जैव विविधता और पर्यावरण
ग्लासगो ग्लेशियर: अंटार्कटिका
प्रिलिम्स के लिये:ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन, यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज, स्टॉकहोम सम्मेलन, विश्व जलवायु सम्मेलन, रियो शिखर सम्मेलन, ग्रीन क्लाइमेट फंड मेन्स के लिये:ग्लोबल वार्मिंग के विनाशकारी प्रभाव एवं पर्यावरणीय संरक्षण में COP का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंटार्कटिका में 100 किमी. लंबा बर्फ का पिंड जो तेज़ी से पिघल रहा है, को औपचारिक रूप से ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन के बाद ग्लासगो ग्लेशियर नाम दिया गया।
- यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के COP का 26वाँ सत्र ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
- शोध: इंग्लैंड में लीड्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के गेट्ज़ बेसिन में ग्लेशियरों की एक शृंखला का अध्ययन किया है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 1994 और 2018 के बीच पश्चिम अंटार्कटिका के गेट्ज़ बेसिन में 14 ग्लेशियरों की मोटाई औसतन 25% कम हो गई है। पिछले 25 वर्षों में इस क्षेत्र से 315 गीगाटन बर्फ पिघल गई जो वैश्विक समुद्र के स्तर में वृद्धि में योगदान दे रही है।
- गेट्ज़ बेसिन अंटार्कटिका के सबसे बड़े आइस शेल्फ का हिस्सा है। शेल्फ अधिक परिवर्तनशील समुद्री बल के अधीन होता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जहाँ अन्य अंटार्कटिक शेल्फ की तुलना में अपेक्षाकृत गर्म गहरे समुद्र का पानी ग्लेशियरों को पिघला देता है।
- अन्य ग्लेशियरों के नाम: आठ नए नामित ग्लेशियर निम्नलिखित पर आधारित हैं:
- स्टॉकहोम सम्मेलन (1972): स्टॉकहोम सम्मेलन के प्रमुख परिणामों में से एक संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का निर्माण था।
- विश्व जलवायु सम्मेलन, जिनेवा (1979): विश्व जलवायु सम्मेलन, जिसे अब आमतौर पर प्रथम विश्व जलवायु सम्मेलन कहा जाता है, जिनेवा में आयोजित किया गया था।
- रियो शिखर सम्मेलन (1992): इसने एजेंडा 21 नामक विकास प्रथाओं की एक सूची की सिफारिश की। इसने सतत् विकास की अवधारणा को पारिस्थितिक ज़िम्मेदारी के साथ संयुक्त आर्थिक विकास से जोड़ा।
- COP-1 (बर्लिन, जर्मनी, 1995): जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (COP-1) के लिये COP-1 का आयोजन वर्ष 1995 में बर्लिन में किया गया।
- क्योटो प्रोटोकॉल (1997): क्योटो में विकसित देश वर्ष 2008 और 2012 के बीच वर्ष 1990 के स्तर से नीचे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 5.2% की कमी के सामूहिक लक्ष्य पर सहमत हुए।
- COP-13 (बाली, इंडोनेशिया, 2007): पार्टियों ने बाली रोडमैप और बाली कार्य योजना पर सहमति व्यक्त की, जिसने वर्ष 2012 के बाद के परिणाम की ओर अग्रसर किया।
- COP-21 (पेरिस, 2015): वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक समय से 2.0C से नीचे रखना और उसे 1.5C तक और भी अधिक सीमित करने का प्रयास करना।
- इसके लिये विकसित देशों को वर्ष 2020 के बाद भी वार्षिक रूप से 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की फंडिंग संबंधी प्रतिबद्धता बनाए रखने की आवश्यकता है।
- इंचियोन: ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) दक्षिण कोरिया के इंचियोन में स्थित है।
- महत्त्व: पिछले 40 वर्षों में उपग्रहों द्वारा हिमशैल के आकार में वृद्धि होने की घटनाओं, ग्लेशियरों के प्रवाह में परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के विनाशकारी प्रभाव के कारण बर्फ को तेज़ी से पिघलते देखा गया है।
- प्रमुख जलवायु संधियों, सम्मेलनों और रिपोर्टों के अतिरिक्त ग्लेशियरों का नामकरण पिछले 42 वर्षों में ‘जलवायु परिवर्तन विज्ञान एवं नीति पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग’ का जश्न मनाने का एक शानदार तरीका रहा है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ऊर्जा ट्रांज़िशन हेतु इटली-भारत रणनीतिक साझेदारी
प्रिलिम्स के लिये:स्मार्ट सिटीज़, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन मेन्स के लिये:इटली-भारत संबंध, ऊर्जा ट्रांज़िशन हेतु किये जा रहे प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आयोजित एक द्विपक्षीय बैठक में भारत और इटली ने ऊर्जा ट्रांज़िशन के क्षेत्र में ‘इटली-भारत रणनीतिक साझेदारी’ पर संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया।
- नवंबर 2020 में भारत और इटली (2020-2024) के बीच साझेदारी हेतु कार्य योजना को अपनाने के बाद से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
प्रमुख बिंदु
- संयुक्त कार्य समूह:
- सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों का पता लगाने हेतु संयुक्त कार्य समूह निम्नलिखित पर विचार करेगा:
- स्मार्ट सिटीज़; गतिशीलता; स्मार्ट-ग्रिड, बिजली वितरण और भंडारण समाधान।
- गैस परिवहन और प्राकृतिक गैस।
- एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन (वेस्ट-टू-वेल्थ)।
- हरित ऊर्जा (हरित हाइड्रोजन; संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) और तरल प्राकृतिक गैस (LNG); जैव-मीथेन; जैव-रिफाइनरी; सेकंड-जनरेशन जैव-इथेनॉल; अरंडी का तेल; जैव-तेल-अपशिष्ट से ईंधन)।
- संयुक्त कार्य समूह की स्थापना अक्तूबर 2017 में दिल्ली में हस्ताक्षरित ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग पर समझौता ज्ञापन द्वारा की गई थी।
- सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों का पता लगाने हेतु संयुक्त कार्य समूह निम्नलिखित पर विचार करेगा:
- ‘ग्रीन कॉरिडोर’ परियोजना:
- वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु भारत में एक बड़ी ‘ग्रीन कॉरिडोर’ परियोजना शुरू करने के लिये दोनों देशों द्वारा विचार किया जा रहा है।
- ‘ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर’ परियोजनाओं का उद्देश्य नवीकरणीय स्रोतों जैसे- सौर और पवन से उत्पादित बिजली को ग्रिड में पारंपरिक बिजली स्टेशनों के साथ सिंक्रनाइज़ करना है।
- वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु भारत में एक बड़ी ‘ग्रीन कॉरिडोर’ परियोजना शुरू करने के लिये दोनों देशों द्वारा विचार किया जा रहा है।
- निवेश:
- ऊर्जा संक्रमण से संबंधित क्षेत्रों में भारतीय और इतालवी कंपनियों के संयुक्त निवेश को प्रोत्साहित करना।
- सूचना साझाकरण:
- दोनों देश विशेष रूप से नीति और नियामक ढाँचे के क्षेत्र में उपयोगी जानकारी और अनुभव साझा करेंगे।
- दोनों देशों के सहयोग में स्वच्छ और व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य ईंधन/प्रौद्योगिकियों के प्रति ट्रांज़िशन को सुविधाजनक बनाने के लिये संभावित साधनों को शामिल करना, दीर्घकालिक ग्रिड योजना बनाना, नवीकरणीय ऊर्जा और दक्षता उपायों के लिये योजनाओं को प्रोत्साहित करना, साथ ही स्वच्छ ऊर्जा ट्रांज़िशन में तेज़ी लाने हेतु वित्तीय साधनों की व्यवस्था करना शामिल है।
भारत के लिये इटली का महत्त्व:
- वर्ष 2021 भारत और इटली के बीच राजनयिक संबंधों की 73वीं वर्षगाँठ का वर्ष है।
- भारत को हाल ही में इटली ने व्यापार के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये शीर्ष पाँच प्राथमिकता वाले देशों में से एक के रूप में मान्यता दी है।
- इटली भारत के भू-राजनीतिक और आर्थिक दोनों प्रकार के महत्त्व को स्वीकार करता है तथा अच्छे राजनयिक संबंधों एवं आर्थिक आदान-प्रदान के आधार पर अपने संबंधों को एक नई ऊँचाई पर ले जाने के लिये सक्रिय रूप से प्रयास कर रहा है।
- संबंधों के आर्थिक महत्त्व को इस बात से समझा जा सकता है कि इटली विश्व की आठवीं सबसे बड़ी और यूरोज़ोन में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- यह विश्व का छठा सबसे बड़ा विनिर्माणकर्त्ता देश भी है, जिसमें विभिन्न औद्योगिक विशिष्टता वाले छोटे और मध्यम उद्यमों का वर्चस्व है।
- दूसरी ओर, भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत में काम कर रही 600 से अधिक इतालवी कंपनियों के लिये एक बड़ा बाज़ार भी है।
- इटली ने मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR), वासेनार व्यवस्था और ऑस्ट्रेलिया समूह जैसे निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं के लिये भारत की सदस्यता का समर्थन किया है।
- ब्रिटेन और नीदरलैंड के बाद अनुमानित 1,80,000 लोगों के साथ इटली यूरोपीय संघ में तीसरे सबसे बड़े भारतीय समुदाय की मेज़बानी करता है। भारतीय श्रम विशेष रूप से कृषि और डेयरी उद्योग में संलग्न है।
- इटली, यूरोपीय संघ का हिस्सा होने के नाते ब्रेक्जिट के बाद यूरोप में भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण भागीदार साबित हो सकता है और भारतीय कंपनियों के लिये यूरोप में काम करने हेतु एक अनुकूल आधार प्रदान कर सकता है।
- इंडो-पैसिफिक, एक तरफ जहाँ अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार के लिये अग्रणी मार्ग बन रहा है, वहीं दूसरी ओर भूमध्य सागर एशिया से आने वाले कार्गो जहाज़ों के आगमन का प्राकृतिक बिंदु है।
- दोनों क्षेत्रों में संयुक्त रूप से कार्य करने का अर्थ होगा- लोकतंत्र, मुक्त व्यापार, सुरक्षा और कानून के शासन जैसे मूल्यों को बढ़ावा देना, जो भारत व इटली के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को दर्शाता है, जिसके परिणाम योजना और नीति निर्माण के रूप में सामने आते हैं।
- वर्ष 2021 और 2023 में इटली व भारत क्रमशः जी-20 की अध्यक्षता करेंगे, जो कि कोविड-19 महामारी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था तथा अंतर-राज्य संबंधों को बहाल करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- हाल ही में इटली अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में शामिल हुआ है।
स्रोत: पीआईबी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
18वाँ भारत-आसियान शिखर सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:भारत-आसियान शिखर सम्मेलन, एक्ट ईस्ट नीति, ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति मेन्स के लिये:भारत-आसियान मैत्री वर्ष का महत्त्व एवं संभावनाएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने आसियान के वर्तमान अध्यक्ष ब्रुनेई के आमंत्रण पर 18वें भारत-आसियान शिखर सम्मेलन में भाग लिया।
- सभी राजनेताओं ने वर्ष 2022 को ‘भारत-आसियान मैत्री वर्ष’ के रूप में घोषित किया।
- आसियान-भारत शिखर सम्मेलन प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है और यह भारत व आसियान को उच्चतम स्तर पर जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।
प्रमुख बिंदु
- एक्ट ईस्ट पॉलिसी में आसियान:
भारत की एक्ट ईस्ट नीति एवं व्यापक इंडो-पैसिफिक विज़न के लिये भारत के दृष्टिकोण में आसियान की केंद्रीयता को रेखांकित किया गया।
- ‘हिंद-प्रशांत के लिये आसियान आउटलुक’ और भारत की हिंद-प्रशांत महासागर पहल (Indo-Pacific Oceans Initiative:IPOI) के बीच सामंजस्य पर पूर्ण भरोसा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी और आसियान के राजनेताओं ने इस क्षेत्र में शांति, स्थिरता एवं समृद्धि के लिये सहयोग पर ‘भारत-आसियान संयुक्त वक्तव्य’ के अनुमोदन का स्वागत किया।
