अंतर्राष्ट्रीय संबंध
वेस्ट बैंक सेटलमेंट्स: इज़रायल
प्रिलिम्स के लिये:सिनाई प्रायद्वीप, गाज़ा पट्टी, वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम, गोलन हाइट्स मेन्स के लिये:अरब-इज़रायल युद्ध (1948), अरब-इज़रायल संघर्ष |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इज़रायल के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक ऐसे क्षेत्र पर कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक के ग्रामीण हिस्से से 1,000 से अधिक फिलिस्तीनी निवासियों को बेदखल करने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया गया है, जिसे इज़रायल ने सैन्य अभ्यास के लिये नामित किया है।
- हाल ही में यरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद में फिलिस्तीनी और इज़रायली पुलिस के बीच फिर से तनाव बढ़ गया है।
संबंधित निर्णय:
- इस निर्णय ने हेब्रोन के पास एक शुष्क क्षेत्र में आठ छोटे गाँवों को ध्वस्त करने का मार्ग प्रशस्त किया है, जिन्हें फिलिस्तीनियों द्वारा मासाफर यट्टा और इज़रायलियों द्वारा दक्षिण हेब्रोन हिल्स के रूप में जाना जाता है।
- मासाफर यट्टा निवासियों और इज़रायली अधिकार समूहों का कहना है कि वर्ष 1967 के छह दिवसीय युद्ध में इज़रायल द्वारा वेस्ट बैंक पर कब्ज़ा करने से पहले से कई फिलिस्तीनी परिवार 3,000 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थायी रूप से निवास कर रहे हैं।
वेस्ट बैंक:
- वेस्ट बैंक पश्चिम एशिया में एक भूमि आबद्ध क्षेत्र है। इसमें पश्चिमी मृत सागर का एक महत्त्वपूर्ण भाग भी शामिल है।
- जॉर्डन द्वारा अरब-इज़रायल युद्ध (1948) के बाद इस पर कब्ज़ा कर लिया गया था, लेकिन इज़रायल ने वर्ष 1967 के छह दिवसीय युद्ध के दौरान इसे वापस छीन लिया और तब से इसका नियंत्रण है।
- वेस्ट बैंक, इज़रायल और जॉर्डन के बीच स्थित है।
- इसके प्रमुख शहरों में से एक रामल्लाह है जो फिलिस्तीन की वास्तविक प्रशासनिक राजधानी भी है।
- वर्तमान में वेस्ट बैंक में 26 लाख फिलिस्तीनियों के साथ लगभग 130 औपचारिक इज़रायली बस्तियांँ हैं।
- मासाफर यट्टा उस क्षेत्र का 60% हिस्सा है जहांँ फिलिस्तीनी प्राधिकरण के संचालन पर प्रतिबंध है।
- फिलिस्तीनी चाहते हैं कि वेस्ट बैंक भविष्य में उनके राज्य का मुख्य हिस्सा बने।
छह दिवसीय युद्ध (1967):
- छह दिवसीय युद्ध जून 1967 में इज़रायल और अरब राज्यों (मिस्र, सीरिया और जॉर्डन) के बीच एक संक्षिप्त, परंतु खूनी संघर्ष था।
- इस युद्ध में इज़रायल ने मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप और गाज़ा पट्टी, जॉर्डन के वेस्ट बैंक एवं पूर्वी यरुशलम तथा सीरिया के गोलान हाइट्स पर कब्ज़ा कर लिया।
- वर्ष 1967 के बाद से छह दिवसीय युद्ध में इज़रायल द्वारा विजित भूमि अरब-इज़रायल संघर्ष को समाप्त करने के प्रयासों के केंद्र में रही है।
- भले ही इज़रायल ने वर्ष 1982 में मिस्र को सिनाई प्रायद्वीप लौटा दिया और 2005 में गाजा से अपना नियंत्रण वापस ले लिया , परंतु गोलन हाइट्स एवं वेस्ट बैंक की स्थिति अरब-इज़रायल शांति वार्ता में एक बड़ी बाधा बनी हुई है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. 'गोलन हाइट्स' के नाम से जाना जाने वाला क्षेत्र निम्नलिखित में से किस क्षेत्र से संबंधित घटनाओं के संदर्भ में कभी-कभी समाचारों में रहता है? (a) मध्य एशिया उत्तर: (B) |
शासन व्यवस्था
पीएम मित्र पार्क
प्रिलिम्स के लिये:पीएम मित्र पार्क। मेन्स के लिये:कपड़ा उद्योग। |
चर्चा में क्यों?
