लॉस एंड डैमेज फंड
स्रोत: TH
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल के वायनाड ज़िले में हुए विनाशकारी भूस्खलन के बाद जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत लॉस एंड डैमेज फंड (LDF) के माध्यम से मुआवज़े का दावा करने के लिये उप-राष्ट्रीय संस्थाओं की पात्रता के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण चर्चा शुरू हो गई है।
नोट:
- केरल के वायनाड ज़िले में भारी वर्षा और संवेदनशील पारिस्थितिक स्थितियों के कारण जुलाई 2024 की शुरुआत में विनाशकारी भूस्खलन की घटना हुई।
- चूरलमाला और मुंदक्कई गाँवों में भूस्खलन के कारण कम-से-कम 144 लोगों की मृत्यु हो गई और 197 लोग घायल हो गए। ज़िले में 24 घंटे में 140 मिमी. से अधिक बारिश से मृदा गीली होने तथा चट्टानों से उसका जुड़ाव कमज़ोर हो जाने के कारण वहाँ भूस्खलन हुआ।
लॉस एंड डैमेज फंड क्या है?
- स्थापना और लक्ष्य: लॉस एंड डैमेज फंड (LDF) की स्थापना वर्ष 2022 में मिस्र में आयोजित 27 वें UNFCCC कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP27) में की गई थी, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के कारण आर्थिक और गैर-आर्थिक दोनों तरह के नुकसान से पीड़ित क्षेत्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
- यह कोष चरम मौसम की घटनाओं और धीमी गति से होने वाली प्रक्रियाओं (जैसे: समुद्र के बढ़ते जल स्तर) से होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति करता है।
- शासन: LDF का संचालन एक गवर्निंग बोर्ड द्वारा किया जाता है, जो निम्नलिखित के लिये ज़िम्मेदार है:
- कोष के संसाधनों के आवंटन का निर्धारण करना।
- विश्व बैंक इसका अंतरिम ट्रस्टी के रूप में कार्य करता है।
- गवर्निंग बोर्ड द्वारा वर्तमान में फंड के संसाधनों तक पहुँच को सुविधाजनक बनाने के लिये तंत्र विकसित किया जा रहा है, जिसमें प्रत्यक्ष अभिगम, छोटे अनुदान, त्वरित संवितरण विकल्प शामिल हैं।
- चिंताएँ:
- इसके इच्छित उद्देश्य के बावजूद इस बात की चिंता बनी हुई है कि:
- LDF सहित जलवायु कोष की गति इतनी धीमी है कि आपदा के बाद तत्काल उन तक पहुँचना संभव नहीं है।
- यह मुद्दा उप-राष्ट्रीय स्तर पर स्थानीय समुदायों के लिये विशेष रूप से गंभीर है।
- यह अनुमान लगाया जा रहा है कि LDF को अपने संसाधनों तक समय पर पहुँच सुनिश्चित करने में इसी प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- इसके इच्छित उद्देश्य के बावजूद इस बात की चिंता बनी हुई है कि:
जलवायु वित्त में भारत की भूमिका
- भारत को वर्ष 2019 और 2023 के दौरान मौसम संबंधी आपदाओं के कारण 56 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ है।
- भारत की राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई नीति और बजट में अनुकूलन के बजाय शमन प्रयासों पर अधिक ज़ोर दिया गया है।
- केंद्रीय बजट 2024 के अनुसार सरकार जलवायु अनुकूलन और शमन के लिये पूंजी की उपलब्धता बढ़ाने हेतु जलवायु वित्त के लिये एक वर्गिकी तैयार करेगी।
- भारत में अग्रिम पंक्ति के समुदाय अभी भी खतरे में हैं, क्योंकि लॉस एंड डैमेज फंड से मुआवज़ा प्राप्त करने के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव है।
- जलवायु वित्त के संबंध में भारत की पहलों में शामिल हैं:
- जलवायु परिवर्तन हेतु राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC):
- राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष: इसे स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया था और उद्योगों द्वारा कोयले के प्रयोग पर प्रारंभिक कार्बन कर के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था।
- राष्ट्रीय अनुकूलन कोष: इसकी स्थापना वर्ष 2014 में 100 करोड़ रुपए की धनराशि के साथ की गई थी, जिसका उद्देश्य आवश्यकता और उपलब्ध धन के बीच के अंतर को कम करना था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. "मोमेंटम फ़ॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ" यह पहल किसके द्वारा प्रवर्तित की गई है? (2018) (a) जलवायु परिवर्तन पर अन्तर-सरकारी पैनल उत्तर: (c) प्रश्न. वर्ष, 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) |
न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) के शोधकर्त्ताओं ने न्यूरोमॉर्फिक या मस्तिष्क-प्रेरित एनालॉग कंप्यूटिंग प्रणाली विकसित की।
- यह प्रणाली आणविक फिल्म का उपयोग करके 16,500 अवस्थाओं में डेटा संगृहीत और संसाधित करने में सक्षम है।
न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग क्या है?
