आदर्श आचार-संहिता
संदर्भ
भारत के निर्वाचन आयोग (इसे चुनाव आयोग भी कहा जाता है) ने 10 मार्च को 17वीं लोकसभा के लिये चुनाव कार्यक्रम का एलान किया। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने चुनाव आयुक्तों अशोक लवासा और सुशील चंद्रा के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह बताया कि देशभर में चुनाव सात चरणों में 11 अप्रैल से शुरू होकर 19 मई तक चलेंगे। उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल तीन ऐसे राज्य हैं जिनमें सातों चरणों में वोट पड़ेंगे। वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल 3 जून को समाप्त होना है। इन चुनावों के साथ आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा की विधानसभाओं के लिये भी मतदान होगा, लेकिन जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव अभी नहीं करवाए जा रहे हैं।
चुनावों की घोषणा के साथ ही तत्काल प्रभाव से देशभर में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। इस आचार संहिता में प्रचार, रैली, मतदान केंद्र, सत्तारूढ़ दल और घोषणापत्र संबंधी महत्त्वपूर्ण दिशा-निर्देश होते हैं।
साफ-सुथरे चुनावों के लिये उठाए जाएंगे ये 4 बड़े कदम
- आपराधिक रिकॉर्ड का विज्ञापन: लोकसभा के चुनावों में इस बार जो नया होने जा रहा है, वह यह है कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले प्रत्याशियों को नामाकंन करने के बाद अपने आपराधिक मामलों का विज्ञापन देना होगा। यह विज्ञापन व्यापक प्रसार वाले अखबारों में ही देना होगा यानी छोटे अखबारों में विज्ञापन देकर बचने की संभावना नहीं रहेगी। आपको बता दें कि कि यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सितंबर 2018 के फैसले को ध्यान में रखते हुए जारी किया है।
- सभी मतदान केंद्रों पर VVPAT मशीनें: EVM को लेकर राजनीतिक दलों की आशंकाएँ दूर करने के लिये इस बार प्रत्येक मतदान केंद्र पर VVPAT (Voter Verifiable Paper Audit Trail) मशीन युक्त EVM इस्तेमाल की जाएंगी। VVPAT की मदद से मतदाता को उसके मतदान की पर्ची देखने को मिलती है कि उसका वोट उसी को मिला है जिसके नाम का बटन EVM में दबाया गया था। VVPAT और EVM से मिलान का कार्य पहले की तरह ही होगा और एक विधानसभा सीट के एक मतदान बूथ पर ही यह मिलान करवाया जाएगा। फिलहाल मिलान की संख्या बढ़ाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। EVM और VVPAT की त्रिस्तरीय जाँच होगी। पहले स्तर पर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने इसकी पड़ताल की जाएगी। दूसरे स्तर पर मतदान से पहले सभी मतदान केंद्रों पर इनका परीक्षण होगा और कुल वोटों का VVPAT से मिलान होगा। तीसरे स्तर पर मतदान के बाद प्रत्येक लोकसभा सीट की सभी विधानसभा सीटों में से एक-एक बूथ पर वोटों का VVPAT के जरिये मिलान कराया जाएगा।
- EVM में प्रत्याशियों की फोटो: इस बार सभी EVM और पोस्टल बैलेट पेपर पर सभी प्रत्याशियों की तस्वीरें होंगी, ताकि मतदाता उनकी आसानी से पहचान कर पाएँ। इससे चुनाव चिन्ह को लेकर पैदा होने वाला भ्रम भी दूर होगा। गौरतलब है कि कई बार एक जैसे नाम वाले प्रत्याशी चुनाव मैदान में होते हैं, जिस कारण मतदाताओं को भ्रम होता है। EVM में फोटो को शामिल कराने के लिये सभी प्रत्याशियों को अपना नवीनतम पासपोर्ट साइज फोटो तय मानदंडों के तहत रिटर्निंग अफसर को देना होगा।
- EVM की GPS ट्रैकिंग: मतदान के बाद EVM संबंधी आशंकाओं को दूर करने के लिये ज़िला मुख्यालय से EVM को बूथ तक पहुँचाने और उसे मतगणना केंद्र तक ले जाने के दौरान EVM वाहनों की GPS ट्रैकिंग की जाएगी। साथ ही बूथों के निर्वाचन अधिकारियों की भी ट्रैकिंग की जाएगी, ताकि पता चल सके कि चुनाव के दौरान उनकी गतिविधियाँ कहाँ-कहाँ रहीं।
