भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत-लैटिन अमेरिका व्यापार संबंध
- 03 Jan 2025
- 23 min read
प्रिलिम्स के लिये:LAC कार्यक्रम, मर्कोसुर देश के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर। मेन्स के लिये:मर्कोसुर, लैटिन अमेरिकी देशों के साथ व्यापार समझौते, लैटिन अमेरिका के प्रति भारत की विदेश नीति का विकास, लैटिन अमेरिका के क्षेत्रीय एकीकरण से संबंधित चुनौतियाँ, जलवायु परिवर्तन, व्यापार नियम और आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दों में लैटिन अमेरिका की भूमिका। |
स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
सभी 33 देशों में निरंतर विकास और विविध संबंधों के साथ, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन (LAC) क्षेत्र भारत की विदेश नीति का मुख्य केंद्र बन गया है, भारत चीन से पीछे है, जो अपनी प्रगति के बावजूद इस क्षेत्र में बहुत अधिक मज़बूत उपस्थिति है।
लैटिन अमेरिका के साथ भारत के संबंध कैसे हैं?
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों का एक समृद्ध इतिहास है, जिसमें पांडुरंग खानखोजे (एक कृषि वैज्ञानिक जिन्होंने मैक्सिको में कृषि पद्धतियों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई) और एम.एन रॉय (एक राजनीतिक कार्यकर्त्ता, जिन्होंने भारतीय और मैक्सिकन कम्युनिस्ट पार्टियों की स्थापना की) जैसी हस्तियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
- ऑक्टेवियो पाज़, रवींद्रनाथ टैगोर और विक्टोरिया ओकैम्पो जैसे कवि-राजनयिकों और लेखकों के माध्यम से भारत और लैटिन अमेरिका के बीच एक समृद्ध साहित्यिक आदान-प्रदान हुआ जिसने दोनों देशों के दृष्टिकोण को आकार प्रदान किया।
- भारत के कवि-राजनयिक अभय.के ने लैटिन अमेरिकी क्षेत्र पर कविता की पुस्तकें लिखी जिसमे द अल्फाबेट्स ऑफ लैटिन अमेरिका और द प्रोफेसी ऑफ ब्रासीलिया शामिल हैं।
- प्रारंभिक सहभागिता: उच्च स्तरीय सहभागिता वर्ष 1961 में प्रधानमंत्री नेहरू की मैक्सिको यात्रा के साथ शुरू हुई, जिसके बाद वर्ष 1968 में इंदिरा गांधी ने आठ लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई (LAC) देशों का दौरा किया।
- हालिया घटनाक्रम: वर्ष 2014 में ब्राज़ील में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की भागीदारी से संबंधों में तेज़ी आई।
- आर्थिक उदारीकरण: वर्ष 1990 के बाद के आर्थिक उदारीकरण से व्यापार, निवेश और नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग में मज़बूती आई।
- भारत ने सात LAC देशों के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किये तथा निर्यात और आर्थिक सहयोग को बढ़ाने हेतु वर्ष 1997 में फोकस LAC कार्यक्रम शुरू किया गया।
- भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों का एक समृद्ध इतिहास है, जिसमें पांडुरंग खानखोजे (एक कृषि वैज्ञानिक जिन्होंने मैक्सिको में कृषि पद्धतियों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई) और एम.एन रॉय (एक राजनीतिक कार्यकर्त्ता, जिन्होंने भारतीय और मैक्सिकन कम्युनिस्ट पार्टियों की स्थापना की) जैसी हस्तियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
- वर्तमान व्यापार परिदृश्य:
- व्यापार आँकड़ें: वर्ष 2023 में, लैटिन अमेरिका से भारत का आयात 22.93 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जबकि निर्यात 20.09 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, कुल व्यापार मात्रा 43.22 बिलियन अमेरिकी डॉलर रही तथा वर्ष 2028 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य रखा गया।
