अंतर्राष्ट्रीय संबंध
आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में समझौता ज्ञापन: भारत-तुर्कमेनिस्तान
प्रिलिम्स के लिये:तुर्कमेनिस्तान और मध्य एशियाई राष्ट्र, TAPI पाइपलाइन, अश्गाबात समझौता। मेन्स के लिये:भारत और इससे संबंधित चुनौतियों के लिये मध्य एशियाई देशों का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और तुर्कमेनिस्तान के बीच आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह समझौता ज्ञापन एक ऐसी प्रणाली स्थापित करने का प्रयास करता है जिससे दोनों ही देश एक-दूसरे के आपदा प्रबंधन तंत्र से लाभान्वित हों।
- यह आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में तैयारियों, प्रतिक्रिया और क्षमता निर्माण के क्षेत्रों को मज़बूत करने में मदद करेगा।
- वर्तमान में भारत के पास स्विट्जरलैंड, रूस, जर्मनी, जापान, ताजिकिस्तान, मंगोलिया, बांग्लादेश, इटली और दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) के साथ आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग के लिये द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौते/समझौता ज्ञापन/आशय की संयुक्त घोषणा/सहयोग ज्ञापन हैं।
- भारत-तुर्कमेनिस्तान संबंध:
- तुर्कमेनिस्तान उत्तर में कज़ाखस्तान, उत्तर व उत्तर-पूर्व में उज्बेकिस्तान, दक्षिण में ईरान तथा दक्षिण-पूर्व में अफगानिस्तान के साथ सीमा साझा करता है।
- भारत की 'कनेक्ट सेंट्रल एशिया' नीति 2012 में इस क्षेत्र के साथ गहरे पारस्परिक संबंधों की परिकल्पना की गई है जो ऊर्जा संबंधी नीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- भारत अश्गाबात समझौते में शामिल है, जिसमें व्यापार और निवेश को महत्त्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ाने हेतु मध्य एशिया को फारस की खाड़ी से जोड़ने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और पारगमन गलियारा स्थापित करने की परिकल्पना की गई है।
- भारत तापी (TAPI) पाइपलाइन (तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत) को तुर्कमेनिस्तान के साथ अपने आर्थिक संबंधों में एक 'प्रमुख स्तंभ' मानता है।
- वर्ष 2015 में ‘फ्रीडम इंस्टीट्यूट ऑफ वर्ल्ड लैंग्वेजेज़’, अश्गाबात में हिंदी पीठ की स्थापना की गई, जहांँ विश्वविद्यालय में छात्रों को हिंदी पढ़ाई जाती है।
- भारत ITEC (भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग) कार्यक्रम के तहत तुर्कमेनिस्तान के नागरिकों को प्रशिक्षण प्रदान करता है।
- तुर्कमेनिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करता है।
- तुर्कमेनिस्तान 40 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की अर्थव्यवस्था है, लेकिन भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार इसकी क्षमता से कम है। भारत तुर्कमेनिस्तान में विशेष रूप से सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) क्षेत्र में अपनी आर्थिक उपस्थिति बढ़ा सकता है। इससे भविष्य के व्यापार संतुलन को बनाए रखने में मदद मिलेगी।
- हाल ही में भारत-मध्य एशिया वार्ता की तीसरी बैठक नई दिल्ली में आयोजित की गई थी।
- यह भारत और मध्य एशियाई देशों जैसे कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के बीच एक मंत्री स्तरीय संवाद है।
स्रोत- पी.आई.बी
जैव विविधता और पर्यावरण
उत्सर्जन मानदंडों की प्राप्ति: कोयला आधारित विद्युत संयंत्र
प्रिलिम्स के लिये:सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण और इसका प्रभाव, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)। मेन्स के लिये:भारत में वायु प्रदूषण के खतरों को कम करने हेतु सरकार द्वारा किये गए उपाय |
चर्चा में क्यों?
दिल्ली स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था- ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट’ (CSE) के विश्लेषण के अनुसार, एक मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों में स्थित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में से 61 प्रतिशत, जिन्हें दिसंबर 2022 तक अपने उत्सर्जन मानकों को पूरा करना है, इस समय-सीमा लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकेंगे।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने वर्ष 2015 में नए उत्सर्जन मानदंड निर्धारित किये थे और इसे पूरा करने हेतु एक समय सीमा तय की थी।
- भारत ने प्रारंभ में ज़हरीले सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करने वाली फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) इकाइयों को स्थापित करने हेतु उत्सर्जन मानकों का पालन करने को थर्मल पावर प्लांट के लिये वर्ष 2017 की समय सीमा निर्धारित की थी।
- बाद में विभिन्न क्षेत्रों के लिये अलग-अलग समय सीमा निर्धारित कर दी गई।
- विद्युत संयंत्रों का वर्गीकरण:
- श्रेणी ‘A’
- इस श्रेणी में वे बिजली संयंत्रो शामिल हैं, जिन्हें दिसंबर 2022 तक लक्ष्य पूरा करना है। इसके तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के 10 किलोमीटर के दायरे में या दस लाख से अधिक आबादी वाले शहर शामिल हैं।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा गठित टास्क फोर्स की वर्गीकरण सूची के अनुसार इस श्रेणी में 79 कोयला आधारित बिजली संयंत्र शामिल हैं।
