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डेली न्यूज़

  • 28 Jun, 2023
  • 47 min read
इन्फोग्राफिक्स

भारत-अमेरिका साझेदारी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

Y गुणसूत्र और कैंसर की संभावना

प्रिलिम्स के लिये:

कोलोरेक्टल कैंसर, DNA, T कोशिका, बायोमार्कर, गुणसूत्र

मेन्स के लिये:

कैंसर की संभावना और Y गुणसूत्र के बीच संबंध

चर्चा में क्यों?

हालिया शोधों से पता चला है कि Y गुणसूत्र और कैंसर की संभावना अंतर्संबंधित हैं, इस अध्ययन में पाया गया है कि किस प्रकार पुरुष कुछ प्रकार के कैंसर के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

  • यह अध्ययन कोलोरेक्टल और मूत्राशय कैंसर में Y गुणसूत्र की भूमिका पर प्रकाश डालता है जिससे ट्यूमर विकसित होने, प्रतिरक्षा तंत्र की प्रतिक्रिया एवं नैदानिक ​​रोग निदान को प्रभावित करने वाले प्रमुख आनुवंशिक तंत्रों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।

कोलोरेक्टल और मूत्राशय कैंसर:

  • कैंसर:
    • शरीर में असामान्य कोशिकाओं के अनियंत्रित विकास और प्रसार के रूप में चिह्नित विकारों की एक शृंखला को सामूहिक रूप से कैंसर कहा जाता है।
      • कैंसर कोशिकाएँ (असामान्य कोशिकाएँ) स्वस्थ ऊतकों और अंगों को प्रभावित करने और उन्हें नष्ट करने में सक्षम होती हैं।
    • एक स्वस्थ शरीर में सामान्य तौर पर कोशिकाएँ नियमित तरीके से बढ़ती हैं, विभाजित होती हैं और अंततः मर जाती हैं जिससे ऊतकों एवं अंगों का कामकाज़ सामान्य ढंग से चलता रहता है।
      • हालाँकि कैंसर के मामले में कुछ आनुवंशिक उत्परिवर्तन या असामान्यताएँ सामान्य कोशिका चक्र को बाधित करती हैं जिससे कोशिकाएँ विभाजित होती हैं और इनकी संख्या अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं।
      • ये कोशिकाएँ ऊतकों का एक समूह बना सकती हैं जिसे ट्यूमर कहा जाता है।
  • कोलोरेक्टल कैंसर:
    • कोलोरेक्टल कैंसर को कोलन कैंसर या रेक्टल कैंसर के रूप में भी जाना जाता है। यह कोलन या मलाशय में विकसित कैंसर को संदर्भित करता है जो बड़ी आँत के हिस्से हैं।
      • यह विश्व भर में सबसे आम प्रकार के कैंसर में से एक है।
    • यह सामान्यतः बृहदान्त्र (कोलन) या मलाशय की आंतरिक परत पर छोटी, गैर-कैंसरयुक्त वृद्धि के रूप में शुरू होता है जिसे पॉलीप्स कहा जाता है। समय के साथ इनमें से कुछ पॉलीप्स कैंसर बन सकते हैं।
  • मूत्राशय कैंसर:
    • मूत्राशय कैंसर का तात्पर्य मूत्राशय के ऊतकों में कैंसर कोशिकाओं के विकास से है जहाँ मूत्र एकत्रित होता है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:

  • पुरुषों में कोलोरेक्टल कैंसर में Y गुणसूत्र की भूमिका:
    • अध्ययनों में पाया गया है कि KRAS नामक ओंकोजीन (Oncogene) द्वारा संचालित एक माउस मॉडल का उपयोग करके कोलोरेक्टल कैंसर के मामले में लैंगिक अंतर की जाँच की गई है।
      • शोध में पाया कि नर चूहों में मेटास्टेसिस (ट्यूमर की मूल जगह से शरीर के अन्य भागों में कैंसर कोशिकाओं का फैलना) की आवृत्ति अधिक थी तथा मादा चूहों की तुलना में उनकी जीवित रहने की दर बहुत कम थी जो मनुष्यों में देखे गए परिणामों को प्रतिबिंबित करता है।
    • उन्होंने Y गुणसूत्र पर एक अपग्रेडेड जीन की भी पहचान की जो पुरुषों में ट्यूमर के खतरे और प्रतिरक्षा को कम करके कोलोरेक्टल कैंसर उत्पन्न करने का कारण बनता है।
      • यह प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को उत्तेजित करने वाले वंशाणुओं/जीन का दमन करने के साथ-साथ ऐसे जीन को सक्रिय करने का कार्य करता है जो सेल माइग्रेशन, इन्वेज़न (हमले) और एंजियोजेनेसिस (नई रक्त वाहिकाओं के निर्माण) को बढ़ावा देते हैं।

