मध्य प्रदेश Switch to English
कुनो राष्ट्रीय उद्यान
चर्चा में क्यों?
17 मार्च, 2025 को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान (KNP) के जंगल में एक मादा चीता और उसके चार शावकों को छोड़ा गया।
- जिससे KNP में चीतों की कुल संख्या 26 हो गई है, जिनमें भारत में जन्मे 14 शावक भी शामिल हैं।
मुख्य बिंदु
- कुनो राष्ट्रीय उद्यान
- कूनो राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश में एक संरक्षित क्षेत्र है, जिसे सन् 2018 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया था।
- इसकी स्थापना सन् 1981 को एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में की गई थी।
- यह राज्य के श्योपुर और मुरैना ज़िलों में विस्तारित है।
- कुनो राष्ट्रीय उद्यान नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से स्थानांतरित किये गए चीतों का पर्यावास है।
- चीता स्थानांतरण परियोजना
- भारत में चीता पुनः वापसी परियोजना औपचारिक रूप से 17 सितंबर, 2022 को प्रारंभ की गई, जिसका उद्देश्य देश में चीतों की आबादी को बहाल करना था, जिन्हें वर्ष 1952 में देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था।
- यह परियोजना राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा मध्य प्रदेश वन विभाग, भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) तथा नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के चीता विशेषज्ञों के सहयोग से कार्यान्वित की गई है।
- महत्त्व
- चीतों की पुनर्वापसी से पारिस्थितिकीय तंत्र मज़बूत होगा और ग्रासलैंड इकोसिस्टम पुनर्जीवित होगा, जो अन्य जीवों के लिये भी लाभकारी होगा।
- जैवविविधता संरक्षण और खाद्य शृंखला में संतुलन स्थापित होने में सहायता मिलेगी।
- पर्यटकों की संख्या में वृद्धि और रोज़गार के अवसर सृजित होंगे, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।


उत्तर प्रदेश Switch to English
रडार अनुबंध
चर्चा में क्यों?
रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायुसेना के लिये परिवहन योग्य रडार ‘अश्विनी’ की खरीद हेतु उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद में स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के साथ 2,906 करोड़ रुपए के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये।
मुख्य बिंदु
- अश्विनी रडार के बारे में:
- लो-लेवल ट्रांसपोर्टेबल रडार-LLTR’ (अश्विनी) एक सक्रिय इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्कैन किया गया चरणबद्ध ऐरे रडार है।
- इसका उपयोग उच्च गति वाले लड़ाकू विमानों, मानव रहित हवाई वाहनों (UAV) और हेलीकॉप्टरों जैसे धीमी गति वाले लक्ष्यों की निगरानी के लिये किया जाता है।
- यह रडार अत्याधुनिक ठोस अवस्था प्रौद्योगिकी पर आधारित है।
- इसे इलेक्ट्रॉनिक्स एवं रडार विकास प्रतिष्ठान (LRDE) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा स्वदेशी रूप से डिज़ाइन व विकसित किया गया है।
- भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL)
- यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अधीन कार्यरत एक नवरत्न सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (PSU) है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1954 में राष्ट्र की रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु की गई थी।
- यह संगठन रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स और पेशेवर इलेक्ट्रॉनिक्स के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत है, जिससे भारतीय रक्षा बलों को आधुनिक तकनीकी सहायता प्राप्त होती है।
- उत्पादन इकाइयाँ
- BE की अनके उत्पादन इकाइयाँ हैं, जिनमें बंगलूरू (मुख्य कार्यालय), गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश), पंचकुला (हरियाणा), कोटद्वार (उत्तराखंड), हैदराबाद और मछलीपत्तनम (आंध्र प्रदेश), नवी मुंबई तथा पुणे (महाराष्ट्र), एवं चेन्नई (तमिलनाडु) शामिल हैं।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)
- परिचय:
- DRDO रक्षा मंत्रालय की अनुसंधान एवं विकास शाखा है जिसका उद्देश्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों में सशक्त बनाना है।
- आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रयास तथा अग्नि और पृथ्वी मिसाइल शृंखला, हल्के लड़ाकू विमान तेजस, मल्टी बैरल रॉकेट लांचर, पिनाका, वायु रक्षा प्रणाली आकाश, रडारों की एक विस्तृत शृंखला और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली आदि जैसी सामरिक प्रणालियों एवं प्लेटफॉर्मों के सफल स्वदेशी विकास एवं उत्पादन से भारत की सैन्य शक्ति में वृद्धि हुई है।
- गठन:
- इसका गठन वर्ष 1958 में भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (TDEs) और तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (DTDP) तथा रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) के एकीकरण से हुआ था।
- DRDO, 50 से अधिक प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क है जो विभिन्न विषयों जैसे वैमानिकी, आयुध, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन, इंजीनियरिंग प्रणाली आदि को कवर करते हुए रक्षा प्रौद्योगिकियों के विकास में गहनता के साथ संलग्न है।


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धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के लिये स्थायी ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण उपायों की जरूरत पर ज़ोर दिया।
मुख्य बिंदु
- महत्त्वपूर्ण निर्देश
- मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को धार्मिक और सार्वजनिक आयोजनों में ध्वनि स्तर को तय मानकों के अनुरूप रखने के निर्देश दिये।
- साथ ही उन्होंने धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल को लेकर स्थायी समाधान सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिये।
- हाईकोर्ट का निर्णय
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रार्थना के लिये लाउडस्पीकर का उपयोग कोई कानूनी अधिकार नहीं है, क्योंकि इससे अन्य लोगों को असुविधा हो सकती है। अतः लाउडस्पीकर का प्रयोग अधिकार की श्रेणी में नहीं आता।
- पूर्व में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों के उपयोग को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रार्थना के लिये लाउडस्पीकर का उपयोग कोई कानूनी अधिकार नहीं है, क्योंकि इससे अन्य लोगों को असुविधा हो सकती है। अतः लाउडस्पीकर का प्रयोग अधिकार की श्रेणी में नहीं आता।
- ध्वनि प्रदूषण
- किसी भी प्रकार की असहज या अत्यधिक तेज़ आवाज़ को ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है।
- यह अनियमित कंपन वाला शोर होता है, जो सुनने में अप्रिय लगता है।
- ध्वनि की तीव्रता को डेसिबल (dB) में मापा जाता है और इसके स्तरों को निर्धारित करने के लिये एक डेसिबल पैमाना प्रयोग किया जाता है।
- 20 dB तक की ध्वनि तीव्रता को फुसफुसाहट के समान माना जाता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 70 dB से कम की ध्वनि तीव्रता जीवित प्राणियों के लिये हानिकारक नहीं होती, भले ही वह कितनी भी लंबी अवधि तक बनी रहे।
- हालाँकि, यदि कोई व्यक्ति 85 dB से अधिक के शोर के संपर्क में लगातार 8 घंटे से अधिक समय तक रहता है, तो यह स्वास्थ्य के लिये जोखिमपूर्ण हो सकता है।
- ध्वनि प्रदूषण के मुख्य स्रोतों में तेज़ संगीत, परिवहन, निर्माण कार्य आदि शामिल हैं, जो मानव जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
- इसके दुष्प्रभावों में उच्च रक्तचाप, श्रवण विकलांगता, नींद संबंधी विकार और हृदय रोग शामिल हैं।


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पीलीभीत टाइगर रिजर्व
चर्चा में क्यों?
पीलीभीत टाइगर रिज़र्व (PTR) नेपाल से आने वाले गैंडों के लिये एक नया अभयारण्य बनने की ओर अग्रसर है, जहाँ उनके लिये स्थायी आवास स्थापित करने के प्रयास तेज़ी से चल रहे हैं।
मुख्य बिंदु
- पीलीभीत टाइगर रिज़र्व का लग्गा-भग्गा क्षेत्र नेपाल की शुक्लाफांटा सेंचुरी से सटा हुआ है, जिसके कारण नेपाली गैंडे अक्सर यहाँ आवाजाही करते रहते हैं।
- इस क्षेत्र में घास के समृद्ध मैदान, पर्याप्त जल स्रोत और निर्बाध वन्यजीव गलियारे मौजूद हैं, जो इसे गैंडों की स्थिर आबादी के लिये एक आदर्श वातावरण बनाते हैं।
- 'प्रोजेक्ट राइनो' के तहत असम और नेपाल से गैंडों का स्थानांतरण किया जाएगा।
- महत्त्व और लाभ
