वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2025 | 22 Jan 2025
चर्चा में क्यों?
विश्व आर्थिक मंच ने वैश्विक जोखिम रिपोर्ट, 2025 का 20वाँ संस्करण जारी किया है, जिसमें सर्वाधिक दबाव वाले वैश्विक जोखिमों और उनकी उभरती प्रकृति का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
- रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन, तकनीकी प्रगति, भू-राजनीतिक तनाव और सामाजिक ध्रुवीकरण जैसे प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है तथा इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये बहुपक्षीय समाधानों की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है।
वैश्विक जोखिम रिपोर्ट, 2025 क्या है?
- परिचय:
- वैश्विक जोखिम रिपोर्ट वर्ष 2006 में आतंकवाद और एवियन इन्फ्लूएंजा के प्रभुत्व वाले परिदृश्य के दौरान लॉन्च की गई थी। पिछले दो दशकों में, वर्ष 2007-2008 के वित्तीय संकट, कोविड-19 और संरचनात्मक शक्तियों (तकनीकी प्रक्षेपवक्र, भू-रणनीतिक बदलाव, जलवायु परिवर्तन और जनसांख्यिकीय विभाजन) जैसी प्रमुख घटनाओं ने वैश्विक जोखिम दृष्टिकोण को आकार दिया है।
- जोखिम संबंधी धारणाओं में प्रमुख रुझान:
- पर्यावरणीय जोखिम दीर्घकालिक चिंताओं पर हावी हैं: चरम मौसम की घटनाओं के नेतृत्व में पर्यावरणीय जोखिम लगातार 10-वर्षीय जोखिम रैंकिंग में शीर्ष पर रहे हैं।
- वर्ष 2009 से प्रदूषण एक गंभीर जोखिम के रूप में उभरा है, जो जैवविविधता की हानि और पारिस्थितिकी तंत्र के पतन के साथ-साथ बढ़ रहा है, जो वर्ष 2009 में 37वें स्थान से बढ़कर वर्ष 2025 में दूसरे स्थान पर पहुँच गया है।
- संघर्ष के बारे में चिरस्थायी चिंताएँ: राज्य-आधारित सशस्त्र संघर्ष एक शीर्ष चिंता का विषय बना हुआ है, सीरियाई गृहयुद्ध और यूक्रेन पर रूसी आक्रमण जैसी घटनाओं के दौरान रैंकिंग में वृद्धि हुई है।
- दीर्घकालिक चुनौतियों के रूप में सामाजिक जोखिम: असमानता, सामाजिक ध्रुवीकरण और मानवाधिकारों का ह्रास जैसे जोखिम लगातार उच्च स्तर पर हैं।
- सामाजिक ध्रुवीकरण वर्ष 2012 में 21वें स्थान से बढ़कर वर्ष 2025 में 8वें स्थान पर पहुँच गया, जो बढ़ते विभाजन को दर्शाता है।
- आर्थिक जोखिम को दीर्घकालिक रूप से कम महत्त्वपूर्ण माना जाता है: मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी जैसे आर्थिक जोखिम निम्न स्तर पर हैं, केवल ऋण और एसेट बबल की प्रमुखता बनी हुई है।
- तकनीकी जोखिम: तकनीकी जोखिम, जिनमें प्रतिकूल कृत्रिम बुद्धिमत्ता परिणाम और साइबर वॉर शामिल हैं, अत्यधिक अस्थिर हैं, जिनमें गलत सूचना जैसी उभरती हुई चिंताएँ, नैनोटेक्नोलॉजी और व्यापक कंप्यूटिंग जैसे पूर्व जोखिमों का स्थान ले रही हैं, जो तकनीकी परिवर्तन की तीव्र गति को उज़ागर करती हैं।
- पर्यावरणीय जोखिम दीर्घकालिक चिंताओं पर हावी हैं: चरम मौसम की घटनाओं के नेतृत्व में पर्यावरणीय जोखिम लगातार 10-वर्षीय जोखिम रैंकिंग में शीर्ष पर रहे हैं।
वर्तमान और अल्पकालिक से मध्यम अवधि के जोखिम क्या हैं?
