भूगोल
भूकंपीय वेधशालाएँ
- 24 Aug 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:भूकंपीय वेधशालाएँ, इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ जियोमैग्नेटिज़्म एंड एरोनॉमी, इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ सीस्मोलॉजी एंड फिजिक्स ऑफ द अर्थ इंटीरियर मेन्स के लिये:भारत के संदर्भ में भूकंपीय वेधशालाओं की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने घोषणा की है कि भारत में वर्ष 2021 के अंत तक 35 और भूकंप वेधशालाएँ तैयार हो जाएंगी तथा वर्ष 2026 तक 100 भूकंप वेधशालाओं को शामिल करने का लक्ष्य है।
- यह घोषणा इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ जियोमैग्नेटिज़्म एंड एरोनॉमी (International Association of Geomagnetism and Aeronomy- IAGA)- इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ सीस्मोलॉजी एंड फिजिक्स ऑफ द अर्थ इंटीरियर (International Association of Seismology and Physics of the Earth Interior- IASPEI) की संयुक्त वैज्ञानिक सभा के उद्घाटन समारोह में की गई।
प्रमुख बिंदु:
भूकंप वेधशालाओं के बारे में:
- राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत) देश में भूकंप गतिविधि की निगरानी के लिये भारत सरकार की नोडल एजेंसी है।
- वर्तमान में भारत में केवल 115 भूकंप वेधशालाएँ हैं।
- भूकंप वेधशाला का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू भूकंप के समय की सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम होना है।
भूकंप वेधशालाओं की आवश्यकता:
- भूकंप की घटना मानव शक्ति से परे एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसलिये बचाव ही इसका एकमात्र उपाय है।
- इसके अलावा भारतीय उपमहाद्वीप को भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, चक्रवात और सुनामी के मामले में विश्व के सबसे अधिक आपदा संभावित क्षेत्रों में से एक माना जाता है।
IAGA और IASPEI के संदर्भ में:
- IAGA पृथ्वी के चुंबकत्व और वायु विज्ञान, सौरमंडल के अन्य निकायों तथा अंतर्ग्रहीय माध्यम एवं इन निकायों के साथ पारस्परिक विचार-विमर्श हेतु अनुसंधान में शामिल होने के लिये वैज्ञानिकों का स्वागत करता है।
- IASPEI भूकंप और अन्य भूकंपीय स्रोतों, भूकंपीय तरंगों के प्रसार तथा पृथ्वी की आंतरिक संरचना, गुणों एवं प्रक्रियाओं के अध्ययन को बढ़ावा देता है।
- यह इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोडेसी एंड जियोफिजिक्स (IUGG) के तहत अर्द्ध-स्वायत्त संघ है।
- IUGG वर्ष 1919 में स्थापित एक गैर-सरकारी, वैज्ञानिक संगठन है।
- इसका सचिवालय जर्मनी के पॉट्सडैम में है।
- IUGG अंतरिक्ष में पृथ्वी (भौतिक, रासायनिक और गणितीय) और इसके पर्यावरण के वैज्ञानिक अध्ययन के अंतर्राष्ट्रीय प्रचार तथा समन्वय के लिये समर्पित है। इन अध्ययनों में शामिल हैं:
- पृथ्वी का आकार।
- गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र।
- पृथ्वी की आंतरिक संरचना, संयोजन और विवर्तनिकी।
- भूकंप और लोचदार तरंग प्रसार।
- मैग्मा, ज्वालामुखी और चट्टान निर्माण की उत्पत्ति।
- बर्फ और बर्फ सहित जल विज्ञान चक्र।
- महासागरों के सभी पहलू, वायुमंडल, आयनोस्फीयर, मैग्नेटोस्फीयर और सौर-स्थलीय संबंध।
- चंद्रमा और अन्य ग्रहों से संबंधित समरूप समस्याएँ।
- IAGA और IASPEI की संयुक्त वैज्ञानिक सभा समाज को विज्ञान का प्रतिपादन करने से संबंधित मुद्दों पर कार्य करने के लिये वैश्विक समुदाय के अधिक-से-अधिक शोधकर्त्ताओं और चिकित्सकों को बोर्ड में शामिल करने हेतु उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगी।
भारत में भूकंप:
- भूकंप में प्रायः पृथ्वी की सतह और उस पर मौजूद संरचनाओं में कंपन शामिल होता है।
- ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ के अनुसार, यह गतिमान लिथोस्फेरिक या क्रस्टल प्लेटों के बीच संचरित दबाव के मुक्त होने के कारण होता है।
- पृथ्वी की क्रस्ट 7 बड़ी प्लेटों में विभाजित है, जो 50 मील तक मोटी हैं।
- ये बड़ी प्लेटें धीरे-धीरे और स्थिर रूप से पृथ्वी के आंतरिक भाग तथा कई छोटी प्लेटों के बीच गति करती हैं। भूकंप मूल रूप से टेक्टोनिक होते हैं यानी ज़मीन में कंपन के लिये मुख्य रूप से गतिमान प्लेटें उत्तरदायी होती हैं।
- भारत में अधिकांश भूकंप हिमालय के आसपास के क्षेत्रों में देखे जाते हैं।
- हालाँकि शहरीकरण, व्यापक अवैज्ञानिक निर्माण और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य क्षेत्रों में भी भूकंपों की संख्या में वृद्धि हुई है।
- भूकंपीय ज़ोनिंग मैपिंग के अनुसार, भूकंप क्षेत्रों को भूकंप की तीव्रता के आकलन के आधार पर विभाजित किया जाता है।
- इस लिहाज से भारत को 4 ज़ोन में बाँटा गया है: ज़ोन 2, ज़ोन 3, ज़ोन 4 और ज़ोन 5।
- इसमें ज़ोन 2 सबसे ‘कम खतरनाक’ है, वहीं ज़ोन 5 सबसे अधिक ‘खतरनाक’ है।
- भारत का लगभग 59% भूमि क्षेत्र मध्यम से गंभीर भूकंपीय खतरे की चेतावनी के अधीन है, जिसका अर्थ है कि भारत 7 और उससे अधिक तीव्रता के भूकंपों के लिये प्रवण है।
- भारतीय उपमहाद्वीप में आए कुछ प्रमुख भूकंप: शिलांग (1897), बिहार-नेपाल (1934), असम (1950), भुज (2001), कश्मीर (2005), सिक्किम (2011) और मणिपुर (2016)।