कपड़ा मंत्रालय ने पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल पार्क (पीएम मित्र) योजना पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया है।
पीएम मित्र पार्क योजना:
- परिचय:
- ‘पीएम मित्र’ पार्क को सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मोड में एक विशेष प्रयोजन वाहन (Special Purpose Vehicle- SPV) के ज़रिये विकसित किया जाएगा, जिसका स्वामित्व केंद्र और राज्य सरकार के पास होगा।
- प्रत्येक ‘मित्र’ पार्क में एक इन्क्यूबेशन सेंटर, कॉमन प्रोसेसिंग हाउस और एक कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट तथा टेक्सटाइल संबंधी सुविधाएँ जैसे- डिज़ाइन सेंटर एवं टेस्टिंग सेंटर होंगे।
- यह ‘विशेष प्रयोजन वाहन’/मास्टर डेवलपर न केवल औद्योगिक पार्क का विकास करेगा, बल्कि रियायत अवधि के दौरान इसका रखरखाव भी करेगा।
- वित्तपोषण:
- इस योजना के तहत केंद्र सरकार सामान्य बुनियादी अवसंरचना के विकास हेतु प्रत्येक ग्रीनफील्ड ‘मित्र’ पार्क के लिये 500 करोड़ रुपए और प्रत्येक ब्राउनफील्ड पार्क के लिये 200 करोड़ रुपए की विकास पूंजी सहायता प्रदान करेगी।
- ग्रीनफील्ड का आशय एक पूर्णतः नई परियोजना से है, जिसे शून्य स्तर से शुरू किया जाना है, जबकि ब्राउनफील्ड परियोजना वह है जिस पर काम शुरू किया जा चुका है।
- इस योजना के तहत केंद्र सरकार सामान्य बुनियादी अवसंरचना के विकास हेतु प्रत्येक ग्रीनफील्ड ‘मित्र’ पार्क के लिये 500 करोड़ रुपए और प्रत्येक ब्राउनफील्ड पार्क के लिये 200 करोड़ रुपए की विकास पूंजी सहायता प्रदान करेगी।
- प्रोत्साहन के लिये पात्रता:
- इनमें से प्रत्येक पार्क में वस्त्र निर्माण इकाइयों की शीघ्र स्थापना के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मक प्रोत्साहन सहायता के रूप में अतिरिक्त 300 करोड़ रुपए प्रदान किये जाएंगे।
- कम-से-कम 100 लोगों को रोज़गार देने वाले ‘एंकर प्लांट’ स्थापित करने वाले निवेशक तीन वर्ष तक प्रतिवर्ष 10 करोड़ रुपए तक प्रोत्साहन पाने के लिये पात्र होंगे।
- महत्त्व:
- रसद लागत में कमी:
- यह रसद लागत को कम करेगा और कपड़ा क्षेत्र की मूल्य शृंखला को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनने हेतु मज़बूत करेगा।
- कपड़ा निर्यात को बढ़ावा देने के भारत के लक्ष्य में उच्च रसद लागत को एक प्रमुख बाधा माना जाता है।
- रोज़गार सृजन:
- प्रत्येक पार्क से प्रत्यक्ष रूप से 1 लाख रोज़गार और परोक्ष रूप से 2 लाख अतिरिक्त रोज़गार सृजित होने की उम्मीद है।
- FDI को आकर्षित करना:
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI ) को आकर्षित करने के लिये ये पार्क महत्त्वपूर्ण हैं।
- अप्रैल 2000 से सितंबर 2020 तक भारत के कपड़ा क्षेत्र को 20,468.62 करोड़ रुपए का FDI प्राप्त हुआ, जो इस अवधि के दौरान कुल FDI प्रवाह का मात्र 0.69% है।
- रसद लागत में कमी:
भारत के कपड़ा क्षेत्र की स्थिति:
- परिचय:
- भारत का कपड़ा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है और पारंपरिक कौशल, विरासत तथा संस्कृति का भंडार एवं वाहक है।
- यह भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2.3%, औद्योगिक उत्पादन का 7%, भारत की निर्यात आय में 12% और कुल रोज़गार में 21% से अधिक का योगदान देता है।
- भारत 6% वैश्विक हिस्सेदारी के साथ तकनीकी वस्त्रों (Technical Textile) का छठा (विश्व में कपास और जूट का सबसे बड़ा उत्पादक) बड़ा उत्पादक देश है।
