डेली न्यूज़ (02 Mar, 2024)



नीति आयोग की ग्रो रिपोर्ट और पोर्टल

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रो पोर्टल, भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS), कृषि वानिकी उपयुक्तता सूचकांक, कृषि वानिकी, कृषि वानिकी पर उप-मिशन, राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (NAP) 2014, भुवन मंच

मेन्स के लिये:

कृषि वानिकी- महत्त्व और चुनौतियाँ, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

स्रोत: पी. आई. बी.

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) द्वारा एग्रोफोरेस्ट्री (ग्रो) रिपोर्ट और पोर्टल के साथ भारत की बंजर भूमि को हरा-भरा बनाने की शुरुआत गई थी।

ग्रो (GROW) रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • ग्रो रिपोर्ट उद्देश्य:
    • GROW रिपोर्ट का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर (परती) भूमि को दोबारा से विकसित करना और 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाना है।
  • भारत में बंजर भूमि का विस्तार:
    • रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में लगभग 55.76 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र (Total Geographical Area- TGA) का 16.96% है।
    • ये निम्नीकृत भूमि विभिन्न प्राकृतिक और मानव-प्रेरित कारकों के कारण उत्पादकता तथा जैवविविधता में कमी आई है। हालाँकि रिपोर्ट कृषि वानिकी के माध्यम से इन बंजर भूमि को हरा-भरा करने और पुनर्स्थापित करने का सुझाव देती है।

  • समाधान के रूप में कृषि वानिकी:
    • रिपोर्ट कृषि वानिकी के लिये कम उपयोग वाले क्षेत्रों, विशेष रूप से बंजर भूमि के पुनरुद्धार करने के संभावित लाभों को भी रेखांकित करती है।
      • वर्तमान में कृषि वानिकी भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 8.65%, यानी लगभग 28.42 मिलियन हेक्टेयर को कवर करती है और भारत की लगभग 6.18% तथा 4.91% भूमि क्रमशः कृषिवानिकी के लिये अत्यधिक एवं मध्यम रूप से उपयुक्त है।
      • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अनुसार राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना कृषि वानिकी उपयुक्तता के लिये शीर्ष बड़े आकार के राज्य हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर, मणिपुर तथा नगालैंड मध्यम आकार के राज्यों में सर्वोच्च स्थान पर हैं।
    • रिपोर्ट बंजर भूमि में कृषि वानिकी हस्तक्षेप को बढ़ाने के लिये आवश्यक नीति एवं संस्थागत समर्थन की पहचान करती है।
  • नीतिगत ढाँचा:

ग्रो (GROW) पोर्टल क्या है?

  • ग्रो पोर्टल को भुवन प्लेटफॉर्म पर शुरू किया गया है, जो कृषि-वानिकी उपयुक्तता से संबंधित राज्य और ज़िला-स्तरीय डेटा तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करता है।
    • पोर्टल के माध्यम से, उपयोगकर्त्ता भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कृषि वानिकी उपयुक्तता के विस्तृत मानचित्र तथा आकलन करने की सुविधा प्राप्त करते हैं।
  • पोर्टल रिमोट सेंसिंग एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली तकनीक से प्राप्त विषयगत डेटासेट का उपयोग करता है, जो कृषि वानिकी उपयुक्तता को प्रभावित करने वाले कारकों पर व्यापक जानकारी प्रदान करता है।
  • पोर्टल की प्रमुख विशेषताओं में से एक कृषि वानिकी उपयुक्तता सूचकांक (ASI) है, जो राष्ट्रीय स्तर पर कृषि वानिकी हस्तक्षेपों को प्राथमिकता हेतु एक मानकीकृत सूचकांक प्रदर्शित करता है।
  • यह पोर्टल भारत में कृषिवानिकी की वर्तमान सीमा के बारे में जानकारी प्रदान करता है और साथ ही इसके भौगोलिक विस्तार एवं कुल आच्छादन पर प्रकाश भी डालता है।

कृषि-वानिकी क्या है?

