उत्तर प्रदेश Switch to English
उत्तर प्रदेश नागरिक उड्डयन में निवेश हेतु तैयार
चर्चा में क्यों?
सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार नागरिक उड्डयन क्षेत्र में 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (16,000 करोड़ रुपए से अधिक) के निजी निवेश का लक्ष्य बना रही है।
- विमानन प्रशिक्षण, विमान रखरखाव और एयरो-स्पोर्ट्स जैसी सहायक गतिविधियों को बढ़ावा देने के अलावा, प्रस्तावित निवेश का उपयोग मौजूदा हवाई पट्टियों को विकसित तथा उन्नत करने के लिये किया जा सकता है।
मुख्य बिंदु:
- प्रमुख क्षेत्रीय संपर्क योजना (RCS) के तहत, तत्काल विकास के लिये चिह्नित 14 सरकारी हवाई पट्टियों के अलावा, राज्य 225 मार्गों को चालू करने के लिये कदम उठा रहा है।
- छह हवाई पट्टियों अर्थात् अलीगढ़, आजमगढ़, चित्रकूट, श्रावस्ती, मुरादाबाद और सोनभद्र को RCS के तहत उड़ानों को संभालने के लिये उन्नत किया जा रहा है।
- राज्य ने हवाई पट्टियों के आधुनिकीकरण, भूमि अधिग्रहण और अन्य के लिये नागरिक उड्डयन बुनियादी ढाँचे हेतु चालू वित्त वर्ष 2024-25 (FY25) में लगभग 28,000 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया है।
- उत्तर प्रदेश में वित्त वर्ष 24 में यात्रियों की संख्या में 20% की वृद्धि देखी गई, जो अवकाश और व्यावसायिक पर्यटन में विमानन विकास में तीव्र वृद्धि का संकेत है।
- रकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मोड के तहत प्रमुख पर्यटक आकर्षण स्थलों में हेलीकॉप्टर टैक्सियों को भी बढ़ावा दे रही है।
- वर्ष 2023 में, UP टूरिज़्म ने आगरा और मथुरा के बीच 30 वर्षों के लिये हेलीपोर्ट संचालित करने हेतु राजस एयरोस्पोर्ट्स एंड एडवेंचर्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- UP सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है, वर्ष 2023 में पर्यटकों की आमद में 50% की वृद्धि दर्ज करते हुए 480 मिलियन तक पहुँच गया है।
क्षेत्रीय संपर्क योजना
- परिचय:
- क्षेत्रीय हवाई अड्डे के विकास तथा क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के लिये नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) को लॉन्च किया गया था।
- यह राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति (National Civil Aviation Policy), 2016 का हिस्सा है।
- यह योजना 10 वर्ष की अवधि के लिये लागू है।
- उद्देश्य:
- भारत के सुदूर क्षेत्रों और क्षेत्रीय हवाई संपर्क में सुधार करना।
- दूरस्थ क्षेत्रों का विकास और व्यापार एवं वाणिज्य तथा पर्यटन विस्तार को बढ़ाना।
- आम लोगों को सस्ती दरों पर हवाई यात्रा की सुविधा उपलब्ध कराना।
- विमानन क्षेत्र में रोज़गार सृजन।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- इस योजना के तहत एयरलाइंस को कुल सीटों की 50% सीटों के लिये हवाई किराया 2,500 रुपए प्रति घंटे की उड़ान पर सीमित करना होगा।
- इस उद्देश्य को निम्नलिखित के आधार पर प्राप्त किया जाएगा
- केंद्र एवं राज्य सरकारों और हवाई अड्डों के संचालकों की ओर से रियायतों के रूप में वित्तीय प्रोत्साहन के माध्यम से।
- व्यवहार्यता अंतराल अनुदान (Viability Gap Funding- VGF)- संचालन की लागत और अपेक्षित राजस्व के बीच अंतर को कम करने के लिये एयरलाइंस को प्रदान किये जाने वाले सरकारी अनुदान के माध्यम से।
- योजना के तहत व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये क्षेत्रीय कनेक्टिविटी अनुदान (Regional Connectivity Fund- RCF) प्रदान किया गया है।