- हाल ही में भारत ने 16वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को भी संबोधित किया, जहाँ उसने एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में आसियान केंद्रीयता आधारित भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ का स्वागत किया गया।
- भारत-आसियान कनेक्टिविटी:
- आसियान देशों और भारत के बीच अधिक-से-अधिक लोगों तक भौतिक एवं डिजिटल कनेक्टिविटी के महत्त्व को भी रेखांकित किया गया।
- भारत ने भारत-आसियान सांस्कृतिक संपर्क को और मज़बूत करने के लिये आसियान सांस्कृतिक विरासत सूची की स्थापना हेतु अपने समर्थन की घोषणा की।
- व्यापार और निवेश:
- कोविड के बाद आर्थिक सुधार के लिये आपूर्ति शृंखला के विविधीकरण और लचीलेपन के महत्त्व के संबंध में भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को संशोधित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।
- नियम-आधारित आदेश:
- दक्षिण चीन सागर और आतंकवाद सहित साझा हित और गंभीर चिंता वाले क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) के प्रावधानों को बनाए रखने सहित इस क्षेत्र में नियम-आधारित आदेश को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
- कोविड-19:
- इस क्षेत्र में महामारी के खिलाफ लड़ाई में भारत के अथक प्रयासों पर प्रकाश डाला गया और साथ ही इस दिशा में आसियान की पहलों को आवश्यक समर्थन प्रदान करने की बात कही।
- भारत ने म्याँमार के लिये आसियान की मानवीय पहल हेतु 200,000 अमेरिकी डॉलर और आसियान के कोविड-19 रिस्पांस फंड हेतु 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की चिकित्सा सामग्री का योगदान दिया है।
- इस क्षेत्र में महामारी के खिलाफ लड़ाई में भारत के अथक प्रयासों पर प्रकाश डाला गया और साथ ही इस दिशा में आसियान की पहलों को आवश्यक समर्थन प्रदान करने की बात कही।
भारत-आसियान और चीन:
- परंपरागत रूप से भारत-आसियान संबंधों का आधार साझा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जड़ों के कारण व्यापार एवं व्यक्तियों के बीच संबंध रहा है, अभिसरण का एक और हालिया व ज़रूरी क्षेत्र चीन के बढ़ते प्रभुत्त्व को संतुलित करना है।
- भारत और आसियान दोनों का लक्ष्य चीन की आक्रामक नीतियों के विपरीत क्षेत्र में शांतिपूर्ण विकास के लिये एक नियम-आधारित सुरक्षा ढाँचा स्थापित करना है।
- भारत की तरह वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और ब्रुनेई जैसे कई आसियान सदस्यों का चीन के साथ क्षेत्रीय विवाद है, जो कि चीन के साथ संबंधों का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- भारत ने वर्ष 2014 में अपने पिछले दृष्टिकोण की तुलना में अधिक रणनीतिक दृष्टिकोण के साथ न केवल दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ बल्कि प्रशांत क्षेत्र में भी जुड़ाव पर ध्यान केंद्रित करते हुए ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति को एक्ट ईस्ट में फिर से जीवंत कर दिया।
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन (आसियान)
- परिचय:
- यह एक क्षेत्रीय समूह है जो आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देता है।
- इसकी स्थापना अगस्त 1967 में बैंकॉक, थाईलैंड में आसियान के संस्थापकों, अर्थात् इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर व थाईलैंड द्वारा आसियान घोषणा (बैंकॉक घोषणा) पर हस्ताक्षर के साथ की गई।
- इसके सदस्य राज्यों के अंग्रेज़ी नामों के वर्णानुक्रम के आधार पर इसकी अध्यक्षता वार्षिक रूप से प्रदान की जाती है।
- आसियान देशों की कुल आबादी 650 मिलियन है और संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह लगभग 86.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार के साथ भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- सदस्य:
- आसियान दस दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों- ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम का एक संगठन है।
हिंद-प्रशांत के लिये आसियान का दृष्टिकोण:
- यह इस क्षेत्र में सहयोग हेतु मार्गदर्शन करने एवं आसियान की सामुदायिक निर्माण प्रक्रिया को बढ़ाने तथा आसियान के नेतृत्व वाले पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन जैसे मौजूदा तंत्र को और अधिक मज़बूत करने हेतु एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
- इसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्र में शांति, स्थिरता एवं समृद्धि के लिये एक सक्षम वातावरण को बढ़ावा देने में मदद करना, सामान्य चुनौतियों का समाधान करना, नियम-आधारित क्षेत्रीय संरचना को बनाए रखना व घनिष्ठ आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना तथा इस प्रकार आपसी विश्वास को और अधिक मज़बूती प्रदान करना है।
भारत की हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI)
- यह देशों के लिये एक खुली, गैर-संधि आधारित पहल है जो इस क्षेत्र में आम चुनौतियों के सहकारी व सहयोगी समाधान के लिये मिलकर काम करती है।
- IPOI निम्नलिखित सात स्तंभों पर ध्यान केंद्रित करने हेतु मौजूदा क्षेत्रीय संरचना और तंत्र पर आधारित है:
- समुद्री सुरक्षा
- समुद्री पारिस्थितिकी
- समुद्री संसाधन
- क्षमता निर्माण और संसाधन साझाकरण
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शैक्षणिक सहयोग
- व्यापार संपर्क और समुद्री परिवहन
