भारत का अद्वितीय रोज़गार संकट
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, आवधिक श्रम सर्वेक्षण, विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार, बेरोज़गारी के प्रकार मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का महत्त्व, भारत में रोज़गार और बेरोज़गारी, बेरोज़गारी के प्रकार |
चर्चा में क्यों?
हाल के एक अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में कृषि में कम लोग कार्यरत हैं, इसके वाबजूद परिवर्तन कमज़ोर रहा है।
- कृषि कार्य को छोड़ने वाले लोग कारखानों की तुलना में निर्माण स्थलों और असंगठित अर्थव्यवस्था में अधिक संख्या में काम कर रहे हैं।
कृषि क्षेत्र में रोज़गार:
- वर्ष1993-94 में कृषि देश की नियोजित श्रम शक्ति का लगभग 62% थी।
- कृषि में श्रम प्रतिशत (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आँकड़ों के आधार पर) वर्ष 2004-05 तक लगभग 6% अंक और अगले सात वर्षों में 9% अंक गिर गया।
- गिरावट की प्रवृत्ति बाद के सात वर्षों में भी धीमी गति से जारी रही।
- वर्ष 1993-94 और वर्ष 2018-19 के बीच भारत के कार्यबल में कृषि की हिस्सेदारी 61.9% से घटकर 41.4% हो गई।
- यह अनुमान है कि वर्ष 2018 में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद स्तर के अनुसार, भारत के कृषि क्षेत्र में कुल कार्यबल का 33-34% कार्यरत होना चाहिये।
- अर्थात् यह 41.4% औसत कार्यबल से पर्याप्त विचलन को नहीं दर्शाता है।
- यह अनुमान है कि वर्ष 2018 में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद स्तर के अनुसार, भारत के कृषि क्षेत्र में कुल कार्यबल का 33-34% कार्यरत होना चाहिये।
भारत में रोज़गार प्रवृत्ति:
- कृषि:
- प्रवृत्ति का उत्क्रमण:
- पिछले दो वर्षों में प्रवृत्ति में बदलाव आया है, जिससे वर्ष 2020-21 में कृषि में कार्यरत लोगों की हिस्सेदारी बढ़कर 44-45% हो गई है।
- यह मुख्य रूप से कोविड-प्रेरित आर्थिक व्यवधानों से संबंधित है।
- पिछले दो वर्षों में प्रवृत्ति में बदलाव आया है, जिससे वर्ष 2020-21 में कृषि में कार्यरत लोगों की हिस्सेदारी बढ़कर 44-45% हो गई है।
- संरचनात्मक परिवर्तन:
- यहाँ तक कि पिछले तीन दशकों या उससे अधिक समय में भारत में कृषि से श्रम का जो पलायन देखा गया वह उस योग्य नहीं है जिसे अर्थशास्त्री "संरचनात्मक परिवर्तन" कहते हैं।
- संरचनात्मक परिवर्तन में कृषि से श्रम का स्थानांतरण उन क्षेत्रों, विशेष रूप से विनिर्माण और आधुनिक सेवाओं जहाँ उत्पादकता, मूल्यवर्द्धन तथा औसत आय अधिक है, में होना शामिल है।
- हालाँकि कुल रोज़गार में कृषि के साथ ही विनिर्माण (और खनन) का भी हिस्सा कम हुआ है।
- कृषि से अधिशेष श्रम को बड़े पैमाने पर निर्माण और सेवाओं में समाहित किया जा रहा है।
- भारत में संरचनात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया कमज़ोर और दोषपूर्ण रही है।
- कोविड के कारण अस्थायी रूप से ठप होने के बावजूद कृषि से अलग क्षेत्रों में मजदूरों की आवाजाही जारी है।
- लेकिन वह अधिशेष श्रम उच्च मूल्यवर्द्धित गैर-कृषि गतिविधियों विशेष रूप से विनिर्माण और आधुनिक सेवाओं की ओर नहीं बढ़ रहा है।
- श्रम हस्तांतरण कम उत्पादकता वाली अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के भीतर हो रहा है।
- यहाँ तक कि पिछले तीन दशकों या उससे अधिक समय में भारत में कृषि से श्रम का जो पलायन देखा गया वह उस योग्य नहीं है जिसे अर्थशास्त्री "संरचनात्मक परिवर्तन" कहते हैं।
- प्रवृत्ति का उत्क्रमण:
- सेवा क्षेत्र:
- सेवा क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी, व्यवसाय प्रक्रिया, आउटसोर्सिंग, दूरसंचार, वित्त, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और लोक प्रशासन जैसे अपेक्षाकृत अच्छी तरह से भुगतान करने वाले उद्योग शामिल हैं।
- इस मामले में अधिकांश नौकरियाँ छोटी खुदरा बिक्री, छोटे भोजनालयों, घरेलू मदद, स्वच्छता, सुरक्षा स्टाफ, परिवहन और इसी तरह की अन्य अनौपचारिक आर्थिक गतिविधियोंं से संबंधित हैं।
- यह संगठित उद्यमों में रोज़गार के कम हिस्से से भी स्पष्ट है, जिन्हें 10 या अधिक श्रमिकों को नियुक्त करने वाले के रूप में परिभाषित किया गया है।
- सेवा क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी, व्यवसाय प्रक्रिया, आउटसोर्सिंग, दूरसंचार, वित्त, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और लोक प्रशासन जैसे अपेक्षाकृत अच्छी तरह से भुगतान करने वाले उद्योग शामिल हैं।
सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में रोज़गार के बढ़ते अवसर:
- वर्ष 2020-22 के बीच भारत की शीर्ष पाँच आईटी कंपनियों (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़, इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल टेक्नोलॉजीज़ और टेक महिंद्रा) में संयुक्त कर्मचारियों की संख्या55 लाख से बढ़कर 15.69 लाख हो गई है।
- महामारी के बाद की अवधि में यह 4.14 लाख या लगभग 36% की वृद्धि है, जब कृषि को छोड़कर अधिकांश अन्य क्षेत्र नौकरियों और वेतन में कमी कर रहे थे।
- इन पाँच कंपनियों में संयुक्त रोज़गार की संख्या, भारतीय रेलवे और तीन रक्षा सेवाओं के संयुक्त रोज़गार की तुलना में अधिक हैं।
- आईटी क्षेत्र में हाल की अधिकांश सफलता निर्यात के परिणामस्वरूप है।
