शासन व्यवस्था
जल संसाधन प्रबंधन पर रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लियेसिंधु जल संधि मेन्स के लियेजलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति ने राज्यसभा में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
- यह रिपोर्ट ‘फ्लड मैनेजमेंट इन द कंट्री इंक्लूडिंग इंटरनेशनल वाटर ट्रीटीज़ इन द फील्ड ऑफ वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट विथ पर्टिकुलर रिफरेंस टू ट्रीटी/एग्रीमेंट एंटर्ड इनटू विद चाइना, पाकिस्तान एंड भूटान’ शीर्षक से जारी की गई है।
- भारत सरकार को जलवायु परिवर्तन जैसी वर्तमान चुनौतियों के आलोक में पाकिस्तान के साथ वर्ष 1960 की सिंधु जल संधि पर पुनः वार्ता करनी चाहिये और ब्रह्मपुत्र नदी पर 'चीन द्वारा किये जा रहे कार्यों' की लगातार निगरानी करनी चाहिये।
प्रमुख बिंदु
बाढ़ प्रबंधन पर
- समिति ने देश में बाढ़ के नियंत्रण और प्रबंधन के लिये जल शक्ति मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय एकीकृत बाढ़ प्रबंधन समूह के रूप में तत्काल एक स्थायी संस्थागत संरचना की स्थापना की सिफारिश की है।
- इस समूह को बाढ़ प्रबंधन और जीवन एवं संपत्ति पर परिणामों के लिये ज़िम्मेदार सभी एजेंसियों के बीच समन्वय की समग्र ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये।
सिंधु जल संधि पर
- जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभाव:
- वर्षा पैटर्न: उच्च-तीव्रता वाली वर्षा के साथ-साथ अधिक हिस्सों में कम वर्षा हो रही है।
- ग्लेशियरों का पिघलना: सिंधु बेसिन में ग्लेशियरों के पिघलने का प्रभाव गंगा या ब्रह्मपुत्र घाटियों की तुलना में अधिक है।
- आपदाएँ: चूँकि इसमें एक नाज़ुक हिमालयी क्षेत्र शामिल है, अतः भूस्खलन और तीव्र बाढ़ की आवृत्ति अधिक होती है।
- सिंधु जल का उपयोग:
- भारत पठानकोट में रावी पर रणजीत सागर, ब्यास पर पोंग और सतलुज पर भाखड़ा नांगल जैसे बाँधों की एक शृंखला के माध्यम से 'पूर्वी नदियों', अर्थात् रावी, ब्यास तथा सतलुज के संपूर्ण जल का उपयोग करने में सक्षम था।
- हालाँकि पंजाब और राजस्थान में स्थित नहरें जैसे- राजस्थान फीडर एवं सरहिंद फीडर पुरानी हो गई थीं तथा उनका रखरखाव ठीक से नहीं किया गया था। इसके परिणामस्वरूप उनकी जल धारण क्षमता कम हो गई थी।
- इस प्रकार पंजाब में ब्यास और सतलुज के संगम पर हरिके बैराज का जल सामान्यत: पाकिस्तान के निचले हिस्से में छोड़ा जाता था।
- इसने केंद्र से नई परियोजनाओं में तेज़ी लाने का आग्रह किया, जैसे उज्ज नदी (रावी की सहायक नदी) के साथ-साथ रावी पर स्थित शाहपुरकंडी बाँध, का निर्माण सिंचाई और अन्य उद्देश्यों के लिये नदियों की पूरी क्षमता का दोहन करने हेतु किया जा रहा है।
- इसने यह भी सिफारिश की कि पंजाब और राजस्थान में नहर प्रणालियों की मरम्मत की जाए ताकि उनकी जल वहन क्षमता बढ़ाई जा सके।
- सिंधु जल संधि पर पुन: बातचीत:
- वर्ष 1960 में हस्ताक्षरित संधि द्वारा जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन आदि जैसे वर्तमान में उद्घृत मुद्दों को ध्यान में नहीं रखा गया था।
- संधि पर फिर से बातचीत करने की आवश्यकता है ताकि सिंधु बेसिन में जल की उपलब्धता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और अन्य चुनौतियों का समाधान करने के लिये किसी प्रकार की संस्थागत संरचना या विधायी ढाँचा स्थापित किया जा सके जो संधि के तहत शामिल नहीं है।
ब्रह्मपुत्र पर चीन के विकास के संदर्भ में:
- समिति ने आशंका व्यक्त की कि चीन द्वारा शुरू की गई 'रन ऑफ द रिवर' परियोजनाओं से जल का डायवर्ज़न नहीं हो सकता है, लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि जल को तालाबों में संग्रहीत किया जा सकता है और टर्बाइन चलाने के लिये छोड़ा जा सकता है।
- इससे डाउनस्ट्रीम प्रवाह में कुछ दैनिक भिन्नता हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप ब्रह्मपुत्र नदी में जल प्रवाह पर प्रभाव पड़ता है तथा इस प्रकार यह क्षेत्र के जल संसाधनों को टैप करने के भारत के प्रयासों को प्रभावित करता है।
- तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी की मुख्य धारा पर तीन जल-विद्युत परियोजनाओं को चीनी अधिकारियों द्वारा अनुमोदित किया गया है और जांगमु में एक जल-विद्युत परियोजना को अक्तूबर 2015 में चीनी अधिकारियों द्वारा पूरी तरह से चालू घोषित किया गया था।
- भारत को लगातार चीनी गतिविधियों की निगरानी करनी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे ब्रह्मपुत्र नदी पर कोई बड़ा हस्तक्षेप न करें जिससे हमारे राष्ट्रीय हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
- समिति ने इस तथ्य पर संतोष व्यक्त किया कि चीन ब्रह्मपुत्र और सतलुज के संबंध में हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा कर रहा है, हालाँकि ऐसा भुगतान के आधार पर हो रहा है।