- इस श्रेणी में वे बिजली संयंत्रो शामिल हैं, जिन्हें दिसंबर 2022 तक लक्ष्य पूरा करना है। इसके तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के 10 किलोमीटर के दायरे में या दस लाख से अधिक आबादी वाले शहर शामिल हैं।
- श्रेणी ‘B’ और ‘C’:
- 68 बिजली संयंत्रों को श्रेणी B (दिसंबर 2023 की अनुपालन समय सीमा) में और 449 बिजली संयंत्रों को श्रेणी C में (दिसंबर 2024 की अनुपालन समय सीमा) रखा गया है।
- बिजली संयंत्र जो गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों या गैर-प्राप्ति शहरों के 10 किमी. के दायरे में स्थित हैं, वे श्रेणी B के अंतर्गत आते हैं, जबकि बाकी (कुल का 75%) श्रेणी C में आते हैं।
- 68 बिजली संयंत्रों को श्रेणी B (दिसंबर 2023 की अनुपालन समय सीमा) में और 449 बिजली संयंत्रों को श्रेणी C में (दिसंबर 2024 की अनुपालन समय सीमा) रखा गया है।
- श्रेणी ‘A’
- CSE का विश्लेषण:
- प्रमुख डिफॉल्टर्स:
- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश।
- ये डिफॉल्टिंग स्टेशन बड़े पैमाने पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा चलाए जाते हैं।
- कम-से-कम 17 भारतीय राज्यों में कोयला आधारित थर्मल पावर स्टेशन हैं। राज्यवार तुलना निम्नलिखित है:
- असम (AS) को छोड़कर, इन 17 में से कोई भी राज्य 100% निर्धारित समय सीमा का पालन नहीं करेगा। इस राज्य में 750 मेगावाट का पावर स्टेशन है जो इसकी कुल कोयला क्षमता का एक नगण्य प्रतिशत है।
- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश।
- प्रमुख डिफॉल्टर्स:
- गलत पर राज्य द्वारा संचालित इकाइयाँ:
- अधिकांश कोयला तापविद्युत क्षमता जिनके मानदंडों को पूरा करने की संभावना है, केंद्रीय क्षेत्र से संबंधित है इसके बाद निजी क्षेत्र का स्थान आता है।
- राज्य क्षेत्र से संबंधित संयंत्रों में से कुछ ने निविदा जारी की है या व्यवहार्यता अध्ययन के विभिन्न चरणों में है या अभी तक कोई कार्य योजना नहीं बनाई है।
- अधिकांश कोयला तापविद्युत क्षमता जिनके मानदंडों को पूरा करने की संभावना है, केंद्रीय क्षेत्र से संबंधित है इसके बाद निजी क्षेत्र का स्थान आता है।
- पेनल्टी मैकेनिज़्म प्रभाव:
- गैर-अनुपालन इकाइयों पर लगाया गया जुर्माना नए मानदंडों को पूरा करने के लिये प्रदूषण नियंत्रण उपकरण (FGD) के विभिन्न घटकों की कानूनी लागत को वहन करने के बजाय भुगतान करने हेतु अधिक व्यवहार्य होगा।
- अप्रैल 2021 की अधिसूचना में समय-सीमा में संशोधन के अलावा संबंधित समय सीमा को पूरा नहीं करने वाले प्लांट् के लिये पेनल्टी मैकेनिज़्म या पर्यावरण मुआवजा (Environmental Compensation) भी पेश किया गया था।
- जो पर्यावरणीय मुआवजा लगाया जाएगा, वह इस अपेक्षित गैर-अनुपालन के लिये निवारक के रूप में कार्य करने में विफल रहेगा क्योंकि यह एक कोयला थर्मल पावर प्लांट द्वारा प्रभावी उत्सर्जन नियंत्रण की लागत की तुलना में बहुत कम है।
- गैर-अनुपालन इकाइयों पर लगाया गया जुर्माना नए मानदंडों को पूरा करने के लिये प्रदूषण नियंत्रण उपकरण (FGD) के विभिन्न घटकों की कानूनी लागत को वहन करने के बजाय भुगतान करने हेतु अधिक व्यवहार्य होगा।
सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण
- स्रोत:
- वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड का सबसे बड़ा स्रोत विद्युत संयंत्रों और अन्य औद्योगिक गतिविधियों में जीवाश्म ईंधन का दहन है।
- सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के छोटे स्रोतों में अयस्कों से धातु निष्कर्षण जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएँ, प्राकृतिक स्रोत जैसे- ज्वालामुखी विस्फोट, इंजन, जहाज़ और अन्य वाहन तथा भारी उपकारणों में उच्च सल्फर ईंधन सामग्री का प्रयोग शामिल है।
- प्रभाव: सल्फर डाइऑक्साइड स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को प्रभावित कर सकती है।
- सल्फर डाइऑक्साइड के अल्पकालिक जोखिम मानव श्वसन प्रणाली को नुकसान पहुंँचा सकते हैं और साँस लेने में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं। विशेषकर बच्चे SO2 के इन प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- SO2 का उत्सर्जन हवा में SO2 की उच्च सांद्रता के कारण होता है, सामान्यत: यह सल्फर के अन्य ऑक्साइड (SOx) का निर्माण करती है। (SOx) वातावरण में अन्य यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया कर छोटे कणों का निर्माण कर सकती है। ये कणकीय पदार्थ (Particulate Matter- PM) प्रदूषण को बढ़ाने में सहायक हैं।
- छोटे प्रदूषक कण फेफड़ों में प्रवेश कर स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
- भारत का मामला:
- भारत द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में ग्रीनपीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (Centre for Research on Energy and Clean Air) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की तुलना में लगभग 6% की गिरावट (चार वर्षों में सबसे अधिक) दर्ज की गई है।
- फिर भी भारत इस दौरान SO2 का सबसे बड़ा उत्सर्जक बना रहा।
- वायु गुणवत्ता उप-सूचकांक को अल्पकालिक अवधि (24 घंटे तक) के लिये व्यापक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक निर्धारित करने हेतु आठ प्रदूषकों (PM10, PM2.5, NO2, SO2, CO, O3, NH3 तथा Pb) के आधार पर विकसित किया गया है।
