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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत विश्व का सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक

  • 11 Sep 2024
  • 16 min read

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), लोक लेखा समिति (PAC), प्लास्टिक अपशिष्ट, विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी (EPR) नियम, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 

मुख्य परीक्षा के लिये:

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण और पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

नेचर  जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में यह बात सामने आई है कि वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण में भारत का योगदान सर्वाधिक है

  • विश्व भर में उत्पन्न कुल प्लास्टिक अपशिष्ट का लगभग 5वाँ हिस्सा भारत में उत्पन्न होता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन: भारत में प्रतिवर्ष लगभग 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक प्रदूषण उत्पन्न होता है। इसमें से 5.8 मिलियन टन (MT) अपशिष्ट का दहन कर दिया जाता है, जबकि 3.5 मिलियन टन मलबे के रूप में पर्यावरण में उत्सर्जित कर दिया जाता है।
    • यह आँकड़ा नाइजीरिया (3.5 मिलियन mt), इंडोनेशिया (3.4 मिलियन टन) और चीन (2.8 मिलियन टन) की तुलना में काफी अधिक है।
    • भारत में अपशिष्ट उत्पादन की दर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 0.12 किलोग्राम है। 
  • वैश्विक उत्तर-दक्षिण विभाजन: प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन दक्षिणी एशिया, उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में सर्वाधिक है।
  • ग्लोबल साउथ में भारत जैसे देश प्रायः अपशिष्ट प्रबंधन के लिये खुले में अपशिष्ट दहन पर निर्भर रहते हैं, जबकि ग्लोबल नॉर्थ नियंत्रित तंत्रों के तहत अपशिष्ट प्रबंधन करता है, जिसके परिणामस्वरूप अप्रबंधित अपशिष्ट तुलनात्मक रूप से कम होता है
  • उच्च और निम्न आय वाले देशों के बीच असमानता: वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष 69% या 35.7 मीट्रिक टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन 20 देशों में होता है। 
    • ग्लोबल साउथ में प्लास्टिक प्रदूषण मुख्य रूप से निम्न स्तरीय अपशिष्ट प्रबंधन के कारण खुले में अपशिष्ट दहन से होता है, जबकि ग्लोबल नॉर्थ में यह अधिकतर अनियंत्रित मलबे से होता है। 
    • उच्च आय वाले देशों में प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन दर अधिक है, लेकिन 100% अपशिष्ट संग्रहण कवरेज और नियंत्रित निपटान के कारण वे शीर्ष 90 प्रदूषकों में शामिल नहीं हैं।

अनुसंधान की आलोचना:

  • संकीर्ण फोकस: अध्ययन में अपशिष्ट प्रबंधन पर अत्यधिक ज़ोर दिया गया तथा प्लास्टिक उत्पादन को कम करने की आवश्यकता की उपेक्षा की गई।
  • गलत प्राथमिकताएँ: यह एकल-उपयोग प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने जैसे समाधानों से ध्यान हटा सकता है।
  • उद्योग समर्थन: प्लास्टिक उद्योग समूहों द्वारा समर्थन से व्यापक पर्यावरणीय लक्ष्यों के बजाय उद्योग हितों के साथ तालमेल स्थापित करने के संदर्भ में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • व्यापक समाधानों को कमज़ोर करना: अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करके, अध्ययन ने उत्पादन और पुनर्चक्रण संबंधी मुद्दों को हल करना और भी कठिन बना दिया है।

भारत में उच्च प्लास्टिक प्रदूषण के क्या कारण हैं?

  • तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण: भारत की बढ़ती जनसंख्या और संपन्नता के कारण खपत तथा अपशिष्ट उत्पादन में वृद्धि हो रही है। शहरीकरण प्लास्टिक उत्पादों एवं पैकेजिंग की मांग को बढ़ाकर समस्या को और बढ़ा रहा है।
  • अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना: भारत का अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना अपशिष्ट की बड़ी मात्रा के प्रबंधन के लिये अपर्याप्त है, जिसमें सैनिटरी लैंडफिल की तुलना में अनियंत्रित डम्पिंग स्थल अधिक हैं, जो निम्न स्तरीय निपटान उपायों और प्रथाओं को दर्शाता है।
  • अपशिष्ट संग्रहण आँकड़ों में विसंगतियाँ: भारत की आधिकारिक अपशिष्ट संग्रहण दर 95% बताई गई है, जबकि शोध से पता चलता है कि वास्तविक दर लगभग 81% है, जिससे प्रबंधन दक्षता में बहुत बड़े अंतर का पता चलता है।
  • खुले में अपशिष्ट का दहन: भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 5.8 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट को जलाया जाता है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है तथा विषैले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं, जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
  • अनौपचारिक क्षेत्र पुनर्चक्रण: अनियमित अनौपचारिक पुनर्चक्रण क्षेत्र में बहुत अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट का निपटान किया जाता है, जिसका आधिकारिक आँकड़ों में उल्लेख नहीं होता, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण के स्तर का अध्ययन और भी जटिल हो जाता है।

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन से जुड़े मुद्दे क्या हैं?

  • पर्यावरण क्षरण: प्लास्टिक अपशिष्ट जलमार्गों को अवरुद्ध करता है, जिससे बाढ़ और समुद्री प्रदूषण होता है। यह समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचाता है, जबकि इके दहन से जहरीले प्रदूषक मुक्त होते हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता खराब होती है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: जल और भोजन में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स से दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होते हैं। 
    • प्लास्टिक अपशिष्ट रोगवाहकों के लिये प्रजनन आधार बनाता है, जिससे डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों का प्रसार बढ़ता है। 
    • प्लास्टिक अपशिष्ट को जलाने से हानिकारक पदार्थ भी मुक्त होते हैं, जो श्वसन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
  • आर्थिक चुनौतियाँ: FICCI की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को वर्ष 2030 तक प्लास्टिक पैकेजिंग में प्रयुक्त 133 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य की सामग्री का नुकसान हो सकता है, जिसमें अप्राप्य प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट का योगदान 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा।
  • ई-कॉमर्स और पैकेजिंग अपशिष्ट: ई-कॉमर्स के द्रुत विकास के कारण प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट में वृद्धि हुई है, जिनमें से अधिकांश को पुनर्चक्रित करना कठिन है और वे कूड़े के रूप में या लैंडफिल में मुक्त कर दिये जाते हैं।
  • विनियामक और प्रवर्तन चुनौतियाँ: प्लास्टिक अपशिष्ट विनियमों का असंगत प्रवर्तन और विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी प्रणाली से संबंधित मुद्दे अपशिष्ट के प्रभावी प्रबंधन में बाधा डालते हैं। 
    • भारत वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट में सबसे अधिक योगदान देने वाले देशों में से एक है।
  • कृषि में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण: कृषि में प्लास्टिक के प्रयोग और अपर्याप्त अपशिष्ट जल शोधन के कारण मृदा में माइक्रोप्लास्टिक संचित हो जाता है, जिससे मृदा स्वास्थ्य एवं खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
  • तकनीकी और बुनियादी अवसंरचना की कमी: अपर्याप्त अपशिष्ट पृथक्करण और प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ-साथ सीमित उन्नत रीसाइक्लिंग तकनीक, प्रभावी प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में बाधा डालती है। अपशिष्ट ट्रैकिंग की व्यापक कमी प्रयासों को और जटिल बनाती है।

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित नियम क्या हैं? 