चुनाव आयोग द्वारा उठाए जा रहे कुछ अन्य कदम
मतदाताओं की फोटोयुक्त सूची: इसके अलावा, चुनाव आयोग ने सभी मतदाताओं की फोटोयुक्त सूची तैयार कराई है। इसका इस्तेमाल 2009 से शुरू हुआ था, लेकिन तब असम, जम्मू-कश्मीर और नगालैंड के मतदाताओं की फोटोयुक्त सूची तैयार नहीं नहीं हो पाई थी। अब सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में फोटोयुक्त मतदाता सूची का काम 99.36% पूरा हो गया है, जो चुनाव होने तक 100% पूरा हो जाएगा। चुनाव के पाँच दिन पहले मतदाताओं तक वोटर स्लिप पहुँच जाएगी।
नया हेल्पलाइन नंबर: मतदाताओं के लिये नया हेल्पलाइन नंबर 1950 होगा, जिस पर कोई भी मतदाता सूची में अपने नाम की जानकारी ले सकता है।
आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर होगी कार्रवाई
इनके अलावा, आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत के लिये एप बनाया गया है। इस पर शिकायत मिलने के 100 मिनट के भीतर संबंधित अधिकारी कार्रवाई करेंगे। यदि आचार संहिता का उल्लंघन पाया जाता है तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
दिलचस्प बात यह है कि आम मतदाता तो यह जानता तक नहीं कि आखिर ‘आदर्श आचार संहिता’ है क्या। ऐसे में बहुत से सवाल उठ खड़े होते हैं। जैसे- आदर्श आचार संहिता क्या होती है? इसे कौन लागू करता है? इसके नियम-कायदे क्या हैं? इसे लागू करने का उद्देश्य क्या है? इनके अलावा, इस मुद्दे से जुड़ी कई और जिज्ञासाएँ भी हैं, जिनके बारे में हर जागरूक मतदाता को जानकारी होनी चाहिये।
क्या है आदर्श आचार संहिता?
मुक्त और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतंत्र की बुनियाद होती है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनावों को एक उत्सव जैसा माना जाता है और सभी सियासी दल तथा मतदाता मिलकर इस उत्सव में हिस्सा लेते हैं। चुनावों की इस आपाधापी में मैदान में उतरे उम्मीदवार अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिये सभी तरह के हथकंडे आज़माते हैं। सभी उम्मीदवार और सभी राजनीतिक दल मतदाताओं के बीच जाते हैं। ऐसे में अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को रखने के लिये सभी को बराबर का मौका देना एक बड़ी चुनौती बन जाता है, लेकिन आदर्श आचार संहिता इस चुनौती को कुछ हद तक कम करती है।
चुनाव की तारीख का एलान होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है और चुनाव परिणाम आने तक जारी रहती है। दरअसल, ये वे दिशा-निर्देश हैं, जिन्हें सभी राजनीतिक पार्टियों को मानना होता है। इनका उद्देश्य चुनाव प्रचार अभियान को निष्पक्ष एवं साफ-सुथरा बनाना और सत्ताधारी दलों को गलत फायदा उठाने से रोकना है।
- सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना भी आदर्श आचार संहिता के उद्देश्यों में शामिल है।
- आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिये आचरण एवं व्यवहार का पैरामीटर माना जाता है।
- दिलचस्प बात यह है कि आदर्श आचार संहिता किसी कानून के तहत नहीं बनी है, बल्कि यह सभी राजनीतिक दलों की सहमति से बनी और विकसित हुई है।
- सबसे पहले 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के तहत बताया गया कि क्या करें और क्या न करें।
- 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में वितरित किया।
- इसके बाद 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से आग्रह किया गया कि वे राजनीतिक दलों से इसका अनुपालन करने को कहें और कमोबेश ऐसा हुआ भी।
- इसके बाद से लगभग सभी चुनावों में आदर्श आचार संहिता का पालन कमोबेश होता रहा है।
- गौरतलब यह भी है कि चुनाव आयोग समय-समय पर आदर्श आचार संहिता को लेकर राजनीतिक दलों से चर्चा करता रहता है, ताकि इसमें सुधार की प्रक्रिया बराबर चलती रहे।
आदर्श आचार संहिता की आवश्यकता क्यों पड़ी?
