लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

जैव विविधता और पर्यावरण

इंटरकनेक्टेड डिज़ास्टर रिस्क रिपोर्ट, 2023

  • 27 Oct 2023
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र इंटरकनेक्टेड डिज़ास्टर रिस्क रिपोर्ट, 2023, जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष मलबा, वेट-बल्ब तापमान, बाढ़, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत, आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क 2015- 2030, जलवायु जोखिम और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, आपदा रोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन सोसायटी, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना

मेन्स के लिए:

इंटरकनेक्टेड डिज़ास्टर रिस्क रिपोर्ट, 2023 के प्रमुख निष्कर्ष, बढ़ते आपदा जोखिमों के प्रमुख कारक

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी इंटरकनेक्टेड डिज़ास्टर रिस्क रिपोर्ट, 2023 ने दुनिया की परस्पर निर्भरता को सुर्खियों में ला दिया है, इस रिपोर्ट ने आसन्न वैश्विक टिपिंग पॉइंट्स की चेतावनी दी है और संभावित विनाशकारी परिणामों को रोकने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित किया है। 

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष: 

  • परिचय: संयुक्त राष्ट्र इंटरकनेक्टेड डिज़ास्टर रिस्क रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय- पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान (UNU-EHS) द्वारा जारी एक विज्ञान-आधारित वार्षिक रिपोर्ट है, इसका प्रथम प्रकाशन वर्ष 2021 में किया गया था।
    • प्रत्येक वर्ष रिपोर्ट आपदाओं के कई वास्तविक उदाहरणों का विश्लेषण करती है और बताती है कि वे एक-दूसरे से तथा मानवीय कार्यों से कैसे जुड़े हुए हैं
    • यह रिपोर्ट दर्शाती है कि कैसे स्थिर प्रतीत होने वाली प्रणालियाँ एक महत्त्वपूर्ण सीमा पार होने तक धीरे-धीरे निष्क्रिय हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप विनाशकारी प्रभाव पड़ सकते हैं।
      • यह रिपोर्ट "रिस्क टिपिंग पॉइंट्स" की अवधारणा प्रस्तुत करती है जो सामाजिक पारिस्थितिक तंत्र द्वारा जोखिमों को रोकने की अक्षमता तथा विनाशकारी प्रभावों के बढ़ते जोखिम को दर्शाते हैं।

नोट: संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (United Nations University- UNU) संयुक्त राष्ट्र की शैक्षणिक शाखा है जो एक ग्लोबल थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है। पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान (UNU-EHS) का उद्देश्य पर्यावरणीय खतरों एवं वैश्विक परिवर्तन से संबंधित जोखिमों व अनुकूलन पर अत्याधुनिक शोध करना है। यह संस्थान जर्मनी के बॉन में स्थित है।

