कोर टेक्नोलॉजी के विकास में उन्नति
यह एडिटोरियल 02/01/2025 को द हिंदू बिजनेस लाइन में प्रकाशित “How do we develop ‘core’ technologies?” पर आधारित है। यह लेख वैज्ञानिक नवाचारों को व्यावसायिक सफलता में परिणत करने की दिशा में भारत की लगातार चुनौयों से लड़ने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, और प्रौद्योगिकी-संचालित विकसित अर्थव्यवस्था के निर्माण की कुंजी के रूप में मज़बूत अकादमिक-उद्योग-सरकार सहयोग पर ज़ोर देता है।
प्रिलिम्स के लिये:रमन प्रभाव, सेमीकंडक्टर तकनीक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, PLI योजना, सेमीकॉन इंडिया, डिजिटल इंडिया मिशन, ई-संजीवनी, ग्रीन हाइड्रोजन, भारत का एडटेक सेक्टर, स्टार्टअप इंडिया, महत्त्वपूर्ण और उभरती टेक्नोलॉजी पर पहल (iCET), मेक इन इंडिया, राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन मेन्स के लिये:भारत के लिये कोर टेक्नोलॉजी का महत्त्व, भारत में कोर टेक्नोलॉजी के विकास में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे। |
वर्ष 1930 में रमन प्रभाव से लेकर आधुनिक सेमीकंडक्टर तकनीक तक, भारत ने लगातार अभूतपूर्व 'कोर' तकनीक विकसित करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। हालाँकि, राष्ट्र ने इन सफलताओं का व्यवसायीकरण करने के लिये लगातार संघर्ष किया है, प्रायः विदेशी प्रतिस्पर्द्धियों के लिये बाज़ार लाभ खो दिया है। शिक्षाविदों, उद्योग और सरकार के बीच ऐतिहासिक अलगाव के परिणामस्वरूप भारत महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के लिये आयात पर निर्भर रहा है, जबकि इन्हें विकसित करने की बौद्धिक क्षमता है। वैज्ञानिक उत्कृष्टता को व्यावसायिक सफलता में बदलने में यह अंतर एक बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है जिसे भारत को प्रौद्योगिकी-आधारित-विकसित अर्थव्यवस्था बनने के अपने दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिये निपटना होगा।
कोर टेक्नोलॉजी/तकनीक शब्द का क्या अर्थ है?
- कोर टेक्नोलॉजी (कोर टेक) के संदर्भ में: कोर टेक्नोलॉजी (कोर टेक) से तात्पर्य आधारभूत, उन्नत और महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों से है जो नवाचार की रीढ़ बनती हैं तथा उद्योगों, अर्थव्यवस्थाओं एवं राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में विकास को गति प्रदान करती हैं।
- कोर टेक की मुख्य विशेषताएँ
- आधारभूत प्रकृति: कोर तकनीक अन्य प्रौद्योगिकियों और अनुप्रयोगों के लिये आधारशिला के रूप में कार्य करती है।
- व्यापक प्रयोज्यता: इन प्रौद्योगिकियों का अनुप्रयोग रक्षा, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और विनिर्माण जैसे कई क्षेत्रों में होता है।
- सामरिक महत्त्व: सुरक्षा, शासन और नवाचार में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के कारण कोर तकनीक प्रायः किसी देश की आर्थिक, सैन्य एवं भू-राजनीतिक शक्ति का निर्धारण करती है।
- कोर टेक के उदाहरण
- अर्द्धचालक: इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटिंग और AI में प्रयुक्त चिप्स।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI): मशीन लर्निंग, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण और स्वचालन के लिये प्रौद्योगिकियाँ।
- क्वांटम कंप्यूटिंग: अद्वितीय प्रसंस्करण शक्ति के लिये क्वांटम यांत्रिकी का लाभ उठाने वाली उन्नत कंप्यूटिंग।
- साइबर सुरक्षा: डिजिटल बुनियादी अवसंरचना और डेटा को खतरों से बचाने के लिये उपकरण।
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी: उपग्रह, प्रक्षेपण यान और अंतरिक्ष अन्वेषण उपकरण।
- उन्नत विनिर्माण: 3D प्रिंटिंग, रोबोटिक्स और उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियाँ।
- हरित प्रौद्योगिकियाँ: नवीकरणीय ऊर्जा समाधान जैसे सौर पैनल, पवन टर्बाइन और हरित हाइड्रोजन।
- दूरसंचार: 5G, फाइबर ऑप्टिक्स और नेक्स्ट जनरेशन की संचार प्रणालियों को सक्षम करने वाली मुख्य प्रौद्योगिकियाँ।
भारत के लिये कोर टेक्नोलॉजी में निवेश क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), अर्द्धचालक विनिर्माण और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी प्रमुख प्रौद्योगिकियों में निवेश भारत की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- ये प्रौद्योगिकियाँ नवाचार को बढ़ावा देती हैं, उत्पादकता में सुधार करती हैं और उच्च मूल्य वाली नौकरियों का सृजन करती हैं।
- उदाहरण के लिये, वैश्विक AI बाज़ार वर्ष 2030 तक 900 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, और राष्ट्रीय AI मिशन के माध्यम से AI निवेश के साथ भारत की हिस्सेदारी बढ़ने की उम्मीद है।
- इसी प्रकार, सेमीकंडक्टर के लिये PLI योजना का उद्देश्य भारत को वैश्विक चिप विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना है, जो वर्ष 2030 तक 110 बिलियन डॉलर के सेमीकंडक्टर बाज़ार घाटे की प्रतिपूर्ति करेगा।
- राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करना: साइबर सुरक्षा, ड्रोन प्रौद्योगिकी और AI-संचालित निगरानी जैसी प्रमुख तकनीकें साइबर हमलों एवं सीमा प्रबंधन सहित आधुनिक सुरक्षा खतरों से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- उदाहरण के लिये, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) की रियल टाइम मॉनिटरिंग के लिये AI-सक्षम उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है।
- CERT-In ने वर्ष 2022 में 1.39 मिलियन से अधिक साइबर सुरक्षा मामलों का निपटारा किया, जिससे स्वदेशी साइबर सुरक्षा विकास अनिवार्य हो गया।
- इसके अतिरिक्त, iDEX के तहत निजी फर्मों के साथ रक्षा मंत्रालय के सहयोग से ड्रोन एवं ड्रोन रोधी प्रणालियों में प्रगति हुई है, जिससे सुरक्षा तत्परता बढ़ी है।
- प्रौद्योगिकीय निर्भरता में कमी: सेमीकंडक्टर और उच्च स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के लिये आयात पर भारत की निर्भरता रणनीतिक स्वायत्तता में बाधा डालती है।
- स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास में निवेश से दूरसंचार (5G), रक्षा और अंतरिक्ष जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित होती है।
- वर्ष 2023 में सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम के उद्घाटन का उद्देश्य भारत को चिप उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना है।
- ज्ञान आधारित समाज का निर्माण: कोर टेक्नोलॉजी निवेश नवाचार को बढ़ावा देकर और पहुँच में सुधार करके शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा एवं शासन को प्रोत्साहन देती है।
- डिजिटल इंडिया मिशन जैसी पहलों ने ग्रामीण परिवारों को ऑनलाइन लाने में सहायता की है, जिससे ई-लर्निंग और ई-स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा मिला है।
- उदाहरण के लिये, बीमारी के प्रकोप का पूर्वानुमान करने के लिये AI उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है, जबकि ई-संजीवनी जैसे प्लेटफॉर्मों ने ग्रामीण भारत में 276 मिलियन से अधिक टेली-परामर्शों की सुविधा प्रदान की है।
- इसी प्रकार, भारत का एडटेक सेक्टर, जिसका वर्तमान मूल्य 7.5 बिलियन डॉलर है, इस बात पर प्रकाश डालता है कि डिजिटल उपकरण किस प्रकार शिक्षा को बदल रहे हैं।
- जलवायु अनुकूलन और संवहनीयता को बढ़ावा देना: नवीकरणीय ऊर्जा तकनीक, स्मार्ट ग्रिड और जलवायु मॉडलिंग जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियाँ भारत के ऊर्जा परिवर्तन एवं क्लाइमेट एक्शन लक्ष्यों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्द्धारित योगदान (NDC) के तहत वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई है।
- ग्रीन हाइड्रोजन और सौर ऊर्जा तकनीक में निवेश से अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी।
- इसके अलावा, फसल निगरानी में AI के उपयोग से संसाधनों का संरक्षण करते हुए कृषि उत्पादकता में सुधार हुआ है।
- स्टार्टअप और उद्यमिता को बढ़ावा देना: एक सुदृढ़ तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र स्टार्टअप को पोषित करता है और उद्यमिता को बढ़ावा देता है, जिससे आर्थिक विविधीकरण एवं नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
- 100 से अधिक यूनिकॉर्न और 157,000 से अधिक स्टार्टअप के संपन्न समुदाय के साथ, यह देश वैश्विक व्यापार के भविष्य को आयाम दे रहा है।
- स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रम और तकनीकी स्टार्टअप के लिये DPIIT का समर्थन भारत को वैश्विक नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित करने में सहायक हैं।
- भू-राजनीतिक लाभ: प्रमुख प्रौद्योगिकियों में निवेश से भारत की रणनीतिक स्थिति और वैश्विक साझेदारी में वृद्धि होगी।
- महत्त्वपूर्ण और उभरती टेक्नोलॉजी पर पहल (iCET) के तहत अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी द्विपक्षीय संबंधों में प्रौद्योगिकी की भूमिका को उजागर करती है।
- इसके अतिरिक्त, क्वाड सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन इनिशियेटिव जैसे सेमीकंडक्टर गठबंधनों में भारत की भूमिका, उसे तकनीकी आपूर्ति शृंखलाओं में चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने में एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित करती है।
भारत में कोर टेक के विकास में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास निवेश और पारिस्थितिकी तंत्र समर्थन: अनुसंधान और विकास (R&D) में भारत का कम निवेश, जो सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.65% है, नवाचार और तकनीकी उन्नति में बाधा डालता है, विशेष रूप से AI, अर्द्धचालक व रोबोटिक्स जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में।
- यह अल्पवित्तपोषण निजी क्षेत्र की भागीदारी और शिक्षा जगत के साथ सहयोग, जो कि सफल प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक है, को भी हतोत्साहित करता है।
- इसकी तुलना में, इज़रायल और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में अनुसंधान एवं विकास में बहुत अधिक निवेश के कारण सुदृढ़ प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद है।
- उद्योग-तैयार कार्यबल की कमी: भारत में ब्लॉकचेन, क्वांटम कंप्यूटिंग और AI जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों की मांगों को पूरा करने में सक्षम पर्याप्त कुशल कार्यबल का अभाव है, जिससे औद्योगिक नवाचार एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सीमित हो रही है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 से पता चलता है कि केवल 51% स्नातक ही रोज़गार योग्य हैं।
- डेटा विश्लेषक और AI विशेषज्ञों जैसी भूमिकाओं की मांग बहुत अधिक होने की उम्मीद है, अनुमान है कि वर्ष 2030 तक 2.5 से 2.8 मिलियन पेशेवरों को रोज़गार मिलेगा, फिर भी मौजूदा प्रशिक्षण कार्यक्रम इस आवश्यकता को पर्याप्त रूप से पूरा करने में विफल हैं।
- सामरिक प्रौद्योगिकियों के लिये आयात पर निर्भरता: अर्द्धचालक, लिथियम-आयन बैटरी और उन्नत मशीनरी जैसी महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के लिये आयात पर भारत की निर्भरता आत्मनिर्भरता को कमज़ोर करती है जो अर्थव्यवस्था को वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के प्रति उजागर करती है।
- वर्तमान में भारत अपने 95% सेमीकंडक्टर चीन, ताइवान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देशों से आयात करता है।
- कोविड-19 विश्वमारी के दौरान वैश्विक सेमीकंडक्टर की कमी ने भारत के ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों को बुरी तरह प्रभावित किया, जिससे अरबों का उत्पादन नुकसान हुआ जिससे मेक इन इंडिया जैसी पहल के तहत घरेलू क्षमता की आवश्यकता महसूस हुई।
- नीतिगत असंगतताएँ और प्रशासनिक विलंब: सरकारी नीतियों में बार-बार होने वाले बदलाव और लंबी स्वीकृति प्रक्रिया के कारण मुख्य प्रौद्योगिकियों में निवेश हतोत्साहित होता है, तथा चिप विनिर्माण एवं हरित प्रौद्योगिकी जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में परियोजनाएँ रुक जाती हैं।
- उदाहरण के लिये, सरकार ने वर्ष 2021 में सेमीकंडक्टर विनिर्माण के लिये 76,000 करोड़ रुपए की घोषणा की थी, लेकिन प्रक्रियागत विलंब और स्पष्टता की कमी के कारण बड़े पैमाने पर कोई भी फैब सुविधाएँ चालू नहीं हो पाई हैं।
- विश्व बैंक द्वारा अक्तूबर, 2019 में प्रकाशित विश्व बैंक की डूइंग बिजनेस रिपोर्ट (DBR), के अनुसार वर्ष 2020 में भारत 63वें स्थान पर था, जो तकनीकी नवाचार के लिये FDI आकर्षित करने में नियामक चुनौतियों को रेखांकित करता है।
- शिक्षा जगत और उद्योग जगत के बीच कमज़ोर सहयोग: भारत का नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र शैक्षणिक संस्थानों और उद्योगों के बीच सीमित साझेदारी से ग्रस्त है, जिसके कारण अनुसंधान प्रयास अलग-थलग पड़ जाते हैं तथा परिणाम अपेक्षित नहीं होते।
- भारत में वर्ष 2022 में पेटेंट आवेदनों में रिकॉर्ड 31.6% की वृद्धि देखी गई, लेकिन IIT जैसे प्रमुख संस्थानों के विश्व स्तरीय अनुसंधान के बावजूद, इन पेटेंटों का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही सफलतापूर्वक व्यावसायीकरण किया गया।
- इसकी तुलना में, अमेरिका बे-डोल एक्ट (Bayh-Dole Act) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से प्रौद्योगिकी अंतरण को बढ़ावा देता है, जो संघ द्वारा वित्तपोषित अनुसंधान के व्यावसायीकरण को अनिवार्य बनाता है, जिससे एक समृद्ध नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होता है।
- सीमित डीप-टेक स्टार्टअप फंडिंग: भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का उपभोक्ता तकनीक और ई-कॉमर्स की ओर रुझान है, जिसमें AI, क्वांटम कंप्यूटिंग एवं अंतरिक्ष तकनीक जैसे डीप-टेक क्षेत्रों के लिये अपर्याप्त उद्यम पूंजी है, जिन्हें लंबी अवधि की आवश्यकता होती है।
- नैसकॉम ने वर्ष 2023 में भारतीय डीप-टेक स्टार्टअप्स में उन्नति की रिपोर्ट दी है, लेकिन फंडिंग में 77% की गिरावट आई है।
- उदाहरण के लिये, अग्निकुल कॉसमॉस जैसी अंतरिक्ष-तकनीक कंपनियों को भारत के निजी अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी अग्रणी उपलब्धियों के बावजूद परिचालन बढ़ाने के लिये वित्त पोषण प्राप्त करने में संघर्ष करना पड़ा है।
- जलवायु-तकनीक नवाचार के प्रति खंडित दृष्टिकोण: भारत का जलवायु-तकनीक नवाचार, हरित हाइड्रोजन और उन्नत बैटरी भंडारण जैसी संधारणीय प्रौद्योगिकियों की महती आवश्यकता के बावजूद समन्वित नीति एवं निवेश की कमी के कारण सीमित है।
- यद्यपि भारत ने वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय क्षमता के लिये प्रतिबद्धता जताई है, फिर भी ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों में निवेश अभी भी अपर्याप्त है।
- इसके विपरीत, जर्मनी और जापान जैसे देशों ने अनुसंधान एवं विकास में भारी निवेश करके और सार्वजनिक-निजी भागीदारी बनाकर हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
कोर टेक्नोलॉजी के विकास को बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- अनुसंधान एवं विकास निवेश और सार्वजनिक-निजी सहयोग में वृद्धि: भारत को दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे वैश्विक अग्रणियों के साथ तालमेल बिठाते हुए, अनुसंधान एवं विकास पर व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 2% तक बढ़ाना चाहिये, ताकि क्रांतिकारी नवाचारों को बढ़ावा दिया जा सके।
- निजी क्षेत्र के योगदान के लिये प्रोत्साहन के साथ एक समर्पित राष्ट्रीय कोर टेक्नोलॉजी कोष, AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और सेमीकंडक्टर में उन्नत अनुसंधान को वित्तपोषित कर सकता है।
- सेमीकॉन इंडिया जैसे कार्यक्रमों को राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान के तहत शिक्षा जगत और उद्योग के साथ जोड़ने से अनुसंधान एवं व्यावसायीकरण के अंतराल को कम किया जा सकता है, जिससे एक सुसंगत नवाचार पारिस्थितिकी का निर्माण हो सकता है।
- कोर टेक के लिये विश्व स्तरीय बुनियादी अवसंरचना की स्थापना: भारत को सेमीकंडक्टर फैब्स, क्वांटम लैब और AI टेस्टबेड जैसे अत्याधुनिक बुनियादी अवसंरचना के निर्माण को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- बैंगलोर टेक्नोलॉजी क्लस्टर जैसे प्रौद्योगिकी पार्कों के लिये विशेष प्रोत्साहन वैश्विक प्रौद्योगिकी अग्रणियों को सुविधाएँ स्थापित करने के लिये आकर्षित कर सकता है।
- स्मार्ट सिटी मिशन के साथ PLI योजनाओं को एकीकृत करने से संधारणीय बुनियादी अवसंरचना के साथ उन्नत औद्योगिक क्षेत्रों के निर्माण में मदद मिल सकती है, जिससे एक स्थिर आपूर्ति शृंखला और सुव्यवस्थित रसद सुनिश्चित हो सकती है।
- राष्ट्रीय प्रतिभा रणनीति विकसित करना: मुख्य प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में उद्योग-तैयार कार्यबल की मांग को पूरा करने के लिये कौशल और पुनः कौशल पर ध्यान केंद्रित करने वाली एक राष्ट्रव्यापी रणनीति को लागू किया जाना चाहिये।
- स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रमों को AI, रोबोटिक्स और ब्लॉकचेन में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये वैश्विक फर्मों के साथ साझेदारी करनी चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, उभरती प्रौद्योगिकियों को शामिल करने के लिये STEM पाठ्यक्रम में सुधार करके कौशल अंतर को कम किया जा सकता है; उदाहरण के लिये, सभी इंजीनियरिंग कार्यक्रमों में AI व डेटा एनालिटिक्स पाठ्यक्रमों को शामिल करना।
- रणनीतिक निवेश के साथ घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना: भारत को आयात निर्भरता कम करने के लिये सेमीकंडक्टर, लिथियम-आयन बैटरी और उन्नत मशीनरी जैसे उच्च तकनीक वाले विनिर्माण क्षेत्रों में निवेश करना चाहिये।
- राष्ट्रीय विनिर्माण नीति को इन क्षेत्रों में स्टार्टअप्स और MSME को समर्थन देने के लिये आत्मनिर्भर भारत पहल के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, घरेलू लिथियम-आयन बैटरी उत्पादन के साथ इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण (FAME) को संरेखित करने से एक स्थायी EV पारिस्थितिकी तंत्र बनाया जा सकता है, जिससे चीनी आयात पर निर्भरता कम हो सकती है।
- एकीकृत नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण: प्रौद्योगिकी के नवाचार और व्यावसायीकरण को बढ़ावा देने के लिये शिक्षाविदों, स्टार्टअप्स और उद्योगों के बीच सहयोग को मज़बूत करना चाहिये।
- स्टार्टअप इंडिया पहल जैसे कार्यक्रमों का विस्तार करके कोर-टेक स्टार्टअप्स को वित्त पोषण और मार्गदर्शन प्रदान किया जा सकता है।
- इनोवेशन एक्सचेंज प्लेटफॉर्म के माध्यम से IIT और NIT को औद्योगिक केंद्रों से जोड़ने से सिलिकॉन वैली शैली के पारिस्थितिकी तंत्र की सफलता को दोहराया जा सकता है, जिससे अधिक प्रभावी प्रौद्योगिकी अंतरण एवं स्केलेबल समाधान प्राप्त हो सकते हैं।
- साइबर सुरक्षा और स्वदेशी समाधान पर ध्यान: भारत को बढ़ते साइबर खतरों के बीच महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये स्वदेशी साइबर सुरक्षा बुनियादी अवसंरचना के निर्माण को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- साइबर सुरक्षित भारत जैसे कार्यक्रमों को खतरे की रियल टाइम मॉनिटरिंग उपकरण और मज़बूत AI-संचालित रक्षा प्रणालियों को शामिल करने के लिये विस्तार की आवश्यकता है।
- प्रौद्योगिकी अंतरण के लिये वैश्विक साझेदारी का लाभ उठाना: भारत को सेमीकंडक्टर और AI में उन्नत विशेषज्ञता हासिल करने के लिये महत्त्वपूर्ण और उभरती टेक्नोलॉजी (iCET) पर भारत-अमेरिका पहल जैसी पहलों के माध्यम से वैश्विक तकनीकी अग्रणियों के साथ सहयोग को गहन करना चाहिये।
- जापान (रोबोटिक्स के लिये) और जर्मनी (हरित हाइड्रोजन तकनीक के लिये) के साथ ऐसी साझेदारी का विस्तार करने से भारत की क्षमताओं में तीव्रता आ सकती है।
- उदाहरण के लिये, सेमीकॉन इंडिया के तहत घरेलू प्रयासों के साथ क्वाड सेमीकंडक्टर पहल को जोड़ने से लचीली आपूर्ति शृंखला बनाने में मदद मिल सकती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीकी पहुँच बढ़ाना: ग्रामीण-शहरी विभाजन को कम करने के लिये, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि AI और IoT जैसी प्रमुख प्रौद्योगिकियाँ वंचित क्षेत्रों तक पहुँचें।
- डिजिटल समावेशन को सक्षम करने के लिये सभी ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये भारतनेट जैसे कार्यक्रमों में तीव्रता लाई जानी चाहिये।
- इसे डिजिटल इंडिया पहल के साथ जोड़ने से AI-संचालित फसल निगरानी और सटीक कृषि उपकरण जैसे कृषि प्रौद्योगिकी समाधानों को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे ग्रामीण उत्पादकता में वृद्धि होगी।
- सतत् प्रौद्योगिकी विकास के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था को अपनाना: भारत को ई-अपशिष्ट के पुनर्चक्रण और संसाधन-गहन प्रथाओं को कम करने पर ध्यान केंद्रित करके स्थिरता को अपने मुख्य प्रौद्योगिकी विकास में एकीकृत करना चाहिये।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के सहयोग द्वारा हरित प्रौद्योगिकी क्षेत्रों की स्थापना से पर्यावरण अनुकूल नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
- उदाहरण के लिये, सौर ऊर्जा को बैटरी रिसाइक्लिंग संयंत्रों के साथ संयोजित करने से EV क्षेत्र को स्थायी रूप से समर्थन मिल सकता है, जिससे स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये एक चक्रीय अर्थव्यवस्था का निर्माण हो सकता है।
- बौद्धिक संपदा (IP) कार्यढाँचे को मज़बूत करना: भारत को नवाचार को प्रोत्साहित करने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये अपनी IP दाखिल करने की प्रक्रिया को सरल बनाना चाहिये तथा प्रवर्तन को बढ़ाना चाहिये।
- फास्ट-ट्रैक IP अदालतों और IP जागरूकता अभियानों की स्थापना से नवाचारों का शीघ्र व्यावसायीकरण सुनिश्चित हो सकता है।
- इसे स्टार्टअप इंडिया के साथ जोड़ने से स्टार्टअप्स को सब्सिडीयुक्त पेटेंट फाइलिंग सहायता मिल सकती है, जिससे नवाचारों के संरक्षण और उनसे धन कमाने की संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा।
- प्रौद्योगिकी में लैंगिक विविधता को प्रोत्साहित करना: भारत को अपनी प्रतिभा को बढ़ाने के लिये STEM और मुख्य प्रौद्योगिकी भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- AI, क्वांटम और रोबोटिक्स में महिलाओं के लिये छात्रवृत्ति, मार्गदर्शन एवं नेतृत्व प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये STEM में महिलाओं की भागीदारी जैसी पहल का विस्तार किया जाना चाहिये।
- इन्हें डिजिटल साक्षरता अभियान (DISHA) जैसे कार्यक्रमों के साथ जोड़कर तकनीकी नवाचार में महिलाओं की ज़मीनी स्तर पर भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है।
- दुर्लभ मृदा तत्त्वों के रणनीतिक भंडार का निर्माण: भारत को अर्द्धचालकों और EV बैटरियों के लिये आयात पर निर्भरता कम करने हेतु घरेलू स्तर पर दुर्लभ मृदा तत्त्वों की खोज़ एवं खनन में निवेश करना चाहिये।
- राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट को दुर्लभ मृदा प्रसंस्करण सुविधाएँ विकसित करने के लिये निजी कंपनियों को प्रोत्साहित करने हेतु मेक इन इंडिया कार्यक्रम के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 में चौथे सबसे बड़े दुर्लभ पृथ्वी खनन देश, ऑस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी बनाकर भारत की आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
प्रौद्योगिकी-संचालित विकसित अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये, भारत को मुख्य प्रौद्योगिकियों के व्यावसायीकरण में बहुत बड़े अंतराल को न्यूनतम करना होगा। शिक्षाविदों, उद्योग और सरकार के बीच मज़बूत सहयोग को बढ़ावा देने तथा अनुसंधान और विकास में निवेश को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाकर, भारत एक संपन्न नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र बना सकता है। इन प्रयासों को दृढ करने से न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, स्थिरता और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में भी योगदान मिलेगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत ने लगातार अत्याधुनिक कोर प्रौद्योगिकियों को विकसित करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है, फिर भी उन्हें प्रभावी रूप से व्यावसायीकृत करने के लिये संघर्ष किया है। इस अंतर के पीछे के कारणों का विश्लेषण कीजिये तथा शिक्षा, उद्योग और सरकार के बीच संबंधों को मज़बूत करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. अटल नवप्रवर्तन (इनोवेशन) मिशन किसके अधीन स्थापित किया गया है?(2019) (a) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. कोविड-19 महामारी ने विश्वभर में अभूतपूर्व तबाही उत्पन्न की है। तथापि, इस संकट पर विजय पाने के लिये प्रौद्योगिकीय प्रगति का लाभ स्वेच्छा से लिया जा रहा है। इस महामारी के प्रबंधन के सहायतार्थ प्रौद्योगिकी की खोज़ कैसे की गई, उसका एक विवरण दीजिये। (2020) |