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भारतीय विरासत और संस्कृति

संगीत प्रणाली का विकास

  • 01 Jul 2024
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सामवेद, हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत, उत्तर भारत में मुस्लिम शासक, भक्ति आंदोलन, राग और ताल, सप्तस्वर, घराने, थाट, ख्याल, ठुमरी और तराना

मेन्स के लिये:

भारतीय संगीत प्रणाली, विकास और प्रगति।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए एक अध्ययन में चिंपांजी (Chimps') की लयबद्ध संगीत के साथ नृत्य करने की क्षमता का पता चला है, जो हमारी लय की समझ में विकासवादी संबंध का संकेत देता है। पुरातात्त्विक साक्ष्य, जिसमें पशु की हड्डी से बनी 40,000 वर्ष पुरानी बाँसुरी भी शामिल है, मानव संगीत अभिव्यक्ति की उत्पत्ति के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

हालिया अध्ययन के निष्कर्ष क्या हैं?

  • मनुष्यों में संगीत की उत्पत्ति: इस अध्ययन के अनुसार, मनुष्यों ने संभवतः पुरापाषाण युग के दौरान, लगभग 2.5 मिलियन वर्ष पूर्व, वाणी के विकास के बाद गाना शुरू किया।
    • साक्ष्य बताते हैं कि संगीत वाद्ययंत्र बजाने की क्षमता लगभग 40,000 वर्ष पहले उत्पन्न हुई थी, जिसका उदाहरण सात छेदों वाली पशु की हड्डी से बनी बाँसुरी की खोज है।
  • संगीत स्वर/संकेतन: ऐसा माना जाता है कि भारत में संगीत स्वर ('सा, रे, गा, मा, पा, दा, नि') की उत्पत्ति वैदिक काल (1500-600 ईसा पूर्व) के दौरान हुई थी, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपराओं का आधार बना।
    • संगीत स्वर प्रणालियाँ यूरोप और मध्य पूर्व में लगभग 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व में स्वतंत्र रूप से स्थापित की गईं, जिनमें स्थानबद्ध स्वर ('डू, रे, मी, फा, सोल, ला, टी') का प्रयोग किया गया।
  • भारतीय संगीत प्रणाली का विकास: भारतीय संगीत प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक काल में विकसित हुआ।

प्राचीन काल में भारतीय संगीत का विकास कैसे हुआ?

  • सामवेद में उद्भव: सामवेद का महत्त्व संगीत की दृष्टि से बहुत अधिक है। इससे भारतीय संगीत का उद्भव हुआ। सामवेद के रागों का विकास धार्मिक तथा सांस्कृतिक दोनों प्रकार के गीतों से हुआ।
    • नारद मुनि ने मानवता को संगीत कला से परिचित कराया तथा नाद ब्रह्म का ज्ञान दिया, जो ब्रह्मांड में व्याप्त ध्वनि है।
  • वैदिक संगीत का विकास: प्रारंभ में एकल स्वरों पर केंद्रित वैदिक संगीत में क्रमशः दो और फिर तीन स्वरों को शामिल किया गया।
    • इस विकास के परिणामस्वरूप सात मूल स्वरों (सप्त स्वरों) की स्थापना हुई, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत का आधार बने।
    • वैदिक भजन याग और यज्ञ जैसे धार्मिक अनुष्ठानों का अभिन्न अंग थे, जहाँ उन्हें तार तथा ताल वाद्यों की संगत के साथ गाया एवं नृत्य किया जाता था।
  • प्रारंभिक तमिल योगदान: इलांगो अडिगल और महेंद्र वर्मा जैसे विद्वानों ने प्राचीन तमिल संस्कृति में संगीत संबंधी विचारों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिसका उल्लेख सिलप्पाडी काराम और कुडुमियामलाई शिलालेखों जैसे ग्रंथों में मिलता है।
    • करुणामृत सागर जैसे प्राचीन तमिल ग्रंथों में विभिन्न 'पण' द्वारा प्रदर्शित रागों तथा स्थाई (अष्टक), श्रुतियों और स्वर स्थानों की समझ प्रदान की गई है।

मध्यकाल में भारतीय संगीत का विकास कैसे हुआ?

  • एकीकृत संगीत प्रणाली: 13वीं शताब्दी तक, भारत ने सप्तस्वर (सात स्वर), सप्तक और श्रुति (सूक्ष्म स्वर) जैसे मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित एक सुसंगत संगीत प्रणाली कायम रखी।
  • शब्दों का परिचय: हरिपाल ने हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत शब्दों का निर्माण किया, जो उत्तरी और दक्षिणी संगीत परंपराओं के बीच अंतर को दर्शाते हैं।
  • मुस्लिम शासन का प्रभाव: उत्तर भारत में मुस्लिम शासकों के आगमन के साथ ही भारतीय संगीत ने अरब और फारसी संगीत प्रणालियों के प्रभावों को आत्मसात कर लिया। इस अंतर्क्रिया ने भारतीय संगीत अभिव्यक्ति के दायरे को व्यापक बना दिया।
  • क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि: जबकि उत्तर भारत में सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ, दक्षिण भारत अपेक्षाकृत अलग-थलग रहा, जहाँ मंदिरों और हिंदू राजाओं द्वारा समर्थित शास्त्रीय संगीत के निर्बाध विकास को बढ़ावा मिला।
  • विशिष्ट प्रणालियों का उदय: हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत अलग-अलग प्रणालियों के रूप में विकसित हुए, जिनमें से प्रत्येक वैदिक सिद्धांतों पर आधारित थी, फिर भी उनमें अद्वितीय क्षेत्रीय रस (Flavours) तथा शैलीगत बारीकियाँ प्रदर्शित होती थी।
  • भक्ति आंदोलन का प्रभाव: 7वीं शताब्दी के बाद से भारत में अनेक संत गायकों और धार्मिक कवियों का उदय हुआ, जिनमें कर्नाटक के पुरंदर दास भी शामिल थे, जिन्होंने ताल (लयबद्ध चक्र) को व्यवस्थित किया तथा भक्ति गीत रचनाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
    • इस युग के दौरान रागों का वर्गीकरण स्पष्ट हो गया, जिससे भारतीय शास्त्रीय संगीत को परिभाषित करने वाली संगीत संरचना की नींव रखी गई।
  • विस्तार और परिष्कार: इस युग में रागों, तालों (लयबद्ध चक्रों) और संगीत वाद्ययंत्रों सहित संगीत रूपों की गुणवत्ता तथा मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
  • संगीत शैलियों का उदय: इस अवधि के दौरान ख्याल, ठुमरी और तराना जैसी रचना शैलियों को प्रमुखता मिली, जिसने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विविध प्रदर्शनों की सूची में योगदान दिया।
  • घराने: इस अवधि के दौरान आगरा, ग्वालियर, जयपुर, किराना और लखनऊ जैसे घरानों के रूप में जानी जाने वाली विशिष्ट संगीत परंपराएँ समृद्ध हुई, जिनमें से प्रत्येक ने हिंदुस्तानी संगीत में अद्वितीय शैलीगत तत्त्वों का योगदान दिया।

आधुनिक काल में भारतीय संगीत का विकास कैसे हुआ?

  • महान संगीतकार: उस्ताद अल्लादिया खाँ, पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर और उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ जैसे प्रख्यात संगीतकार 20वीं सदी के हिंदुस्तानी संगीत के प्रतीक के रूप में उभरे तथा अपनी निपुणता और नवीनता से इस परंपरा को समृद्ध किया।
  • संकेतन के माध्यम से संरक्षण: संकेतन प्रणालियों के आगमन ने विभिन्न पीढ़ियों के लिये संगीत रचनाओं के संरक्षण और पहुँच को सुनिश्चित किया, जिससे अमूल्य संगीत विरासत की रक्षा हुई।.
  • हिंदुस्तानी रागों का समेकन: पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने हिंदुस्तानी रागों को 'थाट' प्रणाली के अंतर्गत व्यवस्थित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और साथ ही संगीत शिक्षा एवं प्रदर्शन के लिये एक संरचित आधार तैयार किया।
  • विद्वत्तापूर्ण रचनाएँ: अनेक विद्वत्तापूर्ण संगीत शैलियों जैसे कि कृति, स्वराजति, वर्ण, पद, तिल्लाना, जावली एवं रागमालिका की रचना की गई।
    • संगीत एवं गीतात्मक परिष्कार में विकसित होते हुए इन रचनाओं को प्राचीन ग्रंथों से प्रेरणा मिली।

और पढ़ें: 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय संगीत प्रणाली विभिन्न युगों में किस प्रकार विकसित हुई तथा उन तत्त्वों पर चर्चा करें जिन्होंने इसके आधुनिक स्वरूप के साथ-साथ शास्त्रीय संगीत में इसकी पारंपरिक आधारशिला को विकसित किया। वर्णन कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: मांगणियार नामक लोगों का एक समुदाय किसके लिये प्रसिद्ध है? (2014)

(a) पूर्वोत्तर भारत की मार्शल आर्ट 
(b) उत्तर-पश्चिम भारत की संगीत परंपरा 
(c) दक्षिण भारत के शास्त्रीय गायन संगीत 
(d) मध्य भारत की पिएट्रा ड्यूरा परंपरा

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में संगीत वाद्ययंत्रों को पारंपरिक रूप से किन समूहों में वर्गीकृत किया गया है? (2012)

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