नोट: KRAS एक जीन है जो कर्स्टन रैट सार्कोमा वायरल ओंकोजीन होमोलॉग नामक प्रोटीन को एनकोड करता है। यह एक प्रोटो-ओंकोजीन है, जिसका अर्थ है कि इसमें कैंसर कारक जीन बनने की क्षमता है।

  • मूत्राशय कैंसर के परिणामों पर Y गुणसूत्र की हानि का प्रभाव:
    • एक अलग जाँच में मूत्राशय कैंसर के परिणामों पर Y गुणसूत्र की हानि का प्रभाव देखा गया।
      • पुरुषों की उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाओं में Y गुणसूत्र की हानि होती है तथा कैंसर कोशिकाएँ पुरुषों में प्रतिरक्षा प्रणाली को खत्म करने में बढ़ावा देती है।
    • Y गुणसूत्र की हानि का कारण गलत निदान और अधिक आक्रामक ट्यूमर से जुड़ा हुआ पाया गया।
      • इस स्थिति ने प्रतिरक्षा विनियमन में शामिल जीन की अभिव्यक्ति को बदलकर एक अधिक प्रतिरक्षा दमनकारी ट्यूमर माइक्रोएन्वायरनमेंट उत्पन्न किया है।
      • उदाहरण स्वरूप Y गुणसूत्र की हानि से PD-L1 की अभिव्यक्ति बढ़ गई, एक प्रोटीन जो T कोशिका सक्रियण को रोकता है और कैंसर कोशिकाएँ प्रतिरक्षा प्रणाली को खत्म करने में बढ़ावा देती है।
    • हालाँकि यह पाया गया कि Y गुणसूत्र विलोपन ने एंटी-PD1 अवरोधक थेरेपी की प्रतिक्रिया में सुधार किया, जो मूत्राशय की विकृतियों के एक उपसमूह के लिये व्यवहार्य चिकित्सीय मार्ग की ओर इशारा करता है।
      • इससे पता चलता है कि Y गुणसूत्र की हानि उन रोगियों के चयन के लिये एक बायोमार्कर के रूप में है जो इस उपचार से लाभान्वित हो सकते हैं।

गुणसूत्र:

  • परिचय: गुणसूत्र अधिकांश जीवित कोशिकाओं के केंद्र में पाए जाने वाले न्यूक्लिक एसिड और प्रोटीन की एक धागे जैसी संरचना होती है, जो जीन के रूप में आनुवंशिक जानकारी रखते हैं।
    • कोशिका विभाजन, वृद्धि और विकास तथावंशानुक्रम के लिये गुणसूत्र आवश्यक हैं।
    • मनुष्य में आमतौर पर 46 गुणसूत्र होते हैं या प्रत्येक कोशिका में उनके 23 जोड़े होते हैं।
  • संरचना: गुणसूत्र DNA अणुओं से बने होते हैं जो हिस्टोन नामक प्रोटीन के चारों ओर बँधे होते हैं।
    • DNA और प्रोटीन का यह संयोजन आनुवंशिक सामग्री को संकुचित एवं व्यवस्थित करने में सहायता करता है।
  • प्रकार: गुणसूत्र के दो मुख्य प्रकार हैं: ऑटोसोम और सेक्स क्रोमोसोम।
    • ऑटोसोम: ऑटोसोम गैर-लिंग गुणसूत्र हैं।
      • मनुष्यों में ऑटोसोम के 22 जोड़े होते हैं, जिनकी संख्या 44 होती है।
      • ऑटोसोम में लिंग निर्धारण से संबंधित जीन को छोड़कर विभिन्न लक्षणों और विशेषताओं को निर्धारित करने के लिये उत्तरदायी जीन होते हैं।
    • लिंग गुणसूत्र: लिंग गुणसूत्र किसी व्यक्ति के लिंग का निर्धारण करते हैं और इन्हें X और Y अक्षरों द्वारा दर्शाया जाता है।
    • महिलाओं में दो X गुणसूत्र (XX) होते हैं, जबकि पुरुषों में एक X और एक Y गुणसूत्र (XY) होता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, मानव शरीर में B कोशिकाओं और T कोशिकाओं की भूमिका का सर्वोत्तम वर्णन करता है?(2022)

