हिमालयी मैग्पीज़
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिमालयी मैग्पीज़ के आवास और व्यवहार के बारे में गहराई से शोध किये जाने से शोधकर्त्ताओं का ध्यान आकर्षित किया है।
- ये अद्भुत (enchanting) पक्षी कश्मीर से लेकर म्याँमार तक के पहाड़ी परिदृश्यों को सुशोभित करते हैं, जिससे इस क्षेत्र में जीवंतता जुड़ जाती है।
हिमालयी मैग्पीज़ के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- कॉर्विडे परिवार और मैग्पीज़: मैग्पीज़ पक्षियों के कॉर्विडे परिवार से संबंधित हैं, जिनमें कौवे (Crows), जैस (Jays) और काले कौवे (Ravens) शामिल हैं।
- कॉर्विड्स को आमतौर पर शोर मचाने वाले, जिज्ञासु पक्षी माना जाता है जो विश्व भर की लोककथाओं में अक्सर अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के संकेतों से जुड़े होते हैं।
- अपने पौराणिक अर्थों के बावजूद, मैग्पीज़ की एक उल्लेखनीय उपस्थिति है, जिनमें से कुछ सबसे विशिष्ट प्रजातियाँ हिमालय में स्थित हैं।
- हिमालयी मैग्पीज़ को IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों को रेड लिस्ट में "कम संकटग्रस्त (least concern) " के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- हिमालयी मैगपाई प्रजातियाँ: कश्मीर से लेकर म्यांमार तक, हिमालय में कुछ निकट संबंधी नीली मैगपाई प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं।
- गोल्ड-बिल्ड मैगपाई (Urocissa flavirostris), जिसे येलो-बिल्ड ब्लू मैगपाई भी कहा जाता है, समुद्र तल से 2,000 और 3,000 मीटर के बीच उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्र में रहता है।
- रेड-बिल्ड मैगपाई (Urocissa erythroryncha) थोड़ी कम ऊँचाई पर पाई जाती है, जबकि ब्लू मैगपाई कम ऊँचाई पर पाई जाती है जहाँ मानव जनसंख्या अधिक होती है।
- गलियारे और पक्षी विविधता: येलो-बिल्ड और रेड-बिल्ड वाले मैग्पीज़ के सर्वोतम दृश्य पश्चिमी सिक्किम के ट्रैकिंग गलियारे में देखे जा सकते हैं, जो युकसोम शहर (1,780 मीटर) से गोचे-ला दर्रा (लगभग 4,700 मीटर) तक जाता है।
- हिमालयी मैग्पीज़ का घोंसला बनाना और उनका व्यवहार: येलो-बिल्ड ब्लू मैगपाई रोडोडेंड्रोन वृक्षों में घोंसले बनाते हैं, जो शीघ्रता के कारण टहनियों और घास द्वारा बनाए जाते हैं।
- ब्लू मैगपाई और रेड-बिल्ड मैगपाई दिखने में लगभग एक जैसे होते हैं, हालाँकि पीले-बिल्ड प्रजाति से थोड़े छोटे होते हैं।
- मैग्पीज़ को एकल पक्षियों के रूप में, जोड़े में या 8-10 पक्षियों के शोरगुल वाले झुंड में देखा जा सकता है।
- मैगपाई एकल पक्षियों के रूप में, जोड़े में, या 8-10 व्यक्तियों के कर्कश झुंड के रूप में पाए जा सकते हैं।
- खतरे और संरक्षण संबंधी चिंताएँ: वन क्षेत्रों में बढ़ती मानवीय गतिविधियाँ, निवास स्थान में परिवर्तन से निपटने के लिये मैग्पीज़ की क्षमता के संबंध में चिंताएँ बढ़ाती हैं।
- रोडोडेंड्रोन फूल जैसे पर्यटक आकर्षण स्थिरता संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं, क्योंकि ग्रामीण पर्यटन का समर्थन करने के लिये वन संसाधनों का सहारा ले सकते हैं।
ओरछा वन्य जीव अभ्यारण्य में अवैध खनन
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने ओरछा वन्यजीव अभयारण्य के इको-सेंसिटिव ज़ोन में पत्थर तोड़ने वाले और खनन खदानों के अवैध संचालन की शिकायत पर गौर करने के लिये एक समिति का गठन किया।
