भारत द्वारा अन्य देशों को पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने में मदद
स्रोत: द हिंदू
चरम मौसमी घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिये भारत पड़ोसी देशों और छोटे द्वीपीय देशों को पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems- EWS) विकसित करने में सक्रिय रूप से सहायता कर रहा है।
- इस पहल का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र की सभी के लिये 'पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems)' पहल के साथ सामंजस्य बिठाते हुए मानव जीवन व संपत्ति के नुकसान को कम करना है।
अन्य देशों को मदद करने में भारत की क्या योजना है?
- परिचय:
- चूँकि, कई देश पूर्व चेतावनी प्रणाली को स्थापित करने में सक्षम नहीं हैं, विशेष रूप से वे देश जो गरीब, कम विकसित हैं, उदाहरण के लिये मालदीव और सेशेल्स जैसे छोटे द्वीपीय राष्ट्र।
- अतएव भारत का लक्ष्य नेपाल, मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश और मॉरीशस जैसे देशों की सहायता करने में प्रमुख भूमिका निभाना है।
- चूँकि, कई देश पूर्व चेतावनी प्रणाली को स्थापित करने में सक्षम नहीं हैं, विशेष रूप से वे देश जो गरीब, कम विकसित हैं, उदाहरण के लिये मालदीव और सेशेल्स जैसे छोटे द्वीपीय राष्ट्र।
- पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS) विकसित करने में भारत की भूमिका:
- भारत पाँच देशों को भारत सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है, तकनीकी सहायता प्रदान करने वालों में भारत तथा अन्य देश शामिल है।
- भारत साझेदार देशों में मौसम विज्ञान वेधशालाएँ स्थापित करने में भी सहायता करेगा।
- साझेदार देश भारत के संख्यात्मक मॉडल की सहायता से अपनी पूर्वानुमान क्षमताओं में संवर्द्धन कर सकेंगें।
- चरम मौसमी घटनाओं पर समयबद्ध प्रतिक्रिया की सुविधा के लिये भारत निर्णय समर्थन प्रणाली/डीसीज़न सपोर्ट सिस्टम बनाने में सहायता करेगा।
- संचार मंत्रालय संबंधित देशों में डेटा विनिमय और चेतावनी प्रसार प्रणाली स्थापित करने में सहयोग करेगा।
चरम मौसमीय घटनाओं संबंधी हालिया जानकारी:
- वैश्विक रुझान:
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 1970 और 2019 के बीच प्राकृतिक आपदाएँ पाँच गुना से अधिक बढ़ गई हैं, जिसमें जलीय आपदाओं ने विश्वस्तर पर सबसे अधिक हानि पहुँचाई हैं।
- एशिया पर प्रभाव:
- मानव संसाधन एवं आर्थिक लागत:
- वर्ष 1970 से 2021 तक मौसम, जलवायु, अथवा जल से संबंधित (सूखा-बाढ़ आदि) लगभग 12,000 आपदाएँ घटित हुईं, जिसके फलस्वरूप 20 लाख से अधिक मौतें हुईं और 4.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ।
- जलवायु परिवर्तन की भूमिका:
- जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि होने की काफी संभावना देता है, जिससे उनका प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- आगामी पूर्वानुमान:
- यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक विश्व में सालाना 560 मध्यम से लेकर बड़े स्तर तक की आपदाएँ घटित हो सकती हैं।
- भारत, एक प्रमुख अभिकर्त्ता:
- पूर्व चेतावनी प्रणालियों को मज़बूत बनाने की भारत द्वारा की जा रही पहल प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे से निपटने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्त्व को रेखांकित करती है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD):
