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डेली न्यूज़

  • 07 Dec, 2023
  • 42 min read
शासन व्यवस्था

सहकारिता के क्षेत्र में विश्‍व की सबसे बड़ी अन्‍न भंडारण योजना

प्रिलिम्स के लिये:

सहकारी क्षेत्र, खाद्य सुरक्षा, प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS), कृषि अवसंरचना कोष (AIF), न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), भारतीय खाद्य निगम, प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान, बाज़ार हस्तक्षेप योजना (MIS)

मेन्स के लिये:

कृषि क्षेत्र में विकास के लिये सरकारी योजनाएँ, खाद्य सुरक्षा

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सहकारिता मंत्रालय ने सहकारिता के क्षेत्र में विश्‍व की सबसे बड़ी अन्‍न भंडारण योजना पर प्रकाश डाला।

  • इस पहल का उद्देश्य देश में खाद्यान्न भंडारण क्षमता में निरंतर कमी का समाधान करना है।

सहकारिता के क्षेत्र में अन्‍न भंडारण योजना क्या है?

  • व्यापक बुनियादी ढाँचे का निर्माण:
  • कार्यान्वयन साझीदार और प्रगति:
    • राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation- NCDC) राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD), भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) आदि के सहयोग से विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में प्रायोगिक परियोजनाओं को लागू किया जा रहा है।
      • 13 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 13 PACS में निर्माण कार्य शुरू हो गया है, प्रायोगिक परियोजनाओं में शामिल करने के लिये 1,711 PACS की पहचान की गई है।
  • कार्यान्वयन के निरीक्षण के लिये समितियाँ:
    • सहकारिता मंत्रालय ने एक अंतर-मंत्रालयीय समिति (Inter-Ministerial Committee- IMC) का गठन किया है, जिसके पास योजनाओं के एकीकरण के लिये दिशा-निर्देश जारी करने तथा कार्यप्रणाली को अंगीकृत करने का अधिकार है।
    • इसके अतिरिक्त संबद्ध मंत्रालयों एवं विभागों के सदस्यों के साथ एक राष्ट्रीय स्तरीय समन्वय समिति (National Level Coordination Committee- NLCC) को इस योजना के कार्यान्वयन और प्रगति की निगरानी का कार्यभार सौंपा गया है।
      • इसके अलावा प्रभावी समन्वय तथा कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये राज्य और ज़िला स्तर पर राज्य एवं ज़िला सहकारी विकास समितियों (State and District Cooperative Development Committees- SCDC and DCDC) का गठन किया गया है।
  • किसानों पर प्रभाव:
    • गोदामों की स्थापना का कार्य PACS द्वारा किया जाएगा, जिससे फसल की उपज का भंडारण करने तथा बाद के फसल चक्रों के लिये लघुकालिक वित्तीयन तक पहुँच की किसानों की क्षमता विकसित होगी।
      • किसानों के लिये सही समय पर उपज के विक्रय अथवा पूरी फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर PACS को बेचने का विकल्प उपलब्ध हो सकेगा, जिससे तात्कालिक बिक्री को नियंत्रित किया जा सकेगा।
      • PACS स्तर पर विकेंद्रीकृत भंडारण क्षमता की सहायता से फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने में मदद मिलती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि किसान अपनी उपज की गुणवत्ता के साथ अपनी अधिकतम आय प्राप्त कर सकते हैं।
      • खरीद केंद्रों और उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के रूप में कार्य करने वाले PACS खाद्यान्न की परिवहन लागत में बचत करने में योगदान देते हैं।
    • यह योजना स्थानीय पंचायत या ग्राम स्तर पर विभिन्न कृषि आदानों और सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करती है, जिससे दूर स्थित खरीद केंद्रों पर निर्भरता कम हो जाती है।
    • किसानों को आय के अतिरिक्त स्रोतों का पता लगाने के लिये पारंपरिक कृषि गतिविधियों से परे अपने व्यवसायों में विविधता लाने हेतु सशक्त बनाया गया है।
    • यह योजना भंडारण क्षमता को बढ़ाकर और बर्बादी को कम करके अधिक सुदृढ़ एवं विश्वसनीय खाद्य आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित कर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में योगदान देती है।

