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जैव विविधता और पर्यावरण

वैश्विक प्लास्टिक संधि

  • 03 Dec 2024
  • 20 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा, यूरोपीय संघ, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, जीवाश्म ईंधन, पॉलिमर, संयुक्त राष्ट्र अंतर-सरकारी वार्ता समिति

मेन्स के लिये:

प्लास्टिक प्रदूषण और अपशिष्ट प्रबंधन, संयुक्त राष्ट्र वैश्विक प्लास्टिक संधि, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और पर्यावरण कूटनीति, पर्यावरण नीति और शासन

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

दक्षिण कोरिया के बुसान में संयुक्त राष्ट्र (UN) अंतर-सरकारी वार्ता समिति (INC-5) की 5वीं बैठक में वैश्विक प्लास्टिक संधि वार्ता आम सहमति तक पहुँचने में विफल रही।

वैश्विक प्लास्टिक संधि वार्ता आम सहमति तक क्यों नहीं पहुँच सकी?

  • प्लास्टिक उत्पादन पर सीमाएँ: विवाद का एक मुख्य मुद्दा यह था कि क्या देशों को वर्जिन प्लास्टिक पॉलिमर (पेट्रोलियम से प्राप्त कच्चे माल से बने) के उत्पादन को कम करने के लक्ष्य पर सहमत होना चाहिये या नहीं। 
    • नॉर्वे और रवांडा के नेतृत्व में 66 देशों का एक समूह, यूरोपीय संघ के साथ मिलकर प्लास्टिक के पर्यावरणीय प्रभाव को नियंत्रित करने के लिये प्लास्टिक के उत्पादन पर सीमा लगाने का समर्थन कर रहा है।
    • सऊदी अरब और भारत जैसे देश, जो अपनी अर्थव्यवस्थाओं के लिये पेट्रोकेमिकल्स और प्लास्टिक उत्पादन पर बहुत अधिक निर्भर हैं, ने ऐसे किसी भी उपाय का विरोध किया जो उत्पादन को सीमित करेगा।
  • विकास संबंधी चिंताएँ: भारत ने तर्क दिया कि प्लास्टिक उत्पादन को विनियमित करने से उसके विकास के अधिकार का उल्लंघन होगा, विशेष रूप से वैश्विक प्लास्टिक पॉलिमर बाज़ार में देश की भूमिका को देखते हुए। 
    • भारत का रुख यह था कि किसी भी संधि से राष्ट्रीय विकास की आकांक्षाओं को नुकसान नहीं पहुँचना चाहिये।
  • अस्वीकार्य लक्ष्य: प्रारूप संधि में वर्ष 2040 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और डाई (2-एथिलहेक्सिल) फथलेट (DEHP), डिब्यूटाइल फथलेट (DBP), बेंज़िल ब्यूटाइल फथलेट (BBP) और डाई-आइसोब्यूटाइल फथलेट (DIBP) जैसे खतरनाक रसायनों को प्रतिबंधित करने के लिये वर्ष-वार लक्ष्य प्रस्तावित किये गए हैं।
  • यद्यपि इन उपायों का उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना था, लेकिन इनके नकारात्मक आर्थिक प्रभावों के कारण कुछ देशों ने इन्हें अस्वीकार कर दिया।
    • यद्यपि भारत ने प्लास्टिक अपशिष्ट को रोकने के लिये कई कदम उठाए हैं, जिनमें अल्पकालिक प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना और विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) व्यवस्था लागू करना शामिल है, फिर भी उसने प्रस्तावित लक्ष्यों का विरोध किया है और कहा है कि ऐसे नियम देश के विकास को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
  • संधि के दायरे पर असहमति: कई देश चाहते थे कि संधि प्लास्टिक के संपूर्ण जीवन चक्र (उत्पादन, खपत, अपशिष्ट प्रबंधन और इसके प्रभाव सहित) को संबोधित करे, वहीं कुछ प्रतिनिधिमंडलों का मानना ​​था कि ध्यान केवल प्लास्टिक अपशिष्ट पर ही होना चाहिये। 
    • इससे व्यापक समाधान चाहने वालों और तत्काल अपशिष्ट प्रबंधन को प्राथमिकता देने वालों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया। 
    • कुवैत ने प्लास्टिक प्रदूषण से परे अधिदेश का विस्तार करने की आलोचना की और दावा किया कि यह व्यापार प्रतिबंधों और आर्थिक एजेंडों का बहाना है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम: कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला, तथा दीर्घकालीन वार्ता के खिलाफ चेतावनी दी, क्योंकि महासागर और पारिस्थितिकी तंत्र प्लास्टिक अपशिष्ट के संचय से पीड़ित हैं।

संयुक्त राष्ट्र अंतर-सरकारी वार्ता समिति

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण परिषद (UNIC): संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण परिषद (UNEA) एक प्रमुख निकाय है, जिसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA) द्वारा समुद्री पर्यावरण पर इसके प्रभाव सहित प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय साधन विकसित करने हेतु की गई है। 
    • संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक प्लास्टिक संधि की दिशा में कार्य करने के लिये वर्ष 2022 में प्रस्ताव 5/14 को अपनाएँगे।
  • INC सत्र: वर्ष 2024 के अंत तक वैश्विक प्लास्टिक संधि को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से वार्ता प्रक्रिया में वैश्विक स्तर पर आयोजित सत्रों की एक शृंखला शामिल है, जो उरुग्वे में INC-1 (नवंबर 2022) से आरंभ होकर, फ्राँस में INC-2 (जून 2023) और केन्या में INC-3 (नवंबर 2023), कनाडा में INC-4 (अप्रैल 2024) और दक्षिण कोरिया में INC-5 (दिसंबर 2024) तक जारी रहेगी।

विश्व को वैश्विक प्लास्टिक संधि की आवश्यकता क्यों है?

  • तीव्र वृद्धि: प्लास्टिक का वैश्विक उत्पादन वर्ष 2000 में 234 मिलियन टन (MT) से दोगुना होकर वर्ष 2019 में 460 मीट्रिक टन हो गया है। 
    • आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के अनुसार, अनुमान है कि वर्ष 2040 तक प्लास्टिक उत्पादन 700 मीट्रिक टन तक पहुँच जाएगा।
    • एशिया प्लास्टिक का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा है। उत्तरी अमेरिका और यूरोप क्रमशः 19% और 15% के साथ दूसरे स्थान पर हैं।

Plastic_Polluters

  • प्लास्टिक का प्रभाव: 
    • पर्यावरण: प्लास्टिक को विघटित होने में 20 से 500 वर्ष तक का समय लग सकता है, जिसके कारण लैंडफिल और प्राकृतिक आवासों में प्लास्टिक अपशिष्ट का विशाल संचय हो जाता है।
      • प्लास्टिक अपशिष्ट की बढ़ती मात्रा के बावजूद, द लैंसेट द्वारा वर्ष 2023 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, केवल 9% प्लास्टिक अपशिष्ट का ही पुनर्चक्रण किया जाता है। यह अक्षमता प्रदूषण संकट को और बढ़ा देती है।
      • प्रतिवर्ष करीब 8 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र में जाता है, जिससे समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है। अगर मौजूदा वृद्धि जारी रहे तो वर्ष 2050 तक समुद्र में प्लास्टिक की मात्रा मछलियों से भी ज़्यादा हो जाएगी।
    • मानव स्वास्थ्य: प्लास्टिक में मौजूद रसायन, जैसे कि बिस्फेनॉल A (BPA), अंतःस्रावी तंत्र को बाधित कर सकते हैं, जो शरीर में हार्मोन को नियंत्रित करता है। 
      • ये रसायन अंतिम उत्पाद में बने रहते हैं और बाहर निकलकर कैंसर, मधुमेह, प्रजनन संबंधी समस्याएँ और तंत्रिका-विकास संबंधी विकलांगता सहित विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकते हैं।
    • वन्य जीवन: प्लास्टिक प्रदूषण का समुद्री और स्थलीय प्रजातियों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है, जानवर प्लास्टिक अपशिष्ट को निगल लेते हैं या उसमें फँस जाते हैं।
    • जलवायु परिवर्तन: प्लास्टिक उत्पादन वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 3.6% का योगदान देता है, जिसमें से 90% उत्सर्जन प्लास्टिक बनाने के लिये उपयोग किये जाने वाले जीवाश्म ईंधन से आता है।
      • यदि वर्तमान प्रवृत्ति जारी रहती है, तो प्लास्टिक से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वर्ष 2020 के स्तर से वर्ष 2050 तक 37% बढ़कर 3.35 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (CO2e) हो सकता है।
  • वैश्विक प्लास्टिक संधि का महत्त्व:  उत्पादन से लेकर निपटान तक प्लास्टिक के पूरे जीवनचक्र को विनियमित करने के लिये एक वैश्विक संधि की आवश्यकता है। 
    • प्लास्टिक प्रदूषण संकट से निपटने के लिये, राष्ट्रों को कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौतों के लिये प्रतिबद्ध होना चाहिये, जिससे उत्पादन पर अंकुश लगे, पुनर्चक्रण में सुधार हो, तथा प्लास्टिक अपशिष्ट को पारिस्थितिकी तंत्र में प्रवेश करने से रोका जा सके।

प्लास्टिक प्रदूषण पर वैश्विक संधि में बाधा डालने वाली चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भिन्न राष्ट्रीय हित: विकसित राष्ट्र प्लास्टिक उत्पादन और खपत के प्रबंधन के लिये जीवनचक्र दृष्टिकोण पर ज़ोर देते हैं।
    • विकासशील और पेट्रोकेमिकल-केंद्रित राष्ट्र ऐसे उपायों को प्रतिबंधात्मक और आर्थिक विकास के लिये हानिकारक मानते हैं।
  • व्यापारिक निहितार्थ: प्लास्टिक एक विश्व स्तर पर व्यापार की जाने वाली वस्तु है, और किसी भी प्रतिबंध का महत्त्वपूर्ण व्यापारिक निहितार्थ हो सकता है, जिससे आम सहमति बनाना मुश्किल हो जाएगा।
  • वित्तपोषण एवं संसाधन: निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में प्रायः व्यापक प्लास्टिक प्रदूषण उपायों को लागू करने के लिये संसाधनों का अभाव होता है, जिसके कारण वित्तीय सहायता एवं उत्तरदायित्व को लेकर असहमति होती है।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति और नेतृत्व: संकट की साझा समझ के बावजूद, परिवर्तनकारी उपायों को लागू करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव था। दीर्घकालिक पर्यावरणीय स्थिरता के साथ तात्कालिक आर्थिक हितों को संतुलित करना नीति निर्माताओं के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

प्लास्टिक क्या है?

  • परिचय: प्लास्टिक ऐसी सामग्री है, चाहे वह कृत्रिम हो या प्राकृतिक, जिसे नरम होने पर आकार दिया जा सकता है और फिर उसका आकार बनाए रखने के लिये उसे कठोर किया जा सकता है। 
    • प्लास्टिक एक प्रकार का बहुलक है जो मोनोमर्स नामक दोहराई जाने वाली इकाइयों से बना होता है। बहुलक एक बड़ा अणु होता है जो कई छोटे मोनोमर्स को रासायनिक रूप से एक साथ जोड़कर बनाया जाता है।
  • प्लास्टिक के प्रकार:

Types_of_Plastic

  • भारत और प्लास्टिक समस्या: भारत वर्तमान में विश्व में प्लास्टिक प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है, और प्रतिवर्ष 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जित करता है, जो वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट का लगभग 20% है।
    • भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट का प्रमुख भाग (लगभग 3.5 मिलियन टन) खराब अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं के कारण पर्यावरण में शामिल होता है।
    • जैसे-जैसे भारत के शहरी क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है, प्लास्टिक उत्पादों (विशेषकर पैकेजिंग) की मांग बढ़ने से प्लास्टिक अपशिष्ट में वृद्धि होने के साथ अपशिष्ट प्रबंधन में चुनौतियाँ बढ़ रही हैं।
      • प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन हेतु भारत का बुनियादी ढाँचा अविकसित है। यहाँ सैनिटरी लैंडफिल की तुलना में अनियंत्रित डंपिंग साइट अधिक हैं।
    • भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट को खुले में जलाने से वातावरण में जहरीले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं। इससे वायु प्रदूषण के साथ लोक स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ावा मिलता है।
    • भारत को वर्ष 2030 तक प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट से अनुमानित 133 बिलियन अमेरिकी डॉलर की हानि होगी, जिसमें प्रमुख भागीदारी एकत्रित न किये गए प्लास्टिक अपशिष्ट की होगी। 
    • भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कानूनों के असंगत प्रवर्तन के कारण EPR प्रणाली में कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • ई-कॉमर्स की संवृद्धि से प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट में वृद्धि हुई है, जिनमें से अधिकांश का पुनर्चक्रण नहीं होने से पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि हुई है।

आगे की राह

  • आम सहमति बनाना: मतभेदों को दूर करने के क्रम में प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के आर्थिक लाभ सहित पारस्परिक लाभों पर बल देना चाहिये।
    • विकास एवं पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन मॉडल के रूप में धारणीय पैकेजिंग जैसे उपायों को महत्त्व देना चाहिये।
  • वित्तीय एवं तकनीकी सहायता: विकासशील देशों को धारणीय प्लास्टिक उत्पादन में सहायता देने हेतु रूपरेखा तैयार करनी चाहिये। इसका अनुपालन बढ़ाने हेतु वित्तपोषण तथा प्रौद्योगिकी-साझाकरण तंत्र का विस्तार करना चाहिये।
  • वृद्धिशील लक्ष्यों के माध्यम से महत्त्वाकांक्षा को बढ़ाना: विकास के विभिन्न स्तरों पर देशों के लिये अनुकूलन के साथ चरणबद्ध प्रतिबद्धताओं को प्रस्तुत करना चाहिये। हानिकारक एकल-उपयोग प्लास्टिक एवं रसायनों पर वैश्विक प्रतिबंधों को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • सार्वजनिक और वैश्विक नेतृत्व का लाभ उठाना: इस संबंध में जागरूकता बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय दबाव एवं जन जागरूकता अभियानों का उपयोग करना चाहिये। इसके परिणामों की निगरानी एवं आलोचना हेतु नागरिक समाज तथा पर्यावरण संगठनों को शामिल करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: संयुक्त राष्ट्र की प्लास्टिक संधि वार्ता के निहितार्थों एवं पर्यावरणीय स्थिरता के साथ विकास को संतुलित करने संबंधी चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में 'विस्तारित उत्पादक दायित्त्व' आरंभ किया गया था? (2019) 

(a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 1998
(b) पुनर्चक्रित प्लास्टिक (विनिर्माण और उपयोग) नियम, 1999
(c) ई-वेस्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 2011
(d) खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011

उत्तर: (c) 


प्रश्न 2. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) किस प्रकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) से भिन्न है? (2018) 

  1. एनजीटी का गठन एक अधिनियम द्वारा किया गया है जबकि सीपीसीबी का गठन सरकार के कार्यपालक आदेश से किया गया है। 
  2. एनजीटी पर्यावरणीय न्याय उपलब्ध कराता है और उच्चतर न्यायालयों में मुकदमों के भार को कम करने में सहायता करता है, जबकि सीपीसीबी झरनों और कुओं की सफाई को प्रोत्साहित करता है, तथा देश में वायु की गुणवत्ता में सुधार लाने का लक्ष्य रखता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (B)


मेन्स: 

प्रश्न: निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का के निस्तारण करने में क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)

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