  • परिचय:
    • कृषि-वानिकी भूमि उपयोग के प्रबंधन की एक विधि है जिसमें वृक्षों एवं पौधों के साथ-साथ खाद्यान्न के साथ-साथ पशुधन को बढ़ाना भी शामिल है। यह वानिकी को कृषि प्रौद्योगिकी से अंतर-संबंधित कर अधिक धारणीय भूमि-उपयोग प्रणाली बनाता है।
    • कृषि-वानिकी भारतीय कृषि का एक अभिन्न अंग रही है, जो लकड़ी की मांग, ईंधन, चारा के साथ अन्य निर्वाह आवश्यकताओं को पूरा करती है।
    • हालाँकि भिन्न-भिन्न अनुपातों में कृषि वानिकी का प्रयोग बड़े किसानों द्वारा सिंचित परिस्थितियों एवं छोटे और सीमांत किसानों द्वारा वर्षा आधारित परिस्थितियों में किया जाता है।
  • कृषिवानिकी नीतियों एवं पहलों का विकास:
    • वर्ष 1983 में कृषि-वानिकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (AICRP) की शुरुआत ने कृषि एवं वानिकी अनुसंधान एजेंडा में कृषि-वानिकी के औपचारिक एकीकरण को प्रदर्शित किया हैं।
    • भारत की प्रमुख नीतिगत पहलें, जिनमें राष्ट्रीय वन नीति 1988, राष्ट्रीय कृषि नीति 2000, राष्ट्रीय बाँस मिशन 2002, राष्ट्रीय किसान नीति 2007 और ग्रीन इंडिया मिशन 2010 हैं, निरंतर रूप से कृषि-वानिकी के महत्त्व पर प्रकाश डालती हैं।
    • भारत द्वारा राष्ट्रीय कृषि-वानिकी नीति (NAP), 2014 अपनाई गई जिसके बाद कृषि-वानिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई।
      • NAP एक नीतिगत ढाँचा है जिसका उद्देश्य कृषि आजीविका में सुधार करने के लिये फसलों और पशुधन के साथ पूरक तथा एकीकृत तरीके से वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना है। इस नीति की अभिकल्पना फरवरी 2014 में दिल्ली में आयोजित कृषि-वानिकी पर विश्व कॉन्ग्रेस के दौरान की गई थी।
      • भारत वर्ष 2014 में व्यापक कृषि-वानिकी नीति का अंगीकरण करने वाला विश्व का पहला देश बना।
    • उक्त नीति के अनुवर्ती के रूप में, वर्ष 2016-17 में राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन के तहत “हर मेड़ पर पेड़” आदर्श वाक्य के साथ कृषि-वानिकी पर उप-मिशन का शुभारंभ किया गया जिसका उद्देश्य कृषि भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना और साथ ही सस्य/सस्यन प्राणाली में विस्तार करना  था।
  • कृषि-वानिकी के प्रभाव:
    • आर्थिक प्रभाव:
      • कृषि-वानिकी प्रणालियाँ फलों, लकड़ी और फसलों के लिये सकारात्मक उपज वृद्धि दर्शाती हैं, जिससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है।
      • कृषि-वानिकी आर्थिक रूप से व्यवहार्य है जो लकड़ी, ईंधन के लिये लकड़ी और चारे सहित विविध आजीविका स्रोतों से अतिरिक्त आय स्रोत प्रदान करती है।
    • सामाजिक प्रभाव:
      • कृषि-वानिकी प्रणालियाँ, विशेष रूप से फलों की फसलों पर ज़ोर देने वाली प्रणालियाँ, समुदायों के पोषण में सुधार और बेहतर स्वास्थ्य में योगदान करती हैं।
      • कृषि-वानिकी में महिलाओं की भागीदारी महत्त्वपूर्ण है किंतु लैंगिक गतिकी और महिला सशक्तीकरण पर कृषिवानिकी के प्रभाव को समझने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव:
      • कृषि-वानिकी मृदा की उर्वरता, पोषक चक्र और मृदा के जैविक कार्बन में वृद्धि करती है जिससे सतत् भूमि प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है।
      • कृषि-वानिकी प्रणालियाँ जल-उपयोग दक्षता में सुधार करती हैं, मृदा के कटाव की रोकथाम करती हैं और वाटरशेड प्रबंधन तथा संरक्षण प्रयासों में योगदान करती हैं।
      • कृषि-वानिकी बायोमास ऊर्जा के एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करती है और साथ ही कार्बन को अलग कर जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों में सहायता करती है।
      •  कृषिवानिकी प्रजातियों को आवास प्रदान करके, आवागमन का समर्थन करके और निर्वनीकरण की दर को कम करके जैवविविधता संरक्षण को बढ़ावा देती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

