पर्सपेक्टिव: भारत-अमेरिका iCET सहयोग | 10 Jul 2024
प्रिलिम्स के लिये:महत्त्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकी पर भारत-अमेरिका पहल (iCET), भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA), अमेरिका-भारत रणनीतिक प्रौद्योगिकी साझेदारी, अर्द्धचालक, दूरसंचार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम, STEM, जैव ईंधन बायोफार्मा, जैव प्रौद्योगिकी, महत्त्वपूर्ण खनिज, जैव प्रौद्योगिकी, दुर्लभ पृथ्वी खनिज, स्वच्छ ऊर्जा राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, क्वाड, नाटो, 5G, 6G, ओपन-आरएएन नेटवर्क, हिंद-प्रशांत क्षेत्र, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), मशीन लर्निंग (ML), संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) मेन्स के लिये:भारत के सामरिक हित और उभरती प्रौद्योगिकियों के संबंध में द्विपक्षीय समूहों तथा समझौतों का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महत्त्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकी पर भारत-अमेरिका पहल (Initiative on Critical and Emerging Technology- iCET) की दूसरी समीक्षा बैठक की अध्यक्षता भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor- NSA) तथा उनके अमेरिकी समकक्ष द्वारा नई दिल्ली में की गई।
- बैठक के बाद अमेरिका-भारत रणनीतिक प्रौद्योगिकी साझेदारी के अगले अध्याय के लिये दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए एक संयुक्त तथ्य पत्र भी जारी किया गया।
बैठक के मुख्य परिणाम क्या हैं?
- बैठक में अंतरिक्ष, अर्द्धचालक, उन्नत दूरसंचार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम, STEM, जैव प्रौद्योगिकी, महत्त्वपूर्ण खनिजों और स्वच्छ ऊर्जा सहित प्रमुख प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में रणनीतिक सहयोग को गहरा करने तथा विस्तार करने की दिशा में भारत एवं अमेरिका द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण प्रगति पर चर्चा की गई।
- उन्होंने आपसी सहयोग को और अधिक सुविधाजनक बनाने तथा व्यापार, प्रौद्योगिकी एवं औद्योगिक सहयोग में लंबित बाधाओं को दूर करने के तरीकों पर भी चर्चा की।
- फैक्टशीट में सहयोग के नए क्षेत्रों जैसे जैव ईंधन (Biofuel) और बायोफार्मा को भी शामिल किया गया है। साथ ही कुछ नए फंड भी स्थापित किये गए हैं और इसके लिये धनराशि भी जारी की गई है।
iCET क्या है?
- परिचय:
- iCET पहल भारत और अमेरिका द्वारा मई 2022 में शुरू की गई थी, इसका संचालन दोनों देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषदों द्वारा किया जा रहा है।
- इसे आधिकारिक तौर पर जनवरी 2023 में लॉन्च किया गया और इसे दोनों देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद द्वारा चलाया जा रहा है।
- iCET के तहत दोनों देशों ने सहयोग हेतु छह क्षेत्रों की पहचान की है जिसमें सह-विकास और सह-उत्पादन शामिल होगा, जिसे धीरे-धीरे क्वाड, फिर नाटो, यूरोप तथा शेष विश्व में विस्तारित किया जाएगा।
- iCET के तहत अमेरिका के साथ भारत अपनी प्रमुख तकनीकों को साझा करने के लिये तैयार है और उम्मीद करता है कि वाशिंगटन भी ऐसा ही करेगा।
- पहल के मुख्य फोकस क्षेत्र:
- AI अनुसंधान एजेंसी साझेदारी
- रक्षा औद्योगिक सहयोग, रक्षा तकनीकी सहयोग और रक्षा स्टार्टअप
- नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र।
- सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र विकास।
- मानव अंतरिक्ष यान पर सहयोग
- 5G और 6G प्रौद्योगिकियों में प्रगति तथा भारत में OpenRAN नेटवर्क प्रौद्योगिकी को अपनाना।
- iCET में हालिया समावेशन- जैव प्रौद्योगिकी, महत्त्वपूर्ण खनिज, दुर्लभ पृथ्वी खनिज प्रसंस्करण और डिजिटल प्रौद्योगिकी।
iCET का महत्त्व क्या है?
