इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


प्रारंभिक परीक्षा

पीज़ोइलेक्ट्रिक प्रभाव

  • 30 Mar 2023
  • 4 min read

हाल ही में वैज्ञानिकों ने द्रव्यों में पीज़ोइलेक्ट्रिक प्रभाव के साक्ष्य की सूचना दी है। 

  • यह प्रभाव 143 वर्षों से ज्ञात है और इस समय में केवल ठोस पदार्थों में देखा गया है।   

पीज़ोइलेक्ट्रिक प्रभाव: 

  • पीज़ोइलेक्ट्रिक प्रभाव एक ऐसी घटना है जिसमें कुछ सामग्री यांत्रिक तनाव या दाब की प्रतिक्रिया में विद्युत आवेश उत्पन्न करते हैं। यह प्रभाव तब उत्पन्न होता है जब सामग्री एक बल के अधीन होती है जिसके कारण इसके अणु ध्रुवीकृत हो जाते हैं, जिसका अर्थ है कि सामग्री के भीतर धनात्मक और ऋणात्मक आवेश एक-दूसरे से पृथक हो जाते हैं।
  • ध्रुवीकरण की स्थिति में सामग्री में विद्युत क्षमता उत्पन्न होती है और यदि सामग्री सर्किट से जुड़ी होती है, तो धारा प्रवाहित हो सकती है।
    • इसके विपरीत यदि सामग्री पर विद्युत क्षमता लागू की जाती है, तो यह एक यांत्रिक विकृति उत्पन्न कर सकती है।
  • पीज़ोइलेक्ट्रिक सामग्री का उपयोग विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे- सेंसर, एक्चुएटर्स (एक उपकरण है जो तंत्र में जाने वाली ऊर्जा और संकेतों को परिवर्तित करके गति उत्पन्न करता है) एवं ऊर्जा संचयन उपकरणों में। सामान्य पीज़ोइलेक्ट्रिक सामग्रियों के कुछ उदाहरणों में क्वार्ट्ज़, सिरेमिक एवं कुछ प्रकार के क्रिस्टल शामिल हैं।
    • उदाहरण: क्वार्ट्ज़ सबसे प्रसिद्ध पीज़ोइलेक्ट्रिक क्रिस्टल हैं: इनका उपयोग इस क्षमता में एनालॉग कलाई घड़ी और अन्य घड़ियों में किया जाता है।
    • पीज़ोइलेक्ट्रिक प्रभाव की खोज वर्ष 1880 में जैक्स और पियरे क्यूरी द्वारा क्वार्ट्ज़ में की गई थी।

इस खोज के निहितार्थ: 

  • यह खोज ठोस अवस्था वाली सामग्री को अधिक सरलता से पुन: प्रयोज्य बनाती है और कई मामलों में आमतौर पर उपयोग की जाने वाली पीज़ोइलेक्ट्रिक सामग्रियों की तुलना में पर्यावरणीय रूप से कम हानिकारक होती है, यह उन अनुप्रयोगों का मार्ग प्रशस्त करती है जो पहले कभी संभव नहीं थे।
  • तरल पदार्थ भी विपरीत पीज़ोइलेक्ट्रिक प्रभाव प्रदर्शित करते हैं कि जब एक विद्युत चार्ज लागू किया जाता है तो वे विकृत हो जाते हैं, इस तथ्य का उपयोग यह नियंत्रित करने के लिये किया जा सकता है कि तरल पदार्थ उनके माध्यम से विभिन्न विद्युत धाराओं को प्रवाहित करके प्रकाश की दिशा में परिवर्तन करते हैं।
    • दूसरे शब्दों में शीशियों में ये तरल पदार्थ इस साधारण नियंत्रण विधि का उपयोग करके गतिशील रूप से केंद्रित लेंस के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • नई खोज उस सिद्धांत को चुनौती देती है जो इस प्रभाव का वर्णन करता है और साथ ही इलेक्ट्रॉनिक एवं यांत्रिक प्रणालियों में पहले से अप्रत्याशित अनुप्रयोगों के द्वार खोलता है। 

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2