Q. स्थायी कृषि (पर्माकल्चर), पारंपरिक रासायनिक खेती से किस तरह भिन्न है?

  1. स्थायी कृषि एकधान्य कृषि पद्धति को हतोत्साहित करती है, किंतु पारंपरिक रासायनिक कृषि में, एकधान्य कृषि पद्धति की प्रधानता है।
  2. पारंपरिक रासायनिक कृषि के करण मृदा की लवणता में वृद्धि हो सकती है, किंतु इस तरह की घटना स्थायी कृषि में दृष्टिगोचर नहीं होती है। 
  3. पारंपरिक रासायनिक कृषि अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में आसानी से संभव है, किंतु ऐसे क्षेत्रों में स्थायी कृषि इतनी आसानी से संभव नहीं है।
  4. मल्च बनाने (मल्चिंग) की प्रथा स्थायी कृषि में काफी महत्त्वपूर्ण है, किंतु पारंपरिक रासायनिक कृषि में ऐसी प्रथा आवश्यक नहीं है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) 1 और 3
(b) 1, 2 और 4
(c) केवल 4
(d) 2 और 3

उत्तर: (b)


Q.2 निम्नलिखित में से कौन-सी 'मिश्रित खेती' की प्रमुख विशेषता है? (2012)

(a) नकदी और खाद्य दोनों शस्यों की साथ-साथ खेती
(b) दो या दो से अधिक शस्यों को एक ही खेत में  उगाना 
(c) पशुपालन और शस्य-उत्पादन को एक साथ करना
(d) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं

उत्तर: (c)


Q. भारत सरकार ने नीति (NITI) आयोग की स्थापना निम्नलिखित में से किसका स्थान लेने के लिये की है? (2015)

(a) मानव अधिकार आयोग
(b) वित्त आयोग
(c) विधि आयोग
(d) योजना आयोग

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न.1 फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती है? (2021)


भारत की पहली स्वदेशी हाइड्रोजन ईंधन सेल नौका

प्रिलिम्स के लिये:

हाइड्रोजन ईंधन सेल, हरित नौका पहल, कोचीन शिपयार्ड, स्वच्छ ऊर्जा समाधान, ग्रीन हाइड्रोजन, शून्य-उत्सर्जन ईंधन, राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन, जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, PM- कुसुम, राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, रूफटॉप सौर योजना

मेन्स के लिये:

आरक्षण और सामाजिक समानता पर इसका प्रभाव

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने वर्चुअल माध्यम से भारत की पहली देशज रूप से निर्मित हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित नौका (Ferry) को हरी झंडी दिखाई।

  • हरित नौका पहल के तहत हाइड्रोजन सेल संचालित अंतर्देशीय जलमार्ग पोत लॉन्च किया गया।

नौका से संबंधित अन्य मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: 
    • कार्यक्रम के एक प्रमुख घटक के रूप में नौका को हरी झंडी दिखाई गई और साथ ही ₹17,300 करोड़ की परियोजना की आधारशिला रखी गई जिसमें वी.ओ.चिदंबरनार पत्तन पर आउटर हार्बर कंटेनर टर्मिनल परियोजना भी शामिल है। 
    • इस जहाज़ का निर्माण कोचीन शिपयार्ड में किया गया है।
  • महत्त्व:
    • यह अंतर्देशीय जलमार्गों के माध्यम से शहरी आवगमन को सुचारु और सुगम बनाने में सहायता करेगा। यह नौका स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को अपनाने और देश की शुद्ध-शून्य प्रतिबद्धताओं के साथ संरेखित करने के लिये अग्रणी कदम को रेखांकित करता है।

नोट: वी.ओ.चिदंबरनार पत्तन देश का पहला ग्रीन हाइड्रोजन हब बंदरगाह है और परियोजनाओं में अलवणीकरण संयंत्र, हाइड्रोजन उत्पादन तथा बंकरिंग सुविधा शामिल है।

हरित नौका पहल क्या है?

  • परिचय:
    • पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने जनवरी 2024 में अंतर्देशीय जहाज़ों के लिये हरित नौका दिशा-निर्देशों का अनावरण किया।
  • दिशा-निर्देश:
    • दिशा-निर्देशों के अनुसार, सभी राज्यों को अगले एक दशक में अंतर्देशीय जलमार्ग-आधारित यात्री जहाज़ों/बेड़े में 50% और वर्ष 2045 तक 100% हरित ईंधन का प्रयोग करने का प्रयास करना होगा।
    • यह मेरीटाइम अमृत काल विज़न 2047 के अनुसार ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये है।
  • वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय नियमों, सतत् विकास लक्ष्यों और हरित ईंधन प्रौद्योगिकियों में प्रगति के कारण पोत परिवहन उद्योग तेज़ी से हरित ईंधन की ओर बढ़ रहा है।
  • हाइड्रोजन और इसके डेरिवेटिव उद्योगों में शून्य-उत्सर्जन ईंधन के लिये प्रतिबद्धता के करण ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

हाइड्रोजन ईंधन सेल क्या है?

