शासन व्यवस्था
सोशल मीडिया और चुनाव
- 02 Nov 2022
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:मुख्य चुनाव आयुक्त, भारत निर्वाचन आयोग मेन्स के लिये:सोशल मीडिया और चुनाव की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त ने संयुक्त राज्य अमेरिका के 'समिट फॉर डेमोक्रेसी' मंच के तत्त्वावधान में भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा आयोजित चुनाव प्रबंधन निकायों (EMB) के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया।
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए आयुक्त ने सोशल मीडिया साइटों से फर्जी खबरों को सक्रिय रूप से चिह्नित करने के लिये अपनी "एल्गोरिदम शक्ति" का उपयोग करने का आग्रह किया।
फर्जी सूचना के प्रसार के संबंध में चिंताएँ:
- रेड-हेरिंग (भ्रामक): गलत सूचना का मुकाबला करने के लिये सभी प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की सामग्री मॉडरेशन-संचालित रणनीति एक रेड-हेरिंग है जिसे व्यापार मॉडल के हिस्से के रूप में दुष्प्रचार के प्रवर्धित वितरण की कहीं बड़ी समस्या से ध्यान हटाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की अस्पष्टता: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तेज़ी से सार्वजनिक अभिव्यक्ति का प्राथमिक आधार बनते जा रहे हैं, जिस पर मुट्ठी भर व्यक्तियों का नियंत्रण होता है।
- गलत सूचनाओं पर अंकुश लगाने में सक्षम होने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पारदर्शिता की कमी है।
- अपर्याप्त उपाय: विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म गलत सूचनाओं को रोकने के लिये एक सुसंगत ढाँचा विकसित करने में असमर्थ रहे हैं और घटनाओं एवं सार्वजनिक दबाव के चलते गलत तरीके से प्रतिक्रिया दी है।
- एक समान आधारभूत दृष्टिकोण, प्रवर्तन और जवाबदेही के अभाव ने सूचना पारिस्थितिकी तंत्र को दूषित कर दिया।
- भ्रामक सूचनाओं का अनुप्रयोग: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने निश्चित प्रारूप वाले विकल्पों को अपनाया है, जिसका उपयोग प्रभावशाली और शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा निजी राजनीतिक और व्यावसायिक लाभ के लिये भ्रामक सूचनाओं का प्रसार सरलता से किया जाने लगा है।
- दुष्प्रचार, घृणा और लक्षित धमकी के मुक्त प्रवाह ने भारत में वास्तविक स्थिति को नुकसान पहुँचाया है और लोकतंत्र का ह्रास किया है।
- सोशल मीडिया अनुप्रयोगों के माध्यम से फैलाई गई गलत सूचनाएँ अल्पसंख्यक के प्रति घृणा, व्याप्त सामाजिक ध्रुवीकरण, हिंसा जैसे वास्तविक जीवन के मुद्दों से जुडी हैं।
- दुष्प्रचार, घृणा और लक्षित धमकी के मुक्त प्रवाह ने भारत में वास्तविक स्थिति को नुकसान पहुँचाया है और लोकतंत्र का ह्रास किया है।
- बच्चों में डिजिटल मीडिया की साक्षरता की कमी: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पाठ्यक्रम में मीडिया साक्षरता को शामिल न करना एक चूक है।
- हालाँकि उस नीति में एक बार 'डिजिटल साक्षरता' का उल्लेख है, लेकिन सोशल मीडिया साक्षरता पूरी तरह से नगण्य है।
- यह एक गंभीर अंतर है क्योंकि सोशल मीडिया छात्रों की साक्षरता का प्राथमिक स्रोत है।
- नाम गुप्त रखने की स्थिति से उत्पन्न खतरे: गोपनीयता बनाए रखते हुए इसका उपयोग प्रतिशोधी सरकारों के विरुद्ध अपनी अभिव्यक्ति में सक्षम होने में है।
