हरियाणा Switch to English
हरियाणा में मारुति सुजुकी प्लांट
चर्चा में क्यों?
मारुति सुजुकी इंडिया ने हरियाणा के खरखौदा में तीसरा संयंत्र स्थापित करने के लिये 7,410 करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की, जो प्रति वर्ष 2.5 लाख वाहनों का उत्पादन करने में सक्षम होगा।
मुख्य बिंदु
- मौजूदा और आगामी क्षमता:
- खरखौदा में वर्तमान उत्पादन क्षमता 2.5 लाख इकाई प्रति वर्ष है।
- 2.5 लाख यूनिट प्रति वर्ष क्षमता वाला एक अन्य संयंत्र भी निर्माणाधीन है।
- तीसरे संयंत्र के लिये अनुमोदन:
- 26 मार्च 2025 को मारुति सुजुकी के बोर्ड ने खरखौदा में तीसरे संयंत्र की स्थापना को मंजूरी दी।
- तीसरे संयंत्र के साथ, खरखौदा की कुल उत्पादन क्षमता प्रति वर्ष 7.5 लाख इकाई तक पहुँचने की उम्मीद है।
- प्रस्तावित क्षमता विस्तार को वर्ष 2029 तक पूरा किया जाना है।
- विस्तार का कारण:
- कंपनी ने तीसरे संयंत्र की स्थापना के लिये निर्यात अवसरों सहित बढ़ती बाज़ार मांग को प्रमुख कारण बताया।


राजस्थान Switch to English
आना सागर झील
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च नयायालय ने राजस्थान सरकार को अजमेर की आना सागर झील किनारे बने सेवेन वंडर्स और फूड कोर्ट को हटाने का आदेश दिया।
मुख्य बिंदु
- मुद्दे के बारे में:
- सर्वोच्च नयायालय ने सेवन वंडर पार्क को छह महीने के भीतर हटाने या अन्य स्थान पर स्थानांतरित करने का निर्देश दिया है, जबकि फूड कोर्ट को 7 अप्रैल, 2025 तक पूरी तरह ध्वस्त करने का आदेश दिया गया है।
- इसके अतिरिक्त, नयायालय ने स्पष्ट किया कि वेटलैंड क्षेत्र को जितना नुकसान पहुँचा है, उतना ही नया वेटलैंड सिटी एरिया में विकसित किया जाए।
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने भी झील के वेटलैंड क्षेत्र को नुकसान पहुँचाने को लेकर कड़ा रुख अपनाया था।
- याचिका
- अजमेर के पूर्व पार्षद ने आना सागर झील के किनारे अवैध निर्माण को लेकर आपत्ति जताई थी।
- उन्होंने आरोप लगाया कि यह निर्माण वेटलैंड क्षेत्र और मास्टर प्लान की अवहेलना कर किया गया था।
- इसको लेकर उन्होंने NGT में याचिका दायर की थी, जिसके बाद अगस्त 2023 में निर्माण हटाने के आदेश जारी किये गए।
- इन आदेशों के खिलाफ अजमेर विकास प्राधिकरण ने जनवरी 2024 में सर्वोच्च नयायालय में अपील की थी।
आनासागर झील
- अजमेर में स्थित यह एक कृत्रिम झील है, जिसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान के पिता अरुणोराज या आणाजी चौहान ने बारहवीं शताब्दी के मध्य (1135-1150 ईस्वी) करवाया था।
- आणाजी द्वारा निर्मित कराए जाने के कारण ही इस झील का नाम आणा सागर या आना सागर पड़ा।
- आना सागर झील का विस्तार लगभग 13 किमी. की परिधि में फैला हुआ है।
- बाद में, मुगल शासक जहाँगीर ने झील के प्रांगण में दौलत बाग का निर्माण कराया,जिसे सुभाष उद्यान के नाम से भी जाना जाता है।
- शाहजहाँ ने 1637 ईस्वी में इसके आसपास संगमरमर की बारादरी (पवेलियन) का निर्माण कराया, जो झील की सुंदरता को और बढ़ाता है।
- आना सागर झील अजमेर का प्रमुख जल स्रोत होने के साथ-साथ स्थानीय जैवविविधता और प्रवासी पक्षियों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


उत्तर प्रदेश Switch to English
वाराणसी में डॉल्फिन सफारी
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने वाराणसी में डॉल्फिन सफारी स्थापित करने की घोषणा की।
मुख्य बिंदु
- सफारी के बारे में:
- ये सफारी वाराणसी ज़िले के कैथी से ढकवा गाँव के बीच स्थापित किया जाएगा।
- इस क्षेत्र में डॉल्फिन की संख्या सबसे अधिक गई जाती है।
- वाराणसी ज़िले में गंगा नदी में डॉल्फिन संरक्षण के लिये उत्तर प्रदेश सरकार ने 'डॉल्फिन मित्र' नियुक्त किये हैं।
- उद्देश्य:
- इस सफारी का उद्देश्य गंगा नदी में गंगेटिक डॉल्फिन की संख्या में वृद्धि को बढ़ावा देना एवं उनके प्राकृतिक आवास की सुरक्षा सुनिश्चित करना। इसके अतिरिक्त इको-टूरिज्म को प्रोत्साहित करना है।