- इस निवेश में सहभागी राज्य सरकारें (केंद्रशासित प्रदेश और NER राज्यों के अतिरिक्त जिनका योगदान 10% है) 20% की भागीदारी करेंगी।
मध्य प्रदेश Switch to English
मध्य प्रदेश में प्रागैतिहासिक कलाकृतियाँ मिलीं
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य प्रदेश स्थित घुघवा राष्ट्रीय जीवाश्म उद्यान में एक खोज की गई, जहाँ बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिज़र्व में अनुसंधान कर रहे सोनीपत स्थित अशोका विश्वविद्यालय के पुरातत्त्वविदों के एक दल को जीवाश्म काष्ठ से बनी प्रागैतिहासिक कलाकृतियाँ मिलीं।
मुख्य बिंदु:
- यह खोज दर्शाती है कि प्रागैतिहासिक चलवासी लोग पेड़ के लट्ठों को अपने औजारों और वस्तुओं को बनाने के लिये संसाधन के रूप में उपयोग करते थे।
- जीवाश्म लकड़ी/काष्ठ से बने औजार भारत में आम नहीं हैं तथा ये काफी दुर्लभ हैं, केवल तमिलनाडु, राजस्थान और त्रिपुरा में ही इनके कुछ उदाहरण पाए जाते हैं।
- हालाँकि घुघवा में खोजी गई कलाकृतियों की आयु अनिश्चित बनी हुई है, लेकिन शोधकर्त्ताओं का अनुमान है कि वे कम-से-कम 10,000 वर्ष पुरानी हैं।
- इन कलाकृतियों में मध्यम आकार के टुकड़े शामिल थे जिनकी लंबाई लगभग पाँच सेमी. थी।
- इसके अतिरिक्त, आस-पास के क्षेत्र में लगभग दो सेमी. लंबे कुछ माइक्रोलिथ भी पाए गए।
- मध्य प्रदेश में कई प्राचीन स्थल हैं जैसे भीमबेटका, जो संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) का विश्व धरोहर स्थल है, हथनोरा (जहाँ नर्मदा बेसिन से जीवाश्म हड्डियों के रूप में एक महिला की खोपड़ी का टुकड़ा पाया गया था) इसके अलावा नीमटोन, पिलिकर और महादेव पिपरिया जैसे स्थल भी हैं।
- इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से क्वार्टज़ाइट, चर्ट और बलुआ पत्थर जैसी सामग्रियों से बने उपकरण पाए गए हैं।
- हालाँकि, जीवाश्म उद्यान में हाल ही में हुई खोज से पता चलता है कि हमारे पूर्वज भी जीवाश्म लकड़ी का उपयोग करते थे, जो यह दर्शाता है कि वे केवल पत्थर के संसाधनों पर निर्भर नहीं थे।
घुघवा राष्ट्रीय जीवाश्म
- यह डिंडोरी से 70 किलोमीटर दूर घुगवा गाँव में स्थित है।
- यह 75 एकड़ भूमि के क्षेत्र में बसा हुआ है, जहाँ पत्तियों और पेड़ों के रोचक एवं दुर्लभ जीवाश्म की खोज जारी है।
- स राष्ट्रीय उद्यान में पादप जीवाश्म रूप में हैं जो भारत में लगभग 40 मिलियन से 150 मिलियन वर्ष पूर्व मौजूद थे।
बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व
- परिचय: वर्ष 1968 में इसे राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया तथा वर्ष 1993 में पड़ोसी पनपथा अभयारण्य में प्रोजेक्ट टाइगर नेटवर्क के तहत इसे बाघ अभयारण्य घोषित किया गया।
- भौगोलिक पहलू: यह मध्य प्रदेश की सुदूर उत्तर-पूर्वी सीमा और सतपुड़ा पर्वत शृंखला के उत्तरी किनारे पर स्थित है।
- जलवायु: उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु क्षेत्र।
- जैवविविधता: मुख्य भूमि में बाघों की संख्या बहुत अधिक है। यहाँ स्तनधारियों की 22 से अधिक प्रजातियाँ और पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियाँ हैं।
- उपस्थित प्रजातियाँ: एशियाई सियार, बंगाल फॉक्स, स्लॉथ बियर, स्ट्राइप्प्ड हायना, तेंदुआ और बाघ, जंगली सूअर, नीलगाय, चिंकारा तथा गौर (एकमात्र शाकाहारी)।
हरियाणा Switch to English
अरावली की वनाग्नि
चर्चा में क्यों?
