नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 09 Apr, 2024
  • 32 min read
प्रारंभिक परीक्षा

असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य में ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशाला

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

हाल ही में दिल्ली वन विभाग ने दुर्लभ देशी वृक्षों के संरक्षण हेतु असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य में एक टिशू कल्चर लैब (ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशाला) की स्थापना के लिये पहल की है।

  • लैब का प्राथमिक उद्देश्य दिल्ली के नियंत्रित वातावरण में लुप्तप्राय देशी वृक्षों को उगाना और आक्रामक प्रजातियों के कारण पुनर्जनन संबंधी चुनौतियों का सामना करने वाली प्रजातियों के पौधों को पुनर्जीवित करना है।

ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशाला के बारे में जानने योग्य तथ्य:

  • ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशाला:
  • अन्य समान प्रयोगशालाएँ:
  • अनुप्रयोग:
    • अरावली योजना:
      • कुल्लू (बाहरी वृक्ष), पलाश, दूधी और धौ जैसी ऊँचे तने वाले पौधों का पुनर्जनन आक्रामक प्रजातियों द्वारा बाधित होता है, जिसके परिणामस्वरूप जीवित रहने की दर कम होती है, बड़े पैमाने पर इसे केवल टिशू कल्चर विशेष रूप से शूट कल्चर (shoot culture) के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
      • यह प्रयोगशाला लुप्तप्राय औषधीय पौधों के संवर्द्धन में भी उपयोगी होगी।
    • सफलता की कहानियाँ:
      • टिशू कल्चर कृषि में अत्यधिक प्रभावी साबित हुआ है, विशेष रूप से केले, सेब, अनार और जेट्रोफा जैसी फसलों के साथ, जो पारंपरिक खेती के तरीकों की तुलना में अधिक उपज प्रदान करता है।
  • मुद्दे:
    • जैवविविधता विशेषज्ञों ने तर्क दिया है कि आनुवंशिक एकरूपता और विशिष्ट रोगों की चपेट में आने से बचने के लिये क्लोनिंग को "अत्यंत दुर्लभ वृक्षों" तक सीमित किया जाना चाहिये।
      • क्लोनिंग के परिणामस्वरूप प्रतिबंधित आनुवंशिक विविधता हो सकती है और एक ही पेड़ या पौधे के क्लोन बन सकते हैं।
        • इससे बचने के लिये, किसी को अपने आप को एक ही बीज किस्म तक सीमित नहीं रखना चाहिये, इसके बजाय, कई पेड़ों के क्लोन को रोकने के लिये विभिन्न मूल बीज या बीज किस्मों का उपयोग करना चाहिये।
    • विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली में आमतौर पर पाई जाने वाली खैर, ढाक और देसी बबूल जैसी प्रजातियाँ लुप्तप्राय या लगभग विलुप्त प्रजातियों के लिये संभावित लाभ के बावजूद, सार्वजनिक धन की बर्बादी कर सकती हैं।

Steps_in_Plant_Tissue_Culture

    ऊतक संवर्द्धन क्या है?