- बढ़ता व्यापार संरक्षणवाद: बढ़ते टैरिफ और संरक्षणवादी नीतियों के कारण वैश्विक व्यापार में उल्लेखनीय गिरावट आ रही है। पश्चिम और पूर्व के बीच व्यापार तनाव से आर्थिक वियोजन में और अधिक वृद्धि होने का खतरा है। वर्ष 2017 के बाद से विश्व भर में हानिकारक व्यापार नीति हस्तक्षेप में वृद्धि हुई है।
- औद्योगिक नीतियाँ और गैर-टैरिफ बाधाएँ: देश घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिये मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम और मेक इन इंडिया जैसी औद्योगिक नीतियों को तेज़ी से अपना रहे हैं, जिससे भ्रष्टाचार और संसाधनों के गलत आवंटन का खतरा बना रहता है। राष्ट्रीय सुरक्षा वर्गीकरण का विस्तार व्यापार और निवेश को और अधिक अवरुद्ध कर सकता है।
- व्यापार तनाव के आर्थिक जोखिम: आर्थिक मंदी कई क्षेत्रों में शीर्ष वैश्विक जोखिम के रूप में है, टैरिफ के कारण अनिश्चितता बढ़ रही है, उत्पादकता कम हो रही है और निवेश हतोत्साहित हो रहा है। विखंडित व्यापार वातावरण ने 2023 में वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 10% की गिरावट का योगदान दिया।
- आर्थिक अनिश्चितता और वृद्धि: जबकि वैश्विक मुद्रास्फीति 2025 तक घटकर 3.5% होने का अनुमान है, बढ़ते व्यापार प्रतिस्पर्द्धा से मुद्रास्फीति में फिर से वृद्धि हो सकती हैं तथा ऋण पुनर्वित्त जोखिम बढ़ा सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने वर्ष 2024-2025 के लिये प्रत्येक वर्ष 3.2% की स्थिर लेकिन धीमी वैश्विक वृद्धि का अनुमान लगाया है, जो महामारी से पहले के औसत से कम है।
- गलत सूचना और भ्रामक सूचनाओं का बढ़ना: डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और AI-जनरेटेड कंटेंट के बढ़ने से गलत और भ्रामक सूचनाओं का प्रचलन बढ़ गया है, जिससे सूचना और संस्थानों में भरोसा कम हुआ है। सामाजिक ध्रुवीकरण (GRPS में रैंक 4) इस मुद्दे को और बढ़ाता है, जिससे एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रह में वृद्धि होती है तथा झूठी सामग्री को सच से अलग करना कठिन हो जाता है।
- गलत सूचना से तात्पर्य झूठी सूचना से है जो धोखा देने के इरादे के बिना फैलाई जाती है, अक्सर इसलिये क्योंकि इसे साझा करने वाला व्यक्ति इसे सच मानता है।
- इसके विपरीत, दुष्प्रचार जानबूझकर फैलाई गई गलत सूचना है जो दूसरों को गुमराह करने या हेरफेर करने के इरादे प्रसारित की जाती है ।
- एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह जोखिम: एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह त्रुटिपूर्ण डेटा, सामाजिक विभाजन और मानवीय निरीक्षण से उत्पन्न होते हैं, जिससे भर्ती, सार्वजनिक सेवाओं या पूर्वानुमानित पुलिसिंग जैसे निर्णयों में असमानताएँ उत्पन्न होती हैं। राजनीतिक पूर्वाग्रह विशेष रूप से एल्गोरिदम में अंतर्निहित होने का जोखिम रखते हैं, सामाजिक ध्रुवीकरण इन प्रभावों को गहरा करता है।
- नागरिक निगरानी संबंधी चिंताएँ: सरकारें और तकनीकी कंपनियाँ नागरिकों की निगरानी के लिये AI, डेटा एनालिटिक्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म का लाभ उठा रही हैं, अक्सर अपर्याप्त कानूनी सुरक्षा उपायों के साथ। जबकि यह डेटा सार्वजनिक सेवाओं को बेहतर बना सकता है, यह दुरुपयोग के जोखिम भी उत्पन्न करता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ डेटा सुरक्षा नियम सीमित हैं।
- मीडिया और सूचना स्रोतों पर लोगों का भरोसा घट रहा है, सर्वेक्षण किये गये 47 देशों में केवल 40% लोग ही अधिकांश समाचारों पर भरोसा करते हैं।
- सेंसरशिप और निगरानी पर वैश्विक चिंताएँ: सेंसरशिप और निगरानी (GRPS में रैंक 16) ऑनलाइन निगरानी और नियंत्रण की बढ़ती आशंकाओं को दर्शाती है। ये चिंताएँ पूर्वी एशिया, लैटिन अमेरिका और मध्य एशिया में सबसे ज़्यादा स्पष्ट हैं, जहाँ समाजों और सरकारों के बीच विभाजन गहरा संबंध रहा है।
- तकनीकी शोषण और साइबर सुरक्षा जोखिम: AI और GAI खतरे उत्पन्न करने वाले तत्वों और राज्य एजेंसियों को गलत सूचना अभियान का विस्तार करने, ऑनलाइन कमज़ोरियों का फायदा उठाने तथा साइबर हमलों के माध्यम से एल्गोरिदम से समझौता करने को सक्षम बनाते हैं, जिससे डिजिटल प्रणालियों में विश्वास और कम होता है।
दीर्घकालिक जोखिम क्या हैं?