- तकनीकी वस्त्र कार्यात्मक कपड़े होते हैं जो ऑटोमोबाइल, सिविल इंजीनियरिंग और निर्माण, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, औद्योगिक सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा आदि सहित विभिन्न उद्योगों में अनुप्रयोग होते हैं।
- भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा रेशम उत्पादक देश भी है जिसकी विश्व में हाथ से बुने हुए कपड़े के मामले में 95% हिस्सेदारी है।
- प्रमुख पहलें:
- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना
- राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन
- संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (ATUFS)
- एकीकृत वस्त्र पार्क योजना (SITP)
- समर्थ योजना
- पूर्वोत्तर क्षेत्र वस्त्र संवर्द्धन योजना (NERTPS)
- रेशम समग्र योजना:
- जूट आईकेयर
स्रोत: पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
वीनस मिशन 2024
प्रिलिम्स के लिये:रोबोटिक मिशन टू वीनस (दाविंची प्लस और वेरिटास), शुक्र पर भेजे गए पिछले मिशन, शुक्र की महत्त्वपूर्ण विशेषताएंँ मेन्स के लिये:इसरो स्पेस मिशन टू वीनस, स्पेस टेक्नोलॉजी |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नए अध्यक्ष ने घोषणा की है कि दिसंबर 2024 तक वीनस मिशन को लॉन्च कर दिया जाएगा।
- इस मिशन का उद्देश्य शुक्र के वातावरण में मौजूद सल्फ्यूरिक एसिड के बादल, जिनकी प्रकृति विषाक्त और संक्षारक है, का अध्ययन करना है।
- इससे पहले नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) ने शुक्र के लिये दो नए रोबोटिक मिशन (DaVinci Plus और Veritas) की घोषणा की थी।
मिशन का प्रमुख उद्देश्य:
- सतही प्रक्रिया और उथली उप-सतह स्तर विज्ञान (Stratigraphy) की जांँच करना।
- शुक्र की उप-सतह का अब तक कोई पूर्व अवलोकन नहीं किया गया है।
- स्ट्रैटिग्राफी भूविज्ञान की एक शाखा है जिसमें चट्टानों की परतों और परतों के निर्माण का अध्ययन किया जाता है।
- वायुमंडल की संरचना, संघटक और गतिकी का अध्ययन करना।
- वीनसियन आयनमंडल के साथ सौर पवन की अंतःक्रिया की जांँच करना।
मिशन का महत्त्व:
- मिशन यह जानने में मदद करेगा कि पृथ्वी जैसे ग्रह कैसे घूमते हैं और पृथ्वी के आकार के एक्सोप्लैनेट (हमारे सूर्य के अलावा किसी अन्य तारे की परिक्रमा करने वाले ग्रह) पर क्या स्थितियांँ मौजूद हैं।
- यह पृथ्वी के जलवायु की मॉडलिंग में मदद करेगा तथा एक चेतावनी देने वाले के रूप में कार्य करेगा कि किसी ग्रह की जलवायु कितनी नाटकीय रूप से बदल सकती है।
मिशन के लिये चुनौतियाँ:
- घने वातावरण और सतह की गतिविधि को देखते हुए शुक्र मंगल की तुलना में अलग-अलग चुनौतियांँ पेश करता है, जो इसे एक जटिल ग्रह बनाता है।
- गहनता से समझने के लिये उपकरणों को वातावरण के माध्यम से गहराई तक ले जाने की ज़रूरत होती है।
- अंतरिक्ष एजेंसी अंतरिक्षयान पर जिन उपकरणों का उपयोग करने की योजना बना रही है, उनमें एक उच्च रिज़ॉल्यूशन सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) है जो ग्रह के चारों ओर बादलों (जो दृश्यता को कम करता है) के बावजूद शुक्र की सतह की जांँच करेगा, ।
- यह उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियों के निर्माण के लिये एक तकनीक को संदर्भित करता है। सटीकता के कारण रडार बादलों और अंधेरे में प्रवेश कर सकता है, जिसका अर्थ है कि यह किसी भी मौसम में दिन-रात डेटा एकत्र कर सकता है।
पूर्ववर्ती मिशन:
- अमेरिका:
- मेरिनर शृंखला 1962-1974, वर्ष 1978 में पायनियर वीनस 1 और पायनियर वीनस 2, 1989 में मैगलन।
- रूस:
- अंतरिक्षयान की वेनेरा शृंखला 1967-1983, वर्ष 1985 में वेगास 1 और 2.