- भारत द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में ग्रीनपीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (Centre for Research on Energy and Clean Air) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की तुलना में लगभग 6% की गिरावट (चार वर्षों में सबसे अधिक) दर्ज की गई है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
नया पुल: भारत और नेपाल
प्रिलिम्स के लिये:काली नदी, 1950 की शांति और मित्रता की भारत-नेपाल संधि, धारचूला ब्रिज़। मेन्स के लिये:भारत-नेपाल संबंधों का महत्त्व और चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महाकाली नदी पर भारत और नेपाल को जोड़ने वाले एक नए पुल के निर्माण और उत्तराखंड के धारचूला को नेपाल के धारचूला से जोड़ने की योजना को मंजूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- तीन वर्ष में पुल बनकर तैयार हो जाएगा। इससे दोनों देशों के बीच संबंध मज़बूत होंगे।
- भारत और नेपाल मित्रता एवं सहयोग के अनूठे संबंध साझा करते हैं।
- पुल के निर्माण से उत्तराखंड के धारचूला और नेपाल के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को मदद मिलेगी।
- महाकाली नदी:
- इसे उत्तराखंड में शारदा नदी या काली गंगा के नाम से भी जाना जाता है।
- यह उत्तर प्रदेश में घाघरा नदी में मिलती है, जो गंगा की एक सहायक नदी है।
- नदी परियोजनाएंँ: टनकपुर हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट, चमेली हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट, शारदा बैराज।
भारत-नेपाल संबंध
- ऐतिहासिक संबंध:
- नेपाल और भारत दुनिया के दो प्रमुख धर्मों-हिंदू और बौद्ध धर्म के विकास के आसपास एक सांस्कृतिक इतिहास साझा करते हैं।
- बुद्ध का जन्म वर्तमान नेपाल में स्थित लुम्बिनी में हुआ था। बाद में बुद्ध ज्ञान की खोज में वर्तमान भारतीय क्षेत्र बोधगया आए, जहाँ उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। बोधगया से महात्मा बुद्ध और उनके अनुयायियों ने विश्व के कोने-कोने तक बौद्ध धर्म का प्रसार किया।
- भारत व नेपाल दोनों ही देशों में हिंदू व बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग हैं।
- रामायण सर्किट की योजना दोनों देशों के मज़बूत सांस्कृतिक व धार्मिक संबंधों का प्रतीक है।
- दोनों देशों के नागरिकों के बीच आजीविका के साथ-साथ विवाह और पारिवारिक संबंधों की मज़बूत नींव है। इस नींव को ही ‘रोटी-बेटी का रिश्ता’ नाम दिया गया है।
- वर्ष 1950 की ‘भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि’ दोनों देशों के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार है।
- भारत के लिये महत्त्व का दो अलग-अलग तरीकों से अध्ययन किया जा सकता है:( a) भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये उनका रणनीतिक महत्त्व और (b) अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत की भूमिका की धारणा में उनका स्थान।
- नेपाल में उत्पन्न होने वाली नदियाँ पारिस्थितिकी और जलविद्युत क्षमता के संदर्भ में भारत की बारहमासी नदी प्रणालियों को पोषित करती हैं।
- व्यापार और अर्थव्यवस्था:
- भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार होने के साथ-साथ विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत भी है।
- कनेक्टिविटी:
- नेपाल एक लैंडलॉक देश है जो तीन तरफ से भारत और एक तरफ तिब्बत से घिरा हुआ है।
- भारत-नेपाल ने अपने नागरिकों के मध्य संपर्क बढ़ाने और आर्थिक वृद्धि एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न कनेक्टिविटी कार्यक्रम शुरू किये हैं।
- हाल ही में भारत के रक्सौल को काठमांडू से जोड़ने के लिये इलेक्ट्रिक रेल ट्रैक बिछाने हेतु दोनों सरकारों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- भारत व्यापार और पारगमन व्यवस्था के ढाँचे के भीतर कार्गो की आवाजाही के लिये अंतर्देशीय जलमार्ग विकसित करना चाहता है, नेपाल को सागर (हिंद महासागर) के साथ सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) को जोड़ने के लिये समुद्र तक अतिरिक्त पहुंच प्रदान करता है।
- रक्षा सहयोग:
- द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के तहत उपकरण और प्रशिक्षण के माध्यम से नेपाल की सेना का आधुनिकीकरण शामिल है।
- भारतीय सेना की गोरखा रेजीमेंट का गठन आंशिक रूप से नेपाल के पहाड़ी जिलों से भर्ती करके किया जाता है।
- भारत वर्ष 2011 से हर वर्ष नेपाल के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास करता है जिसे सूर्य किरण के नाम से जाना जाता है।
- सांस्कृतिक:
- नेपाल के विभिन्न स्थानीय निकायों के साथ कला और संस्कृति, शिक्षाविदों और मीडिया के क्षेत्र में लोगों से लोगों के संपर्क को बढ़ावा देने की पहल की गई है।
- भारत ने काठमांडू-वाराणसी, लुंबिनी-बोधगया और जनकपुर-अयोध्या को जोड़ने के लिये तीन ‘सिस्टर-सिटी’ समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
- एक ‘सिस्टर-सिटी’ संबंध दो भौगोलिक और राजनीतिक रूप से अलग स्थानों के बीच कानूनी या सामाजिक समझौते का एक रूप है
- मानवीय सहायता:
- नेपाल एक संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र में स्थित है, जहाँ भूकंप, बाढ़ से जीवन और धन दोनों को भारी नुकसान होता है, जिसकी वजह से यह भारत की मानवीय सहायता का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता बना हुआ है।
- बहुपक्षीय साझेदारी:
- भारत और नेपाल कई बहुपक्षीय मंचों जैसे- BBIN (बांग्लादेश, भूटान, भारत व नेपाल), बिम्सटेक (बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल), गुटनिरपेक्ष आंदोलन एवं सार्क (क्षेत्रीय सहयोग के लिये दक्षिण एशियाई संघ) साझा करते हैं, आदि।
- मुद्दे और चुनौतियाँ:
- चीन का हस्तक्षेप:
- एक भूमि से घिरे राष्ट्र के रूप में नेपाल कई वर्षों तक भारतीय आयात पर निर्भर रहा, और भारत ने नेपाल के मामलों में सक्रिय भूमिका निभाई।
- हालाँकि हाल के वर्षों में नेपाल भारत के प्रभाव से दूर हो गया है और चीन ने धीरे-धीरे नेपाल में निवेश, सहायता और ऋण प्रदान करने में वृद्धि की है।
- चीन नेपाल को अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में एक प्रमुख भागीदार मानता है और वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने की अपनी योजनाओं के हिस्से के रूप में नेपाल की बुनियादी अवसंरचना में निवेश करना चाहता है।
- नेपाल और चीन का बढ़ता सहयोग भारत तथा चीन के बीच नेपाल की ‘बफर स्टेट’ की स्थिति को कमज़ोर कर सकता है।
- दूसरी ओर चीन नेपाल में रहने वाले तिब्बतियों के बीच किसी भी चीन विरोधी भावना को रोकना चाहता है।
- सीमा विवाद
- यह मुद्दा नवंबर 2019 में तब उठा जब नेपाल ने एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था, जो कि उत्तराखंड के कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को नेपाल के हिस्से के रूप में प्रस्तुत करता है। नए नक्शे में ‘सुस्ता’ (पश्चिम चंपारण ज़िला, बिहार) को भी नेपाल के क्षेत्र के रूप में दिखाया गया है।
- चीन का हस्तक्षेप:
आगे की राह
- भारत को सीमापार जल विवादों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के तत्त्वावधान में नेपाल के साथ सीमा विवाद को हल करने हेतु कूटनीतिक रूप से वार्ता करनी चाहिये। इस मामले में भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा विवाद समाधान एक मॉडल के रूप में काम कर सकता है।
- भारत को लोगों से लोगों के जुड़ाव, नौकरशाही के जुड़ाव के साथ-साथ राजनीतिक वार्ता के मामले में नेपाल के साथ अधिक सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिये।
- कहीं मतभेद विवाद में न बदल जाएं, अतः ऐसे में दोनों देशों को शांति से सभी मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
प्रसाद परियोजनाएँ
प्रिलिम्स के लिये:PRASHAD योजना, स्वदेश दर्शन योजना, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व (CSR), सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मेन्स के लिये:सतत् पर्यटन, पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये योजनाएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यटन मंत्रालय ने PRASHAD योजना के तहत "गोवर्धन का विकास, मथुरा" परियोजना के विभिन्न घटकों का उद्घाटन किया।
- सरकार ने स्वदेश दर्शन योजना के तहत रामायण और बुद्ध सर्किट जैसे विभिन्न आध्यात्मिक सर्किटों के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य के भीतर पर्यटन के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने के लिये धन आवंटित किया।
प्रमुख बिंदु
- ‘प्रसाद’ (PRASHAD) योजना:
- पर्यटन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014-15 में चिह्नित तीर्थ स्थलों के समग्र विकास के उद्देश्य से 'तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्द्धन पर राष्ट्रीय मिशन' शुरू किया गया था।
- अक्तूबर 2017 में योजना का नाम बदलकर ‘तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक विरासत संवर्द्धन अभियान’ (यानी ‘प्रसाद’) राष्ट्रीय मिशन कर दिया गया।
- आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय की हृदय (HRIDAY) योजना के बंद होने के बाद विरासत स्थलों के विकास को प्रसाद PRASHAD योजना में शामिल किया गया।
- प्रसाद योजना के तहत विकास के लिये कई धार्मिक शहरों/स्थलों की पहचान की गई है जैसे अमरावती और श्रीशैलम (आंध्र प्रदेश), कामाख्या (असम), परशुराम कुंड (लोहित ज़िला, अरुणाचल प्रदेश), पटना और गया (बिहार) आदि।
- कार्यान्वयन एजेंसी: इस योजना के तहत चिह्नित परियोजनाओं को संबंधित राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की सरकार द्वारा चिह्नित एजेंसियों के माध्यम से क्रियान्वित किया जाएगा।
- वित्तपोषण तंत्र: केंद्र सरकार सार्वजनिक वित्तपोषण के लिये शुरू किये गए परियोजना घटकों हेतु 100% वित्तपोषण प्रदान करती है।
- इस योजना के तहत परियोजनाओं की बेहतर स्थिरता के लिये कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के लिये उपलब्ध स्वैच्छिक वित्तपोषण का लाभ उठाने का प्रयास किया जाता है।
- यह योजना इस योजना के तहत परियोजनाओं की बेहतर स्थिरता के लिये कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के लिये उपलब्ध स्वैच्छिक वित्त पोषण का लाभ उठाने का प्रयास किया जाता है।
- प्रसाद योजना के उद्देश्य इस प्रकार हैं:
- इसके गुणात्मक रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव के लिये तीर्थ यात्रा पर्यटन का उपयोग करना।