- जोखिम परिदृश्य में गिरावट: वर्ष 2035 तक वैश्विक जोखिम की गंभीरता और अधिक खराब होने की आशंका है, तथा 62% उत्तरदाताओं ने अशांत या तूफानी परिदृश्य का पूर्वानुमान लगाया है।
- जोखिमों को आकार देने वाली संरचनात्मक क्षमताएँ: चार प्रमुख संरचनात्मक क्षमताएँ अर्थात् तकनीकी प्रक्षेपवक्र, भू-रणनीतिक बदलाव, जलवायु परिवर्तन और जनसांख्यिकीय विभाजन दीर्घकालिक वैश्विक जोखिमों को आकार प्रदान करते हैं।
- ये क्षमताएँ परस्पर क्रिया करती हैं, जोखिम बढ़ाती हैं तथा अस्थिरता में योगदान देती हैं, जिससे भू-राजनीतिक विखंडन , तीव्र तकनीकी परिवर्तन, जलवायु व्यवधान और वृद्ध होती आबादी जैसी जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- उभरते जोखिम विषय: प्रमुख उभरते जोखिमों में बायोटेक प्रगति शामिल है, जो चिकित्सा संबंधी सफलताएँ प्रदान करती है, लेकिन जैविक आतंकवाद या जीन संपादन दुर्घटनाओं जैसे दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ भी बढ़ाती है। प्रदूषण, विशेष रूप से कम महमहत्त्व वाले प्रदूषक, स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी के लिये महत्त्वपूर्ण खतरा उत्पन्न करते हैं।
- पर्यावरणीय जोखिमों की प्रभाविता: 10 वर्ष के परिदृश्य में पर्यावरणीय जोखिमों की प्रभाविता है, जिसमें चरम मौसम की घटनाओं को रैंक 1 पर रखा गया है, उसके बाद जैवविविधता ह्रास (रैंक 2), पृथ्वी तंत्र में गंभीर परिवर्तन (रैंक 3), प्राकृतिक संसाधनों का अभाव (रैंक 4) और प्रदूषण (रैंक 10) हैं। युवा उत्तरदाताओं और नागरिक समाज समूहों ने प्रदूषण को विशेष रूप से उच्च स्थान दिया है।
- प्रौद्योगिकीय और सामाजिक जोखिम: प्रौद्योगिकीय जोखिमों, जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (रैंक 6) के प्रतिकूल परिणाम, के अत्यधिक बढ़ने की उम्मीद है। असमानता (रैंक 7) और सामाजिक ध्रुवीकरण (रैंक 8) सहित सामाजिक जोखिम से जापान और जर्मनी जैसे कालप्रभावित अर्थव्यवस्थाओं में संभावित सामाजिक अस्थिरता और जनांकिकीय चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- भू-राजनीतिक जोखिम और आर्थिक स्थिरता: भू-राजनीतिक जोखिम, हालाँकि अल्पावधि रैंकिंग में प्रमुख हैं, लेकिन दीर्घावधि परिदृश्य में ये जोखिम शीर्ष 10 से बाहर हैं। हालाँकि, राज्य-आधारित सशस्त्र संघर्ष 12वें स्थान पर पहुँच गया है और जैविक, रासायनिक अथवा परमाणु हथियारों के जोखिम में वृद्धि हुई है। अपराध और विधि-विरुद्ध आर्थिक गतिविधियों के 15वें स्थान पर पहुँचने के साथ आर्थिक जोखिम अस्थिर बने हुए हैं।
- गंभीर दीर्घकालिक जोखिम के रूप में प्रदूषण: GRPS 10-वर्षीय परिदृश्य में प्रदूषण 10वें स्थान पर है, तथा युवा उत्तरदाताओं ने इसे तीसरे स्थान पर रखा है। इससे, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, स्वास्थ्य जोखिम, जैवविविधता ह्रास और आर्थिक बोझ जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- उभरती हुई चिंताओं में पेर- और पॉली-फ्लूरोएल्काइल पदार्थ (PFAS) ("फॉरएवर केमिकल्स") और माइक्रोप्लास्टिक्स शामिल हैं, जिनमें से दोनों गंभीर स्वास्थ्य और पर्यावरणीय जोखिम उत्पन्न करते हैं।