- भारत का सॉफ्टवेयर सेवाओं में शुद्ध निर्यात वर्ष 2019-20 में 84.64 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 109.54 बिलियन डॉलर हो गया है।
बेरोज़गारी पर अंकुश लगाने हेतु संभावित उपाय:
- कृषि में संलग्न श्रमिकों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना:
- सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में संलग्न कार्यबल के कौशल को बढ़ाने वाली योजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- कृषि क्षेत्र में कौशल तथा ज्ञान को बढ़ावा देने से यह दोहरा लाभ प्रदान करेगा और साथ ही श्रमिकों को रोज़गार के अन्य बेहतर क्षेत्रों की तलाश करने में मदद करेगा।
- सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में संलग्न कार्यबल के कौशल को बढ़ाने वाली योजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- श्रम-गहन उद्योगों को बढ़ावा देना:
- भारत में कई श्रम प्रधान विनिर्माण क्षेत्र हैं जैसे- खाद्य प्रसंस्करण, चमड़ा और जूते, लकड़ी के उत्पाद एवं फर्नीचर, परिधान, टेक्सटाइल व वस्त्र आदि।
- रोज़गार सृजित करने के लिये प्रत्येक उद्योग को विशेष पैकेज की आवश्यकता होती है।
- भारत में कई श्रम प्रधान विनिर्माण क्षेत्र हैं जैसे- खाद्य प्रसंस्करण, चमड़ा और जूते, लकड़ी के उत्पाद एवं फर्नीचर, परिधान, टेक्सटाइल व वस्त्र आदि।
- उद्योगों का विकेंद्रीकरण:
- प्रत्येक क्षेत्र में लोगों को रोज़गार प्रदान करने के लिये औद्योगिक गतिविधियों का विकेंद्रीकरण किया जाना आवश्यक है।
- ग्रामीण क्षेत्रों के विकास से शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण लोगों के प्रवास को कम करने में मदद मिलेगी जिससे शहरी क्षेत्र में रोज़गार पर दबाव कम होगा।
- सरकार की पहल:
बेरोज़गारी के प्रकार:
- प्रच्छन्न बेरोज़गारी:
- यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जाता है।
- यह मुख्य रूप से भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में पाई जाती है।
- मौसमी बेरोज़गारी:
- यह बेरोज़गारी वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है।
- भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर काफी कम काम होता है।
- संरचनात्मक बेरोज़गारी:
- यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच असंतुलन होने से उत्पन्न बेरोज़गारी की एक श्रेणी है।
- चक्रीय बेरोज़गारी:
- यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।
- तकनीकी बेरोज़गारी:
- यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण रोज़गार में आई कमी है।
- घर्षण बेरोज़गारी:
- घर्षण बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश कर रहा होता है या नौकरियाँ बदल रहा होता है, यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करती है।
- सुभेद्य रोज़गार:
- इसका मतलब है कि लोग बिना उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से काम कर रहे हैं और इस प्रकार इनके लिये कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है।
- इन व्यक्तियों को 'बेरोज़गार' माना जाता है क्योंकि उनके कार्य का रिकॉर्ड कभी भी नहीं बनाया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है: (a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं उत्तर: C व्याख्या:
प्र. क्या क्षेत्रीय-संसाधन आधारित विनिर्माण की रणनीति भारत में रोज़गार को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है? (मुख्य परीक्षा, 2019) प्रश्न. आमतौर पर देश कृषि से उद्योग में और फिर बाद में सेवाओं में स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत कृषि से सीधे सेवाओं में स्थानांतरित हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (मुख्य परीक्षा, 2014) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार (PSL), भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI), मेगा फूड पार्क (MFP), निर्दिष्ट खाद्य पार्क (DFP)। मेन्स के लिये:भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा को एक लिखित उत्तर में राज्य मंत्री (खाद्य प्रसंस्करण उद्योग) ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा शुरू की गई पहलों के बारे में बताया।
खाद्य प्रसंस्करण और भारत में इस क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:
- परिचय:
- खाद्य प्रसंस्करण एक प्रकार का विनिर्माण है जिसमें वैज्ञानिक ज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके कच्चे माल को मध्यवर्ती खाद्य पदार्थों या खाद्य वस्तुओं में संसाधित किया जाता है।
- इसके अंतर्गत ज़ल्द ही खराब होने वाले और अखाद्य, खाद्य संसाधनों को विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके अधिक उपयोगी, लंबे समय तक इस्तेमाल किये जा सकने वाले भोजन या पेय पदार्थों में परिवर्तित किया जाता है।
- यह तैयार उत्पाद की भंडारण क्षमता, सुवाह्यता, स्वाद और सुविधा में सुधार करता है।
- इसके अंतर्गत ज़ल्द ही खराब होने वाले और अखाद्य, खाद्य संसाधनों को विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके अधिक उपयोगी, लंबे समय तक इस्तेमाल किये जा सकने वाले भोजन या पेय पदार्थों में परिवर्तित किया जाता है।
- खाद्य प्रसंस्करण एक प्रकार का विनिर्माण है जिसमें वैज्ञानिक ज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके कच्चे माल को मध्यवर्ती खाद्य पदार्थों या खाद्य वस्तुओं में संसाधित किया जाता है।