- इसकी स्थापना 1875 में हुई थी।
- यह देश की राष्ट्रीय मौसम विज्ञान सेवा है और मौसम विज्ञान एवं संबद्ध विषयों से संबंधित सभी मामलों में प्रमुख सरकारी एजेंसी है।
- यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
- यह मौसम संबंधी टिप्पणियों, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख एजेंसी है।
पूर्व चेतावनी प्रणाली पहल:
- सभी के लिये पूर्व चेतावनी पहल का नेतृत्त्व विश्व मौसम विज्ञान संगठन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय द्वारा अन्य भागीदारों के साथ किया जाता है।
- सभी के लिये पूर्व चेतावनी पहल प्रभावी और समावेशी बहु-खतरा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली प्रदान करने के लिये चार स्तंभों पर बनाई गई है:
- आपदा जोखिम की जानकारी और प्रबंधन
- पता लगाना, अवलोकन, निगरानी, विश्लेषण और पूर्वानुमान
- चेतावनी प्रसार एवं संचार
- तैयारी और प्रतिक्रिया क्षमताएँ
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. वर्ष 2004 की सुनामी ने लोगों को यह महसूस करा दिया कि गरान (मैंग्रोव) तटीय आपदाओं के विरुद्ध विश्वसनीय सुरक्षा बाड़े का कार्य कर सकते हैं। गरान सुरक्षा बाड़े के रूप में किस प्रकार कार्य करते हैं? (2011) (a) गरान अनूप होने से समुद्र और मानव बस्तियों के बीच एक ऐसा बड़ा क्षेत्र निर्मित हो जाता है जहाँ लोग न तो रहते हैं, न जाते हैं। उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भूकंप से संबंधित संकटों के लिये भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिये। पिछले तीन दशकों में भारत के विभिन्न भागों में भूकंपों द्वारा उत्पन्न बड़ी आपदाओं के उदाहरण प्रमुख विशेषताओं के साथ कीजिये। (2021) |
ब्रह्मांड का 3-D मानचित्र
प्रिलिम्स के लिये:डार्क एनर्जी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, चंद्र मिशन, रेडियो टेलीस्कोप, ऑप्टिकल टेलीस्कोप, इसरो, NASA, ESA, TIFR, DESI मेन्स के लिये:डार्क एनर्जी के प्रकार और प्रकृति पर चर्चा कीजिये। |
स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शोधकर्त्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम द्वारा ब्रह्मांड का सबसे व्यापक त्रि-आयामी मानचित्र जारी किया गया है।
- वैज्ञानिकों का मानना है कि इस विकास से डार्क एनर्जी के बारे में कुछ सुराग मिल सकते हैं।
- डार्क एनर्जी स्पेक्ट्रोस्कोपिक इंस्ट्रूमेंट (DESI) द्वारा अवलोकन के पहले वर्ष से प्राप्त यह मानचित्र, आकाशगंगाओं के स्थानिक वितरण में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है और डार्क एनर्जी के रहस्यों को उजागर करने का वादा करता है।
ब्रह्माण्ड के मूलभूत घटक क्या हैं?
- ब्रह्माण्ड तीन घटकों से बना है:
- सामान्य या दृश्यमान पदार्थ (5%)
- डार्क मैटर (27%),
- डार्क एनर्जी (68%)
- सामान्य पदार्थ:
- सामान्य पदार्थ वह सब कुछ बनाता है जिसे हम सीधे देख सकते हैं।
- यह प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन जैसे परमाणु कणों से बना है।
- यह गैस, ठोस, तरल या आवेशित कणों के प्लाज़्मा के रूप में मौज़ूद हो सकता है।
- डार्क मैटर:
- सामान्य पदार्थ की तरह, डार्क मैटर जगह घेरता है और अपना द्रव्यमान रखता है।
