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स्टेट पी.सी.एस.

  • 14 Jan 2025
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राजस्थान Switch to English

राजस्थान की नदी-जोड़ो परियोजना

चर्चा में क्यों?

राजस्थान में प्रस्तावित नदी-जोड़ो परियोजना, जिसका उद्देश्य राज्य में बढ़ती जल कमी को दूर करना है, ने इसके संभावित पर्यावरणीय प्रभाव पर महत्त्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। 

इस नहर परियोजना से चंबल नदी बेसिन के अधिशेष जल को राजस्थान के 23 ज़िलों में सिंचाई, पेयजल और औद्योगिक उपयोग के लिये उपलब्ध कराए जाने की संभावना है, जिससे 3.45 करोड़ लोग लाभान्वित होंगे।

मुख्य बिंदु

  • यह नदी जोड़ो परियोजना रणथंभौर टाइगर रिज़र्व के लगभग 37 वर्ग किलोमीटर के संभावित जलमग्न क्षेत्र पर आधारित है।
  • यह जलमग्नता पार्वती-कालीसिंध-चंबल-पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (PKC-ERCP) के तहत प्रस्तावित सबसे बड़े बाँध के कारण होगी, जो महत्वाकांक्षी नदियों को जोड़ने (ILR) कार्यक्रम का हिस्सा है।
    • राजस्थान में PKC-ERCP परियोजना में कुल 408.86 वर्ग किलोमीटर डूब क्षेत्र शामिल है। इसमें से 227 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चंबल की सहायक नदी बनास पर प्रस्तावित बाँध के जलाशय के नीचे डूब जाएगा।
      • यह बाँध 39 मीटर ऊँचा और 1.6 किमी. लंबा बनाया जाएगा, जो सवाई माधोपुर से लगभग 30 किमी. दूर डूंगरी गाँव के पास स्थित होगा।
    • रणथंभौर तीसरा बाघ अभयारण्य है, जो आगामी जलाशयों के कारण भूमि के नुकसान का सामना कर रहा है।
      • परियोजना विवरण से पता चलता है कि 37.03 वर्ग किमी. क्षेत्र रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान (392 वर्ग किमी.) और केलादेवी वन्यजीव अभयारण्य (674 वर्ग किमी.) का है, जो दोनों रणथंभौर बाघ अभयारण्य (1,113 वर्ग किमी.) का हिस्सा हैं, जहाँ वर्तमान में 57 बाघ हैं।
  • परियोजना की पर्यावरणीय लागत एक विवादास्पद मुद्दा बन गई है। संरक्षणवादियों ने चेतावनी दी है कि रणथंभौर टाइगर रिज़र्व के कुछ हिस्सों के जलमग्न होने से भारत के सबसे प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्यों में से एक की जैव विविधता को खतरा हो सकता है। 
  • रणथंभौर, बाघों और अन्य प्रजातियों की स्थिर आबादी का पर्यावास है, जो देश के संरक्षण प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

नोट

चंबल नदी

  • चंबल नदी विंध्य पर्वत (इंदौर, मध्य प्रदेश) की उत्तरी ढलानों में सिंगार चौरी चोटी से निकलती है। वहाँ से यह मध्य प्रदेश में उत्तर दिशा में लगभग 346 किलोमीटर की लंबाई तक बहती है और फिर राजस्थान से होकर 225 किलोमीटर की लंबाई तक उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है।
  • यह नदी उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है और इटावा ज़िले में यमुना नदी में मिलने से पहले लगभग 32 किमी. तक बहती है।
  • यह एक बरसाती नदी है और इसका बेसिन विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं और अरावली से घिरा हुआ है। चंबल और इसकी सहायक नदियाँ उत्तर-पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र को जल से भरती हैं।
  • राजस्थान में हाड़ौती पठार मेवाड़ मैदान के दक्षिण-पूर्व में चंबल नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में स्थित है।
  • सहायक नदियाँ: बनास, काली सिंध, शिप्रा (क्षिप्रा), पारबती, आदि।
  • मुख्य विद्युत परियोजनाएँ/बाँध: गांधी सागर बाँध, राणा प्रताप सागर बाँध, जवाहर सागर बाँध और कोटा बैराज।
  • राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के त्रि-जंक्शन पर चंबल नदी के किनारे स्थित है। 
  • यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय घड़ियाल, रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल और लुप्तप्राय गंगा नदी डॉल्फिन के लिये जाना जाता है।