- ‘डॉल्फिन मित्र’ एवं वन विभाग के सहयोग से लोगों को डॉल्फिन संरक्षण के महत्त्व के बारे में शिक्षित करना।
गंगा नदी डॉल्फिन:
- परिचय:
- गंगा नदी डॉल्फिन (Platanista gangetica), जिसे "टाइगर ऑफ द गंगा" के नाम से भी जाना जाता है, की खोज आधिकारिक तौर पर वर्ष 1801 में की गई थी।
- पर्यावास: गंगा नदी डॉल्फिन मुख्य रूप से भारत, नेपाल और बांग्लादेश की प्रमुख नदी प्रणालियों (गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगु) में पाई जाती है।
- हाल के अध्ययन के अनुसार, गंगा नदी बेसिन में इसकी विभिन्न प्रजातियाँ गंगा नदी की मुख्य धारा तत्पश्चात् सहायक नदियों- घाघरा, कोसी, गंडक, चंबल, रूपनारायण और यमुना से दर्ज की गई हैं।
- विशेषताएँ:
- गंगा नदी डॉल्फिन केवल मीठे जल स्रोतों में ही रह सकती है और मूलतः दृष्टिहीन होती है। ये अल्ट्रासोनिक ध्वनियाँ उत्सर्जित कर मछली एवं अन्य शिकार को उछालती हैं, जिससे उन्हें अपने दिमाग में एक छवि "देखने" में मदद मिलती है और इस प्रकार अपना शिकार करती हैं।
- वे प्रायः अकेले या छोटे समूहों में पाए जाते हैं और आमतौर पर मादा डॉल्फिन तथा शिशु डॉल्फिन एक साथ यात्रा करते हैं।
- मादाएँ नर से आकार में बड़ी होती हैं और प्रत्येक दो से तीन वर्ष में केवल एक बार शिशु को जन्म देती हैं।
- स्तनपायी होने के कारण गंगा नदी डॉल्फिन जल में साँस नहीं ले सकती है और उसे प्रत्येक 30-120 सेकंड में सतह पर आना पड़ता है।
- साँस लेते समय निकलने वाली ध्वनि के कारण इस जीव को लोकप्रिय रूप से 'सोंस' अथवा सुसुक कहा जाता है।
- महत्त्व:
- इनका बहुत अधिक महत्त्व है क्योंकि यह संपूर्ण नदी पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का एक विश्वसनीय संकेतक है।
- भारत सरकार ने वर्ष 2009 में इसे राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया।
- यह असम का राज्य जलीय पशु भी है।
- इनका बहुत अधिक महत्त्व है क्योंकि यह संपूर्ण नदी पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का एक विश्वसनीय संकेतक है।
- सुरक्षा की स्थिति:
- संबंधित सरकारी पहल:
- प्रोज़ेक्ट डॉल्फिन
- बिहार में विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य स्थापित किया गया है।
- राष्ट्रीय गंगा नदी डॉल्फिन दिवस (5 अक्तूबर)


राजस्थान Switch to English
हरियालो राजस्थान अभियान
चर्चा में क्यों?
राजस्थान सरकार ने "हरियालो राजस्थान अभियान" के तहत वित्तीय वर्ष 2025-26 में 10 करोड़ पेड़ लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
मुख्य बिंदु
- अभियान के बारे में:
- हरियालो राजस्थान अभियान की शुरुआत 7 अगस्त 2024 को हरियाली तीज के अवसर पर की गई।
- राज्य के मुख्यमंत्री ने दूदू ज़िले के गाहोता में एक पीपल का पौधा लगाकर इस अभियान का शुभारंभ किया।
- 'एक पेड़ माँ के नाम' अभियान से प्रेरित होकर, राज्य सरकार ने 'मिशन हरियालो राजस्थान' के तहत अगले पाँच वर्षों में 50 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है।
- इसके अंतर्गत वर्ष 2024-25 में 7 करोड़ पौधे लगाए गए।
- उद्देश्य:
- राजस्थान को हरा-भरा बनाना और वन क्षेत्र का विस्तार करना।
- पर्यावरण संरक्षण और जलवायु संतुलन बनाए रखना।
- जैवविविधता का संरक्षण एवं वन्यजीवों के लिये बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित कर वृक्षारोपण को जन आंदोलन बनाना।
- मरुस्थलीकरण को रोकना और मृदा संरक्षण को बढ़ावा देना।
‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान
- परिचय
- यह एक विशेष देशव्यापी वृक्षारोपण अभियान है, जिसे 5 जून 2024 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया है।
- इस अभियान के तहत लोगों को अपनी माँ के प्रति प्रेम, आदर और सम्मान के प्रतीक के रूप में एक पेड़ लगाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है और पेड़ों और धरती माँ की रक्षा करने का संकल्प भी लिया जाता है।
- उद्देश्य
- इस अभियान का उद्देश्य भूमि क्षरण की रोकथाम और क्षरित भूमि के पारिस्थितिक पुनर्स्थापन को सुनिश्चित करना है।