- भारत और चीन के बीच वर्तमान में कोई जल संधि नहीं है।
भूटान के साथ सहयोग:
- "भारत और भूटान की साझा नदियों पर जल-मौसम विज्ञान व बाढ़ पूर्वानुमान नेटवर्क की स्थापना के लिये व्यापक योजना" नामक एक योजना चल रही है।
- भारत और भूटान की सामान्य नदियों में मानस नदी, संकोश नदी आदि शामिल हैं।
- नेटवर्क में भूटान में स्थित 32 हाइड्रो-मौसम विज्ञान/मौसम विज्ञान स्टेशन शामिल हैं और भारत के वित्तपोषण से ही भूटान की शाही सरकार द्वारा बनाए रखा गया है। इन स्टेशनों से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग भारत में बाढ़ पूर्वानुमान तैयार करने के लिये किया जाता है।
- भारत और भूटान के बीच बाढ़ प्रबंधन पर एक संयुक्त विशेषज्ञ समूह (JGE) का गठन भूटान की दक्षिणी तलहटी और भारत के आसपास के मैदानों में बार-बार आने वाली बाढ़ तथा कटाव के संभावित कारणों व प्रभावों पर चर्चा करने, उनका आकलन करने, दोनों सरकारों को उचित एवं पारस्परिक रूप से स्वीकार्य उपचारात्मक उपाय की सिफारिश करने के लिये किया गया है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की समाप्ति की दूसरी वर्षगाँठ
प्रिलिम्स के लियेअनुच्छेद 370, 35A एवं अन्य संबंधित प्रावधान मेन्स के लियेजम्मू-कश्मीर में उग्रवाद के कारण और इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
‘जम्मू-कश्मीर मानवाधिकार फोरम’ (FHRJK) ने केंद्र शासितप्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर (J&K) के दो वर्ष पूरे होने से एक दिन पूर्व अपनी रिपोर्ट जारी की है।
- इस रिपोर्ट में आतंकवाद को लेकर चिंता ज़ाहिर की गई है, जो कि जम्मू-कश्मीर में एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
- ‘जम्मू-कश्मीर मानवाधिकार फोरम’ सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मदन बी. लोकुर और कश्मीर के पूर्व वार्ताकार राधा कुमार की सह-अध्यक्षता वाली एक स्वतंत्र संस्था है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- 5 अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-370 के तहत तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य की विशेष संवैधानिक स्थिति को समाप्त कर दिया था और अनुच्छेद 35A को निरस्त कर दिया गया था।
- अनुच्छेद 35A के तहत जम्मू-कश्मीर को अपने 'स्थायी निवासी' परिभाषित करने और उनसे जुड़े अधिकारों एवं विशेषाधिकारों को निर्धारित करने की अनुमति दी गई थी।
- इस पूर्ववर्ती राज्य को केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख (बिना विधायिका के) और जम्मू-कश्मीर (विधायिका के साथ) में विभाजित किया गया था।
- समवर्ती रूप से भारत सरकार ने इस क्षेत्र में लगभग पूर्ण कम्युनिकेशन लॉकडाउन लागू किया था, साथ ही राजनेताओं और असंतुष्ट लोगों को हिरासत में लिया गया तथा हिंसक अशांति को रोकने के लिये इस क्षेत्र में भारतीय दंड संहिता की धारा 144 लागू की गई।
रिपोर्ट के निष्कर्ष
- रिपोर्टों के तहत जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन, मनमानी निवारक निरोध, विधानसभा पर प्रतिबंध और स्थानीय मीडिया सेंसरशिप को लेकर चिंता ज़ाहिर की गई है।
- सरकार ने कई सकारात्मक कदम उठाए हैं लेकिन वे अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं रहे हैं।
- रिपोर्ट में माना गया है कि प्रदेश में अभी भी सार्वजनिक, नागरिक और मानव सुरक्षा संबंधी मुद्दों के बजाय आतंकवाद विरोधी विषयों को अधिक प्राथमिकता दी जा रही है।
जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद का कारण:
- चूँकि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर (J&K) की विशेष संवैधानिक स्थिति समाप्त हो गई थी तथा इसे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया गया था, जम्मू-कश्मीर में लोगों का एक वर्ग इस फैसले का विरोध कर रहा है।
- इसके अलावा भारतीय नागरिकों को बिना अधिवास के जम्मू और कश्मीर (J & K) में ज़मीन खरीदने की अनुमति देने से स्थानीय लोगों ने नाराज़गी व्यक्त की।
- इसके बाद जम्मू-कश्मीर में सीमा पार से सहायता प्राप्त उग्रवाद ने इस क्षेत्र को प्रभावित करना जारी रखा है।
- यह सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) जैसे कठोर कानून के दुरुपयोग के साथ जुड़ा हुआ है।
- इसके अतिरिक्त इस बात की आशंका बढ़ रही है कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्ज़ा किये जाने से सुरक्षा स्थिति और खराब होने की संभावना है।
सरकार और न्यायपालिका द्वारा उठाए गए कदम:
- औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना: हाल ही में उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग ने जम्मू और कश्मीर के औद्योगिक विकास के लिये नई केंद्रीय क्षेत्र योजना को अधिसूचित किया है।
- यह योजना चार प्रोत्साहन प्रदान करती है अर्थात्:
- पूंजी निवेश प्रोत्साहन।
- पूंजीगत ब्याज सबवेंशन।
- गुड्स एंड सर्विस टैक्स लिंक्ड इंसेंटिव।
- कार्यशील पूंजी ब्याज सबवेंशन।
