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एक राष्ट्र एक चुनाव

  • 05 Sep 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

एक राष्ट्र एक चुनाव, लोकसभा, राज्यसभा, भारत का निर्वाचन आयोग, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

मेन्स के लिये:

एक राष्ट्र एक चुनाव, महत्त्व और चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने 'एक राष्ट्र एक चुनाव' (One nation One election- ONOE) योजना की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिये पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया है।

  • तार्किक एवं अन्य चुनौतियों के बावजूद भारत में लोकसभा (संसद) और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का विचार लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है।

एक साथ चुनाव:

  • परिचय:
    • एक साथ चुनाव कराने का विचार, भारतीय चुनावी चक्र को इस तरह से संरचित करने को लेकर है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ एवं निश्चित समय के भीतर हों।
    • हालाँकि वर्ष 1967 तक इस अवधारणा के तहत चुनाव आयोजित किये गए, लेकिन कार्यकाल समाप्त होने से पहले विधानसभाओं और लोकसभाओं के बार-बार भंग होने के कारण यह अभ्यास धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर हो गया।
    • वर्तमान में केवल कुछ राज्यों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम) की विधानसभाओं के चुनाव ही लोकसभा चुनावों के साथ होते हैं।
  • लाभ:
    • अगस्त 2018 में भारत के विधि आयोग द्वारा एक साथ चुनावों पर जारी मसौदा रिपोर्ट के अनुसार, एक राष्ट्र एक चुनाव के अभ्यास से सार्वजनिक धन की बचत की जा सकती है, प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर पड़ने वाले तनाव को कम किया जा सकेगा, सरकारी नीतियों का समय पर कार्यान्वयन होगा तथा चुनाव प्रचार के बजाय विकास गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए विभिन्न प्रशासनिक सुधार किये जा सकेंगे।

एक साथ चुनाव कराने में चुनौतियाँ:

  • व्यवहार्यता:
    • संविधान के अनुच्छेद 83(2) और अनुच्छेद 172 में कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा, यदि इन्हें पहले भंग न किया जाए तथा अनुच्छेद 356 के तहत ऐसी परिस्थितियाँ भी उत्पन्न हो सकती हैं जिसमें विधानसभाएँ पहले भी भंग की जा सकती हैं। इसलिये केंद्र अथवा राज्य सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले सरकार गिरने की स्थिति में ONOE योजना की व्यवहार्यता सबसे अहम प्रश्न है।
    • इस तरह के बड़े बदलाव के लिये संविधान में संशोधन करने से न केवल विभिन्न स्थितियों और प्रावधानों पर व्यापक तौर पर विचार करने की आवश्यकता होगी, बल्कि ऐसे बदलाव भविष्य में किसी प्रकार के संवैधानिक संशोधनों के लिये एक चिंताजनक मिसाल भी साबित हो सकते हैं।
  • संघवाद के अनुरूप न होना:
    • ONOE का विचार 'संघवाद' की अवधारणा से सुमेलित नहीं है क्योंकि यह इस धारणा पर आधारित है कि संपूर्ण राष्ट्र "एक (One)" है जो कि अनुच्छेद 1 द्वारा भारत को "राज्यों के संघ" के रूप में वर्णित विचार का खंडन करता है
  • वर्तमान स्वरूप का अधिक लाभकारी होना:
    • बार-बार होने वाले चुनावों के कारण चुनाव के वर्तमान स्वरूप को लोकतंत्र में अधिक लाभकारी के तौर पर देखा जा सकता है क्योंकि यह मतदाताओं की आवाज़ सुनने की अधिक बार अनुमति देता है।
    • चूँकि राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के अंतर्निहित मुद्दे अलग-अलग होते हैं, इसलिये वर्तमान ढाँचा इन मुद्दों को पृथक रूप से हल करने में मदद करता है, जिससे अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
  • EVM और VVPAT की आवश्यकता:
    • एक साथ चुनाव के लिये लगभग 30 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनों की आवश्यकता होगी।
      • भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission of India- ECI) ने वर्ष 2015 में सरकार को एक व्यवहार्यता रिपोर्ट सौंपी, जिसमें संविधान तथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन का सुझाव दिया गया।
  • लागत संबंधी विचार:
    • ECI ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि एक साथ चुनाव कराने के लिये पर्याप्त बजट की आवश्यकता होगी।
    • प्रत्येक 15 वर्ष की अवधि के बाद मशीनों को बदलने की अतिरिक्त लागत के साथ EVM और VVPAT की खरीद के लिये कुल लगभग 9,284.15 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी।
    • एक साथ चुनाव होने से चुनावों के लिये मशीनों को एकत्र करने हेतु भंडारण लागत में वृद्धि होगी।
  • मतदाता व्यवहार पर प्रभाव:
    • कुछ राजनीतिक दलों का तर्क है कि यह मतदाताओं के व्यवहार को इस तरह से प्रभावित कर सकता है कि मतदाता राज्य चुनावों के लिये भी राष्ट्रीय मुद्दों को केंद्र में रखकर मतदान करेंगे जिससे बड़े राष्ट्रीय दल, राज्य विधानसभा तथा लोकसभा दोनों चुनावों में जीत हासिल कर सकते हैं और इस तरह क्षेत्रीय दल हाशिये पर चले जाएंगे।
  • चुनावी मुद्दे:
    • राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव कभी-कभी अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं, और जब वे एक साथ आयोजित किये जाएंगे तो मतदाता मुद्दों के एक सेट को दूसरे की तुलना में अधिक महत्त्व दे सकते हैं।
  • जवाबदेही में कमी:
    • प्रत्येक 5 वर्ष में एक से अधिक बार मतदाताओं का सामना करने से राजनेताओं की जवाबदेही बढ़ती है और वे सतर्क रहते हैं। अंततः चुनावों के दौरान बहुत सारी नौकरियाँ भी सृजित होती हैं, जिससे ज़मीनी स्तर पर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।