एक समय ऐसा था जब चुनावों के दौरान दीवारें पोस्टरों से पट जाया करती थीं। लाउडस्पीकर्स का कानफोडू शोर थमने का नाम ही नहीं लेता था। दबंग उम्मीदवार धन-बल के ज़ोर पर चुनाव जीतने के लिये कुछ भी करने को तैयार रहते थे। चुनावी वैतरणी पार करने के लिये साम, दाम, दंड, भेद का सहारा खुलकर लिया जाता था। बूथ कैप्चरिंग करने और बैलट बॉक्स लूट लेने जैसी घटनाएँ भी आम थीं। सैकड़ों की संख्या में लोग चुनावी हिंसा के दौरान हताहत होते थे। तब चुनावों में शराब और रुपए बाँटने का खुला खेल चलता था। ऐसे हालातों में आदर्श आचार संहिता रामबाण तो नहीं, लेकिन आशा की किरण बनकर ज़रूर सामने आई।
- अब कहीं भी चुनाव होने पर आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है और इसका सबसे बड़ा उद्देश्य चुनावों को पारदर्शी तरीके से संपन्न कराना होता है।
इसके अलावा, समय से पहले विधानसभा का विघटन हो जाने पर भी आदर्श आचार संहिता में प्रावधान किये गए हैं। इनके तहत कामचलाऊ राज्य सरकार और केंद्र सरकार राज्य के संबंध में किसी नई योजना या परियोजना का एलान नहीं कर सकती। चुनाव आयोग को यह अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के एस.आर. बोम्मई मामले में दिये गए ऐतिहासिक फैसले से मिला है। 1994 में आए इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि कामचलाऊ सरकार को केवल रोज़ाना का काम करना चाहिये और कोई भी बड़ा नीतिगत निर्णय लेने से बचना चाहिये।
आदर्श आचार संहिता की विशेषताएँ
भारत में होने वाले चुनावों में अपनी बात को वोटर्स तक पहुँचाने के लिये चुनाव सभाओं, जुलूसों, भाषणों, नारेबाज़ी और पोस्टरों आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसी के मद्देनज़र आदर्श आचार संहिता के तहत क्या करें और क्या न करें की एक लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है, लेकिन हम बात उन्हीं मुद्दों पर करेंगे, जो आदर्श आचार संहिता को इतना अहम बना देते हैं।
- वर्तमान में प्रचलित आदर्श आचार संहिता में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के सामान्य आचरण के लिये दिशा-निर्देश दिये गए हैं।
- सबसे पहले तो आदर्श आचार संहिता लागू होते ही राज्य सरकारों और प्रशासन पर कई तरह के अंकुश लग जाते हैं।
- सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के तहत आ जाते हैं।
- आदर्श आचार संहिता में रूलिंग पार्टी के लिये कुछ खास गाइडलाइंस दी गई हैं। इनमें सरकारी मशीनरी और सुविधाओं का उपयोग चुनाव के लिये न करने और मंत्रियों तथा अन्य अधिकारियों द्वारा अनुदानों, नई योजनाओं आदि का एलान करने की मनाही है।
- मंत्रियों तथा सरकारी पदों पर तैनात लोगों को सरकारी दौरे में चुनाव प्रचार करने की इजाज़त भी नहीं होती।
- सरकारी पैसे का इस्तेमाल कर विज्ञापन जारी नहीं किये जा सकते हैं। इनके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान किसी की प्राइवेट लाइफ का ज़िक्र करने और सांप्रदायिक भावनाएँ भड़काने वाली कोई अपील करने पर भी पाबंदी लगाई गई है।
- यदि कोई सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी किसी राजनीतिक दल का पक्ष लेता है तो चुनाव आयोग को उसके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है।
- चुनाव सभाओं में अनुशासन और शिष्टाचार कायम रखने तथा जुलूस निकालने के लिये भी गाइडलाइंस बनाई गई हैं।
- किसी उम्मीदवार या पार्टी को जुलूस निकालने या रैली और बैठक करने के लिये चुनाव आयोग से अनुमति लेनी पड़ती है तथा इसकी जानकारी निकटतम थाने में देनी होती है।
- हैलीपैड, मीटिंग ग्राउंड, सरकारी बंगले, सरकारी गेस्ट हाउस जैसी सार्वजनिक जगहों पर कुछ उम्मीदवारों का कब्ज़ा नहीं होना चाहिये। इन्हें सभी उम्मीदवारों को समान रूप से मुहैया कराना चाहिये।
इन सारी कवायदों का मकसद सत्ता के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाकर सभी उम्मीदवारों को बराबरी का मौका देना है।
आदर्श आचार संहिता को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का नज़रिया
इस मुद्दे पर देश की आला अदालत भी अपनी मुहर लगा चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय इस बाबत 2001 में दिये गए अपने एक फैसले में कह चुका है कि चुनाव आयोग का नोटिफिकेशन जारी होने की तारीख से आदर्श आचार संहिता को लागू माना जाएगा।