- जापान:
- वर्ष 2015 में अकात्सुकी।
- यूरोप:
- वर्ष 2005 में वीनस एक्सप्रेस।
शुक्र ग्रह :
- इसका नाम प्रेम और सुंदरता की रोमन देवी के नाम पर रखा गया है। सूर्य से दूरी के हिसाब से यह दूसरा तथा द्रव्यमान और आकार में छठा बड़ा ग्रह है।
- यह चंद्रमा के बाद रात के समय आकाश में दूसरी सबसे चमकीली प्राकृतिक वस्तु है, शायद यही कारण है कि यह पहला ग्रह था जो दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में आकाश में अपनी गति के कारण जाना गया।
- हमारे सौरमंडल के अन्य ग्रहों के विपरीत शुक्र और यूरेनस अपनी धुरी पर दक्षिणावर्त घूमते हैं।
- कार्बन डाइऑक्साइड की उच्च सांद्रता के कारण यह सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह है जो एक तीव्र ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करता है।
- शुक्र ग्रह पर एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष से ज़्यादा लंबा होता है। सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने की तुलना में शुक्र को अपनी धुरी पर घूर्णन में अधिक समय लगता है।
- अर्थात् 243 पृथ्वी दिन में एक घूर्णन के साथ सौरमंडल में किसी भी ग्रह का यह सबसे लंबा घूर्णन।
- सूर्य की एक कक्षा को पूरा करने के लिये केवल 224.7 पृथ्वी दिन।
- शुक्र को उसके द्रव्यमान, आकार और घनत्व तथा सौरमंडल में उसके समान सापेक्ष स्थानों में समानता के कारण पृथ्वी की जुडवाँ बहन कहा गया है।
- शुक्र से ज़्यादा कोई ग्रह पृथ्वी के करीब नहीं पहूँचता है; अपने निकटतम स्तर पर यह चंद्रमा के अलावा पृथ्वी का सबसे निकटतम बड़ा पिंड है।
- शुक्र का वायुमंडलीय दाब पृथ्वी से 90 गुना अधिक है।
विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. क्षुदग्रहों तथा धूमकेतु के बीच क्या अंतर होता है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (B) व्याख्या:
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स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय ‘कॉयर’ उद्योग
प्रिलिम्स के लिये:कॉयर, एमएसएमई, इको मार्क, कॉयर से संबंधित पहल। मेन्स के लिये:संसाधनों का संग्रहण, कॉयर उद्योग की स्थिति और उसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने तमिलनाडु के कोयंबटूर में 'एंटरप्राइज़ इंडिया नेशनल कॉयर कॉन्क्लेव 2022' का उद्घाटन किया।
- यह आयोजन कॉयर और कॉयर उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा देने तथा इनके अनुप्रयोग के नए क्षेत्रों की पहचान करने के लिये राज्य एवं केंद्र सरकारों के बीच एक समन्वित प्रयास के रूप में आयोजित किया जा रहा है।
- प्राकृतिक रूप से निम्नीकरण योग्य, पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद के रूप में कॉयर के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये 6 मई, 2022 को 'रन फॉर कॉयर' का भी आयोजन किया जा रहा है। इस दौड़ में गणमान्य व्यक्तियों, कॉलेज के छात्रों और आम जनता सहित एक हज़ार से अधिक लोगों के भाग लेने की उम्मीद है।
कॉयर:
- यह प्रकृति में नारियल के एक उपोत्पाद के रूप में पाया जाने वाला ‘नारियल पाम’ द्वारा प्रचुर मात्रा में उत्पादित पदार्थ है।
- यह प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला रेशेदार पदार्थ है जो नारियल के खोल के बाहर पाया जाता है जिसे प्राकृतिक रूप से उपयोग के लिये संसाधित किया जाता है।
- कॉयर का उपयोग सदियों से नाविकों द्वारा रस्सी के रूप में सामान को बाँधने तथा जहाज़ों के केबल्स (Ship Cables) के लिये किया जाता रहा है।
- आज कॉयर का उपयोग उत्पादों के वर्गीकरण करने हेतु किया जाता है, जिसमें कालीनों और डोरमैट से लेकर प्लांट पॉट्स व हैंगिंग बास्केट लाइनर्स, खेती में उपयोग होने वाली बागवानी सामग्री और मृदा क्षरण को नियंत्रण करने के लिये उपयोग की जाने जाली शीट्स शामिल हैं। कुछ पोटिंग मिक्स उत्पादों में भी कॉयर का उपयोग किया जाता है।
भारत में कॉयर उद्योग की स्थिति:
- भारत सरकार द्वारा देश में कॉयर उद्योग के समग्र सतत् विकास हेतु कॉयर उद्योग अधिनियम, 1953 के तहत कॉयर बोर्ड की स्थापना की गई थी।
- बोर्ड के कार्य वैज्ञानिक, तकनीकी और आर्थिक अनुसंधान, आधुनिकीकरण, गुणवत्ता सुधार, मानव संसाधन विकास, बाज़ार संवर्द्धन तथा इस उद्योग में लगे सभी लोगों का कल्याण करना, उन्हें सहायता प्रदान करना व प्रोत्साहित करना है।