(a) वे शरीर की पर्यावरणीय प्रतूर्जकों (एलर्जनों) से संरक्षित करती हैं।
(b) वे शरीर के दर्द और सूजन का अपशमन करती हैं।
(c) वे शरीर में प्रतिरक्षा निरोधकों की तरह काम करते हैं।
(d) वे रोगजनकों द्वारा होने वाले रोगों से बचाती हैं।

उत्तर: (d)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

टाइटन त्रासदी प्रस्तावित भारतीय सबमर्सिबल डाइव के लिये सबक

प्रिलिम्स के लिये:

मत्स्य-6000, टाइटन सबमर्सिबल, डीप ओशन मिशन, RMS टाइटैनिक, अटलांटिक महासागर, NOAA, यूनेस्को

मेन्स के लिये:

डीप ओशन मिशन और भारत के लिये इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिक वर्ष 2024 के अंत में टाइटन सबमर्सिबल के समान वाहन मत्स्य-6000 के साथ डीप सी डाइव की तैयारी कर रहे हैं जो हाल ही में लापता हो गया था।

  • वर्ष 2024 के अंत में निर्धारित भारत के डीप ओशन मिशन के तहत मत्स्य-6000 परियोजना का लक्ष्य लगभग 6,000 मीटर की गहराई तक हिंद महासागर में खोज करना है।
  • टाइटन सबमर्सिबल की हालिया घटना को देखते हुए चालक दल के लिये नियोजित सुरक्षा प्रणालियों की प्रभावशीलता सुनिश्चित करने हेतु गहन समीक्षा की जाएगी।

टाइटन सबमर्सिबल के मुख्य बिंदु:

  • Fपरिचय:
    • टाइटन सबमर्सिबल का संचालन निजी स्वामित्व वाली अमेरिकी कंपनी ओशनगेट द्वारा किया गया जो अनुसंधान एवं पर्यटन दोनों के लिये गहरे पानी में अभियान आयोजित करती है।
    • इसका निर्माण "ऑफ-द-शेल्फ" घटकों द्वारा किया गया था तथा यह अन्य गहरी गोताखोर पनडुब्बियों की तुलना में हल्की और अधिक लागत-कुशल थी।
    • टाइटन सबमर्सिबल कार्बन फाइबर और टाइटेनियम से बनी थी तथा इसका वज़न 10,432 किलोग्राम था।
    • यह समुद्र की गहराई में 4,000 मीटर तक जाने में सक्षम थी तथा इसकी गति तीन समुद्री मील प्रति घंटे (5.56 किलोमीटर प्रति घंटे) थी।

  • उद्देश्य:
    • टाइटन सबमर्सिबल RMS (Royal Mail Ship) पर यात्रा कर रहे लोगों का उद्देश्य टाइटैनिक के मलबे को देखना था, जो बर्फीले उत्तरी अटलांटिक महासागर में लगभग 4,000 मीटर की गहराई में स्थित है।
      • यात्रा शुरू होने के एक घंटे पैंतालीस मिनट के बाद ही टाइटन से संपर्क टूट गया।
  • चिंताएँ:
    • सबमर्सिबल के फॉरवर्ड व्यूपोर्ट को 1,300 मीटर के लिये प्रमाणित किया गया था लेकिन ओशनगेट का लक्ष्य 4,000 मीटर की गहराई तक पहुँचने का था।
    • इस बात की आशंका है कि सबमर्सिबल की तकनीक और घटकों के मामले में सख्त सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया हो। अपर्याप्त संरचना परीक्षण के कारण विफलता की संभावना बढ़ जाती है जो लोगों की जान को ज़ोखिम में डालता है।
    • दबाव टैंक में टाइटेनियम और कार्बन फाइबर का संयोजन असामान्य है और गहरी समुद्री स्थितियों में उनकी प्रवृत्तियों मेंभिन्नता चिंता का विषय है।

