ग्रामीण मजदूरी में जड़ता का विरोधाभास | 06 Nov 2024
प्रिलिम्स के लिये:कृषि क्षेत्र, मुद्रास्फीति, क्रय शक्ति, श्रम ब्यूरो, बागवानी, पशुपालन, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR), GDP वृद्धि, लघु उद्योग, कुटीर उद्योग, मनरेगा, डिस्पोज़ेबल आय, पोषण, PM-किसान, न्यूनतम मजदूरी, उच्च गुणवत्ता वाले बीज, खाद्य प्रसंस्करण। मेन्स के लिये:ग्रामीण मजदूरी में जड़ता/स्थिरता के कारण और निहितार्थ। ग्रामीण मजदूरी में स्थिरता को दूर करने के उपाय। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारतीय अर्थव्यवस्था और कृषि क्षेत्र में वर्ष 2019-20 से वर्ष 2023-24 तक क्रमशः 4.6% और 4.2% की औसत वार्षिक दर से वृद्धि हुई है, लेकिन इसके अनुरूप ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि नहीं हुई है।
ग्रामीण मजदूरी की वर्तमान स्थिति क्या है?
- नॉमिनल वेज: अप्रैल 2019 से अगस्त 2024 तक ग्रामीण मजदूरी 5.2% की औसत वार्षिक नॉमिनल दर (मुद्रास्फीति के समायोजन के बिना वास्तविक राशि) से बढ़ी है।
- विशेष रूप से कृषि मजदूरी में (नॉमिनल वृद्धि 5.8% के रूप में थोड़ी अधिक थी) जो कृषि में मज़बूत मांग या श्रम गतिशीलता का संकेतक है।
- वास्तविक मजदूरी: अप्रैल 2019 से अगस्त 2024 तक ग्रामीण श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी वृद्धि (मुद्रास्फीति के अनुरूप समायोजित मजदूरी) कुल मिलाकर -0.4% तक नकारात्मक थी जबकि कृषि मजदूरी में मामूली 0.2% की वृद्धि दर्ज की गई।
- इससे पता चलता है कि यद्यपि मजदूरी में निरपेक्ष रूप से वृद्धि हुई है लेकिन मुद्रास्फीति इन लाभों से अधिक रहने से ग्रामीण श्रमिकों की वास्तविक क्रय शक्ति में कमी आई है।
- वर्तमान राजकोषीय रुझान: वित्तीय वर्ष 2023-24 (अप्रैल-अगस्त) के पहले पाँच महीनों में कृषि मजदूरी की नॉमिनल और वास्तविक वृद्धि दर क्रमशः 5.7% और 0.7% थी।
नोट:
- डेटा स्रोत: श्रम ब्यूरो द्वारा 25 कृषि और गैर-कृषि व्यवसायों के संदर्भ में दैनिक मजदूरी दर डेटा संकलित किया गया है।
- कवरेज: यह डेटा 20 राज्यों के 600 गाँवों से एकत्र किया गया है।
- शामिल किये गए व्यवसाय: बागवानी, पशुपालन, सिंचाई और पौध संरक्षण कार्यों सहित 25 विभिन्न व्यवसाय।
- कार्यप्रणाली: मजदूरी को नॉमिनल (वर्तमान मूल्य) और वास्तविक रूप में (ग्रामीण भारत के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति हेतु समायोजित) मापा जाता है।
ग्रामीण मजदूरी में स्थिरता के क्या कारण हैं?
- महिला LFPR का उच्च होना: महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में वर्ष 2018-19 के 26.4% से वर्ष 2023-24 में 47.6% तक की पर्याप्त वृद्धि देखी गई है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में महिला श्रम शक्ति में वृद्धि का तात्पर्य है कि यह अधिक संख्या में समान या उससे भी कम मजदूरी दर पर कार्य करने को तैयार हैं, जिससे मजदूरी पर दबाव बढ़ रहा है।
- कम कृषि उत्पादकता: कृषि (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) में आमतौर पर कम सीमांत उत्पादकता बनी हुई है। अतिरिक्त श्रम से उत्पादकता में आनुपातिक वृद्धि नहीं हो पाती है।
- पूंजी-गहन प्रौद्योगिकी: विभिन्न उद्योगों में तकनीकी प्रगति से मैनुअल श्रम का विस्थापन हो रहा है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में गैर-कृषि नौकरियों की मांग कम हो रही है। उदाहरण के लिये, मैनुअल मजदूरों के बजाय थ्रेसिंग मशीनों और हार्वेस्टर का उपयोग।
- इस बदलाव के परिणामस्वरूप पूंजीपतियों को अधिक लाभ होता है लेकिन वेतन वृद्धि और रोज़गार सृजन सीमित हो जाता है।
- गैर-कृषि श्रम मांग में गिरावट: फास्ट मूविंग कंज़्यूमर गुड्स (FMCG) और घरेलू उपकरणों जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों की बिक्री और लाभप्रदता धीमी होने से ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि धीमी हो रही है।
- विनिर्माण और सेवा जैसे क्षेत्रों (जिनकी आमतौर पर ग्रामीण श्रम को संलग्न करने में प्रमुख हिस्सेदारी है) का सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के अनुपात में विस्तार नहीं हुआ है।
- गैर-कृषि क्षेत्र में सीमित अवसर: लघु उद्योग, कुटीर उद्योग और ग्रामीण उद्यम (जिनमें गैर-कृषि रोज़गार सृजित हो सकते हैं) अविकसित हैं या उनमें आवश्यक समर्थन और वित्तपोषण का अभाव है।
- वेतन गारंटी कार्यक्रमों का अप्रभावी होना: भुगतान में देरी, बजट की कमी और मनरेगा के कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे ऐसे कार्यक्रमों की प्रभावशीलता को सीमित करते हैं।
- मुद्रास्फीति: बढ़ती मुद्रास्फीति से वास्तविक मजदूरी में कमी आती है क्योंकि नॉमिनल मजदूरी स्थिर रहती है या धीमी गति से बढ़ती है। आवश्यक वस्तुओं, ईंधन और अन्य वस्तुओं की कीमतों में होने वाली वृद्धि मजदूरी में होने वाली वृद्धि से कहीं अधिक है।
- जलवायु परिवर्तन: सूखा और बाढ़ जैसी बार-बार होने वाली जलवायु समस्याएँ कृषि आय को सीमित करती हैं, भूस्वामियों की उच्च मजदूरी देने की क्षमता को सीमित करती हैं जिससे ग्रामीण श्रम बाज़ार में मजदूरी में अस्थिरता पैदा होती है।
ग्रामीण मजदूरी की स्थिरता के क्या निहितार्थ हैं?
- कमज़ोर घरेलू मांग: भारत की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। इनकी सीमित व्यय क्षमता के कारण वस्तुओं की मांग कम होने से उनकी व्यवहार्यता प्रभावित होगी तथा आर्थिक विकास चक्र धीमा हो जाएगा।
- वित्तीय भेद्यता और ऋण: उच्च मुद्रास्फीति और स्थिर मजदूरी से ग्रामीण परिवार ऋण जाल में फँस जाते हैं जिससे इनकी प्रयोज्य आय कम होने के साथ इनकी अनौपचारिक उधारदाताओं पर निर्भरता बढ़ जाती है।
- अल्प-बेरोज़गारी: गैर-कृषि क्षेत्र में रोज़गार के अवसर कम होने और मजदूरी स्थिर होने से अनेक ग्रामीण श्रमिकों को कृषि में वापस आने के लिये बाध्य (भले ही यह लाभदायक न हो) होना पड़ रहा है।
- लैंगिक वेतन असमानता: ग्रामीण क्षेत्रों में वेतन की स्थिरता से पुरुषों और महिलाओं दोनों पर प्रभाव पड़ता है लेकिन समान कार्य के लिये महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है, इसलिये स्थिर वेतन का प्रभाव ग्रामीण महिलाओं पर विशेष रूप से अधिक होता है।
- पलायन की मज़बूरी: कम मजदूरी और सीमित नौकरी के अवसर से ग्रामीण श्रमिक बेहतर वेतन वाली नौकरियों की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने के लिये मजबूर होते हैं, जिससे शहरी क्षेत्रों में भीड़भाड़ बढ़ जाने से शहरी बुनियादी ढाँचे, आवास एवं सार्वजनिक सेवाओं पर दबाव पड़ता है।
- सीमित मानव पूंजी: कम मजदूरी के कारण गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और पोषण तक पहुँच सीमित हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।
ग्रामीण क्षेत्र में मजदूरी की स्थिरता की समस्या के समाधान के उपाय?
- आय हस्तांतरण योजनाओं को मज़बूत करना: PM-किसान और मुफ्त अनाज वितरण जैसी योजनाओं में भुगतान का विस्तार और वृद्धि करने से निम्न आय वाले परिवारों पर वित्तीय दबाव कम हो सकता है।
- आवधिक वेतन समायोजन लागू करना: मुद्रास्फीति के आधार पर ग्रामीण न्यूनतम मजदूरी को नियमित रूप से संशोधित करने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि मजदूरी वृद्धि जीवन-यापन लागत के अनुरूप बनी रहे।
- सर्वेक्षणों और मजदूरी दर अध्ययनों (जैसे कि श्रम ब्यूरो द्वारा किये गए) से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करने से नीति निर्माताओं को ग्रामीण क्षेत्र में मजदूरी संबंधी चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने हेतु सूचित निर्णय लेने में मदद मिल सकती है।
- लैंगिक स्तर पर वेतन अंतराल का समाधान करना: महाराष्ट्र की लड़की बहिन योजना (2.5 लाख रुपए से कम आय वाले परिवारों के लिये 1,500 रुपए प्रतिमाह) जैसी योजना द्वारा महिलाओं और कम आय वाले परिवारों को लक्षित करने से वेतन स्थिरता प्रभावित होती है।
- ग्रामीण गैर-कृषि रोज़गार: नीतियों को वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण और पर्यटन जैसे श्रम-गहन उद्योगों को प्रोत्साहित करना चाहिये, जबकि मनरेगा जैसे कार्यक्रम आर्थिक मंदी या मौसमी बेरोज़गारी के दौरान स्थिर रोज़गार प्रदान कर सकते हैं।
- कृषि आधुनिकीकरण: प्रौद्योगिकी, सिंचाई और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों तक बेहतर पहुँच के माध्यम से कृषि उत्पादकता में वृद्धि करके खेती में प्रति श्रमिक उत्पादन तथा आय में वृद्धि करके मज़दूरी में सुधार किया जा सकता है।
निष्कर्ष
मज़बूत आर्थिक और कृषि विकास के बावजूद ग्रामीण मज़दूरी में स्थिरता बनी हुई है, जिसका कारण बढ़ी हुई श्रम आपूर्ति, कम कृषि उत्पादकता तथा सीमित गैर-कृषि अवसर जैसे कारक हैं। इस समस्या से निपटने के लिये लक्षित आय योजनाओं, मज़दूरी समायोजन, कौशल विकास एवं कृषि आधुनिकीकरण के मिश्रण की आवश्यकता है, ताकि स्थायी मज़दूरी वृद्धि व ग्रामीण विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: स्थिर आर्थिक विकास के बावजूद भारत में ग्रामीण मज़दूरी में स्थिरता के पीछे के कारणों पर चर्चा कीजिये। इस मुद्दे को हल करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति या उसमें वृद्धि निम्नलिखित किन कारणों से होती है? (2021)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (a) प्रश्न: किसी दिये गए वर्ष में भारत में कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं, क्योंकि-(2019) (a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्य दर राज्य में अलग-अलग होती है उत्तर: (b) प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभ पाने के पात्र हैं? (2011) (a) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवारों के वयस्क सदस्य। उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न: “भारत में निर्धनता न्यूनीकरण कार्यक्रम तब तक केवल दर्शनीय वस्तु बने रहेंगे जब तक कि उन्हें राजनैतिक इच्छाशक्ति का सहारा नहीं मिलता।” भारत में प्रमुख निर्धनता न्यूनीकरण कार्यक्रमों के निष्पादन के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (2017) प्रश्न: यद्यपि भारत में निर्धनता के अनेक प्राकलन किये गए हैं, तथापि सभी समय गुजरने के साथ निर्धनता स्तरों में कमी आने का संकेतें देते हैं? क्या आप सहमत हैं? शहरी और ग्रामीण निर्धनता संकेतकों का उल्लेख के साथ समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2015) |