- यह परियोजना गैंडों की घटती आबादी को संरक्षित करने के साथ-साथ वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त बनाएगी।
- पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्थानीय समुदायों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
- सुरक्षित और सीमांकित क्षेत्र होने से गैंडों के कृषि भूमि में भटकने की समस्या कम होगी, जिससे किसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष को रोका जा सकेगा।
- पीलीभीत टाइगर रिज़र्व:
- यह उत्तर प्रदेश के पीलीभीत और शाहजहाँपुर ज़िले में स्थित है। इसे वर्ष 2014 में टाइगर रिज़र्व के रूप में अधिसूचित किया गया था।
- वर्ष 2020 में, इसने पिछले चार वर्षों में बाघों की संख्या दोगुनी करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार TX2 जीता।
- यह ऊपरी गंगा के मैदान में तराई आर्क परिदृश्य का हिस्सा है।
- गोमती नदी इस रिज़र्व से निकलती है, जो शारदा, चूका और माला खन्नोट जैसी कई अन्य नदियों का जलग्रहण क्षेत्र भी है।
- यह असंख्य जंगली जानवरों का घर है, जिनमें लुप्तप्राय बाघ, दलदल हिरण, बंगाल फ्लोरिकन, हॉग हिरण, तेंदुआ आदि शामिल हैं।
- यह उत्तर प्रदेश के पीलीभीत और शाहजहाँपुर ज़िले में स्थित है। इसे वर्ष 2014 में टाइगर रिज़र्व के रूप में अधिसूचित किया गया था।
प्रोजेक्ट राइनो
- भारत में प्रोजेक्ट राइनो एक महत्वपूर्ण संरक्षण पहल है, जिसका उद्देश्य घटती आबादी वाले एक सींग वाले गैंडों को बचाना है।
- इसकी शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी, जब गैंडों के विलुप्त होने के खतरे को गंभीरता से पहचाना गया।
- यह एक बहुआयामी कार्यक्रम के रूप में विकसित हुआ, जिसमें आवास संरक्षण, सामुदायिक सहभागिता, कानूनी प्रवर्तन और वैज्ञानिक अनुसंधान जैसी प्रमुख रणनीतियाँ शामिल हैं।


राजस्थान Switch to English
राजस्थान में सहकारी समितियाँ
चर्चा में क्यों?
जाम्बिया के चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने राजस्थान में सहकारी बैंकों और समितियों की कार्यप्रणाली का अवलोकन किया।
मुख्य बिंदु
- अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष-2025 के तहत, विभिन्न देशों के प्रतिनिधिमंडल अन्य देशों का दौरा कर उनकी सहकारी व्यवस्थाओं का अध्ययन कर रहे हैं।
- प्रतिनिधिमंडल ने जयपुर केंद्रीय सहकारी बैंक, अपेक्स बैंक, बीलवा ग्राम सेवा सहकारी समिति एवं बड़ का बालाजी प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति का दौरा कर सहकारी योजनाओं को सफल बनाने के लिये किये गए प्रयासों को समझा।
- प्रतिनिधिमंडल को सहकारी आंदोलन की प्रभावशीलता और राज्य में सहकारी संस्थाओं की भूमिका के बारे में जानकारी दी गई।
- राजस्थान के प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंक द्वारा चलाए जा रहे गैर-कृषि क्षेत्र के बकाया ऋणों की वसूली अभियान पर भी चर्चा हुई।
- इस अवसर पर जाम्बिया के प्रतिनिधियों ने भी अपने देश की सहकारी नीतियों और कार्यक्रमों की जानकारी साझा की, जिससे दोनों देशों के बीच सहकारी क्षेत्र में अनुभवों का आदान-प्रदान संभव हुआ।
सहकारी समितियांँ:
- परिचय:
- सहकारिताएंँ जन-केंद्रित उद्यम हैं जिनका स्वामित्व, नियंत्रण और संचालन उनके सदस्यों द्वारा उनकी सामान्य आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये किया जाता है।
- सहकारी संस्थाएँ लोगों को लोकतांत्रिक और समान तरीके से एक साथ लाती है। सदस्य चाहे ग्राहक हों, कर्मचारी हों, उपयोगकर्त्ता हों या निवासी हों, सहकारी समितियों का प्रबंधन लोकतांत्रिक तरीके से 'एक सदस्य, एक वोट' नियम द्वारा किया जाता है।
- उद्यम में किये गए पूंजी निवेश की परवाह किये बिना सदस्यों को समान मतदान अधिकार प्राप्त है।
- भारतीय परिप्रेक्ष्य:
- वर्तमान में भारत में 90 प्रतिशत गांँवों को कवर करने वाली 8.5 लाख से ज़्यादा सहकारी समितियों के नेटवर्क के साथ ये ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समावेशी विकास के उद्देश्य से सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण संस्थान हैं।
- संवैधानिक प्रावधान:
- 97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 के द्वारा सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा दिया गया