- डार्क मैटर अदृश्य होता है और प्रकाश के साथ संपर्क नहीं करता है, जिससे इसका सीधे निरीक्षण करना असंभव हो जाता है।
- यह गुरुत्वाकर्षण प्रभाव डालता है, जैसा कि तारों, गैस और आकाशगंगाओं की गति पर इसके प्रभाव से प्रमाणित होता है।
- ऐसा माना जाता है कि डार्क मैटर आकाशगंगाओं के चारों ओर प्रभामंडल बनाता है, और यह बड़ी आकाशगंगाओं की तुलना में बौनी आकाशगंगाओं में अधिक प्रचलित है।
- डार्क एनर्जी:
- डार्क एनर्जी एक अज्ञात बल है जो गुरुत्वाकर्षण का प्रतिकार करता है, जिससे ब्रह्मांड के विस्तार में तेज़ी आती है।
- डार्क मैटर की तरह अदृश्य होने के बावजूद, डार्क एनर्जी का एक अलग प्रभाव होता है, जो आकाशगंगाओं को एक साथ खींचने के बजाय अलग कर देती है।
- वर्ष 1998 में डार्क एनर्जी की खोज ब्रह्मांडीय विस्तार के मापन पर आधारित थी, जिससे विस्तार की बढ़ती दर का पता चला।
- डार्क एनर्जी की प्रकृति:
- हालिया निष्कर्षों ने इस संभावना को बढ़ा दिया है कि डार्क एनर्जी - एक अज्ञात, प्रतिकारक शक्ति है, जो प्रक्रिया को संचालित करती है - जैसा कि पहले सुझाया गया है, यह संपूर्ण समय स्थिर नहीं रहती है।
- डार्क एनर्जी की जानकारी ब्रह्मांड के विस्तार की दर पर इसके प्रभाव और गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता के माध्यम से आकाशगंगाओं तथा उनके समूहों जैसी विस्तृत संरचनाओं के निर्माण के आधार पर इसके प्रभाव से लगाया जाता है।
डार्क एनर्जी स्पेक्ट्रोस्कोपिक उपकरण (DESI):
- DESI एक अनोखा उपकरण है, जो एक बार दूरबीन पर फिट हो जाने पर, एक ही समय में 5,000 आकाशगंगाओं से प्रकाश ग्रहण कर सकता है।
- यह विश्व भर के संस्थानों में 900 से अधिक शोधकर्त्ताओं के सहयोग से बना है। भारत से, TIFR (टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च) एकमात्र भाग लेने वाला संस्थान है।
- शोधकर्त्ताओं ने अमेरिका के एरिज़ोना में मायाल 4-मीटर टेलीस्कोप पर स्थापित DESI का उपयोग किया, जिसके परिणामस्वरूप वे 60 लाख आकाशगंगाओं से प्रकाश को मापने में सक्षम हुए हैं, हालाँकि इनमें से कुछ 11 अरब वर्ष पहले तक मौज़ूद थीं।
- इसका उपयोग ब्रह्माण्ड का अब तक का सबसे विस्तृत मानचित्र तैयार करने के लिये किया गया था।
और पढ़ें: डार्क एनर्जी, डार्क मैटर
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. वैज्ञानिक निम्नलिखित में से किस/किन परिघटना/परिघटनाओं को ब्रह्मांड के निरंतर विस्तरण के साक्ष्य के रूप में उद्धृत करते हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न 2. वर्ष 2008 में निम्नलिखित में से किसने एक जटिल वैज्ञानिक प्रयोग किया था, जिसमें उप-परमाणु कणों को लगभग प्रकाश की गति तक त्वरित किया गया था? (2008) (a) यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी उत्तर: b |
134वीं डॉ. अंबेडकर जयंती
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन (DAF) द्वारा 14 अप्रैल, 2024 को 134वीं डॉ. अंबेडकर जयंती मनाई गई।
- बी.आर. अंबेडकर ने स्वतंत्र भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिंदू व्यक्तिगत कानूनों में सुधार लाने के उद्देश्य से हिंदू कोड बिल में उनका कम-ज्ञात योगदान, अधिक न्यायसंगत समाज के लिये उनके दृष्टिकोण को समझने में भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
हिंदू कोड बिल क्या था?
