महासचिव द्वारा संयुक्त राष्ट्र के अनिश्चित भविष्य की चेतावनी
यह एडिटोरियल 28/02/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The global order — a fraying around many edges” लेख पर आधारित है। इसमें संयुक्त राष्ट्र के महासचिव द्वारा संगठन के भविष्य के बारे में बढ़ती चिंता पर की गई टिप्पणी के बारे में चर्चा की गई है। यह विषय संगठन में सुधार की आवश्यकता पर बल देता है और मौजूदा वैश्विक व्यवस्था की दीर्घकालिक व्यवहार्यता के बारे में संदेह को रेखांकित करता है।
प्रिलिम्स के लिये:वैश्वीकरण, जलवायु परिवर्तन, G20, G7, संयुक्त राष्ट्र, IMF, विश्व बैंक, BRICS, अफ्रीकी संघ, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संगठन (ASEAN), यूरोपीय संघ, Quad, AUKUS, ग्लोबल साउथ, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), UNSC की सदस्यता, UN का शांति मिशन, मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR)। मेन्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली से संबंधित मुद्दे, UNSC में सुधार की ज़रूरत। |
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (United Nations Human Rights Council- UNHRC) के 55वें नियमित सत्र के उद्घाटन के अवसर पर अपने संबोधन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने टिप्पणी की कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) के सदस्यों के बीच एकता की कमी ने संभवतः इसके प्राधिकार को कमज़ोर कर दिया है। संगठन में सुधार आवश्यक है, लेकिन मतभेदों को देखते हुए कोई भी सतही परिवर्तन पर्याप्त सिद्ध नहीं होगा।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC):
- परिचय:
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंतर्गत एक अंतर-सरकारी निकाय है जो विश्व भर में मानवाधिकारों के प्रसार एवं संरक्षण को प्रबल करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- गठन:
- इसका गठन वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा किया गया था। इसने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग नामक पूर्ववर्ती संस्था को प्रतिस्थापित किया।
- मानवाधिकार उच्चायुक्त का कार्यालय (Office of the High Commissioner for Human Rights- OHCHR) UNHRC के सचिवालय के रूप में कार्य करता है।
- OHCHR का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
- सदस्य:
- इसमें 47 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश शामिल होते हैं जो UNGA द्वारा चुने जाते हैं।
- परिषद की सदस्यता समतामूलक भौगोलिक वितरण पर आधारित है।
वैश्विक व्यवस्था की वर्तमान स्थिति में संयुक्त राष्ट्र भूमिका:
- विभिन्न राष्ट्रों के बीच शक्ति प्रतिद्वंद्विता का प्रबंधन:
- विश्व युद्ध के बाद की यह व्यवस्था संकट में है, जिसकी नींव तब रखी गई थी जब द्वितीय विश्व युद्ध जारी था। यह एक ऐसी संरचना को परिलक्षित करता है जिसके बारे में मित्र देशों (Allied powers) को अपेक्षा थी कि यह भविष्य के वैश्विक टकराव पर लगाम रखेगा।
- यह व्यवस्था अपनी विशेष एजेंसियों, निधियों और कार्यक्रमों के साथ स्वयं संयुक्त राष्ट्र में ही स्थापित है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की एक प्रणाली है जो लगभग तीन चौथाई सदी पहले अस्तित्व में रही वृहत शक्ति प्रतिद्वंद्विता को प्रबंधित करने के लिये बनाई गई थी।