प्राथमिक कृषि सहकारी समितियाँ (PACS):

  • PACS राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंकों (SCB) की अध्यक्षता में अल्पकालिक सहकारी ऋण अवसंरचना की ज़मीनी स्तर की शाखाएँ हैं।
  • PACS सीधे ग्रामीण (कृषि) उधारकर्त्ताओं की समस्याओं का समाधान करते हैं, उन्हें ऋण देते हैं, दिये गए ऋणों का पुनर्भुगतान एकत्र करते हैं और वितरण एवं विपणन कार्य भी करते हैं।

खाद्यान्न की कमी को दूर करने के लिये कृषि मंत्रालय द्वारा क्या पहलें की गई हैं?

  • कृषि अवसंरचना कोष (AIF):
    • AIF प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता के माध्यम से फसल कटाई के बाद प्रबंधन बुनियादी ढाँचे एवं सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण की परिकल्पना करता है।
    • इसमें 7 वर्षों के लिये प्रति परियोजना स्थान पर 2 करोड़ रुपए तक के ऋण पर 3% की ब्याज छूट और यदि परियोजना में सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (CGTMSE) योजना के तहत क्रेडिट गारंटी कवर है, तो क्रेडिट गारंटी शुल्क की प्रतिपूर्ति शामिल है।
  • प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA):
    • PM-AASHA/पीएम-आशा का लक्ष्य अधिसूचित तिलहन, दालों और कोपरा (बारहमासी फसल) की उपज के लिये किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान करना है।
    • इसमें मूल्य समर्थन योजना (PSS), मूल्य कमी भुगतान योजना (PDPS) और निजी खरीद तथा स्टॉकिस्ट योजना (PPSS) शामिल है
      • मूल्य समर्थन योजना (PSS):
        • इसे संबंधित राज्य सरकार के अनुरोध पर लागू किया गया।
          • दालों, तिलहनों और कोपरा की खरीद को मंडी कर से छूट दी गई है।
        • जब कीमतें MSP से नीचे गिर जाती हैं तो केंद्रीय नोडल एजेंसियाँ MSP पर पूर्व-पंजीकृत किसानों से सीधे खरीद करती हैं।
      • मूल्य कमी भुगतान योजना (PDPS):
        • इसमें MSP और बिक्री/मॉडल मूल्य के बीच अंतर का सीधा भुगतान शामिल है।
        • अधिसूचित बाज़ार यार्डों में पूर्व-पंजीकृत किसान जो उचित औसत गुणवत्ता (FAQ) मानकों को पूरा करते हुए तिलहन बेचते हैं, उन्हें पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया का लाभ मिलता है।
      • निजी खरीद और स्टॉकिस्ट योजना (PPSS):
        • राज्यों के पास तिलहन खरीद के लिये PPSS लागू करने का विकल्प है।
        • चयनित ज़िलों या APMC में पूर्व-पंजीकृत किसानों से प्रायोगिक आधार पर खरीद की जाती है।
  • बाज़ार हस्तक्षेप योजना (MIS):
    • MIS में उन कृषि तथा बागवानी वस्तुओं की खरीद शामिल है जो जल्दी खराब हो जाती हैं एवं जिनके लिये MSP की घोषणा नहीं की जाती है, ताकि इन वस्तुओं के उत्पादकों को अधिशेष/अधिक फसल की स्थिति में बहुत कम मूल्य पर आकस्मिक बिक्री करने से बचाया जा सके, जब कीमतें आर्थिक स्तर/उत्पादन लागत से नीचे गिर जाती हैं।
  • भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड (BBSSL):
    • बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के तहत BBSSL को एक ही ब्रांड नाम के तहत उन्नत बीजों की खेती, उत्पादन तथा वितरण के लिये एक व्यापक (अम्ब्रेला) संगठन के रूप में स्थापित किया गया है।
    • यह समिति किसानों के लिये उन्नत बीजों की उपलब्धता बढ़ाकर फसलों की उत्पादकता बढ़ाएगी, इससे किसानों की आय बढ़ेगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. कृषि क्षेत्र को अल्पकालिक ऋण परिदान करने के संदर्भ में ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंक (DCCBs) अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की तुलना में अधिक ऋण प्रदान करते हैं।
  2. DCCB का एक सबसे प्रमुख कार्य प्राथमिक कृषि साख समितियों को निधि उपलब्ध कराना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1
(B) केवल 2
(C) 1 और 2 दोनों
(D) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (B)