- तीर्थ स्थलों के विकास में गरीब समर्थक पर्यटन अवधारणा और समुदाय आधारित विकास का पालन करना।
- सार्वजनिक विशेषज्ञता और पूंजी का लाभ उठाना।
- धार्मिक स्थलों में विश्व स्तरीय बुनियादी ढांँचे को विकसित करके पर्यटकों के आकर्षण को स्थायी रूप से बढ़ाना।
- बेहतर जीवन स्तर हेतु आय के स्रोतों में वृद्धि और क्षेत्र के समग्र विकास के संदर्भ में स्थानीय समुदायों में पर्यटन के महत्त्व के बारे में जागरूकता को बढ़ाना।
- पहचान किये गए स्थानों में आजीविका उत्पन्न करने हेतु स्थानीय संस्कृति, कला, व्यंजन, हस्तशिल्प आदि को बढ़ावा देना।
- स्वदेश दर्शन योजना:
- स्वदेश दर्शन, एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसे वर्ष 2014-15 में देश में थीम-आधारित पर्यटक सर्किट के एकीकृत विकास के लिये शुरू किया गया था।
- इस योजना के तहत पंद्रह विषयगत सर्किटों की पहचान की गई है- बौद्ध सर्किट, तटीय सर्किट, डेज़र्ट सर्किट, इको सर्किट, हेरिटेज सर्किट, हिमालयन सर्किट, कृष्णा सर्किट, नॉर्थ ईस्ट सर्किट, रामायण सर्किट, ग्रामीण सर्किट, आध्यात्मिक सर्किट, सूफी सर्किट, तीर्थंकर सर्किट, जनजातीय सर्किट, वन्यजीव सर्किट।
- इस योजना के तहत पर्यटन मंत्रालय सर्किट के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये राज्य सरकारों / केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन को केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) प्रदान करता है।
- इस योजना की परिकल्पना अन्य योजनाओं जैसे- स्वच्छ भारत अभियान, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया आदि के साथ तालमेल बिठाने के लिये की गई है, जिसमें पर्यटन क्षेत्र को रोज़गार सृजन हेतु एक प्रमुख इंजन के रूप में स्थापित करने, आर्थिक विकास के लिये प्रेरणा शक्ति, विभिन्न क्षेत्रों के साथ तालमेल बनाने पर विचार करना है। साथ ही पर्यटन को अपनी क्षमता का एहसास कराने में सक्षम बनाना है।
- स्वदेश दर्शन, एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसे वर्ष 2014-15 में देश में थीम-आधारित पर्यटक सर्किट के एकीकृत विकास के लिये शुरू किया गया था।
पर्यटन से संबंधित अन्य सरकारी योजनाएँ:
- एडॉप्ट ए हेरिटेज
- प्रतिष्ठित पर्यटक स्थलों का विकास
- देखो अपना देश
स्रोत- पी.आई.बी
भारतीय अर्थव्यवस्था
वर्ष 2030 तक एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा भारत
प्रिलिम्स के लिये:सकल घरेलू उत्पाद (GDP), स्टार्टअप, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), 'मेक इन इंडिया', इलेक्ट्रॉनिक्स पर राष्ट्रीय नीति-2019 (NPE 2019) मेन्स के लिये:भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति से संबंधित चिंताएँ और इस संबंध में उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
‘इंफॉर्मेशन हैंडलिंग सर्विसेज़’ (IHS) मार्किट रिपोर्ट के मुताबिक, भारत वर्ष 2030 तक जापान को एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में पीछे छोड़ सकता है।
- भारत वर्तमान में अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम के बाद छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- आईएचएस मार्किट दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाओं को संचालित करने वाले प्रमुख उद्योगों और बाज़ारों के लिये सूचना, विश्लेषण और समाधान प्रस्तुत करने वाली एक अग्रणी वैश्विक कंपनी है।
नोट: किसी देश की समग्र अर्थव्यवस्था का आकार प्रायः उसके सकल घरेलू उत्पाद द्वारा मापा जाता है, जो किसी दिये गए वर्ष में किसी देश के भीतर उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य होता है।
प्रमुख बिंदु
- जीडीपी अनुमान:
- मूल्य के संदर्भ में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2021 में 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसके वर्ष 2030 तक बढ़कर 8.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाने का अनुमान है।
- यह बढ़ोतरी अर्थव्यवस्था के मामले में जापान को पीछे करने हेतु काफी है, जिससे भारत वर्ष 2030 तक एशिया-प्रशांत क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
- पिछले वित्त वर्ष में 7.3% की गिरावट की तुलना में वर्ष 2021-22 में भारत की विकास दर 8.2% रहने का अनुमान है।
- हालाँकि चालू वित्त वर्ष (FY) की गति वर्ष 2022-23 में भी जारी रहेगी और भारत 6.7% की वृद्धि दर हासिल करेगा।
- मूल्य के संदर्भ में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2021 में 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसके वर्ष 2030 तक बढ़कर 8.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाने का अनुमान है।
- विभिन्न क्षेत्रों की भूमिका:
- भारत की विकास दर को बढ़ाने में ई-कॉमर्स क्षेत्र के साथ-साथ विनिर्माण, बुनियादी ढाँचा और सेवा क्षेत्र की बड़ी भूमिका है।
- इतना ही नहीं, डिजिटलीकरण बढ़ने से आने वाले समय में ई-कॉमर्स बाज़ार और बड़ा हो जाएगा।
- एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2030 तक 1.1 अरब भारतीयों के पास इंटरनेट होगा, वर्ष 2020 में यह संख्या 50 करोड़ थी।
- वृद्धि दर:
- कुल मिलाकर भारतीय अर्थव्यवस्था का भविष्य मज़बूत और स्थिर दिखता है, जो इसे अगले दशक में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला देश बनाता है।