- उत्तरवर्ती वर्षों में राष्ट्रों की शक्ति एवं समृद्धि इसके मूल हस्ताक्षरकर्ताओं से और उनके बीच प्रवाहित एवं स्थानांतरित हुई है तथा राज्यों का अंतर्राष्ट्रीय समुदाय चार गुना से अधिक बड़ा हो गया है।
- विश्व युद्ध के बाद की यह व्यवस्था संकट में है, जिसकी नींव तब रखी गई थी जब द्वितीय विश्व युद्ध जारी था। यह एक ऐसी संरचना को परिलक्षित करता है जिसके बारे में मित्र देशों (Allied powers) को अपेक्षा थी कि यह भविष्य के वैश्विक टकराव पर लगाम रखेगा।
- संप्रभु समानता को कायम रखना:
- संयुक्त राष्ट्र को सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांत में विश्वास रखने वाले सभी देशों की संप्रभु समानता (Sovereign Equality) को कायम रखते हुए भविष्य के एक और वैश्विक युद्ध को रोकने के लिये स्थापित किया गया था।
- लेकिन सुरक्षा परिषद के दरवाजे पर संप्रभु समानता लड़खड़ा गई, जहाँ इसके पाँच स्थायी सदस्यों को अन्य संप्रभु सदस्यों की तुलना में अधिक शक्ति प्रदान की गई। ये सभी मित्र देश थे और इनमें दो प्रमुख औपनिवेशिक शक्तियाँ (यूके, फ्राँस) भी शामिल थीं।
- द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था (bipolar world order) के उद्भव ने संप्रभु समानता की जड़ों पर और प्रहार किया।
- बहुपक्षीय संस्थानों को सुदृढ़ बनाना:
- जुलाई 1944 में आयोजित ब्रेटन वुड्स सम्मेलन ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) और पुनर्निर्माण एवं विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक (International Bank for Reconstruction and Development- IBRD) या विश्व बैंक की स्थापना की। वर्ष 1947 में टैरिफ एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (GATT) संपन्न हुआ जो वर्ष 1995 में विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
- इस वित्तीय और व्यापार संबंधी संरचना ने एक साझा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था बनाने का प्रयास किया जो वर्ष 1920 और 1930 के दशक की गलतियों के दुहराव से बचते हुए युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण की योजना बनाने और वैश्विक व्यापार को उदार बनाने पर लक्षित थी।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून और मानवाधिकार:
- संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय कानून और मानवाधिकार मानकों के विकास एवं अनुपालन को बढ़ावा देता है। संगठन ने कई संधियाँ, अभिसमय एवं घोषणाएँ स्थापित की हैं जो मानवाधिकार, मानवीय कानून, पर्यावरण संरक्षण और निरस्त्रीकरण जैसे क्षेत्रों को नियंत्रित करती हैं।
- UNHRC और अन्य विभिन्न विशिष्ट एजेंसियाँ वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के दुरुपयोग की निगरानी एवं समाधान के लिये कार्य करती हैं।
- सतत् विकास:
- संयुक्त राष्ट्र विश्व भर में सतत् विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा अपनाया गया सतत् विकास के लिये एजेंडा 2030 (2030 Agenda for Sustainable Development) गरीबी, असमानता, जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरणीय क्षति सहित विभिन्न वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है।
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) जैसी संयुक्त राष्ट्र की विकास एजेंसियाँ सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति में विश्व के देशों के समर्थन के लिये कार्य करती हैं।