    • टिशू कल्चर को सूक्ष्म-प्रसार (micro-propagation) के रूप में भी जाना जाता है, इन-विट्रो टिशू का उपयोग करके एक मूल पौधे से कई पौधों का उत्पादन करने की अनुमति देता है जो एक नियंत्रित वातावरण के तहत ऊष्मायन किया जाता है।
    • पादप ऊतक संवर्द्धन के प्रकार:
      • कैलस कल्चर: इसमें एक्सप्लांट से कोशिकाओं (कैलस) के अविभेदित द्रव्यमान का विकास शामिल है।
      • सेल सस्पेंशन कल्चर: एक तरल माध्यम में विशिष्ट कोशिकाओं या कोशिकाओं के निम्न समुच्चय का संवर्द्धन ।
      • परागकोश/माइक्रोस्पोर कल्चर: परागकणों या परागकोषों से अगुणित पौधों के उत्पादन के लिये उपयोग किया जाता है।
      • प्रोटोप्लास्ट कल्चर: इसने कोशिका भित्ति के बिना पादप कोशिकाओं को पृथक किया।
    • पादप ऊतक संवर्द्धन के अनुप्रयोग
      • सूक्ष्म प्रसार (Micropropagation): पौधों के ऊतकों के छोटे-छोटे टुकड़ों को संवर्द्धित करके पौधों में तेज़ी से क्लोनल वृद्धि करना।
      • सोमा-क्लोनल विविधता (Soma-clonal Variation): इसमें पौधों की कोशिकाओं के बीच आनुवंशिक भिन्नता का अध्ययन होता है।
      • ट्राँसज़ेनिक पौधे: पौधों की कोशिकाओं में विदेशी जीन (ट्रांसजेन) का परिचय और अभिव्यक्ति।
      • उत्परिवर्तनों का प्रेरण और चयन: विशिष्ट लक्षणों हेतु उत्परिवर्तजन को प्रेरित करने के लिये उत्परिवर्तनों का उपयोग करना।

    पशु ऊतक संवर्द्धन:

    • पशु ऊतक संवर्द्धन एक उपयुक्त कृत्रिम वातावरण में जानवरों से पृथक कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों का इन-विट्रो रखरखाव और प्रसार है।
    • पशु ऊतक संवर्द्धन में प्रयुक्त कोशिकाएँ आमतौर पर बहुकोशिकीय यूकेरियोट्स और उनकी स्थापित कोशिका रेखाओं से प्राप्त की जाती हैं।
    • यह तकनीक कोशिका कार्यों, तंत्रों और अनुप्रयोगों के अध्ययन की अनुमति देती है।
    • पशु ऊतक संवर्द्धन ने अनुसंधान और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, जो विभिन्न क्षेत्रों में कोशिका व्यवहार एवं अनुप्रयोगों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।

    असोला वन्यजीव अभ्यारण्य:

    • असोला भाटी  वन्यजीव अभयारण्य एक महत्त्वपूर्ण वन्यजीव गलियारे के अंत में स्थित है जो अलवर में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान से शुरू होता है और हरियाणा के मेवात, फरीदाबाद तथा गुरुग्राम ज़िलों से होकर गुजरता है।
    • इस क्षेत्र में उल्लेखनीय दैनिक तापमान भिन्नता के साथ अर्धशुष्क जलवायु भी शामिल है।
    • वन्यजीव अभयारण्य में वनस्पति मुख्य रूप से खुली काँटेदार झाड़ियाँ हैं। देशी पौधों में जेरोफाइटिक अनुकूलन जैसे काँटेदार उपांग, तथा मोम-लेपित, रसीले एवं टोमेंटोज़ पत्ते होते हैं।
    • प्रमुख वन्यजीव प्रजातियों में मोर, कॉमन वुडश्राइक, सिरकीर मल्कोहा, नीलगाय, गोल्डन जैकल्स, चित्तीदार हिरण आदि शामिल हैं।

    और पढ़ें… पादप ऊतक संवर्द्धन

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. भारत में गन्ने की खेती में वर्तमान प्रवृत्तियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

    1. जब 'बड चिप सेटलिंग्स (Bud Chip Settlings)' को नर्सरी में उगाकर मुख्य कृषि भूमि में प्रतिरोपित किया जाता है, तब बीज सामग्री में पर्याप्त बचत होती है। 
    2. जब सैट्स का सीधे रोपण किया जाता है, तब एक कलिका (Single Budded) सैट्स का अंकुरित प्रतिशत कई कलिका सैट्स की तुलना में बेहतर होता है। 
    3. खराब मौसम की दशा में यदि सैट्स का सीधे रोपण होता है तो एक कलिका सैट्स का जीवित बचना बड़े सैट्स की तुलना में बेहतर होता है। 
    4. गन्ने की खेती उत्तक संवर्द्धन से तैयार की गई सैटलिंग से की जा सकती है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 3
    (c) केवल 1 और 4
    (d) केवल 2, 3 और 4