- प्रमुख व्यापार साझेदार: ब्राज़ील, मैक्सिको और कोलंबिया देश इस क्षेत्र में भारत के प्राथमिक व्यापार साझेदार हैं।
- आयात संरचना: प्रमुख आयातों में पेट्रोलियम तेल, सोना (प्लैटिनम चढ़ाया हुआ सोना सहित) और सोयाबीन तेल शामिल हैं।
- निर्यात संरचना: प्रमुख निर्यातों में पेट्रोलियम तेल (कच्चे तेल को छोड़कर), मोटर कारें तथा परिवहन के लिये डिज़ाइन किये गए अन्य मोटर वाहन शामिल हैं।
- आर्थिक स्थिति: लैटिन अमेरिका को भारत के लिये "गोल्डीलॉक्स क्षेत्र" में माना जाता है- जो अमेरिका और यूरोप जैसे अत्यधिक विनियमित बाज़ारों और अफ्रीका के कम प्रतिस्पर्द्धा बाज़ारों के बीच संतुलन प्रदान करता है।
- राजनीतिक और द्विपक्षीय सहयोग:
- विदेश नीति प्राथमिकता: ऐतिहासिक रूप से, लैटिन अमेरिका अपने सीमित भू-राजनीतिक प्रभाव के कारण भारत की विदेश नीति में कम प्राथमिकता वाले देश की सूची में रहा है। हालाँकि, हाल के घटनाक्रम इस दृष्टिकोण में महत्त्वपूर्ण बदलाव का संकेत देते हैं।
- विशेष रूप से, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अप्रैल, 2023 में गुयाना, पनामा, कोलंबिया और डोमिनिकन गणराज्य की ऐतिहासिक यात्रा की, यह पहली बार है जब किसी भारतीय विदेश मंत्री ने इन देशों का दौरा किया है।
- सहभागिता में वृद्धि: वर्ष 2022 में G20 सदस्य अर्जेंटीना, ब्राज़ील और मैक्सिको को कनिष्ठ मंत्री के बजाय भारत के विदेश मंत्री के अधिकार क्षेत्र में रखा गया।
- ब्राज़ील की नेतृत्वकारी भूमिका: ब्राज़ील को ब्रिक्स, IBSA (भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका) और G-20 जैसे बहुपक्षीय मंचों में सक्रिय भागीदारी के कारण भारत के साथ सबसे अधिक राजनीतिक संबंध रखने वाला देश माना जाता है।
- अधिमान्य व्यापार समझौते (PTA): भारत और चिली के साथ-साथ भारत और मर्कोसुर के बीच PTA पर हस्ताक्षर, भारत के साथ आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ करने के लिये लैटिन अमेरिका की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- वर्ष 1991 में स्थापित लैटिन अमेरिकी व्यापार समूह मर्कोसुर में छह सदस्य हैं, अर्थात् ब्राज़ील, अर्जेंटीना, उरुग्वे, पैराग्वे , वेनेज़ुएला और बोलीविया।
- प्रारंभ में इसका उद्देश्य वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और लोगों के मुक्त आवागमन को सुविधाजनक बनाना था, लेकिन वर्ष 1995 में यह एक सीमा शुल्क संघ बन गया और अब यह एक साझा बाज़ार की ओर अग्रसर है।
- सामरिक स्वायत्तता: दोनों क्षेत्रों ने एक प्रकार की गुटनिरपेक्षता को अपनाया है, जिसे भारत द्वारा 'रणनीतिक स्वायत्तता' तथा लैटिन अमेरिकी देशों द्वारा 'सक्रिय गुटनिरपेक्षता' (ANA) कहा जाता है, जो विशेष रूप से यूक्रेन में युद्ध जैसे वैश्विक मुद्दों के संबंध में उनकी साझा स्थिति से स्पष्ट है।
- सांस्कृतिक संबंध:
- साहित्यिक प्रभाव: वर्ष 1924 में टैगोर की अर्जेंटीना यात्रा और उनके साहित्यिक योगदान ने मैक्सिकन दार्शनिक जोस वास्कोनसेलोस द्वारा अनुवाद के माध्यम से लैटिन अमेरिकी साहित्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है।
- गांधी की विरासत: महात्मा गांधी द्वारा दी गई अहिंसा संबंधी शिक्षा लैटिन अमेरिका में प्रबल रूप से प्रचलित हैं, जिसका पालन ब्राज़ील में पलास एथेनास जैसे संगठनों द्वारा किया जाता है।
- विदेश नीति प्राथमिकता: ऐतिहासिक रूप से, लैटिन अमेरिका अपने सीमित भू-राजनीतिक प्रभाव के कारण भारत की विदेश नीति में कम प्राथमिकता वाले देश की सूची में रहा है। हालाँकि, हाल के घटनाक्रम इस दृष्टिकोण में महत्त्वपूर्ण बदलाव का संकेत देते हैं।
- LAC क्षेत्र के साथ व्यापार समझौते/समझौता ज्ञापन:
- भारत – चिली PTA
भारत के लिये लैटिन अमेरिका का क्या महत्त्व है?