- मानवीय सहायता:
- संयुक्त राष्ट्र संघर्षों, प्राकृतिक आपदाओं और अन्य आपात स्थितियों से प्रभावित आबादी को मानवीय सहायता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNISEF), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और मानवीय कार्यो के समन्वयन के लिये कार्यालय (Office for the Coordination of Humanitarian Affairs- OCHA) जैसी अपनी एजेंसियों के माध्यम से सहायता (aid) के समन्वयन एवं वितरण में भूमिका निभाता है, शरणार्थियों एवं आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों को समर्थन प्रदान करता है और पीड़ित एवं कमज़ोर आबादी की रक्षा करने एवं उन्हें राहत प्रदान करने में योगदान करता है।
21वीं सदी में बहुपक्षवाद/बहुपक्षीयता (Multilateralism) के समक्ष चुनौतियाँ:
- बहुपक्षवाद में सुधार करना एक कठिन कार्य:
- बहुपक्षवाद में सुधार करना विभिन्न कारणों से एक कठिन कार्य है क्योंकि यह वैश्विक शक्ति राजनीति में गहराई से उलझा हुआ है। इसके परिणामस्वरूप, बहुपक्षीय संस्थानों और ढाँचों में सुधार की कोई भी कार्रवाई स्वतः एक ऐसे कदम में बदल जाती है जो शक्ति/सत्ता के वर्तमान वितरण में बदलाव की मांग करती है।
- वैश्विक व्यवस्था में शक्ति वितरण में संशोधन करना न तो आसान है और न ही सामान्य। इसके अलावा, यदि इसे सतर्कता से नहीं किया गया तो इसके प्रतिकूल प्रभाव भी उत्पन्न हो सकते हैं।
- यथास्थितिवादी शक्तियों के बीच आम सहमति का अभाव:
- यथास्थितिवादी शक्तियाँ (Status Quo Powers) बहुपक्षीय सुधारों को एक ‘ज़ीरो-सम गेम’ के रूप में देखती हैं। उदाहरण के लिये, ब्रेटन वुड्स प्रणाली के संदर्भ में, अमेरिका और यूरोप का मानना था कि सुधार से उनका प्रभाव और प्रभुत्व कम हो जाएगा।
- इससे इन संस्थानों में सर्वसम्मति या मतदान से सुधार के बारे में निर्णय लेना कठिन हो जाता है। बहुपक्षवाद उभरती ‘मल्टीप्लेक्स वर्ल्ड ऑर्डर’ की वास्तविकताओं के विपरीत प्रतीत होता है। उभरता हुई विश्व व्यवस्था अधिक बहुध्रुवीय और बहुकेंद्रित नज़र आती है।
- चीनी और अमेरिकी मूल्यों का टकराव:
- चीन और अमेरिका के बीच टकराव पिछले 70 वर्षों के बहुपक्षवाद के अंत का प्रतीक है। यह संयुक्त राष्ट्र के भीतर एक और भूकंपीय बदलाव को चिह्नित करता है। अमेरिका को एक नई बहुआयामी संस्था का नेतृत्व करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि चीन का पुन:उभार प्रौद्योगिकी, नवाचार और व्यापार संतुलन पर आधारित है जो पश्चिमी सभ्यता के मूल में रहे मुक्त-बाज़ार उदारवाद में वैश्विक भरोसे की गिरावट के वर्तमान समय में अमेरिकी सैन्य श्रेष्ठता को संतुलित करता है।
- बहुपक्षवाद के समक्ष विद्यमान विभिन्न संकट:
- बहुपक्षीय सहयोग को वर्तमान में कई संकटों का सामना करना पड़ रहा है। सर्वप्रथम, लगातार गतिरोध के कारण बहुपक्षवाद ने बहुमत का भरोसा खो दिया है। दूसरा, बहुपक्षवाद उपयोगिता संकट (utility crisis) का सामना कर रहा है, जहाँ शक्तिशाली सदस्य-राज्य इसे अब अपने लिये उपयोगी नहीं मानते हैं।
- इसके अलावा, महाशक्तियों के बीच बढ़ते तनाव, विवैश्वीकरण (de-globalisation), लोकलुभावनवादी राष्ट्रवाद (populist nationalism), महामारी के उभार और जलवायु आपात स्थितियों ने कठिनाइयों को और बढ़ा दिया है।