- महत्त्व:
- भारतीय खाद्य क्षेत्र पैमाने के मामले में पाँचवें स्थान पर है, जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6%, भारतीय निर्यात का 13% और देश में समग्र औद्योगिक निवेश का 6% योगदान देता है।
- वर्तमान स्थिति:
- चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फल और सब्जियों का उत्पादक है, फिर भी केवल 2% फसल ही संसाधित होती है।
- एक महत्त्वपूर्ण विनिर्माण आधार के बावजूद भारत की प्रसंस्करण क्षमता अत्यंत कम है (10 प्रतिशत से कम)।
- प्रसंस्करण के मामले में लगभग 2% फल और सब्जियाँ, 8% समुद्री उत्पाद, 35% दूध और 6% मुर्गी पालन शामिल है।
- 50% भैंस और 20% मवेशियों के साथ भारत में दुनिया की सबसे बड़ी पशुधन आबादी है, लेकिन पूरी आबादी का केवल 1% ही मूल्यवर्द्धित उत्पादों में परिवर्तित होता है।
सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न नीतिगत कदम:
- अप्रैल, 2015 में प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण (PSL) मानदंडों के तहत कृषि गतिविधि के रूप में खाद्य और कृषि आधारित प्रसंस्करण इकाइयों एवं शीत शृंखला को शामिल करना।
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस के रूप में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने वर्ष 2016 में अधिसूचनाओं के माध्यम से उत्पाद-दर-उत्पाद अनुमोदन से घटक तथा योज्य-आधारित अनुमोदन प्रक्रिया में स्थानांतरित कर दिया है।
- खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिये स्वचालित मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की मंज़ूरी की अनुमति दी गई है।
- मेगा फूड पार्क (MFP) के साथ-साथ MFP में प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना में निवेश के लिये किफायती ऋण प्रदान करने हेतु राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD/नाबार्ड) के साथ 2000 करोड़ रुपए का विशेष खाद्य प्रसंस्करण कोष स्थापित किया गया था।
- वर्ष 2019 में व्यक्तिगत विनिर्माण इकाइयों की स्थापना के साथ-साथ कृषि-प्रसंस्करण समूहों की स्थापना के लिये कोष का कवरेज बढ़ाया गया था।
- साथ ही नाबार्ड के साथ विशेष निधियों से वहनीय ऋण प्राप्त करने के उद्देश्य से विभिन्न राज्यों में नामित फूड पार्क (DFP) योजना शुरू की जाएगी।
आगे की राह
- वर्तमान में भारत अपने कृषि उत्पादन के 10% से कम का प्रसंस्करण कर रहा है; इस प्रकार प्रसंस्करण स्तर को बढ़ावा देने और इस क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के अपार अवसर हैं। अतः सरकार के उपाय सही दिशा में हैं।
- इसके अलावा खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की वृद्धि खुदरा क्षेत्र में मांग और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं की वृद्धि के कारण होगी।
- इसलिये पर्याप्त वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों के साथ एक मज़बूत फसल मूल्य शृंखला की आवश्यकता है जो MSME क्षेत्र के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा देगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न: भारत सरकार मेगा फूड पार्क की अवधारणा को किस/किन उद्देश्य/उद्देश्यों से प्रोत्साहित कर रही है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: B इसका उद्देश्य किसानों, प्रसंस्करणकर्त्ता और खुदरा विक्रेताओं को एक साथ लाकर कृषि उत्पादन को बाज़ार से जोड़ने के लिये एक तंत्र प्रदान करना है ताकि मूल्यवर्द्धन, कम अपव्यय के साथ किसानों की आय को बढ़ाकर रोज़गार के नए अवसर (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में) सुनिश्चित किये जा सकें। अत: विकल्प B सही है। प्रश्न. लागत प्रभावी छोटी प्रक्रमण इकाई की अल्प स्वीकार्यता के क्या कारण हैं? खाद्य प्रक्रमण इकाई गरीब किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने में किस प्रकार सहायक होगी? (मुख्य परीक्षा- 2017) |
स्रोत: पी.आई.बी.
ईरान परमाणु समझौता वार्ता
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त व्यापक कार्ययोजना, प्रतिबंध अधिनियम (CAATSA), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के माध्यम से अमेरिका के विरोधियों का मुकाबला मेन्स के लिये:संयुक्त व्यापक कार्ययोजना और ईरान के साथ भारत के संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिये इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वर्ष 2015 के परमाणु समझौते को पुनः स्थापित करने हेतु वियना में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर वार्ता का नया दौर शुरू हुआ, जिसे संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA) के रूप में भी जाना जाता है।
- ईरान सहित विभिन्न देशों के अधिकारी मार्च, 2022 के बाद पहली बार बैठक कर रहे हैं।
ईरान परमाणु समझौता:
- परिचय:
- संयुक्त व्यापक कार्ययोजना का उद्देश्य प्रतिबंधों को धीरे-धीर हटाने के बदले में ईरान के परमाणु कार्यक्रम की नागरिक प्रकृति की गारंटी देना है।
- ईरान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों- अमेरिका, रूस, फ्राँस, चीन और यूनाइटेड किंगडम के साथ-साथ जर्मनी एवं यूरोपीय संघ के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- समझौते के तहत ईरान परमाणु हथियारों के लिये अपकेंद्रित्र, समृद्ध यूरेनियम और भारी जल सभी प्रमुख घटकों के अपने भंडार में महत्त्वपूर्ण कटौती करने पर सहमत हुआ।