- लंबी अवधि में भी बुनियादी ढाँचा क्षेत्र और स्टार्टअप जैसे तकनीकी विकास भारत की तीव्र विकास दर को बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाएंगे।
- दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के नाते भारत उद्योगों की एक विस्तृत शृंखला में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण दीर्घकालिक विकास बाज़ारों में से एक बन जाएगा, जिसमें ऑटो, इलेक्ट्रॉनिक्स, परिसंपत्ति प्रबंधन, स्वास्थ्य देखभाल और सूचना प्रौद्योगिकी एवं रसायन जैसे विनिर्माण उद्योग तथा बैंकिंग, बीमा जैसे सेवा उद्योग शामिल हैं।
- मध्यम वर्ग का समर्थन:
- भारत को सबसे ज्यादा मदद उसके विशाल मध्यम वर्ग से मिलती है, जो उसकी मुख्य उपभोक्ता शक्ति है।
- अगले दशक में भारतीय उपभोक्ता खर्च भी दोगुना हो जाएगा। यह वर्ष 2020 में 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2030 में 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो सकता है।
- भारत को सबसे ज्यादा मदद उसके विशाल मध्यम वर्ग से मिलती है, जो उसकी मुख्य उपभोक्ता शक्ति है।
- एफडीआई अंतर्वाह:
- पिछले पाँच वर्षों में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह में बड़ी वृद्धि 2020 और 2021 में भी मज़बूत गति के साथ जारी है।
- इसे वैश्विक प्रौद्योगिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) जैसे कि Google और Facebook से निवेश के बड़े प्रवाह से बढ़ावा मिल रहा है, जो भारत के बड़े घरेलू उपभोक्ता बाज़ार की ओर आकर्षित हैं।
- भारत की अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति:
- वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद के अनंतिम अनुमानों के अनुसार, मौजूदा कीमतों पर भारत की GDP वित्त वर्ष 2012 की पहली तिमाही में 694.93 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
- भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा यूनिकॉर्न बेस है, जहाँ 21 से अधिक यूनिकॉर्न का सामूहिक मूल्य 73.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल
- 'मेक इन इंडिया' और इलेक्ट्रॉनिक्स 2019 पर राष्ट्रीय नीति (एनपीई 2019)
- विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई)
- प्रमुख दूरसंचार क्षेत्र के सुधार:
- सितंबर 2021 में प्रमुख दूरसंचार क्षेत्र में सुधारों को मंजूरी दी गई है, जिससे रोज़गार, विकास, प्रतिस्पर्द्धा और उपभोक्ता हितों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- समायोजित सकल राजस्व और बैंक गारंटी (BGs) का युक्तिकरण तथा स्पेक्ट्रम साझाकरण को प्रोत्साहित करना प्रमुख सुधारों में से हैं।
- डीप ओशन मिशन:
- भारत सरकार ने अगस्त 2021 में अगले पाँच वर्षों में 4,077 करोड़ (553.82 मिलियन अमेरिकी डाॅलर) के बजट परिव्यय के साथ डीप ओशन मिशन (DOM) को मंज़ूरी दी।
- अक्षय स्रोतों पर ध्यान देना:
- ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये भारत अक्षय स्रोतों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह वर्ष 2030 तक अपनी ऊर्जा का 40% गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करने की योजना बना रहा है, जो वर्तमान में 30% से अधिक है और वर्ष 2022 तक अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 175 गीगाटन (GW) तक बढ़ाना है।
- इसके अनुरूप भारत और यूनाइटेड किंगडम ने संयुक्त रूप से मई 2021 में वर्ष 2030 तक जलवायु परिवर्तन में सहयोग एवं मुकाबला करने हेतु एक 'रोडमैप 2030' लॉन्च किया।
आगे की राह
- एक ओर जहाँ वर्ष 2021 में विनिर्माण और निर्माण जैसे क्षेत्रों में तेजी से सुधार हुआ, वहीं दूसरी ओर, कम-कुशल व्यक्ति, महिलाएंँ, स्वरोज़गार वाले लोग और छोटी फर्में पीछे रह गईं।
- बुनियादी ढांँचा और विनिर्माण दो स्तंभ हैं जिनका उपयोग संरचनात्मक रूप से विकास को आगे बढ़ाने के लिये किया जाना चाहिये।
- हालांँकि बुनियादी ढांँचे के निर्माण या निवेश चक्र के पुनरुद्धार के लिये, सामान्य तौर पर निजी क्षेत्र को भी योगदान देना शुरू करना होगा।
- निजी कॉरपोरेट और घरों में पुनरुद्धार के लिये बुनियादी बातें वित्तीय संस्थानों, विशेष रूप से बैंकों के साथ बेहतर स्थिति, कॉरपोरेट्स और कम ब्याज दर शासन के साथ उभर रही हैं।
- वित्त वर्ष 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करती है कि घरेलू आय कितनी तेजी से बढ़ रही है एवं अनौपचारिक क्षेत्र और छोटी फर्मों में गतिविधि सामान्य रहती है।
- निजी क्षेत्र को लंँबी अवधि के लिये संपत्ति निर्मित करने के साथ भारत में व्यापार को आसान बनाने तथा लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना चाहिये।
- कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी भारत के विकास का एक प्रमुख चालक है। इसलिये भारत को महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय जल पुरस्कार
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय जल पुरस्कार, पानी बचाने की पहल, केंद्रीय भूजल बोर्ड। मेन्स के लिये:जल संरक्षण की आवश्यकता, जल संरक्षण हेतु सरकार की पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय जल पुरस्कार (NWA) 2020 में जल संरक्षण के प्रयासों के लिये उत्तर प्रदेश को प्रथम पुरस्कार दिया गया।