- कॉयर उद्योग अधिनियम के तहत अधिदेशों को कॉयर बोर्ड द्वारा विभिन्न योजनाओं/कार्यक्रमों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है, जिसमें अनुसंधान और विकास गतिविधियाँ, प्रशिक्षण कार्यक्रम, कॉयर इकाइयों की स्थापना के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना, घरेलू और निर्यात बाज़ार का विकास करना, कर्मचारियों के लिये कल्याणकारी उपाय आदि शामिल हैं।
महत्व:
- रोज़गार:
- नारियल उत्पादक राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में कॉयर उद्योग 7 लाख से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करता है।
- दिलचस्प बात यह है कि इनमें से 80% कारीगर महिलाएँ हैं, लेकिन इसका उत्पादन अब तक देश के दक्षिणी नारियल उत्पादक राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों तक ही सीमित है।
- नारियल उत्पादक राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में कॉयर उद्योग 7 लाख से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करता है।
- निर्यात:
- वर्ष 2020-21 के दौरान भारत से कॉयर और कॉयर उत्पादों के निर्यात ने पिछले वर्ष की तुलना में 1021 करोड़ रुपए से अधिक की वृद्धि के साथ 3778.98 करोड़ रुपए का अब तक का उच्च रिकॉर्ड दर्ज किया है।
- घरेलू खपत:
- दुनिया भर में सालाना उत्पादित कॉयर फाइबर की 50% से अधिक खपत मुख्य रूप से भारत में ही होती है।
- पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के प्रति बढ़ती जागरुकता ने घरेलू और विदेशी बाज़ारों में कॉयर एवं कॉयर उत्पादों की मांग में वृद्धि की है।
- पर्यावरण के अनुकूल:
- कॉयर उत्पाद प्रकृति में पर्यावरण के अनुकूल हैं और भारत के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, द्वारा इसे "इको मार्क" से प्रमाणित किया गया है।
- कॉयर उत्पाद पर्यावरण को बचाते हैं और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में मदद करते हैं।
- मृदा के कटाव को रोकने के लिये कॉयर जियो टेक्सटाइल्स के उपयोग, कॉयर पिथ (Coir Pith) को एक मूल्यवान जैव-उर्वरक और मृदा कंडीशनर में बदलने तथा कॉयर गार्डन उत्पाद जैसे कॉयर के नए अंतिम उपयोग अनुप्रयोगों ने भारत व विदेशों में लोकप्रियता हासिल की है।
कॉयर से संबंधित कुछ भारतीय पहलें:
- कॉयर जियो टेक्सटाइल:
- कॉयर जियो टेक्सटाइल प्राकृतिक रूप से सड़न, गलन और नमी के लिये प्रतिरोधी हैं और किसी भी माइक्रोबियल हमले से मुक्त होते हैं, इसलिये इसे किसी रासायनिक उपचार की आवश्यकता नहीं होती है।
- कॉयर उद्यमी योजना:
- कॉयर उद्यमी योजना 10 लाख रुपए तक की परियोजना लागत और कार्यशील पूंजी के एक चक्र के साथ कॉयर इकाइयों की स्थापना के लिये एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना है, जो परियोजना लागत के 25% से अधिक नहीं होगी। यह योजना कॉयर बोर्ड द्वारा क्रियान्वित की जा रही है।
- कॉयर विकास योजना:
- यह योजना घरेलू और निर्यात बाज़ारों के विकास, कौशल विकास एवं प्रशिक्षण, महिलाओं के सशक्तीकरण, रोज़गार/उद्यमिता, निर्माण और विकास, कच्चे माल के उपयोग में वृद्धि, व्यापार से संबंधित सेवाओं, कॉयर श्रमिकों के लिये कल्याणकारी गतिविधियों आदि की सुविधा प्रदान करती है।
- यह कार्य निम्नलिखित 6 योजनाओं के माध्यम से किया जाता है:
- कौशल उन्नयन और महिला कॉयर योजना
- निर्यात बाज़ार संवर्द्धन (EMP)
- उत्पादन अवसंरचना का विकास (DPI)
- घरेलू बाज़ार संवर्द्धन (DMP)
- व्यापार और उद्योग से संबंधित कार्यात्मक सहायता सेवाएंँ (TRIFSS)
- कल्याणकारी उपाय (समूह व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना)
आगे की राह
- कॉयर में अपार संभावनाएंँ हैं, यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में MSME के हिस्से और निर्यात को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- कॉयर 'अपशिष्ट से धन' का एक अच्छा उदाहरण है, यह पर्यावरण के अनुकूल है क्योंकि यह जल और मृदा के संरक्षण हेतु स्थायी समाधान प्रदान करता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय अर्थव्यवस्था
सागरमाला परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:सागरमाला, सागरतट समृद्धि योजना। मेन्स के लिये:बुनियादी ढांँचा, वृद्धि और विकास, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्री (MoPSW) ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में राष्ट्रीय सागरमाला शीर्ष समिति (NSAC) की बैठक की अध्यक्षता की।