- इस फैसले के बाद आदर्श आचार संहिता के लागू होने की तारीख से जुड़ा विवाद हमेशा के लिये समाप्त हो गया।
- अब चुनाव अधिसूचना जारी होने के तुरंत बाद जहाँ चुनाव होने हैं, वहाँ आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है।
- यह सभी उम्मीदवारों, राजनीतिक दलों तथा संबंधित राज्य सरकारों पर तो लागू होती ही है, साथ ही संबंधित राज्य के लिये केंद्र सरकार पर भी लागू होती है।
आदर्श आचार संहिता के लिये अपनाई जा रही एडवांस तकनीकें
‘cVIGIL’ एप: जब डिजिटलीकरण और हाई-टेक होने का दौर चल रहा हो तो भला चुनाव आयोग क्यों पीछे रहता। आदर्श आचार संहिता को और यूज़र-फ्रेंडली बनाने के लिये कुछ समय पहले चुनाव आयोग ने ‘cVIGIL’ एप लॉन्च किया। हाल में हुए तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिज़ोरम और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में इसका इस्तेमाल हुआ।
- cVIGIL के ज़रिये चुनाव वाले राज्यों में कोई भी व्यक्ति आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की रिपोर्ट कर सकता है। इसके लिये उल्लंघन के दृश्य वाली केवल एक फोटो या अधिकतम दो मिनट की अवधि का वीडियो रिकॉर्ड करके अपलोड करना होता है।
- उल्लंघन कहाँ हुआ है, इसकी जानकारी GPS के ज़रिये ऑटोमेटिकली संबंधित अधिकारियों को मिल जाती है।
- शिकायतकर्त्ता की पहचान गोपनीय रखते हुए रिपोर्ट के लिये यूनीक आईडी दी जाती है। यदि शिकायत सही पाई जाती है तो एक निश्चित समय के भीतर कार्रवाई की जाती है।
- यह एप केवल आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के बारे में काम करता है। तस्वीर लेने या वीडियो बनाने के बाद यूज़र्स को रिपोर्ट करने के लिये केवल पाँच मिनट का समय मिलता है और इसमें पहले से ली गई फोटोज़ या वीडियो अपलोड नहीं किये जा सकते।
हाई-टेक होने की दौड़ में cVIGIL एप के अलावा चुनाव आयोग ने और कई एडवांस तकनीकों को भी अपनाया है। इनमें नेशनल कंप्लेंट सर्विस, इंटीग्रेटेड कॉन्टैक्ट सेंटर, सुविधा, सुगम, इलेक्शन मॉनीटरिंग डैशबोर्ड और वन वे इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलट आदि शामिल हैं।
आगे की राह
वैसे देखा जाए तो आदर्श आचार संहिता में सब कुछ चमकीला ही दिखाई देता है, लेकिन यह देखने में आया है कि इसके लागू हो जाने के बाद डेढ़-दो महीने तक सरकारी कामकाज लगभग ठप पड़ जाते हैं।
- बार-बार होने वाले चुनावों के कारण प्रशासन तो प्रभावित होता ही है, भारी मात्रा में पैसे की भी बर्बादी होती है।
- हमारे देश में सालभर कहीं-न-कहीं चुनाव होते ही रहते हैं। इसलिये 1999 में विधि आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में देशभर में एक साथ चुनाव करने की सिफारिश की थी। अभी कुछ समय पहले भी विधि आयोग देशभर में एक साथ चुनाव कराए जाने को लेकर ड्राफ्ट पेश कर चुका है।
- इसके अलावा, भारत के उपराष्ट्रपति भी कह चुके हैं कि सभी राजनीतिक दल आपसी सहमति बनाकर अपने मेंबर्स के लिये एक आदर्श आचार संहिता तैयार करें, जिस पर विधानमंडल और संसद के भीतर एवं बाहर अमल होना चाहिये।
- लेकिन यह भी सच है कि चुनावों के दौरान लागू होने वाली आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने की कोशिश सरकार किसी-न-किसी तरीके से ज़रूर करती है। यदि चुनाव आयोग कड़ी निगाह न रखे तो वह इस कोशिश में कामयाब भी हो जाती है।
- ऐसे में आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन होने पर चुनाव आयोग के पास कार्रवाई करने का अधिकार भी होता है। इसके लिये चुनाव आयोग FIR दर्ज करा सकता है या उम्मीदवारी पर रोक तक लगा सकता है।
चुनाव आयोग आदर्श आचार संहिता तथा अन्य उपायों के ज़रिये चुनावों को निष्पक्ष और साफ-सुथरा बनाने के प्रयास लगातार करता रहता है और इसके लिये उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा भी गया है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि भारत जैसे बड़े देश में चुनावों को केवल आदर्श आचार संहिता के रहमो-करम पर नहीं छोड़ा जा सकता है। दरअसल, आदर्श आचार संहिता चुनाव सुधारों से जुड़ा एक अहम मुद्दा है, जिससे और बहुत से चुनाव सुधारों का रास्ता खुलता है। देखा जाए तो हर चुनाव के साथ हमारी डेमोक्रेसी में और निखार आता जा रहा है, लेकिन लोकतंत्र के इस उत्सव को सफल बनाने में चुनाव आयोग की कोशिशों के साथ देश के नागरिकों की भी यह जवाबदेही है कि इसे सफल बनाएँ।