प्रश्न. भारत में 'शहरी सहकारी बैंकों' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. उनका पर्यवेक्षण और विनियमन राज्य सरकारों द्वारा स्थापित स्थानीय बोर्डों द्वारा किया जाता है।
  2. वे इक्विटी शेयर और वरीयता शेयर जारी कर सकते हैं।
  3. उन्हें 1966 में एक संशोधन के माध्यम से बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के दायरे में लाया गया था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर ऋण संगठन का कोई भी ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।" - अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन पर चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्तीय संस्थाओं को किन बाधाओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है?” (2014)


शासन व्यवस्था

इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट 2023

प्रिलिम्स के लिये:

शहरी नियोजन, शहरी स्थानीय निकाय, नगर निगम बॉण्ड, इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट, शहरी ताप द्वीप 

मेन्स के लिये:

भारत के शहरी क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, शहरी विकास से संबंधित हालिया पहल

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शहरी नियोजन और विकास पर भारत इंफ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट (IIR) 2023 जारी की गई, यह एक व्यापक दस्तावेज़ है जो देश में बुनियादी ढाँचे की योजना, वित्त एवं शासन के विभिन्न पहलुओं को शामिल करता है।

  • IIR 2023 IDFC फाउंडेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (कर्नाटक) लिमिटेड (iDeCK) तथा राष्ट्रीय नगर कार्य संस्थान (National Institute of Urban Affairs- NIUA) का एक सहयोगात्मक प्रयास रहा है।

नोट:

  • IDFC फाउंडेशन एक गैर-लाभकारी संगठन है जो भारत में सामाजिक बुनियादी ढाँचे, अनुसंधान तथा वकालत का समर्थन करता है
    • यह रिपोर्ट तथा शोध प्रकाशित करता है जो बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु नवीन अंतर्दृष्टि एवं समाधान प्रदान करता है।
  • iDeCK कर्नाटक सरकार, IDFC फाउंडेशन तथा HDFC का एक संयुक्त उद्यम है जो सतत् बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर कार्य करता है। यह IDFC फाउंडेशन एवं ICAP ट्रस्ट के माध्यम से अनुसंधान व क्षमता निर्माण गतिविधियों का समर्थन करता है।

इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? 

