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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इसरो के नए अध्यक्ष एस. सोमनाथ

  • 14 Jan 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), गगनयान मिशन, लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी), राष्ट्रीय अंतरिक्ष परिवहन नीति (एनएसटीपी), इन-स्पेस, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल), इंडियन स्पेस एसोसिएशन (आईएसपीए)

मेन्स के लिये:

इसरो और इसकी उपलब्धियाँ, इसरो के समक्ष वर्तमान मुद्दे, घरेलू अंतरिक्ष कानून की आवश्यकता, अंतरिक्ष क्रांति के लिये उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक प्रख्यात रॉकेट वैज्ञानिक एस सोमनाथ को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष और अंतरिक्ष सचिव के रूप में नियुक्त किया गया है।

डॉ. सोमनाथ का प्रमुख योगदान

  • उन्होंने पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल Mk-III (GSLV Mk-III) के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई है।
  • वह वर्ष 2003 में GSLV Mk-III परियोजना में शामिल हुए और वर्ष 2010 से 2014 तक परियोजना निदेशक के रूप में कार्य किया।
  • वह प्रमोचन वाहनों के सिस्टम इंजीनियरिंग के क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं।
  • बाद में उन्होंने जीएसएलवी के लिये स्वदेशी क्रायोजेनिक चरणों के विकास में योगदान दिया।

