अनुच्छेद 254 (2) और संबंधित राज्य शक्तियाँ
प्रिलिम्स के लियेअनुच्छेद 254 (2), भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची और विधायी शक्तियों का विभाजन मेन्स के लियेकेंद्र- राज्य विधायी संबंध, केंद्रीय कानून के संबंध में राज्य की शक्तियाँ |
चर्चा में क्यों?
काॅन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने काॅन्ग्रेस शासित राज्यों के प्रमुखों को केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के विरुद्ध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 254 (2) के तहत अपने-अपने राज्यों में कानून पारित करने की सलाह दी है।
प्रमुख बिंदु
- यह संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की अनुमति देगा, जिसे हाल ही में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने अपनी सहमति दे दी है।
क्या है संविधान का अनुच्छेद 254(2)
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 254 (2) एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जहाँ किसी भी मामले के संबंध में एक राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानून का कोई उपबंध, जो कि समवर्ती सूची में आता है, संसद द्वारा बनाई गई विधि के किसी उपबंध के विरुद्ध होता है।
- ऐसे मामले में राज्य विधायिका द्वारा बनाया गया कानून प्रबल होगा, बशर्ते कि कानून को राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित रखा गया है और उस पर उनकी अनुमति मिल गई है।
- इस अनुच्छेद को बेहतर ढंग से समझने के लिये हम इसके प्रावधानों के विभिन्न पहलुओं पर अलग से विचार कर सकते हैं।
- सर्वप्रथम तो यह अनुच्छेद केवल तभी लागू होगा, जब समवर्ती सूची में शामिल किसी विषय पर एक राज्य का कानून, संसद द्वारा पारित राष्ट्रव्यापी कानून के विरुद्ध होगा।
- ऐसी स्थिति में यदि राष्ट्रपति राज्य के कानून को अपनी सहमति दे देता है तो राज्य के कानून को प्रभावी माना जाएगा और उस राज्य में संबंधित केंद्रीय कानून लागू नहीं होगा।
कैसे प्रयोग होगा यह प्रावधान
- यह प्रावधान राज्य विधायिका को राज्य में पहले से लागू संसदीय कानून के उपबंधों से अलग किसी अन्य कानून के निर्माण की शक्ति प्रदान करता है।
- हालाँकि, राज्यों को यह शक्ति केवल उन्ही मामलों पर उपलब्ध है जो संविधान की अनुसूची 7 के तहत समवर्ती सूची में शामिल हैं।
- यद्यपि संसद द्वारा पारित किये गए कानून को रद्द करने के लिये राज्य अपना स्वयं का विधेयक ला सकते हैं, किंतु उन विधेयकों में से कोई भी तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि राष्ट्रपति ऐसे विधेयकों पर अपनी सहमति नहीं दे देते।
- कानून विशेषज्ञों के अनुसार, यह राष्ट्रपति का विशेषाधिकार है कि वह राज्य विधेयकों पर हस्ताक्षर करें या नहीं और चूँकि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करता है, इसलिये राज्य के इस प्रकार विधेयकों का पारित होना अपेक्षाकृत कठिन माना जाता है।
- हालाँकि यह काफी दुर्लभ स्थिति होगी जब भारतीय राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह को दरकिनार करते हुए राज्य के कानून को अनुमति देंगे।
पृष्ठभूमि
- पंजाब और हरियाणा राज्यों के किसानों द्वारा तीन कृषि विधेयकों का विरोध किया जा रहा है, जो कि राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद अधिनियम बन गए हैं। इन तीन अधिनियमों में शामिल हैं-
- किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020
- मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अधिनयम, 2020
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनयम, 2020
- संक्षेप में, इन नियमों का उद्देश्य कृषि उपज बाज़ार समितियों (Agricultural Produce Market Committees- APMC) की सीमाओं से बाहर बिचौलियों और सरकारी करों से मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाकर कृषि व्यापार में सरकार के हस्तक्षेप को दूर करना है।
- यह किसानों को बिचौलियों के माध्यम से और अनिवार्य शुल्क जैसे लेवी का भुगतान किये बिना इन नए क्षेत्रों में सीधे अपनी उपज बेचने का विकल्प देगा।
- इन अधिनियमों के संयुक्त प्रभाव से कृषि उपज के लिये 'वन नेशन, वन मार्केट' बनाने में मदद मिलेगी।
विधायी विषयों का वितरण
- केंद्र तथा राज्य द्वारा किसी विषय पर कानून बनाने की शक्ति को विधायी शक्ति कहा जाता है।
- भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ यथा- संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची दी गई हैं, जिनमें केंद्र और राज्य के मध्य विषयों का विभाजन किया गया है।
- संघ सूची:
- संघ सूची तीनों सूचियों में सबसे बड़ी होती है और इस सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र के पास होता है। इसमें राष्ट्रीय महत्त्व से संबंधित विषय और ऐसे विषय शामिल किये गए हैं, जिनके लिये राष्ट्रव्यापी स्तर पर कानून की एकरूपता की आवश्यकता है।
- बैंकिंग, मुद्रा, परमाणु ऊर्जा, विदेश मामले, रक्षा, रेलवे, पोस्ट और टेलीग्राफ, आयकर, कस्टम ड्यूटी, आदि इस सूची में शामिल कुछ महत्त्वपूर्ण विषय हैं।
- राज्य सूची:
- राज्य सूची में शामिल किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने की शक्ति राज्य विधायिका (आपातकाल के अतिरिक्त) के पास होती है।
- इस सूची में क्षेत्रीय और स्थानीय महत्त्व के मामले शामिल किये जाते हैं।
- राज्य सूची में राज्यों के मध्य व्यापार, पुलिस, मत्स्य पालन, वन, स्थानीय सरकारों, थिएटर और उद्योग आदि जैसे विषय शामिल किये गए हैं।
- समवर्ती सूची:
- उल्लेखनीय है कि संसद तथा राज्य विधानसभा दोनों ही समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर कानून बना सकते हैं। इस सूची में मुख्यतः ऐसे विषय शामिल किये गए हैं जिन पर पूरे देश में कानून की एकरूपता वांछनीय है लेकिन आवश्यक नहीं है।
- समवर्ती सूची में स्टाम्प ड्यूटी, ड्रग्स एवं ज़हर, बिजली, समाचार पत्र, आपराधिक कानून, श्रम कल्याण जैसे कुल 52 विषय (मूल रूप से 47 विषय) शामिल हैं।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 1976 के 42वें संशोधन के माध्यम से राज्य सूची के पाँच विषयों को समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया था। इस पाँच विषयों में शामिल हैं- (1) शिक्षा (2) वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण (3) वन (4) नाप-तौल (5) न्याय प्रशासन