- यह योजना क्षेत्र में अधिक रोज़गार के अवसर पैदा करने और पर्यटन को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
- यह योजना चार प्रोत्साहन प्रदान करती है अर्थात्:
- पीएम-जेएवाई योजना : यह योजना निशुल्क बीमा कवर प्रदान करती है। यह केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के सभी निवासियों को फ्लोटर के आधार पर प्रति परिवार 5 लाख रुपए तक का वित्तीय कवर प्रदान करता है।
- युद्धविराम समझौता: भारतीय और पाकिस्तानी डायरेक्टर जनरल्स ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस’ (DGsMO) सशस्त्र समूहों द्वारा प्रतिबंधित घुसपैठ के लिये सहमत हुए और उम्मीद व्यक्त की जा रही है कि एक व्यापक शांति प्रक्रिया का पालन हो सकता है।
- जम्मू-कश्मीर में चुनाव: केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने की मांग की।
- हालाँकि सरकार ने माना कि चुनाव UT विधानसभा के लिये होंगे। इसके विपरीत क्षेत्रीय दलों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिये जाने के बाद वे चुनाव में भाग लेंगे।
- इंटरनेट बंद होने पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: सर्वोच्च न्यायालय ने दायर याचिकाओं के जवाब में फैसला सुनाया जिसमें इंटरनेट बंद करने और जम्मू-कश्मीर में अन्य नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का तर्क दिया गया था।
- न्यायालय ने माना कि निलंबन केवल अस्थायी अवधि के लिये किया जा सकता है और यह न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
- दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिये विशेष पैकेज।
आगे की राह:
- मानवाधिकार मंच ने सभी शेष राजनीतिक बंदियों (Political Detainees) की रिहाई और PSA तथा अन्य निवारक निरोध कानूनों को निरस्त करने की सिफारिश की।
- इसने कश्मीरी पंडितों की वापसी की सुविधा में स्थानीय समुदायों की भागीदारी का भी आह्वान किया।
- कश्मीर समाधान के लिये भारत के पूर्व प्रधानमंत्री (अटल बिहारी वाजपेयी) के दृष्टिकोण- कश्मीरियत, इंसानियत, जम्हूरियत (कश्मीर की समावेशी संस्कृति, मानवतावाद और लोकतंत्र) को लागू करके जम्मू-कश्मीर में शांति ढाँचा स्थापित किया जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
MPLADS में धन व्यपगत
प्रिलिम्स के लिये:MPLADS मेन्स के लिये:विकास कार्यों में MPLADS की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त पर स्थायी समिति ने संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) को केवल एक सप्ताह का समय देने हेतु वित्त मंत्रालय (व्यय विभाग) के निर्णय की आलोचना की, जिसके कारण इसका 50% धन व्यपगत हो गया।
प्रमुख बिंदु
समिति के निष्कर्ष:
- परियोजनाओं पर प्रभाव: वित्तपोषण की कमी के कारण देश भर में कार्यान्वित कई स्थानीय क्षेत्र विकास परियोजनाएंँ प्रभावित हुईं।
- विशेष रूप से उन राज्यों में जहाँ इस साल चुनाव हुए थे क्योंकि इन राज्यों और निर्वाचन क्षेत्रों के लिये आदर्श आचार संहिता का हवाला देते हुए कोई धन जारी नहीं किया गया था।
- नीति में तदर्थवाद: MPLAD के तहत जिला प्राधिकारियों को जारी की गई धनराशि व्यपगत नहीं होती है, जबकि किसी विशेष वर्ष में सरकार द्वारा जारी नहीं की गई धनराशि को कैरी फॉरवर्ड किया जाता है।
- हालाँकि वित्त मंत्रालय का निर्णय जिसने निधियों को व्यपगत बना दिया, ने तदर्थता और पूरे भारत में समुदायों के लिये नकारात्मक परिणामों के साथ राजकोषीय प्रबंधन में एक गंभीर चूक को प्रदर्शित किया।
MPLAD योजना के बारे में:
- MPLAD एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है जिसकी घोषणा दिसंबर 1993 में की गई थी।
- इस योजना का उद्देश्य संसद सदस्यों (सांसद) को अवसंरचना के निर्माण पर ज़ोर देने के साथ स्थानीय स्तर की ज़रूरतों के आधार पर पूंजीगत प्रकृति के विकास कार्यों का सुझाव देने और निष्पादित करने में सक्षम बनाना है।
- प्रारंभ में यह ग्रामीण विकास मंत्रालय के नियंत्रण में था। बाद में अक्तूबर 1994 में इसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत स्थानांतरित कर दिया गया।
कार्य:
- प्रत्येक संसद सदस्य को योजना के तहत 5 करोड़ रुपए और कुल 790 सांसदों को सालाना 3,950 करोड़ रुपए अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं के लिये प्रदान किया जाता है।
- लोकसभा सांसदों को अपने लोकसभा क्षेत्रों में ज़िला प्राधिकरण परियोजनाओं की सिफारिश करनी होती है।
- राज्यसभा सांसदों को इस निधि को उस राज्य में खर्च करना पड़ता है जहाँ से उन्हें संसद में प्रतिनिधि चुना गया है।
- राज्यसभा और लोकसभा दोनों के मनोनीत सदस्य देश में कहीं भी कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं।
प्राथमिकता वाली परियोजनाएँ:
- परियोजनाओं में पेयजल सुविधाएँ, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य स्वच्छता और सड़कों जैसी संपत्ति निर्माण शामिल हैं।