- ईरान प्रोटोकॉल को लागू करने के लिये भी सहमत हुआ कि वह अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के निरीक्षकों को अपने परमाणु स्थलों तक पहुँचने की अनुमति देगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित नहीं कर रहा है।
- मुद्दे:
- पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका की एकतरफा दवाब और अमेरिकी प्रतिबंधों को फिर से लागू करने के कारण ईरान अपने दायित्वों से पीछे हट गया।
- ईरान ने बाद में JCPOA की यूरेनियम संवर्द्धन दर 3.67% को पार कर लिया, जो वर्ष 2021 की शुरुआत में बढ़कर 20% हो गई।
- इसके बाद ह एक अभूतपूर्व वृद्धि के साथ 60% सीमा को पार कर लिया तथा बम बनाने के लिये आवश्यक 90 प्रतिशत के करीब पहुँच गया।
- विरोधी देश:
- मध्य-पूर्व में अमेरिका के सबसे करीबी सहयोगी इज़रायल ने इस संधि को दृढ़ता से खारिज़ कर दिया तथा ईरान के सबसे बड़े क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब जैसे अन्य देशों ने शिकायत की कि वे वार्ता में शामिल नहीं थे, हालाँकि ईरान के परमाणु कार्यक्रम ने इस क्षेत्र के हर देश के लिये सुरक्षा जोखिम पैदा किया।
भारत के लिये JCPOA का महत्त्व:
- क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा:
- ईरान पर लगे प्रतिबंधों के हटने से चाबहार, बंदर अब्बास बंदरगाह और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी से संबंधित अन्य योजनाओं में भारत के हितों का संरक्षण किया जा सकेगा।
- यह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीनी उपस्थिति को बेअसर करने में भारत की मदद करेगा।
- चाबहार के अलावा ईरान से होकर गुज़रने वाले ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण पारगमन गलियारे’(INSTC) से भारत के हितों को भी बढ़ावा मिल सकता है। गौरतलब है कि INSTC के माध्यम से पाँच मध्य एशियाई देशों के साथ कनेक्टिविटी में सुधार होगा।
- ऊर्जा सुरक्षा:
- अमेरिका की आपत्तियों और CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के दबाव के कारण भारत को ईरान से तेल के आयात को शून्य करना है।
- अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों की बहाली से भारत को ईरान से सस्ते तेल की खरीद करने तथा अपनी ऊर्जा सुरक्षा को समर्थन प्रदान करने में सहायता मिलेगी।
आगे की राह
- अमेरिका को न केवल ईरान के परमाणु कार्यक्रम बल्कि क्षेत्र में उसके बढ़ते शत्रुतापूर्ण व्यवहार पर भी ध्यान देना होगा। उसे नए बहुध्रुवीय विश्व की वास्तविकता को भी ध्यान में रखना होगा, जिसमें अब उसके एकतरफा नेतृत्त्व की गारंटी नहीं है।
- ईरान को मध्य-पूर्व में तेज़ी से बदलते परिदृश्य पर विचार करना होगा, यह देखते हुए कि हाल के वर्षों में इज़रायल ने कई मध्य-पूर्वी अरब देशों के साथ अपने संबंधों को पुनर्गठित किया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016) (a) ईरान उत्तर:(a) व्याख्या:
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स्रोत: द हिंदू
'आउटबाउंड ट्रैवल एंड टूरिज्म- एन अपॉर्चुनिटी अनटैप्ड'
प्रिलिम्स के लिये:भारत में पर्यटन, पर्यटन से संबंधित योजनाएँ। मेन्स के लिये:भारत में पर्यटन का महत्त्व और चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'आउटबाउंड ट्रैवल एंड टूरिज़्म - एन अपॉर्चुनिटी अनटैप्ड' (Outbound Travel and Tourism - An Opportunity Untapped) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई थी, जो दर्शाती है कि भारत का आउटबाउंड (निर्गामी) पर्यटन वर्ष 2024 तक 42 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर जाएगा।
- आउटबाउंड पर्यटन का तात्पर्य, पर्यटन के प्रयोजन से ‘मूल देश से बाहर’ की गई यात्राओं से है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- भारतीय आउटबाउंड ट्रैवल मार्केट विश्व स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ते बाज़ारों में से एक है, जिसमें लगभग 80 मिलियन पासपोर्ट स्तर की क्रय शक्ति है, विशेषकर मध्यम वर्ग के बीच।
- बढ़ती अर्थव्यवस्था, युवा आबादी और बढ़ते मध्यम वर्ग के साथ, भारत आदर्श रूप से दुनिया के सबसे आकर्षक आउटबाउंड पर्यटन बाज़ारों में से एक बनने की स्थिति में है।
- यूरोप में पहुँचने वाले 20% पर्यटक भारत के आउटबाउंड पर्यटन की गतिविधि से संबंधित हैं। 10% ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड की यात्रा करते हैं, जबकि शेष पर्यटक दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा करते हैं।
- वर्ष 2021 में भारतीयों ने वर्ष 2019 के 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में आउटबाउंड यात्राओं में लगभग 12.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किये। हालाँकि खर्च में आई इस कमी का एक कारण कोविड जैसी महामारियों का प्रसार भी है, ये आँकड़े उस विशाल मूल्य को इंगित करते हैं जो भारतीय आउटबाउंड यात्रियों से प्राप्त किया जा सकता है।
सिफारिशें:
- सरकार लोकप्रिय और आगामी गंतव्यों के लिये सीधे संपर्क बढ़ाने, विदेशी क्रूज़ जहाज़ों को भारतीय समुद्री सीमा में संचालित करने की अनुमति देने के अलावा आउटबाउंड पर्यटन बाज़ार को बढ़ावा देने के लिये कई मुद्दों पर ठोस एवं समन्वित प्रयास करने जैसे कदमों पर विचार कर सकती है।
