उष्ण मानसूनी/मानसूनी जलवायु

भूमिका

मानसूनी जलवायु (Am), उष्ण आर्द्र जलवायु (A) का एक प्रकार है।

  • वस्तुत: उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में अर्थात् कर्क रेखा से मकर रेखा के मध्य उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु का विकास हुआ है।
  • कर्क एवं मकर रेखा के मध्य विभिन्न अक्षांशों पर (कर्क रेखा एवं मकर रेखा सहित) वर्ष भर सूर्य की किरणों के लंबवत् पड़ने के कारण ITCZ (Inter Tropical Convenience Zone-अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र) की उपस्थिति इस प्रकार की जलवायु को उष्ण एवं आर्द्र बना देती है।

मानसूनी जलवायु (Mansoon Climate)

  • मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द ‘मौसिम’ से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- मौसम।
  • मानसून का अभिप्राय एक वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन से है।
  • वस्तुत: वृहत् स्तर पर चलने वाली स्थलीय एवं सागरीय पवन ही मानसून है।
  • भूमध्यरेखी जलवायु के विपरीत मानसूनी जलवायु में हवाओं में ऋतुवत परिवर्तन के साथ आर्द्र एवं शुष्क मौसम पाए जाते हैं।
  • सामान्यत: मानसूनी जलवायु में तीन प्रकार का मौसम यथा- ग्रीष्म, शीत एवं वर्षा पाया जाता है।

उष्ण मानसूनी जलवायु का वितरण

  • इस प्रकार की जलवायु का विकास 5°-30° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य हुआ है।
  • आद्रता उष्ण मानसून गर्मियों में होता है, जबकि सर्दियों में मानसून शुष्क रहता है।
  • इस प्रकार की जलवायु का विकास भारतीय उपमहाद्वीप, बर्मा, थाईलैंड, लाओस, कम्बोडिया, वियतनाम, दक्षिणी चीन तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में हुआ है।

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मानसूनी जलवायु का वितरण:

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  • इसके अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय अफीका गिनी तट, सियरा लियोन, लाइबेरिया तथा आइबरीकोस्ट से मानसूनी प्रवृत्त्तियाँ पाई जाती है।

मानसूनी जलवायु की उत्पत्ति

  • पूर्व सिद्धांतानुसार स्थलीय एवं जलीय सतह के गर्म एवं ठंडा होने की दर में अंतर मानसूनी जलवायु के विकास का प्रमुख कारण है।
  • गर्मियों के मौसम में/गर्मियों के दौरान जब सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लंबवत् पड़ती है तब मध्य एशिया में निम्न वायुदाब का विकास होता है।
  • क्योंकि स्थल की अपेक्षा जल देर से गर्म होता है अत: जलीय भाप का तापमान कम होने के कारण अपेक्षाकृत उच्च वायुदाब होता है। ध्यातव्य है कि इसी समय दक्षिणी गोलार्द्ध में ठंड का मौसम होता है जिसके परिणामस्वरूप ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के आंतरिक भाग में अपेक्षाकृत और अधिक उच्च वायुदाब का विकास होता है।
  • उच्च वायुदाब के क्षेत्र से जावा-सुमात्रा द्वीपों की ओर दक्षिण-पूर्व मानसून के रूप में हवाएँ प्रवाहित होती है जो विषुवत रेखा को पार करके कोरियोलिस बल के प्रभाव से अपने दाईं ओर मुड़कर दक्षिण-पश्चिम मानसून के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करती हैं। इस प्रकार मानसूनी जलवायु का विकास होता है।

तापमान संबंधी विशेषताएँ

  • महीने का औसत तापमान 18° सेंटीग्रेड से अधिक रहता है।
  • उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु वाले तटवर्ती प्रदेशों में तापमान वर्ष भर अधिक रहता है।
  • ग्रीष्मकाल में तापमान सर्वाधिक दर्ज किया जाता है, वहीं वर्षा ऋतु में मेघाच्छादन एवं बारिश के कारण तापमान में गिरावट आती है।
  • गर्मियों में तापमान 30°-45°C तक पाया जाता है, वही गर्मियों का औसत तापमान 30°C होता है।
  • ठंड के मौसम में तापमान 15°-30°C तक पाया जाता है, वही औसत तापमान 20°-25°C होता है।
  • कभी-कभी तापमान की अधिकता के कारण भारत के मैदानी भागों (उत्तर का मैदान) में गर्म हवाएँ यानी ‘लू’ (Loo) चलने लगती है।
  • उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु का वार्षिक तापांतर 2°-11°C तक पाया जाता है।

वर्षा (Precipitation)

  • उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु प्रदेशों में भारी मात्रा में वर्षा होती है, साथ ही शुष्क ऋतु भी होती है।
  • औसत वार्षिक वर्षा सामान्यत: 200-250 सेंटीमीटर तक होती है, वहीं कुछ क्षेत्रों में 350 सेंटीमीटर तक होती है।
  • चेरापूँजी एवं मॉसिनराम में विशेष पर्वतीय (Oregraphy) स्थितियों के कारण 1000 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है। वस्तुत: मेघालय की पहाड़ियाँ दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनों के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करती है जिसके कारण भारी मात्रा  में पर्वतीय वर्षा होती है।
  • उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु प्रदेशों में वर्षा की मात्रा एवं विवरण में तटों की दिशा एवं भू-स्थलाकृतियों के आधार पर भिन्नता पाई जाती है। वस्तुत: पवन अभिमुख ढालों (Wind ward slopes) पर भारी वर्षा होती है, वहीं पवन विमुख (Lee ward slopes) पर वृष्टि छाया प्रभाव के कारण अल्प मात्रा में वर्षा होती है।
  • गौरतलब है कि मानूसनी जलवायु प्रदेशों में ‘वर्षा की परिवर्तनशीलता’ प्रमुख लक्षण है। वर्षा के वार्षिक औसत में वार्षिक एवं स्थानिक दोनों प्रकार के अंतर पाए जाते हैं।

मौसम (Seasons)

  • विभिन्न मौसमों का पाया जाना मानसूनी जलवायु प्रदेशों की प्रमुख विशेषता है।
  • मानूसनी जलवायु में 3 प्रकार का मौसम पाया जाता है-

ठंडा एवं शुष्क मौसम (अक्तूबर-फरवरी):

  • भारतीय प्रायद्वीप उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण थोड़ी वर्षा प्राप्त करता है। उत्तर भारत में कुछ मात्रा में चक्रवातीय वर्षा भी होती है।

ग्रीष्म एवं शुष्क मौसम (The Hot and Dry Season) (मार्च से मध्य जून)

  • सूर्य के उत्तरायण होने के साथ-साथ तापमान में वृद्धि होती है तथा तटीय क्षेत्रों में हल्की बारिश भी होती है।
  • मध्य जून से सितंबर तक वर्षा का मौसम होता है। भारतीय प्रायद्वीप में दक्षिण-पश्चिम मानसून से पर्याप्त वर्षा होती है।
  • मानसूनी जलवायु प्रदेशों में वर्षा का अधिकांश भाग इसी मौसम में प्राप्त होता है जो कि उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु की एक प्रमुख विशेषता है।

प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)

  • इस प्रकार की जलवायु में प्राकृतिक वनस्पतियों के प्रकार में पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है। वस्तुत: यहाँ प्राकृतिक वनस्पतियों की भिन्नता वर्षा की मात्रा एवं विवरण द्वारा निर्धारित होती है।
  • अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों के प्रकार की वनस्पति पाई जाती है, जबकि साधारण वर्षा वाले क्षेत्रों में पर्णपाती वन मिलते हैं। अत्यधिक कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कटीली झाड़ियाँ पाई जाती है।
  • शुष्क मौसम में प्राय: पौधे अपनी पत्तियाँ गिरा देते है जिसे पतझड़ कहते हैं।

अर्थव्यवस्था एवं जनसंख्या

(Economy and Population in Mansoon Climate)

  • मानूसनी जलवायु प्रदेशों में जनसंख्या अधिक जनसंख्या घनत्व पाया जाता है।
  • सामान्यत: ये प्रदेश विकासशील अथवा अल्प-विकसित है। जीवन निर्वाह कृषि यहाँ का प्रमुख व्यवसाय है।
  • सिंचाई की पर्याप्त सुविधाओं/व्यवस्थाओं के साथ साधन कृषि की जाती है।
  • पूर्वोत्तर भारत एवं दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में स्थानांतरित कृषि भी होती है।
  • चावल, कपास, गन्ना, जूट, मसाले आदि यहाँ की प्रमुख फसलें हैं। भेड़ एवं बकरी पालन घरेलू और व्यापारिक दोनों उद्देश्यों से किया जाता है।
  • पशुपालन व्यवसाय शीतोष्ण प्रदेशों जैसा लाभदायक नहीं होता।
  • इन जलवायु प्रदेशों की आर्थिक गतिविधियों में मानसून बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जनसंख्या का अधिकांश भाग कृषि में संलग्न रहता है तथा अधिकांश कृषि मानूसनी वर्षा पर निर्भर करती है। कृषि यहाँ का मुख्य व्यवसाय  है।
  • चावल मुख्य खाद्य फसल है। इसके अतिरिक्त मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहूँ, दालें आदि भी उगाई जाती हैं।
  • गन्ना एवं कपास मुख्य वाणिज्यिक फसलें हैं। पहाड़ी उच्च भूमि स्थानों पर चाय एवं कॉफी प्रमुख रोपण फसलें है।
  • वन उपज काफी महत्त्वपूर्ण है जिसका उपयोग घरेलू एवं व्यावसायिक दोनों स्तरों पर किया जाता है।
  • टीक, नीम, बरगद, आम, साल, यूकेलिप्टस आदि प्रमुख वृक्षों की लकड़ी का उपयोग व्यावसायिक स्तर पर किया जाता है।
  • गौरतलब है कि स्था‌नांतरित कृषि इन प्रदेशों में कृषि की एक प्रमुख विशेषता है।