टाइटन के साथ हुई घटना:

  • यूएस कोस्ट गार्ड के अनुसार, सबमर्सिबल "टाइटन" में "विनाशकारी अंतःस्फोट" हुआ। माना जा रहा है कि अंतःस्फोट के कारण सबमर्सिबल पर सवार पाँचों लोगों की मौत हो गई।
  • अंतःस्फोट विस्फोट के विपरीत है। विस्फोट में बल बाहर की ओर कार्य करता है, लेकिन अंतःस्फोट में बल अंदर की ओर कार्य करता है। जब कोई सबमर्सिबल समुद्र में गहराई में होती है तो पानी के दबाव के कारण उसके पृष्ठ पर बल का अनुभव होता है।
  • जब यह बल पतवार की क्षमता से अधिक हो जाता है तो जहाज़ में अंतः स्फोट हो जाता है।
    • जल में प्रत्येक 10 मीटर नीचे उतरने पर दबाव लगभग एक अट्मोसफेयर की इकाई के साथ बढ़ जाता है।
      • समुद्र तल पर औसत वायुमंडलीय दबाव 101.325 किलोपास्कल (kPA) या 14.7 पाउंड प्रति वर्ग इंच (पीएसआई) है, जो एक वायुमंडल के बराबर है।

कार्बन फाइबर और टाइटेनियम:

  • कार्बन फाइबर: कार्बन फाइबर एक ऐसा पॉलिमर है जो वज़न में हल्का होने के बावजूद काफी मज़बूत माना जाता है। यह स्टील से पाँच गुना अधिक मज़बूत और दोगुना कठोर हो सकता है।
    • टाइटेनियम की तुलना में मिश्रित कार्बन-फाइबर अधिक कठोर होता है और इसमें समान प्रकार की लोच नहीं होती है।
  • टाइटेनियम: टाइटेनियम, स्टील के समान मज़बूत है पर वज़न में उससे 45% हल्का है। संयुक्त राज्य भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, यह एल्युमीनियम से दोगुना मज़बूत है लेकिन वज़न में उससे केवल 60% भारी है।
    • एक टाइटेनियम या मोटे स्टील का दबाव टैंक आमतौर पर गोलाकार होता है जो 3,800 मीटर की गहराई पर अत्यधिक दबाव का सामना कर सकता है, इसी गहराई पर टाइटैनिक का मलबा पड़ा है।
    • चूँकि टाइटेनियम लोचदार है, यह वायुमंडलीय दबाव में वापसी के बाद किसी भी दीर्घकालिक तनाव का अनुभव किये बिना भार की एक विस्तृत शृंखला को समायोजित कर सकता है। यह दबाव बलों के साथ तालमेल बिठाने के लिये सिकुड़ता है और इन बलों के कम होने पर पुन: विस्तारित होता है।

सबमरीन और सबमर्सिबल:

  • हालाँकि दोनों श्रेणियाँ अतिव्याप्त हो सकती हैं, एक सबमरीन जल के नीचे संचालित वाहन को संदर्भित करती है जो स्वतंत्र रूप से एक बंदरगाह से प्रस्थान करने या अभियान के बाद बंदरगाह पर वापस आने में सहायता करने में सक्षम होती है।
  • जबकि एक सबमर्सिबल आमतौर पर आकार में छोटी होती है और इसकी क्षमता न्यून होती है, इसलिये इसे लॉन्च करने और पुनर्प्राप्त करने के लिये जहाज़ की आवश्यकता होती है।
    • लापता सबमर्सिबल टाइटन पोलर प्रिंस नाम के जहाज़ में संग्लग्न था।