प्रमुख बिंदु

  • इसरो:
    • यह भारत की अग्रणी अंतरिक्ष अन्वेषण एजेंसी है, जिसका मुख्यालय बंगलूरू में है।
    • इसरो का गठन वर्ष 1969 में ग्रहों की खोज और अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान को आगे बढ़ाते हुए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास और दोहन की दृष्टि से किया गया था।
    • इसरो ने अपने पूर्ववर्ती INCOSPAR (अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये भारतीय राष्ट्रीय समिति) की जगह ली, जिसकी स्थापना वर्ष 1962 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू और वैज्ञानिक विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापकों में से एक माना जाता है।
  • इसरो की उपलब्धियाँ:
    • पहला भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट इसरो द्वारा बनाया गया था जो 19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ की मदद से लॉन्च किया गया था।
    • वर्ष 1980 ने रोहिणी के प्रक्षेपण को चिह्नित किया, जो कि पहला उपग्रह था जिसे एसएलवी -3 द्वारा सफलतापूर्वक कक्षा में भेजा गया, यह एक भारत निर्मित प्रक्षेपण यान था।
    • इसके बाद इसरो द्वारा दो अन्य रॉकेट विकसित किये गए: पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षाओं में रखने के लिये और जीएसएलवी (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) उपग्रहों को भूस्थिर कक्षाओं में रखने के लिये।
      • दोनों रॉकेटों ने भारत के साथ-साथ अन्य देशों के लिये कई पृथ्वी अवलोकन और संचार उपग्रहों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है।
    • आईआरएनएसएस और गगन जैसे स्वदेशी उपग्रह नेविगेशन सिस्टम भी तैनात किये गए हैं।
      • क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम को हिंद महासागर के पानी में जहाजों के नेविगेशन में सहायता के लिये सटीक स्थिति सूचना सेवा प्रदान करने हेतु डिज़ाइन किया गया है
      • गगन (GAGAN) भारत का पहला उपग्रह आधारित ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम (Global Positioning System) है जो इसरो के जीसैट उपग्रहों पर निर्भर करता है।
    • जनवरी 2014 में ISRO ने GSAT-14 उपग्रह के GSLV-D5 प्रक्षेपण के लिये स्वदेशी रूप से निर्मित क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग किया, जिससे यह क्रायोजेनिक तकनीक विकसित करने वाले दुनिया के केवल छह देशों में शामिल हो गया।
    • इसरो की कुछ उल्लेखनीय अंतरिक्ष खोजों में चंद्रयान-1 चंद्र ऑर्बिटर, मार्स ऑर्बिटर मिशन (मंगलयान -1) और एस्ट्रोसैट अंतरिक्ष वेधशाला शामिल हैं।
      • मार्स ऑर्बिटर मिशन की सफलता ने भारत को मंगल की कक्षा में पहुँचने वाला दुनिया का चौथा देश बना दिया।
    • भारत ने 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान-1 के बाद अपना दूसरा चंद्र अन्वेषण मिशन चंद्रयान-2 लॉन्च किया।
  • 2021 में  इसरो की प्रमुख उपलब्धियांँ:
    • अमेज़ोनिया -1 
      • गगन की 53वीं उड़ान भारत की पहली उपग्रह-आधारित वैश्विक स्तर की प्रणाली है जो इसरो के जीसैट उपग्रहों पर निर्भर है। PSLV-C51 द्वारा  इसरो की वाणिज्यिक शाखा, न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) का यह  पहला समर्पित मिशन था
      • नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (आईएनपीई) का ऑप्टिकल अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट अमेज़ोनिया-1, अमेज़ॅन क्षेत्र में वनों की कटाई की निगरानी और ब्राजील के क्षेत्र में विविध कृषि के विश्लेषण के लिये उपयोगकर्ताओं को रिमोट सेंसिंग डेटा प्रदान करेगा।
    • यूनिटीसैट (तीन उपग्रह):
      • इन्हें रेडियो रिले सेवाएँ प्रदान करने के लिये तैनात किया गया है। 
    • सतीश धवन उपग्रह:
      • सतीश धवन उपग्रह (SDSAT) एक नैनो उपग्रह है जिसका उद्देश्य विकिरण स्तर/अंतरिक्ष मौसम का अध्ययन करना और लंबी दूरी की संचार प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करना है।
  • आगामी मिशन:
    • गगनयान मिशन: भारत का पहला अंतरिक्ष मिशन, गगनयान, वर्ष 2023 में लॉन्च किया जाएगा।
    • चंद्रयान-3 मिशन: चंद्रयान-3 के 2022 की तीसरी तिमाही के दौरान लॉन्च होने की संभावना है।
    • तीन भू प्रेक्षण उपग्रह (EOSs):
      • EOS-4 (Resat-1A) और EOS-6 (Oceansat-3) - को इसरो के PSLV का उपयोग करके लॉन्च किया जाएगा, तीसरा, EOS-2 (माइक्रोसैट), स्माल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल  (SSLV) की पहली विकासात्मक उड़ान से लॉन्च किया जाएगा। 
      • इन उपग्रहों को वर्ष 2022 की पहली तिमाही में लॉन्च किया जाएगा।
    • अन्य: 
      • शुक्रयान मिशन: इसरो भी शुक्र ग्रह के लिये एक मिशन की योजना बना रहा है, जिसे अस्थायी रूप से शुक्रयान कहा जाता है।
      • स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन: भारत वर्ष 2030 तक अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन लॉन्च करने की योजना बना रहा है, जो अमेरिका, रूस और चीन की लीग में एक विशिष्ट अंतरिक्ष क्लब में शामिल हो गया है।
  • इसरो के समक्ष चुनौतियांँ:
    • वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में नाम मात्र का योगदान:
      • भारत का योगदान वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का केवल 2% हिस्सा है।
      • इसके दो प्रमुख कारण अंतरिक्ष विशिष्ट कानूनों की कमी और अंतरिक्ष से संबंधित सभी गतिविधियों पर इसरो द्वारा प्राप्त प्रभावी एकाधिकार का अभाव हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय संधि:
      • भारत की वर्तमान अंतरिक्ष गतिविधियाँ वर्तमान में दो राष्ट्रीय नीतियों के साथ कुछ अंतर्राष्ट्रीय संधियों द्वारा शासित हैं जो उपग्रह संचार नीति (SATCOM) और रिमोट सेंसिंग डेटा नीति (RSDP) है।
        • सैटकॉम नीति वर्ष 1997 में पेश की गई थी और इसका उद्देश्य भारत के भीतर अंतरिक्ष एवं उपग्रह संचार उद्योग का विकास करना है।
          • वर्ष 2000 में 1997 की नीति के कार्यान्वयन के लिये मानदंड पेश किये गए थे।
        • RSDP को वर्ष 2001 में पेश किया गया था और इसे वर्ष 2011 में संशोधित किया गया था।
          • यह भारत के भीतर उपग्रह रिमोट सेंसिंग डेटा के वितरण के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश देता है और कहता है कि भारत सरकार भारतीय रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट (आईआरएस) से प्राप्त सभी डेटा की अनन्य मालिक है, जिसके लिये निजी संस्थाएँ केवल नोडल एजेंसी के माध्यम से लाइसेंस प्राप्त कर सकती हैं।
    • घरेलू अंतरिक्ष कानून नहीं होना::कुछ समय पहले तक घरेलू अंतरिक्ष कानून की आवश्यकता महसूस नहीं की गई थी क्योंकि अंतरिक्ष को घरेलू के बजाय एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे के रूप में देखा जाता था।
      • इसके अलावा निजी क्षेत्र ने हाल ही में वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधि की क्षमता को महसूस करने के बाद भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश करने और बड़ी भूमिका निभाने की इच्छा जताई।
  • अंतरिक्ष क्रांति के लिये उठाए गए कदम:

आगे की राह

  • क्षुद्रग्रह अवलोकन, पृथ्वी अवलोकन, अंतरिक्ष पर्यटन, उपग्रह प्रक्षेपण, गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रह इंटरनेट जैसी गतिविधियाँ नई अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के कारक होंगे।
  • लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी, नवोदित स्टार्ट-अप संस्कृति, युवाओं की प्रचुरता, तकनीकी ज्ञान और इसरो के साथ पहले से ही एक स्प्रिंगबोर्ड के रूप में कार्य करने के साथ भारत में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में वैश्विक नेता बनने की क्षमता है।
  • घरेलू अंतरिक्ष कानून बनाते समय सरकार को केवल सावधान रहने की ज़रूरत है क्योंकि इसमें भारत के भविष्य को बेहतर रूप में बदलने की क्षमता है।

स्रोत- द हिंदू

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