हरियाणा Switch to English

भूजल प्रदूषण के संबंधी चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत भर में भूजल की गुणवत्ता में काफी भिन्नता है, कुछ राज्य और केंद्र शासित प्रदेश जैसे अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, मेघालय और जम्मू-कश्मीर भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के मानकों को पूरी तरह से पूरा करते हैं, जबकि राजस्थान, हरियाणा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य व्यापक रूप से संदूषण का सामना कर रहे हैं।      

मुख्य बिंदु

  • जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्यों अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड ने असाधारण भूजल प्रबंधन प्रथाओं का प्रदर्शन किया है। 
  • वर्ष 2023 में देश भर में 15,259 भूजल निगरानी स्थानों पर गुणवत्ता डेटा और 4,982 प्रवृत्ति स्टेशनों पर केंद्रित मूल्यांकन के आधार पर रिपोर्ट में एक उल्लेखनीय चिंता "कई क्षेत्रों में यूरेनियम का ऊँचा स्तर" है।
  • उच्च यूरेनियम सांद्रता वाले नमूनों को अति-शोषित, गंभीर और अर्ध-गंभीर भूजल संकट वाले क्षेत्रों में एकत्रित किया गया, जैसे कि राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक। 
    • राजस्थान और पंजाब को यूरेनियम संदूषण के क्षेत्रीय हॉटस्पॉट के रूप में दर्शाया गया है।
  • रिपोर्ट में भूजल में नाइट्रेट, फ्लोराइड, आर्सेनिक और लौह की उच्च सांद्रता के कारण जल की गुणवत्ता पर गंभीर चिंता भी व्यक्त की गई है।
  • लगभग 20% नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा स्वीकार्य सीमा से अधिक पाई गई, जबकि 9% नमूनों में फ्लोराइड का स्तर स्वीकार्य सीमा से अधिक पाया गया।  
    • 3.5% नमूनों में आर्सेनिक संदूषण पाया गया।
    • राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में फ्लोराइड की स्वीकार्य सीमा से अधिक सांद्रता एक बड़ी चिंता का विषय है। 
    • राजस्थान, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में नाइट्रेट संदूषण की घटनाएँ सबसे अधिक हैं, जहाँ 40% से अधिक जल नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा अनुमेय सीमा से अधिक है। 
      • रिपोर्ट में इसका मुख्य कारण कृषि अपवाह और उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग बताया गया है। 
  • मूल्यांकन के दौरान कई राज्यों में, विशेषकर गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के बाढ़ के मैदानों में आर्सेनिक का स्तर ऊँचा पाया गया।
    • इसमें पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, असम और मणिपुर के क्षेत्रों के साथ-साथ पंजाब और छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव ज़िले के क्षेत्र भी शामिल हैं।
  • विद्युत चालकता (EC) जो पानी द्वारा बिजली का संचालन करने की सहजता का माप है। यह वास्तव में पानी के खनिजीकरण का माप है और भूजल की लवणता की डिग्री का संकेत है।
  • यह बताता है कि पानी में कितने घुलनशील पदार्थ, रसायन और खनिज मौजूद हैं। इन अशुद्धियों की अधिक मात्रा से पानी की चालकता अधिक हो जाएगी।
  • EC स्तरों में बढ़ती प्रवृत्ति भूजल लवणीकरण की एक गहरी समस्या का संकेत देती है। 
  • रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक भूजल में उच्च EC मूल्य से सबसे अधिक प्रभावित हैं।


उत्तराखंड Switch to English

उत्तराखंड में कड़े पंजीकरण मानदंडों के साथ समान नागरिक संहिता लागू

चर्चा में क्यों? 

उत्तराखंड सरकार 26 जनवरी, 2025 को समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की तैयारी कर रही है, जिसमें व्यक्तिगत और नागरिक मामलों से संबंधित पंजीकरणों के लिये कई अनिवार्य आवश्यकताएँ शामिल होंगी।    

मुख्य बिंदु

  • UCC पोर्टल 
    • पोर्टल पर उपलब्ध सेवाएँ निम्नलिखित हैं:
      • विवाह, तलाक और लिव-इन संबंधों का पंजीकरण।
      • लिव-इन रिश्तों की समाप्ति।
      • बिना वसीयत के उत्तराधिकार और कानूनी उत्तराधिकारी की घोषणा।
      • वसीयतनामा उत्तराधिकार।
      • अस्वीकृत आवेदनों के मामले में शिकायत पंजीकरण और अपील।
  • व्यक्तिगत और सिविल मामलों के लिये विभिन्न आवश्यकताएँ शामिल हैं:
    • लिव-इन रिलेशनशिप पंजीकरण:
      • मौजूदा और नए लिव-इन जोड़ों को अपने रिश्ते को पंजीकृत कराना होगा।
      • आवेदकों को आयु, राष्ट्रीयता, धर्म, फोन नंबर और पिछले संबंध की स्थिति का प्रमाण जैसे विवरण प्रदान करने होंगे।
      • दोनों भागीदारों की तस्वीरें और घोषणाएँ अनिवार्य हैं।
      • ऐसे रिश्तों में पैदा हुए बच्चों को जन्म प्रमाण-पत्र प्राप्त होने के सात दिनों के भीतर पंजीकृत किया जाना चाहिये।
    • विवाह और तलाक पंजीकरण:
      • पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये UCC पोर्टल के माध्यम से विवाह और तलाक के लिये सख्त आवश्यकताएँ लागू की गई हैं।
    • वसीयत उत्तराधिकार:
      • घोषणाकर्त्ताओं को अपना, अपने उत्तराधिकारियों और गवाहों का आधार से जुड़ा विवरण प्रस्तुत करना होगा।
      • जालसाजी या विवाद को रोकने के लिये गवाहों को उत्तराधिकार घोषणा-पत्र पढ़ते हुए स्वयं की वीडियो रिकॉर्डिंग अपलोड करना आवश्यक है।
    • विवाह एवं रिश्तों के लिये शिकायत तंत्र:
      • कोई तीसरा पक्ष UCC पोर्टल पर शिकायत के माध्यम से विवाह या लिव-इन रिलेशनशिप पर आपत्ति दर्ज करा सकता है।
      • झूठे आरोपों का मुकाबला करने के लिये ऐसी शिकायतों का सत्यापन उप-पंजीयक द्वारा किया जाएगा।

समान नागरिक संहिता (UCC)

  • समान नागरिक संहिता भारत के सभी नागरिकों के लिये विवाह, तलाक, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समूह को संदर्भित करती है।
  • समान नागरिक संहिता की अवधारणा का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के रूप में किया गया है, जिसमें कहा गया है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। 
  • हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि यह कानूनी रूप से लागू करने योग्य अधिकार नहीं है, बल्कि राज्य के लिये एक मार्गदर्शक सिद्धांत है। 


उत्तर प्रदेश Switch to English

महाकुंभ मेला 2025: विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन

चर्चा में क्यों?

पृथ्वी पर सबसे बड़े मानव समागम के रूप में मनाया जाने वाला महाकुंभ मेला 2025, पौष पूर्णिमा के अवसर पर शुभ 'शाही स्नान' के साथ शुरू हुआ। 

  • प्रत्येक 144 वर्ष बाद एक दुर्लभ खगोलीय संयोग के दौरान आयोजित होने वाले इस आयोजन में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के पवित्र संगम पर 1.5 करोड़ (15 मिलियन) से अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना है।

मुख्य बिंदु

  • 45 दिवसीय आध्यात्मिक उत्सव, जो 26 फरवरी को समाप्त होगा, में कई महत्त्वपूर्ण स्नान अनुष्ठान शामिल होंगे, जिनमें शामिल हैं:
    • मकर संक्रांति: 14 जनवरी 
    • मौनी अमावस्या: 29 जनवरी 
    • बसंत पंचमी: 3 फरवरी 
  • इन आयोजनों का अत्यधिक धार्मिक महत्त्व है, तथा ये भारत और विश्व भर से भक्तों, संतों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते हैं।
  • नमामि गंगे यज्ञ:
    • त्योहार की पूर्व संध्या पर, नमामि गंगे टीम ने गंगा नदी की पवित्रता और प्रवाह को बनाए रखने के लिये निरंतर प्रयास करने की शपथ लेने के लिये संगम पर एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। 
    • इस कार्यक्रम में 200 से अधिक गंगा सेवादूतों और हजारों स्वयंसेवकों ने भाग लिया, जिसमें गंगा स्वच्छता अभियान में युवाओं के योगदान को विशेष रूप से मान्यता दी गई।
  • सुरक्षा एवं संरक्षा उपाय:
    • लाखों तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये उत्तर प्रदेश पुलिस और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की टीमों को महाकुंभ क्षेत्र में तैनात किया गया है। 
    • संगम पर स्नान के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिये विशेष जल पुलिस इकाइयां तैनात की जाती हैं।
  • महाकुंभ मेला 2025:
    • महाकुंभ मेला 2025, एक पवित्र तीर्थस्थल, प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित किया जाएगा। 
      • यह प्रति 12 वर्ष में चार स्थानों अर्थात प्रयागराज (UP), हरिद्वार (UK), नासिक (महाराष्ट्र) और उज्जैन (MP) के बीच घूमता हुआ आयोजित होता है। 
    • कुंभ शब्द का तात्पर्य एक बर्तन या पात्र से है, जिसके संबंध में हिंदू पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि उसमें अमरता का अमृत भरा हुआ था।
    • उत्तर प्रदेश ने प्रयागराज में महाकुंभ क्षेत्र को 4 महीने अर्थात् 1 दिसंबर, 2024 से 31 मार्च, 2025 तक के लिये महाकुंभ मेला नामक एक नए ज़िले के रूप में घोषित किया है।