- नवगठित सरकार में कानून मंत्री के रूप में, अंबेडकर ने वर्ष 1950 में हिंदू कोड बिल का मसौदा तैयार करना शुरू किया। यह हिंदू व्यक्तिगत कानूनों में सुधार करने का अंबेडकर का प्रयास था जो हिंदू कानून को संहिताबद्ध और आधुनिक बनाएगा, जिससे महिलाओं को अधिक अधिकार मिलेंगे।
- बिल का मसौदा तैयार करने से पहले, अंबेडकर ने महत्त्वपूर्ण ग्रंथों और श्लोकों का अनुवाद करने के लिये संस्कृत विद्वानों को नियुक्त किया, यह सुनिश्चित करते हुए कि सुधार हिंदू परंपरा में निहित थे।
- इस बिल को कॉन्ग्रेस पार्टी और विपक्ष के भीतर से कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, जिसके कारण नेहरू द्वारा इसके पारित होने में देरी हुई।
- अंबेडकर के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद, नेहरू ने पहल की और चार अलग-अलग बिलों का समर्थन किया, जिनमें हिंदू कोड बिल के समान सामग्री शामिल थी।
- ये बिल, अर्थात् हिंदू विवाह अधिनियम (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956), हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम (1956), तथा हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम (1956) अधिनियमित किये गए, जो हिंदू सुधार के लिये अंबेडकर के दृष्टिकोण को साकार करते थे।
डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन (DAF):
- DAF का गठन बाबासाहेब डॉ. बी.आर. अंबेडकर के संदेश और विचारधाराओं को प्रसारित करने के लिये किया गया था, जिसका लक्ष्य अखिल भारतीय पैमाने पर उनके दृष्टिकोण एवं विचारों को आगे बढ़ाना था।
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत 1992 में स्थापित, DAF डॉ. अंबेडकर की विरासत को संरक्षित एवं प्रचारित करने के लिये समर्पित एक स्वायत्त निकाय के रूप में कार्य करता है।
- डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक (DANM) संग्रहालय व्यक्तिगत सामान, तस्वीरों, पत्रों और दस्तावेज़ों के संग्रह के माध्यम से डॉ. बी.आर. अंबेडकर के जीवन, कार्य एवं योगदान को प्रदर्शित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस पार्टी की स्थापना डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने की थी? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (B) मेन्सप्रश्न. अलग-अलग दृष्टिकोण और रणनीतियों के बावजूद महात्मा गांधी तथा डॉ. बी.आर. अंबेडकर का दलितों के उत्थान का एक सामान्य लक्ष्य था। स्पष्ट कीजिये। (2015) |
केरल में चमगादड़ों से जुड़े मिथक
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में केरल के शोधकर्त्ताओं ने चमगादड़ वर्गीकरण (Taxonomy), ध्वनिकी (Acoustics) और जैवभूगोल (Biogeography) पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये हैं।
- मिथक (Myth), अंधविश्वास और कोविड-19 तथा निपाह वायरस संक्रमण जैसी ज़ूनोटिक बीमारियों ने चमगादड़ों के बारे में नकारात्मक धारणा बनाई है।
- इस परियोजना का उद्देश्य उभरती ज़ूनोटिक बीमारियों और चमगादड़ों की आबादी के सामने आने वाले खतरों से निपटना है, जिसमें निवास स्थान की हानि तथा फलों के चमगादड़ों के निवास स्थान का समाप्त होना शामिल है।
- केरल के शोधकर्त्ता भी वर्ष 1996 से चल रहे राष्ट्रीय चमगादड़ निगरानी कार्यक्रम (National Bat Monitoring Programme) का समर्थन कर रहे हैं।
- यह हमें चमगादड़ों के संरक्षण में सहायता के लिये आवश्यक जानकारी देता है।
चमगादड़ (Bats):
- भारत चमगादड़ों की 135 प्रजातियों का घर है। चमगादड़ रात्रिचर (nocturnal) प्राणी हैं।
- चमगादड़ आम तौर पर फलों को खाते हैं, बीज फैलाव द्वारा परागण में मदद करते हैं, लेकिन कृषि को नुकसान भी पहुँचाते हैं और इसलिये उन्हें कीट (vermin) माना जाता है।
- अवैध शिकार, माँस की खपत, पारंपरिक दवाओं में उपयोग, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण और जैविक आक्रमण के कारण दुनिया भर में चमगादड़ों की आबादी में गिरावट आई है।