  • परिचय:
    • हाइड्रोजन ईंधन सेल उच्च गुणवत्ता वाली विद्युत शक्ति का एक स्वच्छ, विश्वसनीय, मृदुल और प्रभावशाली स्रोत हैं।
    • ये इलेक्ट्रोकेमिकल/विद्युत रासायनिक प्रक्रिया के लिये ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग करते हैं जिसमें विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती है और उप-उत्पाद के रूप में जल तथा उष्मा मुक्त होते हैं।
      • स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन विकल्प के लिये हाइड्रोजन पृथ्वी पर सबसे प्रचुर तत्त्वों में से एक है।
  • महत्त्व:
    • शून्य उत्सर्जन समाधान: यह सर्वोत्तम शून्य उत्सर्जन समाधानों में से एक है। यह पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है और इसमें जल के अलावा कोई टेलपाइप उत्सर्जन (Tailpipe Emission) नहीं होता है।
      • टेलपाइप उत्सर्जन: वायुमंडल में विकिरण या गैस जैसे किसी पदार्थ का उत्सर्जन।
    • शोर रहित संचालन (Quiet Operation): तथ्य यह है कि फ्यूल सेल कम शोर करती हैं, इसका मतलब है कि उनका उपयोग अस्पताल की इमारतों जैसे चुनौतीपूर्ण संदर्भों में किया जा सकता है।
  • की गई पहल: केंद्रीय बजट 2021-22 के तहत एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (National Hydrogen Energy Mission-NHM) की घोषणा की गई है, जो हाइड्रोजन को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करने के लिये एक रोडमैप तैयार करेगा।
  • नवीकरणीय ऊर्जा के लिए अन्य पहल:

शुद्ध-शून्य लक्ष्य:

  • इसे कार्बन तटस्थता के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ यह नहीं है कि कोई देश अपने उत्सर्जन को शून्य पर लाएगा। बल्कि यह एक ऐसा देश है जिसमें किसी देश के उत्सर्जन की भरपाई वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों के अवशोषण और हटाने से होती है।
    • इसके अलावा वनों जैसे अधिक कार्बन सिंक बनाकर उत्सर्जन के अवशोषण को बढ़ाया जा सकता है।
    • जबकि वातावरण से गैसों को हटाने के लिये कार्बन कैप्चर और स्टोरेज जैसी भविष्य की तकनीकों की आवश्यकता होती है।
  •  70 से अधिक देशों ने सदी के मध्य यानी वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य बनने का दावा किया है।
  • भारत ने COP-26 शिखर सम्मेलन में वर्ष 2070 तक अपने उत्सर्जन को शुद्ध शून्य करने का वादा किया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहन "निकास" के रूप में निम्नलिखित में से एक का उत्पादन करते हैं: (2010)

(a) NH3 
(b) CH4 
(c) H2
(d) H2O2 

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • ईंधन सेल एक उपकरण है जो रासायनिक ऊर्जा (आणविक बंधनों में संग्रहीत ऊर्जा) को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
  • यह ईंधन के रूप में हाइड्रोजन गैस (H2) तथा ऑक्सीजन गैस (O2) का उपयोग करता है एवं सेल में अभिक्रिया के उपरांत जल (H2O), विद्युत और ऊष्मा को उत्पादित करते हैं।
  • यह आंतरिक दहन इंजन, कोयला जलाने वाले विद्युत संयंत्रों एवं परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में एक बड़ा सुधार है, जो सभी हानिकारक उपोत्पाद प्रदान करते हैं।

मेन्स:

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के पक्षकारों के सम्मेलन (सीओपी) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021)


पॉज़िट्रोनियम की लेज़र कूलिंग

प्रिलिम्स के लिये:

AEgIS, पॉज़िट्रोनियम, यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन (CERN), गामा-रे लेज़र, लेज़र कूलिंग, क्वांटम इलेक्ट्रोडायनामिक्स (QED), आण्विक नाभिक 

मेन्स के लिये:

एंटी-हाइड्रोजन के निर्माण में AEgIS का महत्त्व और एंटीहाइड्रोजन पर पृथ्वी के गुरुत्वीय त्वरण का मापन।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