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018: बहुस्तरीय प्लास्टिक (MLP) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का प्रावधान उन सामग्रियों पर लागू होता है जिन्हें पुनर्चक्रित नहीं किया जा सकता, ऊर्जा में परिवर्तित नहीं किया जा सकता या जिनका कोई वैकल्पिक उपयोग नहीं है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021: कम उपयोगिता और अधिक अपशिष्ट फैलाने की संभावना के कारण वर्ष 2022 तक एकल-उपयोग वाली विशिष्ट प्लास्टिक वस्तुओं/सामग्रियों पर प्रतिबंध लगाता है। 
    • EPR के माध्यम से प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट के संग्रहण और पर्यावरण प्रबंधन को लागू करना।
    • सितंबर 2021 तक प्लास्टिक कैरी बैग की मोटाई 50 माइक्रोन से बढ़ाकर 75 माइक्रोन और दिसंबर 2022 तक 120 माइक्रोन कर दी जाएगी। 
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022 
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024
  • अन्य पहल:

आगे की राह

  • चक्रीय अर्थव्यवस्था: डिज़ाइन में RRR अर्थात न्यूनीकरण, पुनःउपयोग और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना, पुनर्प्राप्ति सुविधाएँ स्थापित करना, पुनर्चक्रित प्लास्टिक को प्रोत्साहन देना और उत्पादों में पुनर्चक्रित सामग्री को अनिवार्य बनाने की आवश्यकता है।
  • स्मार्ट अपशिष्ट प्रबंधन: अपशिष्ट प्रबंधन में स्मार्ट प्रौद्योगिकी को IIoT-इनेबल बिन्स और AI सोर्टिंग तथा अवैध डंपिंग की रिपोर्टिंग और रीसाइक्लिंग केंद्रों का पता लगाने के लिये मोबाइल ऐप के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): पुनर्चक्रण में कठिनाई वाले प्लास्टिक अपशिष्ट के लिये श्रेणीबद्ध शुल्क, प्लास्टिक क्रेडिट ट्रेडिंग प्रणाली लागू करके तथा कूड़ा बीनने वालों की बेहतर स्थिति के लिये अनौपचारिक क्षेत्र तक EPR का विस्तार करके EPR को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
  • जागरूकता अभियान: कई भाषाओं में राष्ट्रीय अभियान शुरू किये जाने चाहिये, स्कूलों में प्लास्टिक अपशिष्ट शिक्षा को एकीकृत किये जाने चाहिये, सामुदायिक कार्यशालाएँ आयोजित किये जाने चाहिये और प्लास्टिक मुक्त जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिये प्रभावशाली लोगों की सहायता ली जानी चाहियेयुवाओं की भागीदारी के लिये एक राष्ट्रीय नवाचार चुनौती की स्थापना की जानी चाहिये।
  • अपशिष्ट से ऊर्जा: गैर-पुनर्चक्रणीय प्लास्टिक के लिये पायरोलिसिस और गैसीकरण जैसी उन्नत अपशिष्ट-से-ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश किये जाने की आवश्यकता है। सख्त उत्सर्जन नियंत्रण सुनिश्चित कर अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं को संचालित करने के लिये उत्पादित ऊर्जा का उपयोग किये जाने की आवश्यकता है।
  • हरित खरीद: सरकारी खरीद में प्लास्टिक अपशिष्ट न्यूनीकरण मानदंड लागू करने और सरकारी भवनों को मॉडल के रूप में उपयोग किये जाने की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़े मुद्दे और चुनौतियाँ क्या हैं? भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट से निपटने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये ?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में 'विस्तारित उत्पादक दायित्व' आरंभ किया गया था? (2019)

(a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 1998
(b) पुनर्चक्रित प्लास्टिक (निर्माण और उपयोग) नियम, 1999
(c) ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 2011
(d) खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011

उत्तर: (c)


प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से किस प्रकार भिन्न है? (2018) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी.) किस प्रकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) से भिन्न है?

  1. एन.जी.टी. का गठन एक अधिनियम द्वारा किया गया है जबकि सी.पी.सी.बी. का गठन सरकार के कार्यपालक आदेश से किया गया है।
  2. एन.जी.टी. पर्यावरणीय न्याय उपलब्ध कराता है और उच्चतर न्यायालयों में मुकदमों के भार को कम करने में सहायता करता है जबकि सी.पी.सी.बी. झरनों और कुँओं की सफाई को प्रोत्साहित करता है, तथा देश में वायु की गुणवत्ता में सुधार लाने का लक्ष्य रखता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b) 


मेन्स

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)

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