- आर्थिक अवसर: लैटिन अमेरिका प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, जिसमें ताँबा, लिथियम और लौह अयस्क जैसे खनिज़ शामिल हैं, जो भारत की बढ़ती औद्योगिक मांगों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- इस क्षेत्र का सामूहिक सकल घरेलू उत्पाद 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, जो भारतीय निर्यात और निवेश के लिये पर्याप्त बाज़ार उपलब्ध कराता है।
- ऊर्जा सुरक्षा: ऊर्जा की बढ़ती मांग के साथ, लैटिन अमेरिका भारत के लिये कच्चे तेल का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता बनकर उभरा है।
- हाल के वर्षों में वेनेज़ुएला, मैक्सिको और ब्राज़ील से कच्चे तेल का आयात LAC से भारत के कुल आयात का 30% रहा है।
- सामरिक साझेदारियाँ: भू-राजनीतिक परिदृश्य परिवर्तित हो गया है, जिससे भारत को इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिये लैटिन अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने की प्रेरणा मिली है।
- सांस्कृतिक एवं शैक्षिक आदान-प्रदान: भारत और लैटिन अमेरिका के बीच सांस्कृतिक संबंधों को शैक्षिक आदान-प्रदान तथा सूचना प्रौद्योगिकी एवं फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में सहयोग के माध्यम से दृढ़ता मिली है।
- भारतीय IT कंपनियाँ इस क्षेत्र में 40,000 से अधिक स्थानीय पेशेवरों को रोज़गार देती हैं, जो रोज़गार सृजन और कौशल विकास में योगदान देती हैं।
- खाद्य सुरक्षा: लैटिन अमेरिका का विशाल कृषि परिदृश्य भारत को खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने के अवसर प्रदान करता है, विशेष रूप से दालों और तिलहनों में, जो खाद्य सुरक्षा के लिये आवश्यक हैं।
वे कौन-से क्षेत्र हैं, जिनमें भारत लैटिन अमेरिकी देशों के साथ सहयोग कर रहा है?
- फार्मास्यूटिकल्स और हेल्थकेयर: भारत को विश्व स्तर पर अपने फार्मास्यूटिकल उद्योग के लिये जाना जाता है, जो किफायती मूल्यों पर उच्च गुणवत्ता वाली दवाइयाँ उपलब्ध कराता है।
- इन निर्यातों के लिये शीर्ष पाँच गंतव्य अमेरिका, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका, यूके और ब्राजील हैं।
- ऊर्जा सहयोग: भारत बोलीविया में लिथियम भंडार की खोज और निष्कर्षण कर रहा है। वर्ष 2023 में भारत की अल्टमिन प्राइवेट लिमिटेड ने बोलीविया की सरकारी स्वामित्व वाली लिथियम कंपनी के साथ रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- बोलीविया अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में भी शामिल हो गया।
- कृषि और खाद्य सुरक्षा: LA क्षेत्र में विशाल कृषि संसाधन हैं जो भारत को अपनी खाद्य सुरक्षा चिंताओं को दूर करने में मदद करते हैं।
- दोनों क्षेत्रों में उत्पादकता और स्थिरता बढ़ाने के लिये खाद्य प्रसंस्करण और कृषि अनुसंधान में सहयोग की संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: रेलवे, राजमार्ग और ऊर्जा मार्गों सहित एलए राष्ट्रों में आधुनिक बुनियादी ढाँचे के विकास में सहयोग।
- भारत दक्षिण-दक्षिण सहयोग के तहत बोलीविया के साथ अपनी विकास साझेदारी को महत्त्व देता है और बोलीविया की पसंद के क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण सुविधा प्रदान की है।
व्यापार समझौतों के प्रकार
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA): FTA दो या दो से अधिक देशों के बीच एक व्यापक समझौता है जिसका उद्देश्य विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं पर टैरिफ और कोटा जैसी व्यापार बाधाओं को कम करना है।