- विदेशी क्रूज जहाज़ों को भारतीय गंतव्यों को एक स्टॉप के रूप में शामिल करने की अनुमति देने से इनबाउंड और आउटबाउंड पर्यटन दोनों को बढ़ावा मिलेगा तथा साथ ही भारतीय बंदरगाहों के राजस्व में भी वृद्धि होगी।
- विदेशी प्रतिनिधिमंडलों और उनकी नीतियों की सकारात्मक प्रतिक्रिया के साथ भारत इनबाउंड और आउटबाउंड दोनों प्रकार के पर्यटकों के लिये पर्यटक-अनुकूल देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध स्थापित कर सकता है।
भारत में पर्यटन परिदृश्य:
- परिचय:
- भारत ने अतीत में अपने कल्पित धन के कारण बहुत से यात्रियों को आकर्षित किया। चीनी बौद्ध धर्मनिष्ठ ह्वेनसांग की यात्रा इसका एक उदाहरण है।
- तीर्थयात्रा को तब बढ़ावा मिला जब अशोक और हर्ष जैसे सम्राटों ने तीर्थयात्रियों के लिये विश्राम गृह बनाना शुरू किया।
- अर्थशास्त्र 'राज्य के लिये यात्रा बुनियादी ढाँचे के महत्त्व को इंगित करता है, जिसने अतीत में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- स्वतंत्रता के बाद पर्यटन लगातार पंचवर्षीय योजनाओं (FYP) का हिस्सा बना रहा।
- पर्यटन के विभिन्न रूपों जैसे- व्यापार पर्यटन, स्वास्थ्य पर्यटन और वन्यजीव पर्यटन आदि को भारत में सातवीं पंचवर्षीय योजना के बाद शुरू किया गया था।
- स्थिति:
- विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद की वर्ष 2019 की रिपोर्ट में विश्व सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान के मामले में भारत के पर्यटन को 10वें स्थान पर रखा गया है।
- वर्ष 2019 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद में यात्रा और पर्यटन का योगदान कुल अर्थव्यवस्था का 6.8%, 13,68,100 करोड़ रुपए (194.30 बिलियन अमेरिकी डाॅलर) था।
- भारत में अब तक वर्ष 2021 में 40 साइटें 'विश्व विरासत सूची' के तहत सूचीबद्ध हैं, जो दुनिया में छठा (32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित स्थल) स्थान है।
- धोलावीरा और रामप्पा मंदिर (तेलंगाना) नवीनतम हैं।
- वित्त वर्ष 2020 में भारत में पर्यटन क्षेत्र में 39 मिलियन नौकरियों का योगदान था, जो कि देश में कुल रोज़गार का 8.0% था। वर्ष 2029 तक इसके तहत लगभग 53 मिलियन नौकरियाँ सृजित होने की उम्मीद है।
- महत्त्व:
- सेवा क्षेत्र:
- यह सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देता है। पर्यटन उद्योग के विकास के साथ एयरलाइन, होटल, भूतल परिवहन आदि जैसे सेवा क्षेत्र में लगे व्यवसायों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
- विदेशी मुद्रा:
- विदेशी यात्री विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में भारत की सहायता करते हैं।
- वर्ष 2016 से वर्ष 2019 तक विदेशी मुद्रा आय 7% की CAGR से बढ़ी, लेकिन वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण इसमें गिरावट देखी गई।
- राष्ट्रीय विरासत का संरक्षण:
- पर्यटन स्थलों के महत्त्व और उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करके राष्ट्रीय विरासत और पर्यावरण के संरक्षण में मदद करता है।
- सांस्कृतिक गौरव:
- वैश्विक स्तर पर पर्यटन स्थलों की सराहना होने पर भारतीय निवासियों में गर्व की भावना पैदा होती है।
- ढांँचागत विकास:
- आजकल यात्रियों को किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े, इसके लिये अनेक पर्यटन स्थलों पर बहु-उपयोगी अवसंरचना विकसित की जा रही है।
- मान्यता:
- यह भारतीय पर्यटन को वैश्विक मानचित्र पर लाने, प्रशंसा अर्जित करने, मान्यता प्राप्त करने और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की पहल करने में मदद करता है।
- सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा:
- एक सॉफ्ट पावर के रूप में पर्यटन, सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देने में मदद करता है, लोगों के मध्य जुड़ाव से भारत और अन्य देशों के बीच दोस्ती व सहयोग को बढ़ावा देता है।
- सेवा क्षेत्र:
- चुनौतियांँ:
- बुनियादी ढांँचे में कमी:
- भारत में पर्यटकों को अभी भी कई बुनियादी सुविधाओं से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे-खराब सड़कें, पानी, सीवर, होटल और दूरसंचार आदि।
- बचाव और सुरक्षा:
- पर्यटकों, विशेषकर विदेशी पर्यटकों की सुरक्षा पर्यटन के विकास में एक बड़ी बाधा है। जो अन्य देशों के पर्यटकों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
- कुशल जनशक्ति की कमी:
- कुशल जनशक्ति की कमी भारत में पर्यटन उद्योग के लिये एक और चुनौती है।
- मूलभूत सुविधाओं का अभाव:
- पर्यटन स्थलों पर पेयजल, सुव्यवस्थित शौचालय, प्राथमिक उपचार, अल्पाहारगृह आदि जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव।
- मौसमी:
- अक्तूबर से मार्च तक छह महीने पर्यटन में मौसम के कारण कमी देखी जाती है, जबकि नवंबर और दिसंबर में भारी भीड़ रहती है।
- बुनियादी ढांँचे में कमी:
पर्यटन संबंधी पहल:
- स्वदेश दर्शन योजना:
- तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक, विरासत संवर्द्धन अभियान पर राष्ट्रीय मिशन:
- प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल
- बौद्ध सम्मेलन:
- देखो अपना देश' पहल:
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद
प्रिलिम्स के लिये:सीएसआईआर, नेशनल मिशन फॉर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, रिसर्च एंड डेवलपमेंट, शांति स्वरूप भटनागर। मेन्स के लिये:सीएसआईआर द्वारा की गई पहल, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