    उत्तर: (c) 


    प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)

    निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :

    1. मुसंबी के पौधे का प्रवर्द्धन कलमबंध तकनीक द्वारा होता है।
    2. चमेली के पौधे का प्रवर्द्धन दाब तकनीक द्वारा होता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2

    उत्तर: (c)


    प्रारंभिक परीक्षा

    हाथी गलियारों में भूदृश्य पारिस्थितिकी

    स्रोत: डाउन टू अर्थ

    हाल ही में केवल क्षेत्र विशेष पर निर्भर रहने के बजाय हाथी गलियारों को प्रभावी ढंग से पहचानने और पुनर्स्थापित करने के लिये भूदृश्य पारिस्थितिकी महत्त्वपूर्ण हो गई है।

    • भूदृश्य पारिस्थितिकी एक परिदृश्य के अस्थायी (समय-संबंधित) और स्थानिक (अंतरिक्ष-संबंधित) पहलुओं तथा जीवों के मध्य परस्पर क्रिया का अध्ययन है
    • मुख्य क्षेत्रों एवं गलियारों का पता लगाने में प्रगति के साथ भूदृश्य पारिस्थितिकी अधिक सटीक हो गई है और अब यह तीन कारकों पर आधारित है: फील्ड डेटा का गहन उपयोग, भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information Systems-GIC) में सुधार तथा भू-स्थानिक डेटा व अनुकूलित एल्गोरिदम की उपलब्धता।

    हाथी गलियारे क्या हैं?

    • परिचय:
      • हाथी गलियारों को भूमि के एक खंड के रूप में वर्णित किया जा सकता है जो हाथियों के दो अथवा दो से अधिक अनुकूल आवास स्थानों के बीच आवागमन में सुलभता प्रदान करता है।
    • भारत में हाथी गलियारों की स्थिति:
      • भारत के एलीफैंट कॉरिडोर से प्रमुख निष्कर्ष, 2023 रिपोर्ट:
        • इस रिपोर्ट में 62 नए गलियारों की वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, जो वर्ष 2010 के बाद से बने गलियारों में 40% की वृद्धि को दर्शाते हैं। वर्तमान में भारत में कुल 150 गलियारे मौजूद हैं।
        • पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक हाथी गलियारे हैं, जिनकी कुल संख्या 26 है, जो कुल गलियारों का 17% है।
        • पूर्वी-मध्य क्षेत्र 35% (52 गलियारे) का योगदान देता है तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र 32% (48 गलियारे) के साथ दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
        • दक्षिणी भारत में 32 हाथी गलियारे पंजीकृत हैं, जो कुल गलियारों का 21% है, जबकि उत्तरी भारत में सबसे कम 18 गलियारे हैं, जो कि देश मों मौजूद कुल गलियारों का 12% हैं।
        • हाथियों ने महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र और कर्नाटक की सीमा से लगे दक्षिणी महाराष्ट्र में अपनी सीमा का विस्तार किया है।

    Elephant_Reserves

    हाथी:

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. भारतीय हाथियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

    1. हाथियों के समूह का नेतृत्व मादा करती है। 
    2. हाथी की अधिकतम गर्भावधि 22 माह तक हो सकती है। 
    3. सामान्यत: हाथी में 40 वर्ष की आयु तक ही संतति पैदा करने की क्षमता होती है। 
    4. भारत के राज्यों में हाथियों की सर्वाधिक संख्या केरल में है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 2 और 4
    (c) केवल 3
    (d) केवल 1, 3 और 4

    उत्तर: (A)


    प्रारंभिक परीक्षा

    वन नेशन,वन टाइम के लिये परमाणु घड़ियाँ

    स्रोत: लाइव मिंट

    चर्चा में क्यों?