- इस गतिरोध ने विश्व के देशों को बाई-लैटेरल, प्लूरी-लैटेरल और मिनी-लैटेरल जैसे अन्य समूहन में आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया है, जो फिर वैश्विक राजनीति के और अधिक ध्रुवीकरण में योगदान करता है।
- बहुपक्षीय सहयोग को वर्तमान में कई संकटों का सामना करना पड़ रहा है। सर्वप्रथम, लगातार गतिरोध के कारण बहुपक्षवाद ने बहुमत का भरोसा खो दिया है। दूसरा, बहुपक्षवाद उपयोगिता संकट (utility crisis) का सामना कर रहा है, जहाँ शक्तिशाली सदस्य-राज्य इसे अब अपने लिये उपयोगी नहीं मानते हैं।
- अवधारणाओं, पद्धतियों और संस्थानों के संदर्भ में बहुपक्षवाद के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ:
- बहुपक्षवाद की अवधारणाएँ वैश्विक आयाम की समस्याओं—जिन्हें राष्ट्रीय सीमाओं पर प्रबंधित करना पड़ता है, के कारण अस्थिर होती जा रही हैं। इसके उदाहरणों में राष्ट्रीय संप्रभुता बनाम मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ या अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्याय निर्णयन, पर्यावरण और स्वास्थ्य समस्याएँ शामिल हैं।
- वार्ता के तरीके और तकनीक आधुनिक समाज की जटिलता को संबोधित नहीं कर पाते हैं।
- संगठन, योगदान, वार्ता और निर्णयन के संदर्भ में आईटी ओपन सॉफ्टवेयर मोड जैसे उपाय आधुनिक चुनौतियों के लिये बेहतर अनुकूल हो सकते हैं।
- वैज्ञानिक और तकनीकी समुदायों से वार्ता का अनुभव उन चुनौतियों से निपटने के तरीके सीखने में सहायक जानकारी प्रदान कर सकता है जो पूरी तरह से राजनीतिक नहीं हैं।
- क्षेत्रीय दृष्टिकोण का उपयोग व्यवहार में सतत विकास जैसी अंतर्निहित रूप से ‘ट्रांसवर्सल’ अवधारणाओं के विपरीत है।
- संगठन, योगदान, वार्ता और निर्णयन के संदर्भ में आईटी ओपन सॉफ्टवेयर मोड जैसे उपाय आधुनिक चुनौतियों के लिये बेहतर अनुकूल हो सकते हैं।
- मौजूदा संस्थाएँ क्षेत्रवाद (regionalism) की बढ़ती भूमिका और शक्ति के बदलते संतुलन को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं। सुरक्षा परिषद में सुधार पर पिछले कुछ दशकों से चर्चा चल रही है और हालिया प्रगति के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं एवं अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाओं के अपर्याप्त मतदान अधिकार की समस्या बनी हुई है।
- ब्रिक्स (BRICS) जैसे नए वैश्विक खिलाड़ियों के तेज़ी से उभरने का वार्ता और अंतर्राष्ट्रीय शासन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। उभरती शक्तियाँ विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर गठबंधन और साझा दृष्टिकोण का निर्माण कर रही हैं। अफ्रीकी देशों को यह एहसास हो रहा है कि वे साझा स्वर में अभिव्यक्ति से अपने हितों की बेहतर रक्षा कर सकते हैं।
UNSC के कार्यकरण से संबद्ध विभिन्न मुद्दे:
- औपनिवेशिक मानसिकता:
- संयुक्त राष्ट्र ने प्रमुख सहयोगी शक्तियों को स्थायी वीटो शक्ति प्रदान की। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब अमेरिका ने सामाजिक-आर्थिक विकास की अनदेखी करते हुए व्यापार, पूंजी और प्रौद्योगिकी निर्भरता को बढ़ावा देने वाली इन वैश्विक संस्थाओं को थोपना शुरू किया तो नए स्वतंत्र राज्यों से कोई परामर्श नहीं किया गया। यह ऐसे समय में घटित हुआ जब उपनिवेशवाद के उन्मूलन की बढ़ती मांग और वैश्विक संघर्ष के प्रभाव शाही शक्तियों के प्रभुत्व को समाप्त कर रहे थे।