AEgIS सहयोग ने पॉज़िट्रोनियम की लेज़र कूलिंग का प्रदर्शन करके एक बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है।

अध्ययन के मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • AEgIS का परिचय: 
    • एंटी-हाइड्रोजन प्रयोग: ग्रेविटी, इंटरफेरोमेट्री, स्पेक्ट्रोस्कोपी (AEgIS) यूरोप के कई देशों और भारत के भौतिकविदों का एक सहयोग है।
    • वर्ष 2018 में, AEgIS एंटीहाइड्रोजन परमाणुओं के स्पंदित उत्पादन का प्रदर्शन करने वाला विश्व का पहला संगठन बन गया।
  • उद्देश्य:
    • यह AEgIS प्रयोग में एंटीहाइड्रोजन के निर्माण और एंटीहाइड्रोजन पर पृथ्वी के गुरुत्वीय त्वरण के निर्धारण के लिये एक महत्त्वपूर्ण अग्रदूत प्रयोग है।
    • यह वैज्ञानिक उपलब्धि गामा-रे लेज़र के उत्पादन की संभावनाएँ खोल सकती है जो अंततः शोधकर्त्ताओं को परमाणु नाभिक के अंदर देखने के साथ-साथ भौतिकी से परे अनुप्रयोगों की अनुमति भी प्रदान करेगी।
  • पॉज़िट्रोनियम:
    • पॉज़िट्रोनियम, एक बाध्य इलेक्ट्रॉन (e-पदार्थ) एवं पॉज़िट्रॉन (e+पदार्थ) शामिल है, जोकि एक मौलिक परमाणु प्रणाली है।
      • इलेक्ट्रॉन एवं पॉज़िट्रॉन, लेप्टान होते हैं। साथ ही वे विद्युत चुंबकीय एवं निर्बल शक्तियों के माध्यम से परस्पर क्रिया करते हैं।
    • चूँकि पॉज़िट्रोनियम केवल इलेक्ट्रॉनों और पॉज़िट्रॉन से निर्मित होता है तथा साथ ही कोई सामान्य परमाणु पदार्थ भी नहीं होता है, इसलिये इसे विशुद्ध रूप से लेप्टोनिक परमाणु होने की विशिष्टता प्राप्त है।
      • अपने अत्यंत अल्प जीवन के कारण 142 नैनो-सेकंड में नष्ट हो जाता है। इसका द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन द्रव्यमान का दोगुना होता है।
  • लेज़र कूलिंग को विधि के रूप में चुनने का कारण:
    • पॉज़िट्रोनियम, सबसे हल्का ज्ञात अत्यंत अस्थिर कण तंत्र है, जब प्रायोगिक अध्ययन के लिये पॉज़िट्रोनियम का उत्पादन किया जाता है, तब यह वेगों की एक विशाल शृंखला के चारों ओर घूमता है, जिससे इसे पहचान करना वास्तव में कठिन हो जाता है।
    • इसे हल करने का एक तरीका पॉज़िट्रोनियम को ठंडा करना होगा जो इसके कणों को धीमा कर देगा ताकि इसके गुणों का अधिक सटीक माप ली जा सके।
  • लेज़र कूलिंग: 
    • यह फोटॉन को अवशोषित करने और उत्सर्जित करने वाले कणों पर आधारित तापमान कम करने की एक विधि है। यदि लेज़र प्रकाश को आने वाले कणों के पथ के साथ निर्देशित किया जाता है, तो वे कण फोटॉन को अवशोषित कर लेंगे और इसे यादृच्छिक दिशा में फिर से उत्सर्जित करेंगे जिससे इसकी गति बदल जाएगी तथा यह धीमा हो जाएगा।
      • वैज्ञानिकों ने पहली बार वर्ष 1988 में दशकों पहले पॉज़िट्रोनियम के लिये लेज़र कूलिंग की विधि प्रस्तावित की थी।
    • प्रयोगकर्त्ताओं ने अलेक्जेंड्राइट-आधारित लेज़र प्रणाली का उपयोग करके पॉज़िट्रोनियम परमाणुओं के लेज़र शीतलन को प्राप्त किया, जिससे उनका तापमान ~ 380 केल्विन से ~ 170 केल्विन तक कम हो गया।
  • महत्त्व और भविष्य की संभावनाएँ:
    • पॉज़िट्रोनियम की लेज़र कूलिंग क्वांटम इलेक्ट्रोडायनामिक्स (QED) अध्ययन के लिये आवश्यक स्पेक्ट्रोस्कोपिक तुलना हेतु मार्ग प्रशस्त करती है।
    • एंटीमैटर के गुणों और गुरुत्वाकर्षण व्यवहार के उच्च-सटीक माप नई भौतिकी को प्रकट कर सकते हैं तथा पदार्थ-एंटीमैटर असममिति में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
    • सुसंगत गामा-किरण प्रकाश उत्पन्न करने के साधन के रूप में प्रस्तावित एंटीमैटर के बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट का निर्माण, परमाणु नाभिक में झाँकने सहित मौलिक और व्यावहारिक अनुसंधान के लिये वादा करता है।
      • बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट में, पदार्थ (या एंटीमैटर) लेज़र बीम में फोटॉन के अनुरूप एक सुसंगत स्थिति में होता है और व्यक्तिगत परमाणु अपनी स्वतंत्र पहचान खो देते हैं। इससे कई परमाणुओं को एक छोटी मात्रा में संग्रहित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