- iCET भारत-अमेरिका रक्षा और ऊर्जा सहयोग का केंद्र बिंदु है क्योंकि यह दोनों देशों की सरकार, शिक्षा तथा उद्योग के बीच घनिष्ठ संबंध बनाएगा।
- भारत, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को रोकने के लिये अमेरिका का रणनीतिक साझेदार बनकर उभरा है, इस प्रकार यह सहयोग संबंधों को और मज़बूत करेगा।
- इसका उद्देश्य विश्व को किफायती अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों की सुविधा प्रदान करना है।
- महत्त्वाकांक्षी iCET वार्ता की शुरुआत को प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में "रणनीतिक, वाणिज्यिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के संरेखण" के रूप में देखा जाता है।
- यह अंततः ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के अनौपचारिक गठबंधन क्वाड के विकास के रूप में परिलक्षित होगा।
चुनौतियाँ:
- जटिल प्रक्रिया: विभिन्न सीमा पार व्यापार और प्रौद्योगिकीय चुनौतियों के कारण उद्योगों के बीच प्रौद्योगिकी सहयोग एक जटिल प्रक्रिया है, उदाहरण के लिये, भारत पर अनिवार्य घरेलू सामग्री की आवश्यकता के माध्यम से गैर-घरेलू सौर पैनल तथा मॉड्यूल निर्माताओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए, अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान निकाय में मामला ले लिया।
- निर्यात नियंत्रण: निर्यात प्रतिबंध एक बड़ी चुनौती है, विशेषकर अमेरिका जैसे देशों के लिये, जिन्होंने हाल के वर्षों में संरक्षणवाद को बढ़ावा दिया है, जैसे- भारत से इस्पात आयात पर आयात शुल्क।
- IPR का मुद्दा: अगर संयुक्त फंडिंग होती है तो इस बात पर सहमति होनी चाहिये कि बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual property rights - IPR) किस अनुपात में साझा किये जाने चाहिये। नए स्टार्ट-अप को नए संयुक्त प्रोजेक्ट के IPR में उचित हिस्सा और मान्यता मिलनी चाहिये।
- आपूर्ति शृंखला की विश्वसनीयता: परियोजनाओं में देरी को रोकने और सहमत क्षेत्रों पर सहयोग के लिये आपूर्ति शृंखला में विश्वसनीयता आवश्यक है।
- वित्तपोषण की कमी: अनुसंधान और विकास (R&D) के लिये वित्तपोषण बढ़ाने की सरकार की पहल के बावजूद भारत अभी भी उभरती तथा महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के लिये निधि आवंटित करने में अन्य अग्रणी देशों से पीछे है। भारत में निवेश का वर्तमान स्तर, सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.7% है, जो अग्रणी देशों द्वारा प्रायः आवंटित 2-3% से काफी कम है।
- बुनियादी ढाँचे और कौशल का अंतराल: क्वांटम कंप्यूटिंग, AI और सेमीकंडक्टर विनिर्माण जैसी उन्नत तकनीकों के लिये मज़बूत बुनियादी ढाँचे तथा कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है।
- निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी: हालाँकि iDEX जैसी सरकारी पहल का उद्देश्य स्टार्टअप का समर्थन करना और नवाचार को प्रोत्साहित करना है किंतु R&D हेतु निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी की आवश्यकता है।
महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियाँ (CET)
- क्वांटम प्रौद्योगिकी:
- क्वांटम प्रौद्योगिकी क्वांटम यांत्रिकी (Quantum mechanics) के सिद्धांतों पर आधारित है जिसे 20वीं शताब्दी के आरंभ में परमाणुओं एवं मूल तत्त्वों के स्तर पर प्रकृति के वर्णन के लिये विकसित किया गया था।
- कन्वेंशनल कंप्यूटर सूचना को ‘बिट्स’ या 1 और 0 में संसाधित करते हैं जबकि क्वांटम कंप्यूटर ‘क्यूबिट्स’ (या क्वांटम बिट्स) में गणना करते हैं।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI):
- AI का आशय कंप्यूटर या कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट के ऐसे कार्य करने की क्षमता से है जो आमतौर पर मनुष्यों द्वारा किये जाते हैं क्योंकि ऐसे कार्यों के निष्पादन हेतु मानवीय बुद्धिमत्ता और विवेक की आवश्यकता होती है।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता की आदर्श विशेषता इसकी युक्तिसंगत कार्रवाई करने की क्षमता है जिसमें एक विशिष्ट लक्ष्य प्राप्त किया जाता है। मशीन लर्निंग (ML), AI का ही एक प्रकार है।
