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नए गैस मानकों की आवश्यकता क्यों?

  • 29 Nov 2017
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

द हिंदू समाचार पत्र द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, वायु प्रदूषण के संबंध में सरकार एक एकीकृत परीक्षण पद्धति लागू करने की तैयारी कर रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वायु प्रदूषण से संबद्ध सभी एजेंसियाँ ​​सटीक उपकरणों का उपयोग कर रही हैं या नहीं।

गैस मानकों से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • सी.एस.आई.आर. (Council of Scientific and Industrial Research - CSIR) – एन.पी.एल. (National Physical Laboratory - NPL) 'गैस मानकों' या कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड तथा पार्टिक्यूलेट- सीसा, आर्सेनिक और निकेल के नमूने स्थापित करने की प्रक्रिया में है। 
  • वर्तमान में, राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality standards) के अंतर्गत प्रदूषकों की ऊपरी सीमा को निर्दिष्ट करने संबंधी कार्य किया जाता है। 
  • इसके आधार पर ही वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) द्वारा देश के सभी शहरों की प्रदूषण की स्थिति का आकलन प्रस्तुत किया जाता है।
  • इन मानकों के आधार पर ही यह 'अच्छी' वायु स्थिति से 'गंभीर' वायु स्थिति वाले शहरों के बीच वातावरण की गुणवत्ता का निर्धारण करता है।

डिवाइस कैलिब्रेटेड (calibrated) नहीं होते हैं

  • परंतु समस्या यह है कि इस व्यवस्था के अंदर बहुत सी खामियाँ है, उदाहरण के तौर पर, इस सूचकांक को तैयार करने में जिन माप उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है उनसे सही रूप में जाँच नहीं हो पाती है, जिसके परिणामस्वरूप इन उपकरणों की सहायता से तैयार किये गए आँकड़ों में कुछ न कुछ त्रुटि रह ही जाती है।

आगे की राह

  • इस संदर्भ में गंभीर प्रयास किये जाने पर बल देते हुए सरकार द्वारा अन्य पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण एजेंसियों जैसे - केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board -CPCB) के साथ भी वार्ता आरंभ की गई है, ताकि निजी और सार्वजनिक सभी प्रकार की एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले उपकरण इन मानकों की कसौटी पर पूरी तरह से खरे उतरें।
  • सी.पी.सी.बी द्वारा आवासीय, ग्रामीण या औद्योगिक स्थानों के आधार पर 12 गैसों और प्रदूषकों के अधिकतम अनुमत स्तर के संबंध में दिशा-निर्देश निर्धारित किये गए हैं। 
  • विदित हो कि पीएम -2.5 के संबंध में वर्ष 2009 में मानक प्रस्तुत किये गए थे, हालाँकि सी.पी.सी.बी. द्वारा अब इन मानकों को संशोधित करने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।
  • एन.पी.एल. ने एक कस्टम एयर सैंपलर भी विकसित किया है जो मौजूदा उपकरणों की अपेक्षा अधिक सटीक रूप से पी.एम.2.5 स्तर के प्रदूषकों को मापने का दावा प्रस्तुत करता है।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार

  • हाल ही में प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme - UNEP) की एक रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में वायु प्रदूषण के कारण होने वाले नुकसान में भारत की हिस्सेदारी सबसे अधिक ($220 बिलियन) है।
  • वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों के संदर्भ में भी इस क्षेत्र की संयुक्त भागीदारी $380 बिलियन की है।
  • बाहरी वायु प्रदूषण के कारण होने वाली वैश्विक मृत्यु दर के वर्ष 2060 तक तकरीबन 25 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। 
  • क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर, अधिक मृत्यु दर के कारण चीन की कल्याणकारी लागत लगभग 1 खरब डॉलर तक पहुँच गई है, ओ.ई.सी.डी. (Organisation for Economic Corporation and Development - OECD) सदस्यों के साथ संयुक्त रूप से गणना करने पर यह कुल मिलाकर 730 अरब डॉलर है। 
  • इस रिपोर्ट के अंतर्गत ओ.ई.सी.डी. द्वारा 2016 में प्रदत्त एक अनुमान का हवाला देते हुए यह जानकारी प्रदान की गई है।
  • हालाँकि कुछ विशेष प्रकार के प्रदूषण को "प्रौद्योगिकियों और प्रबंधन रणनीतियों में परिवर्तन” करके उन्नत कर लिया गया है, इसके बावजूद जिस प्रकार से वर्तमान का समाज प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल कर रहा है उससे पर्यावरण पर इसका बहुत बुरा असर पड़ रहा है।
  • रिपोर्ट में इस बात पर भी विशेष बल दिया गया है कि यदि समस्त विश्व में खपत और उत्पादन प्रक्रिया वर्तमान के स्तर पर ही जारी रहती है तो 'टेक-मेक-डिस्पोज़' का रैखिक आर्थिक मॉडल पहले से ही प्रदूषित ग्रह के लिये एक गंभीर बोझ बन जाएगा, जिससे न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य की पीढ़ियाँ भी प्रभावित होंगी।
  • पारा संबंधी मुद्दों हेतु निर्मित मीनामता कन्वेंशन के सदस्यों (Parties for the Minamata Convention) के पहले सम्मेलन के दौरान 'प्रदूषण मुक्त ग्रह की ओर' नामक इस रिपोर्ट को लॉन्च किया गया।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है। इसकी स्थापना 1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी। 
  • इस संगठन का उद्देश्य मानव पर्यावरण को प्रभावित करने वाले सभी मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना तथा पर्यावरण सम्बन्धी जानकारियों का संग्रहण, मूल्यांकन एवं पारस्परिक सहयोग सुनिश्चित करना है। 
  • इसका मुख्यालय नैरोबी (केन्या) में है। 
  • यू.एन.ई.पी. पर्यावरण संबंधी समस्याओं के तकनीकी एवं सामान्य निदान हेतु एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। 
  • यू.एन.ई.पी. अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों के साथ सहयोग करते हुए सैकड़ों परियोजनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य कर चुका है।

वायु गुणवत्ता सूचकांक

  • यह ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के अंतर्गत चलाई जा रही एक वृहद् सरकारी पहल है, जिसे 17 सितंबर, 2014 को ‘पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ के तत्कालीन केंद्रीय मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा प्रारंभ किया गया था। 
  • यह सूचकांक आम आदमी को उनके आस-पास के क्षेत्र की वायु गुणवत्ता की बेहतर समझ उपलब्ध कराता है। 
  • इसे ‘एक नंबर-एक रंग-एक व्याख्या’ के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इसमें छः विभिन्न रंगों के माध्यम से छः AQI श्रेणियों को तैयार किया गया है, जो वायु प्रदूषण के विभिन्न स्तरों को इंगित करता है।

  • इस ‘राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक’ (NAQI) के अंतर्गत 8 वायु प्रदूषकों को शामिल किया गया है, जिनकी सूची निम्नलिखित है- 
    ► PM 2.5 
    ► PM 10 
    ► SO2 (सल्फर डाइऑक्साइड)  
    ► O3 (ओज़ोन) 
    ► CO (कार्बन मोनोऑक्साइड) 
    ► NH3 (अमोनिया) 
    ► NO2 (नाइट्रोजन डाइऑक्साइड) 
    ► Pb (सीसा)

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 में किया गया था। 
  • इसके पश्चात् केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अन्तर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए। 
  • यह क्षेत्र निर्माण के रूप में कार्य करता है तथा पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अन्तर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध करता है।
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