लेज़र कूलिंग पॉज़िट्रोनियम में AEgIS प्रयोग की सफलता CERN की एंटीमैटर अनुसंधान में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है। यह उपलब्धि न केवल मौलिक भौतिकी की हमारी समझ में योगदान देती है बल्कि इससे भविष्य में अभूतपूर्व खोजों और उनके अनुप्रयोगों की दिशा में सहायता प्राप्त हो सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निकट अतीत में हिग्स बोसॉन कण के अस्तित्व के संसूचन के लिये किये गए प्रयत्न लगातार समाचारों में रहे हैं। इस कण की खोज का क्या महत्त्व है? (2013)

  1. हमें यह समझने में मदद करेगा कि मूल कणों में संहति क्यों होती है। 
  2. यह निकट भविष्य में हमें दो बिंदुओं के बीच के भौतिक अंतराल को पार किये बिना एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक पदार्थ स्थानांतरित करने की प्रौद्योगिकी विकसित करने में मदद करेगा। 
  3. यह हमें नाभिकीय विखंडन के लिये बेहतर ईंधन उत्पन्न करने में मदद करेगा। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a)


हिमालय में चरम मौसमी घटनाओं का बढ़ता खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

हिमालय क्षेत्र, ग्लोबल वॉर्मिंग, सिंधु-गंगा का मैदान, ग्रीनहाउस गैस

मेन्स के लिये:

हिमालय पर ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव, वृहद स्तर पर शहरीकरण के कारण, हिमालय क्षेत्र में पारिस्थितिक चुनौतियाँ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

बादल फटने और चरम मौसमी घटनाओं से ग्रस्त हिमालय क्षेत्र, ग्लोबल वॉर्मिंग के त्वरित प्रभावों का अनुभव कर रहा है।

मौसमी परिवर्तन से चरम घटनाओं की आवृत्ति कैसे बढ़ रही है?

  • मानसूनी पैटर्न में बदलाव:
    • ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून के पैटर्न में बदलाव को व्यक्त करते हैं, जिसमें उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग के बजाय भारतीय गंगा के मैदान में अधिक विचलन देखने को मिलता है।
    • इसमें भारत के शुष्क और अर्द्ध-शुष्क पश्चिमी आधे भाग में अत्यधिक वर्षा तथा पूर्वी अर्द्ध एवं तटीय क्षेत्रों में कम वर्षा शामिल है, जो ऐतिहासिक वर्षा पैटर्न के परिवर्तन का संकेत देता है।

  • अरब सागर में तापमान वृद्धि:
    • अरब सागर की सबसे ऊपरी परत में असामान्य तापमान वृद्धि हुई है, जिससे वाष्पीकरण बढ़ गया है और संभावित रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून में परिवर्तन आ रहा है।
    • इस ग्रीष्म प्रवृत्ति ने अरब सागर में अधिक चक्रवाती तूफानों में भी योगदान दिया है, जिनमें से कुछ का तूफानी घटनाएँ भारत के पश्चिमी तट पर देखने को मिली हैं।
      • वर्ष 2001 से वर्ष 2019 के बीच अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति में 50% की वृद्धि हुई है। इनमें से लगभग आधे चक्रवात उतरने से पहले ही नष्ट हो जाते हैं।
  • अत्यधिक वर्षा और मेघ प्रस्फुटन:
    • मेघ प्रस्फुटन सिर्फ तीव्र वर्षा बौछार नहीं है, बल्कि वर्षा का आनुवंशिक रूप से भिन्न स्वरूप है। भारी वर्षा में भी, वर्षा की बूँदों का आकार आमतौर पर लगभग 2 मिमी. व्यास का होता है।
    • तीव्र आंधी और मेघ प्रस्फुटन के दौरान इनका आकार 4-6 मिमी. तक हो जाता है। भारी वर्षा होने के कारण, ये वर्षा की बूँदें तीव्रता से गिरती हैं, जो अपनी तीव्रता से भूस्खलन का कारण बनती हैं।
      • मात्र हिमाचल प्रदेश में वर्ष 1970-2010 के बीच चार दशकों के दौरान तूफान, मेघ प्रस्फुटन और ओलावृष्टि की संख्या प्रति वर्ष दो से चार के बीच बढ़कर वर्ष 2023 में 53 हो गई है।