- जून 2016 से MPLAD वित्त का उपयोग स्वच्छ भारत अभियान, सुगम्य भारत अभियान, वर्षा जल संचयन के माध्यम से जल संरक्षण और सांसद आदर्श ग्राम योजना आदि के तहत योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये भी किया जा सकता है।
MPLAD से संबंधित अन्य मुद्दे:
- कार्यान्वयन चूक: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने वित्तीय कुप्रबंधन और खर्च की गई राशि की कृत्रिम मुद्रास्फीति के उदाहरणों को हरी झंडी दिखाई है।
- कोई सांविधिक समर्थन नहीं: यह योजना किसी वैधानिक कानून द्वारा शासित नहीं है और यह उस समय की सरकार की नीतियों पर निर्भर करती है।
- निगरानी और विनियमन: योजना भागीदारी विकास को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गई थी लेकिन भागीदारी के स्तर को मापने के लिये कोई संकेतक उपलब्ध नहीं है।
- संघवाद का उल्लंघन: केंद्र सरकार केवल उन मामलों के संबंध में खर्च कर सकती है, जिन पर सातवीं अनुसूची के अनुसार उसका विषय क्षेत्र है।
- MPLADS स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करता है और इस प्रकार संविधान के भाग IX और IX-A का उल्लंघन करता है।
- शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के साथ संघर्ष: यह योजना संविधान के तहत शक्तियों के पृथक्करण की विशेषता को बाधित करती है, क्योंकि इससे सांसद कार्यकारी कार्यों में शामिल हो रहे हैं।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
प्रमुख प्रशासनिक सुधार
प्रिलिम्स के लिये:मिशन कर्मयोगी, सुशासन सूचकांक 2019, ई-गवर्नेंस मेन्स के लिये:शासन व्यवस्था और प्रमुख प्रशासनिक सुधार, ई-गवर्नेंस एवं इसका महत्त्व तथा सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में शुरू किये गए प्रमुख प्रशासनिक सुधारों के बारे में जानकारी दी तथा शासन को और अधिक सुलभ बनाने में इन सुधारों के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- इन सुधारों का उद्देश्य अधिक दक्षता, पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन, जवाबदेही को प्रोत्साहित करना तथा विवेक के दायरे को कम करना है। सरकार अधिकतम "न्यूनतम सरकार - अधिकतम शासन" का अनुसरण करती है।
प्रमुख बिंदु:
- मिशन कर्मयोगी:
- यह राष्ट्रीय सिविल सेवा क्षमता विकास कार्यक्रम (National Programme for Civil Services Capacity Building- NPCSCB) है। यह कुशल सार्वजनिक सेवा वितरण के लिये व्यक्तिगत, संस्थागत और प्रक्रिया स्तरों पर क्षमता निर्माण तंत्र में व्यापक सुधार है।
- इसका उद्देश्य भारतीय सिविल सेवकों को और भी अधिक रचनात्मक, सृजनात्मक, विचारशील, नवाचारी, अधिक क्रियाशील, प्रगतिशील, ऊर्जावान, सक्षम, पारदर्शी और प्रौद्योगिकी समर्थ बनाते हुए भविष्य के लिये तैयार करना है जो न्यू इंडिया की दृष्टि से जुड़ा हुआ है।
- क्षमता निर्माण iGOT-कर्मयोगी डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाएगा, जिसमें वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से तैयार की गई सामग्री होगी।
- लेटरल एंट्री:
- लेटरल एंट्री का अर्थ है जब निजी क्षेत्र के कर्मियों का चयन सरकारी प्रशासनिक पद पर किया जाता है, भले ही उनका चयन नौकरशाही व्यवस्था में न हो या उनका हिस्सा न हो।
- यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि समकालीन समय में प्रशासनिक मामलों के शीर्ष पर अत्यधिक कुशल और प्रेरित व्यक्तियों की आवश्यकता होती है, जिसके बिना सार्वजनिक सेवा वितरण तंत्र सुचारू रूप से कार्य नहीं करता है।
- लेटरल एंट्री सरकारी क्षेत्र में मितव्ययिता, दक्षता और प्रभावशीलता के मूल्यों को बढ़ाने में मदद करती है। यह सरकारी क्षेत्र के भीतर प्रदर्शन की संस्कृति के निर्माण में मदद करेगा।
- ई-समीक्षा:
- यह महत्त्वपूर्ण सरकारी कार्यक्रमों/परियोजनाओं के कार्यान्वयन के संबंध में शीर्ष स्तर पर सरकार द्वारा लिये गए निर्णयों के आधार पर निगरानी और अनुवर्ती कार्रवाई के लिये एक वास्तविक समय ऑनलाइन प्रणाली है।
- यह नौकरशाही में कामचोरी पर लगाम लगाने हेतु एक डिजिटल मॉनीटर है।
- इसके अलावा सरकार समय से पहले सेवानिवृत्ति द्वारा अक्षम और संदिग्ध ईमानदारी वाले अधिकारियों को बाहर निकालने के लिये गहन समीक्षा कर रही है।
- ई-ऑफिस:
- मंत्रालयों/विभागों को कागज रहित कार्यालय में बदलने और कुशल निर्णय लेने में सक्षम बनाने के लिये ई-ऑफिस मिशन मोड परियोजना (MMP) को मज़बूत किया गया है।
- सिटीज़न चार्टर:
- सरकार ने सभी मंत्रालयों/विभागों के लिये सिटीज़न चार्टर अनिवार्य कर दिया है जिन्हें नियमित आधार पर अपडेट करने के साथ ही समीक्षा भी की जाती है।
- यह एक लिखित दस्तावेज़ है जो नागरिकों/ग्राहकों की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता पर ध्यान केंद्रित करने के लिये सेवा प्रदाता के प्रयासों के बारे में बताता है।