- NGT के अनुसार, 337 टन रासायनिक अपशिष्ट के निपटान, भूजल प्रदूषण, पाइप से पानी की कमी, और अनुमेय सीमा से अधिक लौह, मैंगनीज तथा नाइट्रेट सांद्रता की निगरानी के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
ओरछा वन्यजीव अभयारण्य के विषय में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- परिचय:
- इसकी स्थापना 1994 में हुई थी और यह एक बड़े वन क्षेत्र के भीतर स्थित है।
- यह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच सीमा क्षेत्र में बेतवा नदी (यमुना की एक सहायक नदी) के पास स्थित है, जो इस अभयारण्य के अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता में योगदान देती है।
- जीव प्रजाति:
- यह विभिन्न प्रकार के जीवों का आवास स्थल है, जिनमें चित्तीदार हिरण, ब्लू बुल, मोर, जंगली सुअर, बंदर, सियार, नीलगाय, स्लॉथ भालू और विभिन्न पक्षी प्रजातियाँ शामिल हैं।
- बर्डवॉचिंग विशेष रूप से लोकप्रिय है, अभयारण्य के नदी पारिस्थितिकी तंत्र में पक्षियों की लगभग 200 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें निवासी पक्षी और प्रवासी प्रजातियाँ जैसे जंगली मुर्गे, मोर, हंस, जंगल बुश बटेर, मिनीवेट आदि शामिल हैं।
- वन प्रकार:
- इसमें दक्षिणी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन हैं। अभयारण्य में धावा, करधई, सागौन, पलाश और खैर के घने वृक्ष हैं, जो इसकी समृद्ध जैवविविधता एवं प्राकृतिक वातावरण में योगदान करते हैं।
पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र क्या हैं?
- परिचय:
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016) ने निर्धारित किया कि राज्य सरकारों को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत राष्ट्रीय उद्यानों एवं वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं के 10 किमी. के भीतर आने वाली भूमि को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZs) अथवा पर्यावरण नाजुक क्षेत्र के रूप में घोषित करना चाहिये।
- ESZs के आसपास गतिविधियाँ:
- निषिद्ध गतिविधियाँः वाणिज्यिक खनन, प्रमुख पनबिजली परियोजनाओं (HEP) की स्थापना, लकड़ी का वाणिज्यिक उपयोग।
- विनियमित गतिविधियाँः होटलों और रिसॉर्ट्स की स्थापना, प्राकृतिक जल का वाणिज्यिक उपयोग, कृषि प्रणाली में भारी बदलाव, जैसे भारी प्रौद्योगिकी, कीटनाशकों आदि को अपनाना, सड़कों को चौड़ा करना।
- अनुमत गतिविधियाँ: वर्षा जल संचयन, जैविक खेती, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग।
- ESZs का महत्त्व:
- मुख्य पारिस्थितिक क्षेत्रों की रक्षा करना:
- यह विनिर्माण और प्रदूषण जैसी गतिविधियों के प्रभाव को कम करने वाले बफर ज़ोन के रूप में कार्य करता है।
- वन्य जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरों को कम करता है।
- प्राकृतिक आवासों के भीतर स्वस्थाने संरक्षण को बढ़ावा देता है।
- सतत् विकास को सुनिश्चित करना:
- असंतुलन को कम करके मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करता है।
- निकटस्थ समुदायों में सतत् प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है।
- उच्च-सुरक्षा और निम्न-प्रतिबंध क्षेत्रों के बीच एक संक्रमण क्षेत्र निर्मित करता है।
- मुख्य पारिस्थितिक क्षेत्रों की रक्षा करना:
और पढ़ें: वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स;प्रश्न. भारत में संरक्षित क्षेत्रों की निम्नलिखित में से किस एक श्रेणी में स्थानीय लोगों को बायोमास एकत्र करने और उपयोग करने की अनुमति नहीं है? (2012) (a) बायोस्फीयर रिज़र्व उत्तर: (b) |
कैटाटुम्बो आकाशीय बिजली
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
कैटाटुम्बो आकाशीय बिजली एक प्राकृतिक घटना है जो वेनेज़ुएला में कैटाटुम्बो नदी के ऊपर घटित होती है, जहाँ आकाशीय बिजली लगातार गिरती रहती है।
- यहाँ एक वर्ष में कुल 160 रातों में आकाशीय बिजली गिरती है तथा अपने चरम पर औसतन, प्रति मिनट 28 बार बिजली गिरती है।
- यह घटना मुख्य रूप से कैटाटुम्बो नदी के मुहाने पर घटित होती है, जहाँ यह लैटिन अमेरिका की सबसे बड़ी झील माराकाइबो झील से मिलती है। यह पृथ्वी के सबसे पुराने जल निकायों में से एक है।
- कैरेबियन सागर से गर्म, नम हवा एंडीज़ पर्वतमाला की ओर जाती है, जहाँ यह चोटियों से आने वाली ठंडी हवा से टकराती है।
- यह टकराव एक प्रकार का तूफान उत्पन्न करता है, क्योंकि गर्म हवा स्थानीय परिदृश्य के आकार के कारण तेज़ी से आगे की ओर बढ़ती है।
- यह ठंडा और संघनित होता है, जिससे विशाल क्यूम्यलोनिंबस बादल निर्मित होते हैं। तेज़ हवाओं और तापमान का आंतरिक संयोजन इन बादलों के भीतर विद्युत आवेश उत्पन्न कर देता है।
- स्थैतिक विद्युत आवेश से भरे हुए क्यूम्यलोनिंबस बादल कभी-कभी 5 किमी से भी अधिक ऊँचाई तक पहुँच जाते हैं। जब बादलों के भीतर विद्युत आवेश बहुत अधिक हो जाता है, तो यह आवेश आकाशीय बिजली का रूप ले लेता है।
और पढ़ें: आकाशीय बिजली पर रिपोर्ट
अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में रोकथाम, जागरूकता, शीघ्र निदान और रोगियों के लिये गुणवत्तापूर्ण देखभाल सुनिश्चित करने के माध्यम से थैलेसीमिया से लड़ने हेतु हितधारकों को एकजुट करने के लिये 8 मई को अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस मनाया गया।
- अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस 2024 की थीम, "जीवन को सशक्त बनाना, प्रगति को गले लगाना: सभी के लिये न्यायसंगत और सुलभ थैलेसीमिया उपचार, (Empowering Lives, Embracing Progress: Equitable and Accessible Thalassaemia Treatment for All)" का फोकस उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा देखभाल तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करना है।
- अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस के दौरान रोग की व्यापकता को कम करने के साधन के रूप में प्रजनन और बाल स्वास्थ्य (Reproductive and Child Health- RCH) कार्यक्रम में अनिवार्य थैलेसीमिया परीक्षण के एकीकरण की आवश्यकता को बढ़ावा दिया गया।
- RCH कार्यक्रम मातृ एवं शिशु मृत्यु दर तथा कुल प्रजनन दर में कमी के लिये RCH लक्ष्य प्रदान करने हेतु राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NHM) के सहयोग से वर्ष 2005 में शुरू किया गया एक व्यापक फ्लैगशिप कार्यक्रम है।
- इस कार्यक्रम में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि भारत में लगभग 1 लाख थैलेसीमिया के रोगी हैं और प्रत्येक वर्ष लगभग 10,000 नए मामले सामने आते हैं। सामान्य जनसंख्या के मध्य थैलेसीमिया के विषय में व्यापक जागरूकता बढ़ाना ज़रूरी है।
भारत और भूटान के बीच 5वीं सीमा शुल्क बैठक
स्रोत: पी.आई.बी.