- कुछ देशों के पास असंगत शक्तियाँ:
- पुरानी दुनिया ही नई संस्थाओं की शक्ति संरचनाओं पर नियंत्रण बनाये रहीं, जैसा कि ‘बैंक’ और ‘कोष’ के प्रशासन में परिलक्षित होता है। विश्व बैंक का अध्यक्ष हमेशा एक अमेरिकी नागरिक होता है जबकि IMF के प्रमुख को मनोनीत करने में यूरोप (पश्चिमी यूरोप) वर्चस्व रखता है।
- मतदान अधिकार:
- कुछ सीमित सुधारों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सदस्य-राज्यों के मतदान अधिकार वस्तुतः गतिहीन बने हुए हैं। वर्तमान में इस संस्था में मूल ब्रिक्स सदस्यों के लिये मतदान अधिकार का प्रतिशत 2.22, 2.59, 2.63, 6.08 और 0.63 है।
- अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका 16.5 प्रतिशत मतदान अधिकार रखता है, जबकि यूके (4.03), जर्मनी (5.31) और G-7 के अन्य सदस्य देशों (जो अमेरिका के साथ मिलकर मतदान करते हैं) के प्रतिशत को भी जोड़ें तो यह 30 प्रतिशत तक पहुँच जाता है।
- निधियों का संवितरण:
- विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights) आवंटित करने और अधिकांश सुधार लागू करने के लिये 85% बहुमत वोट की आवश्यकता होती है, जो प्रभावी रूप से अमेरिका को एक शक्तिशाली वीटो सौंपता है।
- IMF वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देने, सलाह देने और वित्तीय कठिनाई झेल रहे देशों को निर्धारित शर्तों पर धन प्रदान करने के रूप में वैश्विक स्थिरता बनाए रखता है।
- विकासशील देशों के हितों के विरुद्ध:
- अंतर्राष्ट्रीय संधियों (जिन्हें अब कानूनी ढाँचा प्राप्त है) पर आधारित संयुक्त राष्ट्र प्रणाली ने वैश्विक संबंधों को सुविधाजनक बनाया, हालाँकि यह मूल संयुक्त राष्ट्र चार्टर हस्ताक्षरकर्ताओं के पक्ष में झुका हुआ है। उपनिवेशवाद के अंत, शीत युद्ध और सोवियत संघ के विघटन ने इस ढाँचे को चुनौती दी।
- विकासशील देश (पूर्व-उपनिवेशों सहित) सुरक्षा परिषद के वीटो और ब्रेटन वुड्स की मतदान संरचनाओं के विरुद्ध संघर्षरत रहे हैं। उल्लेखनीय रूप से चीन ने किसी एक विषय में नियम निर्माता के रूप में प्रभाव का इस्तेमाल किया है तो दूसरे विषय में नियम उल्लंघनकर्ता के रूप में।
- विभिन्न समसामयिक खामियाँ:
- कोविड-19 के दौरान लोगों के लिये, वस्तुओं के लिये और टीकों के लिये सीमाएँ बंद कर दी गई थीं, जिससे व्यापक सहयोग पर आधारित साझा वैश्विक समृद्धि का वादा कमज़ोर पड़ा।
- यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने एक प्रमुख शक्ति के पाखंड को उजागर कर दिया, जिससे वैश्विक नियमों को बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है। इसके अतिरिक्त, गाजा में जारी संघर्ष ने विकसित और विकासशील देशों के बीच के विभाजन को उजागर किया है।
- यह संघर्ष संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कुछ स्थायी सदस्यों के संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के मूल सिद्धांतों, विशेष रूप से मानवाधिकारों और नरसंहार अभिसमय (genocide convention) के संबंध में, के प्रति प्रतिबद्धता चुनौती दे रहा है।
UNSC में सुधार के लिये सुझाव:
- G-20 की भूमिका:
- G-20 को सर्वप्रथम बहुपक्षीय सुधार का उचित आख्यान स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। यह एक सहभागिता समूह का गठन कर सकता है जो आख्यान को वैश्विक चर्चा में सबसे आगे लाने के लिये समर्पित हो।
