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प्रश्न :
कर्नाटक संगीत की प्रमुख विधाओं पर चर्चा करें। क्या हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत में कुछ समानताएँ भी हैं?
09 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- कर्नाटक संगीत का संक्षिप्त परिचय।
- कर्नाटक संगीत की प्रमुख विधाएँ लिखें।
- कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में समानताएँ लिखें।
कर्नाटक संगीत शास्त्रीय संगीत की दक्षिण भारतीय शैली है। यह संगीत अधिकांशतः भक्ति संगीत के रूप में होता है और इसके अंतर्गत अधिकतर रचनाएँ हिन्दू देवी-देवताओं को संबोधित होती हैं। तमिल भाषा में कर्नाटक का आशय प्राचीन, पारंपरिक और शुद्ध से है। कर्नाटक संगीत की मुख्य विधाएँ निम्नलिखित हैं-
- अलंकारम- सप्तक के स्वरों की स्वरावलियों को अलंकारम कहते हैं। इनका प्रयोग संगीत अभ्यास के लिये किया जाता है।
- लक्षणगीतम्- यह गीत का एक प्रकार है जिसमें राग का शास्त्रीय वर्णन किया जाता है। पुरंदरदास के लक्षणगीत कर्नाटक में गाए जाते हैं।
- स्वराजाति- यह प्रारंभिक संगीत शिक्षण का अंग है। इसमें केवल स्वरों को ताल तथा राग में बाँटा जाता है। इसमें गीत अथवा कविता नहीं होते।
- आलापनम्- आकार में स्वरों का उच्चारण आलापनम् कहलाता है। इसमें कृति का स्वरूप व्यक्त होता है। इसके साथ ताल-वाद्य का प्रयोग नहीं किया जाता।
- कलाकृति, पल्लवी- कलाकृति में गायक को अपनी प्रतिभा दिखाने का पूर्ण अवसर मिलता है। द्रुत कलाकृति और मध्यम कलाकृति इसके दो प्रकार हैं। पल्लवी में गायक को राग और ताल चुनने की छूट होती है।
- तिल्लाना- तिल्लाना में निरर्थक शब्दों का प्रयोग होता है। इसमें लय की प्रधानता होती है। इसमें प्रयुक्त निरर्थक शब्दों को ‘चोल्लुक्केट्टू’ कहते हैं।
- पद्म, जवाली- ये गायन शैलियाँ उत्तर भारतीय संगीत की विधाएँ- ठुमरी, टप्पा, गीत आदि से मिलती-जुलती हैं। ये शैलियाँ सुगम संगीत के अंतर्गत आती हैं। इन्हें मध्य लय में गाया जाता है। पद्म श्रृंगार प्रधान तथा जवाली अलंकार व चमत्कार प्रधान होती है।
- भजनम्- यह गायन शैली भक्ति भावना से परिपूर्ण होती है। इसमें जयदेव और त्यागराज आदि संत कवियों की पदावलियाँ गाई जाती हैं।
- रागमालिका- इसमें रागों के नामों की कवितावली होती है। जहाँ-जहाँ जिस राग का नाम आता है, वहाँ उसी राग के स्वरों का प्रयोग होता है, जिससे रागों की एक माला सी बन जाती है।
हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत के बीच समानताएँ-
- दोनों ही शैलियों में शुद्ध तथा विकृत कुल 12 स्वर लगते हैं।
- दोनों शैलियों में शुद्ध तथा विकृत स्वरों से थाट या मेल की उत्पत्ति होती है।
- जन्य-जनक का सिद्धांत दोनों ही स्वीकार करते हैं।
- दोनों ने संगीत में तालों के महत्त्व को स्वीकार किया है।
- दोनों के गायन में आलाप तथा तान का प्रयोग होता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि इन दोनों संगीत शैलियों के मूल सिद्धांतों में अंतर नहीं है।
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