    भारत भविष्य में देश भर में परमाणु घड़ियाँ स्थापित करके अपनी राष्ट्रीय रक्षा क्षमताओं के साथ ही अपने  सटीक समय आकलन में सुधार करना चाहता है।

    • संपूर्ण भारत में परमाणु घड़ियों की स्थापना का उद्देश्य एकरूपता सुनिश्चित करते हुए सभी डिजिटल उपकरणों को भारतीय मानक समय (IST) के साथ समांतर करना है।
      • इन परमाणु घड़ियों को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अंर्तगत राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (NPL) द्वारा स्थापित किया जा रहा है।

    परमाणु घड़ियाँ क्या हैं?

    • परिचय: 
      • परमाणु घड़ी, एक ऐसी घड़ी है, जो अपनी असाधारण सटीकता के लिये जानी जाती है और साथ ही परमाणुओं की विशिष्ट अनुनाद आवृत्तियों, आमतौर पर सीज़ियम अथवा रुबिडियम के उपयोग से संचालित होती है।
      • इसका आविष्कार लुईस एसेन ने वर्ष 1955 में किया था।
      • परमाणु घड़ियों के अत्यधिक परिशुद्धता स्तर की व्याख्या इस तथ्य से की जा सकती है कि वे लगभग प्रति 100 मिलियन वर्ष में एक सेकंड कम हो जाता है।
      • वर्तमान में, भारत में परमाणु घड़ियाँ अहमदाबाद एवं फरीदाबाद में संचालित हो रही हैं।
    • परमाणु घड़ी के प्रकार:
      • सबसे अधिक उपयोग किये जाने वाले सीज़ियम परमाणु बीम, हाइड्रोजन मेसर और रुबिडियम गैस सेल हैं।
      • सीज़ियम घड़ी में सटीकता और बेहतर दीर्घकालिक स्थिरता होती हैहाइड्रोजन मेज़र में केवल कुछ घंटों तक की अवधि के लिये सबसे अच्छी स्थिरता होती है।
    • परमाणु घड़ियों का कार्य:
      • परमाणु घड़ियों के इलेक्ट्रॉनिक घटक, माइक्रोवेव विद्युत चुम्बकीय विकिरण (EM) द्वारा नियंत्रित होते हैं। सीज़ियम या रुबिडियम परमाणुओं में क्वांटम संक्रमण को प्रेरित करने के लिये इस विकिरण की सटीक आवृत्ति को बनाए रखना आवश्यक है।
      • सीज़ियम या रूबिडियम परमाणुओं का क्वांटम संक्रमण (ऊर्जा परिवर्तन) केवल तभी प्रेरित होता है, जब विकिरण को असाधारण विशिष्ट आवृत्ति पर बनाए रखा जाता है।
      • एक परमाणु घड़ी में इन क्वांटम संक्रमणों को फीडबैक लूप में देखा और बनाए रखा जाता है। फिर इन क्वांटम संक्रमणों में उत्पन्न तरंगों को सेकंड पर पहुँचने के लिये गिना जाता है।

    SI आधारित यूनिट: सेकेंड

    सेकेंड का चिह्न: s, समय की SI यूनिट है। इसे सीज़ियम आवृत्ति Avcs के निश्चित संख्यात्मक मान को लेते हुए परिभाषित किया गया है, सीज़ियम-133 परमाणु की अपरिवर्तित ग्राउंड-स्टेट हाइपरफाइन संक्रमण आवृत्ति, यूनिट हर्ट्ज में व्यक्त करने पर 9 192 631 770 होती है, जो s¹ के बराबर है। 

    भारत अपनी परमाणु घड़ियाँ क्यों विकसित कर रहा है?