  • शहरी चुनौतियों पर विषयगत फोकस:
    • IIR उन प्रमुख विषयों का व्यवस्थित रूप से समाधान करता है जो भारत की शहरी चुनौतियों के केंद्र में हैं।
      • इनमें योजना और शासन, स्मार्ट पहल, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) तथा  वित्तपोषण, आवास एवं प्रवासन, सार्वजनिक सेवा वितरण, बुनियादी ढाँचे का एकीकरण और शहरी पुनर्विकास शामिल हैं।
  • योजना तंत्र की समीक्षा:
    • शहरों को "आवास के योग्य (Unlivable)" बनाने और मलिन बस्तियों के उद्भव में योगदान देने के लिये मौजूदा योजना तंत्र, विशेष रूप से भवन निर्माण पर प्रतिबंधों की आलोचना की गई है।
      • शहरी चुनौतियों में एक प्रमुख कारक के रूप में खराब योजना की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।
  • लो फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) और अव्यवस्थित शहरी विस्तार:
    • उच्च-घनत्व विकास और शहरी विस्तार (शहरों एवं कस्बों की अविकसित भूमि पर तेज़ी से विस्तार) पर लो फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) या फ्लोर एरिया अनुपात (FAR) के प्रभाव को रेखांकित करता है।
      • लो फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) का मतलब है कि प्लॉट का एक छोटा क्षेत्र विकसित किया जाएगा। यह एक भूखंड पर अधिकतम स्वीकार्य निर्माण घनत्व निर्धारित करने के लिये शहरी नियोजन में उपयोग किया जाने वाला एक पैरामीटर है।
    • यह कम FSI को मलिन बस्तियों के निर्माण से जोड़ता है, जिसमें नियोजन त्रुटियों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, इससे जनसंख्या घनत्व बढ़ जाता है।
      • इस रिपोर्ट के अनुसार, शहरों को पुनर्विकास नीति को अपनाना चाहिये, जिसमें उच्च फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) और बेहतर सड़क कनेक्टिविटी के बदले निजी मालिकों से भूमि की पुनर्प्राप्ति पर बल दिया गया है।
      • साथ ही यह गतिशील शहरों के निर्माण की वकालत करती है जिसमें शहरों के विकास के साथ-साथ वहन क्षमता में भी वृद्धि की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
    • शहरी स्थानीय निकायों का वित्तीय प्रबंधन:
      • इस रिपोर्ट में शहरी स्थानीय निकायों के वित्तीय प्रबंधन के विश्लेषण पर प्रकाश डालते हुए वित्तीय स्थायित्व की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
      • रिपोर्ट में PPP और नगरपालिका बंधपत्र (बॉण्ड) को शहरी विकास पहलों के वित्तपोषण के लिये महत्त्वपूर्ण उपकरणों के रूप में प्रचारित किया गया है।
        • रिपोर्ट के अनुसार, सड़कों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों और ऊर्जा क्षेत्र में PPP में भारत अग्रणी रहा है, वहीं शहरी क्षेत्र में PPP की कम भागीदारी देखी गई है।

इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट (IIR):

  • IIR 2023 में भारत में शहरी विकास की वर्तमान स्थिति पर शहरी विकास एवं नीति पारिस्थितिकी तंत्र के 25 अध्याय शामिल हैं।
  • वार्षिक रूप से प्रकाशित होने वाली यह रिपोर्ट बुनियादी ढाँचे के विकास से संबंधित समसामयिक विषयों से संबद्ध विधिक, राजकोषीय, विनियामक, तकनीकी, सामाजिक तथा वैचारिक पहलुओं की पहचान एवं विश्लेषण करने में सहायक रही है।
  • यह शहरी नीति तैयार करने में शामिल लोगों के साथ-साथ भारत के बुनियादी ढाँचे व शहरीकरण के विकास में रुचि रखने वालों, जैसे- नीति निर्माताओं, निवेशकों, शिक्षाविदों, फाइनेंसर एवं बहुपक्षीय एजेंसियों के लिये एक अमूल्य संसाधन है।

भारत में वर्तमान शहरी परिदृश्य क्या है?

  • भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और इसके विकास को शहरों से गति मिलती है।
  • भारत में शहरीकरण की गति अपेक्षाकृत धीमी रही है, आधिकारिक तौर पर 2001-2011 तक वर्गीकृत शहरी बस्तियों में रहने वाली आबादी का हिस्सा प्रतिवर्ष केवल 1.15% से अधिक की दर से बढ़ा है।
  • भारत के सात सबसे बड़े महानगरीय क्षेत्र मुंबई, दिल्ली, बंगलूरू, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और अहमदाबाद हैं।

शहरी विकास से जुड़ी पहलें क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारंबारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये। (2016)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम, स्टैंडर्ड पोज़िशनिंग सर्विस (SPS), GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम), परमाणु घड़ियाँ, भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (NavIC), GPS-एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN)

मेन्स के लिये:

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) कुछ रोज़मर्रा की प्रौद्योगिकियों में से एक है जिसने नागरिक, सैन्य, वैज्ञानिक और शहरी क्षेत्रों पर क्रांतिकारी प्रभाव डाला है, इसने किसी स्थान को लेकर हमारी समझ/ज्ञान को फिर से परिभाषित किया है तथा वैश्विक स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया है।

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम क्या है?