भारत और भूटान के बीच 5वीं संयुक्त सीमा शुल्क समूह (JGC) की बैठक 6-7 मई, 2024 को लेह, लद्दाख में संपन्न हुई।
- बैठक में नए भूमि सीमा शुल्क केंद्र खोलने तथा नए व्यापार मार्गों को अधिसूचित करने, बुनियादी ढाँचे के विकास, पारगमन प्रक्रियाओं के स्वचालन एवं डिजिटलीकरण, तस्करी की रोकथाम, समन्वित सीमा पार प्रबंधन और सीमा शुल्क डेटा के आदान-प्रदान जैसे द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की गई।
- ये बैठकें भारत-भूटान सीमा पर स्थित 10 भूमि सीमा शुल्क केंद्रों (पश्चिम बंगाल में 6 और असम में 4) पर सुचारू सीमा शुल्क निकासी के लिये संपर्क एवं व्यापार हेतु बुनियादी ढाँचे की वृद्धि करने के लिये हो रहीं हैं।
- आयात एवं निर्यात दोनों के मामले में भूटान, भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदार है।
- दोनों देशों के मध्य व्यापार 2014-15 में 484 मिलियन अमेरिकी डॉलर से तीन गुना से भी अधिक बढ़कर 2022-23 में 1,615 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- यह भूटान के कुल व्यापार का लगभग 80% भाग है।
- भूटान ने कार्यशालाओं, सेमिनारों तथा विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से भूटान में क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण एवं कौशल विकास करने के लिये भारत के केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड को धन्यवाद दिया।
- भूटान के साथ संपर्क बढ़ाना भारत की 'नेवरहुड फर्स्ट' और 'एक्ट ईस्ट' नीति के लिये महत्त्वपूर्ण है।
और पढ़ें: भारत-भूटान संबंध
कनेर का फूल
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में एक महिला द्वारा गलती से कनेर (ओलियंडर) की विषैली पत्तियाँ चबाने से मृत्यु हो गई, इस कारण केरल ने मंदिर के प्रसाद में ओलियंडर/कनेर के फूलों (Nerium Oleander) (स्थानीय रूप से अराली के नाम से जाना जाता है) के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- कनेर (ओलियंडर), जिसे रोज़बे भी कहा जाता है, एक व्यापक रूप से उगाया जाने वाला पौधा है जो विश्वभर के उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाया जाता है।
- यह सूखे का सामना करने की अपनी क्षमता के लिये लोकप्रिय है तथा इसका उपयोग आमतौर पर भूनिर्माण एवं सजावटी उद्देश्यों के लिये किया जाता है।
- एक पारंपरिक औषधि के रूप में कनेर (ओलियंडर):
- यह कुष्ठ रोग जैसी दुःसाध्य और निरंतर बनी रहने वाली त्वचा की बीमारियों के इलाज के लिये आयुर्वेद द्वारा निर्धारित है।
- भावप्रकाश (आयुर्वेद पर एक प्रसिद्ध ग्रंथ) में इसे एक ज़हरीले पौधे के रूप में उल्लेखित किया है और संक्रमित घावों, त्वचा रोगों, रोगाणुओं एवं परजीवियों तथा खुजली के उपचार में इसके उपयोग की अनुशंसा की है।
- इस पौधे में कार्डियक ग्लाइकोसाइड्स (एक प्रकार का रसायन) होता है, जिसमें ओलेंड्रिन, फोलिनेरिन और डिजिटॉक्सिजेनिन जैसे तत्त्व सम्मिलित हैं, जो हृदय पर औषधीय प्रभाव डाल सकते हैं।
- कनेर विषाक्तता के लक्षणों में मतली, दस्त, उल्टी, चकत्ते, भ्रम, चक्कर आना, अनियमित हृदय गति, मंद ह्रदय गति और गंभीर मामलों में मृत्यु होना शामिल हैं।
और पढ़े: भारत में वनों के प्रकार