स्रोत: पीआईबी
शासन व्यवस्था
स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिये विश्व बैंक ऋण: मेघालय
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, मेघालय स्वास्थ्य प्रणाली सुदृढ़ीकरण परियोजना मेन्स के लिये:स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और विश्व बैंक ने मेघालय स्वास्थ्य प्रणाली सुदृढ़ीकरण परियोजना के लिये 40 मिलियन अमेरिकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- परिचय:
- संक्रमण से रोकथाम: यह परियोजना भविष्य के विभिन्न प्रकोपों, महामारियों और स्वास्थ्य आपात स्थितियों के लिये अधिक लचीली प्रतिक्रिया हेतु संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण में निवेश करेगी।
- जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन: परियोजना जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन (ठोस और तरल अपशिष्ट दोनों) के लिये समग्र पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार करने हेतु निवेश करेगी।
- इसमें पर्यावरण की रक्षा करते हुए अलगाव (Segregation), कीटाणुशोधन और संग्रह शामिल होगा तथा स्वास्थ्य सेवा एवं रोगी की सुरक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।
- प्रदर्शन-आधारित वित्तपोषण प्रणाली: यह परियोजना एक प्रदर्शन-आधारित वित्तपोषण प्रणाली की ओर बढ़ेगी जहाँ स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) तथा इसकी सहायक कंपनियों के बीच आंतरिक प्रदर्शन समझौते (IPA) के सभी स्तरों पर अधिक जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा।
- आंतरिक प्रदर्शन समझौते विशिष्ट व्यक्तिगत और संगठनात्मक लक्ष्यों के लिये जवाबदेही को परिभाषित करते हैं। यह प्रणाली परिणाम-उन्मुख लक्ष्य स्थापित करता है जो समग्र उद्देश्य के साथ संरेखित होते हैं तथा यह समझौते के लिये औपचारिक हस्ताक्षरित प्रतिबद्धता के पूर्ण होने के साथ समाप्त होता है।
- तालमेल को बढ़ावा देना: यह विभिन्न योजनाओं के बीच तालमेल को बढ़ावा देने और राज्य बीमा एजेंसी की क्षमता बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित करेगा।
- महत्त्व:
- शासन क्षमताओं को बढ़ाता है:
- यह राज्य और इसकी स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रबंधन और शासन क्षमताओं को बढ़ाएगा; राज्य के स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम के डिज़ाइन व कवरेज़ का विस्तार; प्रमाणन तथा बेहतर मानव संसाधन प्रणालियों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार; दवाओं एवं निदान के लिये कुशल पहुँच प्रदान करने में सक्षम है।
- स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम को सुदृढ़ बनाना:
- यह मेघालय के स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम की प्रभावशीलता को मज़बूत करने में मदद करेगा जिसे मेघा स्वास्थ्य बीमा योजना (एमएचआईएस) के रूप में जाना जाता है जो वर्तमान में 56% परिवारों को कवर करती है।
- महिला सशक्तीकरण:
- यह महिलाओं को सामुदायिक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं का बेहतर उपयोग करने में सक्षम बनाएगा।
- शासन क्षमताओं को बढ़ाता है:
विश्व बैंक
- परिचय:
- अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD) तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की स्थापना एक साथ वर्ष 1944 में अमेरिका के न्यू हैम्पशायर में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के दौरान हुई थी।
- अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD) को ही विश्व बैंक के रूप में जाना जाता है।
- विश्व बैंक समूह विकासशील देशों में गरीबी को कम करने और साझा समृद्धि का निर्माण करने वाले स्थायी समाधानों के लिये काम कर रहे पाँच संस्थानों की एक अनूठी वैश्विक साझेदारी है।
- सदस्य:
- 189 देश इसके सदस्य हैं।
- भारत भी एक सदस्य देश है।
- प्रमुख रिपोर्ट:
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (हाल ही में प्रकाशन बंद कर दिया गया)।
- ह्यूमन कैपिटल इंडेक्स।
- वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट।
- पाँच प्रमुख संस्थान
- अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD)
- अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA)
- अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC)
- बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA)
- निवेश विवादों के निपटारे के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICSID)
- भारत इसका सदस्य नहीं है।
स्रोत:पीआईबी
भारतीय राजनीति
एससी/एसटी एक्ट: सर्वोच्च न्यायालय
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय,एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) कानून 1989 के प्रावधान मेन्स के लिये:'विशेष क़ानूनों' से संबंधित आपराधिक मामलों को रद्द करने की सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले का अवलोकन करते हुए पाया कि शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों के पास एससी/एसटी अधिनियम सहित विभिन्न 'विशेष क़ानूनों' के तहत दायर आपराधिक मामलों को रद्द करने की शक्ति है।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कार्यवाही को रद्द करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के पास संविधान के अनुच्छेद 142 या उच्च न्यायालय के आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत निहित शक्तियाँ हैं।
प्रमुख बिंदु
- 'विशेष कानून' के तहत मामलों को रद्द करने की स्थिति:
- जहाँ न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि विचाराधीन अपराध, भले ही एससी/एसटी अधिनियम के अंतर्गत आता है, प्राथमिक रूप से निजी या दीवानी प्रकृति का है, या जहाँ कथित अपराध पीड़ित की जाति के आधार पर नहीं किया गया है, या कानूनी कार्यवाही को जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, न्यायालय कार्यवाही को रद्द करने के लिये अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।
- जब दोनों पक्षों के बीच समझौता/निपटान के आधार पर रद्द करने की प्रार्थना पर विचार करते समय, यदि न्यायालय संतुष्ट हो जाता है कि अधिनियम के अंतर्निहित उद्देश्य का उल्लंघन नहीं किया जाएगा या कम नहीं किया जाएगा, भले ही विवादित अपराध के लिये दंडित न किया जाए।
- अनुच्छेद 142:
- परिचय: यह सर्वोच्च न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है क्योंकि इसमें कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसा आदेश पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है जो उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामले में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक हो।
- रचनात्मक अनुप्रयोग: अनुच्छेद 142 के विकास के प्रारंभिक वर्षों में आम जनता और वकीलों दोनों ने समाज के विभिन्न वंचित वर्गों को पूर्ण न्याय दिलाने या पर्यावरण की रक्षा करने के प्रयासों के लिये सर्वोच्च न्यायालय की सराहना की।
- सर्वोच्च न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड मामले को भी अनुच्छेद 142 से संबंधित बताया था। यह मामला भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों से जुड़ा हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं को संसद या राज्यों की विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों से ऊपर रखते हुए कहा कि पूर्ण न्याय करने के लिये यह संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को भी समाप्त कर सकता है।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ‘बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि अनुच्छेद 142 का उपयोग मौज़ूदा कानून को प्रतिस्थापित करने के लिये नहीं, बल्कि एक विकल्प के तौर पर किया जा सकता है|
- न्यायिक अतिरेक के मामले: हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे कई निर्णय दिये हैं जिनमें उसने उन क्षेत्रों में प्रवेश किया है जो लंबे समय से न्यायपालिका के लिये 'शक्तियों के पृथक्करण' के सिद्धांत के कारण निषिद्ध थे, जो कि संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं। उदाहरण :
- राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध: केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना में केवल राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे शराब की दुकानों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 को लागू करके राज्य राजमार्गों से 500 मीटर की दूरी पर प्रतिबंध लगा दिया।
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482:
- यह धारा उच्च न्यायालय को न्याय सुनिश्चित करने के लिये कोई भी आदेश पारित करने की अनुमति देती है। यह अदालत को निचली अदालत की कार्यवाही को रद्द करने या FIR रद्द करने की शक्ति भी देता है।
- एससी/एसटी अधिनियम:
- एससी/एसटी अधिनियम 1989 को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदायों के सदस्यों के खिलाफ भेदभाव और अत्याचार को रोकने के लिये संसद द्वारा अधिनियमित का एक अधिनियम है।
- यह अधिनियम निराशाजनक वास्तविकता को भी संदर्भित करती है क्योंकि कई उपाय करने के बावजूद अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति उच्च जातियों के हाथों विभिन्न अत्याचारों के अधीन हैं।
- अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध), 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) तथा 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) में उल्लिखित संवैधानिक सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखते हुए अधिनियमित किया गया है, जिसमें सुरक्षा के दोहरे उद्देश्य हैं। यह कमज़ोर समुदायों के सदस्यों के साथ-साथ जाति आधारित अत्याचार के पीड़ितों को राहत और पुनर्वास प्रदान करता है।
- अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संशोधित अधिनियम (2018) में प्रारंभिक जाँच ज़रूरी नहीं है और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति पर अत्याचार के मामलों में FIR दर्ज करने के लिये जाँच अधिकारियों को अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की पूर्व मंजूरी की भी आवश्यकता नहीं है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
वर्ष 2070 तक ‘कार्बन तटस्थता’ का लक्ष्य: भारत
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान मेन्स के लिये:भारत द्वारा निर्धारित ‘कार्बन तटस्थता’ लक्ष्य के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने घोषणा की है कि वह अपने पाँच सूत्री कार्य योजना के हिस्से के रूप में वर्ष 2070 तक ‘कार्बन तटस्थता’ का लक्ष्य प्राप्त कर लेगा, जिसमें वर्ष 2030 तक उत्सर्जन को 50% तक कम करना भी शामिल है।
- भारत ने यह घोषणा ग्लासगो में आयोजित ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़-26’ जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान की है, साथ ही भारत ने विकसित देशों से जलवायु वित्तपोषण के अपने वादे को पूरा करने का भी आग्रह किया है।