  • परिचय:
    • वर्ष 1973 में अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा शुरू किये गए GPS में तीन मुख्य खंड शामिल हैं,
  • अंतरिक्ष: अंतरिक्ष खंड का विवरण देते हुए 6 कक्षाओं में 24 उपग्रह वैश्विक कवरेज सुनिश्चित करते हैं, जिससे रिसीवर को एक साथ कम-से-कम चार उपग्रहों (सटीक स्थिति के लिये एक मूलभूत आवश्यकता) से सिग्नल तक पहुँच बनाने/संपर्क साधने की अनुमति मिलती है।
    • सभी छह कक्षाएँ पृथ्वी से 20,200 किमी. की ऊँचाई पर स्थित हैं और प्रत्येक कक्षा में हर समय चार उपग्रह होते हैं। प्रत्येक उपग्रह एक ही दिन में दो कक्षाएँ पूरी करता है।
    • नियंत्रण: धरातल आधारित स्टेशनों द्वारा प्रबंधित नियंत्रण खंड वर्ष 2020 में प्रकाशित स्टैंडर्ड पोज़िशनिंग सर्विस (SPS) मानकों का पालन करते हुए उपग्रह प्रदर्शन और सिग्नल की सटीकता सुनिश्चित करता है। विश्व भर के प्रमुख स्टेशन इस प्रणाली की विश्वसनीयता का प्रबंधन एवं अनुवीक्षण करते हैं।
      • SPS मानक विश्व भर में कहीं भी एप्लीकेशन डेवलपर्स और उपयोगकर्त्ताओं को जीपीएस सिस्टम से होने वाले लाभों के बारे में अवगत कराता है
    • उपयोगकर्त्ता: उपयोगकर्त्ता खंड के अंतर्गत कृषि से लेकर सैन्य संचालन से जुड़े विविध क्षेत्र शामिल हैं, वर्ष 2021 में विश्व भर में GNNS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) डिवाइस की अनुमानित संख्या 6.5 बिलियन थी, जिसके विषय में उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2031 तक यह संख्या बढ़कर 10 बिलियन तक हो सकती है, ये आँकड़े इसके व्यापक प्रभाव को रेखांकित करते हैं।
  • GPS की कार्यक्षमता:
    • GPS रिसीवर कुछ आवृत्तियों (50 बिट्स/सेकंड पर L1 और L2 आवृत्तियों) पर उपग्रहों द्वारा प्रदान किये गए रेडियो संकेतों को प्राप्त करता है और उनका आकलन करता है, जो अंतरिक्ष के तीन डायमेंशन एवं समय के एक डायमेंशन में सटीक स्थान निर्धारण में मदद करता है।
  • सटीकता और संशोधन:
    • सटीकता में सुधार लाने के लिये त्रुटियों में सुधार किया गया है, जो GPS गणनाओं की सूक्षमता को दर्शाता है।
    • परमाणु घड़ियों के उपयोग से उपग्रह GPS के लिये समय की सटीकता को बनाए रखते हैं। ये घड़ियाँ महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि समय के छोटे से भी अंतर से स्थान संबंधी बड़ी त्रुटियाँ हो सकती हैं।

क्या अन्य देशों में GNSS है?

  • कई देश जीपीएस के साथ-साथ अपने स्वयं के ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) संचालित करते हैं। ऐसी प्रणालियाँ वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया, चीन, यूरोपीय संघ (ईयू), भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, रूस और यू.के. द्वारा संचालित की जाती हैं।
    • इनमें से रूस का GLONASS, ईयू का गैलीलियो और चीन का बाइडू सिस्टम वैश्विक हैं।
  • भारत ने 2006 में अपने स्वयं के भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम पर विचार किया, जिसे बाद में ‘नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (NavIC) नाम दिया गया। इसके अंतरिक्ष क्षेत्र में सात उपग्रह हैं: तीन भूस्थैतिक कक्षाओं में और चार भूतुल्यकाली कक्षाओं में।
    • मई 2023 तक उपग्रहों की न्यूनतम संख्या (चार) भूमि-आधारित नेविगेशन की सुविधा प्रदान कर सकती है। मुख्य नियंत्रण सुविधाएँ कर्नाटक के हासन और मध्य प्रदेश के भोपाल में स्थित हैं।
    • NavIC उपग्रह रूबिडियम परमाणु घड़ियों का उपयोग करते हैं और L5 और S बैंड में डेटा संचारित करते हैं, साथ ही नए उपग्रह भी L1 बैंड में डेटा संचारित करते हैं।
  • भारत जीपीएस-एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN) प्रणाली भी संचालित करता है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा विकसित एवं स्थापित किया गया था।
    • गगन का प्राथमिक उद्देश्य "भारतीय हवाई क्षेत्र में नागरिक उड्डयन अनुप्रयोगों की सुरक्षा" और "जीपीएस के लिये सुधार एवं अखंडता संबंधी संदेश" प्रदान करना है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. निम्नलिखित देशों में से किस एक के पास अपनी उपग्रह मार्गनिर्देशन (नैविगेशन) प्रणाली है? (2023)