    • पृष्ठभूमि:
      • यह पहल कारगिल युद्ध के दौरान ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) की जानकारी न मिलने के कारण प्रारंभ की गई थी क्योंकि रक्षा, साइबर सुरक्षा और ऑनलाइन लेनदेन हेतु स्वतंत्र समय निर्धारण क्षमताओं का अस्तित्व महत्त्वपूर्ण है।
    • उन्नत सुरक्षा उपायों की आवश्यकता:
      • उपग्रह-आधारित समय प्रसार सहायक द्वारा आपात स्थिति या युद्ध के दौरान संभावित व्यवधानों के विरुद्ध सुरक्षा बढ़ाने के लिये ऑप्टिकल केबल के माध्यम से परमाणु घड़ियों को जोड़ने के प्रयास चल रहे हैं।
      • भारत विदेशी परमाणु घड़ियों पर निर्भरता कम करने के लिये, विशेष रूप से भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS), जिसे NavIC भी कहा जाता है, जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के लिये अपनी परमाणु घड़ियाँ विकसित कर रहा है।
        • स्वदेशी परमाणु घड़ियाँ विकसित करने से भारत को अपने नेविगेशन सिस्टम पर पूर्ण नियंत्रण रखने की अनुमति मिलती है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीकी स्वतंत्रता दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण है।

    INDIAN_REGIONAL_NAVIGATION_SATELLITE_SYSTEM

    और पढ़ें… इसरो का नया NavIC उपग्रह NVS-01

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. निम्नलिखित में से किस देश का अपना सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम है? (2023)

    (a) ऑस्ट्रेलिया
    (b) कनाडा
    (c) इज़रायल
    (d) जापान

    उत्तर: (d)

    विश्व में परिचालन नेविगेशन प्रणाली:

    • अमेरिका की GPS प्रणाली
    • रूस की GLONASS प्रणाली
    • यूरोपीय संघ की गैलीलियो प्रणाली
    • चीन की  BeiDou प्रणाली
    • भारत की नाविक प्रणाली
    • जापान की QZSS प्रणाली

    अतः विकल्प (d) सही है।


    प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

    1. IRNSS के भूस्थिर में तीन उपग्रह और भू-समकालिक कक्षाओं में चार उपग्रह हैं।
    2. IRNSS पूरे भारत को कवर करता है और लगभग 5500 वर्ग किमी. इसकी सीमाओं से परे है।
    3. 2019 के मध्य तक भारत के पास पूर्ण वैश्विक कवरेज के साथ अपना स्वयं का उपग्रह नेविगेशन सिस्टम होगा।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1
    (b) केवल 1 और 2
    (c) केवल 2 और 3
    (d) उपरोक्त में से कोई नहीं

    उत्तर: (A)


    मेन्स: 

    प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) की आवश्यकता क्यों है? यह नेविगेशन में कैसे मदद करती है? (2018)


    प्रारंभिक परीक्षा

    RBI तरलता कवरेज अनुपात पर रूपरेखा की समीक्षा करेगा

    स्रोत:एलएम

    चर्चा में क्यों? 

    भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) बैंकों द्वारा तरलता जोखिम के बेहतर प्रबंधन के लिये तरलता कवरेज अनुपात पर ढाँचे की समीक्षा कर सकता है।

    • अमेरिका में सिलिकॉन वैली और सिग्नेचर बैंक जैसे कुछ न्यायक्षेत्रों में हाल की घटनाओं ने तनावपूर्ण समय के दौरान डिजिटल बैंकिंग चैनलों के माध्यम से त्वरित धन निकासी की संभावना दिखाई है।
    • RBI गवर्नर ने इन उभरते जोखिमों के जवाब में LCR रूपरेखा का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

    तरलता कवरेज अनुपात (LCR) क्या है? 