- सर्वश्रेष्ठ राज्य श्रेणी में राजस्थान और तमिलनाडु को क्रमशः दूसरा और तीसरा पुरस्कार मिला।
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय जल पुरस्कार के बारे में:
- जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा पुरस्कारों का आयोजन किया जाता है।
- वर्ष 2018 में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा पहला 'राष्ट्रीय जल पुरस्कार' प्रदान किया गया था।
- यह भारत में सर्वोत्तम जल संसाधन प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने पर वरिष्ठ नीति निर्माताओं के साथ जुड़ने हेतु स्टार्ट-अप के साथ-साथ प्रमुख संगठनों के लिये एक अच्छा अवसर प्रदान करता है।
- वे देश भर में व्यक्तियों और संगठनों द्वारा किये गए अच्छे काम एवं प्रयासों तथा 'जल समृद्ध भारत' के मार्ग हेतु सरकार के दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- उद्देश्य:
- जल संसाधन संरक्षण एवं प्रबंधन के क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने वाले व्यक्तियों/संगठनों को प्रेरित करना।
- पानी के महत्त्व के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना और उन्हें सर्वोत्तम जल उपयोग प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
- अवसर प्रदान करना:
- स्टार्ट-अप, अग्रणी संगठन और लोग जल संरक्षण एवं प्रबंधन गतिविधियों से संबंधित मुद्दों पर मौजूदा साझेदारी को और मज़बूत कर सकते हैं।
- जल संरक्षण और प्रबंधन की आवश्यकता:
- अति प्रयोग के कारण जल संसाधनों की कमी और जलवायु परिवर्तन के कारण जल आपूर्ति में गिरावट भारत को पानी की कमी के चरम बिंदु के करीब ले जा रही है।
- इनके अलावा विशेष रूप से कृषि से संबंधित कई सरकारी नीतियों के परिणामस्वरूप पानी का अत्यधिक दोहन हुआ है। ये कारक भारत को जल-तनावग्रस्त अर्थव्यवस्था बनाते हैं। इस संदर्भ में जल संसाधन संरक्षण और प्रबंधन की आवश्यकता है।
- भारत की वर्तमान पानी की आवश्यकता लगभग 1,100 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रतिवर्ष है, जिसका वर्ष 2050 तक 1,447 बिलियन क्यूबिक मीटर तक होने का अनुमान है।
- भारत में दुनिया की 16% आबादी निवास करती है, लेकिन देश के पास दुनिया के पीने योग्य पानी के संसाधनों का केवल 4% हिस्सा ही मौजूद है। बदलते मौसम के मिजाज़ और बार-बार पड़ने वाले सूखे से भारत जल संकट से जूझ रहा है।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के अनुसार, भारत में कृषि भूमि की सिंचाई के लिये प्रतिवर्ष 230 बिलियन मीटर क्यूबिक भूजल निकाला जाता है, जिससे देश के कई हिस्सों में भूजल का तेजी से क्षरण हो रहा है।
- भारत में कुल अनुमानित भूजल की कमी 122-199 बिलियन मीटर क्यूब की सीमा में है।
संबंधित पहल
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम
- जल क्रांति अभियान
- कैच द रेन: नेशनल वाटर मिशन
- नीति आयोग का समग्र जल प्रबंधन सूचकांक
- जल जीवन मिशन
- अटल भूजल योजना
- जल शक्ति अभियान
आगे की राह
- लोग जल संरक्षण के महत्त्व की उपेक्षा करते हैं क्योंकि ज़्यादातर जगहों पर यह मुफ़्त है या नाममात्र का शुल्क लिया जाता है, इसलिये उनके लिये इसके महत्त्व को समझना और इसके दोहन की स्थिति से अवगत होना महत्त्वपूर्ण है।
- राष्ट्रीय जल पुरस्कार जैसी पहल, अन्य सरकारी पहलों के साथ जागरूकता पैदा करने में मदद करेगी और सर्वोत्तम जल उपयोग प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रेरित करेगी जो भारत को 'जल समृद्ध भारत' बनने में मदद करेगी।
स्रोत- पी.आई.बी
भारतीय राजनीति
समान नागरिक संहिता
प्रिलिम्स के लिये:समान नागरिक संहिता, अनुच्छेद 44, अनुच्छेद 25, अनुच्छेद 14 मेन्स के लिये:पर्सनल लॉ पर समान नागरिक संहिता के प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कानून और न्याय मंत्रालय ने वर्ष 2019 में दायर एक जनहित याचिका के जवाब में कहा कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का कार्यान्वयन, संविधान के तहत एक निर्देशक सिद्धांत (अनुच्छेद 44) है जो सार्वजनिक नीति का मामला है और यह कोई निर्देश नहीं है। यह न्यायालय द्वारा जारी किया जा सकता है।
- केंद्र ने भारतीय विधि आयोग (21वें) से यूसीसी से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जाँच करने और उस पर सिफारिशें प्रदान करने का अनुरोध किया है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय
- समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है।
- संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
- अनुच्छेद-44, संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में से एक है।
- अनुच्छेद-37 में परिभाषित है कि राज्य के नीति निदेशक तत्त्व संबंधी प्रावधानों को किसी भी न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं किया जा सकता है लेकिन इसमें निहित सिद्धांत शासन व्यवस्था में मौलिक प्रकृति के होंगे।
- भारत में समान नागरिक संहिता की स्थिति
- भारतीय कानून अधिकांश नागरिक मामलों में एक समान कोड का पालन करते हैं जैसे कि भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882, भागीदारी अधिनियम 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 आदि।