और पढ़ें: आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ
भारत की सितवे बंदरगाह तक पहुँच
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
हाल ही में विदेश मंत्रालय (MEA) ने इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) को म्याँमार के कलादान नदी पर स्थित संपूर्ण सितवे बंदरगाह के संचालन को संभालने के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की है। चाबहार बंदरगाह के बाद यह भारत का दूसरा विदेशी बंदरगाह होगा।
- IPGL बंदरगाह, जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय के 100% स्वामित्व वाली कंपनी है।
सितवे बंदरगाह:
- म्याँमार के राखीन राज्य में स्थित सितवे बंदरगाह, कलादान मल्टी-मॉडल ट्राँजिट ट्राँसपोर्ट प्रोजेक्ट का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- यह एक गहरे जल वाला बंदरगाह है, जो बाँग्लादेश को दरकिनार करते हुए विज़ाग और कोलकाता से पूर्वोत्तर राज्यों तक कार्गो के माध्यम से पहुँचने के लिये एक महत्त्वपूर्ण कनेक्टिविटी लाभ प्रदान करता है।
- इससे भूटान और बाँग्लादेश के बीच बने सिलीगुड़ी कॉरिडोर (या चिकन नेक) पर निर्भरता भी कम हो जाएगी।
- इन 2 विदेशी बंदरगाहों, चाबहार और सितवे पर भारत का परिचालन नियंत्रण, श्रीलंका में हंबनटोटा, अफ्रीका में जिबूती आदि बंदरगाहों के साथ चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति का सामना करने के लिये भारत के समुद्री प्रभाव को मज़बूत करेगा।
और पढ़ें: भारत-म्याँमार संबंध: मुक्त आंदोलन की बाड़, भारत-बाँग्लादेश संबंध
मुंबई में कृत्रिम भित्तियों का निर्माण
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
समुद्री जीवन को बढ़ावा देने के लिये भारत की कृत्रिम भित्तियों की दूसरी स्थापना (पुद्दुचेरी के बाद) मुंबई के वर्ली कोलीवाड़ा के पास की जा रही है।
पुनर्नवीनीकरण कंक्रीट व स्टील से बनी 210 रीफ इकाइयाँ 500 मीटर दूर तट पर स्थापित की गई हैं, और एक संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र के शुरुआती संकेत दिखाने में 3 माह लगेंगे।
कृत्रिम भित्तियाँ:
- ये मनुष्यों द्वारा बायोरॉक तकनीक के माध्यम से बनाई गई संरचनाएँ हैं और मीठे पानी या खारे पानी के वातावरण में समुद्र तल स्थापित की गई हैं।
- बायोरॉक तकनीक का आविष्कार वुल्फ हिल्बर्ट्ज़ ने किया था। इस तकनीक में स्टील संरचना के पास रखे गए इलेक्ट्रोड का उपयोग करके जल के माध्यम से कम विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है।
- यह प्रवाह चुंबक की तरह काम करती है, घुले हुए खनिजों, विशेष रूप से कैल्शियम और कार्बोनेट आयनों को आकर्षित करती है, जिससे प्राकृतिक प्रवाल भित्तियों के समान कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) परत बनती है।
- ये भित्तियाँ महत्त्वपूर्ण कठोर सतह का निर्माण करती हैं जिनसे शैवाल, बार्नाकल, प्रवाल और सीप खुद को मज़बूती से जोड़ सकते हैं।
- ये भित्तियाँ मछलियों के लिये आवास बनाएँगी, कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करेंगी और मछली पकड़ने वाले स्थानीय समुदायों को लाभान्वित करेंगी।
और पढ़ें: प्रवाल भित्तियाँ, बायोरॉक प्रौद्योगिकी
क्रायोजेनिक्स
स्रोत: द हिंदू
क्रायोजेनिक्स को माइनस 153 डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान पर पदार्थ विज्ञान के रूप में परिभाषित किया गया है। यह बेहद कम तापमान होता है, जहाँ हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और वायु जैसी सामान्य गैसें भी अपनी तरल अवस्था में पहुँच जाती हैं।
- क्रायोजेनिक्स, आमतौर पर क्रायोजेनिक तरल पदार्थ के रूप में हीलियम और नाइट्रोजन का उपयोग करता है, जो किसी पदार्थ को ठंडा करता है।