(a) ऑस्ट्रेलिया
(b) कनाडा
(c) इज़रायल
(d) जापान

उत्तर: (d)

  • विश्व में परिचालन नेविगेशन प्रणाली:
  • अमेरिका की GPS प्रणाली
  • रूस की GLONASS प्रणाली
  • यूरोपीय संघ की गैलीलियो प्रणाली
  • चीन की  BeiDou प्रणाली
  • भारत की नाविक प्रणाली
  • जापान की QZSS 
  • अतः विकल्प (d) सही है।

प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय-संचालन उपग्रह प्रणाली (इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम/IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. IRNSS के तुल्यकाली (जियोस्टेशनरी) कक्षाओं में तीन उपग्रह हैं और भूतुल्यकाली (जियोसिंक्रोनेस) कक्षाओं में चार उपग्रह हैं।
  2. IRNSS की व्याप्ति संपूर्ण भारत पर और इसकी सीमाओं के लगभग 5500 वर्ग किलोमीटर बाहर तक है।
  3. 2019 के मध्य तक भारत की पूर्ण वैश्विक व्याप्ति के साथ अपनी उपग्रह संचालन प्रणाली होगी।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय प्रादेशिक नौपरिवहन उपग्रह प्रणाली (आई.आर.एन.एस.एस.) की आवश्यकता क्यों है? यह नौपरिवहन में किस प्रकार सहायक है? (2018)


शासन व्यवस्था

भारत में एक साथ चुनाव की मांग

प्रिलिम्स के लिये:

एक साथ चुनाव, लोकसभा, आदर्श आचार संहिता, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, मतदाता सत्यापनकर्त्ता पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीन

मेन्स के लिये:

एक साथ चुनाव से लाभ और चुनौतियाँ, एक साथ चुनाव पर विधि आयोग का रुख

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

चुनाव सुधार की दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए केंद्र सरकार ने सितंबर 2023 में छह सदस्यीय पैनल का गठन करके इसे गति दी, जिसे लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव की व्यवहार्यता की जाँच करने की बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गई।

एक साथ चुनाव क्या है?