  • हिमनदों का पिघलना और हिमनद झील का विस्फोट:
    • हिमालय में बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं, जिससे हिमनद झीलों का निर्माण हो रहा है।
    • मेघ प्रस्फुटन की बढ़ती तीव्रता के कारण ये झीलें ओवरफ्लो हो रही हैं या उनके तटों का विघटन हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ आ रही है और मैदानी क्षेत्रों में जान-माल का नुकसान देखने को मिल रहा है।
      • उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों में ऐसी झीलों की संख्या वर्ष 2005 में 127 से बढ़कर वर्ष 2015 में 365 हो गई है।
  • हिमानी बर्फ का नुकसान:
    • हिमालय पूर्व में ही अपनी 40% से अधिक बर्फ खो चुका है और यह प्रवृत्ति जारी रहने की उम्मीद है, अनुमान है कि शताब्दी के अंत तक 75% तक की संभावित हानि हो सकती है।
      • बर्फ की यह हानि क्षेत्र में वनस्पति सीमा, कृषि पद्धतियों और जल संसाधनों को प्रभावित कर रही है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिये अनुकूलन उपाय 

  • ग्लेशियरों और हिमनद झीलों की बेहतर निगरानी के साथ-साथ भूस्खलन तथा हिमनद झील के विस्फोट के लिये बेहतर पूर्वानुमान एवं प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की आवश्यकता बढ़ रही है।
    • हालाँकि ये उपाय मात्र हिमालय में जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभावों को संबोधित करने के लिये पर्याप्त नहीं हो सकते हैं।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन को ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों को कम करने तथा हिमालय क्षेत्र एवं इसके निवासियों की सुरक्षा के लिये आवश्यक कदमों के रूप में देखा जाता है।
  • हिमालय क्षेत्र में सतत् निर्माण गतिविधियाँ होनी चाहिये, जो किसी भी विपत्तिपूर्ण घटना के घटित होने पर उसका सामना कर सकें। कुछ कदम इस प्रकार हैं-
    • भू-भाग की विशेषताओं को समझना: किसी क्षेत्र द्वारा सहन किये जा सकने वाले तनाव पर ढाल, जल निकासी और वनस्पति आवरण के प्रभाव को पहचानना मौलिक है। इन कारकों के आधार पर क्षेत्रों का निर्धारण करके, अधिकारी निर्माणकारी गतिविधियों को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर सकते हैं और अस्थिर क्षेत्र से संबंधित जोखिमों को कम कर सकते हैं।
    • जलवायु भेद्यता का आकलन: बाढ़ और भूस्खलन जैसी चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति को देखते हुए, भविष्य के जलवायु परिदृश्यों को प्रोजेक्ट करना और संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करना आवश्यक है। अनुमान और अनुकरण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अनुकूलित करने तथा कम करने के लिये रणनीति तैयार करने में सहायक हो सकते हैं।
    • विकास प्रभावों का प्रबंधन: विकास परियोजनाओं, विशेष रूप से जलविद्युत उद्यमों, प्रायः पहाड़ी क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक परिणाम होते हैं। विनियमों में जोखिम मूल्यांकन को शामिल किया जाना चाहिये और वन अपरदन, नदी मार्गों में परिवर्तन तथा जैवविविधता के नुकसान से बचाव के लिये संचयी प्रभावों पर विचार किया जाना चाहिये।
    • अनुकूलन क्षमता में वृद्धि: जैसे-जैसे पहाड़ी शहरों की आबादी बढ़ती है, जल की कमी, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और सीमित आजीविका विकल्पों जैसी विभिन्न चुनौतियों के कारण जलवायु परिवर्तन से निपटने की उनकी क्षमता कम हो जाती है।
      • अनुकूलन क्षमता में सुधार में सामुदायिक भागीदारी के साथ स्थायी समाधानों को प्राथमिकता देते हुए सेवाओं और बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना शामिल है।

