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सामाजिक न्याय

महिलाओं में निवेश और भारत की समृद्धि

  • 28 Oct 2024
  • 32 min read

यह संपादकीय 25/10/2024 को ‘द हिंदू बिज़नेस लाइन’ में प्रकाशित “Big gender shift in our workforce” पर आधारित है। यह लेख भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है, जो पिछले पाँच वर्षों में 24.5% से बढ़कर 41.7% हो गई है। इस प्रगति के बावजूद, नौकरी की गुणवत्ता को लेकर चिंता बनी हुई है, कई महिलाएँ बिना वेतन के काम कर रही हैं, हालाँकि महिला उद्यमियों में आशाजनक वृद्धि संभावित परिवर्तन की ओर इशारा करती है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, डिजिटल साक्षरता अभियान, दूरस्थ कार्य/रिमोट वर्क, ई-कॉमर्स, मुद्रा योजना, स्टैंड-अप इंडिया योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, स्वयं सहायता समूह, दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, कुल प्रजनन दर, POSH (कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निदान) अधिनियम, 2013) पहल, आयुष्मान कार्ड, लखपति दीदी योजना 

मेन्स के लिये:

भारत में महिला श्रम बल भागीदारी में वृद्धि में योगदान देने वाले प्रमुख कारक, महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण में मौजूदा बाधाएँ। 

पिछले 5 वर्षों में एक उल्लेखनीय बदलाव में, भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी 24.5% से बढ़कर 41.7% हो गई है, जो महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में एक मौन क्रांति को दर्शाता है। वित्त वर्ष 2019 और वित्त वर्ष 2024 के दौरान कामकाजी महिलाओं की संख्या 11 करोड़ से बढ़कर लगभग दोगुनी होकर 21 करोड़ हो गई है, नौकरी की गुणवत्ता में एक चिंताजनक प्रवृत्ति उभरती है, जबकि पारिवारिक उद्यमों में महिलाओं के अवैतनिक सहायक के रूप में काम करने की संभावना पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक है। फिर भी महिला उद्यमियों (जो अपना खुद का उद्यम चला रही हैं) की संख्या में वृद्धि की उम्मीद है जो 2.5 करोड़ से बढ़कर 6.4 करोड़ हो गई हैं और संभावित रूप से भारत के आर्थिक एवं सामाजिक संरचना में एक परिवर्तनकारी बदलाव को उत्प्रेरित कर रही हैं।

भारत में महिला श्रम बल भागीदारी में वृद्धि में किन प्रमुख कारकों का योगदान रहा है?

  • शैक्षणिक सशक्तीकरण: उच्च शिक्षा में महिला नामांकन वित्त वर्ष 2015 में 1.57 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में 2.07 करोड़ हो गया, यानी 31.6% की वृद्धि
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में लैंगिक समावेशन और व्यावसायिक प्रशिक्षण  पर ज़ोर देने से ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों की महिलाओं को विशेष रूप से लाभ हुआ है।
    • महिला महाविद्यालयों और लिंग-तटस्थ संस्थानों की अधिक संख्या में स्थापना से नारी शिक्षा में बहुत सुधार हुआ है। 
    • डिजिटल साक्षरता अभियान (DISHA) जैसी पहलों के माध्यम से बढ़ती डिजिटल साक्षरता ने महिलाओं को आधुनिक रोज़गार के लिये महत्त्वपूर्ण कौशल प्रदान किया है। 
    • शिक्षा और कार्यबल भागीदारी के बीच संबंध केरल तथा तमिलनाडु जैसे राज्यों में स्पष्ट है, जहाँ उच्च महिला साक्षरता दर अधिक कार्यबल भागीदारी के साथ संरेखित है।
  • बुनियादी अवसंरचना और गतिशीलता में सुधार: सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन के विस्तार (विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में) ने कामकाजी महिलाओं के लिये यात्रा को अधिक व्यवहार्य बना दिया है। 
    • प्रमुख शहरों में ‘पिंक बसें’ और अंतिम छोर तक बेहतर कनेक्टिविटी जैसी पहलों ने सुरक्षा संबंधी चिंताओं का समाधान किया है। 
    • 20 से अधिक शहरों में मेट्रो रेल परियोजनाओं से शहरी कामकाजी महिलाओं को विशेष तौर पर लाभ हुआ है। व्यावसायिक क्षेत्रों में महिलाओं के अनुकूल कार्यस्थलों और क्रेच के बढ़ने से भी इस प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था और दूरस्थ कार्य: कोविड-19 ने रिमोट वर्क नीतियों के अंगीकरण में तेज़ी ला दी है, जिससे महिलाओं को अनुकूल अवसर प्राप्त हुए हैं जो विशेष रूप से घरेलू ज़िम्मेदारियों को संतुलित करने वाली महिलाओं के लिये फायदेमंद हैं। 
    • ई-कॉमर्स और सोशल कॉमर्स प्लेटफॉर्मों के विकास ने महिलाओं को घर से ऑनलाइन व्यवसाय शुरू करने में सक्षम बनाया है, मीशो जैसे प्लेटफॉर्मों पर 9 मिलियन महिला उद्यमी हैं।
    • गिग इकॉनमी के विस्तार ने लचीले आय के अवसर उत्पन्न किये हैं, अर्बन कंपनी जैसी कंपनियों ने 2 वर्षों में नेतृत्व की भूमिकाओं में 30% महिलाओं को लाने का लक्ष्य रखा है।
    • दूरस्थ कार्य/रिमोट वर्क नीतियों से विशेष रूप से शहरी शिक्षित महिलाएँ लाभान्वित हुई हैं, IT क्षेत्र में 36% महिलाओं की भागीदारी देखी गई है।
  • सरकारी नीतिगत पहल: मुद्रा योजना जैसी लक्षित नीतियों ने महत्त्वपूर्ण वित्तीय सहायता प्रदान की है, नवंबर 2023 तक स्वीकृत कुल 44.46 करोड़ ऋणों में से 69% महिलाओं को दिये गए हैं।
  • बदलती सामाजिक गतिशीलता: परिवारों के आकार में कमी (कुल प्रजनन दर घटकर 2.0 रह गई - राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 ) ने घरेलू ज़िम्मेदारियों को कम कर दिया है। 
    • 25-49 वर्ष के आयु वर्ग की बिना स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं के विवाह की औसत आयु बढ़कर 17.1 वर्ष और 12 या उससे अधिक वर्षों की स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं के विवाह की औसत आयु बढ़कर 22.8 वर्ष हो गई है।
    • बढ़ते शहरीकरण ने महिलाओं के रोज़गार पर पारंपरिक सामाजिक बाधाओं को कमज़ोर कर दिया है। जीवन-यापन की बढ़ती लागत और महत्त्वाकांक्षी जीवनशैली के कारण परिवारों में अब दोहरी आय आवश्यक हो गई है। 
    • किरण मजूमदार-शॉ (बायोकॉन की संस्थापक), फल्गुनी नायर (नायका की सीईओ), सुधा मूर्ति (इन्फोसिस फाउंडेशन की संस्थापक और वर्तमान राज्यसभा सदस्य) जैसी महिला नेताओं की सफलता ने सकारात्मक रोल मॉडल तैयार किये हैं, जिससे अधिक महिलाओं को कॅरियर बनाने के लिये प्रोत्साहन मिला है।
  • कॉर्पोरेट क्षेत्र की पहल: कंपनियों ने महिला कर्मचारियों के लिये विशिष्ट लक्ष्य के साथ विविधता नीतियों को तेज़ी से अपनाया है। 
  • स्वास्थ्य देखभाल और कल्याण सहायता: आयुष्मान भारत के माध्यम से बेहतर स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता से काम में स्वास्थ्य संबंधी बाधाएँ कम हो गई हैं।
    • आयुष्मान कार्ड धारकों में लगभग 49% महिलाएँ हैं। इसके अलावा, महिलाओं के लिये विशेष रूप से 141 स्वास्थ्य लाभ पैकेज (HBP) निर्धारित किये गए हैं।
      • बेहतर मातृ स्वास्थ्य सेवाओं ने कामकाजी माताओं की आवश्यकताओं को पूरा किया है।
    • किफायती बाल देखभाल सुविधाओं के विस्तार से कामकाजी माता-पिता को सहायता मिली है, आँगनवाड़ी सेवाएँ 8.7 करोड़ से अधिक बच्चों को शामिल करती हैं।

महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण में मौजूदा बाधाएँ क्या हैं?

  • वेतन भेदभाव और वेतन अंतर: PLFS के आँकड़ों के अनुसार, महिलाएँ नियमित नौकरियों में केवल 16,500 रुपए मासिक कमाती हैं, जबकि पुरुषों के लिये यह 22,100 रुपए है, जो वेतन में 25% का लैंगिक अंतर दर्शाता है। 
    • स्वरोज़गार में यह असमानता और भी अधिक स्पष्ट है, जहाँ महिलाओं की आय मात्र 5,500 रुपए है जबकि पुरुषों की आय 16,000 रुपए है 
    • उद्योग-विशिष्ट विश्लेषण से पता चलता है कि IT जैसे क्षेत्रों में भी, जहाँ महिलाओं का प्रतिनिधित्व अधिक है, की आय पुरुष समकक्षों की तुलना में 26-28% कम है। 
    • यह निरंतर वैतनिक अंतर कार्यबल में भागीदारी को हतोत्साहित करता है और वित्तीय स्वतंत्रता को सीमित करता है।
  • देखभाल अर्थव्यवस्था का कम मूल्यांकन: भारत में महिलाओं की अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्य GDP के लगभग 15%-17% के आर्थिक मूल्य (वर्ष 2019 में राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा आयोजित टाइम यूज़ सर्वे) का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
    • आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के आँकड़ों के अनुसार, भारत में महिलाएँ घरेलू कामों में प्रतिदिन 352 मिनट तक समय व्यतीत करती हैं, जो पुरुषों (52 मिनट) की तुलना में 577% अधिक है। 
    • पेशेवर देखभालकर्त्ताओं (नर्स, बाल-देखभाल कर्मी, वृद्धजन-देखभाल प्रदाता) को व्यवस्थित वेतन दंड का सामना करना पड़ता है तथा उन्हें तुलनीय कौशल वाली नौकरियों की तुलना में कम वेतन मिलता है। 
      • मानव संसाधन निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देने के बावजूद, देखभाल कार्य नीतिगत संरचना और राष्ट्रीय खातों में अदृश्य बना हुआ है।
  • सुरक्षा और गतिशीलता संबंधी चिंताएँ: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाओं के खिलाफ पंजीकृत अपराधों में 4% की वृद्धि हुई है, जो कार्यस्थल पर आवागमन के निर्णयों को प्रभावित करती है। 
    • वर्ष 2021 में, महानगरीय क्षेत्रों में एक ऑनलाइन सर्वेक्षण से पता चला कि सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग करने वाली लगभग 56% महिलाओं ने यौन उत्पीड़न की सूचना दी।
    • हाल ही में हुई आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में एक युवा महिला डॉक्टर संबंधी दुखद घटना ने उस भय और असुरक्षा को और अधिक रेखांकित किया है, जिसे सार्वजनिक जीवन में सहभागिता के दौरान अनेक महिलाएँ अनुभव करती हैं।
  • पूंजी और वित्तीय संसाधनों तक पहुँच: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की नवीनतम ‘पुरुष और महिला’ रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल बैंक जमा का केवल 20.8% हिस्सा महिला खाताधारकों के पास है। 
    • RBI के अनुसार, महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसाय MSME का लगभग पाँचवाँ हिस्सा बनाते हैं, लेकिन उन्हें इस क्षेत्र को आवंटित कुल बकाया ऋण का केवल 7% ही प्राप्त होता है।
    • संपार्श्विक आवश्यकताएँ महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करती हैं, केवल 13% महिलाओं के पास कृष्ट-भूमि संपत्ति है। 
    • इसके अलावा, महिलाओं में डिजिटल वित्तीय साक्षरता अभी भी कम है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, मोबाइल फोन प्रयोग करने वाली केवल 22.5% महिलाएँ ही वित्तीय लेन-देन के लिये इसका इस्तेमाल करती हैं।
  • शैक्षणिक और कौशल अंतराल: हालाँकि नामांकन में सुधार हुआ है, लेकिन महिलाओं की स्कूल छोड़ने की दर 33% (UNICEF) पर उच्च बनी हुई है। 
    • STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्र में कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 28% है।
    • कार्यबल आयु वर्ग में केवल 2% महिलाओं तक ही व्यावसायिक प्रशिक्षण पहुँच पाता है, जबकि पुरुषों में यह आँकड़ा 8% है। 
    • सत्र 2022-23 में, 18-59 वर्ष की आयु की केवल 18.6% महिलाओं को ही कभी व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ था और यह अंतर पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है।
      • चिंताजनक बात यह है कि वर्ष 2021 में कौशल प्रशिक्षणार्थियों में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 7% थी, जबकि 17% औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) विशेष रूप से महिलाओं के लिये थे। 
  • उद्यमशील पारिस्थितिकी तंत्र की चुनौतियाँ: महिला स्वामित्व वाले MSME पंजीकृत उद्यमों का केवल 20% हिस्सा हैं। 
    • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (2020-21) से पता चलता है कि 59% महिला कार्यबल स्वरोज़गार में लगी हुई हैं, जिनमें से 38% स्वतंत्र रूप से अपने उद्यमों का संचालन कर रही हैं, संभवतः निर्वाह उद्यमी के रूप में, जिनकी बड़े, अधिक स्थापित व्यवसायों के समतुल्य बाज़ारों तक पहुँच नहीं हो सकती है।
    • इसके अलावा, एक हालिया सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 27% महिला उद्यमी अपनी उपज का कोई भी हिस्सा बेचने की योजना नहीं बनाती हैं, बल्कि इसका प्रयोग केवल घरेलू उपभोग के लिये करती हैं, जबकि पुरुष उद्यमियों के मामले में यह आँकड़ा 10% है। 
      • यह महिलाओं के समक्ष बाज़ार तक पहुँच संबंधी स्पष्ट समस्याओं को दर्शाता है।
  • कानूनी और नीति कार्यान्वयन में अंतराल: भारत में विश्व स्तर पर सबसे प्रगतिशील मातृत्व लाभ संबंधी कानून हैं।
    • चूँकि कार्यबल का एक बहुत बड़ा हिस्सा अनौपचारिक रोज़गार में लगा हुआ है, इसलिये देश में लगभग 93.5% महिला श्रमिक इन मातृत्व लाभों तक पहुँचने में असमर्थ हैं।
    • यौन उत्पीड़न रोकथाम कानूनों का क्रियान्वयन कमज़ोर है, 70% प्रभावित कामकाज़ी महिलाएँ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट नहीं करती हैं। 
    • सरकार के कुल व्यय के संदर्भ में, लिंग बजट केवल 4.96% पर ही बना हुआ है। 
  • जलवायु परिवर्तन और महिलाओं की आजीविका खतरे में: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित होने वाले 80% लोग महिलाएँ या लड़कियाँ हैं, जो सुरक्षित स्थानों पर पलायन करने के कारण गरीबी, हिंसा या अनपेक्षित गर्भधारण के बढ़ते खतरों का सामना कर रही हैं।
    • औसत वर्ष में गर्मी के कारण तनाव के कारण महिला प्रधान परिवारों की आय में पुरुष प्रधान परिवारों की तुलना में 8% की कमी आ रही है तथा अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ पुरुष प्रधान परिवारों की तुलना में 3% की कमी ला रही हैं।
    • हरित परिवर्तन के लिये नवीकरणीय ऊर्जा और विनिर्माण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में कार्यबल में महिलाओं का प्रतिशत कम है। 

महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण से संबंधित भारत सरकार की क्या पहल हैं?

  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: महिला उद्यमियों और स्वयं सहायता समूहों के लिये वहनीय/सस्ते ऋण तक पहुँच प्रदान करती है।
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ: शिक्षा के माध्यम से जागरूकता पैदा करने और महिला कल्याण में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • महिला ई-हाट: यह महिला उद्यमियों और स्वयं सहायता समूहों को समर्थन देने के लिये एक ऑनलाइन विपणन मंच है।
  • महिला शक्ति केंद्र: कौशल विकास और उद्यमिता के लिये ग्राम स्तर पर सशक्तीकरण कार्यक्रमों तथा संसाधनों को सुगम बनाता है।
  • कामकाजी महिला छात्रावास: शहरी क्षेत्रों में कामकाजी महिलाओं के लिये सुरक्षित एवं सस्ती आवासन सुविधा उपलब्ध कराना।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना: यह आवास का महिलाओं के नाम पर होना सुनिश्चित करती है।
  • मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम 2017: इसके तहत सवैतनिक मातृत्व अवकाश को बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया और कार्यस्थल पर क्रेच सुविधाओं को अनिवार्य बनाया गया।

भारत में महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण को मज़बूत करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • देखभाल अर्थव्यवस्था मान्यता और समर्थन: अवैतनिक देखभाल कार्य को मान्यता देने और क्षतिपूर्ति करने के लिये एक सार्वभौमिक बुनियादी देखभाल आय (UBCI) योजना का संचालन किया जाना चाहिये।
    • देखभाल कर्मियों के लिये व्यापक लाभ और सामाजिक सुरक्षा के साथ एक राष्ट्रीय देखभाल अर्थव्यवस्था फ्रेमवर्क तैयार करने की आवश्यकता है।
    • अवैतनिक देखभाल कार्य में बिताए गए वर्षों को मान्यता देते हुए पेंशन प्रणालियों में केयर क्रेडिट की स्थापना करने की आवश्यकता है। 
    • शहरी केंद्रों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (जापान में सफल मॉडल के समान)  द्वारा समर्थित व्यावसायिक देखभाल सेवा केंद्र विकसित करने की आवश्यकता है।
    • 25 से अधिक कर्मचारियों वाले सभी कार्यस्थलों पर देखभाल संबंधी बुनियादी अवसंरचना (बाल देखभाल) अनिवार्य बनाए जाने चाहिये तथा अनुपालन के लिये कर प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिये।
  • डिजिटल समावेशन और प्रौद्योगिकी अभिगम: महिलाओं के लिये डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण के साथ स्मार्टफोन सब्सिडी को मिलाकर एक नई ‘डिजिटल शक्ति’ की शुरुआत की जा सकती है।
    • सरलीकृत KYC और कम लेन-देन लागत के साथ महिला-केंद्रित डिजिटल बैंकिंग प्रोडक्ट की आवश्यकता है।
    • उभरती प्रौद्योगिकियों और दूरस्थ कार्य कौशल पर ध्यान केंद्रित करते हुए सामान्य सेवा केंद्र की तर्ज पर डिजिटल कौशल केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में सहकर्मी-आधारित डिजिटल मार्गदर्शन के लिये ‘टेक-सखी’ कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है।
    • नैसकॉम फाउंडेशन की महिला विज़ार्ड्स जैसे सफल मॉडलों का अनुसरण करते हुए, दूरस्थ तकनीकी भूमिकाओं में महिलाओं को नियुक्त करने वाली कंपनियों को कर प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • लिंग-संवेदनशील वित्तीय सेवाएँ: प्रोत्साहन संरचनाओं के साथ बैंकों के लिये लिंग-आधारित ऋण लक्ष्य अनिवार्य करने की आवश्यकता है। 
    • महिलाओं के विशिष्ट वित्तीय पैटर्न को ध्यान में रखते हुए विशेष क्रेडिट स्कोरिंग मॉडल बनाए जाने चाहिये।
    • क्रेडिट गारंटी कवरेज के साथ महिला उद्यमिता निधि की स्थापना की जानी चाहिये। सरकारी समर्थन के साथ महिला-केंद्रित एंजेल निवेश नेटवर्क और उद्यम निधि शुरू किये जाने चाहिये।
    • समूह गारंटी तंत्र और नवीन ऋण उत्पादों के माध्यम से संपार्श्विक आवश्यकताओं को सरल बनाना चाहिये।
  • कार्यस्थल सुरक्षा और गतिशीलता समाधान: तकनीक-सक्षम सार्वजनिक परिवहन निगरानी और आपातकालीन प्रतिक्रिया के साथ ‘सुरक्षित शहर’ पहल को लागू करने की आवश्यकता है।
    • सभी व्यावसायिक ज़िलों में सुरक्षा ऑडिट और बुनियादी अवसंरचना के उन्नयन को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
    • गुमनाम शिकायत प्रबंधन प्रणालियों के माध्यम से कार्यस्थल पर उत्पीड़न की रोकथाम को सुदृढ़ करना तथा इसके दुरुपयोग को रोकने के लिये सख्त उपाय किया जाना चाहिये। 
  • कौशल विकास और कॅरियर प्रगति: मांग-आधारित प्रशिक्षण के लिये उद्योग-अकादमिक महिला कौशल परिषदों की स्थापना करने की आवश्यकता है।
    • कामकाजी महिलाओं के लिये अनुकूल वर्क ऑवर के साथ ‘दूसरा अवसर’ शिक्षा कार्यक्रम बनाए जाने चाहिये।
    • अनुभवी पेशेवरों को उभरती महिला नेताओं से जोड़ने के लिये सलाहकार नेटवर्क शुरू किया जाना चाहिये। 
    • गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में महिलाओं के लिये विशेष रूप से सशुल्क प्रशिक्षुता कार्यक्रम लागू किया जाना चाहिये।
  • उद्यमिता समर्थन पारिस्थितिकी तंत्र: महिला उद्यमियों के लिये वन-स्टॉप-शॉप व्यवसाय सुविधा केंद्र बनाए जाने की आवश्यकता है।
    • विशेष रूप से महिलाओं के स्वामित्व वाले व्यवसायों के लिये बाज़ार संपर्क मंच स्थापित किया जाना चाहिये।
    • सरकारी अनुबंधों में महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यमों से खरीद का एक निश्चित प्रतिशत अनिवार्य किया जाना चाहिये। 
  • कानूनी फ्रेमवर्क और नीति कार्यान्वयन: अनिवार्य वेतन पारदर्शिता (जैसा कि हाल ही में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा किया गया है) की आवश्यकताओं  के साथ समान वेतन कानून को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
    • सभी सरकारी स्तरों पर स्पष्ट परिणाम मीट्रिक्स के साथ लिंग-संवेदनशील बजट को लागू किया जाना चाहिये।
    • प्रौद्योगिकी-सक्षम निगरानी प्रणालियों के माध्यम से मातृत्व लाभ कार्यान्वयन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। सरलीकृत कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से महिलाओं के लिये संपत्ति अधिकारों के प्रवर्तन को मज़बूत किया जाना चाहिये। 
  • ग्रामीण महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण: महिला नेतृत्व और स्वामित्व के साथ कृषि-उत्पादक संगठनों का विस्तार करने की आवश्यकता है।
    • महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों के लिये विशेष बुनियादी अवसंरचना के साथ ग्रामीण उद्यम क्षेत्र बनाए जाने चाहिये।
    • महिला किसानों पर केंद्रित कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिये। एकीकृत लॉजिस्टिक्स सहायता के साथ ग्रामीण डिजिटल वाणिज्य प्लेटफॉर्म विकसित करने की आवश्यकता है। अनुकूल शर्तों के साथ ग्रामीण महिला उद्यमियों के लिये विशेष वित्तीय उत्पाद लॉन्च किये जाने चाहिये।

निष्कर्ष: 

भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी में वृद्धि देश के विकसित होते सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य का प्रमाण है। हालाँकि वेतन भेदभाव, देखभाल अर्थव्यवस्था की उपेक्षा, सुरक्षा संबंधी चिंताएँ और पूंजी तक अभिगम जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। लक्षित नीतियों, समावेशी बुनियादी ढाँचे और सहायक सामाजिक मानदंडों के माध्यम से इन बाधाओं को दूर करना महिलाओं की पूरी क्षमता को अनलॉक करने तथा भारत के सतत् विकास को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक है। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाकर, भारत न केवल समावेशी विकास प्राप्त कर सकता है, बल्कि एक अधिक न्यायसंगत और समृद्ध भविष्य को भी आयाम दे सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. पिछले पाँच वर्षों में भारत में महिला श्रम शक्ति भागीदारी में आए महत्त्वपूर्ण बदलावों पर चर्चा कीजिये। इन बदलावों में किन कारकों का योगदान रहा है और नौकरी की गुणवत्ता एवं आर्थिक भागीदारी के मामले में महिलाओं को अभी भी किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन, विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौम लैंगिक अंतराल सूचकांक (ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स)' का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) UN मानव अधिकार परिषद
(c) UN वूमन
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न 1. "महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।" चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न 2. भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के समारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न 3. "महिला संगठनों को लिंग-भेद से मुक्त करने के लिये पुरुषों की सदस्यता को बढ़ावा मिलना चाहिये।" टिप्पणी कीजिये। (2013)

प्रश्न 4. 'देखभाल अर्थव्यवस्था' और 'मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था' के बीच अंतर कीजिये। महिला सशक्तीकरण के द्वारा देखभाल अर्थव्यवस्था को मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था में कैसे लाया जा सकता है? (2023)

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