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)

  • NDRF का परिचय: NDRF भारत में प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के लिये विशेष प्रतिक्रिया के उद्देश्य से गठित एक विशेष बल है।
  • गठन और उद्देश्य: NDRF का गठन वर्ष 2006 में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत किया गया था। इसका प्राथमिक उद्देश्य प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं का त्वरित और प्रभावी ढंग से उत्तर देना है।
  • संरचना: NDRF में सीमा सुरक्षा बल (BSF), केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF), भारत तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) और सशस्त्र सीमा बल (SSB) सहित केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) की बटालियनें शामिल हैं।
    • प्रत्येक बटालियन को आपदा प्रतिक्रिया के लिये विशेष प्रशिक्षण और उपकरण प्रदान किये गये हैं।



उत्तर प्रदेश Switch to English

उत्तर प्रदेश घाटे में चल रही डिस्कॉम के निजीकरण की संभावना तलाश रहा है

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश सरकार ने घाटे में चल रही अपनी दो विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का निजीकरण करने या सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) बनाने की दिशा में कदम उठाए हैं।

  • इस कदम से नौकरी की सुरक्षा और सेवा वितरण पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंतित कर्मचारियों में विरोध भड़क गया है।

मुख्य बिंदु

  • राज्य के विद्युत निगम ने हाल ही में दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (डीवीवीएनएल) और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PVVNL) के लिये निजीकरण या PPP मॉडल तैयार करने के लिये सलाहकारों और लेनदेन सलाहकारों को आमंत्रित करते हुए एक निविदा जारी की।
  • दोनों डिस्कॉम भारी वित्तीय घाटे से जूझ रहे हैं, जिससे सरकार को दक्षता और सेवा की गुणवत्ता में सुधार के लिये विकल्प तलाशने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
  • सरकार ने स्पष्ट किया है कि शेयरधारिता संरचना सहित साझेदारी की विशिष्टताएँ परामर्शदाताओं की अनुशंसाओं के आधार पर निर्धारित की जाएँगी।
  • ये विशेषज्ञ डिस्कॉम की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करेंगे और निजीकरण या PPP के लिये उपयुक्त मॉडल का प्रस्ताव देंगे।
  • इस मॉडल से यह अपेक्षा की जाती है कि निजी संस्थाओं को परिचालन विशेषज्ञता और निवेश लाने की अनुमति मिलेगी, साथ ही सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये कुछ स्तर पर सरकारी निगरानी भी बनी रहेगी।

डिस्कॉम क्या है?

  • परिचय:
    • विद्युत क्षेत्र में डिस्कॉम (DISCOM) का अर्थ वितरण कंपनी है। यह घरों, व्यवसायों और उद्योगों सहित उपभोक्ताओं को विद्युत वितरण के लिये ज़िम्मेदार संस्थाओं को संदर्भित करता है। 
  • डिस्कॉम की भूमिका:
    • विद्युत वितरण: वे अपने निर्दिष्ट क्षेत्रों में उपभोक्ताओं तक विद्युत पहुँचाने के लिये बुनियादी ढाँचे और परिचालन का प्रबंधन करते हैं।
    • बिलिंग और राजस्व संग्रहण: डिस्कॉम्स मीटरिंग, बिलिंग और विद्युत खपत के लिये भुगतान एकत्र करने का काम संभालते हैं।
    • रखरखाव और उन्नयन: वे ट्रांसफार्मर, सबस्टेशन और विद्युत लाइनों सहित वितरण नेटवर्क के रखरखाव के लिये ज़िम्मेदार होते हैं।
    • ग्राहक सेवा: डिस्कॉम्स बिजली (विद्युत) कटौती, मीटर स्थापना और विद्युत आपूर्ति से संबंधित शिकायतों जैसे मुद्दों का समाधान करती हैं।

 


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