- हालाँकि राज्यों ने सैकड़ों संशोधन किये हैं, इसलिये कुछ मामलों में इन धर्मनिरपेक्ष नागरिक कानूनों के तहत भी विविधता है।
- हाल ही में कई राज्यों ने समान मोटर वाहन अधिनियम, 2019 द्वारा शासित होने से इनकार कर दिया।
- भूमिका:
- समान नागरिक संहिता (UCC) की अवधारणा का विकास औपनिवेशिक भारत में तब हुआ, जब ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता लाने की आवश्यकता पर बल दिया गया, हालाँकि रिपोर्ट में हिंदू और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस एकरूपता से बाहर रखने की सिफारिश की गई।
- ब्रिटिश शासन के अंत में व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों की संख्या में वृद्धि ने सरकार को वर्ष 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिये बी.एन. राव समिति गठित करने के लिये मजबूर किया।
- इन सिफारिशों के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिये निर्वसीयत उत्तराधिकार से संबंधित कानून को संशोधित और संहिताबद्ध करने हेतु वर्ष 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के रूप में एक विधेयक को अपनाया गया।
- हालाँकि मुस्लिम, इसाई और पारसी लोगों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून थे।
- कानून में समरूपता लाने के लिये विभिन्न न्यायालयों ने अक्सर अपने निर्णयों में कहा है कि सरकार को एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिये।
- शाह बानो मामले (1985) में दिया गया निर्णय सर्वविदित है।
- सरला मुद्गल वाद (1995) भी इस संबंध में काफी चर्चित है, जो कि बहुविवाह के मामलों और इससे संबंधित कानूनों के बीच विवाद से जुड़ा हुआ था।
- प्रायः यह तर्क दिया जाता है ‘ट्रिपल तलाक’ और बहुविवाह जैसी प्रथाएँ एक महिला के सम्मान और उसके गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, केंद्र ने सवाल उठाया है कि क्या धार्मिक प्रथाओं को दी गई संवैधानिक सुरक्षा उन प्रथाओं तक भी विस्तारित होनी चाहिये जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
- व्यक्तिगत कानूनों के लिये समान नागरिक संहिता के निहितार्थ:
- समाज के संवेदनशील वर्ग को संरक्षण
- समान नागरिक संहिता का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जबकि एकरूपता से देश में राष्ट्रवादी भावना को भी बल मिलेगा।
- कानूनों का सरलीकरण
- समान नागरिक संहिता विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानूनों को सरल बनाएगी। परिणामस्वरूप समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों।
- धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का पालन करना
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द सन्निहित है और एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाना चाहिये।
- लैंगिक न्याय
- यदि समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है, तो वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, जिससे उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निपटा जा सकेगा।
- समाज के संवेदनशील वर्ग को संरक्षण
- चुनौतियाँ
- केंद्र सरकार के पारिवारिक कानूनों में मौजूद अपवाद
- स्वतंत्रता के बाद से संसद द्वारा अधिनियमित सभी केंद्रीय पारिवारिक कानूनों में प्रारंभिक खंड में यह घोषणा की गई है कि वे ‘जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू होंगे।’
- इन सभी अधिनियमों में 1968 में एक दूसरा अपवाद जोड़ा गया था, जिसके मुताबिक, ‘अधिनियम में शामिल कोई भी प्रावधान केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी पर लागू होगा।’
- एक तीसरे अपवाद के मुताबिक, इन अधिनियमों में से कोई भी गोवा और दमन एवं दीव में लागू नहीं होगा।
- नगालैंड और मिज़ोरम से संबंधित एक चौथा अपवाद, संविधान के अनुच्छेद 371A और 371G में शामिल किया गया है, जिसके मुताबिक कोई भी संसदीय कानून इन राज्यों के प्रथागत कानूनों और धर्म-आधारित प्रणाली का स्थान नहीं लेगा।
- स्वतंत्रता के बाद से संसद द्वारा अधिनियमित सभी केंद्रीय पारिवारिक कानूनों में प्रारंभिक खंड में यह घोषणा की गई है कि वे ‘जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू होंगे।’
- सांप्रदायिक राजनीति:
- कई विश्लेषकों का मत है कि समान नागरिक संहिता की मांग केवल सांप्रदायिक राजनीति के संदर्भ में की जाती है।
- समाज का एक बड़ा वर्ग सामाजिक सुधार की आड़ में इसे बहुसंख्यकवाद के रूप में देखता है।
- संवैधानिक बाधा:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है।
- केंद्र सरकार के पारिवारिक कानूनों में मौजूद अपवाद
आगे की राह
- परस्पर विश्वास निर्माण के लिये सरकार और समाज को कड़ी मेहनत करनी होगी, किंतु इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि धार्मिक रूढ़िवादियों के बजाय इसे लोकहित के रूप में स्थापित किया जाए।
- एक सर्वव्यापी दृष्टिकोण के बजाय सरकार विवाह, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे अलग-अलग पहलुओं को चरणबद्ध तरीके से समान नागरिक संहिता में शामिल कर सकती है।
- सभी व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध किया जाना काफी महत्त्वपूर्ण है, ताकि उनमें से प्रत्येक में पूर्वाग्रह और रुढ़िवादी पहलुओं को रेखांकित कर मौलिक अधिकारों के आधार पर उनका परिक्षण किया जा सके।