- हालाँकि भारत ने अभी तक जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के लिये इन प्रतिबद्धताओं के साथ एक अद्यतित ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (NDCs) प्रस्तुत नहीं किया है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- ‘नेट ज़ीरो’ अथवा कार्बन तटस्थता का आशय ऐसी स्थिति से है, जिसमें किसी देश का कुल उत्सर्जन, वातावरण से अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड के समान होता है,इसमें पेड़ों अथवा जंगलों द्वारा या अत्याधुनिक तकनीकों के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को वातावरण से हटाना शामिल है।
- 70 से अधिक देशों ने सदी के मध्य तक ‘नेट ज़ीरो’ लक्ष्य प्राप्त करने के प्रति प्रतिबद्धता ज़ाहिर है, और इसे पूर्व-औद्योगिक स्तर से वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को पूरा करने के लिये महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।
- भारत का वर्ष 2070 तक ‘नेट ज़ीरो’ प्राप्त करने का लक्ष्य भारत के आलोचकों को चुप कराना है, साथ ही यह अपेक्षा के अनुरूप ही है।
- यहाँ मुख्य बात स्वयं लक्ष्य नहीं है, बल्कि यह तथ्य है कि भारत आखिरकार झुक गया और उसने लक्ष्य निर्धारण का फैसला किया है, जिसे वह काफी समय से रोक रहा था।
- पेरिस समझौते के तहत प्रस्तुत अपनी जलवायु कार्य योजना में भारत ने वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अपनी उत्सर्जन तीव्रता या सकल घरेलू उत्पाद की प्रति इकाई उत्सर्जन को 33% से 35% तक कम करने का वादा किया था।
- भारत के उत्सर्जन को कम करना:
- दुनिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में सबसे कम प्रति व्यक्ति उत्सर्जन है - दुनिया की आबादी का 17% हिस्सा होने के बावजूद कुल का 5% उत्सर्जन।
- विश्व संसाधन संस्थान के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत का कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लगभग 3.3 बिलियन टन था।
- यह वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 4 बिलियन टन से अधिक हो सकता है।
- इसका मतलब यह होगा कि वर्ष 2021 और वर्ष 2030 के बीच भारत 35 से 40 अरब टन के आसपास उत्सर्जन कर सकता है।
- इस प्रकार 1 बिलियन टन की कटौती अगले नौ वर्षों में पूर्ण उत्सर्जन में 2.5% से 3% की ही कमी करेगी।
- भारत के नए नवीकरणीय लक्ष्य:
- वर्ष 2019 में भारत ने घोषणा की कि वह वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा की अपनी स्थापित क्षमता को 450 गीगावाट (GW) तक प्रस्थापित करेगा।
- इस घोषणा से पहले भारत का सार्वजनिक रूप से घोषित लक्ष्य वर्ष 2022 तक 175 GW था।
- पिछले कुछ वर्षों में स्थापित अक्षय क्षमता तेज़ी से बढ़ रही है और 450 गीगावाट से 500 गीगावाट तक की अपनी परिबद्धता के अनुसार इसकी वृद्धि अधिक चुनौतीपूर्ण होने की संभावना नहीं है।
- ऊर्जा मिश्रण में गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा के अनुपात में 50% की वृद्धि इसका एक स्वाभाविक परिणाम है।
- ऊर्जा क्षेत्र में अधिकांश नई क्षमता वृद्धि नवीकरणीय और गैर-जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में की जा रही है।
- हालाँकि भारत पहले यह घोषणा कर चुका है कि उसकी वर्ष 2022 के पश्चात् नए कोयला बिजली संयंत्र शुरू करने की कोई योजना नहीं है।
- भारत का वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म-ईंधन से कुल विद्युत उत्पादन का 40 प्रतिशत उत्पादन हासिल करने का लक्ष्य है।
- वर्ष 2019 में भारत ने घोषणा की कि वह वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा की अपनी स्थापित क्षमता को 450 गीगावाट (GW) तक प्रस्थापित करेगा।
- जलवायु वित्त:
- आवश्यक है कि विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त के माध्यम से भारत के प्रयासों का समर्थन किया जाए। विदेशी पूंजी के बिना रियायती शर्तों पर यह स्थानांतरण जटिल साबित होगा।
- भारत जल्द-से-जल्द 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के जलवायु वित्त की मांग करता है और यह न केवल जलवायु कार्रवाई की निगरानी करेगा, बल्कि जलवायु वित्त भी प्रदान करेगा।
- सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने एक बार फिर जीवनशैली में बदलाव का आह्वान किया है।
- नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु आवश्यक कदम:
- काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरनमेंट एंड वाटर्स इंप्लीकेशंस ऑफ ए नेट-ज़ीरो टारगेट फॉर इंडियाज़ सेक्टोरल एनर्जी ट्रांजिशन एंड क्लाइमेट पॉलिसी के अध्ययन के अनुसार, भारत की कुल स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता को वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य प्राप्त करने के लिये 5,600 गीगावाट से अधिक की आवश्यकता होगी।
- भारत को वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य हासिल करने के लिये विशेष रूप से बिजली उत्पादन हेतु कोयले के उपयोग को वर्ष 2060 तक 99% तक कम करना होगा।
- सभी क्षेत्रों में कच्चे तेल की खपत को वर्ष 2050 तक चरम स्थिति पर पहुँचाने और वर्ष 2050 तथा वर्ष 2070 के बीच 90% तक कम करने की आवश्यकता होगी।
- ग्रीन हाइड्रोजन औद्योगिक क्षेत्र की कुल ऊर्जा आवश्यकता का 19% योगदान कर सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
गंगा उत्सव 2021- द रिवर फेस्टिवल
प्रिलिम्स के लिये:गंगा उत्सव 2021, स्वच्छ गंगा के लिये राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय गंगा परिषद मेन्स के लिये:गंगा संरक्षण और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गंगा उत्सव-द रिवर फेस्टिवल 2021 का 5वाँ संस्करण शुरू हुआ है जो राष्ट्रीय नदी गंगा की महिमा का जश्न मनाता है।