- सरकार ने सभी मंत्रालयों/विभागों के लिये सिटीज़न चार्टर अनिवार्य कर दिया है जिन्हें नियमित आधार पर अपडेट करने के साथ ही समीक्षा भी की जाती है।
- सुशासन सूचकांक 2019:
- यह राज्य सरकार और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) द्वारा किये गए विभिन्न हस्तक्षेपों के माध्यम से शासन की स्थिति और प्रभाव का आकलन करता है।
- सुशासन सूचकांक का उद्देश्य सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में शासन की स्थिति की तुलना करने के लिये मात्रात्मक डेटा प्रदान करना है, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को शासन में सुधार के लिये उपयुक्त रणनीति तैयार करने व लागू करने तथा परिणाम उन्मुख दृष्टिकोण एवं प्रशासन में बदलाव के लिये सक्षम बनाना है।
- इसे कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया है।
- ई-गवर्नेंस पर राष्ट्रीय सम्मेलन:
- यह सरकार को ई-गवर्नेंस पहल से संबंधित अनुभवों का आदान-प्रदान करने के लिये उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों के विशेषज्ञों, बुद्धिजीवियों के साथ जुड़ने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- 2020 में इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के साथ प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) द्वारा मुंबई में ई-गवर्नेंस पर 23वें राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
- केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली (CPGRAMS):
- यह लोक शिकायत निदेशालय (DPG) तथा प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) के सहयोग से राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय ) द्वारा विकसित एक ऑनलाइन वेब-सक्षम प्रणाली है।
- CPGRAMS किसी भी भौगोलिक स्थान से ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की सुविधा प्रदान करता है। यह नागरिक को संबंधित विभागों के साथ की जा रही शिकायत को ऑनलाइन ट्रैक करने में सक्षम बनाता है और डीएआरपीजी को शिकायत की निगरानी करने में भी सक्षम बनाता है।
- राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सेवा वितरण मूल्यांकन: इसका उद्देश्य ई-गवर्नेंस सेवा वितरण की दक्षता पर राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और केंद्रीय मंत्रालयों का आकलन करना है।
- 2014 में और उसके बाद 2020 में 'लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिये प्रधानमंत्री पुरस्कार' योजना का व्यापक पुनर्गठन।
प्रशासनिक सुधार आयोग
- प्रशासनिक सुधार आयोग की स्थापना भारत सरकार द्वारा लोक प्रशासन प्रणाली की समीक्षा करने और इसे सुधारने के लिये सिफारिशें देने हेतु की गई है।
- पहले प्रशासनिक सुधार आयोग (1966) का नेतृत्व शुरू में मोरारजी देसाई ने किया था और बाद में के. हनुमंतैया ने किया था। 2005 में गठित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की अध्यक्षता वीरप्पा मोइली ने की थी।
आगे की राह:
- सार्वजनिक मामलों का प्रबंधन करने वाली राज्य संस्था के सामने आने वाली नई चुनौतियों के लिये सुधार एक स्पष्ट प्रतिक्रिया है; इस तरह की कवायद के मूल में बदले हुए परिदृश्य में प्रशासनिक क्षमता को बढ़ाने का प्रयास है।
- चूँकि सिविल सेवक राजनीतिक अधिकारियों (Political Executives) के प्रति जवाबदेह होते हैं और इसके परिणामस्वरूप सिविल सेवाओं का राजनीतिकरण होता है, इसलिये नागरिक चार्टर, सामाजिक लेखापरीक्षा तथा सिविल सेवकों के बीच परिणाम अभिविन्यास को प्रोत्साहित करने जैसे बाहरी जवाबदेही तंत्र पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- सिविल सेवकों को नीति निर्माण में राजनीतिक अधिकारियों को निष्पक्ष, तर्कसंगत और सराहनीय सुझाव देना चाहिये। इसके लिये एक निष्पक्ष सिविल सेवा बोर्ड की आवश्यकता है जो पदोन्नति, स्थानांतरण, पोस्टिंग और निलंबन से संबंधित सभी पहलुओं को देख सके।
स्रोत: पी.आई.बी
शासन व्यवस्था
समग्र शिक्षा योजना 2.0
प्रिलिम्स के लियेसमग्र शिक्षा योजना 2.0, सर्व शिक्षा अभियान मेन्स के लियेसमग्र शिक्षा योजना 2.0 के प्रमुख तत्त्व और विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने वित्तीय वर्ष 2025-26 तक के लिये स्कूली शिक्षा कार्यक्रम ‘समग्र शिक्षा योजना 2.0’ को मंज़ूरी दे दी है।
- इसे शिक्षा हेतु सतत् विकास लक्ष्य और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के साथ संरेखित करने के लिये अपग्रेड किया गया है।
प्रमुख बिंदु
समग्र शिक्षा योजना के विषय में:
- यह स्कूली शिक्षा के लिये एक एकीकृत योजना है, जिसमें प्री-स्कूल से लेकर बारहवीं कक्षा तक की शिक्षा संबंधी सभी पहलुओं को शामिल किया गया है।
- इसका उद्देश्य समावेशी, न्यायसंगत और सुगम स्कूली शिक्षा प्रदान करना है।
- यह ‘सर्व शिक्षा अभियान’ (SSA), ‘राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान’ (RMSA) और ‘शिक्षक शिक्षा’ (TE) की तीन योजनाओं को समाहित करती है।