हिमालय से संबंधित सरकारी पहलें

  • नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम (2010):
    • इसमें 11 राज्य (हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, सभी पूर्वोत्तर राज्य और पश्चिम बंगाल) और 2 केंद्रशासित प्रदेश (जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख) शामिल हैं।
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना का हिस्सा, जिसमें आठ मिशन शामिल हैं।
  • भारतीय हिमालयी जलवायु अनुकूलन कार्यक्रम (IHCAP):
    • इसका उद्देश्य ग्लेशियोलॉजी एवं संबंधित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने के साथ जलवायु विज्ञान में भारतीय संस्थानों की क्षमताओं को मज़बूत करके भारतीय हिमालय में निवास करने वाले कमज़ोर समुदायों के लचीलेपन को बढ़ाना है।
  • SECURE हिमालय परियोजना:
    • यह ग्लोबल एन्वायरनमेंट फैसिलिटी द्वारा वित्त पोषित "सतत् विकास हेतु वन्यजीव संरक्षण और अपराध रोकथाम पर वैश्विक भागीदारी" (वैश्विक वन्यजीव कार्यक्रम) का अभिन्न अंग है।
    • इसमें उच्च श्रेणी के हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र में अल्पाइन चारागाहों और वनों के स्थायी प्रबंधन को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • मिश्रा समिति रिपोर्ट 1976:
    • इसका नाम उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गढ़वाल आयुक्त एम.सी. मिश्रा के नाम पर रखा गया था। जिन्होंने जोशीमठ में भूमि धँसाव पर निष्कर्ष प्रदान किये।
    • सिफारिशों में क्षेत्र में भारी निर्माण कार्य, विस्फोट, सड़क मरम्मत और अन्य निर्माणकारी गतिविधियों के लिये खुदाई तथा वृक्षों की कटाई पर प्रतिबंध लगाना शामिल था।

निष्कर्ष:

  • मानसून पैटर्न में हालिया बदलाव और चरम मौसमी घटनाएँ भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को संबोधित करने के लिये सक्रिय उपायों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
  • सरकारों और हितधारकों के लिये इन बदलती जलवायु परिस्थितियों से उत्पन्न सामाजिक-आर्थिक तथा पर्यावरणीय जोखिमों को कम करने हेतु अनुकूलन एवं शमन रणनीतियों को प्राथमिकता देना अनिवार्य है।
  • केवल सतत् विकास, नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने और आपदा तैयारियों में ठोस प्रयासों के माध्यम से हम जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम कर सकते हैं तथा संपूर्ण उपमहाद्वीप में समुदायों के  लचीलेपन को सुनिश्चित कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2020)

शिखर                        पर्वत

  1. नामचा बरवा        गढ़वाल हिमालय
  2.  नंदा देवी             कुमाऊँ हिमालय
  3.  नोकरेक              सिक्किम हिमालय

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (B)


प्रश्न. यदि आप हिमालय से होकर यात्रा करते हैं, तो आपको वहाँ निम्नलिखित में से किस पादप/ किन पादपों को  प्राकृतिक रूप में उगते हुए दिखने की संभावना है? (2014)

  1. बांज 
  2.   बुरुंश 
  3.   चंदन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: A


प्रश्न. जब आप हिमालय की यात्रा करेंगे, तो आप निम्नलिखित को देखेंगे: (2012)

  1. गहरे खड्ड  
  2. U-घुमाव वाले नदी मार्ग
  3.   समानांतर पर्वत श्रेणियाँ 
  4.  भूस्खलन के लिये उत्तरदायी  तीव्र ढाल

उपर्युक्त में से किसे हिमालय के युवा वलित पर्वत होने का प्रमाण कहा जा सकता है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: D


मेन्स:

प्रश्न. हिमालय क्षेत्र और पश्चिमी घाट में भूस्खलन के कारणों के बीच अंतर बताइये। (2021)

प्रश्न. हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से भारत के जल संसाधनों पर कौन से दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे? (2020)

प्रश्न . "हिमालय में भूस्खलन की अत्यधिक संभावना है।" इसके कारणों पर चर्चा करते हुए इसके शमन हेतु उपयुक्त उपाय बताइये। (2016)