- भारत ने श्रीलंका और आसियान जैसे विभिन्न व्यापारिक समूहों सहित कई देशों के साथ FTA पर बातचीत की है।
- अधिमान्य व्यापार समझौता (PTA): PTA एक ऐसा समझौता है जिसमें साझेदार देश विशिष्ट वस्तुओं पर टैरिफ कम करके कुछ उत्पादों तक अधिमान्य पहुँच प्रदान करते हैं। कुछ टैरिफ को तो पूरी तरह से समाप्त भी किया जा सकता है।
- FTA के विपरीत, PTA आम तौर पर कम व्यापक होते हैं और केवल सीमित संख्या में वस्तुओं को ही कवर कर सकते हैं। कुछ उत्पादों के लिये टैरिफ को शून्य तक भी कम किया जा सकता है।
- भारत ने अफगानिस्तान के साथ एक PTA पर हस्ताक्षर किये हैं।
- व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA): CEPA, FTA से अधिक व्यापक है, जिसमें सेवाओं में व्यापार, निवेश और व्यापक आर्थिक सहयोग शामिल है। भारत ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ CEPA स्थापित किया है।
- व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA): CECA मुख्य रूप से व्यापार शुल्क और टैरिफ दर कोटा (TRQ) पर केंद्रित है, लेकिन CEPA की तुलना में कम व्यापक है। भारत ने मलेशिया के साथ CECA पर हस्ताक्षर किये हैं।
लैटिन अमेरिकी देशों के साथ संबंधों को गहरा करने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- क्षेत्रीय तंत्रों का अभाव: भारत ने अभी तक लैटिन अमेरिका को एक क्षेत्र के रूप में या मध्य अमेरिकी एकीकरण प्रणाली (SICA), लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई राज्यों के समुदाय (CELAC), मर्कोसुर और प्रशांत गठबंधन जैसे उप-समूहों के साथ संलग्न करने के लिये एक रूपरेखा विकसित नहीं की है।
- लैटिन अमेरिका के भीतर क्षेत्रीय एकीकरण अभी भी अधूरा है, जिससे अल्पावधि में द्विपक्षीय संबंध अधिक व्यवहार्य हो गए हैं।
- सीमित व्यापार समझौते: मर्कोसुर और चिली के साथ मौजूदा अधिमान्य व्यापार समझौते (PTA) का दायरा दक्षिण कोरिया, जापान या आसियान के साथ भारत के FTA की तुलना में संकीर्ण है।
- बढ़ते निर्यात के बावजूद, लैटिन अमेरिका को मुद्रास्फीति, राजनीतिक अस्थिरता और बुनियादी ढाँचे में कम निवेश जैसी आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे व्यापार प्रभावित हो रहा है।
- चीन का प्रभुत्त्व: भारत को चीन की महत्त्वपूर्ण व्यापारिक उपस्थिति, रणनीतिक निवेश और प्रमुख लैटिन अमेरिकी देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है।
- भौगोलिक बाधाएँ: व्यापार क्षेत्र और सांस्कृतिक संबंधों में सकारात्मक विकास के बावजूद, भौगोलिक दूरी और भाषा संबंधी बाधाएँ सामाजिक संपर्कों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं, जिनमें उच्च यात्रा लागत और लैटिन अमेरिका की यात्रा करने वाले भारतीयों के लिये वीज़ा संबंधी कठिनाइयाँ शामिल हैं।
- बहुत से भारतीय अभी भी लैटिन अमेरिकी देशों को पुरानी रूढ़ियों के माध्यम से देखते हैं, जैसे कि "बनाना रिपब्लिक" जो अस्थिरता और नशीली दवाओं की तस्करी की विशेषता रखते हैं। इसके विपरीत, लैटिन अमेरिकी प्रायः भारत को केवल अध्यात्म और गुरुओं की भूमि के रूप में देखते हैं।
- द्विपक्षीय तालमेल: यह संबंध जलवायु परिवर्तन, व्यापार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर द्विपक्षीय सहयोग से प्रेरित है, हालाँकि रक्षा और अंतरिक्ष जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में सीमित भागीदारी देखी गई है।
लैटिन अमेरिका के साथ अपने संबंध बेहतर करने के लिये भारत क्या रणनीति अपना सकता है?