- इस योजना में 1.16 मिलियन स्कूल, 156 मिलियन से अधिक छात्र और सरकारी तथा सहायता प्राप्त स्कूलों के 5.7 मिलियन शिक्षक (पूर्व-प्राथमिक से वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक) शामिल हैं।
- इसे केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लागू किया जा रहा है। इसमें केंद्र और अधिकांश राज्यों के बीच वित्तपोषण में 60:40 का विभाजन शामिल है। इसे वर्ष 2018 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था।
समग्र शिक्षा योजना 2.0 के बारे में:
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT):
- योजना की प्रत्यक्ष पहुँच को बढ़ाने के लिये सभी बाल-केंद्रित हस्तक्षेप छात्रों को सीधे सूचना प्रौद्योगिकी-आधारित प्लेटफॉर्म पर DBT मोड के माध्यम से समय-समय पर शिक्षा का अधिकार पात्रताके तहत पाठ्यपुस्तक, ड्रेस और परिवहन भत्ते प्रदान किये जाएंगे।
- NEP की सिफारिशें:
- भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन:
- इसमें भाषा शिक्षकों की नियुक्ति के लिये एक नया घटक है, जिसमें वेतन और प्रशिक्षण लागत के साथ-साथ द्विभाषी किताबें तथा शिक्षण सामग्री शामिल है, जैसा कि NEP में अनुशंसित किया गया है।
- पूर्व प्राथमिक शिक्षा:
- इसमें अब शिक्षण और अधिगम सामग्री, स्वदेशी खिलौने और खेल तथा खेल-आधारित गतिविधियों के लिये सरकारी स्कूलों में पूर्व-प्राथमिक वर्गों को समर्थन देने के लिये वित्त प्रदान करना शामिल होगा।
- योजना के तहत पूर्व-प्राथमिक शिक्षकों और आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं के लिये कुशल प्रशिक्षकों का समर्थन किया जाएगा।
- निपुण भारत पहल:
- इस पहल के तहत शिक्षण सामग्री के लिये प्रति छात्र 500 रुपए, मैनुअल और संसाधनों के लिये प्रति शिक्षक 150 रुपए और आधारभूत साक्षरता तथा अंकगणित के आकलन के लिये प्रति ज़िले 10-20 लाख रुपये का वार्षिक प्रावधान है।
- डिजिटल पहल:
- डिजिटल बोर्ड, वर्चुअल क्लासरूम और डीटीएच चैनलों के लिये समर्थन सहित आईसीटी लैब तथा स्मार्ट क्लासरूम का प्रावधान है, जो कोविड -19 महामारी के मद्देनजर अधिक महत्त्वपूर्ण हो गये हैं।
- स्कूल न जाने वाले बच्चों हेतु:
- इसमें 16 से 19 वर्ष की आयु के स्कूली बच्चों को ओपन स्कूलिंग के माध्यम से अपनी शिक्षा पूरी करने के लिये 2000 प्रति ग्रेड के वित्तपोषण का समर्थन देने का प्रावधान शामिल है।
- स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों और स्कूल छोड़ने वाले छात्रों दोनों के लिये कौशल तथा व्यावसायिक शिक्षा पर भी अधिक ध्यान दिया जाएगा।
- भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन:
- अन्य विशेषताएँ:
- बाल अधिकार संरक्षण एवं सुरक्षा हेतु राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को राज्य में प्रति प्राथमिक विद्यालय 50 रुपए की दर से वित्तीय सहायता।
- समग्र, 360-डिग्री, संज्ञानात्मक, भावात्मक और मनोप्रेरणा डोमेन में प्रत्येक शिक्षार्थी की प्रगति/विशिष्टता दिखाने वाली बहु-आयामी रिपोर्ट को समग्र प्रगति कार्ड (HPC) के रूप में पेश किया जाएगा।
- PARAKH, राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र की गतिविधियों के लिये समर्थन (प्रदर्शन, आकलन, समीक्षा और समग्र विकास के लिये ज्ञान का विश्लेषण)।
- राष्ट्रीय स्तर पर खेलो इंडिया स्कूल खेलों में उस स्कूल के कम से कम 2 छात्रों के पदक जीतने पर स्कूलों को 25000 रुपए तक का अतिरिक्त खेल अनुदान।
- बैगलेस दिनों (Bagless days), स्कूल परिसरों, स्थानीय कारीगरों के साथ इंटर्नशिप, पाठ्यक्रम और शैक्षणिक सुधार आदि के प्रावधान।
- प्रति वर्ष 20% स्कूलों को कवर करने वाले सामाजिक लेखा परीक्षा के लिये समर्थन ताकि सभी स्कूलों को पाँच वर्ष की अवधि में कवर किया जा सके।
स्रोत : पी.आई.बी
शासन व्यवस्था
संवैधानिक (127वाँ) संशोधन विधेयक, 2021
प्रिलिम्स के लिये102वाँ संविधान संशोधन, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग मेन्स के लियेराष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से संबंधित प्रावधान एवं संरचना, मराठा कोटा से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
102वें संविधान संशोधन विधेयक में कुछ प्रावधानों को स्पष्ट करने के लिये सरकार पिछड़े वर्गों की पहचान कर राज्यों की शक्ति को बहाल करने हेतु संसद में एक विधेयक लाने की योजना बना रही है।
- भारत में केंद्र और प्रत्येक राज्य द्वारा अलग-अलग ओबीसी सूचियाँ तैयार की जाती हैं। अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) ने राज्य को सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची की पहचान करने तथा घोषित करने के लिये स्पष्ट रूप से शक्ति प्रदान की।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि :
- इस वर्ष की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में 102वें संवैधानिक संशोधन को बरकरार रखने के पश्चात् संशोधन की आवश्यकता बताई थी, लेकिन राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) की सिफारिशों के आधार पर यह निर्धारित करेगा कि राज्य ओबीसी सूची में कौन से समुदायों को शामिल किया जाएगा।
- वर्ष 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 342 के बाद भारतीय संविधान में दो नए अनुच्छेदों 338B और 342A को जोड़ा गया।
- अनुच्छेद 338B राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की संरचना, कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 342A राष्ट्रपति को विभिन्न राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने का अधिकार प्रदान करता है। इन वर्गों को निर्दिष्ट करने के लिये वह संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श कर सकता है।
- वर्ष 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 342 के बाद भारतीय संविधान में दो नए अनुच्छेदों 338B और 342A को जोड़ा गया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य में राजनीतिक रूप से शक्तिशाली मुद्दे के उद्देश्य से शुरू किये गए मराठा कोटा को रद्द कर दिया।
विधेयक के बारे में:
- यह अनुच्छेद 342A के खंड 1 और 2 में संशोधन करेगा और एक नया खंड 3 भी प्रस्तुत करेगा।
- विधेयक अनुच्छेद 366 (26c) और 338B (9) में भी संशोधन करेगा।
- इसकी परिकल्पना यह स्पष्ट करने के लिये की गई है कि राज्य OBC श्रेणी की "राज्य सूची" को उसी रूप में बनाए रख सकते हैं जैसा कि यह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पहले थी।
- अनुच्छेद 366 (26c) सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करता है।
- "राज्य सूची" को पूरी तरह से राष्ट्रपति के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा और राज्य विधानसभा द्वारा अधिसूचित किया जाएगा।
OBCs से संबंधित अन्य विकास:
- संसद में जारी वर्तमान मानसून सत्र में कुछ सांसदों ने क्रीमीलेयर को परिभाषित करने का मुद्दा उठाया है।
- इसके अलावा न्यायमूर्ति रोहिणी समिति ओबीसी कोटा के उप-वर्गीकरण और इस बात पर विचार कर रही है कि यदि कोई विशेष समुदाय या समुदायों का समूह ओबीसी कोटा से सबसे अधिक लाभान्वित हो रहा है तो विसंगतियों को कैसे दूर किया जाए।
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वर्ष 2021-22 से स्नातक (UG) और स्नातकोत्तर (PG) मेडिकल/डेंटल के पाठ्यक्रम के लिये अखिल भारतीय कोटा (AIQ) योजना में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये 27% आरक्षण और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये 10% कोटा की घोषणा की है।
संविधान संशोधन विधेयक
- संविधान में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, संविधान संशोधन विधेयक तीन प्रकार के हो सकते हैं।
- प्रत्येक को सदन में पारित होने के लिये साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है।
- प्रत्येक को सदन में पारित होने के लिये विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है, अर्थात् किसी सदन की कुल सदस्यता का बहुमत तथा उस सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से (अनुच्छेद 368)।
- उनके पारित होने के लिये विशेष बहुमत के साथ ही उन विधानमंडलों द्वारा पारित इस आशय के प्रस्तावों के माध्यम से आधे से कम राज्यों के विधानमंडलों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है (अनुच्छेद 368 के खंड (2) का परंतुक)।
- अनुच्छेद 368 के तहत एक संविधान संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है और प्रत्येक सदन द्वारा विशेष बहुमत से पारित किया जाता है।
- धन विधेयक या संविधान संशोधन विधेयक पर संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है।
आगे की राह
- OBC की राज्य सूची को बनाए रखने हेतु राज्य सरकारों की शक्तियों को बनाए रखने के लिये संशोधन आवश्यक है जिसे सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्टीकरण से हटा दिया गया था।
- यदि राज्य सूची को समाप्त कर दिया जाता है तो लगभग 671 OBC समुदायों की शैक्षणिक संस्थानों और नियुक्तियों में आरक्षण तक पहुँच समाप्त हो जाती।
- इससे कुल OBC समुदायों के लगभग पाँचवें हिस्से पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- हमारे पास ऐसी केंद्रीय निगरानी (Central oversight) की व्यवस्था नही है। यह राज्यों को सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं की प्रतिक्रिया करने की अनुमति देता है जो किसी राज्य या क्षेत्र के लिये विशिष्ट हैं।
- इसके अलावा भारत में एक संघीय ढाँचा है और उस ढाँचे को बनाए रखने के लिये यह संशोधन आवश्यक था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
विदेश मंत्री की ईरान यात्रा
प्रिलिम्स के लिये:चाबहार बंदरगाह, ईरान, अफगानिस्तान की विश्व के मानचित्र में अवस्थिति मेन्स के लिये:भारत-ईरान संबंध |
चर्चा में क्यों?
