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भारतीय राजव्यवस्था

जम्मू और कश्मीर में परिसीमन

  • 23 Jun 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

जम्मू और कश्मीर में परिसीमन, निर्वाचन आयोग, अनुच्छेद 370

मेन्स के लिये 

परिसीमन आयोग और जम्मू-कश्मीर में परिसीमन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जम्मू और कश्मीर (J & K) में परिसीमन अभ्यास शुरू हुआ है।

  • परिसीमन अभ्यास का पूरा होना केंद्रशासित प्रदेश (Union Territory- UT) में राजनीतिक प्रक्रिया को चिह्नित करेगा जो जून 2018 से केंद्र के शासन के अधीन है।

Jammu-Kashmir

प्रमुख बिंदु

परिसीमन:

  • निर्वाचन आयोग के अनुसार, किसी देश या एक विधायी निकाय वाले प्रांत में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों (विधानसभा या लोकसभा सीट) की सीमाओं को तय करने या फिर से परिभाषित करने का कार्य परिसीमन है।
  • परिसीमन अभ्यास (Delimitation Exercise) एक स्वतंत्र उच्च-शक्ति वाले पैनल द्वारा किया जाता है जिसे परिसीमन आयोग के रूप में जाना जाता है, जिसके आदेशों में कानून का बल होता है और किसी भी न्यायालय द्वारा इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
  • किसी निर्वाचन क्षेत्र के क्षेत्रफल को उसकी जनसंख्या के आकार (पिछली जनगणना) के आधार पर फिर से परिभाषित करने के लिये वर्षों से अभ्यास किया जाता रहा है।
  • एक निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को बदलने के अलावा इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप राज्य में सीटों की संख्या में भी परिवर्तन हो सकता है।
  • संविधान के अनुसार, इसमें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिये विधानसभा सीटों का आरक्षण भी शामिल है।

उद्देश्य:

  • परिसीमन का उद्देश्य समय के साथ जनसंख्या में हुए बदलाव के बाद भी सभी नागरिकों के लिये सामान प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना है। जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का उचित विभाजन करना जिससे प्रत्येक वर्ग के नागरिकों को प्रतिनिधित्व का समान अवसर प्रदान किया जा सके।

परिसीमन के लिये संवैधानिक आधार:

  • प्रत्येक जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है।
  • अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को भी प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
  • एक बार अधिनियम लागू होने के बाद केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है।
  • हालाँकि पहला परिसीमन अभ्यास राष्ट्रपति द्वारा (निर्वाचन आयोग की मदद से) 1950-51 में किया गया था।
    • परिसीमन आयोग का गठबंधन अधिनियम, 1952 में अधिनियमित था।
  • 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के आधार पर चार बार 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है।
    • वर्ष 1981 और वर्ष 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं किया गया।

परिसीमन आयोग:

  • परिसीमन आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है और यह भारतीय निर्वाचन आयोग के सहयोग से काम करता है।
  • परिसीमन आयोग की संरचना:
    • सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
    • मुख्य चुनाव आयुक्त
    • संबंधित राज्य चुनाव आयुक्त।

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन:

  • अतीत में जम्मू-कश्मीर में परिसीमन अभ्यास क्षेत्र की विशेष स्थिति के कारण देश के बाकी हिस्सों से थोड़ा अलग रहा है।
  • लोकसभा सीटों का परिसीमन तब जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान द्वारा शासित था, लेकिन विधानसभा सीटों का परिसीमन जम्मू-कश्मीर संविधान और जम्मू-कश्मीर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1957 द्वारा अलग से शासित किया गया था।
  • हालाँकि जम्मू-कश्मीर ने अपना विशेष दर्जा खो दिया और 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के तहत अपनी विशेष स्थिति को निरस्त करने के बाद दो केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में विभाजित हो गया।
  • इसके बाद 6 मार्च, 2020 को केंद्रशासित प्रदेश में विधानसभा और संसद की सीटों को बनाने के लिये एक विशेष परिसीमन आयोग का गठन किया गया था।

परिसीमन के मुद्दे:

  • जो राज्य जनसंख्या नियंत्रण में कम रुचि लेते हैं उन्हें संसद में अधिक संख्या में सीटें मिल सकती हैं। परिवार नियोजन को बढ़ावा देने वाले दक्षिणी राज्यों को अपनी सीटें कम होने की संभावना का सामना करना पड़ा।
  • वर्ष 2002-08 तक परिसीमन जनगणना 2001 के आधार पर की गई थी लेकिन वर्ष 1971 की जनगणना के अनुसार विधानसभाओं और संसद में तय की गई सीटों की कुल संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया था।
  • संविधान ने लोकसभा एवं राज्यसभा सीटों की संख्या को क्रमशः 550 तथा 250 तक सीमित कर दिया है और बढ़ती जनसंख्या का प्रतिनिधित्व एक ही प्रतिनिधि द्वारा किया जा रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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