जैव विविधता और पर्यावरण
अरावली को हरित संरक्षण
- 23 Jul 2022
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:अरावली रेंज का भौतिक भूगोल, पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम 1980 मेन्स के लिये:अरावली रेंज का महत्त्व, वन संरक्षण, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अरावली पर्वतमाला में वन भूमि के लिये हरित संरक्षण का विस्तार किया।
- न्यायालय के निर्णय का अर्थ है कि हरियाणा में अरावली और शिवालिक में लगभग 30,000 हेक्टेयर वन भूमि मानी जाएगी।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हरियाणा में पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (PLPA) की धारा 4 के तहत जारी विशेष आदेशों के अंतर्गत आने वाली सभी भूमि को वन क्षेत्र माना जाएगा तथा यह भूमि 1980 के वन संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षण की हकदार होगी।
- धारा 4 के तहत आने वाली ऐसी भूमि में केंद्र सरकार की सहमति के बिना कोई व्यावसायिक गतिविधि या इसका गैर-वन उपयोग नहीं किया जा सकता है।
- यह भी कहा गया है कि PLPA की धारा 4 के तहत जारी विशेष आदेशों के अंतर्गत आने वाली भूमि तथा वन अधिनियम की धारा 2 के तहत आने वाली सभी भूमि वन के रूप में शामिल होगी।
- न्यायालय ने राज्य सरकार को तीन महीने में ऐसी भूमि से किसी भी गैर-वन गतिविधि को हटाने और अनुपालन रिपोर्ट देने का निर्देश दिया।
- पीठ ने सितंबर 2018 के एक निर्णय पर विचार किया जिसमें PLPA के तहत सभी भूमि को वन क्षेत्र माना जा सकता है।
- हाल के निर्णय ने स्पष्ट किया कि पिछला निर्णय PLPA की धारा 4 और वन अधिनियम की धारा 2 के संबंध में इसके कानूनी प्रभाव की बारीकी से जाँच करने में विफल रहा।
PLPA की धारा 4 और वन अधिनियम की धारा 2:
- पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (PLPA) की धारा 4:
- PLPA की धारा 4 के तहत विशेष आदेश का तात्पर्य राज्य सरकार द्वारा एक निर्दिष्ट क्षेत्र में वनों की कटाई (जिससे मिट्टी का क्षरण हो सकता है) को रोकने के लिये जारी किये गए प्रतिबंधात्मक प्रावधान से है।
- जब राज्य सरकार इस बात से संतुष्ट हो जाती है कि बड़े क्षेत्र का हिस्सा बनने वाले वन क्षेत्र के वनों की कटाई से मिट्टी का क्षरण होने की संभावना है, तो धारा 4 के तहत शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।
- इसलिये जिस विशिष्ट भूमि के संबंध में PLPA की धारा 4 के तहत विशेष आदेश जारी किया गया है, उसमें वन अधिनियम द्वारा शासित वन के सभी नियम शामिल होंगे।
- जबकि PLPA की धारा 4 के विशेष आदेशों के तहत अधिसूचित भूमि वन भूमि होगी, PLPA के तहत सभी भूमि वास्तव में वन अधिनियम के अर्थ में वन भूमि नहीं मानी जाएगी।
- वन अधिनियम की धारा 2:
- वन अधिनियम की धारा 2 केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना वनों के अनारक्षण या गैर-वन उद्देश्यों के लिये वन भूमि के उपयोग पर प्रतिबंध लगाती है।
- किसी भूमि को वन अधिनियम की धारा 2 के अंतर्गत शामिल करने के बाद चाहे धारा 4 के अंतर्गत विशेष आदेश जारी हो या नहीं, वह वन भूमि ही मानी जाएगी।
- किसी भूमि को वन अधिनियम की धारा 2 के अंतर्गत शामिल करने के बाद चाहे धारा 4 के अंतर्गत विशेष आदेश जारी हो या नहीं, वह वन भूमि ही मानी जाएगी।
- वन अधिनियम की धारा 2 केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना वनों के अनारक्षण या गैर-वन उद्देश्यों के लिये वन भूमि के उपयोग पर प्रतिबंध लगाती है।
अरावली रेंज:
- अवस्थिति:
- अरावली रेंज का विस्तार गुजरात के हिम्मतनगर से दिल्ली तक लगभग 720 किमी. की दूरी तक है, जो हरियाणा और राजस्थान तक विस्तारित है।
- रचना:
- अरावली रेंज लाखों साल पुराना है, जिसका निर्माण भारतीय उपमहाद्वीपीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट की मुख्य भूमि से टकराने के कारण हुआ।
- आयु:
- कार्बन डेटिंग से पता चला है कि अरावली रेंज में ताँबे और अन्य धातुओं का खनन लगभग 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में किया गया था।
- विशेषताएँ:
- अरावली विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में से एक है, जो अब एक अवशिष्ट पर्वत के रूप में विद्यमान है, इसकी ऊँचाई 300 मीटर से 900 मीटर के बीच है।
- अरावली रेंज की सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू पर स्थित गुरु शिखर (1,722 मीटर) है।
- यह मुख्य रूप से वलित पर्वत है, जिसका निर्माण दो प्लेटों के अभिसरण के कारण हुआ है।
- विस्तार:
- पहाड़ों को राजस्थान में दो मुख्य श्रेणियों सांभर सिरोही रेंज और सांभर खेतड़ी रेंज में विभाजित किया गया है, जहाँ उनका विस्तार लगभग 560 किमी. तक है।
- दिल्ली से लेकर हरिद्वार तक फैले अरावली का अदृश्य भाग गंगा और सिंधु नदियों के जल के बीच एक विभाजन बनाता है।
- महत्त्व:
- मरुस्थलीकरण को रोकने में:
- अरावली पहाड़ी पूर्व में उपजाऊ मैदानों और पश्चिम में रेतीले रेगिस्तान के बीच एक बाधा के रूप में कार्य करती है।
- ऐतिहासिक रूप से यह कहा जाता है कि अरावली शृंखला ने थार मरुस्थल को गंगा के मैदानों तक विस्तारित होने से रोकने का कार्य किया है जो नदियों और मैदानों के जलग्रहण क्षेत्र के रूप में कार्य करता था।
- जैवविविधता में समृद्ध:
- यह पौधों की 300 स्थानिक प्रजातियों, 120 पक्षी प्रजातियों और सियार तथा नेवले जैसे कई विशिष्ट जानवरों को आश्रय प्रदान करता है।
- पर्यावरण पर प्रभाव:
- अरावली का उत्तर-पश्चिम भारत और उसके बाहर की जलवायु पर प्रभाव पड़ता है।
- यह रेंज मानसून के दौरान बादलों को शिमला और नैनीताल की ओर मोड़ने में सहायता करता है, जिससे उप-हिमालयी नदियों को जल प्राप्त होता है और इस जल से उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों को पानी की प्राप्ति होती है।
- सर्दियों के मौसम में यह उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों को मध्य एशिया से आने वाली ठंडी पश्चिमी हवाओं से बचाता है।
- मरुस्थलीकरण को रोकने में:
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों विचार कीजिये: (2015) तीर्थ स्थान
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प A सही है। |