  • संदर्भ: 
    • एक साथ चुनाव, पूरे देश में एक ही समय में लोक सभा (संसद का निचला सदन), राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं एवं पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के विचार को संदर्भित करता है।
    • यह अवधारणा शासन के इन विभिन्न स्तरों के चुनावी चक्रों को साथ-साथ करवाने का प्रस्ताव प्रस्तुत करती है, जिसका उद्देश्य आदर्श रूप से हर पाँच साल में एक बार सभी चुनाव एक साथ आयोजित करना है।
  • भारत में एक साथ चुनाव का इतिहास: भारत में शुरुआती चार आम चुनावों में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ हुए।
    • वर्तमान में लोकसभा चुनाव आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में विधानसभा चुनावों के साथ संरेखित हैं।
  • एक साथ/समकालिक चुनाव के लाभ: 
    • संसाधन दक्षता: विभिन्न स्तरों पर चुनाव कराने के लिये महत्त्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। चुनावों को एक साथ कराने से ये खर्च समेकित हो जाएंगे, जिससे सरकार की लागत में काफी बचत होगी।
    • अनुकूलित प्रशासन: एक साथ चुनाव से सुरक्षा बलों और प्रशासनिक कर्मचारियों की तैनाती सुव्यवस्थित होगी, चुनाव-संबंधी कर्त्तव्यों के कारण होने वाले व्यवधान कम होंगे और अधिकारियों को शासन एवं विकास पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति मिलेगी।
    • नीतियों में निरंतरता: एक साथ चुनाव होने से आदर्श आचार संहिता के कारण नीति कार्यान्वयन में रुकावटें कम होंगी, जिससे अधिक निरंतर और सुशासन सुनिश्चित होगा।
    • मतदान प्रतिशत में वृद्धि: चुनावों की आवृत्ति कम करने से मतदाताओं की थकान दूर हो सकती है और मतदाताओं की भागीदारी बढ़ सकती है, जिससे अधिक प्रतिनिधिक परिणाम प्राप्त होंगे तथा निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिये वैधता बढ़ेगी।
    • जवाबदेही में वृद्धि: जब मतदाता शासन के विभिन्न स्तरों के लिये एक साथ मतदान करते हैं, तो राजनेताओं को विभिन्न स्तरों पर उनके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराया जाता है, जिससे अधिक व्यापक जवाबदेही संरचना को बढ़ावा मिलता है।
    • ध्रुवीकरण में कमी: एक साथ चुनाव संभावित रूप से राष्ट्रीय मुद्दों को सामने लाकर क्षेत्रीय, जाति-आधारित या सांप्रदायिक राजनीति के प्रभाव को कम कर सकते हैं, जिससे अधिक समावेशी अभियान और नीति-निर्माण को बढ़ावा मिलेगा।
  • संबद्ध चुनौतियाँ:
    • संवैधानिक संशोधन: चुनावों को सिंक्रनाइज़ करने के लिये विभिन्न संवैधानिक अनुच्छेदों में संशोधन की आवश्यकता होती है।
      • कार्यकाल के प्रावधानों में बदलाव, विधायी निकायों का विघटन और विभिन्न चुनाव चक्रों को संरेखित करना पर्याप्त कानूनी चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
      • उदाहरण के लिये अनुच्छेद 83(2), 85(2), 172(1) और 174(2) जैसे अनुच्छेद लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं की अवधि तथा विघटन को नियंत्रित करते हैं, कुछ परिस्थितियों में ये समय से पहले विघटन की अनुमति देते हैं, जिन्हें एक साथ चुनाव के लिये निरस्त करने की आवश्यकता होगी।

नोट

  • अनुच्छेद 85 (1) और 174 (2) राष्ट्रपति व राज्यपाल को संविधान में उल्लिखित परिस्थितियों के तहत पाँच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व लोकसभा एवं राज्य विधानसभा को भंग करने की अनुमति प्रदान करते हैं।
  • अनुच्छेद 83(2), अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल घोषित होने की स्थिति में लोकसभा के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष के लिये बढ़ाने की अनुमति देता है।
  • वर्तमान में 10वीं अनुसूची (52वाँ संशोधन अधिनियम, 1985) में निहित दल-बदल विरोधी कानून के पारित होने तथा तदोपरांत एस.आर. बोम्मई मामले (1994) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय तथा रामेश्वर प्रसाद मामले (2006) में उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद राज्य विधानसभा को भंग करने एवं अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
    • यदि न्यायालय को राष्ट्रपति शासन का आधार संवैधानिक रूप से विधिमान्य नहीं लगता है, तो वह विधानसभा को प्रवर्तित कर सकता है एवं सरकार को बहाल कर सकता है जैसा कि हाल के वर्षों में नगालैंड, उत्तराखंड एवं अरुणाचल प्रदेश के मामले में हुआ है।
  • संघीय शासन संबंधी चिंताएँ: भारत की संघीय संरचना में विभिन्न राजनीतिक परिदृश्य वाले कई राज्य शामिल हैं।
    • एक साथ चुनाव की दिशा में किसी भी निर्णय लेने के लिये राज्यों के बीच व्यापक सहमति की आवश्यकता होती है, जिसके विभिन्न राजनीतिक एजेंडे हो सकते हैं।
    • इसके अतिरिक्त स्थानीय प्रशासन राज्य का विषय होने के कारण संयुक्त रूप से आम तथा स्थानीय निकाय चुनाव कराने में बाधाएँ आती हैं, जिसके लिये विभिन्न राज्य विधियों (28 राज्यों के पंचायती राज अधिनियमों एवं नगरपालिका अधिनियमों के 56 विधिक प्रावधान) में बदलाव की आवश्यकता होती है।
  • प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचा: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) तथा मतदाता सत्यापनकर्त्ता पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) जैसे तकनीकी बुनियादी ढाँचे को बड़े पैमाने पर अद्यतन करने से खरीद, रखरखाव तथा विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • उप-चुनाव और विधानपरिषद: सभी चुनावों को एक साथ कराने से उप-चुनाव तथा विधानपरिषदों के चुनाव बाहर हो सकते हैं, जिससे प्रतिनिधित्व एवं शासन में संभावित अंतराल पैदा हो सकता है।
  • विविध राजनीतिक परिदृश्य: भारत की बहुदलीय प्रणाली में विविध राजनीतिक विचारधाराएँ एवं क्षेत्रीय प्राथमिकताएँ शामिल हैं।
    • एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी हो सकती है एवं छोटे अथवा क्षेत्रीय दलों का प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।