- परिचय:
- न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे कृत्रिम ‘न्यूरॉन्स और सिनेप्स’ का उपयोग करके मानव मस्तिष्क की संरचना तथा कार्य की नकल करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- यह पारंपरिक बाइनरी कंप्यूटिंग से न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग की ओर एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी कदम है, जो प्रणाली को पर्यावरण से सीखने की अनुमति प्रदान करता है।
- कार्य प्रणाली:
- इसमें मानव मस्तिष्क के समान लाखों कृत्रिम रूप से विकसित न्यूरॉन्स नेटवर्क (ANN) का उपयोग शामिल है।
- ये न्यूरॉन्स विभिन्न चरणों में एक दूसरे को संकेत भेजते हैं तथा स्पाइकिंग न्यूरल नेटवर्क (SNN) की बनावट के आधार पर विद्युत स्पाइक्स या संकेतों के माध्यम से इनपुट को आउटपुट में परिवर्तित करते हैं।
- इससे मशीन मानव मस्तिष्क में न्यूरो-बायोलॉजिकल नेटवर्क की नकल और दृश्य पहचान तथा डेटा व्याख्या जैसे कार्यों को कुशलतापूर्वक एवं प्रभावी ढंग से निष्पादित कर सकती है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- मस्तिष्क-प्रेरित डिज़ाइन: न्यूरोमॉर्फिक प्रणालियाँ मस्तिष्क की संरचना की नकल करती हैं, विशेष रूप से नियोकॉर्टेक्स की, जो संवेदी धारणा और मोटर कमांड जैसे उच्च संज्ञानात्मक कार्यों के लिये ज़िम्मेदार है।
- स्पाइकिंग न्यूरल नेटवर्क: ये सिस्टम स्पाइकिंग न्यूरॉन्स का उपयोग कर विद्युत संकेतों के माध्यम से संचारित होते हैं, जो जैविक न्यूरोनल से काफी अंतर्संबंधित हैं। यह डिज़ाइन वास्तविक समय में सीखना और समानांतर प्रसंस्करण की अनुमति प्रदान करता है।
- स्मृति और प्रसंस्करण का एकीकरण: पारंपरिक वॉन न्यूमैन वास्तुकला के विपरीत, जो स्मृति को प्रसंस्करण से अलग करती है, न्यूरोमॉर्फिक प्रणालियाँ इन कार्यों को एकीकृत करती हैं, जिससे कम्प्यूटेशनल दक्षता बढ़ जाती है।
- लाभ:
- यह कंप्यूटर को पारंपरिक कंप्यूटिंग प्रणालियों की तुलना में सूचना को अधिक कुशलता से संसाधित करने, समस्या-समाधान, प्रतिरूप की पहचान और त्वरित निर्णयन क्षमता को सक्षम बनाता है।
- इसमें AI हार्डवेयर में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता है, जो व्यक्तिगत उपकरणों पर लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) को प्रशिक्षित करने जैसे जटिल कार्यों को सक्षम बनाता है साथ ही हार्डवेयर सीमाओं और ऊर्जा अकुशलताओं को संबोधित करता है।
- वर्तमान AI उपकरण ऊर्जा-कुशल हार्डवेयर की कमी के कारण संसाधन-हैवी डेटा सेंटर तक ही सीमित हैं ।
- आणविक फिल्म के साथ एकीकरण:
- आणविक फिल्में अणुओं की अत्यंत पतली परतें होती हैं, जिन्हें विशिष्ट विद्युतीय और प्रकाशीय गुण प्रदर्शित करने के लिये विकसित किया जा सकता है, जिससे मस्तिष्क-प्रेरित डेटा भंडारण तथा प्रसंस्करण उपकरणों का निर्माण संभव हो सकता है।
- यह फिल्म एक न्यूरोमॉर्फिक त्वरक के रूप में कार्य करती है, जो मस्तिष्क की तरह समानांतर प्रसंस्करण का अनुकरण करती है, जिससे मैट्रिक्स गुणन जैसे जटिल कार्यों को शीघ्रता से पूरा किया जा सकता है तथा सिलिकॉन चिप्स के साथ संयुक्त होने पर कंप्यूटर के प्रदर्शन में सुधार किया जा सकता है।
- हालिया प्रगति में एक आणविक फिल्म शामिल है, जो 16,500 संभावित अवस्थाएँ प्रदान करती है, जो पारंपरिक बाइनरी प्रणालियों से आगे निकल जाती है।
- यह फिल्म स्मृति अवस्थाओं को दर्शाने के लिये आणविक और आयनिक गतियों का उपयोग करती है, जिसे सटीक विद्युत स्पंदों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है तथा अवस्थाओं की एक "आणविक डायरी" तैयार की जाती है।