- इसके अतिरिक्त पर्यावरण संरक्षण और हरित आवरण को बढ़ावा देना है।
- इसका लक्ष्य सितंबर 2024 तक 80 करोड़ पेड़ और मार्च 2025 तक 140 करोड़ पेड़ लगाना है।
- रणनीति:
- यह अभियान "संपूर्ण सरकार" और "संपूर्ण समाज" की अवधारणा पर आधारित है, जो नागरिकों, समुदायों और स्थानीय प्रशासन की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से भारत के हरित आवरण के पुनर्जीवन के लिये सामूहिक प्रयास को प्रोत्साहित करता है।


उत्तर प्रदेश Switch to English
उत्तर प्रदेश में देश का पहला टेक्सटाइल मशीन पार्क
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) मंत्री ने घोषणा की है कि देश का पहला टेक्सटाइल मशीन पार्क कानपुर के निकट 875 एकड़ भूमि पर स्थापित किया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- पार्क के बारे में:
- यह पार्क कानपुर के निकट भोगनीपुर क्षेत्र के चपरघटा गाँव में विकसित किया जाएगा।
- यह पार्क PPP (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर विकसित किया जाएगा, जिससे आयात पर निर्भरता घटेगी और मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा मिलेगा।
- इस पार्क का उद्देश्य टेक्सटाइल उद्योग में उपयोग होने वाली मशीनों का देश में ही निर्माण करना है, जिन्हें वर्तमान में चीन, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, ताइवान और यूरोप जैसे देशों से आयात किया जाता है।
- इस परियोजना के तहत 200 से अधिक बड़ी और मध्यम इकाइयाँ स्थापित की जाएंगी, जिससे करीब 1.5 लाख लोगों को रोज़गार मिलेगा।
- इसके अलावा, इस पार्क से 30,000 करोड़ रुपए तक के निर्यात का अनुमान है।
- अभी तक भारत सर्कुलर निटिंग मशीन, फ्लैट निटिंग मशीन, डाइविंग मशीन, प्रिंटिंग मशीन, सिलाई मशीन, पेशेंट गाउन मशीन और तकनीकी टेक्सटाइल मशीनों का आयात करता है, लेकिन अब इनका निर्माण उत्तर प्रदेश में ही किया जाएगा।
- इससे न केवल मशीनों की लागत 40% तक कम होगी, बल्कि इनकी रिपेयरिंग और मेंटेनेंस के लिये स्थानीय स्तर पर तकनीकी विशेषज्ञ भी तैयार किये जाएंगे।
- उत्तर प्रदेश में टेक्सटाइल सेक्टर
- उत्तर प्रदेश सरकार टेक्सटाइल सेक्टर में तीव्र गति से प्रगति कर रहा है। यहाँ बनारसी सिल्क, चिकनकारी, हैंडलूम और पावरलूम उद्योग काफी प्रसिद्ध हैं।
- सरकार ने टेक्सटाइल और अपैरल नीति-2022 के तहत टेक्सटाइल उद्योग को सशक्त बनाने और राज्य को टेक्सटाइल हब के रूप में विकसित करने के लिये कई पहल की हैं।
- इसके तहत लखनऊ के पास पीएम मित्र पार्क सहित राज्य के 10 ज़िलों में 10 नए टेक्सटाइल पार्क स्थापित किये जा रहे हैं।
- वर्ष 2030 तक भारत का टेक्सटाइल बाज़ार 350 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
मेक इन इंडिया पहल:
- परिचय:
- वर्ष 2014 में इस अभियान को निवेश को सुविधाजनक बनाने, नवाचार एवं कौशल विकास को बढ़ावा देने, बौद्धिक संपदा की रक्षा करने तथा सर्वश्रेष्ठ विनिर्माण बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने के लिये शुरू किया गया था।
- इसका नेतृत्त्व उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया जा रहा है।
- यह पहल दुनिया भर के संभावित निवेशकों और भागीदारों को 'न्यू इंडिया' की विकास गाथा में भाग लेने हेतु एक खुला निमंत्रण है।
- मेक इन इंडिया ने 27 क्षेत्रों में पर्याप्त उपलब्धियांँ हासिल की हैं। इनमें विनिर्माण और सेवाओं के रणनीतिक क्षेत्र भी शामिल हैं।
- उद्देश्य:
- नए औद्योगीकरण के लिये विदेशी निवेश को आकर्षित करना और चीन से आगे निकलने के लिये भारत में पहले से मौजूद उद्योग आधार का विकास करना।
- मध्यावधि में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि को 12-14% वार्षिक करने का लक्ष्य।
- देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी को वर्ष 2022 तक 16% से बढ़ाकर 25% करना।
- वर्ष 2022 तक 100 मिलियन अतिरिक्त रोज़गार सृजित करना।
- निर्यात आधारित विकास को बढ़ावा देना।