- NSAC बंदरगाह आधारित विकास-सागरमाला परियोजनाओं के लिये नीति-निर्देश और मार्गदर्शन प्रदान करने वाला शीर्ष निकाय है तथा इसके कार्यान्वयन की समीक्षा करता है। इसका गठन मई 2015 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा किया गया था।
- बैठक में एक नई पहल 'सागरतट समृद्धि योजना' के माध्यम से तटीय समुदायों के समग्र विकास पर चर्चा की गई।
सागरतट समृद्धि योजना:
- प्रधानमंत्री ने मार्च 2021 में "मेरीटाइम इंडिया विज़न-2030" के विमोचन के दौरान सागरमाला - सागरतट समृद्धि योजना का शुभारंभ किया।
- पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने राष्ट्र के तटीय क्षेत्रों में चुनौतियों का समाधान करने के लिये इस विस्तृत परियोजना को तैयार किया है।
- सागरतट समृद्धि योजना ने कुल 1,049 परियोजनाओं की पहचान की है, जिनकी अनुमानित लागत 3,62,229 करोड़ रुपए है।
- जिन चार प्रमुख क्षेत्रों में यह पहल आती है उनमें शामिल हैं:
- तटीय अवसंरचना विकास
- तटीय पर्यटन
- तटीय औद्योगिक विकास
- तटीय सामुदायिक विकास
परियोजना के बारे में:
- परिचय:
- सागरमाला परियोजना को वर्ष 2015 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था जिसका उद्देश्य आधुनिकीकरण, मशीनीकरण और कंप्यूटरीकरण के माध्यम से 7,516 किलोमीटर लंबी समुद्री तट रेखा के आस-पास बंदरगाहों के इर्द-गिर्द प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विकास को बढ़ावा देना है।
- सागरमाला परियोजना का दृष्टिकोण आयात-निर्यात (EXIM) और घरेलू व्यापार हेतु न्यूनतम बुनियादी ढांँचा निवेश के साथ रसद लागत को कम करना है।
- सागरमाला परियोजना वर्ष 2025 तक भारत के व्यापार निर्यात को 110 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक बढ़ा सकती है, साथ ही लगभग 10 मिलियन नई नौकरियांँ (प्रत्यक्ष रोज़गार में चार मिलियन) पैदा कर सकती है।
- मंत्रालय ने संभावित एयरलाइन ऑपरेटरों के साथ सागरमाला सीप्लेन सर्विसेज़ की महत्त्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है।
- सागरमाला कार्यक्रम के घटक:
- बंदरगाह आधुनिकीकरण और नए बंदरगाह विकास: मौजूदा बंदरगाहों का अवरोध और क्षमता विस्तार तथा नए ग्रीनफील्ड बंदरगाहों का विकास।
- पोर्ट कनेक्टिविटी बढ़ाना: घरेलू जलमार्गों (अंतर्देशीय जल परिवहन और तटीय शिपिंग) सहित मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स समाधानों के माध्यम से बंदरगाहों की आंतरिक भूमि से कनेक्टिविटी को बढ़ाना, कार्गो आवाजाही की लागत और समय का अनुकूलन करना।
- बंदरगाह संबद्ध औद्योगीकरण: EXIM और घरेलू कार्गो की लॉजिस्टिक लागत तथा समय को कम करने के लिये बंदरगाह-समीपस्थ औद्योगिक क्लस्टर और तटीय आर्थिक क्षेत्र विकसित करना।
- तटीय सामुदायिक विकास: कौशल विकास और आजीविका निर्माण गतिविधियों, मत्स्य विकास, तटीय पर्यटन आदि के माध्यम से तटीय समुदायों के सतत् विकास को बढ़ावा देना।
- तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन: सतत् और पर्यावरण के अनुकूल तटीय तथा अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से कार्गो को स्थानांतरित करने के लिये प्रोत्साहन।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
असम मवेशी संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2021
प्रिलिम्स के लिये:राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (अनुच्छेद 48) मेन्स के लिये:गाय संरक्षण कानून, असम मवेशी संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2021 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक गाय संरक्षण कानून (असम मवेशी संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2021) जिसे असम ने एक साल पहले लागू किया था, ने मेघालय में एक तीव्र बीफ संकट पैदा कर दिया है।
- यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में मवेशियों के वध को नियंत्रित करने वाला ऐसा कोई कानून नहीं है।
अधिनियम से जुड़ी प्रमुख विशेषताएँ और चुनौतियाँ:
प्रमुख विशेषताएँ | प्रमुख चुनौतियाँ |
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गौ वध पर प्रतिबंध क्यों?