- "फोकस: LAC कार्यक्रम को पुनः सक्रिय करना: इस व्यापार संवर्द्धन कार्यक्रम से बाज़ार पहुँच को मज़बूती मिलने के साथ संस्थागत तंत्र में सुधार एवं आर्थिक बुनियादी ढाँचे का विकास हो सकता है जिससे व्यापार के लिये अनुकूल वातावरण तैयार हो सकेगा।
- उन क्षेत्रों में चयनात्मक व्यापार को बढ़ावा देना चाहिये जहाँ भारत को प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्राप्त हों जैसे
- द्विपक्षीय समझौते एवं निवेश प्रोत्साहन: भारत को लैटिन अमेरिकी देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) एवं तरजीह व्यापार व्यवस्था को आगे बढ़ाना चाहिये जिसमें प्रौद्योगिकी, कृषि तथा स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- भारत एवं लैटिन अमेरिकी देशों के बीच पर्सन टू पर्सन (P2P) एवं बिज़नेस टू बिज़नेस (B2B) संबंधों को बढ़ावा देने से सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सुविधा होगी और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- राजनयिक समन्वय: उच्च स्तरीय यात्राओं, क्षेत्रीय व्यापार शिखर सम्मेलनों में भागीदारी तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के माध्यम से राजनयिक संबंधों को मज़बूत करने के साथ गहन आर्थिक सहयोग का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
- उन्नत निर्यात संवर्द्धन: भारतीय निर्यातकों को लैटिन अमेरिकी बाज़ार में प्रवेश करने के लिये वित्तीय सहायता तथा लक्षित प्रयासों की आवश्यकता है।
- निर्यात संवर्द्धन परिषदें एवं उद्योग संघ इस संबंध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- लैटिन अमेरिकी हितों पर बल देना: भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वेनेजुएला, अर्जेंटीना एवं हैती जैसे लैटिन अमेरिकी देशों के लिये सक्रिय रूप से समर्थन देना चाहिये।
- ऐसा करके भारत अपने राजनयिक संबंधों को मज़बूत कर सकता है तथा इन देशों के साथ एकजुटता (विशेष रूप से आर्थिक अस्थिरता और राजनीतिक चुनौतियों जैसे मुद्दों पर ध्यान देने में) प्रदर्शित कर सकता है।
- सेवा व्यापार संवर्द्धन: FTA साझेदारों के साथ संबंधित सेवा क्षेत्रों में गैर-टैरिफ बाधाओं का एक व्यापक डाटाबेस तैयार करना चाहिये।
- प्राथमिकता के आधार पर व्यावसायिक योग्यताओं के क्रम में पारस्परिक मान्य समझौते स्थापित करने चाहिये।
- सेवा प्रदाताओं के लिये बाजार पहुँच संबंधी मुद्दों की रिपोर्ट करने हेतु एक डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ की व्यापार बाधा रिपोर्टिंग प्रणाली के समान एक प्रणाली लागू करनी चाहिये ।
- बाजार-विशिष्ट रणनीतियों के साथ समर्पित सेवा निर्यात संवर्द्धन परिषदों की स्थापना करनी चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: लैटिन अमेरिका के साथ भारत के व्यापार संबंधों से जुड़ी चुनौतियों एवं अवसरों पर चर्चा कीजिये। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक समूह में चारों देश G-20 के सदस्य हैं? (2020) (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की उत्तर: (a) प्रश्न: निरपेक्ष और प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करती, यदि (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है। उत्तर: C |