मत्स्य-6000 से संबंधित प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • मत्स्य-6000 भारत में राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT- National Institute of Ocean Technology) द्वारा विकसित एक स्वदेशी गहरे समुद्र में गोता लगाने वाली पनडुब्बी है। इसे हिंद महासागर में लगभग 6,000 मीटर की गहराई तक पता लगाने के लिये निर्मित किया गया है।
    • मिशन का लक्ष्य तीन भारतीय नाविकों को कन्याकुमारी से लगभग 1,500 किमी. दूर एक बिंदु पर भेजना है।
  • उद्देश्य:
    • मिशन का प्राथमिक उद्देश्य भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं का समर्थन के साथ समुद्री संसाधनों का पता लगाना है।
    • भारत का लक्ष्य ताँबा, निकल, कोबाल्ट और मैंगनीज़ जैसे मूल्यवान संसाधनों वाले पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स के लिये अनुसंधान एवं खनन करना है।
    • यह प्रयास भारत सरकार के डीप ओशन मिशन के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य महासागर स्कैनिंग और खनन के लिये वाहन तथाप्रौद्योगिकी विकसित करना है।
  • सबमर्सिबल की विशेषताएँ:
    • सबमर्सिबल टाइटेनियम की एक गोलाकार संरचना होती है, जो अधिक गहराई पर अत्यधिक दबाव को सहने की क्षमता रखती है।
      • टाइटेनियम संरचना का निर्माण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा किया गया है, क्योंकि भारत में कोई भी वाणिज्यिक फैब्रिकेटर इस तरह की संरचना का उत्पादन करने में सक्षम नहीं था।
    • उभरी संरचना, जो चालक दल और आसपास के जल स्तंभों के बीच मुख्य सीमा के रूप में कार्य करती है, टाइटेनियम मिश्र धातु के दो गोलार्द्धों को जोड़कर बनाया गया है।
  • हालिया घटना से सीख:
    • हालिया घटना सुरक्षा संबंधी संपूर्ण मूल्यांकन और निरंतर परीक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
    • जहाज़ में कई संचार प्रणालियाँ होने के बावजूद सबमर्सिबल का पता लगाने में असमर्थता कई सवाल उठाती है। ऐसी घटनाओं के कारणों का पता लगाने में सहायता के लिये भविष्य में सबमर्सिबल में विमान में उपयोग किये जाने वाले "ब्लैक बॉक्स" समकक्ष उपायों को शामिल किया जा सकता है।
    • सबमर्सिबल के बाह्य आवरण के लिये टाइटेनियम के चयन, सिंटैक्टिक फोम के उपयोग और ध्वनिक संचार तथा ट्रैकिंग प्रणाली के क्षमतापूर्ण कार्यान्वयन का गहन मूल्यांकन किया जाना चाहिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. भारत के कतिपय तटीय क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध एल्मेनाइट और रूटाइल निम्नलिखित में से किसके समृद्ध स्रोत हैं?

(a) एल्युमीनियम
(b) ताम्र
(c) लोहा
(d) टाइटेनियम

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • भारत मुख्य रूप से देश के तटीय इलाकों में पाए जाने वाले भारी खनिज संसाधनों से संपन्न है।
  • भारी खनिज रेत में सात खनिज शामिल है, जैसे- एल्मेनाइट, ल्यूकोक्सिन (भूरा एल्मेनाइट), रूटाइल, ज़िरकाॅन, सिलिमेनाइट, गार्नेट और मोनाज़ाइट। एल्मेनाइट (FeO.TiO2) और रूटाइल (TiO2) टाइटेनियम के दो प्रमुख खनिज स्रोत हैं। अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

पूंजी निवेश 2023-24 के लिये राज्यों को विशेष सहायता

प्रिलिम्स के लिये:

पूंजी निवेश के लिये राज्यों को विशेष सहायता, केंद्रीय बजट 2023-24, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, मेक इन इंडिया, एक ज़िला एक उत्पाद

मेन्स के लिये:

पूंजी निवेश2023-24 के लिये राज्यों को विशेष सहायता, प्रभावी पूंजी व्यय

चर्चा में क्यों?

वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के व्यय विभाग ने चालू वित्त वर्ष में 16 राज्यों में 56,415 करोड़ रुपए के पूंजी निवेश प्रस्तावों को मंज़ूरी दी है।

  • यह मंज़ूरी 'पूंजी निवेश 2023-24 के लिये राज्यों को विशेष सहायता' योजना के तहत दी गई है।
  • इन 16 राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मिज़ोरम, ओडिशा, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।

‘पूंजी निवेश 2023-24 के लिये राज्यों को विशेष सहायता’ योजना:

  • पृष्ठभूमि:
    • पूंजी निवेश/व्यय के लिये राज्यों को वित्तीय सहायता की यह योजना, पहली बार वित्त मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020-21 में कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए शुरू की गई थी और इसने राज्य द्वारा किये जाने वाले पूंजीगत व्यय में उचित समय पर वृद्धि की।
  • परिचय:
    • पिछले तीन वर्षों से पूंजीगत व्यय के लिये इसी तरह के प्रयास को जारी रखते हुए इस योजना की घोषणा केंद्रीय बजट 2023-24 में की गई थी।
    • योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान राज्य सरकारों को 1.3 लाख करोड़ रुपए की कुल राशि तक 50-वर्षीय ब्याज मुक्त ऋण के रूप में विशेष सहायता प्रदान की जा रही है।

  • भाग:
    • इस योजना के आठ भाग हैं, जिसमें भाग-I, 1 लाख करोड़ रुपएके आवंटन के साथ सबसे बड़ा है। यह राशि 15वें वित्त आयोग के निर्णय के अनुसार राज्यों के बीच केंद्रीय करों और कर्तव्यों में उनकी हिस्सेदारी के अनुपात में आवंटित की गई है।
    • योजना के अन्य भाग या तो सुधारों से जुड़े हैं या क्षेत्र-विशिष्ट परियोजनाओं के लिये हैं।
      • भाग- II पुराने वाहनों को नष्ट करने और स्वचालित वाहन परीक्षण सुविधाओं की स्थापना के लिये राज्यों को प्रोत्साहन प्रदान करता है।
      • भाग-III और IV शहरी नियोजन एवंशहरी वित्त में सुधार के लिये राज्यों को प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।
      • भाग-V शहरी क्षेत्रों के पुलिस स्टेशनों में पुलिस कर्मियों और उनके परिवारों के लिये उपलब्ध घरों की संख्या का विस्तार करने हेतु धनराशि प्रदान करता है।
      • योजना का भाग-VI यूनिटी मॉल परियोजनाओं के माध्यम से सांस्कृतिक विविधता और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय एकीकरण, मेक इन इंडिया तथा एक ज़िला एक उत्पाद के दृष्टिकोण का समर्थन करता है।
      • भाग-VII के अंतर्गत पंचायत और वार्ड स्तर पर डिजिटल बुनियादी ढाँचे के साथ पुस्तकालय स्थापित करने के लिये राज्यों को वित्तीय सहायता के रूप में 5,000 करोड़ रुपए प्रदान किये जाते हैं, जिससे मुख्य रूप से बच्चों और किशोरों को लाभ होता है।
  • योजना के उद्देश्य:
    • इस योजना से मांगको बढ़ावा देने और रोज़गार सृजनकरके अर्थव्यवस्था पर उच्च गुणक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
    • इस योजना का उद्देश्य राज्यांश की पूर्ति हेतु धनराशि प्रदान करके कार्यक्रम जल जीवन मिशन और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे महत्त्वपूर्ण उद्योगों में योजना को गति देना है।
    • यह योजना शहरों में जीवन की गुणवत्ता और शासन में सुधार के लिये राज्यों को शहरी नियोजन एवं शहरी वित्त में सुधार करने के लिये प्रोत्साहित करने का भी प्रयास करती है।

भारत में पूंजीगत व्यय:

  • पूंजीगत व्यय:
    • यह बुनियादी ढाँचे, भवन, मशीनरी और उपकरण जैसी भौतिक संपत्तियों के अधिग्रहण, निर्माण या उनमें सुधार के लिये सरकार द्वारा आवंटित धन को संदर्भित करता है।
    • इसे उत्पादक और विकास में वृद्धि का कारक माना जाता है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता में वृद्धि करता है, साथ ही भविष्य में आय बढ़ाने के साथ ही रोज़गार सृजित करता है।
    • भारत सरकार अपने वार्षिक बजट के माध्यम से पूंजीगत व्यय आवंटित करती है, जिसे वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
      • पूंजी निवेश परिव्यय में लगातार तीसरे वर्ष वृद्धि देखी गई है, जो 10 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया है, यह सकल घरेलू उत्पाद का 3.3% है और 33% (केंद्रीय बजट वर्ष 2023-24) की महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्शाता है।
  • प्रभावी पूंजीगत व्यय:
    • बजट में प्रस्तुत पूंजीगत व्यय में राज्यों और अन्य एजेंसियों के लिये अनुदान सहायता के माध्यम से निर्मित पूंजीगत संपत्ति में सरकार द्वारा किया जाने वाला व्यय शामिल नहीं है।
      • इन अनुदानों को बजट में राजस्व व्यय के रूप में वर्गीकृत किया गया है, इसके साथ ही ये सड़क, पुल, स्कूल, अस्पताल आदि जैसी अचल संपत्तियों के निर्माण में भी योगदान देते हैं।
      • इसलिये केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक निवेश की वास्तविक सीमा को प्राप्त करने के लिये 'प्रभावी पूंजीगत व्यय' की अवधारणा प्रस्तुत की गई है।
    • प्रभावी पूंजीगत व्यय को पूंजीगत परिसंपत्तियों के निर्माण के लिये पूंजीगत व्यय और अनुदान के योग के रूप में परिभाषित किया गया है।
      • इसके लिये बजट 13.7 लाख करोड़ रुपए या सकल घरेलू उत्पाद का 4.5% (केंद्रीय बजट 2023-24) है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. निम्नलिखित में से किसको/किनको भारत सरकार के पूंजी बजट में शामिल किया जाता है?(2016)