भारत के विदेशमंत्री (External Affairs Minister- EAM) नये ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिये ईरान गये हैं। यह हाल के दिनों में तनाव में रहे ईरान के साथ संबंधों को फिर से स्थापित करने का प्रयास करने वाली एक ऐतिहासिक घटना है।
- तालिबान तथा अफगान सुरक्षा बलों के बीच अफगानिस्तान में गृहयुद्ध के बढ़ने के बीच एक महीने में विदेशमंत्री की यह दूसरी यात्रा हो रही है।
प्रमुख बिंदु:
- भारत के लिये ईरान का महत्त्व:
- भू-रणनीतिक पहुँच: भारत, ईरान को चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भू-आबद्ध अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुँचने की कुंजी के रूप में देखता है।
- ईरान की भौगोलिक स्थिति विशेष रूप से मध्य एशिया के लिये, जो प्राकृतिक संसाधनों का एक समृद्ध भंडार है, भारत की भू-राजनीतिक पहुँच के लिये सर्वोपरि है।
- इसी प्रकार अफगानिस्तान में भारत की पहुँच के लिये ईरान महत्त्वपूर्ण है, जिसमें भारत के महत्त्वपूर्ण रणनीतिक और सुरक्षा हित शामिल हैं।
- इसके अलावा, भारत चाबहार बंदरगाह का विकास पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान के साथ व्यापार करने में किये जाने वाली बाधाओं को दूर करने के लिये कर रहा है।
- ऊर्जा सुरक्षा: ईरान, हाइड्रोकार्बन के सबसे संपन्न देशों में से एक और भारत, ऊर्जा की आवश्यकता के साथ तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देशों में से एक ऐसी परिस्थितियाँ दोनों देशों को प्राकृतिक भागीदार बनाते हैं।
- भू-रणनीतिक पहुँच: भारत, ईरान को चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भू-आबद्ध अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुँचने की कुंजी के रूप में देखता है।
- यात्रा का महत्त्व:
- भारत-ईरान संबंधों में संघर्ष के कारण:
- भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान से तेल आयात रद्द कर दिया।
- चाबहार बंदरगाह में धीमी प्रगति।
- फरजाद-बी गैस फील्ड को लेकर तनाव।
- पिछले कुछ वर्षों में ईरान द्वारा कश्मीर पर की गई नकारात्मक टिप्पणी।
- अफगानिस्तान से उत्पन्न सुरक्षा चिंताएँ: अफगानिस्तान में तेज़ी से विकास के बीच यह दौरा हुआ है, जब अमेरिका ने सैनिकों की वापसी पूरी कर ली है और तालिबान ने अफगान शहरों पर अपने हमले बढ़ा दिये हैं।
- तालिबान का तेज़ी से बढ़ना भारत और ईरान दोनों के लिये चिंता का विषय है।
- इस संदर्भ और साझा हितों को देखते हुए, भारत और ईरान के लिये विशेष रूप से अफगानिस्तान पर अधिक निकटता से सहयोग करना आवश्यक है।
- भारत-ईरान संबंधों में संघर्ष के कारण:
- संबद्ध चुनौतियाँ:
- अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में भारत का बहिष्कार: एक और "ट्रोइका प्लस" बैठक, अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया पर यू.एस.-रूस-चीन-पाकिस्तान समूह, दोहा में आयोजित होने जा रहा है।
- हालाँकि, भारत और ईरान, जो दो क्षेत्रीय शक्तियाँ हैं, को बाहर रखा जा रहा है।
- अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में भारत का बहिष्कार: एक और "ट्रोइका प्लस" बैठक, अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया पर यू.एस.-रूस-चीन-पाकिस्तान समूह, दोहा में आयोजित होने जा रहा है।
- ईरान पर लगातार प्रतिबंध: ईरान पर डोनाल्ड ट्रम्प की नीति को उलटने के अभियान के वादे के बावजूद, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन के प्रशासन ने वर्ष 2017-2018 में लगाये गये अधिकांश अतिरिक्त प्रतिबंधों को वापस लेना शेष है।
आगे की राह:
- भारत ने चाबहार बंदरगाह को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे के ढाँचे में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है।
- इस संदर्भ में, चाबहार बंदरगाह के संयुक्त उपयोग पर भारत-उज्बेकिस्तान-ईरान-अफगानिस्तान चतुर्भुज कार्य समूह का गठन एक स्वागत योग्य कदम है।
- भारत को एक तरफ ईरान के साथ और दूसरी तरफ सऊदी अरब तथा इज़रायल जैसे अपने सहयोगियों के साथ-साथ अमेरिका के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता है।