  • टिपिंग पॉइंट: यह रिपोर्ट इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि दुनिया छह पर्यावरणीय टिपिंग पॉइंट्स के करीब पहुँच रही है-
    • भू-जल की कमी: जलभृतों में संगृहीत भू-जल 2 अरब से अधिक लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण है, जिसमें से 70% कृषि के लिये उपयोग किया जाता है।
      • हालाँकि विश्व के 21 प्रमुख जलभृत उनकी पुनर्भरण की तुलना में तेज़ी से समाप्त हो रहे हैं।
      • जलभृत जल को एकत्रित होने में अमूमन हज़ारों वर्ष लग जाते हैं तथा यह अनिवार्य रूप से गैर-नवीकरणीय होता है।
      • सऊदी अरब जैसे कुछ क्षेत्रों में अति-निष्कर्षण हुआ है, जिससे इसका 80% से अधिक जलभृत समाप्त हो गया है। जलभृत की कमी के कारण आयातित फसलों/कृषि उत्पादों  पर निर्भरता बढ़ जाती है, जिससे खाद्य सुरक्षा के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
      • भारत के गंगा के मैदानी भाग के कुछ क्षेत्र पहले ही भू-जल की कमी की गंभीर सीमा को पार कर चुके हैं तथा पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र द्वारा वर्ष 2025 तक गंभीर रूप से सीमित भू-जल उपलब्धता का सामना करने की संभावना है।
    • प्रजातियों के विलुप्त होने की प्रक्रिया में तेज़ी आना: भूमि उपयोग में परिवर्तन, अत्यधिक दोहन तथा जलवायु परिवर्तन जैसी मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरुप प्रजातियों का विलुप्तीकरण तेज़ हो गया है।
      • मानव प्रभाव के कारण वर्तमान विलुप्ति दर सामान्य विलुप्ति दर से कई गुना अधिक है।
      • विलुप्तीकरण से एक शृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया शुरू हो सकती है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र का पतन हो सकता है।
    • पर्वतीय हिमनदों का तेज़ी से पिघलना: हिमनद जल के प्रमुख स्रोत हैं, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण वे दोगुनी दर से पिघल रहे हैं।
      • वर्ष 2000 से 2019 के बीच ग्लेशियरों से प्रति वर्ष 267 गीगाटन बर्फ पिघली। सीमित तापमान वृद्धि के बावजूद, वर्ष 2100 तक विश्व के लगभग 50% ग्लेशियरों के पिघलने का अनुमान है।
      • हिमालय, काराकोरम और हिंदू कुश पहाड़ों के 90,000 से अधिक ग्लेशियर खतरे में हैं तथा उन पर निर्भर लगभग 870 मिलियन लोगों का जीवन भी खतरे में हैं।
    • बढ़ता अंतरिक्ष मलबा: उपग्रह मौसम निगरानी, संचार और सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन अंतरिक्ष में कृत्रिम उपग्रहों की बढ़ती संख्या अंतरिक्ष मलबे की समस्या उत्पन्न कर रही है।
      • केवल 25% ऑर्बिट में सक्रिय उपग्रह मौजूद हैं; शेष गैर-कार्यात्मक मलबा है।
        • अंतरिक्ष में लगभग 130 मिलियन सूक्ष्म, ट्रैक न किये जा सकने वाले मलबे के टुकड़े हैं।
      • अंतरिक्ष मलबे के ये टुकड़े तेज़ी से विचरण करते हैं और संचालनरत उपग्रहों के साथ टकराव का खतरा उत्पन्न करती हैं, जिससे एक खतरनाक कक्षीय पर्यावरण तैयार होता है।
    • असहनीय गर्मी: वर्तमान में जलवायु परिवर्तन अत्यधिक घातक हीटवेव का कारण बन रहा है। उच्च तापमान और आर्द्रता शरीर को ठंडा रखने में कठिनाई उत्पन्न करती है।
      • जब "वेट-बल्ब तापमान" 35°C से अधिक हो जाता है और छह घंटे से अधिक समय तक रहता है, तो यह ‘वेट-बल्ब’ तापमान अंग विफलता एवं मस्तिष्क क्षति का कारण बन सकता है। ऐसी घटना पाकिस्तान के जैकबाबाद जैसी जगहों पर हो चुकी है।
        • साथ ही वर्ष 2023 में भारत में एक हीटवेव के दौरान वेट-बल्ब तापमान 34°C से अधिक हो गया।
      • अनुमान है कि वर्ष 2100 तक वैश्विक आबादी का 70% से अधिक हिस्सा इससे प्रभावित होगा।
    • बीमा न करने सकने योग्य (UNINSURABLE)भविष्य: प्राय गंभीर प्रतिकूल मौसम के कारण वर्ष 1970 के दशक के बाद से ही हानि में सात गुना वृद्धि हो रही है, वर्ष 2022 में 313 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक की हानि होने की संभावना है।
      • जलवायु परिवर्तन के कारण बीमा लागत बढ़ रही है, जिससे इसकी पहुँच कई लोगों के लिये वहनीय नहीं रह गई है।
      • कुछ बीमाकर्ता अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों को बीमा योग्यता श्रेणी से बाहर कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्रों को बीमा के लिये अयोग्य घोषित किया जा रहा है।
        • उदाहरण के लिये, ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ के बढ़ते जोखिम के कारण वर्ष 2030 तक लगभग 520,940 परिवार बीमा योग्यता श्रेणी से बाहर हो गए हैं।
  • अंतर्संबंध: बढ़े हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से प्रेरित जलवायु परिवर्तन टिपिंग बिंदुओं के एक सामान्य चालक के रूप में कार्य करता है। इसमें ग्लेशियर पिघलना, चरम मौसम की घटनाएँ और बीमा जोखिम परिदृश्य में बदलाव शामिल हैं।
    • ये परस्पर जुड़े पर्यावरणीय मुद्दे फीडबैक लूप को ट्रिगर कर सकते हैं, जैसे ग्लेशियर के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ना, तटीय बाढ़ में वृद्धि और आपदा बीमा की मांग में वृद्धि।
    • अंततः इन टिपिंग बिंदुओं के महत्त्वपूर्ण सामाजिक आर्थिक परिणाम होते हैं।

बढ़ते आपदा जोखिमों के प्रमुख चालक:

  • शहरीकरण: तीव्र शहरीकरण प्राय पर्याप्त योजना और बुनियादी ढाँचे के विकास के बिना होता है।
    • जैसे-जैसे शहर विस्तृत हैं वैसे-वैसे अधिक से अधिक व्यक्ति व संपत्ति बाढ़ और भूकंप जैसे खतरों के संपर्क में आते हैं, जिससे आपदा की संवेदनशीलता बढ़ती है।
  • पर्यावरणीय क्षरण: वनों की कटाई, मृदा अपरदन और पर्यावरण प्रदूषण प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को कमज़ोर करते हैं और आपदाओं के खिलाफ प्रतिरोधक के रूप में कार्य करने की उनकी क्षमता को कम करते हैं। पर्यावरणीय क्षरण खतरों के प्रभाव को बढ़ाता है।
  • अपर्याप्त और अकुशल बुनियादी ढाँचा: अपर्याप्त रूप से निर्मित या रखरखाव किये गए बुनियादी ढाँचे, जैसे पुल, भवन और सड़कें, आपदाओं के दौरान ढह सकते हैं, जिससे महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक हानि हो सकती है।
  • अनुपजाऊ भूमि उपयोग योजना:  अपर्याप्त भूमि उपयोग योजना के परिणामस्वरूप, समुदाय बाढ़ के मैदानों या वनाग्नि-प्रवण क्षेत्रों जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में बस सकते हैं। यह आपदाओं के जोखिम को बढ़ाने में योगदान देता है।
  • जल प्रबंधन के मुद्दे: जल संसाधनों के कुप्रबंधन से सूखा, जल की कमी और बाढ़ आ सकती है।
    • इन मुद्दों के खाद्य सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और समुदायों पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
  • वैश्विक अंतर्संबंध: जैसे-जैसे विश्व अधिक अंतर्संबंधित होता जा रहा है, किसी एक क्षेत्र में व्यवधान का वैश्विक स्तर पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।
    • यह अंतर्संबंध आपदाओं के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव को बढ़ा सकता है।

समाधान के लिये रिपोर्ट की अनुशंसाएँ:

  • यह रिपोर्ट आपदा जोखिमों से निपटने के लिये समाधानों को वर्गीकृत करने और प्राथमिकता देने हेतु चार-श्रेणी के ढाँचे का प्रयोग करती है।
    • विलंब से बचें: ये ऐसी कार्रवाइयाँ हैं जिनका उद्देश्य वर्तमान तरीकों के उपयोग से आपदाओं को कम करके उन्हें नियंत्रित करना है।
      • उदाहरण के लिये, आपदाओं से होने वाली बड़ी क्षति को रोकने हेतु तत्काल सख्त बिल्डिंग कोड और भूमि-उपयोग नियमों को लागू करना आवश्यक है।
    • परिवर्तन से बचाव: इन प्रक्रियाओं का लक्ष्य मौजूदा प्रथाओं में बड़े बदलाव लागू करके आपदाओं को टालना अर्थात् उनपर नियंत्रण रखना है।
      • उदाहरण के लिये, जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों से बचने हेतु जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा उत्पादन के स्थान पर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर एवं पवन) की ओर रुख करना।
    •  एडैप्ट-डिले (Adapt-Delay): हमारे प्रतिक्रिया समय को बढ़ाकर, ये उपाय हमें आपात स्थितियों से निपटने में सक्षम बनाते हैं।
      • उदाहरण के लिये, सुनामी हेतु उन्नत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को विकसित करना ताकि लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने और आपदा की तैयारी के लिये पर्याप्त समय मिल सके।
    • एडैप्ट-ट्रांसफॉर्म (Adapt-Transform): इन कार्यों में आपदाओं के अनुकूल कार्य करने के तरीके में बड़े बदलाव करना शामिल है।
      • उदाहरण के लिये, समुद्र के बढ़ते जल स्तर के अनुकूल होने और तटीय सुरक्षा रणनीतियों को बदलने के लिये तटीय ज़ोनिंग नीतियों को लागू करना एवं प्राकृतिक बाधा पारिस्थितिकी तंत्र (जैसे मैंग्रोव) को बहाल करना।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु पहल:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (2020)

प्रश्न. आपदा प्रभावों और लोगों के लिये उसके खतरे को परिभाषित करने के लिये भेद्यता एक आवश्यक तत्त्व है। आपदाओं के प्रति भेद्यता का किस प्रकार और किन-किन तरीकों के साथ चरित्र-चित्रण किया जा सकता है? आपदाओं के संदर्भ में भेद्यता के विभिन्न प्रकारों पर चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न. भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डी.आर.आर.) के लिये ‘सेंदाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप (2015-2030)’ हस्ताक्षरित करने से पूर्व एवं उसके पश्चात् किये गए विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिये। यह प्रारूप ‘ह्योगो कार्रवाई प्रारूप, 2005’ से किस प्रकार भिन्न है? (2018)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2