- डीप लर्निंग (DL) तकनीक बड़ी मात्रा में असंरचित डेटा जैसे- टेक्स्ट, चित्र या वीडियो के माध्यम से ऑटोमेटिक लर्निंग को सक्षम बनाती है।
- अर्धचालक(Semiconductors):
- अर्द्धचालक एक ऐसी सामग्री है जिसमें सुचालक (आमतौर पर धातु) और कुचालक या ऊष्मारोधी (जैसे- अधिकांश सिरेमिक) के बीच चालन की क्षमता होती है। अर्द्धचालक शुद्ध तत्त्व हो सकते हैं, जैसे- सिलिकॉन अथवा जर्मेनियम यौगिक जैसे गैलियम आर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड।
- वर्ष 2022 में भारतीय अर्द्धचालक उद्योग 27 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें से 90% से अधिक का आयात किया गया था और साथ ही भारतीय चिप उपभोक्ताओं के लिये एक बाह्य निर्भरता थी।
- स्वच्छ ऊर्जा:
- स्वच्छ ऊर्जा वह ऊर्जा है जो नवीकरणीय, शून्य उत्सर्जन स्रोतों से प्राप्त की जाती है जिसका उपयोग करने पर वातावरण प्रदूषित नहीं होता है, साथ ही ऊर्जा दक्षता उपायों द्वारा ऊर्जा की बचत भी होती है। स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के कुछ उदाहरण सौर, पवन, जल विद्युत और भूतापीय ऊर्जा हैं।
- स्वच्छ ऊर्जा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, जलवायु परिवर्तन से निपटने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने में सहायता प्रदान कर सकती है।
- ग्रीन हाइड्रोजन:
- ग्रीन हाइड्रोजन एक प्रकार का हाइड्रोजन है जो सौर अथवा पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके जल इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से उत्पादित किया जाता है।
- इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया जल को हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में विभाजित करती है और साथ ही उत्पादित हाइड्रोजन का उपयोग स्वच्छ एवं नवीकरणीय ईंधन के रूप में किया जा सकता है।
- जैव-अर्थव्यवस्था:
- संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, जैव-अर्थशास्त्र को जैविक संसाधनों के उत्पादन, उपयोग एवं संरक्षण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें संबंधित ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार शामिल हैं, ताकि एक स्थायी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के उद्देश्य से सभी आर्थिक क्षेत्रों को सूचना, उत्पाद, प्रक्रियाएँ तथा सेवाएँ प्रदान की जा सकें।
आगे की राह
- द्विपक्षीय मुद्दों का समाधान: दोनों देशों को व्यापार में आने वाली बाधाओं का समाधान कर द्विपक्षीय व्यापार और प्रौद्योगिकी मुद्दों को हल करने के लिये काम करना चाहिये।
- प्रौद्योगिकी संरक्षण टूलकिट: दोनों पक्षों ने वास्तव में एक-दूसरे के प्रौद्योगिकी संरक्षण टूलकिट को अपनाने और देशों में संवेदनशील तथा दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों को सुरक्षित रखने के लिये सहमती जताई।
- विनियामक ढाँचे का अंगीकरण: किसी प्रौद्योगिकी के दो पहलू होते हैं इसलिये एक ऐसा गतिशील नियामक ढाँचा स्थापित करने की आवश्यकता है जो नैतिक मानकों को सुनिश्चित करते हुए और संभावित जोखिमों को संबोधित करते हुए तकनीकी प्रगति के साथ तेज़ी से अनुकूलन करने में सक्षम हो।
- बौद्धिक संपदा अधिकारों का स्पष्टीकरण: अनुसंधान एवं विकास में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये बौद्धिक संपदा अधिकारों के संबंध में स्पष्ट और पारदर्शी नीतियाँ विकसित की जानी चाहिये।
- R&D में निवेश को बढ़ावा: अनुसंधान और विकास में, विशेष रूप से उभरती प्रौद्योगिकियों में, सार्वजनिक तथा निजी दोनों क्षेत्रों के निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये नीतियों को कार्यान्वित करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञता और संसाधनों का ईष्टतम उपयोग करने के लिये उद्योग, शिक्षा तथा अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने ‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ तथा ‘वासेनार व्यवस्था’ के नाम से ज्ञात बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में भारत को सदस्य बनाए जाने का समर्थन करने का निर्णय लिया है। इन दोनों व्यवस्थाओं के बीच क्या अंतर है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |