भूगोल
राजस्थान में आर्टेसियन कुआँ और टेथिस सागर
- 07 Jan 2025
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:आर्टेसियन कुआँ, सरस्वती नदी, एक्वीफर, पारगम्य चट्टान, बलुआ पत्थर, टेथिस सागर, मेसोज़ोइक युग, गोंडवाना, लॉरेशिया, विवर्तनिकी प्लेट, हिमालय पर्वत शृंखला, तिब्बत का पठार, गर्म झरने, हाइड्रोथर्मल वेंट, गीज़र, मडपॉट्स, फ्यूमरोल्स, बैरन द्वीप, कच्छ की खाड़ी, सिंधु नदी, गंगा नदी, थार रेगिस्तान। मेन्स के लिये:आर्टिसियन कुओं की विशेषताएँ, भारत में इनकी उपस्थिति। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान के जैसलमेर में जमीन के नीचे से बड़ी मात्रा में जल बाहर निकलने लगा, जिसका श्रेय भारत के आर्टेसियन कुओं को दिया गया है।
- विशेषज्ञों ने इस विचार को खारिज कर दिया कि यह जल प्राचीन सरस्वती नदी से संबंधित है तथा उन्होंने सुझाव दिया कि यह जल लाखों वर्ष पुराना होने के साथ इसकी उत्पत्ति टेथिस सागर (पूर्व-वैदिक काल) से संबंधित हो सकती है।
आर्टेसियन कुआँ क्या है?
- आर्टेसियन कुआँ से जल पंपिंग की आवश्यकता के बिना दबाव के कारण स्वाभाविक रूप से सतह पर आता है। ऐसा तब होता है जब जल एक सीमित जलभृत में संग्रहित हो जाता है तथा इसका दाब अधिक हो जाता है।
- इसके ऊपर एवं नीचे उपस्थित कठोर सामग्रियों के कारण इसे "कन्फाइंड" जल भी कहा जाता है।
- निर्माण: आर्टेसियन कुओं का निर्माण तब होता है जब एक कुआँ का कन्फाइंड जलभृत तक प्रसार होता है, जो मृदा या चट्टान जैसी अभेद्य परतों के बीच स्थित पारगम्य चट्टान या तलछट की एक परत होती है।
- दबाव तंत्र: कन्फाइंड जलभृत में जल, अधिक दबाव में होता है और जब कुआँ को ड्रिल किया जाता है तो दबाव से जल बोरहोल के माध्यम से ऊपर उठने लगता है।
- जल प्रवाह: यदि दाब पर्याप्त होता है तो आर्टेसियन कुएँ में जल सतह पर स्वतंत्र रूप से प्रवाहित हो सकता है, जिसे "प्रवाहित आर्टेसियन कुएँ" के रूप में जाना जाता है।
- यदि दाब जल को सतह पर लाने के लिये पर्याप्त नहीं है तो इसे पंप का उपयोग करके निकाला जा सकता है।
- स्थान: प्रसिद्ध आर्टेसियन कुएँ ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट आर्टेसियन बेसिन, संयुक्त राज्य अमेरिका के डकोटा एक्वीफर और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- ट्यूबवेल से अंतर: आर्टेसियन जल स्वाभाविक रूप से स्वयं ही सतह पर आ सकता है और यह पृथ्वी की सतह के नीचे गहराई में मिलता है जबकि ट्यूबवेल से जल को पंप करने के लिये बाहरी ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
नोट: आर्टेसियन नाम फ्राँस के आर्टोइस कस्बे से लिया गया है जो कि आर्टेसियम का पुराना रोमन शहर था, जहाँ मध्य युग में सबसे प्रसिद्ध प्रवाहित आर्टेसियन कुएँ थे।
राजस्थान में पाए गए आर्टेसियन कुओं की विशेषताएँ क्या हैं?
- जल विस्फोट: राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में जल, बलुआ पत्थर की भू-वैज्ञानिक परत के नीचे संग्रहित है।
- जैसे ही ऊपरी परत में छेद होता है तो भारी दाब के कारण जल ऊपर की ओर प्रवाहित होने लगता है, जो अक्सर फव्वारे की तरह बाहर आता है।
- प्राचीन समुद्री साक्ष्य: बोरवेल से मिले जल की उच्च लवणता, प्राचीन समुद्री या खारे भू-जल स्रोतों के समान है।
- ऐसा माना जाता है कि इसका जल टेथिस सागर (जो लगभग 250 मिलियन वर्ष पूर्व अस्तित्व में था) से संबंधित है।
- समुद्री मृदा की उपस्थिति: इस जल के साथ, ओज (कंकाल के अवशेषों वाली महीन सफेद समुद्री मृदा) सतह पर आई, जिससे इस विचार को बल मिला कि यह भू-जल किसी प्राचीन समुद्र का अवशेष है।
- इस क्षेत्र में पाई जाने वाली रेत, जो कि टर्शियरी काल (लगभग 6 मिलियन वर्ष पूर्व) की मानी जाती है, भी भूजल के साथ बहकर आई थी।
- भू-वैज्ञानिक महत्त्व: जैसलमेर क्षेत्र कभी टेथिस सागर से संबद्ध था जिसके एक ओर डायनासोर थे और दूसरी ओर गहरा जल क्षेत्र था।
- एशिया में विशाल शार्क के जीवाश्म केवल भारत (जैसलमेर), जापान एवं थाईलैंड में ही पाए गए हैं।
टेथिस सागर के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- टेथिस सागर का निर्माण मेसोज़ोइक युग के प्रारंभिक चरणों के दौरान हुआ था, विशेष रूप से ट्राइएसिक काल के दौरान (लगभग 250 से 201 मिलियन वर्ष पूर्व)।
- यह गोंडवाना (दक्षिणी महाद्वीप) और लॉरेशिया (उत्तरी महाद्वीप) के भू-भागों के बीच स्थित था।
- गोंडवानालैंड में वर्तमान दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, अरब, मेडागास्कर, भारत, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका शामिल थे।
- लॉरेशिया में उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया (प्रायद्वीपीय भारत को छोड़कर) शामिल थे।
- यह गोंडवाना (दक्षिणी महाद्वीप) और लॉरेशिया (उत्तरी महाद्वीप) के भू-भागों के बीच स्थित था।
- भौगोलिक विस्तार: टेथिस सागर वर्तमान यूरोप, एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के सीमित क्षेत्रों में विस्तृत था तथा पूर्व में प्रशांत महासागर और पश्चिम में अटलांटिक महासागर को जोड़ता था।
- समापन: क्रिटेशस काल के अंत में (लगभग 66 मिलियन वर्ष पूर्व), टेक्टोनिक प्लेटों के निरंतर स्थानांतरण के कारण टेथिस सागर का भराव शुरू हो गया।
- टेथिस सागर के अवशेष आज भी भूमध्य सागर, कैस्पियन सागर और काला सागर जैसे छोटे समुद्रों के रूप में देखे जा सकते हैं।
- विवर्तनिक महत्त्व: इसके क्रमिक भराव होने से नए भू-भागों का निर्माण हुआ, जैसे कि भारतीय उपमहाद्वीप का एशियाई प्लेट की ओर गमन करना, जिससे हिमालय पर्वत शृंखला और तिब्बती पठार का थल से उत्थान हुआ।
- जीवाश्म के साक्ष्य: टेथिस सागर में समुद्री जीवन की समृद्ध विविधता पाई जाती है, जिसमें शार्क, अम्मोनाइट्स के प्रारंभिक रूप और इचथियोसॉर तथा मोसासौर जैसे समुद्री सरीसृप शामिल हैं।
- टेथिस सागर की उत्पत्ति से उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में पेट्रोलियम नदी द्रोणियों का निर्माण हुआ, जिससे कार्बनिक पदार्थ के संचयन और हाइड्रोकार्बन परिपक्वता में सहायता मिली।
भूगर्भ से सतह पर आए जल के अन्य उदाहरण क्या हैं?
- हाइड्रोथर्मल वेंट: ये गर्म जल के जलमग्न चश्मे (स्प्रिंग) हैं जो विवर्तनिक प्लेटों के निकट पाए जाते हैं, जहाँ भू पर्पटी के नीचे से गर्म जल और खनिज धरती से बाहर निकलता है।
- हॉट स्प्रिंग: भूमि पर गर्म जल के चश्मे (स्प्रिंग) वे क्षेत्र हैं जहाँ गर्म भूजल (पृथ्वी के आंतरिक भाग से भूतापीय ऊष्मा द्वारा ऊष्मित) सतह से बाहर निकलता है।
- जैसे, मणिकरण (हिमाचल प्रदेश), गौरीकुंड (उत्तराखंड)।
- गीज़र: ये भूतापीय संरचनाएँ हैं जिसमें से भूमिगत तापन के कारण समय-समय पर जल और भाप बाहर निकलती है।
- समीप स्थित मैग्मा द्वारा जल के ऊष्मित होने पर यह भाप में बदल जाता है, जिससे गर्म जल और भाप का विस्फोटन होता है। उदाहरण के लिये, येलोस्टोन नेशनल पार्क (अमेरिका)।
- मडपॉट: ये बुलबुले युक्त पंक के तालाब हैं जो भूतापीय क्षेत्रों में बनते हैं। सीमित भूतापीय जल का पंक और चिकनी मृदा के साथ संयोजन होने पर इसका निर्माण होता है।
- फ्यूमरोल्स: फ्यूमरोल्स तब उत्पन्न होते हैं जब मैग्मा जल स्तर से होकर गुज़रता है, जिससे जल गर्म हो जाता है और भाप ऊपर उठती है तथा हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) जैसी ज्वालामुखीय गैसें सतह पर आ जाती हैं।
- यह प्रायः "डाइंग वोल्केनो" के समीप पाया जाता है, जहाँ भूमिगत मैग्मा पिंडित और शीतलित हो गया होता है। उदाहरण के लिये, बैरन द्वीप (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह)
सरस्वती नदी
- परिचय: यह प्राचीन भारतीय ग्रंथों, मुख्य रूप से वेदों में वर्णित नदी है जिसमें सरस्वती नदी को वैदिक काल (8000-5000 वर्ष पूर्व) की सबसे पवित्र और समृद्ध नदी माना गया है।
- उद्गम और प्रवाह: इस नदी का उद्गम स्थल हिमालय था और पश्चिम में सिंधु नदी और पूर्व में गंगा नदी के बीच पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान तथा गुजरात के मैदानों से होकर यह प्रवहित होती थी।
- यह नदी अंततः अरब सागर में कच्छ की खाड़ी में गिरती थी।
- विलुप्ति: सरस्वती नदी जलवायु और विवर्तनिक परिवर्तनों के कारण लगभग 5000 बी.पी. में विलुप्त हो गई।
- ऐसा माना जाता है कि वर्तमान में भी यह नदी थार मरुस्थल के नीचे भूमिगत रूप से बहती है और हिमालय से इसका संपर्क बना हुआ है।
- प्राचीन साहित्य में उल्लेख: सरस्वती नदी का उल्लेख प्रायः वेदों, मनुस्मृति, महाभारत और पुराणों जैसे प्राचीन ग्रंथों में देखने को मिलता है।
- वेद: ऋग्वेद में इसके महत्त्व को उजागर करते हुए सरस्वती को "सर्वोपरि माता", "नदी" और "देवी" माना गया है, और यजुर्वेद में इसकी सहायक नदियों का उल्लेख किया गया है।
- मनुस्मृति: सरस्वती और दृषद्वती नदी (हरियाणा की लक्ष्मी नदी) के बीच का क्षेत्र भगवान द्वारा निर्मित ब्रह्मावर्त माना जाता है।
- महाभारत: इसमें नदी के तट पर स्थित तीर्थ स्थल और साथ ही विनाशना (वह स्थान जहाँ सरस्वती नदी लुप्त हुई) में कम जल प्रवाह के कारण नदी के मरुस्थलीय क्षेत्रों में लुप्त हो जाने का उल्लेख है।
- पुराण: मार्कण्डेय पुराण में सरस्वती को प्लक्ष वृक्ष (पीपल वृक्ष) से निकलते हुए तथा एक ऋषि द्वारा उनकी पूजा करते हुए वर्णित किया गया है।
निष्कर्ष
हाल ही में राजस्थान के जैसलमेर में भूगर्भ से अत्यधिक तीव्रता के साथ जल के बाहर निकने की घटना हुई, जिसका कारण एक आर्टिज़ियन कूप को बताया जा रहा है, जिससे प्राचीन सरस्वती नदी के साथ इस घटना का संबंध चर्चा का विषय बना गया है। हालाँकि, वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार यह उत्सर्जित जल प्राचीन समुद्री अवशेषों का था, जिसका संबंध सरस्वती नदी से न होकर विशेष रूप से टेथिस सागर से है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: आर्टिज़ियन कूप की संरचना और संप्रत्यय पर चर्चा कीजिये। |
प्रश्न. लवणीकरण तब होता है जब मिट्टी में जमा सिंचाई का पानी लवण और खनिजों को पीछे छोड़ता है। सिंचित भूमि पर लवणीकरण के प्रभाव क्या हैं? (2011) (a) यह फसल उत्पादन को बहुत बढ़ा देता है। उत्तर: (b) |