शासन व्यवस्था
वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन का प्रस्ताव
- 07 Oct 2021
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प्रिलिम्स के लिये:वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, 42वाँ संशोधन अधिनियम मेन्स के लिये:वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन की आवश्यकता और संशोधन प्रस्ताव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने भारत में वन शासन में महत्त्वपूर्ण बदलाव लाने हेतु ‘वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980’ में संशोधन का प्रस्ताव रखा है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- उद्देश्य:
- वन क्षेत्रों के बाहर खनन के माध्यम से वन भूमि के नीचे स्थित तेल और प्राकृतिक गैस संसाधनों के अन्वेषण या निष्कर्षण की सुविधा के माध्यम से वन कानूनों को उदार बनाना।
- वन की परिभाषा:
- ‘टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ’ वाद (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने वन को उन सभी क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया है, जो किसी भी सरकारी रिकॉर्ड में 'वन' के रूप में दर्ज हैं।
- संशोधन की आवश्यकता:
- निजी भूमि पर वन: निजी भूमि पर वनों की पहचान कुछ हद तक व्यक्तिपरक और मनमानी प्रक्रिया पर निर्भर है।
- इसके परिणामस्वरूप निजी व्यक्तियों और संगठनों की ओर से काफी अधिक आक्रोश या प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।
- निजी क्षेत्र को वन के रूप में मान्यता देने से यह किसी भी गैर-वानिकी गतिविधि के लिये अपनी भूमि का उपयोग करने हेतु व्यक्ति के अधिकारों को सीमित करता है।
- इसके कारण प्रायः निजी भूमि को वनस्पति से रहित रखने की प्रवृत्ति बढ़ गई है, भले ही उस भूमि पर रोपण गतिविधियों की गुंजाइश हो।
- पारिस्थितिक एवं आर्थिक आवश्यकताओं में परिवर्तन: पिछले कुछ वर्षों में देश में पारिस्थितिक, सामाजिक और पर्यावरणीय व्यवस्था में काफी बदलाव आया है।
- वर्तमान परिस्थितियों, विशेष रूप से संरक्षण और विकास के त्वरित एकीकरण को देखते हुए अधिनियम में संशोधन करना आवश्यक हो गया है।
- भारत के जलवायु लक्ष्य को प्राप्त करना: राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को प्राप्त करने के लिये सरकारी वनों के बाहर सभी संभव उपलब्ध भूमि में व्यापक वृक्षारोपण आवश्यक था।
- निजी भूमि पर वन: निजी भूमि पर वनों की पहचान कुछ हद तक व्यक्तिपरक और मनमानी प्रक्रिया पर निर्भर है।
- उद्देश्य:
- प्रस्ताव संबंधी मुख्य बिंदु
- 'वनों' को परिभाषित करना: राज्य सरकारों द्वारा वर्ष 1996 तक सूचीबद्ध ‘डीम्ड वनों’ को वन भूमि माना जाता रहेगा।
- वर्ष 1980 से पूर्व रेलवे और सड़क मंत्रालयों द्वारा अधिग्रहित की गई भूमि, जिस पर वन विकसित हो गए हैं, उन्हें अब वन की परिभाषा में शामिल नहीं किया जाएगा।
- सामरिक परियोजनाएँ: राष्ट्रीय महत्त्व की रणनीतिक एवं सुरक्षा संबंधी परियोजनाओं के लिये वन भूमि को केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता से छूट दी जानी चाहिये।
- ऐसा करने से राज्यों को रणनीतिक एवं सुरक्षा संबंधी ऐसी परियोजनाओं के लिये वन भूमि के उपयोग की अनुमति मिल जाएगी, जिन्हें एक निश्चित समय सीमा में पूरा किया जाना है।
- तेल और प्राकृतिक गैस निष्कर्षण: वन क्षेत्रों के बाहर खनन के माध्यम से वन भूमि के नीचे पाए जाने वाले तेल और प्राकृतिक गैस के निष्कर्षण हेतु ‘एक्सटेंडेड रीच ड्रिलिंग (ERD) जैसी नई तकनीकों को सुगम बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये।
- ऐसी तकनीक का उपयोग पर्यावरण के अनुकूल है और इसलिये इसे अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिये।
- वनों में निजी भवन: नए प्रस्ताव में उन व्यक्तियों की शिकायतों को भी संबोधित करने का प्रयास किया गया है, जिनकी भूमि राज्य विशिष्ट निजी वन अधिनियम या ‘वन’ की परिभाषा के दायरे में आती है।
- यह प्रस्ताव उन्हें वन सुरक्षा उपायों और आवासीय इकाइयों सहित 250 वर्ग मीटर के क्षेत्र में संरचनाओं के निर्माण का अधिकार देता है।
- 'वनों' को परिभाषित करना: राज्य सरकारों द्वारा वर्ष 1996 तक सूचीबद्ध ‘डीम्ड वनों’ को वन भूमि माना जाता रहेगा।
भारत में वन
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट (India State of Forest Report), 2019 के अनुसार, वन और वृक्ष आवरण देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.56 प्रतिशत है।
- वनावरण (क्षेत्रवार): मध्य प्रदेश> अरुणाचल प्रदेश> छत्तीसगढ़> ओडिशा> महाराष्ट्र।
- भारत की राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में देश के 33% भौगोलिक क्षेत्र को वन और वृक्ष आच्छादित क्षेत्र के अंतर्गत रखने के लक्ष्य की परिकल्पना की गई है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से शिक्षा, नापतौल एवं न्याय प्रशासन, वन, वन्यजीवों तथा पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था।
- संविधान के अनुच्छेद 51 A (g) में कहा गया है कि वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत अनुच्छेद 48A के मुताबिक, राज्य पर्यावरण संरक्षण व उसको बढ़ावा देने का काम करेगा और देश भर में जंगलों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा की दिशा में कार्य करेगा।