- नाइट्रोजन का क्वथनांक - 196 डिग्री सेल्सियस और हीलियम का क्वथनांक - 269 डिग्री सेल्सियस होता है। इन तापमानों के नीचे वे तरल होते हैं।
- इन तरल पदार्थों को वैक्यूम फ्लास्क में संगृहीत करने की आवश्यकता होती है अन्यथा वे लीक हो सकते हैं और अपने आसपास के वातावरण को हानि पहुँचा सकते हैं।
क्रायोजेनिक्स का उपयोग:
- उदाहरण के लिये, हाइड्रोजन सबसे अच्छे रॉकेट ईंधन में से एक है, लेकिन इसका उपयोग केवल तरल पदार्थ के रूप में किया जा सकता है, इसलिये इसे क्रायोजेनिक रूप से ठंडा करने की आवश्यकता होती है।
- क्रायोजेनिक हाइड्रोजन और क्रायोजेनिक ऑक्सीजन पॉवर इसरो के LVM-3 रॉकेट का तीसरा चरण है।
- चिकित्सा उपचार में उपयोग किये जाने वाले चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (MRI) उपकरण अपने चुंबकों के प्रशीतन के लिये क्रायोजेनिक तरल पदार्थ का उपयोग करते हैं।
और पढ़ें: 3D प्रिंटेड क्रायोजेनिक इंजन और अंतरिक्ष क्षेत्र का निजीकरण
विषैली जेलीफिश
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में विशाखापत्तनम तट पर विषैली जेलीफिश के उत्पन्न होने की सूचना मिली है।
- पेलागिया नोक्टिलुका, जिसे माउव स्टिंगर या बैंगनी-धारीदार जेलीफिश के रूप में भी जाना जाता है, का डंक दर्दनाक होता है और दस्त, अत्यधिक दर्द, उल्टी व एनाफिलेक्टिक सदमे जैसी विभिन्न बीमारियों का कारण बनता है तथा इससे जीवन के लिये खतरा हो सकता है।
- यह एक बैंगनी रंग की पारभासी प्रजाति है जो तैरते हुए गुब्बारे के समान होती है।
- यह विश्व भर में उष्णकटिबंधीय और गर्म तापमान वाले समुद्रों में पाया जाता है।
- अन्य जेलीफिश प्रजातियों के विपरीत, इसके डंक न केवल टेंटेकल्स पर होते हैं, बल्कि शरीर के घंटीनुमा भाग पर भी होते हैं।
- ये बायोलुमिनसेंट हैं, जिनमें अंधेरे में रोशनी उत्पन्न करने की क्षमता है।
- जेलिफिश की उत्पत्ति तब होती है जब प्रजातियों की आबादी थोड़े समय के भीतर नाटकीय रूप से बढ़ जाती है, आमतौर पर उच्च प्रजनन दर के कारण। यह अक्सर समुद्र के बढ़ते तापमान के परिणामस्वरूप होता है।
- अतीत में यह ज्ञात हुआ है कि इनसे मछली पकड़ने के उद्योग को बड़े पैमाने पर क्षति पहुँची है और पर्यटन पर भी प्रभाव पड़ा है।
पीज़ोइलेक्ट्रिक बोन कंडक्शन हियरिंग इम्प्लांट
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
कमांड हॉस्पिटल पुणे ने दो पीज़ोइलेक्ट्रिक बोन कंडक्शन हियरिंग इम्प्लांट का सफलतापूर्वक प्रदर्शन करके एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है, जो भारत के किसी सरकारी अस्पताल में ऐसी प्रक्रियाओं का पहला उदाहरण है।
- पीज़ोइलेक्ट्रिक बोन कंडक्शन हियरिंग इम्प्लांट सिस्टम एक महँगा इम्प्लांटेबल मेडिकल उपकरण है, जो सुनने में अक्षम रोगियों के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिसमें प्रवाहकीय श्रवण हानि (जैसे कि ऑरल एट्रेसिया), मिश्रित श्रवण हानि और एकल-पक्षीय बहरापन (SSD) शामिल हैं।
- ऑरल एट्रेसिया एक जन्मजात स्थिति है जो कान, विशेष रूप से कान की नलिका के विकास को प्रभावित करती है।
- ऑरल एट्रेसिया वाले व्यक्तियों में, कान की नलिका ठीक से नहीं बन पाती है या पूरी तरह से अनुपस्थित रहती है, जिससे प्रभावित कान में महत्त्वपूर्ण श्रवण हानि या बहरापन हो जाता है।
- एकल-पक्षीय बहरापन एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को एक कान से पूर्ण या निकट-पूर्ण सुनाई न देने जैसी स्थिति का अनुभव होता है, जबकि दूसरे कान से सामान्य या निकट सामान्य सुनने की क्षमता प्रभावित होती है।
- ऑरल एट्रेसिया एक जन्मजात स्थिति है जो कान, विशेष रूप से कान की नलिका के विकास को प्रभावित करती है।
- पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी कुछ सामग्रियों का एक गुण है जो यांत्रिक रूप से तनावग्रस्त होने पर विद्युत प्रवाह उत्पन्न करता है।
और पढ़ें: पीज़ोइलेक्ट्रिक प्रभाव, विकलांग व्यक्तियों को सशक्त बनाना