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शासन व्यवस्था

पार्श्व प्रवेश/लेटरल एंट्री सुधार

  • 22 Mar 2021
  • 11 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में पार्श्व प्रवेश/लेटरल एंट्री सुधार योजना की चुनौतियों और अवसरों तथा इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

हाल ही में लेटरल एंट्री सुधार योजना के तहत विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिव स्तर के पदों पर आठ पेशेवरों की भर्ती की गई। लेटरल एंट्री का अर्थ है जब निजी क्षेत्र के कर्मियों को सरकार के किसी प्रशासनिक पद के लिये चुना जाता है, परंतु यह चयन नौकरशाही व्यवस्था के तहत नहीं होता है।

लेटरल एंट्री की आवश्यकता इसलिये है क्योंकि वर्तमान समय में प्रशासनिक मामलों के शीर्ष पदों पर अत्यधिक कुशल और प्रेरक व्यक्तियों की आवश्यकता है, जिसके बिना सार्वजनिक सेवा वितरण तंत्र सुचारु रूप से काम नहीं करता है।

हालाँकि लेटरल एंट्री की सफलता पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करती है कि इस व्यवस्था को कैसे स्थापित किया गया है।

प्रशासकों की स्थायी प्रणाली:

  • स्थायी प्रणाली में IAS अधिकारी 17 वर्ष की सेवा के बाद संयुक्त सचिव स्तर पर पदोन्नत हो जाते हैं और दस वर्ष तक उस स्तर पर बने रहते हैं।
  • संयुक्त सचिव भारत सरकार में वरिष्ठ प्रबंधन के स्तर पर एक महत्त्वपूर्ण पद होता है और वे नीति निर्धारण के साथ-साथ सौंपे गए विभाग के लिये विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के कार्यान्वयन का नेतृत्व करते हैं।
  • संयुक्त सचिव स्तर का पद आमतौर पर संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से चुने गए अधिकारियों द्वारा भरा जाता है।
  • IAS और स्थायी प्रणाली सख्ती से वरिष्ठता प्रक्रिया से संबंधित है अर्थात् किसी को समय से पहले पदोन्नत नहीं किया जा सकता है।
  • इस कारण संयुक्त सचिव की औसत आयु लगभग 45 वर्ष होती है।

लेटरल एंट्री के लाभ:

  • विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता: वर्तमान में शासन व्यवस्था विशेष कौशल की आवश्यकता के साथ अधिक जटिल होती जा रही है। उदाहरण- हमारे जीवन में डेटा के प्रभुत्व की बढ़ती पैठ।
    • सामान्यतः अधिकारियों से हमेशा विशेष ज्ञान के साथ अद्यतन रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
    • इसलिये विशेष कार्यक्षेत्र में विशेष ज्ञान वाले लोगों द्वारा वर्तमान प्रशासनिक चुनौतियों की जटिलता का मार्गदर्शन लिए जाने की आवश्यकता है।
  • कमी पूरी करना: कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के आँकड़ों के अनुसार, लगभग 1500 आईएएस अधिकारियों की कमी है। लेटरल एंट्री इस कमी को पूरा करने में मदद कर सकती है।
  • कार्य संस्कृति में बदलाव लाना: लेटरल एंट्री के माध्यम से सरकारी क्षेत्र की कार्य-संस्कृति के अंतर्गत नौकरशाही संस्कृति में परिवर्तन लाने में मदद मिलेगी। नौकरशाही संस्कृति की आलोचना लालफीताशाही, ‘रूल-बुक’ नौकरशाही और यथास्थितिवाद के लिये की जाती है।
    • लेटरल एंट्री से सरकारी क्षेत्र में अर्थव्यवस्था, दक्षता और प्रभावशीलता के मूल्यों में वृद्धि के साथ -साथ सरकारी क्षेत्र में प्रदर्शनकारी संस्कृति के निर्माण में मदद मिलेगी।
  • सहभागितापूर्ण शासन: वर्तमान में शासन व्यवस्था अधिक सहभागी और बहुआयामी प्रयास बन कर उभर रही है। इस संदर्भ में लेटरल एंट्री निजी और गैर-लाभकारी क्षेत्र के हितधारकों को शासन प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करती है।

लेटरल एंट्री के विरोध में तर्क:

  • आउटसोर्सिंग विशेषज्ञता: विशेषज्ञता लाने और निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा होने के बीच एक अंतर है।
    • विशेषज्ञता लाने के लिये सरकार को निजी क्षेत्र के कर्मियों को रखने की आवश्यकता नहीं है। लगभग हर मंत्रालय द्वारा  उपलब्ध विशेषज्ञता का उपयोग किया जाता है। जैसे -विशेषज्ञ समितियाँ, परामर्शदाता, थिंक टैंक संलग्नक आदि।
  • निर्णय लेने की बोझिल प्रक्रिया: लेटरल एंट्री की सफलता के लिये व्यवस्था की समझ और स्थायी रूप से कार्य करने की क्षमता की आवश्यकता होती है। इसके लिये कोई प्रशिक्षण प्रदान नहीं किया जाता है। अतः इस कारण निर्णयन प्रक्रिया बोझिल बनती है और समस्याओं का समय से समाधान नहीं हो पाता है।
    • पुराने समय में पार्श्व प्रवेशकों ने लंबे समय तक सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत विभिन्न स्तरों पर सेवा करते हुए अत्यधिक प्रभाव डाला है।
  • लाभ का उद्देश्य बनाम सार्वजनिक सेवा: सरकार का निजी क्षेत्र से संबंधित दृष्टिकोण लाभ आधारित है परंतु इसके अन्य उद्देश्य सार्वजनिक सेवाओं से संबंधित हैं।
    • यह भी एक आधारभूत संक्रमणीय अवस्था है, जिसमें एक निजी क्षेत्र के व्यक्ति को सरकारी कार्य के दौरान रहना पड़ता है।
  • हितों का टकराव: निजी क्षेत्र के व्यक्तियों को प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किये जाने से हितों के टकराव का मुद्दा उत्पन्न होता है।
    • इस मुद्दे को संबोधित करने के लिये निजी क्षेत्रों से प्रवेश करने वालों हेतु एक कठोर संहिता की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हितों का टकराव जनता की भलाई के लिये हानिकारक नहीं है।

आगे की राह:

  • उद्देश्य संबंधी मानदंड निर्धारित करना: प्रत्येक मंत्रालय में कई संयुक्त सचिव होते हैं जो विभिन्न विभागों को संभालते हैं। यदि पार्श्व प्रवेशकों को एक महत्त्वहीन पोर्टफोलियो सौंपा गया, तो संभावना है कि वे इससे प्रेरित नहीं होंगे।
    • हाल ही में लेटरल एंट्री के तहत चुने गए आठ संयुक्त सचिवों के पास महत्त्वपूर्ण पोर्टफोलियो न होने के कारण एक चयनित व्यक्ति पहले ही पदभार छोड़ चुका है।
    • इस प्रकार कुशलता, गुण और एक विशेष भूमिका का लाभ उठाने के लिये निष्पक्ष रूप से निर्णय लिये जाने चाहिये।
  • आयु संबंधी शर्तों में ढील: संयुक्त सचिव स्तर पर बाहर से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा को आकर्षित करने के लिये लेटरल एंट्री संबंधी शर्तों को शिथिल करने की आवश्यकता है ताकि 35 वर्ष की आयु के व्यक्ति पात्र हो सकें।
    • यदि अर्थशास्त्रियों की पिछली पीढ़ी में लेटरल एंट्री व्यवस्था को देखा जाए तो इसमें बहुत अधिक लचीलापन था।
    • मोंटेक सिंह अहलूवालिया, बिमल जालान और विजय केलकर अपनी आयु के 30 के दशक के मध्य में संयुक्त सचिव के पद पर थे और 40 के दशक के अंत या 50 वर्ष की अवस्था में वह सचिव के पद पर थे।
    • यही कारण है कि उन्होंने विदेश में आकर्षक नौकरियों को छोड़ दिया।
  • पारदर्शी प्रक्रिया की आवश्यकता: इस योजना की सफलता के लिये उचित तरीके से सही लोगों का चयन करने हेतु पारदर्शिता का होना आवश्यक है।
    • संघ लोक सेवा आयोग की संवैधानिक भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि यह चयन की पूरी प्रक्रिया को वैधता प्रदान करेगा।
  • पार्श्व प्रवेशकों का प्रशिक्षण: निजी क्षेत्र से सिविल सेवाओं में प्रवेश करने वालों के लिये एक गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया जाना आवश्यक है जो उन्हें सरकार में काम की जटिल प्रकृति को समझने में मदद करेगा।

निष्कर्ष:

किसी भी क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा हेतु लेटरल एंट्री एक अच्छा उपाय है। लेकिन लेटरल एंट्री संबंधी शर्तों, नौकरी के असाइनमेंट, कर्मियों की संख्या और व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव हेतु एक कार्यबल के गठन के लिये प्रशिक्षण पर गंभीरता से  विचार करने की आवश्यकता है। इसके अलावा स्थायी प्रणाली में सुधार (विशेष रूप से इसका वरिष्ठता सिद्धांत) समग्र प्रशासनिक सुधारों हेतु एक आवश्यक शर्त है।

अभ्यास प्रश्न: प्रशासकों की स्थायी प्रणाली में लेटरल एंट्री को सक्षम बनाना भारत में प्रशासनिक सुधारों की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

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