सामाजिक न्याय
सतत् आर्थिक विकास हेतु महिलाओं का सशक्तीकरण
- 21 Jan 2025
- 32 min read
यह संपादकीय 19/01/2025 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित “Labour force participation of teen girls and elderly women in rural India is increasing” पर आधारित है। यद्यपि लेख में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाया गया है, साथ ही इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि विशेष रूप से किशोर लड़कियों और वृद्ध महिलाओं के लिये आर्थिक आवश्यकता वास्तविक सशक्तीकरण पर हावी हो जाती है, जो लैंगिक समानता के लिये गहन संरचनात्मक बाधाएँ है।
प्रिलिम्स के लिये:आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (2023-24), उज्ज्वला योजना, हर घर जल, मनरेगा, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, समग्र शिक्षा अभियान, पीएम जन धन योजना, स्टैंड-अप इंडिया योजना, महिला आरक्षण अधिनियम- 2023, कौशल भारत मिशन, डिजिटल साक्षरता अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट- 2023 मेन्स के लिये:भारत की बेहतर महिला श्रम बल भागीदारी के प्रमुख चालक, भारत की महिला श्रम बल भागीदारी में संरचनात्मक चुनौतियाँ। |
हाल ही में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (2023-24) के अनुसार, महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ यह 6 वर्षों में 18.2% से लगभग दोगुनी होकर 35.5% हो गई है। हालाँकि, गहन विश्लेषण से चिंताजनक पैटर्न का पता चलता है— किशोर लड़कियों (15-19) और वृद्ध महिलाओं (60+) के बीच भागीदारी में तीव्र वृद्धि हुई है, जो प्रायः सशक्तीकरण के बजाय आर्थिक आवश्यकता से प्रेरित होती है। यद्यपि बढ़ती भागीदारी प्रगति को चिह्नित करती है, महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक बाधाओं को दूर करना अभी भी बाकी है, तभी हम ऐसी अर्थव्यवस्था बना सकेंगे जो वास्तव में लैंगिक-संवेदनशील हो तथा सभी श्रमिकों को समान अवसर और विकल्प प्रदान करे।
भारत में महिला श्रम बल में भागीदारी में सुधार के पीछे कौन-से कारक हैं?
- कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से घरेलू काम में कमी: उज्ज्वला योजना (निशुल्क LPG कनेक्शन) और हर घर जल (घरों में नल का जल) जैसी सरकारी योजनाओं ने महिलाओं के घरेलू बोझ को कम कर दिया है, जिससे आर्थिक गतिविधियों के लिये अधिक समय उपलब्ध हुआ है।
- पहले की अपेक्षा जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने या जल लाने के झंझट से मुक्ति के कारण, महिलाएँ (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) कृषि और संबद्ध गतिविधियों में संलग्न हुई हैं।
- उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों द्वारा लिये गए कुल रिफिल की संख्या सत्र 2018-19 में 159.9 मिलियन से बढ़कर सत्र 2022-23 में 344.8 मिलियन हो गई है, और जल जीवन मिशन के तहत घरेलू नल जल कनेक्शन अक्तूबर 2024 तक 78% ग्रामीण घरों तक सुलभ हो गया है, जिससे महिलाओं के लिये सीधे तौर पर कठिनाई कम हो गई है।
- सरकारी योजनाओं के तहत रोज़गार में वृद्धि: महिलाओं को मनरेगा जैसी मजदूरी रोज़गार योजनाओं से लाभ हुआ है, जो पुरुषों और महिलाओं के लिये समान मज़दूरी के साथ स्थानीय अवसर प्रदान करती हैं।
- ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार, सत्र 2021-22 में मनरेगा कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 54.54% थी।
- इसी प्रकार, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) जैसी पहलों ने स्वयं सहायता समूहों (SHG) के माध्यम से वर्ष 2023 तक 9.89 करोड़ से अधिक महिलाओं को सशक्त बनाया है, जिससे उन्हें सूक्ष्म उद्यमों और वित्तीय गतिविधियों में संलग्न होने में मदद मिली है।
- घटती प्रजनन दर और छोटे परिवार: भारत की घटती प्रजनन दर, जो अब 2.0 (NFHS-5, 2021) है, ने महिलाओं पर बच्चों के पालन-पोषण का बोझ कम कर दिया है, जिससे उन्हें वेतनभोगी कार्यों में भाग लेने के लिये अधिक समय मिल रहा है।
- विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, छोटे आकार के परिवारों ने महिलाओं को कार्यबल में प्रवेश करने तथा कॅरियर विकास पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाया है।
- PLFS 2023-24 के अनुसार, यह जनसांख्यिकीय बदलाव शहरी क्षेत्रों में युवा आयु समूहों (20-35 वर्ष) में बढ़ती FLFP में स्पष्ट है।
- साक्षरता और शिक्षा के स्तर में सुधार: महिलाओं की साक्षरता एवं शिक्षा तक पहुँच में लगातार सुधार हुआ है, जिससे उनकी रोज़गार क्षमता और कार्यबल में भागीदारी बढ़ी है।
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और समग्र शिक्षा अभियान जैसी योजनाओं ने महिला साक्षरता को बढ़ावा देने में मदद की है, जो अब 77% है।
- इसके अतिरिक्त, कौशल भारत मिशन और डिजिटल साक्षरता अभियान जैसे कार्यक्रम महिलाओं को व्यावसायिक तथा डिजिटल कौशल से लैस कर रहे हैं, जिससे उन्हें ई-कॉमर्स व गिग वर्क जैसे उभरते क्षेत्रों में भागीदारी करने में मदद मिल रही है।
- स्वरोज़गार और उद्यमिता की ओर रुझान: प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) और स्टैंड-अप इंडिया योजना जैसी वित्तीय समावेशन पहलों से सहायता प्राप्त होकर महिलाएँ स्वरोज़गार और उद्यमिता में तीव्रता से प्रवेश कर रही हैं।
- जन धन खाताधारकों में से 55% महिलाएँ हैं, जिससे उन्हें औपचारिक बैंकिंग पहुँच और ऋण संपर्क उपलब्ध हो रहा है।
- मार्च 2023 तक, स्टैंड-अप इंडिया योजना के तहत 40,710 करोड़ रुपए के ऋण स्वीकृत किये गए, जिनमें से 80% महिला उद्यमियों को आवंटित किये गए, जिससे आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा मिला।
- प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण सक्षमकर्त्ता के रूप में: इंटरनेट पहुँच और डिजिटल प्लेटफॉर्मों के तीव्रता से विस्तार ने महिलाओं के लिये गिग और रिमोट वर्क में भाग लेने के नए अवसर उत्पन्न किये हैं।
- अमेज़न सहेली और महिला ई-हाट जैसे प्लेटफॉर्म महिलाओं को घर से उत्पाद बेचने एवं सेवाएँ उपलब्ध कराने में सक्षम बना रहे हैं।
- चूँकि इंटरनेट की खपत में ग्रामीण भारत की हिस्सेदारी 53% है, इसलिये अधिकाधिक महिलाएँ कार्यबल में शामिल होने के लिये डिजिटल उपकरणों का लाभ उठा रही हैं, जिससे गतिशीलता संबंधी बाधाएँ कम हो रही हैं।
- सहायक कानूनी कार्यढाँचे: मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017, जो 26 सप्ताह का सवेतन मातृत्व अवकाश प्रदान करता है और POSH अधिनियम, 2013 जैसे प्रगतिशील कानूनी उपायों ने महिलाओं के कार्यबल में बने रहने के लिये अधिक सहायक वातावरण तैयार किया है।
- महिला आरक्षण अधिनियम- 2023 के पारित होने जैसे हालिया कदम महिलाओं के प्रतिनिधित्व और अवसरों में सुधार के लिये राजनीतिक प्रतिबद्धता का संकेत देते हैं, जिससे कार्यबल भागीदारी पर प्रभाव पड़ेगा।
- स्वयं सहायता समूहों की बढ़ती भूमिका: ग्रामीण विकास मंत्रालय की दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) और अन्य राज्य स्तरीय कार्यक्रमों के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों ने ऋण सुलभता, कौशल विकास और सामूहिक सौदाकारी के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाया है।
- फरवरी 2024 तक स्वयं सहायता समूहों (SHG) ने महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों के लिये 1.7 लाख करोड़ रुपए से अधिक का ऋण जुटाया था।
- तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में, जहाँ स्वयं सहायता समूह विशेष रूप से सक्रिय हैं, राष्ट्रीय औसत की तुलना में उच्च FLFP के साथ सीधा संबंध देखा गया है।
भारत में महिला श्रमबल भागीदारी में संरचनात्मक चुनौतियाँ क्या हैं?
- लैंगिक सामाजिक मानदंड और सांस्कृतिक बाधाएँ: आर्थिक विकास के बावजूद, पारंपरिक सामाजिक मानदंड महिलाओं को वेतन वाले काम में भाग लेने से हतोत्साहित करते हैं तथा उन्हें घरेलू भूमिकाओं तक ही सीमित रखते हैं।
- घर से बाहर काम करने वाली महिलाओं को, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कलंकित माना जाता है जिससे अवसरों तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
- इसके अलावा, महिलाओं से यह सामाजिक अपेक्षा की जाती है कि वे अपने करियर की तुलना में देखभाल प्रदान करने को प्राथमिकता दें, जिससे कार्यबल में उनका समावेश कम हो जाता है।
- ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट- 2023 के अनुसार, आर्थिक भागीदारी में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर है, जो गंभीर रूप से व्याप्त लैंगिक पूर्वाग्रहों को उजागर करता है।
- घर से बाहर काम करने वाली महिलाओं को, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कलंकित माना जाता है जिससे अवसरों तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण तक अपर्याप्त पहुँच: कई महिलाओं को उच्च शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण तक पहुँच का अभाव है, जिससे उभरते नौकरी बाज़ारों में कौशल असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।
- STEM क्षेत्रों में महिला साक्षरता और नामांकन कम बना हुआ है, जिससे IT और विनिर्माण जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्रों में रोज़गार की संभावना सीमित हो रही है।
- सत्र 2022-23 में, 18-59 आयु वर्ग की केवल 18.6% महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ, जबकि वर्ष 2021 में केवल 7% कौशल प्रशिक्षु महिलाएँ थीं, जबकि 17% ITI केवल महिलाओं के लिये थे।
- इस अपर्याप्त तैयारी के कारण महिलाएँ अनौपचारिक और कम वेतन वाले क्षेत्रों तक ही सीमित रह जाती हैं, जिससे उनकी आर्थिक निर्भरता बनी रहती है।
- अवैतनिक देखभाल कार्य का बोझ: अवैतनिक देखभाल कार्य जैसे: बच्चों की देखभाल, वृद्ध जनों की देखभाल और घरेलू काम के असंगत बोझ से महिलाओं के पास वैतनिक कार्य के लिये बहुत कम समय बचता है।
- उज्ज्वला योजना और हर घर जल जैसे कल्याणकारी उपायों से घरेलू काम-काज़ तो कम हो गए हैं, लेकिन कार्यबल में इनका समावेश पूरी तरह नहीं हो पाया है।
- NFHS (2019-21) के आँकड़ों के अनुसार, 15-59 वर्ष की आयु की लगभग 85% महिलाएँ बिना वेतन के घरेलू काम में संलग्न हैं, जिसमें शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के बीच न्यूनतम अंतर है।
- यह असमानता महिलाओं की पूर्णकालिक रोज़गार तक पहुँच की क्षमता को सीमित करती है।
- संरचनात्मक अनौपचारिकता और लैंगिक वेतन अंतर: भारत के कार्यबल में महिलाओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक नौकरियों में है, जैसे कृषि और परिधान निर्माण, जो कम वेतन वाले हैं तथा इनमें सामाजिक सुरक्षा का अभाव है।
- इस संरचनात्मक अनौपचारिकता के परिणामस्वरूप अनिश्चित रोज़गार और लगातार लैंगिक वेतन अंतर बना रहता है।
- विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुमान के अनुसार, भारत में पुरुष श्रम आय का 82% कमाते हैं, जबकि महिलाएँ 18% कमाती हैं।
- इसके अतिरिक्त, आर्थिक सर्वेक्षण- 2023 के अनुसार, 90% से अधिक महिला श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में हैं, जिससे उनके लिये उत्कृष्ट श्रम स्थितियाँ उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
- लिंग-संवेदनशील कार्यस्थल नीतियों का कमज़ोर कार्यान्वयन: मातृत्व लाभ, लचीली कार्य नीतियों और क्रेच सुविधाओं का अपर्याप्त प्रवर्तन महिलाओं को कार्यबल में बने रहने से हतोत्साहित करता है।
- मातृत्व लाभ अधिनियम, 2017 के साथ निजी क्षेत्र का अनुपालन कम बना हुआ है, विशेष रूप से छोटे उद्यमों में।
- OP जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 93.5% महिला श्रमिक मातृत्व लाभ प्राप्त नहीं कर पाती हैं।
- कामकाज़ी माताओं के लिये संरचनात्मक समर्थन की कमी के कारण कई महिलाएँ प्रसव के बाद कार्यबल से बाहर हो जाती हैं।
- POSH अधिनियम, 2013 जैसे कानूनों के बावजूद अनौपचारिक और छोटे उद्यमों में इनका प्रवर्तन कमज़ोर बना हुआ है।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बनी रहेंगी: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (2022) ने वर्ष 2018 और वर्ष 2022 के दौरान महिलाओं के साथ होने वाले अपराध में 12.9% की वृद्धि का खुलासा किया है, जिसके कारण कई परिवार महिलाओं को काम के लिये यात्रा करने से हतोत्साहित कर रहे हैं।
- हालाँकि, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-2022 में आत्महत्या करने वाली आधी से अधिक महिलाएँ गृहिणी थीं।
- इसके अलावा, शहरों में सुरक्षा बुनियादी अवसंरचना की कमी महिलाओं की गतिशीलता को सीमित करती है और रोज़गार के अवसरों तक उनकी पहुँच को कम करती है।
- आर्थिक आवश्यकता के कारण सीमित विकल्प: ग्रामीण महिलाओं की LFPR में हाल ही में हुई वृद्धि, विशेष रूप से कृषि में, एजेंसी के बजाय आवश्यकता से प्रेरित भागीदारी को उजागर करती है।
- पुरुषों के पलायन के कारण या छोटे घरों में उपार्जक सदस्यों की अनुपस्थिति (कृषि का महिलाकरण) के कारण महिलाओं को प्रायः मुख्य उपार्जक रूप में आगे आने के लिये विवश होना पड़ता है।
- PLFS (2023-24) से पता चलता है कि वृद्ध ग्रामीण महिलाएँ और किशोर लड़कियाँ कार्यबल में प्रवेश कर रही हैं, जो प्रायः सशक्तीकरण के बजाय आर्थिक कमज़ोरी को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि कई महिलाएँ कम-मूल्य वाली, जीविकोपार्जन के लिये प्रेरित नौकरियों में फँसी हुई हैं।
- नेतृत्वकारी भूमिकाओं में सीमित प्रतिनिधित्व: महिलाओं को ग्लास सीलिंग अवधारणा को तोड़ने और सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों में नेतृत्वकारी पदों तक पहुँचने में महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
- अप्रैल 2024 तक भारत में 77 महिला सांसद थीं, जो कुल सीटों का 14.7% है। महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 वर्ष 2029 के बाद लागू होगा।
- 'कॉरपोरेट इंडिया में नेतृत्व में महिलाएँ' विषय पर वर्ष 2024 की रिपोर्ट से पता चला है कि वरिष्ठ नेतृत्व भूमिकाओं (प्रबंधकीय स्तर और उससे ऊपर) में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 18.3% है।
- प्रतिनिधित्व की यह कमी निर्णय लेने में महिलाओं की भूमिका को सीमित करती है और लैंगिक रूढ़िवादिता को कायम रखती है।
कौन-सी रणनीतियाँ संरचनात्मक मुद्दों का हल करते हुए महिलाओं के प्रभावी आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा दे सकती हैं?
- उभरते क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कौशल विकास को मज़बूत करना: वस्त्र और हस्तशिल्प जैसे पारंपरिक क्षेत्रों के साथ-साथ IT, नवीकरणीय ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवा जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्रों में महिलाओं के लिये अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिये।
- कौशल भारत मिशन और डिजिटल इंडिया के तहत कार्यक्रमों में ग्रामीण महिलाओं के लिये डिजिटल साक्षरता या शहरी महिलाओं के लिये उन्नत STEM प्रशिक्षण जैसी लिंग-विशिष्ट पहलों को एकीकृत किया जा सकता है।
- स्टैंड-अप इंडिया जैसी पहलों के साथ अभिसरण सुनिश्चित करने से वित्तीय और उद्यमशीलता सहायता मिलेगी, तथा महिलाओं को रोज़गार सृजनकर्त्ता बनने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा।
- किफायती बाल देखभाल और क्रेच सुविधाओं तक पहुँच का विस्तार करना: शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में राष्ट्रीय क्रेच योजना के तहत क्रेच सुविधाओं के कार्यान्वयन को बढ़ाने के लिये एक राष्ट्रव्यापी बाल देखभाल सहायता मिशन शुरू की जाने की आवश्यकता है।
- इसे मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 के तहत कार्यस्थल नीतियों के साथ जोड़ा जाना चाहिये, जो अनौपचारिक प्रतिष्ठानों सहित सभी उद्यमों के लिये किफायती डेकेयर केंद्रों को अनिवार्य बनाता हो।
- इससे विशेषकर 25-40 आयु वर्ग की महिलाएँ, देखभाल के बोझ के बिना कार्यबल में पुनः प्रवेश कर सकेंगी।
- औपचारिक ऋण तक महिलाओं की पहुँच बढ़ाना: प्रधानमंत्री जन धन योजना का अभिगम बढ़ाना तथा महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों के लिये मुद्रा योजना के अंतर्गत किफायती ऋण तक निर्बाध पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- इसे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के अंतर्गत वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों के साथ जोड़कर स्वयं सहायता समूहों (SHG) को उद्यमशीलता कौशल से सशक्त बनाया जाना चाहिये।
- ऋण प्रक्रियाओं को सरल बनाकर, मार्गदर्शन कार्यक्रम प्रदान करके तथा बैंकों में लैंगिक-संवेदनशील वित्तीय सहायता डेस्क स्थापित करके महिला उद्यमियों को समर्थन प्रदान किया जाना चाहिये।
- जेंडर रेस्पोंसिव बुनियादी अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देना: सुरक्षित और किफायती परिवहन, पृथक् स्वच्छता सुविधाएँ तथा अच्छी तरह से रोशनी वाली सड़कों जैसे जेंडर रेस्पोंसिव इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में।
- महिलाओं की गतिशीलता बढ़ाने और कार्यस्थल की बाधाओं को कम करने के लिये सुरक्षित शहर परियोजनाओं जैसी शहरी सुरक्षा पहलों का विस्तार किया जाना चाहिये।
- बेहतर समावेशिता और सुगम्यता के लिये स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत ऐसे बुनियादी अवसंरचना को लागू करने के लिये राज्य सरकारों के साथ साझेदारी की जानी चाहिये।
- लैंगिक समानता के लिये कार्यस्थल नीतियों को मज़बूत बनाना: POSH अधिनियम, 2013 के तहत लचीले कार्य घंटे, सवेतन मातृत्व अवकाश और उत्पीड़न विरोधी उपायों सहित लैंगिक-संवेदनशील कार्यस्थल नीतियों को अनिवार्य बनाना।
- विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के लिये हाइब्रिड कार्य अवसरों और दूरस्थ नौकरियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, ताकि उन्हें प्रसव के बाद कार्यबल में बनाए रखा जा सके।
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहल के तहत जेंडर ऑडिट करने और कार्यस्थल विविधता में सुधार करने के लिये कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- नेतृत्व और निर्णय लेने वाली भूमिकाओं में प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना: राजनीति, शासन और कॉर्पोरेट क्षेत्रों में नेतृत्व की भूमिकाओं के लिये उन्हें तैयार करने हेतु मिशन शक्ति के तहत महिलाओं के लिये क्षमता निर्माण कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है।
- निजी कंपनियों को विविधता मानदंड अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और नेतृत्व पदों पर महिलाओं का कम से कम 30% प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिये डिजिटल समावेशन पर ध्यान केंद्रित करना: डिजिटल साक्षरता अभियान का विस्तार करके और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को रियायती दरों पर स्मार्टफोन व इंटरनेट कनेक्शन प्रदान करके लैंगिक डिजिटल विभाजन को समाप्त करने की आवश्यकता है।
- डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण के माध्यम से महिलाओं के लिये ई-गिग इकॉनमी के अवसरों, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म कार्य के अवसरों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- महिला ई-हाट और अमेज़न सहेली जैसी पहलों को बढ़ाया जाना चाहिये ताकि महिला उद्यमियों को बड़े बाज़ारों से जोड़ा जा सके तथा उन्हें विपणन, रसद एवं वित्तीय सहायता प्रदान की जा सके।
- जेंडर रेस्पोंसिव सामाजिक सुरक्षा कार्यढाँचे का विकास करना: ऐसे सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम तैयार किये जाने चाहिये जो सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, वृद्धावस्था पेंशन और बेरोज़गारी लाभ सहित कामकाज़ी महिलाओं की आवश्यकताओं को प्राथमिकता दें।
- अनौपचारिक महिला श्रमिकों के लिये आय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये PM जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) और PM श्रम योगी मानधन योजना जैसी बीमा योजनाओं को मज़बूत किया जाए सकता है।
- महिलाओं की आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिये उनकी कार्यबल भागीदारी से जुड़े सशर्त नकद अंतरण की शुरुआत की जानी चाहिये।
- लक्षित हस्तक्षेपों के साथ क्षेत्र-विशिष्ट बाधाओं का समाधान करना: क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करने के लिये राज्य-विशिष्ट रणनीति तैयार की जानी चाहिये, जैसे कि उत्तरी राज्यों (जैसे, हरियाणा और उत्तर प्रदेश) में कम FLFP बनाम दक्षिणी राज्यों (जैसे, केरल और तमिलनाडु) में अपेक्षाकृत अधिक भागीदारी।
- कम FLFP वाले राज्य लैंगिक संवेदनशीलता, व्यावसायिक प्रशिक्षण और परिवहन अभिगम के लिये लक्षित अभियान शुरू कर सकते हैं।
- राज्यों और ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसे केंद्रीय कार्यक्रमों के बीच सहयोगात्मक प्रयास क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने में मदद कर सकते हैं।
- देखभाल अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका को मान्यता देना: देखभाल अर्थव्यवस्था को रोज़गार के लिये एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता है तथा महिलाओं को देखभालकर्त्ता, नर्स एवं बाल देखभाल कार्यकर्त्ता के रूप में प्रशिक्षित करने में निवेश किये जाने की आवश्यकता है।
- आयुष्मान भारत के अंतर्गत की गई पहल से स्वास्थ्य सेवा और संबद्ध सेवाओं में महिलाओं के लिये अवसर बढ़ सकते हैं।
- किफायती वृद्ध जन देखभाल और बाल देखभाल केंद्रों की स्थापना के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी बनाए जाने चाहिये, जहाँ प्रशिक्षित महिलाएँ रोज़गार प्राप्त कर सकें तथा अन्य महिलाओं को कार्यबल में शामिल होने में सक्षम बनाएँ।
निष्कर्ष:
ग्रामीण भारत में महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी में वृद्धि प्रगति और लगातार चुनौतियों दोनों को उजागर करती है। विशेष रूप से किशोर लड़कियों और वृद्ध महिलाओं की आर्थिक आवश्यकताएँ वास्तविक सशक्तीकरण के लिये गहन संरचनात्मक बाधाओं को उजागर करती हैं। वास्तविक लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिये, शिक्षा, कौशल और कार्य स्थितियों में सुधार महत्त्वपूर्ण हैं। SDG5 (लैंगिक समानता) और 8 (उत्कृष्ट श्रम) के साथ तालमेल बिठाते हुए, नीतियों को प्रणालीगत बाधाओं को तोड़ने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। महिलाओं को पूरी तरह से सशक्त बनाने से भारत की आर्थिक क्षमता का दोहन होगा तथा अधिक समावेशी और संधारणीय भविष्य को बढ़ावा मिलेगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, फिर भी संरचनात्मक बाधाएँ और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इस प्रवृत्ति में योगदान देने वाले कारकों का विश्लेषण करते हुए महिलाओं के सतत् और प्रभावी आर्थिक सशक्तीकरण को सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन, विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौम लैंगिक अंतराल सूचकांक (ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स)' का श्रेणीकरण प्रदान करता है ? (2017) (a) विश्व आर्थिक मंच उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न 1. “महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” चर्चा कीजिये। (2019) प्रश्न 2. भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न 3. "महिला संगठनों को लिंग-भेद से मुक्त करने के लिये पुरुषों की सदस्यता को बढ़ावा मिलना चाहिये।" टिप्पणी कीजिये। (2013) प्रश्न 4. 'देखभाल अर्थव्यवस्था' और 'मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था' के बीच अंतर कीजिये। महिला सशक्तीकरण के द्वारा देखभाल अर्थव्यवस्था को मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था में कैसे लाया जा सकता है? (2023) |