- जैवहथियार और जैवआतंकवाद संबंधी खतरे: जैवप्रौद्योगिकी में हुई प्रगति से खतरे उत्पन्न करने वाले अभिकर्त्ताओं के लिये जैविक एजेंट बनाना अथवा उनमें परिवर्तन करना सरल हो गया है, जिससे संभावित रूप से महामारी अथवा लक्षित जैविक हमले हो सकते हैं। ए.आई.-संचालित साधनों की सुलभता और कम लागत से जैवहथियार विकसित किये जाने के जोखिम बढ़ गए हैं, जिसमें विशिष्ट आनुवंशिक समूहों को लक्षित किया जाना भी शामिल है।
- बायोटेक अनुप्रयोगों से स्वास्थ्य जोखिम: हालाँकि बायोटेक से जीन एडिटिंग और ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस जैसे अभूतपूर्व समाधान प्राप्त हुए हैं किंतु इसके जोखिम भी हैं जिनमें अवीक्षित दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव, नैदानिक जटिलताएँ और आकस्मिक अथवा इसका दुर्भावनापूर्ण दुरुपयोग शामिल है। CRISPR-Cas9 जैसी तकनीकें, हालाँकि परिवर्तनकारी हैं, लेकिन लक्ष्य से परे इसके प्रभाव से आनुवंशिक पुनर्व्यवस्थापन अथवा अज्ञात पीढ़ीगत परिणाम हो सकते हैं।
- तकनीकी अभिसरण और दुरुपयोग: बायोटेक का ए.आई. के साथ एकीकरण सफलताओं और जोखिमों दोनों को बढ़ाता है। इसके उदाहरणों में ए.आई. मॉडल शामिल हैं जिनसे अनजाने में विषाक्त पदार्थ उत्पन्न हो सकते हैं और कंप्यूटर सिस्टम को हैक करने के लिये DNA का उपयोग किया जा सकता है। जैविक और साइबर डोमेन के अभिसरण से जटिल जोखिम उत्पन्न होंगे।
- पेंशन संकट: वे अर्थव्यवस्थाएँ जिनमें कालप्रभावन की गति अत्यधिक है, जहाँ 20% से अधिक जनसंख्या 65 वर्ष से अधिक है, वहाँ निर्भरता अनुपात बढ़ता जा रहा है, तथा राज्य और निजी पेंशन प्रणालियों पर दबाव बढ़ रहा है।
- परिभाषित लाभ से अंशदान योजनाओं में परिवर्तन से व्यक्तिगत उत्तरदायित्व बढ़ जाता है, फिर भी कई लोगों के पास पर्याप्त बचत करने हेतु आवश्यक वित्तीय साक्षरता अथवा आय का अभाव होता है।
- महिलाओं और निम्न आय वाले श्रमिकों का पेंशन अंतराल और भी अधिक बढ़ गया है, तथा प्रणालीगत असमानताएँ सेवानिवृत्त लोगों के लिये गरीबी के जोखिम को और भी बढ़ा रही हैं।
- श्रम और दीर्घकालिक देखभाल का अभाव: सुपर-एजिंग सोसायटी को श्रमिकों की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ेगा, विशेष रूप से दीर्घकालिक देखभाल क्षेत्रों में, जो अल्प वित्तपोषित हैं और अवैतनिक देखभालकर्त्ताओं अथवा प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर हैं। आप्रवासन से सहायता मिलती है, लेकिन आप्रवास विरोधी नीतियों और महिला कार्यबल भागीदारी बढ़ाने हेतु सीमित सहायता से समस्या के समाधान में बाधा उत्पन्न होती है। तकनीकी हस्तक्षेप सहायक हो सकते हैं लेकिन इनके माध्यम से देखभाल की सभी मांगों की पूर्ति नहीं की जा सकती।
- भविष्य में सुपर-एजिंग जोखिम: वर्तमान में युवा जनसंख्या वाले देश, विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका में, मानव पूंजी अथवा सामाजिक सुरक्षा जाल में पर्याप्त निवेश के बिना समान जनसांख्यिकीय प्रक्षेपवक्र का अनुसरण करने का जोखिम है। जब ये क्षेत्र अंततः अत्यधिक काल प्रभावित हो जाएंगे, तो इनके समक्ष गरीबी, असमानता और अल्पविकसित देखभाल प्रणालियों की जटिल चुनौतियाँ हो सकती हैं।
रिपोर्ट में कौन सी सिफारिशें की गई हैं?
- बहुपक्षवाद को बढ़ावा मिलना: वैश्विक संधियों और समझौतों में भू-आर्थिक टकराव को हल करने की दीर्घकालिक क्षमता है। विश्व व्यापार संगठन (WTO) में सुधारों को बढ़ावा देना (विशेष रूप से विवाद समाधान, टैरिफ और डिजिटल व्यापार के संदर्भ में) प्राथमिकता का क्षेत्र है।
- घरेलू आर्थिक अनुकूलन को मज़बूत करना: जैसे-जैसे व्यापार महंगा एवं अधिक जटिल होता जा रहा है, देशों को ऐसी नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जिससे घरेलू आर्थिक मज़बूती को बढ़ावा मिले। राष्ट्रीय अनुकूलन बढ़ाने के लिये ऊर्जा, कृषि एवं रक्षा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के साथ-साथ वित्तीय क्षेत्र के विकास शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे में निवेश महत्त्वपूर्ण है।
- कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता: प्रदूषण और स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र एवं अर्थव्यवस्थाओं पर इसके प्रभावों से निपटने के लिये व्यापक नीतियों, अनुकूली रणनीतियों, सख्त नियमों, उभरते प्रदूषकों के एकीकरण एवं उद्योगों और विभिन्न क्षेत्रों में धारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- निगरानी, रिपोर्टिंग और मूल्यांकन (MRE) प्रणालियों में सुधार: MRE प्रणालियों को बेहतर बनाने से कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि मिल सकती है जिससे लक्षित हस्तक्षेप होने से प्रदूषण प्रबंधन अधिक प्रभावी एवं पारदर्शी हो सकता है।
- उचित वित्तपोषण प्राप्त करना: प्रदूषण संबंधी पहलों को पर्याप्त वित्तपोषण नहीं मिल पाया है तथा वर्ष 2015 से 2021 के बीच वायु प्रदूषण निवारण हेतु अंतर्राष्ट्रीय विकास वित्तपोषण का 1% से भी कम दिया गया है।
- जवाबदेहिता और विनियमन की मांग: एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रह को कम करने, निर्णय निर्माण में जवाबदेहिता सुनिश्चित करने तथा व्यक्तिगत गोपनीयता एवं विश्वास की रक्षा हेतु ज़िम्मेदार निगरानी के लिये वैश्विक मानकों को स्थापित करने के क्रम में स्पष्ट रूपरेखा की तत्काल आवश्यकता है।
- नैतिक और विनियामक निरीक्षण पर बल: स्पष्ट नैतिक सीमाओं एवं मज़बूत वैश्विक विनियमनों के बिना, बायोटेक के दुरुपयोग से स्वास्थ्य, सामाजिक एवं भू-राजनीतिक क्षेत्र में नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। जोखिम न्यूनीकरण के साथ नवाचार को संतुलित करने और प्रगति तक समान पहुँच सुनिश्चित करने के क्रम में व्यापक शासन ढाँचे की आवश्यकता है।
- नैतिकता और जैव प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञों से बना एक वैश्विक नैतिक निरीक्षण निकाय, मानकों का पालन सुनिश्चित करने के साथ तीव्र प्रगति में सहायता कर सकता है। मानव जीनोम एडिटिंग के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सिफारिशों जैसे ढाँचे में प्रगति से व्यापक वैश्विक सहयोग में सहायता मिलती है।
- नीतिगत एवं संरचनात्मक सुधार: सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने और पेंशन में सुधार के लिये अंतर-पीढ़ीगत तनाव से बचने के क्रम में सावधानीपूर्वक नीतिगत संतुलन की आवश्यकता है।
- अनुकूल कार्य नीतियों को प्रोत्साहित करना: संगठनों को अनुकूल कार्य व्यवस्था को अपनाना चाहिये, जिससे कर्मचारियों को बेहतर कॅरियर पथ अपनाने में सहायता मिल सके। इसमें देखभाल, शिक्षा या कौशल जैसे आयाम शामिल हैं जिससे अधिक अनुकूल और समावेशी कार्यबल को समर्थन मिलता है।
- सेवानिवृत्ति पूर्व स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देना: सरकारों और निजी क्षेत्रों को व्यायाम, पोषण और सामाजिक संपर्कों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सेवानिवृत्ति पूर्व स्वास्थ्य विकल्पों को बेहतर बनाने के लिये पहल शुरू करनी चाहिये। सिंगापुर के "स्वास्थ्य ज़िले" जैसे उदाहरण इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि किस प्रकार स्वस्थ आदतों को बढ़ावा देने से दीर्घकालिक देखभाल की ज़रूरतें कम हो सकती हैं, अर्थव्यवस्थाएँ मज़बूत हो सकती हैं तथा वित्तीय दबाव कम हो सकते हैं।