वरिष्ठ विद्युत रासायनिक वैज्ञानिक नल्लाथम्बी कलाइसेल्वी वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की पहली महिला महानिदेशक बन गई हैं।
- कलाइसेल्वी का 25 से अधिक वर्षों का शोध कार्य मुख्य रूप से विद्युत रासायनिक शक्ति प्रणाली (Electrochemical Power Systems) और विशेष रूप से इलेक्ट्रोड सामग्री के विकास एवं ऊर्जा भंडारण डिवाइस असेंबली में उनकी उपयुक्तता के लिये इलेक्ट्रोड सामग्री के विद्युत रासायनिक मूल्यांकन पर केंद्रित है।
- कलाइसेल्वी ने इलेक्ट्रिक मोबिलिटी हेतु राष्ट्रीय मिशन में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनके पास 125 से अधिक शोध पत्र और छह पेटेंट अधिकार हैं।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR):
- परिचय:
- वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) भारत का सबसे बड़ा अनुसंधान एवं विकास (R&D) संगठन है।
- CSIR एक अखिल भारतीय संस्थान है जिसमें 37 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, 39 दूरस्थ केंद्रों, 3 नवोन्मेषी परिसरों और 5 इकाइयों का एक सक्रिय नेटवर्क शामिल है।
- CSIR का वित्तपोषण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा किया जाता है तथा यह सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय के रूप में पंजीकृत है।
- कार्यक्षेत्र:
- CSIR अपने दायरे में रेडियो एवं अंतरिक्ष भौतिकी (Space Physics), समुद्र विज्ञान (Oceanography), भू-भौतिकी (Geophysics), रसायन, ड्रग्स, जीनोमिक्स (Genomics), जैव प्रौद्योगिकी और नैनोटेक्नोलॉजी से लेकर खनन, वैमानिकी (Aeronautics), उपकरण विज्ञान (Instrumentation), पर्यावरण अभियांत्रिकी तथा सूचना प्रौद्योगिकी तक की एक विस्तृत विषय शृंखला को शामिल करता है।
- यह सामाजिक प्रयासों के संबंध में कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण तकनीकी हस्तक्षेप प्रदान करता है जिसमें पर्यावरण, स्वास्थ्य, पेयजल, भोजन, आवास, ऊर्जा, कृषि-क्षेत्र और गैर-कृषि क्षेत्र शामिल हैं।
- स्थापना: सितंबर 1942
- मुख्यालय: नई दिल्ली
संगठनात्मक संरचना:
- अध्यक्ष: भारत का प्रधानमंत्री (पदेन अध्यक्ष)।
- उपाध्यक्ष: केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री (पदेन उपाध्यक्ष)।
- शासी निकाय/संचालक मंडल: महानिदेशक (Director General) शासी निकाय का प्रमुख होता है।
- इसके अतिरिक्त वित्त सचिव (व्यय) इसका पदेन सदस्य होता है।
- अन्य सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है।
- CSIR सलाहकार बोर्ड: यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के प्रमुख व्यक्तियों का 15 सदस्यीय निकाया है।
- इसका कार्य शासी निकाय को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संबंधी सलाह या इनपुट्स प्रदान करना है।
- इसके सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है।
उद्देश्य:
- परिषद का उद्देश्य राष्ट्रीय महत्त्व के वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान (Scientific and Industrial/Applied Research) करना है।
इसकी गतिविधियों में शामिल हैं:
- वैज्ञानिक नवाचार से संबंधित संस्थानों और विशिष्ट शोधकर्त्ताओं के वित्तपोषण सहित भारत में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान का सवर्द्धन, मार्गदर्शन और समन्वयन करना।
- उद्योग विशेष और व्यापार विशेष को प्रभावित करने वाली समस्याओं के वैज्ञानिक अध्ययन के लिये विशेष संस्थानों या मौजूदा संस्थानों के विभागों की स्थापना करना तथा सहायता देना।
- शोध हेतु छात्रवृत्ति और फैलोशिप प्रदान करना।
- परिषद के तत्त्वावधान में किये गए अनुसंधान के परिणामों का उपयोग देश में उद्योगों के विकास के लिये करना।
- अनुसंधान के परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाली रॉयल्टी के एक हिस्से का भुगतान उन व्यक्तियों को करना जिन्होंने ऐसे अनुसंधान में महत्त्वपूर्ण योगदान किया हो।
- वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान में प्रगति के लिये प्रयोगशालाओं, कार्यशालाओं, संस्थानों तथा संगठनों की स्थापना, रखरखाव एवं प्रबंधन।
- वैज्ञानिक अनुसंधानों संबंधी सूचनाओं के संग्रह और प्रसार के साथ-साथ सामान्य रूप से औद्योगिक मामलों के संबंध में भी सूचनाओं का संग्रह एवं प्रसार करना।
- शोध पत्रों और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास से संबंधित पत्रिका का प्रकाशन करना।
दृष्टिकोण एवं रणनीति 2022 (Vision & Strategy 2022)
- दृष्टिकोण: ऐसे विज्ञान का प्रसार करना जो वैश्विक प्रभाव के लिये प्रयास करे, ऐसी प्रौद्योगिकी तैयार करना जो नवोन्मेष आधारित उद्योगों का विकास करे और पराविषयी (Trans-Disciplinary) नेतृत्व का संपोषण करे ताकि भारत के लोगों के लिये समावेशी आर्थिक विकास को उत्प्रेरित किया जा सके।
संगठन से जुड़े पुरस्कार/सम्मान:
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उपलब्धि के लिये प्रदान किया जाने वाला शांति स्वरूप भटनागर (SSB) पुरस्कार का नामकरण CSIR के संस्थापक निदेशक स्वर्गीय डॉ. शांति स्वरूप भटनागर के नाम पर किया गया है।
- इसे वर्ष 1957 में देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानजनक पुरस्कार के रूप में निर्दिष्ट किया गया था।
डॉ. शांति स्वरूप भटनागर:
- वे CSIR के संस्थापक निदेशक थे जिन्हें 12 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना करने का श्रेय दिया जाता है।