भारत में एक साथ चुनाव की व्यवस्था बहाल करना:

  • लॉ कमीशन वर्किंग पेपर (2018) की सिफारिशों के अनुसार,
    • संविधान, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 तथा लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं की प्रक्रिया के नियमों में संशोधन के माध्यम से एक साथ चुनाव बहाल किये जा सकते हैं। वर्ष 1951 के अधिनियम की धारा 2 में एक परिभाषा जोड़ी जा सकती है।
    • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कामकाज़ के नियमों में संशोधन के माध्यम से अविश्वास प्रस्ताव को रचनात्मक अविश्वास मत से बदला जा सकता है।
    • त्रिशंकु विधानसभा अथवा संसद में गतिरोध को रोकने के लिये दल-बदल विरोधी कानून की शक्ति को कम किया जा सकता है।
    • लचीलापन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से आम चुनावों की घोषणा के लिये छह महीने की वैधानिक समय-सीमा को एक बार बढ़ाया जा सकता है।

वे देश जहाँ एक साथ चुनाव होते हैं:

  • दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव पाँच साल के लिये एक साथ होते हैं और नगरपालिका चुनाव दो साल बाद होते हैं।
  • स्वीडन में राष्ट्रीय विधायिका (Riksdag) और प्रांतीय विधायिका/काउंटी परिषद (Landsting) तथा स्थानीय निकायों/नगरपालिका विधानसभाओं (Kommunfullmaktige) के चुनाव चार साल के लिये एक निश्चित तिथि यानी सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं लेकिन अधिकांश अन्य बड़े लोकतंत्रों में एक साथ चुनाव की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
  • ब्रिटेन में ब्रिटिश संसद और उसके कार्यकाल को स्थिरता एवं पूर्वानुमेयता की भावना प्रदान करने के लिये निश्चित अवधि संसद अधिनियम, 2011 पारित किया गया था। इसमें प्रावधान था कि पहला चुनाव 7 मई, 2015 को और उसके बाद हर पाँचवें वर्ष मई के पहले गुरुवार को होगा।
  • जर्मनी के संघीय गणराज्य के लिये बुनियादी कानून का अनुच्छेद 67 अविश्वास के रचनात्मक वोट का प्रस्ताव करता है (पदाधिकारी को बर्खास्त करते हुए उत्तराधिकारी का चुनाव करना)।

आगे की राह 

  • हर कुछ महीनों में अलग-अलग स्थानों पर चुनाव होते हैं और इससे विकास कार्य बाधित होते हैं। इसलिये हर कुछ महीनों में विकास कार्यों पर आदर्श आचार संहिता के प्रभाव को रोकने के लिये इस विचार पर गहन अध्ययन और विमर्श ज़रूरी है।
  • इस बात पर आम सहमति होनी चाहिये कि देश को एक राष्ट्र, एक चुनाव की ज़रूरत है या नहीं। सभी राजनीतिक दलों को कम-से-कम इस मुद्दे पर विचार-विमर्श में सहयोग करना चाहिये, एक बार विवाद शुरू होने पर जनता की राय को ध्यान में रखा जा सकता है। एक परिपक्व लोकतंत्र होने के नाते भारत इस विचार-विमर्श के नतीजे का अनुसरण कर सकता है।
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