तापमान बढ़ने के साथ ही फरीदाबाद में सूरजकुंड के पास अरावली के वन में आग लग गई।
- हालाँकि अग्निशमन विभाग ने आधे घंटे के भीतर आग पर सफलतापूर्वक काबू पा लिया, लेकिन स्थानीय लोगों ने दावा किया कि कई एकड़ भूमि और पेड़ पहले ही जल चुके थे।
मुख्य बिंदु:
- अरावली वलित पर्वत हैं, जिनकी चट्टानें मुख्य रूप से वलित पर्पटी (जब दो अभिसारी प्लेटें तीक्ष्ण वलयन नामक पर्वतनी प्रक्रिया द्वारा एक दूसरे की ओर गति करती हैं) से बनी हैं।
- उत्तर-पश्चिमी भारत की अरावली, विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में से एक है, जो अब 300 मीटर से 900 मीटर की ऊँचाई वाले अपक्षयी पर्वतों का रूप ले चुकी है। गुजरात के हिम्मतनगर से दिल्ली तक 800 किलोमीटर की दूरी तक इनका विस्तार है, जो गुजरात के हिम्मतनगर से दिल्ली तक 800 किलोमीटर की दूरी तक हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली को कवर करती है।
- दिल्ली से हरिद्वार तक विस्तृत अरावली की छिपी हुई शाखा गंगा और सिंधु नदियों के जल निकासी के बीच विभाजन करती है।
- अरावली की उत्पत्ति लाखों वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप की मुख्य भूमि का यूरेशियन प्लेट से टकराने के बाद हुई थी। कार्बन डेटिंग से पता चला है कि पर्वतमाला में खनन किये गए ताँबे और अन्य धातुएँ कम-से-कम 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व की हैं।
- पर्वतों को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया है- सांभर सिरोही श्रेणी और राजस्थान में सांभर खेतड़ी श्रेणी, जहाँ इनका विस्तार लगभग 560 किलोमीटर है।
उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड में भूकंप
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के अनुसार, हाल ही में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में 3.1 तीव्रता का भूकंप आया, जिसका केंद्र धरती की सतह से लगभग 5 किलोमीटर नीचे था।
- राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र, देश में भूकंप गतिविधि की निगरानी के लिये पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत केंद्र की नोडल एजेंसी है।
मुख्य बिंदु:
- उत्तराखंड में भूकंपीय गतिविधि बहुत ज़्यादा होती है तथा ज़्यादातर क्षेत्र भूकंपीय क्षेत्र IV और V के अंतर्गत आते हैं।
- हिमालय विश्व की सबसे नवीनतम पर्वत शृंखला है, जो लगभग 50 मिलियन वर्ष पुरानी है। यह पर्वत शृंखला लगभग 5 मिमी. प्रतिवर्ष की दर से बढ़ती है क्योंकि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट तिब्बती प्लेट के नीचे मुड़ जाती है।
छत्तीसगढ़ Switch to English
छत्तीसगढ़ में GST ई-वे बिल प्रावधान अनिवार्य
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर 50,000 रुपए से अधिक मूल्य के सभी अंतर्राज्यीय माल परिवहन हेतु ई-वे बिल बनाना अनिवार्य कर दिया है, जिससे कुछ वस्तुओं के लिये पहले दी गई छूट समाप्त हो गई है।
- ई-वे बिल एक अनुपालन प्रणाली है, जिसमें डिजिटल इंटरफेस के माध्यम से माल की आवाजाही करने वाला व्यक्ति माल की आवाजाही शुरू होने से पहले प्रासंगिक जानकारी अपलोड करता है और वस्तु एवं सेवा कर (GST) पोर्टल पर ई-वे बिल तैयार करता है।
मुख्य बिंदु:
- प्रारंभ में, ज़िलों के भीतर विशिष्ट वस्तुओं की आवाजाही को सरल बनाने के लिये अपवाद दिये गए थे, लेकिन अनुपालन में सुधार लाने तथा धोखाधड़ीपूर्ण व्यवहारों में कमी लाने हेतु इन्हें वापस ले लिया गया है।
- नीति में यह बदलाव ई-वे बिल प्रणाली के साथ समायोजन के छह वर्ष बाद आया है, जिसे शुरू में वर्ष 2018 में लागू किया गया था। प्रणाली के अभ्यस्त होने की अवधि ने व्यवसायों और ट्रांसपोर्टरों को इससे परिचित होने का मौका दिया है, जिससे छूट समाप्त हो गई है।
