिटहेड्स) पर अवस्थित कोयला-अग्नित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2014)

प्रश्न. पर्यावरण प्रभाव आकलन (ई.आई.ए.) अधिसूचना, 2020 प्रारूप मसौदा मौजूदा ई.आई.ए. अधिसूचना, 2006 से कैसे भिन्न है? (2020)

प्रश्न. “भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानिकीकरण है।” सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022)


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