- स्वातंत्र्योत्तर भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अवसंरचना के निर्माण और भारत की विज्ञानं तथा प्रौद्योगिकी नीतियों के निर्माण में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके साथ ही वे सरकार में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर भी रहे।
- वे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के पहले अध्यक्ष थे।
- उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर’ (OBE) से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1941 में उन्हें ‘नाइट’ की उपाधि दी गई और वर्ष 1943 में उन्हें रॉयल सोसाइटी, लंदन का फेलो चुना गया।
- वर्ष 1954 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
CSIR द्वारा की गई पहल:
- कोविड-19:
- महामारी के कारण उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिये CSIR ने पाँच प्रौद्योगिकी कार्यक्षेत्र स्थापित किये हैं:
- डिजिटल और आणविक निगरानी।
- तीव्र और किफायती निदान।
- ड्रग्स, वैक्सीन और कॉन्वेलसेंट प्लाज़्मा थेरेपी का पुनरुत्पादन।
- चिकित्सालय सहायक उपकरण और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPEs )।
- आपूर्ति शृंखला और रसद समर्थन प्रणाली।
- महामारी के कारण उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिये CSIR ने पाँच प्रौद्योगिकी कार्यक्षेत्र स्थापित किये हैं:
- सामरिक:
- हेड-अप-डिस्प्ले (HUD): इसने भारतीय हल्के लड़ाकू विमान, तेजस के लिये स्वदेशी हेड-अप-डिस्प्ले (HUD) विकसित किया। HUD विमान को उड़ाने में और हथियारों को निशाना बनाने सहित महत्त्वपूर्ण उड़ान युद्धाभ्यास में पायलट की सहायता करता है।
- ऊर्जा और पर्यावरण:
- सोलर ट्री: यह न्यूनतम स्थान में स्वच्छ ऊर्जा पैदा कर सकता है।
- लिथियम आयन बैटरी:0 V/14 h मानक सेल बनाने के लिये स्वदेशी सामग्री पर आधारित भारत की पहली लिथियम आयन बैटरी निर्माण सुविधा स्थापित की गई है।
- कृषि:
- सांबा मसूरी चावल की किस्म: इसने एक बैक्टीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी चावल की किस्म विकसित की।
- चावल की खेती (मुक्तश्री): चावल की एक किस्म विकसित की गई है जो अनुमेय सीमा के भीतर आर्सेनिक के मिश्रण से रोकती है।
- सफेद मक्खियों के प्रतिरोधी कपास की किस्म: एक ट्रांसजेनिक काॅटन लाइन विकसित की जो सफेद मक्खियों के लिये प्रतिरोधी है।
- स्वास्थ्य देखभाल:
- चिकित्सा निर्णय को सक्षम करने के लिये जीनोमिक्स और अन्य ओमिक्स प्रौद्योगिकियाँ - GOMED: इसे CSIR द्वारा विकसित किया गया है जो रोग जीनोमिक्स से संबंधित नैदानिक समस्याओं को हल करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- भोजन और पोषण:
- क्षीर-स्कैनर: यह 10 पैसे की कीमत पर 45 सेकंड में दूध में मिलावट और मिलावट के स्तर का पता लगाता है।
- डबल-फोर्टिफाइड नमक: लोगों में एनीमिया को दूर करने के लिये विकसित और परीक्षण किये गए बेहतर गुणों वाले आयोडीन एवं आयरन से युक्त नमक।
स्रोत: द हिंदू
ग्रेट बैरियर रीफ में प्रवाल भित्ति की बहाली
प्रिलिम्स के लिये:ग्रेट बैरियर रीफ (GBR), कोरल, एक्रोपोरा कोरल, कोरल ब्लीचिंग। मेन्स के लिये:समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में प्रवाल भित्तियों का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ मरीन साइंस (AIMS) की वार्षिक दीर्घकालिक निगरानी रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी और मध्य ग्रेट बैरियर रीफ (GBR) में पिछले 36 वर्षों में प्रवाल भित्तियों के आवरण का उच्च स्तर देखा गया है।
- शोधकर्त्ताओं ने यह भी चेतावनी दी है कि बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण यह स्थिति शीघ्र ही विपरीत भी हो सकती है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- तीव्र पुन:प्राप्ति:
- इसमें कहा गया है कि भित्ति प्रणाली लचीली है और बढ़ते तापमान के तनाव, चक्रवात, शिकारी आक्रमणों जैसी घटना के बाद शीघ्र ही पहले जैसी स्थिति को प्राप्त करने में सक्षम है।
- यह पहली बार ऑस्ट्रेलियाई समुद्री विज्ञान संस्थान (AIMS) द्वारा सर्वेक्षण किये जाने के बाद से उत्तरी और मध्य ग्रेट बैरियर रीफ में क्षेत्र-व्यापी प्रवाल भित्ति के आवरण के रिकॉर्ड स्तर को दर्शाता है।
- कठोर प्रवालों के आवरण में वृद्धि का निर्धारण करके प्रवाल भित्ति के आवरण को मापा जाता है।
- मध्य और उत्तरी क्षेत्र में विकास:
- उत्तरी ग्रेट बैरियर रीफ में कठोर प्रवाल आवरण 36% तक पहुँच गया था, जबकि मध्य क्षेत्र में यह 33% तक पहुँच गया था।
- इस बीच दक्षिणी क्षेत्र में कोरल आवरण का स्तर वर्ष 2021 के 38% से गिरकर वर्ष 2022 में 34% हो गया।
- एक्रोपोरा प्रवालों का प्रभुत्त्व:
- पुनः प्राप्ति के उच्च स्तर को तेज़ी से बढ़ते एक्रोपोरा कोरल में वृद्धि से बढ़ावा मिला है, जो ग्रेट बैरियर रीफ में अवस्थित एक प्रमुख प्रकार है।
- संयोग से ये तेज़ी से बढ़ने वाले प्रवालों पर्यावरणीय दबावों जैसे बढ़ते तापमान, चक्रवात, प्रदूषण, क्राउन-ऑफ-थॉर्न स्टारफिश (COTs) के हमलों के लिये भी अतिसंवेदनशील होते हैं जो कठोर प्रवालों का शिकार करते हैं।
- निम्न प्राकृतिक आपदाएँ:
- इसके अलावा रीफ के कुछ हिस्सों में हालिया पुनः प्राप्ति के पीछे, पिछले 12 महीनों में तीव्र तनाव के निम्न स्तर का बने रहना है जहाँ पर कोई उष्णकटिबंधीय चक्रवात नहीं आया, वर्ष 2016 और 2017 के विपरीत वर्ष 2020 एवं वर्ष 2022 में तापमान के अपेक्षाकृत कम तनाव तथा COTs के प्रकोप में कमी इसका प्रमुख कारण है।
रिपोर्ट में उठाए मुद्दे:
- जलवायु परिवर्तन:
- प्रवाल भित्तियों के स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ने वाले तापमान का तनाव है, जिसके परिणामस्वरूप प्रवाल विरंजन होता है।
- कई वैश्विक पहलों के बावजूद सदी के अंत तक समुद्र के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की भविष्यवाणी की गई है।
- वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र के आकलन के अनुसार, अगले दशक तक विश्व के औसत तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की आशंका है, जिस तापमान पर प्रवाल विरंजन की प्रवृत्ति बढ़ सकती है तथा इसकी पुनः प्राप्ति की दर कम हो सकती है।
- बारंबार बड़े पैमाने पर विरंजन:
- हाल के दिनों में बड़े पैमाने पर विरंजन की घटनाएँ अधिक बार हुई हैं।
- पहली सामूहिक विरंजन की घटना वर्ष 1998 में हुई जब अल नीनो मौसम के प्रतिरूप के कारण समुद्र की सतह गर्म हो गई, जिससे दुनिया के 8% प्रवाल नष्ट गए।
- दूसरी घटना वर्ष 2002 में हुई थी लेकिन सबसे व्यापक और सबसे हानिकारक विरंजन की घटना वर्ष 2014 से वर्ष 2017 तक हुई।
- AIMS द्वारा किये गए हवाई सर्वेक्षण में 47 चट्टानें शामिल थीं और इनमें से 45 भित्तियों पर प्रवाल विरंजन दर्ज किया गया था।
- जबकि प्रवाल मृत्यु का कारण बनने के लिये कारक पर्याप्त अधिक नहीं थे, हालाँकि इसने कम विकास और प्रजनन जैसे घातक प्रभाव छोड़े।
प्रवाल भित्ति:
- परिचय:
- प्रवाल समुद्री अकशेरुकी या ऐसे जीव हैं जिनकी रीढ़ नहीं होती है।
- वे पृथ्वी पर सबसे बड़ी जीवित संरचनाएँ हैं।
- प्रत्येक प्रवाल/रीफ/मूंगे को पॉलीप कहा जाता है और ऐसे हज़ारों पॉलीप्स कॉलोनी बनाने के लिये एक साथ रहते हैं, जो तब बढ़ते हैं जब पॉलीप्स खुद की प्रतियाँ बनाने के लिये गुणन करते हैं।
- प्रवाल दो प्रकार के होते हैं:
- कठोर कोरल:
- वे कठोर, सफेद प्रवाल बाह्य कंकाल बनाने के लिये समुद्री जल से कैल्शियम कार्बोनेट निकालते हैं।
- वे एक तरह से भित्ति पारिस्थितिक तंत्र के इंजीनियर हैं और कठोर प्रवाल की सीमा को मापने के लिये प्रवाल भित्तियों की स्थिति व्यापक रूप से स्वीकृत पैमाना है।
- नरम/सॉफ्ट कोरल:
- ये अपने पूर्वजों द्वारा बनाए गए कंकालों और पुराने कंकालों से खुद को जोड़ लेते हैं।
- सॉफ्ट कोरल भी वर्षों से अपने स्वयं के कंकालों को कठोर संरचना में परिवर्तित करतें हैं।
- ये बढ़ती गुणकारी संरचनाएँ धीरे-धीरे प्रवाल भित्तियों का निर्माण करती हैं।
- कठोर कोरल:
- महत्त्व:
- वे 25% से अधिक समुद्री जैवविविधता का समर्थन करते हैं, भले ही वे समुद्र तल का केवल 1% हिस्सा ग्रहण करतें हैं।
- भित्ति द्वारा समर्थित समुद्री जीवन वैश्विक मछली पकड़ने के उद्योगों को और बढ़ावा देता है।
- इसके अलावा प्रवाल भित्ति प्रणाली वस्तु और सेवा व्यापार एवं पर्यटन के माध्यम से वार्षिक आर्थिक मूल्य में 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर उत्पन्न करती है।
ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट बैरियर रीफ:
- परिचय:
- यह दुनिया का सबसे बड़ा रीफ सिस्टम है जो 2,300 किमी. में फैला है और इसमें लगभग 3,000 व्यक्तिगत रीफ हैं।
- इसके अलावा यह 400 विभिन्न प्रकार के प्रवालों का आवास स्थल है, मछलियों की 1,500 प्रजातियों और 4,000 प्रकार के मोलस्क को आश्रय देता है।
- महत्त्व:
- कोविड-19 से पहले की अवधि में रीफ ने पर्यटन के माध्यम से सालाना 4.6 बिलियन अमेरिकी डाॅलर उत्पन्न किये और गोताखोरों एवं गाइडों सहित 60,000 से अधिक लोगों को रोज़गार दिया।
आगे की राह
- इस अनुमान के साथ कि प्रवाल भित्तियाँ पृथ्वी पर सबसे अधिक संकटग्रस्त पारिस्थितिक तंत्रों में से हैं, कोरल रीफ पारिस्थितिक तंत्र पर मानव प्रभावों को कम करने के लिये सामाजिक स्तर के परिवर्तनों की सख्त आवश्यकता है, लेकिन अब इस पर कोई चर्चा नहीं होती है।
- वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों (SDG 14) की उपलब्धि सुनिश्चित करने के लिये महासागर संसाधनों में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।
- शीर्ष शिकारियों से रक्षा करने, संरक्षण के लिये प्रमुख शाकाहारी मछली प्रजातियों की पहचान करने, विनाशकारी मछली पकड़ने, नौका विहार और गोताखोरी को रोकने एवं मछली का प्रबंधन करने की अवश्यकता हैं।
- फिर भी प्रवाल भित्तियों की रक्षा के लिये कार्बन-तटस्थ ग्रह हेतु ऊपर से नीचे तक ज़मीनी स्तर पर अधिक आक्रामक कार्रवाई और शिक्षा की आवश्यकता है।
- फिर भी प्रवाल भित्तियों की रक्षा के लिये कार्बन-तटस्थ ग्रह हेतु ऊपर से नीचे तक ज़मीनी स्तर पर अधिक आक्रामक कार्रवाई और शिक्षा की आवश्यकता है।
- शीर्ष शिकारियों से रक्षा करने, संरक्षण के लिये प्रमुख शाकाहारी मछली प्रजातियों की पहचान करने, विनाशकारी मछली पकड़ने, नौका विहार और गोताखोरी को रोकने एवं मछली का प्रबंधन करने की अवश्यकता हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित में से किनमें प्रवाल-भित्तियाँ हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: A
प्रश्न. वैश्विक तापन का प्रवाल जीवन तंत्र पर प्रभाव के उदाहरणों के साथ आकलन कीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2019) |