- जहाँ एक ओर यह किसी के लिये बिना किसी असुरक्षा के अपने विचार साझा करने में सहायक होता है, वहीं यह इस पहलू में अधिक नुकसानदायक है कि उपयोगकर्त्ता किसी भी हद तक गैर -ज़िम्मेदाराना झूठी जानकारी फैला सकता है।
चुनाव में सोशल मीडिया के लाभ और हानि:
- लाभ:
- घोषणापत्र की योजना:
- हाल के वर्षों में राजनीतिक रैलियों और पार्टी घोषणापत्रों की योजना बनाने में डिजिटल रणनीतियाँ तेज़ी से महत्त्वपूर्ण हो गई हैं।
- अब तक जनसमूह की भावना की समझ प्रस्तुत करने वाले चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों की जगह ट्वीट सर्वेक्षण ने ले लिया है।
- जनता की राय को प्रभावित करने की क्षमता:
- सोशल मीडिया राजनीतिक दलों की अनिर्णीत मतदाताओं की राय को प्रभावित करने में मध्यम वर्ग को मतदान करने की वजह प्रदान करने में मदद करता है।
- यह बड़ी संख्या में वोट करने हेतु समर्थन आधार जुटाने और दूसरों को वोट देने के लिये प्रभावित करने में भी मदद करता है।
- जानकारी का प्रसार:
- राजनेता इस नए सोशल मीडिया को तेज़ी से प्रचार, प्रसार या जानकारी प्राप्त करने या तर्कसंगत और महत्त्वपूर्ण बहस में योगदान देने के लिये अपना रहे हैं।
- लोगों की समस्याओं का समाधान:
- सोशल मीडिया लोगों के लिये आगामी कार्यक्रमों, पार्टी कार्यक्रमों और चुनाव एजेंडा पर अद्यतित रहना आसान बनाता है।
- सोशल मीडिया को प्रबंधित करने और लोगों से जुड़ने तथा उनके मुद्दों के बारे में जानने के लिये इसका इस्तेमाल करने हेतु एक तकनीकी रूप से सक्षम उम्मीदवार को चुना जाना चाहिये।
- घोषणापत्र की योजना:
- हानि:
- ध्रुवीकरण:
- सोशल मीडिया राजनेताओं को लोकप्रिय बनाने और अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने का साधन बन गया है।
- गलत बयानवाजी में वृद्धि:
- विपक्षी दलों को दोष देने और आलोचना करने के लिये सोशल मीडिया का बहुत उपयोग किया जाता है, इसके साथ ही भ्रामक एवं गलत तथ्यों द्वारा जानकारी को गलत तरीके से भी प्रस्तुत किया जाता है।
- राजनीतिक गतिरोध पैदा करने के लिये भी सोशल मीडिया का उपयोग किया जाता है।
- लोगों के दृष्टिकोण को प्रभावित करना:
- सोशल मीडिया पर विज्ञापन के लिये बहुत अधिक खर्च की आवश्यकता होती है। केवल संपन्न दल ही इतना खर्च कर सकते हैं और वे अधिकांश मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं।
- चुनावों के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फेक न्यूज़ का प्रसार लोगों के दृष्टिकोण को प्रभावित करता है।
- ध्रुवीकरण:
आगे की राह
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, राजनीतिक दलों, नागरिक समाज और चुनाव अधिकारियों को इस बात पर अधिक ध्यान देना चाहिये कि चुनाव के दौरान राजनेताओं द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग कैसे किया जाए तथा इसके लिये व्यापक दिशानिर्देश तैयार किये जाएँ जिससे मतदाताओं को लाभ मिले।
- अगर सही तरीके से सोशल मीडिया का उपयोग किया जाए तो वोट बैंक पर फर्क पड़ेगा लेकिन इसका दूसरा पहलू हमेशा बना रहेगा। इसलिये, व्यक्तिगत अधिकारों के उल्लंघन के बिना चुनावों में सोशल मीडिया के प्रभावी उपयोग के लिये कुछ उपाय करने की आवश्यकता है।
- समय की मांग है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि सोशल मीडिया से मतदान प्रभावित न हो और देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव हो सकें।
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