- 4 नवंबर, 2008 को गंगा को भारत की राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया था।
- इस कार्यक्रम में गंगा तरंग पोर्टल एवं गंगा ज्ञान पोर्टल के शुभारंभ के साथ कई अन्य कार्यक्रम भी शामिल होंगे।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- स्वच्छ गंगा के लिये राष्ट्रीय मिशन (NMCG) सार्वजनिक नदी कनेक्शन को मज़बूत करने के लिये हर साल त्योहार मनाता है।
- NMCG 2016 में स्थापित राष्ट्रीय गंगा परिषद का कार्यान्वयन विंग है, जिसने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NRGBA) को स्थानांतरित किया था।
- NMCG को गंगा उत्सव 2021 के पहले दिन गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है, जो एक घंटे में फेसबुक पर अपलोड किये गए सबसे अधिक हस्तलिखित नोट हैं।
- उत्सव के तहत कहानी, लोककथाओं, प्रख्यात हस्तियों के साथ संवाद, प्रश्नोत्तरी, प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा नृत्य तथा संगीत प्रदर्शन, फोटो दीर्घाओं और प्रदर्शनियों के माध्यम से रहस्यमय व सांस्कृतिक नदी गंगा का जश्न मनाया जाता है।
- यह गंगा के पुनरुद्धार में जनभागीदारी (लोगों की भागीदारी) के महत्त्व पर प्रकाश डालता है, जिसमें गंगा नदी के कायाकल्प के लिये हितधारकों की भागीदारी और सार्वजनिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- स्वच्छ गंगा के लिये राष्ट्रीय मिशन (NMCG) सार्वजनिक नदी कनेक्शन को मज़बूत करने के लिये हर साल त्योहार मनाता है।
- महोत्सव के दौरान आयोजित कार्यक्रम:
- सतत् अधिगम और गतिविधि पोर्टल:
- सतत् अधिगम और गतिविधि पोर्टल (CLAP) एक अधिगम पोर्टल है जो बच्चों को साल भर व्यस्त रखने के लिये गतिविधियों, क्विज़, क्रॉसवर्ड, चर्चा मंचों का आयोजन करेगा।
- सभी गतिविधियों का उद्देश्य बच्चों और युवाओं को हमारी नदियों की रक्षा तथा उन्हें बहाल करने के लिये कार्रवाई हेतु संवेदनशील बनाना एवं प्रेरित करना है।
- गंगा मशाल:
- यह गंगा टास्क फोर्स (GTF) के नेतृत्व में एक अभियान है जो गंगा नदी के किनारे 23 स्टेशनों सहित मार्ग की यात्रा करेगा जो स्थानीय लोगों और नेहरू युवा केंद्र संगठन जैसे निकायों तथा गंगा मित्र, गंगा प्रहरी, गंगा दूत जैसे स्वयंसेवी समूहों को संवेदनशील बनाने में मदद करेगा।
- गंगा मित्र, गंगा प्रहरी, गंगा दूत ज़मीनी स्तर पर गठित समर्पित स्वैच्छिक समूह हैं, जिनके संसाधनों का बड़े पैमाने पर उपयोग समुदाय और जनता को जोड़ने के लिये किया जाता है।
- GTF दिसंबर 2020 तक चार साल की अवधि के लिये रक्षा मंत्रालय की मंज़ूरी के साथ गंगा की सेवाओं में तैनात पूर्व सैनिकों की बटालियन की एक इकाई है।
- यह गंगा टास्क फोर्स (GTF) के नेतृत्व में एक अभियान है जो गंगा नदी के किनारे 23 स्टेशनों सहित मार्ग की यात्रा करेगा जो स्थानीय लोगों और नेहरू युवा केंद्र संगठन जैसे निकायों तथा गंगा मित्र, गंगा प्रहरी, गंगा दूत जैसे स्वयंसेवी समूहों को संवेदनशील बनाने में मदद करेगा।
- गंगा क्वेस्ट:
- यह गंगा, नदियों और पर्यावरण पर एक राष्ट्रीय ऑनलाइन प्रश्नोत्तरी है जिसे पहली बार वर्ष 2019 में नमामि गंगे कार्यक्रम को मज़बूत करने के लिये बच्चों व युवाओं को गंगा नदी के प्रति संवेदनशील बनाने हेतु एक शैक्षिक कार्यक्रम के रूप में संकल्पित किया गया था।
- सतत् अधिगम और गतिविधि पोर्टल:
- गंगा नदी के संरक्षण हेतु सरकारी कार्यक्रम:
- गंगा एक्शन प्लान: घरेलू सीवेज के अवरोधन और उपचार द्वारा पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिये यह पहला ‘रिवर एक्शन प्लान’ था
- राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण: इसका गठन वर्ष 2009 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत किया गया था।
- स्वच्छ गंगा कोष: इसे वर्ष 2014 में गंगा की सफाई, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों की स्थापना और नदी की जैविक विविधता के संरक्षण के लिये बनाया गया था।
- भुवन-गंगा वेब एप: यह गंगा नदी में प्रवेश करने वाले प्रदूषण की निगरानी में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
- अपशिष्ट निपटान पर प्रतिबंध: वर्ष 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने गंगा में किसी भीप्रकार के कचरे के निपटान पर प्रतिबंध लगा दिया।
गंगा नदी:
- यह भारत की सबसे लंबी नदी है जो 2,510 किमी. तक पहाड़ों, घाटियों और मैदानों में बहती है और हिंदुओं द्वारा पृथ्वी पर सबसे पवित्र नदी के रूप में पूजनीय है।
- यह हिमालय में गंगोत्री ग्लेशियर के हिम क्षेत्रों में भागीरथी नदी के रूप में निकलती है और अलकनंदा, यमुना, सोन, गुमटी, कोसी तथा घाघरा जैसी अन्य नदियाँ इसमें मिलती हैं।
- गंगा नदी का बेसिन दुनिया के सबसे उपजाऊ और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है जो 1,000,000 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है।
- गंगा नदी डॉल्फिन एक लुप्तप्राय जानवर है जो विशेष रूप से इस नदी में निवास करती है।
- बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले यह बांग्लादेश के सुंदरबन में गंगा डेल्टा का निर्माण करती है।
स्रोत: पीआईबी
जैव विविधता और पर्यावरण
G20 शिखर सम्मेलन और जलवायु परिवर्तन