- पारंपरिक कंप्यूटिंग से किस तरह विभिन्न:
- समानांतर प्रसंस्करण: न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटर एक साथ कई सूचनाओं का प्रसंस्करण कर सकते हैं, जबकि पारंपरिक कंप्यूटर क्रमिक रूप से कार्य करते हैं।
- ऊर्जा दक्षता: वे केवल प्रासंगिक घटनाओं के घटित होने पर ही गणना करके निम्न ऊर्जा की खपत करते हैं, जिससे वे वास्तविक समय डेटा (रियल टाइम डाटा) प्रसंस्करण की आवश्यकता वाले अनुप्रयोगों के लिये आदर्श बन जाते हैं।
- पारंपरिक बाइनरी कंप्यूटिंग दो अवस्थाओं में बिट्स (0 या 1) के साथ कार्य करती है, जो लाइट स्विच के चालू या बंद होने के समान है। इसके विपरीत एनालॉग कंप्यूटिंग निरंतर मानकों का उपयोग करती है, जो चमक के स्तरों की एक सीमा के साथ डिमर स्विच के समान है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस निम्नलिखित में से क्या प्रभावी ढंग से कर सकता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) |
सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन प्रबंधन अधिनियम (PHEMA)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
नीति आयोग द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समूह ने सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिये एक नए सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन प्रबंधन अधिनियम (PHEMA) की सिफारिश की है।
- PHEMA का उद्देश्य राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर स्वास्थ्य कैडर बनाना तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियों को तत्काल कार्रवाई करने के लिये सशक्त बनाना है।
- इसमें महामारी, गैर-संचारी रोग, आपदाएँ और जैव-आतंकवाद को शामिल किया जाएगा।
- प्रमुख अनुशंसाएँ:
- सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह (EGoS) का गठन: यह महामारी संबंधी तैयारियों और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रयासों का समन्वय करेगा तथा इसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव द्वारा किये जाने का प्रस्ताव है।
- स्कोरकार्ड तंत्र का कार्यान्वयन: एक संरचित स्कोरकार्ड प्रमुख लक्ष्यों के संबंध में प्रगति पर नज़र रखेगा ताकि तैयारी और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
- महामारी तैयारी और आपातकालीन मोचन कोष: जीनोमिक निगरानी, वैक्सीन विकास और साझा बुनियादी अवसरंचना जैसी गतिविधियों को वित्तपोषित करने के लिये।
- वैश्विक सामंजस्य: नियामक डेटा की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति को सुगम बनाने के लिये भारतीय नियामक मानदंडों को वैश्विक मानकों के साथ संरेखित करने का समर्थन।
- क्लिनिकल परीक्षण नेटवर्क का विकास: विश्व स्तर पर विकसित प्रथाओं तक पहुँच में तेज़ी लाना और अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयासों में भारत की भागीदारी को बढ़ाना।
और पढ़ें: अंतर्राष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल
ग्लोबल बायो इंडिया 2024
स्रोत: पी.आई.बी
हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित ग्लोबल बायो इंडिया 2024 सम्मेलन में भारत की विस्तारित जैव-अर्थव्यवस्था को प्रदर्शित किया गया और भारत जैव-अर्थव्यवस्था रिपोर्ट (IBER) 2024 को लॉन्च किया गया, साथ ही 30 अभिनव स्टार्टअप का अनावरण किया गया, जिससे जैव प्रौद्योगिकी के भविष्य का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- ग्लोबल बायो इंडिया 2024 बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (BIRAC) द्वारा आयोजित एक वार्षिक कार्यक्रम है, जो जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है।