    • LCR को वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद बेसल III सुधारों के हिस्से के रूप में पेश किया गया था।
    • LCR एक अनुपात है जो वित्तीय संस्थानों के पास मौजूद उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति (HQLA) के अनुपात को मापता है।
    • LCR ढाँचे के तहत आने वाले बैंकों को 1 जनवरी, 2019 से 100% की न्यूनतम LCR के साथ, तनावग्रस्त परिस्थितियों में 30 दिनों के शुद्ध बहिर्वाह को कवर करने के लिये HQLA का स्टॉक बनाए रखना होगा।
      • HQLA तरल परिसंपत्तियाँ हैं, जिन्हें तत्काल बेचा जा सकता है अथवा इसे मूल्य में कमी किये बिना या बिना किसी हानि के नकदी में परिवर्तित भी किया जा सकता है। HQLA का उपयोग उधार लेने के प्रयोजनों के लिये संपार्श्विक के रूप में भी किया जा सकता है।
      • HQLA में नकदी, अल्पकालिक बॉण्ड तथा अन्य नकदी समकक्ष एवं साथ ही अतिरिक्त वैधानिक तरलता अनुपात (SLR), सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) परिसंपत्तियाँ तथा तरलता कवरेज अनुपात (FALLCR) के लिये तरलता प्राप्त करने की सुविधा (1 अप्रैल, 2020 से बैंक की जमा राशि का 15%) शामिल हैं।
    • LCR एक निवारक उपाय है जो वित्तीय संकट के दौरान बैंक के लिये लाभदायक हो सकता है।
    • सीमायें: LCR के कारण बैंक अधिक नकदी रख सकते हैं और कम ऋण जारी कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से आर्थिक विकास धीमा हो सकता है।
    • LCR की स्थिति: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक वर्तमान में 131.4% का LCR को बनाए रखते हैं, जो 100% की न्यूनतम आवश्यकता से काफी अधिक है।

    LCR = उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति राशि (HQLA) / कुल शुद्ध नकदी प्रवाह राशि

    Quantitative-instruments-of-monetary-policy

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. यदि आर.बी.आई. प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

    1. वैधानिक तरलता अनुपात को घटाकर उसे अनुकूलित करना
    2. सीमांत स्थायी सुविधा दर को बढ़ाना
    3. बैंक दर को घटाना और रेपो दर को भी घटाना

    नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) केवल 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (b)


    प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (मोनेटरी पालिसी कमिटी/MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

    1. यह RBI की मानक (बेंचमार्क) ब्याज दरों का निर्धारण करती है।
    2. यह एक 12 सदस्यीय निकाय है जिसमें RBI का गवर्नर शामिल है तथा प्रत्येक वर्ष इसका पुनर्गठन किया जाता है।
    3. यह केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है।

    नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

    (a) केवल 1
    (b) केवल 1 और 2
    (c) केवल 3
    (d) केवल 2 और 3

    उत्तर: (a)


    चर्चित स्थान

    ज़पोरीज़िया परमाणु ऊर्जा संयंत्र

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

    यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष के बीच ज़पोरीज़िया परमाणु ऊर्जा संयंत्र (Nuclear Power Plant - NPP) पर ड्रोन द्वारा हमला किया गया।

    • रूस ने यूक्रेन पर हमला शुरू करने का आरोप लगाया।
    • ज़पोरीज़िया दक्षिण-पूर्वी यूक्रेन में एनर्जोदर के पास स्थित है, यह यूरोप में सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र के रूप में स्थापित है। इसका स्वामित्व और संचालन एनर्जोएटम यूक्रेन की राज्य के स्वामित्व वाली परमाणु ऊर्जा उत्पादन कंपनी के पास है।
    • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA), वैश्विक परमाणु निगरानी संस्था, संयंत्र को तकनीकी सहायता प्रदान करती है और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये निरीक्षण करती है।

    Zaporizhzhia_Nuclear_Power_Plant

    और पढ़ें: परमाणु ऊर्जा विस्तार के लिये रणनीतिक रोडमैप


    रैपिड फायर

    खनन गतिविधियों से अफ्रीकी ग्रेट एप्स को खतरा

    स्रोत: डाउन टू अर्थ

    साइंस एडवांसेज़ जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में अफ्रीका की ग्रेट एप्स आबादी के लिये खनन गतिविधियों से उत्पन्न गंभीर खतरे पर प्रकाश डाला गया है।