- इन छूटों को समाप्त करने का उद्देश्य सर्कुलर ट्रेडिंग और फर्जी बिलिंग जैसी समस्याओं का समाधान करना है, जो पिछली रियायतों का लाभ उठा रहे हैं।
- इसका लक्ष्य निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना, ITC संग्रह को बढ़ाना और वैध व्यवसायों के लिये समान अवसर उपलब्ध कराना है।
इलेक्ट्रॉनिक वे (ई-वे) बिल
- इलेक्ट्रॉनिक वे बिल या 'ई-वे बिल' प्रणाली GST व्यवस्था में 10 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक 50,000 रुपए से अधिक मूल्य की वस्तु की अंतर्राज्यीय और अंत: राज्यीय आवाजाही को ट्रैक करने के लिये तकनीकी ढाँचा प्रदान करती है।
- जब ई-वे बिल तैयार किया जाता है, तो एक अद्वितीय ई-वे बिल नंबर (EBN) आवंटित किया जाता है तथा यह आपूर्तिकर्त्ता, प्राप्तकर्त्ता और ट्रांसपोर्टर के लिये उपलब्ध होता है।
- इसे निम्नलिखित उद्देश्यों हेतु लॉन्च किया:
- वस्तु की तीव्र आवाजाही को सुगम बनाना।
- वाहनों के टर्नअराउंड समय में सुधार करना।
- यात्रा की औसत दूरी बढ़ाकर और यात्रा के समय के साथ-साथ लागत को कम करके लॉजिस्टिक्स उद्योग की सहायता करना।
मध्य प्रदेश Switch to English
मध्य प्रदेश STSF ने विदेशी सामान ज़ब्त किया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य प्रदेश राज्य टाइगर स्ट्राइक फोर्स (STSF) ने देवास ज़िले में छापेमारी के दौरान एक इगुआना और एक एम्परर स्कॉर्पियन को ज़ब्त किया। यह कार्रवाई संशोधित वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) के नियम 49 M के तहत पहली बार लागू की गई।
धारा 49 M में CITES के परिशिष्टों और अधिनियम की अनुसूची IV में सूचीबद्ध जीवित अनुसूचित पशु प्रजातियों के अधिकरण के पंजीकरण, हस्तांतरण तथा जन्म व मृत्यु की रिपोर्टिंग का प्रावधान है।
मुख्य बिंदु:
- दोनों प्रजातियों को WPA 1972 और CITES विनियमों की अनुसूची IV के परिशिष्ट II में वर्गीकृत किया गया है, जिसके तहत व्यापार तथा कैद में रखने के लिये विशेष परमिट की आवश्यकता होती है।
- बचाए गए जीवों को फिलहाल इंदौर के कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।
- यह घटना हाल ही में जीवित पशु प्रजाति (रिपोर्टिंग और पंजीकरण) नियम, 2024 के लागू होने के साथ मेल खाती है, जिसके तहत 31 अगस्त 2024 तक PARIVESH पोर्टल पर CITES-सूचीबद्ध पशुओं के अधिकरण, जन्म और मृत्यु का ऑनलाइन पंजीकरण कराना आवश्यक है।
- इसका अनुपालन न करने पर वैधानिक परिणाम भुगतने होंगे।
जीवित पशु प्रजातियाँ (रिपोर्टिंग और पंजीकरण) नियम, 2024
- मुख्य प्रावधान:
- इन प्रजातियों को वन्य जीव और वनस्पति की संकटग्रस्त प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
- यह पंजीकरण आवश्यकता जीव-जंतुओं के किसी भी हस्तांतरण या उनकी संतति के जन्म पर भी लागू होती है, नियम ऐसे पंजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
- इसमें कहा गया है कि सूचीबद्ध पशु प्रजातियों में से किसी भी जीवित सैंपल को रखने वाले सभी व्यक्तियों को इन नियमों के लागू होने की तिथि से छह महीने की अवधि के भीतर और उसके बाद ऐसी पशु प्रजातियों के अधिकरण में आने के 30 दिनों के भीतर संबंधित राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन को PARIVESH 2.0 पोर्टल के माध्यम से पंजीकरण के लिये आवेदन करना होगा।
- इन प्रजातियों को वन्य जीव और वनस्पति की संकटग्रस्त प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
PARIVESH पोर्टल
- PARIVESH एक वेब-आधारित एप्लीकेशन है, जिसे केंद्रीय, राज्य और ज़िला स्तर के प्राधिकरणों से पर्यावरण, वन, वन्यजीव तथा तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) स्वीकृति प्राप्त करने के लिये प्रस्तावकों द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों की ऑनलाइन प्रस्तुति एवं निगरानी हेतु विकसित किया गया है।
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