प्रिलिम्स के लिये:G20 शिखर सम्मेलन, COP26, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष मेन्स के लिये:G20 शिखर सम्मेलन की प्रमुख विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में संपन्न G20 शिखर सम्मेलन में राजनेताओं ने सदी के मध्य तक या उसके आसपास कार्बन तटस्थता के निर्धारित लक्ष्य तक पहुँचने की प्रतिबद्धता जताई।
- उन्होंने रोम घोषणा के प्रस्तावों को अपनाया है (G20 देशों की वर्तमान अध्यक्षता इटली द्वारा की जा रही है)।
- एक अंतिम रिपोर्ट में उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने के लिये ‘सार्थक और प्रभावी’ कार्रवाई का भी आह्वान किया। हालाँकि कोई समयबद्ध समझौता नहीं हुआ।
- इससे पहले G20 जलवायु जोखिम एटलस जारी किया गया था जो G20 देशों में जलवायु परिदृश्य, सूचना, डेटा और जलवायु में भविष्य में परिवर्तन प्रदान करता है।
प्रमुख बिंदु
- घोषणा की मुख्य विशेषताएँ:
- कोयला आधारित संयंत्रों की सहायता को प्रतिबंधित करना: इसमें इस वर्ष (2021) के अंत तक विदेशी अनुसमर्थन प्राप्त कोल आधारित बिजली उत्पादन के वित्तपोषण को रोकने का संकल्प शामिल था।
- COP 26 के लिये रोडमैप: इसने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों से वैश्विक जलवायु परिवर्तन संकट से निपटने के लिये अपनी कार्य योजना बनाने का आग्रह किया।
- यह ग्लासगो (स्कॉटलैंड) में आयोजित आगामी संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP26) के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- वित्तपोषण हेतु पीपीपी मॉडल: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) वैश्विक तापमान वृद्धि को कम करने वाले स्वच्छ, सतत् ऊर्जा स्रोतों में ट्रांज़िशन हेतु आवश्यक वार्षिक निवेश के रूप में खरबों डॉलर प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है।
- भारत द्वारा की गई घोषणा:
- वैक्सीन असमानता को संबोधित करना: दुनिया भर में वैक्सीन असमानता को दूर करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए भारत अगले वर्ष (2022) के अंत तक 5 बिलियन से अधिक वैक्सीन खुराक का उत्पादन करने के लिये तैयार है।
- भारत ने वैक्सीन अनुसंधान, निर्माण और नवाचार पर भी ज़ोर दिया।
- ‘वन अर्थ वन हेल्थ’: ‘वन अर्थ वन हेल्थ’ किसी भी प्रकार की महामारी के विरुद्ध लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में एक सहयोगी दृष्टिकोण साबित हो सकता है।
- लचीली वैश्विक आपूर्ति शृंखला: भारत ने लचीली वैश्विक आपूर्ति शृंखला की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और G20 देशों को भारत को आर्थिक सुधार व आपूर्ति शृंखला विविधीकरण में भागीदार बनाने हेतु आमंत्रित किया।
- वैश्विक न्यूनतम कर के लिये समर्थन: भारत ने वैश्विक वित्तीय ढाँचे को ‘अधिक न्यायपूर्ण और निष्पक्ष’ बनाने के लिये 15 प्रतिशत न्यूनतम कॉर्पोरेट कर के जी-20 के निर्णय की भी सराहना की।
- भारत-प्रशांत रणनीति का स्वागत: भारत ने यूरोपीय संघ की इंडो-पैसिफिक रणनीति और उसमें फ्राँसीसी नेतृत्व का स्वागत किया।
- वैक्सीन असमानता को संबोधित करना: दुनिया भर में वैक्सीन असमानता को दूर करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए भारत अगले वर्ष (2022) के अंत तक 5 बिलियन से अधिक वैक्सीन खुराक का उत्पादन करने के लिये तैयार है।
- संबद्ध चिंताएँ:
- आधे-अधूरे प्रयास: इस व्यक्तव्य में कुछ ठोस कार्रवाइयाँ की गई थीं और शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लिये 2050 की किसी विशेष तारीख का कोई संदर्भ नहीं दिया गया था।
- इसके अलावा इस व्यक्तव्य में पिछले मसौदे में ‘उत्सर्जन को काफी कम करने’ के लक्ष्य के संदर्भों को हटा दिया गया।
- कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का कोई लक्ष्य नहीं: इसने घरेलू स्तर पर कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है, जो चीन और भारत जैसे शीर्ष कार्बन प्रदूषकों के लिये एक स्पष्ट मंज़ूरी है।
- उदाहरण के लिये चीन ने घरेलू कोयला संयंत्रों के निर्माण की अंतिम तिथि निर्धारित नहीं की है।
- कोयला अभी भी चीन का बिजली उत्पादन का मुख्य स्रोत है और चीन तथा भारत दोनों ने घरेलू कोयले की खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर जी-20 घोषणा के प्रयासों का विरोध किया है।
- वैक्सीन पेटेंट छूट को लेकर कोई संकल्प नहीं: इसमें वैक्सीन पेटेंट छूट को लेकर विवाद पर बात नहीं हुई।
- भारत की विकासात्मक अनिवार्यता पर दबाव: अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के जलवायु वार्ताकारों ने पिछले कुछ महीनों में भारत के कई दौरे किये थे, जिसमें भारत के लिये अपने ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ को वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के अपने लक्ष्य को शामिल करने के लिये दबाव डाला गया था।
- आधे-अधूरे प्रयास: इस व्यक्तव्य में कुछ ठोस कार्रवाइयाँ की गई थीं और शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लिये 2050 की किसी विशेष तारीख का कोई संदर्भ नहीं दिया गया था।
G20
- परिचय:
- G20 समूह विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रतिनिधि, यूरोपियन यूनियन एवं 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है।
- G20 समूह के पास स्थायी सचिवालय या मुख्यालय नहीं होता है।
- G20 समूह दुनिया की प्रमुख उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों को एक साथ लाता है। यह वैश्विक व्यापार का 75%, वैश्विक निवेश का 85%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85% तथा विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
- सदस्य:
- G20 समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।