- भारत को समूह के आगामी अध्यक्षों ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका से आग्रह करना चाहिये कि वे UNSC में बहुपक्षीय सुधारों को अपने अध्यक्षीय कार्यकाल की प्राथमिकता में शामिल करना चाहिये।
- G-20 को बहुपक्षीय सहयोग का समर्थन करते हुए भी बहुपक्षवाद के एक नए रूप के रूप में मिनी-लैटेरल समूहों को प्रोत्साहित करना जारी रखना चाहिये और उन्हें बहु-हितधारक भागीदारी में बदलने का प्रयास करना चाहिये।
- विशेष रूप से ‘ग्लोबल कॉमन्स’ के शासन से संबंधित क्षेत्रों में मुद्दा-आधारित मिनी-लैटेरल नेटवर्क का निर्माण करना प्रतिस्पर्द्धी गठबंधनों को रोकने में सहायक होगा जहाँ अन्य अभिकर्ता अपने लाभ के लिये वही खेल खेलते हैं, जिससे विश्व व्यवस्था और अधिक खंडित हो जाती है।
- G-20 को सर्वप्रथम बहुपक्षीय सुधार का उचित आख्यान स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। यह एक सहभागिता समूह का गठन कर सकता है जो आख्यान को वैश्विक चर्चा में सबसे आगे लाने के लिये समर्पित हो।
- व्यापक सुधारों की आवश्यकता:
- विश्व को एक सर्वव्यापी एवं व्यापक सुधार प्रक्रिया की आवश्यकता है जिसमें सुरक्षा परिषद की सदस्यता की स्थायी एवं ग़ैर-स्थायी श्रेणियों में विस्तार, वीटो का प्रश्न, महासभा एवं सुरक्षा परिषद के बीच संबंध और कार्य पद्धति में सुधार शामिल हो।
- भारत ने इस बात पर बल दिया है कि UNGA की प्रधानता एवं वैधता इसकी सदस्यता की समावेशी प्रकृति और इसके सभी घटकों की संप्रभु समानता के सिद्धांत से तय होगी।
- विश्व को एक सर्वव्यापी एवं व्यापक सुधार प्रक्रिया की आवश्यकता है जिसमें सुरक्षा परिषद की सदस्यता की स्थायी एवं ग़ैर-स्थायी श्रेणियों में विस्तार, वीटो का प्रश्न, महासभा एवं सुरक्षा परिषद के बीच संबंध और कार्य पद्धति में सुधार शामिल हो।
- भारत की अपेक्षित भूमिका:
- वैश्विक शून्यता, सापेक्ष शक्ति में बदलाव और भारत का अपना सामर्थ्य उसे NAM-Plus के रूप में एक सौम्य बहुपक्षवाद को व्यक्त करने की क्षमता प्रदान करता है जो विश्व के एक बड़े हिस्से के साथ प्रतिध्वनित होता है और ब्रिक्स एवं G-7 दोनों को एक साथ लाता है।
- भारत लंबे समय से ब्राजील, जर्मनी और जापान के साथ UNSC में सुधार की मांग करता रहा है और इस बात पर बल देता है कि वह स्थायी सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र के उच्च पटल पर जगह पाने का सही हक़दार है।
- G-4 देश (ब्राजील, जर्मनी, जापान और भारत) UNSC में स्थायी सीटों के लिये एक-दूसरे की दावेदारी का समर्थन करते हैं।
- UNSC सुधारों में एशियाई सदी को समझना:
- एशियाई सदी (Asian Century) को उत्तर-औपनिवेशिक संप्रभुता को निष्प्रभावी करते हुए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के संदर्भ में परिभाषित किया जाना चाहिये। दूसरों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के उदय के दृष्टिकोण से भी एक महत्त्वपूर्ण सबक है।
- पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने ठीक ही कहा था कि जहाँ अमेरिका ने सैन्य व्यय पर 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किये, वहीं चीन ने युद्ध पर एक पैसा भी बर्बाद नहीं किया।
- एशियाई सदी (Asian Century) को उत्तर-औपनिवेशिक संप्रभुता को निष्प्रभावी करते हुए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के संदर्भ में परिभाषित किया जाना चाहिये। दूसरों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के उदय के दृष्टिकोण से भी एक महत्त्वपूर्ण सबक है।