- संविधान के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (अनुच्छेद 48) में प्रावधान है कि राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक तर्ज पर संगठित करने का प्रयास करेगा, नस्लों में सुधार के लिये कदम उठाएगा और गायों, बछड़ों तथा अन्य दुधारू पशुओं के वध पर रोक लगाएगा व पशु मसौदा तैयार करेगा।
- इसी क्रम में 20 से अधिक राज्यों ने मवेशियों (गायों, बैल तथा साँड़) तथा भैंसों के वध को विभिन्न स्तर तक सीमित करने वाले कानून पारित किये हैं।
न्यायपालिका की राय:
- समय के साथ इन राज्य कानूनों के तहत निषेध की सीमा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों द्वारा निर्देशित की गई है।
- इससे पहले मध्य प्रदेश (1949), बिहार (1955) और उत्तर प्रदेश (1955) जैसे राज्यों के कानूनों ने मवेशियों के वध पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी।
- वर्ष 1958 में इन तीन कानूनों की जाँच करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मवेशियों के वध पर पूर्ण प्रतिबंध कसाई के अपने व्यापार या पेशे का अभ्यास करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
- यह माना गया कि जबकि गायों के वध पर पूर्ण प्रतिबंध संवैधानिक रूप से मान्य था, बैल, साँङ और भैंस के वध पर प्रतिबंध केवल एक निश्चित सीमा तक ही हो सकता है, या उनकी उपयोगिता (दूध, प्रजनन के लिये) पर आधारित हो सकता है।
- वर्ष 1994 में गुजरात ने सभी उम्र के साँङ और बैलों के वध पर रोक लगाने के लिये एक संशोधित कानून पारित किया।
- वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने न्यायालयों के पूर्व के निर्णयों के विपरीत गुजरात संशोधन कानून के तहत साँड़ों (Bulls) और बैलों (Bullocks) के वध पर पूर्ण प्रतिबंध को बरकरार रखा।
- हाल के वर्षों में छत्तीसगढ़ (2004), मध्य प्रदेश (2004), महाराष्ट्र (2015), हरियाणा (2015) और कर्नाटक (2021) जैसे राज्यों ने भी सभी उम्र के साँड़ों और बैलों के वध पर प्रतिबंध लगा दिया है।
गाय संरक्षण हेतु पहल:
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
अंतर-राज्यीय गिरफ्तारियाँ
प्रिलिम्स के लिये:दंड प्रक्रिया संहिता, भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची, भारत के संविधान का अनुच्छेद 22(2) मेन्स के लिये:अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी, पुलिस सुधार, विभिन्न सुरक्षा बल और एजेंसियाँ और उनके अधिदेश, निर्णय और मामले |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पंजाब पुलिस द्वारा एक राजनेता की गिरफ्तारी पर दिल्ली पुलिस द्वारा पंजाब पुलिस टीम के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करने पर संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
- गिरफ्तारी को लेकर उग्र विवाद ने पुलिस अधिकार क्षेत्र और अंतर-राज्यीय पुलिस सहयोग को लेकर बहस छेड़ दी है।
- इस तरह की राजनीतिक रूप से संचालित प्रक्रिया के प्रभाव निष्पक्षता और समानता के लिये चुनौती के अलावा और कुछ नहीं हैं। यह मामला न्याय का विषय बनने के बजाय राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का विषय बन गया ह।
अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी की प्रक्रिया:
- भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची (सूची II) की प्रविष्टि संख्या 2 में 'पुलिस' को राज्य सूची में रखा गया है, जिसका अर्थ है कि पुलिस से संबंधित सभी मामलों पर राज्य सरकार द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
- मोटे तौर पर कानून की मंशा यह रही है कि किसी विशेष राज्य में अपराधी को उस राज्य की पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाना चाहिये।
- हालांँकि कुछ परिस्थितियों में कानून एक राज्य की पुलिस को दूसरे राज्य में आरोपी को गिरफ्तार करने की अनुमति देता है।