- यह सरकारों, स्टार्टअप्स, अनुसंधान संस्थानों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों के बीच सहयोग के लिये एक अद्वितीय स्थान प्रदान करता है।
- इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा हाल ही में अनुमोदित BioE3 (जैव प्रौद्योगिकी अर्थव्यवस्था, रोज़गार और पर्यावरण के लिये) नीति का उल्लेख किया।
- BioE3 नीति का उद्देश्य बायो मैन्युफैक्चरिंग सुविधाएँ, बायो फाउंड्री क्लस्टर और बायो-AI हब स्थापित करना है।
- जैव प्रौद्योगिकी विभाग और बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (BIRAC) द्वारा जारी IBER 2024 में भारत के जैव प्रौद्योगिकी उद्योग की प्रभावशाली प्रगति का विवरण दिया गया है।
- मुख्य बिंदु: भारत की जैव-अर्थव्यवस्था वर्ष 2014 में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023 तक 151 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई है और वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जो टीकों एवं बायोफार्मास्युटिकल्स की बढ़ती मांग से प्रेरित है, जो वर्ष 2023 में भारत के 3.55 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद का 4.25% हिस्सा थी।
- बायोटेक से संबंधित पहल: राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति 2020-25, राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन, बायोटेक-किसान योजना, अटल जय अनुसंधान बायोटेक मिशन और बायोटेक पार्क।
अधिक पढ़ें: भारत में BioE3 नीति और जैव प्रौद्योगिकी
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 2024
स्रोत: WHO
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD) प्रतिवर्ष 10 सितंबर को मनाया जाता है ताकि विश्व भर में आत्महत्या की रोकथाम के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर स्पष्ट चर्चा को प्रोत्साहित किया जा सके।
- आत्महत्या एक बहुत ही गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है, जिसके कारण प्रतिवर्ष विश्व भर में 7,00,000 से अधिक मौतें होती हैं। यह वैश्विक स्तर पर 15-29 वर्ष के युवाओं में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण भी है। यह दिन आत्महत्या के प्रति जागरूकता बढ़ाने तथा इसके कलंक को कम करने के साथ ही इस बात पर ज़ोर देने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है कि आत्महत्या की रोकथाम संभव है।
- वर्ष 2024 से 2026 तक विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस का त्रिवार्षिक विषय "Changing the Narrative on Suicide” है, जो आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात करने, इसके कारणों को समझने और समर्थन के साथ बदलने के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
- पहला विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 10 सितंबर 2003 को स्टॉकहोम में अंतर्राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम संघ (IASP) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की पहल पर शुरू किया गया था।
- आत्महत्या रोकथाम से संबंधित सरकारी पहल:
और पढ़ें: भारत में आत्महत्या की प्रवृत्ति
राष्ट्रीय अवसंरचना वित्तपोषण और विकास बैंक
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