- उभरती चिंताओं को समायोजित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र चार्टर में संशोधन की आवश्यकता:
- परिषद के आकार, सदस्यों के लिये शर्तों, प्रस्तावों को मंज़ूरी देने की सीमा या स्थायी सदस्यों की शक्तियों में बदलाव के लिये चार्टर में संशोधन की आवश्यकता है।
- ये संशोधन तब लागू होंगे जब उन्हें UNGA में समर्थन के दो-तिहाई मत प्राप्त होंगे और महासभा के दो-तिहाई सदस्य देश (जिनमें UNSC के पाँच स्थायी सदस्य देश भी शामिल हैं) उनकी पुष्टि (ratify) करेंगे।
- ऐसी बाधाओं के रहते हुए संशोधन करना अत्यंत कठिन है। वर्ष 1945 में अंगीकरण के बाद से संयुक्त राष्ट्र चार्टर में केवल पाँच बार संशोधन किया गया है, जिनमें सबसे हालिया परिवर्तन वर्ष 1973 में लागू हुआ था।
- इन संशोधनों ने चार अतिरिक्त निर्वाचित सदस्यों को जोड़कर सुरक्षा परिषद का आकार 11 से 15 सदस्यों तक बढ़ा दिया। वर्तमान वास्तविकताओं का प्रतिबिंबित करने के लिये इसी तरह के संशोधनों पर विचार करने की आवश्यकता है।
- परिषद के आकार, सदस्यों के लिये शर्तों, प्रस्तावों को मंज़ूरी देने की सीमा या स्थायी सदस्यों की शक्तियों में बदलाव के लिये चार्टर में संशोधन की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
- संयुक्त राष्ट्र और उसकी एजेंसियों पर आधारित वर्तमान वैश्विक व्यवस्था द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक और वैश्विक संघर्ष को रोकने के लक्ष्य से स्थापित की गई थी, लेकिन अब इसे महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के भीतर शक्ति की गतिशीलता, विशेष रूप से UNSC के P5 की वीटो शक्ति, एक पुरानी पड़ चुकी संरचना को परिलक्षित करती है जो बदलते वैश्विक परिदृश्य को संबोधित नहीं करती है।
- चूँकि विश्व नई चुनौतियों (जैसे कि COVID-19 महामारी और बढ़ते भू-राजनीतिक संघर्ष) से जूझ रहा है, वर्तमान वैश्विक संरचना का पुनर्मूल्यांकन करने और इसमें संभावित सुधार करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह समसामयिक वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने में प्रासंगिक एवं प्रभावशील बना रहे।
अभ्यास प्रश्न: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की वर्तमान संरचना और इसके समक्ष विद्यमान चुनौतियों के आलोक में इसमें सुधार की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये। इस संदर्भ में आप किन सुधारों का प्रस्ताव करेंगे?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. ‘‘संयुक्त राष्ट्र प्रत्यय समिति (यूनाईटेड नेशंस क्रेडेंशियल्स कमिटी)’’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? केवल 3 उत्तर: (A) प्रश्न. UN की सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य होते हैं और शेष 10 सदस्यों का चुनाव कितनी अवधि के लिये महासभा द्वारा किया जाता है? (2009) (a) 1 वर्ष उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) के प्रमुख कार्य क्या हैं? इससे साथ संलग्न विभिन्न प्रकार्यात्मक आयोगों को स्पष्ट कीजिये। (2017) प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट प्राप्त करने में भारत के सामने आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015) |