एक साथ चुनाव पर विधि आयोग का रुख क्या है? 

  • एक साथ चुनावों पर विधि आयोग की अगस्त 2018 में जारी मसौदा रिपोर्ट में भारत में एक साथ चुनाव कराने की चुनौतियों और प्रस्तावित समाधानों की जाँच की गई थी।
  • चुनाव के समन्वय के लिये प्रस्तावित रूपरेखा:
    • चुनावी चक्र को कम करना: पाँच वर्षों में दो बार चुनाव कराने की सिफारिश।
    • एक कैलेंडर वर्ष में सभी चुनाव कराना: यदि एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं है, तो एक कैलेंडर वर्ष में सभी चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
    • रचनात्मक अविश्वास मत: मौजूदा सरकार के विघटित होने से पूर्व वैकल्पिक सरकार में विश्वास सुनिश्चित करने के लिये 'अविश्वास मत' को 'रचनात्मक अविश्वास मत' में बदलने की सिफारिश की गई है।
    • त्रिशंकु सभा प्रस्ताव: यह उन स्थितियों को हल करने के लिये एक प्रक्रिया का प्रस्ताव करता है, जहाँ किसी भी दल को सरकार बनाने के लिये बहुमत प्राप्त नहीं होता है, जिसमें मध्यावधि चुनाव से पहले सबसे बड़ा दल/गठबंधन को सरकार बनाने का प्रयास करने का अवसर शामिल होता है।
    • समयबद्ध अयोग्य सिद्ध किया जाना: इसमें पीठासीन अधिकारी को छह महीने के भीतर अयोग्यता के मुद्दों का त्वरित समाधान सुनिश्चित करने के लिये दल-बदल विरोधी कानूनों में संशोधन का सुझाव दिया गया है।
  • अक्तूबर 2023 के अंत में एक साथ चुनावों की व्यवहार्यता का आकलन करने के लिये गठित पैनल ने वर्ष 2029 तक संसदीय और विधानसभा चुनावों को समन्वित करने पर चर्चा के लिये विधि आयोग के समक्ष अपने सुझाव प्रस्तुत किये हैं।

निष्कर्ष:

भारत में एक साथ चुनाव कराने के लिये यह आवश्यक है कि विविध क्षेत्रीय गतिशीलता की जटिलताओं और सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था के बीच समन्वय बनाने हेतु एक संतुलित, परामर्शात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाए। वृद्धिशील कदम, हितधारक परामर्श तथा अनुकूलनीय ढाँचे एक समकालिक चुनावी प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं जो प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाते हुए संघीय संरचनाओं की मर्यादा को बनाए रखती हो।


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