- यह एक सक्षम न्यायालय द्वारा जारी किये गए वारंट के निष्पादन द्वारा या बिना वारंट के भी किया जा सकता है, इस मामले में संबंधित राज्य पुलिस को स्थानीय पुलिस को गिरफ्तारी के बारे में सूचित करना होता है।
- देश भर में राज्य पुलिस बल नियमित रूप से अन्य राज्यों में गिरफ्तारी करते हैं। सामान्य तौर पर यह कार्य स्थानीय पुलिस की सहायता से किया जाता है।
- हालांँकि कई मामलों में स्थानीय पुलिस को गिरफ्तारी से पहले या बाद में केवल सूचित किया जाता है।
अंतर-राज्यीय गिरफ्तारियों पर कानून:
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 79 सक्षम अदालतों द्वारा जारी वारंट के आधार पर अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी से संबंधित है।
- यह धारा ऐसी गिरफ्तारियों के लिये विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित करती है। हालाँकि जहांँ तक वारंट के बिना गिरफ्तारी का संबंध है, किसी अन्य राज्य में किसी आरोपी को गिरफ्तार करने की पुलिस की शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
- CrPC की धारा 48 पुलिस को ऐसी शक्तियांँ देती है लेकिन प्रक्रिया को परिभाषित नहीं किया गया है।
- धारा 48 के अनुसार, "एक पुलिस अधिकारी बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से अर्थात् जिसे गिरफ्तार करने के लिये उसे अधिकृत किया गया है, भारत में किसी भी स्थान पर ऐसे व्यक्ति का पीछा कर सकता है।"
- यह पूर्व से विवादित है कि क्या "पीछा करना" शब्द का अर्थ किसी अन्य राज्य में पीछा करना है या किसी ऐसे आरोपी पर लागू होना है जो दूसरे राज्य में रह रहा है और जांँचकर्त्ताओं के साथ सहयोग नहीं कर रहा है।
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 22(2): प्रत्येक व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया गया है और हिरासत में रखा गया है, को चौबीस घंटे की अवधि के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा।
- गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक की यात्रा में लगा समय 24 घंटे में शामिल नहीं है।
- इसके अलावा “ऐसे किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के अधिकार के बिना उक्त अवधि के बाद हिरासत में नहीं रखा जाएगा।"
- यह CrPC की धारा 56 और 57 में भी निर्धारित है।
न्यायालयों द्वारा अंतर-राज्यीय गिरफ्तारियों पर कानूनी व्याख्या:
- वर्ष 2019 में 'संदीप कुमार बनाम राज्य (दिल्ली सरकार की एनसीटी)' मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी हेतु कुछ दिशा-निर्देश जारी किये। उदाहरण के लिये:
- न्यायालय द्वारा कहा गया कि एक पुलिस अधिकारी को किसी अपराधी को गिरफ्तार करने हेतु दूसरे राज्य का दौरा करने के लिये अपने वरिष्ठ अधिकारी से लिखित या फोन पर अनुमति लेनी होगी।
- पुलिस अधिकारी को इस तरह के कदम के कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना चाहिये और "आकस्मिक मामलों" को छोड़कर पहले न्यायालय से गिरफ्तारी वारंट प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये।
- “दूसरे राज्य का दौरा करने से पहले पुलिस अधिकारी को उस स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये जिसके अधिकार क्षेत्र में वह जांँच का संचालन करता है।
- दिशा-निर्देश "तत्काल मामलों" में एक अपवाद हैं, जिसमें एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य में अपने समकक्षों को आसन्न गिरफ्तारी की सूचना नहीं दे सकती है।
आगे की राह
- सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार किया कि राजनीतिक हस्तक्षेप निष्पक्ष जाँच में बाधा के रूप में काम कर रहा है।
- इसके अतिरिक्त द्वितीय प्रशासनिक आयोग ने यह भी उल्लेख किया कि बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप ने इसकी जवाबदेही का लाभ उठाया है और राजनेता व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिये पुलिस का उपयोग कर रहे हैं।
- इस प्रकार अति आवश्यक पुलिस सुधारों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता है।