    • अध्ययन से संकेत मिलता है कि अफ्रीका में संपूर्ण ग्रेट एप्स आबादी के एक तिहाई से अधिक, लगभग 180,000 को खनन गतिविधियों से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष खतरों का सामना करना पड़ता है।
    • लगभग 20% महत्त्वपूर्ण आवास खनन क्षेत्रों से मिलते हैं। लाइबेरिया, सिएरा लियोन, माली और गिनी जैसे देशों में ग्रेट एप्स के आवास एवं खनन स्थलों के बीच महत्त्वपूर्ण समानताएँ दिखाई देती हैं।
    • बोनोबो (Pan paniscus); चिंपैंजी (Pan troglodytes); ईस्टर्न गोरिल्ला (Gorilla beringei); वेस्टर्न गोरिल्ला (Gorilla gorilla), एवं ऑरंगुटान (Pongo) को उनके बड़े आकार एवं मानव जैसी विशेषताओं के कारण ‘ग्रेट एप्स’ कहा जाता है। ग्रेट एप्स होमिनिडे के रूप में वर्गीकृत प्राइमेट्स का एक वर्गीकृत परिवार हैं।
    • IUCN रेड लिस्ट के अनुसार, सभी ग्रेट एप्स प्रजातियों को लुप्तप्राय (EN) अथवा गंभीर रूप से संकटग्रस्त (CR) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

    Great_Apes


    रैपिड फायर

    पनेट वर्ग

    स्रोत: द हिंदू

    पनेट वर्ग का उपयोग आमतौर पर जीव विज्ञान में वंशानुक्रम पैटर्न को समझने के लिये किया जाता है।

    • यह एक वर्गाकार आरेख है, जिसका उपयोग किसी विशेष क्रॉस-ब्रीडिंग प्रयोग के जीनोटाइप की भविष्यवाणी करने के लिये किया जाता है।
    • इसका नाम रेजिनाल्ड सी. पनेट के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने वर्ष 1905 में यह दृष्टिकोण दिया था।
    • इसका उपयोग जीव विज्ञान में प्रमुख और अप्रभावी जीन जैसे वंशानुक्रम पैटर्न को समझने के लिये किया जाता है।
    • शोधकर्त्ता जानवरों तथा मनुष्यों की संतानों में आनुवंशिक लक्षणों का अध्ययन करने के लिये मेंडेलियन वंशानुक्रम सिद्धांतों के साथ पनेट वर्ग का उपयोग करते हैं।

    Punnett_Square

    और पढ़ें: जीनोम एडिटिंग


    रैपिड फायर

    अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में आक्रामक चीतलों की आबादी

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

    बोस द्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर चीतल (Axis axis) की आबादी पारिस्थितिकी तंत्र की वहन क्षमता से अधिक हो गई है, जिस कारण अंडमान और निकोबार वन विभाग को पोर्ट ब्लेयर के एक जैविक पार्क में लगभग 500 हिरणों को स्थानांतरित करना पड़ा।

    • इन्हें 1900 के दशक की शुरुआत में अंग्रेज़ों द्वारा शिकार के लिये अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में लाया गया था।
      • हाल के अध्ययनों से संकेत मिलता है कि आक्रामक चीतल प्रजाति स्थानीय वनस्पतियों और जीवों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है, जिसके लिये रणनीतिक प्रबंधन उपायों की आवश्यकता है।
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत, एक मुख्य वन्यजीव वार्डन वैज्ञानिक प्रबंधन के उद्देश्य से स्थानांतरण की अनुमति दे सकता है।
      • कानून कहता है कि इस तरह के स्थानांतरण से जानवरों को न्यूनतम आघात पहुँचना चाहिये।
    • चीतल, जिसे चित्तीदार हिरण या एक्सिस (Axis axis) हिरण के रूप में भी जाना जाता है, भारत और श्रीलंका के घास के मैदानों व जंगलों का मूल निवासी है, तथा यह एक सुंदर एवं सुरुचिपूर्ण शाकाहारी जानवर होता है।
      • ये खुले घास के मैदान, सवाना और हल्के जंगली इलाके पसंद करते हैं।
      • IUCN लाल सूची: सबसे कम चिंता का विषय
      • WLPA 1972: अनुसूची II।

    Chital


    close
    एसएमएस अलर्ट
    Share Page
    images-2
    images-2
    × Snow