भूगोल
आयनमंडलीय इलेक्ट्रॉन घनत्व पूर्वानुमान का नवीन मॉडल
- 21 Apr 2020
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प्रीलिम्स के लिये:आयनमंडल के इलेक्ट्रॉन घनत्व में परिवर्तन, आयनमंडल के संस्तर मेन्स के लिये:वायुमंडलीय संस्तर |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार के 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग' (Department of Science & Technology) के स्वायत्त संस्थान 'भारतीय भू-चुम्बकत्व संस्थान' (Indian Institute of Geomagnetism- IIG), नवी मुंबई, के शोधकर्त्ताओं ने आयनमंडलीय इलेक्ट्रॉन घनत्व की भविष्यवाणी करने वाले एक नवीन मॉडल विकसित किया है।
मुख्य बिंदु:
- IIG के वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रॉन घनत्व परिवर्तन के पूर्वानुमान के लिये एक नवीन 'आर्टीफिशियल न्यूरल नेटवर्क आधारित वैश्विक आयनमंडलीय मॉडल' (Artificial Neural Networks based global Ionospheric Model- ANNIM) विकसित किया है।
- ‘आर्टीफिशियल न्यूरल नेटवर्क’ (ANN) पैटर्न की पहचान, वर्गीकरण, क्लस्टरिंग, सामान्यीकरण, रैखिक और गैर-रैखिक डेटा फिटिंग और टाइम सीरिज़ के अनुमान जैसी समस्याओं के समाधान के लिये मानव मस्तिष्क या जैविक न्यूरॉन्स में होने वाली प्रक्रियाओं का स्थान लेता है।
आयनमंडलीय परिवर्तनशीलता:
- संचार और नौवहन के लिये आयनमंडलीय इलेक्ट्रान घनत्व परिवर्तनशीलता की निगरानी काफी अहम है। आयनमंडलीय परिवर्तनशीलता व्यापक स्तर पर सौर जनित कारकों तथा वातावरण की प्रक्रियाओं, दोनों द्वारा प्रभावित होती है।
- वैज्ञानिकों ने सैद्धांतिक और अनुभवजन्य तकनीकों के उपयोग से आयनमंडलीय मॉडल विकसित करने की कोशिश की है, हालाँकि इलेक्ट्रॉन घनत्व का सटीक अनुमान लगाना अभी तक चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है।
शोध का महत्त्व:
- IIG शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित मॉडल को आयनमंडलीय अनुमानों में एक संदर्भ मॉडल के रूप में उपयोग किया जा सकता है और इसमें ‘ग्लोबल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम’ (Global Navigation Satellite System- GNSS) की पोजिशनिंग खामियों की गणना में प्रयोग होने की पूरी क्षमता है।
आयनमंडल:
- वायुमंडल संस्तरों में आयनमंडल 80 से 400 किलोमीटर के बीच स्थित है। इसमें विद्युत आवेशित कण पाए जाते हैं, जिन्हें आयन कहते हैं। अत: इस वायुमंडलीय परत को आयनमंडल के रूप में जाना जाता है।
महत्त्व:
- आयनमंडल इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह संचार और नेविगेशन के लिये उपयोग की जाने वाली रेडियो तरंगों को परावर्तित और संशोधित करता है।
- आयनमंडल एक अत्यधिक गतिशील क्षेत्र है। आयनमंडल के इलेक्ट्रॉन घनत्व में किसी भी प्रकार की अव्यवस्था का पता आयमंडल के ऊपरी (जैसे- सौर, भू-चुंबकत्व) या नीचे (जैसे- निचले वायुमंडलीय, भूकंपीय आदि) की विभिन्न गतिविधियों के आधार पर लगाया जाता है।
आयनमंडल के संस्तर/क्षेत्र:
- सौर विकिरण की वर्णक्रमीय परिवर्तनशीलता (Spectral Variability) और वायुमंडल में विभिन्न घटकों (यथा- गैसों के प्रकार) के घनत्व के कारण आयनमंडल में अनेक संस्तर यथा D, E, F आदि का निर्माण हो जाता है।
- आयनमंडल 3 परतों में इलेक्ट्रॉन घनत्व सबसे ऊपरी यानि F संस्तर क्षेत्र में सबसे अधिक होता है। F संस्तर दिन और रात दोनों के दौरान मौजूद रहता है।
- दिन के दौरान यह सौर विकिरण द्वारा तथा रात्री के समय ब्रह्मांडीय किरणों द्वारा आयनित रहती है। रात्री के समय D संस्तर गायब तथा E संस्तर कमज़ोर हो जाता है।
- D संस्तर अल्फा तथा हार्ड एक्स-रे विकिरण, E संस्तर सॉफ्ट एक्स-रे तथा कुछ पराबैंगनी तथा F संस्तर पराबैंगनी विकिरणों को परावर्तित कर सकता है।