राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति
प्रिलिम्स के लिये:बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ, संबंधित पहल। मेन्स के लिये:IPR की आवश्यकता, संधियाँ, IPR का विनियमन, IPR व्यवस्था से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति के कार्यान्वयन के बाद से देश के IPR पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण बदलाव देखे गए हैं। हालाँकि ऐसा लगता है कि देश का पेटेंट संबंधी प्रतिष्ठान यह प्रदर्शित करने में काफी समय दे रहा है कि यह पेटेंट-अनुकूल होने की तुलना में अधिक पेटेंट करने वाले के अनुकूल है।
- IPR में संरचनात्मक और विधायी परिवर्तनों के अनुसार, वर्ष 2021 में बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (IPAB) का विघटन हुआ था और मुद्दों को हल करने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय में समर्पित IP डिवीज़न स्थापित किये गए थे।
राष्ट्रीय IPR नीति:
- परिचय:
- वाणिज्य मंत्रालय के तहत उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने वर्ष 2016 में राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति को अपनाया।
- नीति का मुख्य लक्ष्य "क्रिएटिव इंडिया; इनोवेटिव इंडिया" है।
- यह पालिसी IP के सभी प्रारूपों को कवर करती है तथा उनके और अन्य एजेंसियों के मध्य तालमेल बनाने का प्रयास करती है तथा कार्यान्वयन एवं समीक्षा के लिये एक संस्थागत तंत्र स्थापित करती है।
- DPIIT भारत में IPR विकास के लिये नोडल विभाग है तथा DPIIT के तहत IPR संवर्द्धन और प्रबंधन सेल (CIPAM) की नीतियों को लागू करने के लिये एकल बिंदु है।
- भारत की IPR व्यवस्था विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS) पर समझौते का अनुपालन करती है।
- वाणिज्य मंत्रालय के तहत उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने वर्ष 2016 में राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति को अपनाया।
- उद्देश्य:
- IPR जागरूकता: समाज के सभी वर्गों के बीच IPR के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक लाभों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता पैदा करने के लिये आउटरीच एवं संवर्द्धन महत्त्वपूर्ण हैं।
- बौद्धिक संपदा का सृजन: IPR सृजन को प्रोत्साहित करना।
- कानूनी और विधायी ढाँचा मज़बूत और प्रभावी IPR कानून होना चाहिये, जो बड़े सार्वजनिक हित के साथ मालिकों के अधिकार व हितों को संतुलित करते हैं।
- प्रशासन और प्रबंधन: सेवा उन्मुख IPR प्रशासन को आधुनिक और मज़बूत बनाना।
- IPR का व्यावसायीकरण: व्यावसायीकरण के माध्यम से IPR के लिये मूल्य प्राप्त करना।
- प्रवर्तन और अधिनिर्णयन: IPR उल्लंघनों का मुकाबला करने के लिये प्रवर्तन और अधिनिर्णयन तंत्र को मज़बूत करना।
- मानव पूंजी विकास: IPR में शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान और कौशल निर्माण के लिये मानव संसाधनों, संस्थानों एवं क्षमताओं को मज़बूत व विस्तारित करना।
बौद्धिक संपदा अधिकार:
- परिचय:
- व्यक्तियों को उनके बौद्धिक सृजन के परिप्रेक्ष्य में प्रदान किये जाने वाले अधिकार ही बौद्धिक संपदा अधिकार कहलाते हैं। वे आमतौर पर निर्माता को एक निश्चित अवधि के लिये अपनी रचना के उपयोग पर एक विशेष अधिकार देते हैं।
- मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद-27 में इन अधिकारों का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार वैज्ञानिक, साहित्यिक या कलात्मक कार्यों के लेखन से उत्पन्न नैतिक और भौतिक हितों की सुरक्षा से लाभ का अधिकार गारंटीकृत है।
- बौद्धिक संपदा के महत्त्व को पहली बार औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय (1883) और साहित्यिक तथा कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न अभिसमय (1886) में मान्यता दी गई थी।
- दोनों संधियों को विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization -WIPO) द्वारा प्रशासित किया जाता है।
- बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रकार:
- कॉपीराइट:
- साहित्यिक और कलात्मक कार्यों (जैसे किताबें और अन्य लेखन, संगीत रचनाएँ, पेंटिंग, मूर्तिकला, कंप्यूटर प्रोग्राम और फिल्में) के लेखकों के अधिकारों को लेखक की मृत्यु के बाद कम-से-कम 50 वर्ष की अवधि के लिये कॉपीराइट द्वारा संरक्षित किया जाता है।
- औद्योगिक संपदा:
- विशेष रूप से ट्रेडमार्क और भौगोलिक संकेतों में विशिष्ट चिह्नों का संरक्षण:
- ट्रेडमार्क
- भौगोलिक संकेतक
- औद्योगिक डिज़ाइन और व्यापार गोपनीयता:
- अन्य प्रकार की औद्योगिक संपत्ति को मुख्य रूप से नवाचार, डिज़ाइन और प्रौद्योगिकी के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये संरक्षित किया जाता है।
- विशेष रूप से ट्रेडमार्क और भौगोलिक संकेतों में विशिष्ट चिह्नों का संरक्षण:
- कॉपीराइट:
- IPR की आवश्यकता:
- नवाचार को प्रोत्साहन:
- नई रचनाओं का विधिक संरक्षण आने वाले समय में नवाचार के लिये अतिरिक्त संसाधनों की प्रतिबद्धता को प्रोत्साहित करता है।
- आर्थिक वृद्धि:
- बौद्धिक संपदा का प्रचार और संरक्षण आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देता है, नए रोज़गार तथा उद्योगों का सृजन करता है एवं जीवन की गुणवत्ता और खुशहाली को बढ़ाता है।
- रचनाकारों के अधिकारों की सुरक्षा:
- विनिर्मित वस्तुओं के उपयोग के तरीके को विनियमित करने के लिये विशिष्ट, सीमित समय के लिये अधिकारों की अनुमति देकर उनकी बौद्धिक संपदा के रचनाकारों और अन्य उत्पादकों की रक्षा के लिये IPR आवश्यक है।
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस:
- यह नवाचार और रचनात्मकता को प्रोत्साहन प्रदान करता है तथा व्यापार करने में आसानी सुनिश्चित करता है।
- प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण:
- यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, संयुक्त उद्यम और लाइसेंसिंग के रूप में प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है।
- नवाचार को प्रोत्साहन:
IPR से संबंधित संधियाँ और अभिसमय:
- वैश्विक:
- भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है और बौद्धिक संपदा के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS समझौते) पर समझौते के लिये प्रतिबद्ध है।
- भारत विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organisation- WIPO) का भी सदस्य है, जो पूरे विश्व में बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये ज़िम्मेदार निकाय है।
- भारत IPR से संबंधित निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण WIPO-प्रशासित अंतर्राष्ट्रीय संधियों और अभिसमय का भी सदस्य है:
- पेटेंट संबंधी प्रक्रिया के प्रयोजनों के लिये सूक्ष्मजीवों के डिपोज़िट की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता पर बुडापेस्ट संधि।
- औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय।
- विश्व बौद्धिक संपदा संगठन की स्थापना करने वाला अभिसमय।
- साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न अभिसमय।
- पेटेंट सहयोग संधि।
- राष्ट्रीय:
- भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970:
- भारत में पेटेंट प्रणाली के लिये यह प्रमुख कानून वर्ष 1972 में लागू हुआ। इसे भारतीय पेटेंट और डिज़ाइन अधिनियम, 1911 के स्थान पर लाया गया।
- इस अधिनियम को पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005 द्वारा संशोधित किया गया था, जिसमें उत्पाद पेटेंट को भोजन, दवाओं, रसायनों और सूक्ष्मजीवों सहित प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों तक विस्तारित किया गया था।
- भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970:
IPR व्यवस्था से संबंधित मुद्दे:
- सार्वजनिक स्वास्थ्य के संदर्भ में पेटेंट-मित्रता: राष्ट्रीय IPR नीति विश्व स्तर पर सस्ती दवाएँ उपलब्ध कराने में भारतीय दवा क्षेत्र के योगदान को मान्यता देती है। हालाँकि भारत के पेटेंट प्रतिष्ठान ने सार्वजनिक स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में राष्ट्रीय हित पर पेटेंट-मित्रता (Patent-Friendliness) को प्राथमिकता दी है।
- डेटा विशिष्टता: विदेशी निवेशकों और बहु-राष्ट्रीय निगमों (Multi-National Corporations- MNC) का आरोप है कि भारतीय कानून दवा या कृषि-रसायन उत्पादों के बाज़ार अनुमोदन के लिये आवेदन के दौरान परीक्षण डेटा या सरकार को प्रस्तुत अन्य डेटा के अनुचित व्यावसायिक उपयोग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान नहीं करता है। वे इसके लिये डेटा विशिष्टता कानून की मांग करते हैं।
- प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी बाज़ार परिणाम: पेटेंट अधिनियम में चार हितधारक हैं: समाज, सरकार, पेटेंट प्राप्तकर्त्ता एवं उनके प्रतियोगी, साथ ही केवल पेटेंट धारकों को लाभ पहुँचाने के लिये अधिनियम की व्याख्या करना और उसे लागू करना अन्य हितधारकों के अधिकारों को कमज़ोर करता है तथा प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी बाज़ार परिणामों की ओर ले जाता है।
निष्कर्ष:
- निवेश आकर्षित करने के लिये सिर्फ IPR केंद्रित माहौल को बढ़ावा देना ही काफी नहीं है। IPR का प्रचार राष्ट्रीय हित और सार्वजनिक स्वास्थ्य दायित्त्वों के साथ संतुलित होना चाहिये। "मेक इन इंडिया" को "आत्मनिर्भर भारत" से समझौता किये बिना प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (c) प्रश्न: वैश्वीकृत दुनिया में बौद्धिक संपदा अधिकार महत्त्व रखते हैं और मुकदमेबाज़ी का एक स्रोत है। कॉपीराइट, पेटेंट तथा ट्रेड सीक्रेट्स के बीच व्यापक रूप से अंतर कीजिये। (मुख्य परीक्षा 2014) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
महात्मा गांधी के आदर्श
प्रिलिम्स के लिये:महात्मा गांधी, शहीद दिवस, अस्पृश्यता, संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग, म्याँमार में आंग सान सू की, सांप्रदायिक सद्भाव। मेन्स के लिये:प्रमुख गांधीवादी विचारधाराएँ, वर्तमान के संदर्भ में गांधीजी की प्रासंगिकता। |
चर्चा में क्यों?
30 जनवरी, 2023 को महात्मा गांधी को उनकी 75वीं पुण्यतिथि पर राष्ट्र द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस दिन को शहीद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
प्रमुख गांधीवादी विचारधाराएँ:
- भारत के लिये दूरदृष्टि: भारत के लिये गांधीजी का दृष्टिकोण औपनिवेशिक शासन से राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने से भी आगे का था।
- उन्होंने सामाजिक मुक्ति, आर्थिक सशक्तीकरण और विभिन्न भाषा, धर्म और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में एकजुटता की साझा भावना का लक्ष्य रखा।
- अहिंसा: गांधी अहिंसा के प्रबल समर्थक थे और उनका मानना था कि न्याय तथा स्वतंत्रता के संघर्ष में यह सबसे शक्तिशाली हथियार है।
- उनका यह भी मानना था कि अहिंसा जीवन का एक अभिन्न अंग होना चाहिये, न कि केवल एक राजनीतिक रणनीति, यह स्थायी शांति एवं सामाजिक सद्भाव की ओर ले जाएगी।
- गांधी एक ऐसे नेता थे जिन्होंने प्रेम और करुणा के माध्यम से लोगों को प्रेरित एवं सशक्त किया।
- भेदभाव के खिलाफ: गांधी ने पूरे भारत की यात्रा की और देश के विभिन्न सांस्कृतिक विविधताओं को देखा। वह लोगों को उन सामान्य चीज़ों को उजागर करके एक साथ लाए जो उन्हें एकजुट करती थीं, जैसे उनका विश्वास।
- गांधी धर्म या जाति की परवाह किये बिना सभी के साथ समान व्यवहार करने में दृढ़ता से विश्वास करते थे। वह भेदभाव और छुआछूत की कुप्रथा के खिलाफ थे।
- धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण: गांधी हिंदू थे लेकिन एक धर्मनिरपेक्ष भारत में उनका दृढ विश्वास था, जहाँ सभी धर्म एक साथ शांतिपूर्वक रह सकते थे। वह धर्म के आधार पर हुए भारत के बँटवारे से बहुत परेशान एवं चिंतित थे।
- वर्तमान में गांधी के शांति, समावेश और सद्भाव के मूल्यों को याद रखना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ये मूल्य अब भी प्रासंगिक हैं।
- सांप्रदायिक सद्भाव: गांधी सभी समुदायों की एकता में दृढ़ विश्वास रखते थे और उन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये अथक रूप से काम किया।
- उनका मानना था कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है और इस विविधता का जश्न बिना डरे मनाया जाना चाहिये।
- वह हिंदू-मुस्लिम विभाजन से बहुत परेशान थे और उन्होंने दोनों समुदायों को एक साथ लाने का काम किया।
- आत्मनिर्भरता: गांधी आत्मनिर्भरता के महत्त्व में विश्वास करते थे और उन्होंने भारतीयों को अधिक-से-अधिक तरीकों से आत्मनिर्भर बनने के लिये प्रोत्साहित किया।
- उन्होंने स्थानीय संसाधनों और पारंपरिक कौशल के उपयोग एवं कुटीर उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित किया।
- उनका यह भी मानना था कि भारत के लोगों को अपने विकास की ज़िम्मेदारी खुद लेनी चाहिये और बाहरी सहयोग पर निर्भर नहीं रहना चाहिये।
आज के संदर्भ में गांधीवादी विचारधारा की प्रासंगिकता:
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स :प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन अंग्रेज़ी में प्राचीन भारतीय धार्मिक गीतों के अनुवाद 'सॉन्ग्स फ्रॉम प्रिज़न' से संबंधित है? (2021) (a) बाल गंगाधर तिलक उत्तर: (c) प्रश्न. भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिये। (2021) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
GACs करेंगी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ शिकायतों का समाधान
प्रिलिम्स के लिये:सोशल मीडिया, साइबर सुरक्षित भारत पहल, साइबर स्वच्छता केंद्र, ऑनलाइन साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल, भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) मेन्स के लिये:सोशल मीडिया से संबंधित पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने तीन शिकायत अपील समितियों (GACs) के गठन को अधिसूचित किया जो सोशल मीडिया और अन्य इंटरनेट-आधारित प्लेटफॉर्म्स के खिलाफ उपयोगकर्त्ता की शिकायतों का समाधान करेंगी।
- पैनल्स को इन प्लेटफॉर्म्स द्वारा लिये गए सामग्री मॉडरेशन-संबंधी निर्णयों की देख-रेख करने और उन्हें रद्द करने का भी अधिकार होगा।
GACs क्या हैं?
- संघटन:
- तीनों GACs में से प्रत्येक में एक अध्यक्ष, दो पूर्णकालिक सदस्य होंगे, जो विभिन्न सरकारी संस्थाओं और उद्योग से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी होंगे, जिनका कार्यकाल पद ग्रहण करने की तारीख से तीन वर्ष की अवधि के लिये होगा।
- पहला पैनल: इसकी अध्यक्षता गृह मंत्रालय के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र का मुख्य कार्यकारी अधिकारी करेगा।
- दूसरा पैनल: इसकी अध्यक्षता सूचना और प्रसारण मंत्रालय में नीति एवं प्रशासन प्रभाग का प्रभारी संयुक्त सचिव करेगा।
- तीसरा पैनल: इसकी अध्यक्षता इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY) का एक वरिष्ठ वैज्ञानिक करेगा।
- तीनों GACs में से प्रत्येक में एक अध्यक्ष, दो पूर्णकालिक सदस्य होंगे, जो विभिन्न सरकारी संस्थाओं और उद्योग से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी होंगे, जिनका कार्यकाल पद ग्रहण करने की तारीख से तीन वर्ष की अवधि के लिये होगा।
- विवादों का समाधान:
- GAC दो प्रकार के विवादों का निपटान करेगी:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गोपनीयता के अधिकार सहित विधि और उपयोगकर्त्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन।
- एक मंच के सामुदायिक दिशा-निर्देशों और उपयोगकर्त्ता के बीच संविदात्मक विवाद।
- कार्य:
- GAC प्रौद्योगिकी क्षेत्र के नियामक के एक घटक के रूप में भी काम करेगी जिसे MeitY द्वारा भविष्य के डिजिटल इंडिया बिल के अनुसार स्थापित करने का अनुमान है, यह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 को प्रतिस्थापित करेगा।
- GACs एक ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र अपनाएगी जिसमे पूरी अपील प्रक्रिया, यानी इसके फाइलिंग से लेकर अंतिम निर्णय तक ऑनलाइन की जाएगी।
- सोशल मीडिया मध्यस्थ के शिकायत अधिकारी के निर्णय से असंतुष्ट किसी भी व्यक्ति को तीस दिनों की अवधि के भीतर GAC को अपील दायर करने की अनुमति होगी।
- अपील प्राप्त होने के एक महीने के भीतर GAC को इस पर विचार करना होगा और निर्णय देना होगा।
- महत्त्व और इसकी आवश्यकता:
- GAC इस समग्र नीति और विधिक ढाँचे का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, यह इसलिये आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत में इंटरनेट खुला, सुरक्षित, विश्वसनीय और जवाबदेह हो।
- बड़ी संख्या में शिकायतों का समाधान नही किये जाने या इंटरनेट मध्यस्थों द्वारा असंतोषजनक ढंग से संबोधित किये जाने के कारण GAC अस्तित्त्व में आई।
- इसके माध्यम से सभी इंटरनेट प्लेटफॉर्मों और मध्यस्थों का अपने उपभोक्ताओं के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित किये जाने की उम्मीद है।
- आलोचना:
- प्रस्ताव की पहले इस चिंता के कारण आलोचना की गई थी कि सरकार द्वारा नियुक्त पैनल सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा किये गए सामग्री-मॉडरेशन निर्णयों को निर्धारित करने में सक्षम होंगे।
साइबर सुरक्षा हेतु सरकार की वर्तमान पहल:
- साइबर सुरक्षित भारत पहल
- साइबर स्वच्छता केंद्र
- ऑनलाइन साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल
- भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C)
- राष्ट्रीय अतिसंवेदनशील सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (National Critical Information Infrastructure Protection Centre- NCIIPC)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसके लिये साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना कानूनी रूप से अनिवार्य है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न: ‘सामाजिक संजाल स्थल’ (Social Networking Sites) क्या हैं और इन स्थलों से क्या सुरक्षा उलझनें प्रस्तुत होती हैं? (मुख्य परीक्षा, 2013) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
उच्च शिक्षा और अखिल भारतीय सर्वेक्षण 2020-2021
प्रिलिम्स के लिये:उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE) 2020-2021, संस्थान घनत्त्व, सकल नामांकन अनुपात, छात्र-शिक्षक अनुपात, लिंग समानता सूचकांक, सकल नामांकन अनुपात, दिव्यांगजन, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)। मेन्स के लिये:AISHE डेटा की प्रमुख विशेषताएँ, भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली से संबंधित वर्तमान प्रमुख मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (All India Survey on Higher Education- AISHE) 2020-2021 के आँकड़े जारी किये हैं जिसमें वर्ष 2019-20 की तुलना में देश भर में छात्र नामांकन में 7.5% की वृद्धि देखी गई।
- इस सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि वर्ष 2020-21 में, यानी जिस वर्ष कोविड-19 महामारी शुरू हुई थी, दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों में नामांकन में 7% की वृद्धि देखी गई थी।
AISHE:
- देश में उच्च शिक्षा की स्थिति को प्रस्तुत करने के लिये शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2010-11 से एक वार्षिक वेब-आधारित AISHE आयोजित करने का लक्ष्य रखा है।
- इसके तहत शिक्षक, छात्र नामांकन, विभिन्न कार्यक्रम, परीक्षा परिणाम, शिक्षा संबंधी वित्त, बुनियादी ढाँचे जैसे कई मापदंडों पर डेटा एकत्रित किया जा रहा है।
- शैक्षिक विकास के विभिन्न संकेतक जैसे- संस्थान घनत्त्व, सकल नामांकन अनुपात, छात्र-शिक्षक अनुपात, लैंगिक समानता सूचकांक, प्रति छात्र व्यय की गणना भी AISHE के माध्यम से एकत्र किये गए आँकड़ों के आधार पर की जाएगी।
- यह शिक्षा क्षेत्र के विकास के लिये सूचित नीतिगत निर्णय लेने और अनुसंधान करने में काफी उपयोगी होगा।
AISHE डेटा के प्रमुख बिंदु:
- छात्र नामांकन:
- सभी नामांकनों (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार) के लिये सकल नामांकन अनुपात (GER) 2 अंक बढ़कर 27.3 हो गया।
- उच्चतम नामांकन स्नातक स्तर पर देखा गया, जो कुल नामांकन का 78.9% था।
- उच्च शिक्षा कार्यक्रमों में महिला नामांकन, जो कि वर्ष 2019-20 में 45% था, यह वर्ष 2020-21 में कुल नामांकन का 49% हो गया।
- परंतु विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) में नामांकन (उच्च शिक्षा के सभी स्तरों पर) के समग्र आँकड़े बताते हैं कि महिलाएँ पुरुषों से पीछे हैं, जिनका इन क्षेत्रों में 56% से अधिक नामांकन हुआ है।
- लैंगिक समानता सूचकांक (GPI), महिला GER और पुरुष GER अनुपात वर्ष 2017-18 के 1 से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 1.05 हो गया है।
- दिव्यांग जन श्रेणी में छात्रों की संख्या वर्ष 2019-20 के 92,831 से घटकर वर्ष 2020-21 में 79,035 हो गई।
- उच्च शिक्षा के लिये नामांकन करने वाले मुस्लिम छात्रों का अनुपात वर्ष 2019-20 में 5.5% से गिरकर 2020-21 में 4.6% हो गया।
- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान नामांकित छात्रों की संख्या के मामले में शीर्ष 6 राज्य हैं।
- सभी नामांकनों (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार) के लिये सकल नामांकन अनुपात (GER) 2 अंक बढ़कर 27.3 हो गया।
- विश्वविद्यालय और कॉलेज: वर्ष 2020-21 के दौरान विश्वविद्यालयों की संख्या में 70 की वृद्धि हुई है और कॉलेजों की संख्या में 1,453 की वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2020-21 में 21.4% सरकारी कॉलेजों में कुल नामांकन का 34.5% हिस्सा था, जबकि शेष 65.5% निजी सहायता प्राप्त और निजी गैर-सहायता प्राप्त कॉलेजों में देखा गया था।
- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और गुजरात कॉलेजों की संख्या के मामले में शीर्ष 8 राज्य हैं।
- संकाय/फैकल्टी: प्रति 100 पुरुष फैकल्टी पर महिला फैकल्टी का आँकड़ा वर्ष 2014-15 में 63 और 2019-20 में 74 से वर्ष 2020-21 में 75 हो गया है।
भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली से संबंधित वर्तमान प्रमुख मुद्दे:
- फैकल्टी की कमी: AISHE 2020-21 के अनुसार, छात्र-शिक्षक अनुपात सभी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्टैंडअलोन संस्थानों के लिये 27:1 था और नियमित मोड संस्थानों में छात्र-शिक्षक अनुपात 24:1 के संदर्भ में पर विचार किया जाए तो शिक्षा की गुणवत्ता चिंता का विषय बनी हुई है।
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: भारत में उच्च शिक्षा के लिये खराब बुनियादी ढाँचा एक और चुनौती है।
- बजट घाटे, भ्रष्टाचार और निहित स्वार्थ समूह द्वारा पैरवी के कारण भारत में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालयों में आवश्यक बुनियादी ढाँचे की कमी है।
- विनियामक मुद्दे: भारतीय उच्च शिक्षा का प्रबंधन जवाबदेही, पारदर्शिता और व्यावसायिकता की कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- संबद्ध कॉलेजों और छात्रों की संख्या में वृद्धि के परिणामस्वरूप, विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक कार्यों का दबाव काफी बढ़ गया है जिससे शिक्षा तथा अनुसंधान पर ध्यान देना कठिन हो रहा है।
- ब्रेन ड्रेन की समस्या: IIT और IIM जैसे शीर्ष संस्थानों में प्रवेश पाने के लिये गलाकाट प्रतियोगिता के कारण भारत में बड़ी संख्या में छात्रों हेतु एक चुनौतीपूर्ण शैक्षणिक माहौल बना हुआ है, इसलिये वे विदेश जाना पसंद करते हैं, जिसके कारण हमारा देश अच्छी प्रतिभाओं से वंचित हो जाता है।
- भारत में शिक्षा का मात्रात्मक विस्तार ज़रूर हुआ है लेकिन गुणात्मक पक्ष (एक छात्र को नौकरी पाने के लिये आवश्यक) पिछड़ता जा रहा है।
भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार:
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का कार्यान्वयन: NEP के कार्यान्वयन से शिक्षा प्रणाली में सुधार हेतु मदद मिल सकती है।
- नई शिक्षा नीति में वर्तमान में सक्रिय 10+2 के शैक्षिक मॉडल के स्थान पर शैक्षिक पाठ्यक्रम को 5+3+3+4 प्रणाली के आधार पर विभाजित करने की बात कही गई है।
- शिक्षा-रोज़गार गलियारा: भारत के शैक्षिक ढाँचे को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ व्यावसायिक शिक्षा से एकीकृत कर और स्कूल में (विशेष रूप से सरकारी स्कूलों में) सही मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि छात्रों को शुरू से ही सही दिशा में निर्देशित किया जा सके और वे कॅरियर के अवसरों के बारे में जागरूक हो सकें।
- अतीत से भविष्य की ओर ध्यान देना: लंबे समय से स्थापित हमारी अतीत को ध्यान में रखते हुए भविष्य पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।
- शिक्षा का प्राचीन मूल्यांकन विषयगत ज्ञान की ग्रेडिंग तक ही सीमित नहीं था। इसमें छात्रों द्वारा सीखे गए कौशल ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता था कि वे वास्तविक जीवन स्थितियों में व्यावहारिक ज्ञान को कितनी अच्छी तरह लागू कर सकते हैं।
- आधुनिक शिक्षा प्रणाली भी मूल्यांकन की समान प्रणाली विकसित कर सकती है।
- शिक्षा का प्राचीन मूल्यांकन विषयगत ज्ञान की ग्रेडिंग तक ही सीमित नहीं था। इसमें छात्रों द्वारा सीखे गए कौशल ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता था कि वे वास्तविक जीवन स्थितियों में व्यावहारिक ज्ञान को कितनी अच्छी तरह लागू कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. संविधान के निम्नलिखित प्रावधानों में से कौन से प्रावधान भारत की शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने देश में शिक्षा प्रणाली के कामकाज़ में कैसे योगदान दिया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) प्रश्न 2. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों का विस्तार से उल्लेख कीजिये। (2021) |
स्रोत: द हिंदू
प्रौद्योगिकीय क्षेत्र में छँटनी
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक छँटनी, आर्थिक मंदी, GDP, रोज़गार, रूस-यूक्रेन संघर्ष, कोविड-19 मेन्स के लिये:वैश्विक छँटनी का भारत पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
इंटरनेशनल बिज़नेस मशीन कॉर्प (आईबीएम) ने घोषणा की है कि वह लगभग 3,900 कर्मचारियों की छँटनी करेगा।
- यह वर्ष 2022 में तकनीकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों की नवीनतम छँटनी शृंखला है; अकेले तकनीकी क्षेत्र ने 1,50,000 से अधिक कर्मचारियों को निकाल दिया है, साथ ही नए वर्ष की शुरुआत के बाद से कई और नौकरियों में कटौती की घोषणा की जा रही है, यह संख्या 40,000 से अधिक हो सकती है।
- अमेरिका की सबसे बड़ी टेक कंपनियों (अल्फाबेट, अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट और फेसबुक के स्वामित्त्व वाली मेटा) ने हाल के महीनों में 51,000 छँटनी की है।
छँटनी का कारण
- मंदी का खतरा:
- कोविड -19 महामारी ने पहले से ही विकास को धीमा कर दिया था और 2022 में जब महामारी का असर कम हो गया तो रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया और दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने आसन्न मंदी के बारे में सावधानी बरतनी शुरू कर दी।
- ये कंपनियाँ संभावित आर्थिक मंदी से आशंकित हैं तथा दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मुद्रास्फीति बढ़ रही है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने महामारी और चल रहे रूस-यूक्रेन संघर्ष को देखते हुए वर्ष 2022 एवं वर्ष 2023 दोनों में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि के पूर्वानुमान को निराशाजनक बताया है।
- निराशाजनक वृद्धि:
- अल्फाबेट ने अपनी तीसरी वित्तीय तिमाही के लिये अपेक्षा से कम संख्या पोस्ट की थी, जहाँ यह राजस्व और लाभ दोनों में उम्मीदों से पीछे रह गई।
- विश्लेषकों का यह भी अनुमान है कि एप्पल सहित पाँच बड़ी तकनीकी कंपनियाँ अक्तूबर से दिसंबर (2022) की अवधि के लिये निराशाजनक मुनाफे की रिपोर्ट करने की तरफ बढ़ रही हैं।
- रॉयटर्स के एक विश्लेषण में कहा गया है कि अमेज़न की रिपोर्ट से यह अनुमान है कि आय में 38% की गिरावट आई है तथा 22 से अधिक वर्षों में राजस्व सबसे कम गति से बढ़ा है।
- लागत में कटौती:
- छँटनी के प्रमुख कारणों में से एक लागत में कटौती है क्योंकि कंपनियाँ अपने बिलों का भुगतान करने के लिये पर्याप्त धन अर्जित नहीं कर पा रही हैं या फिर उन्हें ऋण चुकाने के लिये अतिरिक्त धन की एक बड़ी राशि की आवश्यकता है।
- मीडिया सूत्रों के अनुसार, वर्ष 2022 में भारतीय कंपनियों नए भी इस समस्या का सामना किया, जब उन्होंने मुख्य रूप से एडटेक और ई-कॉमर्स क्षेत्रों में 10,000 से अधिक कर्मचारियों की छँटनी की।
- छँटनी के प्रमुख कारणों में से एक लागत में कटौती है क्योंकि कंपनियाँ अपने बिलों का भुगतान करने के लिये पर्याप्त धन अर्जित नहीं कर पा रही हैं या फिर उन्हें ऋण चुकाने के लिये अतिरिक्त धन की एक बड़ी राशि की आवश्यकता है।
- ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर घटती निर्भरता:
- महामारी के प्रभाव में कमी आने के साथ-साथ लोगों ने इंटरनेट पर समय देना कम कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी तकनीकी कंपनियों को भारी नुकसान हुआ है।
- महामारी के दौरान समग्र खपत में वृद्धि देखी गई, जिसके बाद कंपनियों ने बाज़ार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपने उत्पादन में वृद्धि की, जिसमें वर्तमान में काफी कमी आई है।
इस छँटनी का भारतीय पेशेवरों पर प्रभाव:
- निकाले गए लोगों में से 30% से 40% के बीच भारतीय IT पेशेवर हैं, जिनमें से बड़ी संख्या H-1B और L1 वीज़ा वालों की है।
- H-1B वीज़ा एक गैर-आप्रवासी वीज़ा है जो अमेरिकी कंपनियों को सैद्धांतिक या तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता वाले विशेष व्यवसायों में विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है।
- प्रौद्योगिकी कंपनियाँ भारत और चीन जैसे देशों से प्रतिवर्ष हज़ारों कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिये इस पर निर्भर होती हैं। उनमें से अब एक बड़ी संख्या निर्धारित कुछ महीनों में नई नौकरी खोजने और अमेरिका में रहने के विकल्पों की तलाश कर रही है, जो उन्हें नौकरी खोने के बाद इन विदेशी कार्य वीज़ा के तहत मिलती है।
भारत में तकनीकी कर्मचारियों के लिये रोज़गार की स्थिति:
- एडटेक और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में देश के स्टार्टअप्स में 20,000 से अधिक श्रमिकों को वर्ष 2022 में निकाल दिया गया था, क्योंकि निवेशकों ने सिर्फ एक वर्ष पहले बाज़ार में बड़ी मात्रा में पूंजी का निवेश किया था।
- स्विगी, 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर या उससे अधिक के मूल्यांकन वाली एक फर्म जैसे स्टार्टअप जो जनवरी में एक डेकाकॉर्न बन गए थे, वर्ष 2023 के शुरू में ही हम देख सकते हैं कि हाल ही में 380 कर्मचारियों को निकाल दिया गया है तथा Google समर्थित शेयरचैट ने 20% या लगभग 400 कर्मचारियों को निकाल दिया।
- कैब सेवा देने वाली कंपनी ओला जिसने अपने क्विक कॉमर्स वर्टिकल का विस्तार करने में विफल बोली के कारण वर्ष 2022 तक 2,000 से अधिक कर्मचारियों को पहले ही निकाल दिया था, ने इस वर्ष की शुरुआत में 200 और कर्मचारियों को निकाल दिया।
छँटनी का प्रभाव:
- श्रमिकों को नुकसान:
- छंँटनी मनोवैज्ञानिक और साथ ही वित्तीय रूप से श्रमिकों को प्रभावित करने के साथ-साथ उनके परिवारों, समुदायों, सहयोगियों और अन्य व्यवसायों के लिये हानिकारक हो सकती है।
- संभावनाओं का नुकसान:
- जिन भारतीय श्रमिकों को नौकरी से निकाला गया है, उनकी चिंता बहुत बड़ी है। यदि वे 60 दिनों के भीतर एक नया नियोक्ता खोजने में असमर्थ रहता हैं, तो उन्हें अमेरिका छोड़ने और बाद में फिर से प्रवेश करने जैसी संभावनाओं का सामना करना पड़ सकता है।
- प्रतिकूल स्थिति के कारण इन भारतीय श्रमिकों की घर वापसी की संभावनाएंँ भी कम हैं।
- अधिकांश भारतीय आईटी कंपनियों ने नियुक्तियों को फ्रीज या धीमा कर दिया है क्योंकि अमेरिका में मंदी की आशंका और यूरोप में उच्च मुद्रास्फीति ने मांग को कम रखा है।
- ग्राहकों की संभाव्यता में कमी:
- जब कोई कंपनी अपने कर्मचारियों की छंँटनी करती है तो इससे ग्राहकों में यह संदेश जाता है कि वह किसी प्रकार से संकटग्रस्त है।
- भावनात्मक संकट:
- यद्यपि जिस व्यक्ति को नौकरी से निकाल दिया जाता है, वह सबसे अधिक संकट में होता है लेकिन शेष कर्मचारी भी भावनात्मक रूप से भी पीड़ित होते हैं। भय के साथ काम करने वाले कर्मचारियों का उत्पादकता स्तर कम होने की संभावना होती है।
आगे की राह
- भारतीय स्टार्टअप अपने पड़ोसी क्षेत्रों की तुलना में तेज़ गति से आगे बढ़े हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि एक स्टार्टअप ने विकास के क्रम में आसमान छू लिया है तो उसके कर्मचारियों की नौकरियाँ भी सुरक्षित होंगी।
- स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति कार्यक्रम व्यक्तियों को सुचारु रूप से सेवानिवृत्ति की ओर बढ़ने में सक्षम बना सकते हैं।