हाल ही में भारत सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के परामर्श से राष्ट्रीय अवसंरचना वित्तपोषण और विकास बैंक (NaBFID) को कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत एक “सार्वजनिक वित्तीय संस्थान” के रूप में अधिसूचित किया है, जिसका उद्देश्य देश में अवसंरचना वित्तपोषण को बढ़ावा देना है।
- कंपनी अधिनियम, 2013 कंपनियों के निगमन, ज़िम्मेदारियों, निदेशकों और विघटन को नियंत्रित करता है। इसने आंशिक रूप से कंपनी अधिनियम, 1956 का स्थान लिया है।
- यह अधिसूचना बड़े पैमाने पर बुनियादी अवसंरचनात्मक परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये NaBFID की क्षमता को बढ़ाती है तथा राष्ट्रीय बुनियादी अवसंरचना वित्त प्रणाली को प्रभावी करती है।
- NaBFID की स्थापना वर्ष 2021 में राष्ट्रीय अवसंरचना वित्तपोषण और विकास बैंक अधिनियम (2021) द्वारा भारत के पाँचवें अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान (AIFI) के रूप में की गई थी ताकि बॉन्ड और डेरिवेटिव बाज़ारों के विकास सहित दीर्घकालिक बुनियादी अवसंरचना के वित्तपोषण का समर्थन किया जा सके।
- फरवरी 2024 तक एक विशेष विकास वित्त संस्थान (DFI) के रूप में NaBFID ने पूरे देश में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के लिये 86,804 करोड़ रुपए से अधिक की मंजूरी दी है, जिसमें 50% मंज़ूरी 20 से 50 वर्षों की लंबी अवधि की है। NaBFID ने मार्च 2026 तक 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक की मंजूरी देने की योजना बनाई है।
- अन्य चार AIFI:
और पढ़ें: राष्ट्रीय अवसंरचना वित्तपोषण और विकास बैंक विधेयक, 2021
मिशन मौसम
स्रोत: IE
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्वानुमानों और तात्कालिक पूर्वानुमानों की सटीकता में सुधार लाने हेतु अगले दो वर्षों के लिये 2,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ 'मिशन मौसम' को मंज़ूरी दी है ताकि चरम मौसमी-घटनाओं तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अनुमान करने एवं उनसे निपटने की भारत की क्षमता को बढ़ाया जा सके।
- फोकस क्षेत्र: इसमें सटीकता, मॉडलिंग, रडार, उपग्रह और सटीक कृषि पूर्वानुमान शामिल हैं।
- इससे नागरिकों सहित हितधारकों को चरम मौसम की घटनाओं तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का बेहतर प्रबंधन करने में मदद मिलेगी तथा समुदाय की आघात सहनीयता बढ़ेगी।
- मिशन के घटक:
- उन्नत सेंसरों के साथ नेक्स्ट जेनरेशन रडार और उपग्रह प्रणालियों की तैनाती
- उन्नत पृथ्वी प्रणाली मॉडल का विकास
- रियल टाइम डेटा साझा करने के लिये GIS-आधारित स्वचालित निर्णय समर्थन प्रणाली
- कार्यान्वयन और समर्थन: मिशन का कार्यान्वयन भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान तथा राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र द्वारा किया जाएगा – जो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के तहत तीन प्रमुख संस्थान हैं।
- इस मिशन को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अन्य निकायों— भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र, राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र तथा राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा समर्थन दिया जाएगा।
- क्षेत्रीय लाभ: इससे कृषि, आपदा प्रबंधन और रक्षा में निगरानी एवं पूर्व चेतावनी प्रणाली में सुधार होगा, साथ ही ऊर्जा व जल संसाधन प्रबंधन को बेहतर बनाया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त इससे सुरक्षित विमानन को बढ़ावा मिलेगा तथा संधारणीय पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
अधिक पढ़ें: भारत का समुद्री इतिहास