  1. सड़कों, इमारतों, मशीनरी आदि जैसी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण पर व्यय।
  2. विदेशी सरकारों से प्राप्त ऋण।
  3. राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को अनुदात्त ऋण और अग्रिम।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

ART नियमन: इलाज की लागत और गर्भधारण के अवसरों पर प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी, मौलिक अधिकार, इन विट्रो निषेचन

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महिलाओं से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2021 के प्रावधानों के तहत सीमा निर्धारण का निर्णय लेना चिकित्सकों तथा दंपतियों के लिये चिंता का विषय बन गया है।

  • वैसे तो ये नियम दाताओं और रोगियों के लिये चिकित्सा देखभाल और सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से बनाए गए हैं, परंतु ये ART उपचार की इच्छा रखने वाले दंपतियों के लिये इलाज की लागत में वृद्धि करते हैं और साथ ही गर्भधारण के अवसरों को भी सीमित करते हैं।

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी:

  • ART से तात्पर्य उस विधि से है जिसमें गर्भावस्था के लिये किसी महिला के प्रजनन तंत्र में युग्मकों (Gametes) को स्थानांतरित किया जाता है।
  • इसमें विभिन्न तकनीकें शामिल हैं, जैसे- इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (IVF), इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI), गैमेट डोनेशन, इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन, प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग, सरोगेसी।
  • ART का उपयोग अक्सर उनके लिये किया जाता है जो बाँझपन, आनुवंशिक विकार तथा अन्य प्रजनन संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं अथवा जिनकी प्रजनन प्रणाली विधिवत कार्य नहीं कर रही होती है।
  • आमतौर पर ART प्रक्रियाओं में महिला के गर्भाशय में युग्मकों को स्थानांतरित करने से पहले प्रयोगशाला में शुक्राणुओं, अंडाणुओं अथवा भ्रूणों को प्रबंधित किया जाता है।

ART नियमन अधिनियम, 2021 की मुख्य विशेषताएँ:

  • पंजीकरण: प्रत्येक ART क्लिनिक तथा बैंक को एक केंद्रीय डेटाबेस बनाए रखते हुए भारत के बैंकों और क्लिनिकों की राष्ट्रीय रजिस्ट्री के अंतर्गत पंजीकृत होना चाहिये।
    • पंजीकरण पाँच वर्षों के लिये वैध है और इसे अगले पाँच वर्षों के लिये नवीनीकृत भी किया जा सकता है।
    • अधिनियम के उल्लंघन के परिणामस्वरूप पंजीकरण रद्द या निलंबित किया जा सकता है।
  • शुक्राणुओं और अंडाणुओं को दान करने की शर्तें: पंजीकृत ART बैंक, 21-55 वर्ष की आयु के पुरुषों के शुक्राणुओं की स्क्रीनिंग, संग्रह और भंडारण कर सकते हैं। इसके साथ ही 23-35 वर्ष की आयु की महिलाएँ अंडाणुओं का भंडारण कर सकती हैं।
  • दाता की सीमाएँ: एक अंडाणु (Oocyte) दाता को विवाहित महिला होना चाहिये, इसके साथ ही उनका अपना कम-से-कम एक जीवित बच्चा (न्यूनतम तीन वर्ष की आयु) होना चाहिये।
    • एक अंडाणु दाता अपने जीवनकाल में केवल एक बार दान कर सकती है, इसके साथ ही अधिकतम सात अंडाणु पुनः प्राप्त किये जा सकते हैं।
  • युग्मक आपूर्ति: एक ART बैंक एकल दाता से एक से अधिक कमीशनिंग दंपति (सेवाएँ चाहने वाले दंपति) को युग्मक की आपूर्ति नहीं कर सकता है।
  • माता-पिता के अधिकार: ART के माध्यम से पैदा हुए बच्चों को दंपति का जैविक शिशु माना जाता है और दाता के पास माता-पिता का कोई अधिकार नहीं होता है।
  • सहमति: ART प्रक्रियाओं के लिये दंपति और दाता दोनों की लिखित सूचित सहमति आवश्यक है।
  • ART प्रक्रियाओं का नियमन: सरोगेसी अधिनियम, 2021 के तहत गठित राष्ट्रीय और राज्य बोर्ड ART सेवाओं को विनियमित करेंगे।
  • बीमा कवरेज: ART सेवाएँ चाहने वाले दंपतियों को अंडाणु दाता के पक्ष में बीमा कवरेज प्रदान करना होगा, जिसमें दाता की किसी भी हानि, क्षति या मृत्यु को कवर किया जाएगा।
  • लिंग चयन को रोकना: भेदभावपूर्ण प्रथाओं को रोकने के लिये क्लीनिकों को किसी विशिष्ट लिंग के शिशु का चुनाव करने की अनुमति नहीं है।
  • अपराध: अपराधों में ART के माध्यम से पैदा हुए शिशु का परित्याग या शोषण, भ्रूण की बिक्री या व्यापार और दंपति या दाता का शोषण शामिल है।
    • सज़ा में 8-12 वर्ष का कारावास और 10-20 लाख रुपए का ज़ुर्माना शामिल है।
    • क्लीनिकों और बैंकों को लिंग-चयनात्मक ART का विज्ञापन या पेशकश करने से प्रतिबंधित किया गया है।
      • इस प्रकार के अपराधों में 5-10 वर्ष का कारावास तथा 10-25 लाख रुपए का ज़ुर्माना शामिल है।

ART नियमन, 2021 के संबंध में चुनौतियाँ और चिंताएँ:

  • अत्यधिक लागत: बीमा, परीक्षण और पंजीकरण शुल्क जैसी अतिरिक्त आवश्यकताओं तथा नियमों के कारण उपचार की लागत बढ़ सकती है।
  • कम उपलब्धता: दाताओं की संख्या और प्रति दाता चक्र पर सीमाओं के परिणामस्वरूप उपयुक्त दाताओं की कमी हो सकती है जिससे दंपतियों के लिये मेल खाने वाले युग्मकों को खोजना कठिन हो जाता है।
    • भारत तथा विश्व भर में प्रजनन दर में गिरावट आ रही है जिससे दानदाताओं की सीमित उपलब्धता एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बन गई है।
  • उपयुक्त दाताओं को खोजने में चुनौतियाँ: ये प्रतिबंध डॉक्टरों एवं दंपतियों के लिये विशिष्ट आवश्यकताओं या प्राथमिकताओं को पूरा करने वाले दाताओं को खोजने में चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
  • संभावित दाताओं को हतोत्साहन: कानूनी एवं सामाजिक परिणामों को लेकर चिंता के साथ ही प्रोत्साहन की कमी संभावित दाताओं को ART प्रक्रिया में भाग लेने से हतोत्साहित कर सकती है।

आगे की राह

  • सब्सिडी एवं साझेदारी के माध्यम से सामर्थ्य को बढ़ाना।
  • जागरूकता अभियानों एवं सामुदायिक सहायता के माध्यम से दाता समूह का विस्तार किया जाना चाहिये।
  • केंद्रीकृत मंच और उन्नत प्रौद्योगिकी के माध्यम से दाता मिलान को सुव्यवस्थित करना चाहिये।
  • लागत प्रभावी उपचार हेतु अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • अधिकारों की रक्षा तथा नैतिक चिंताओं को दूर करने हेतु एक सहायक कानूनी ढाँचा विकसित किया जाना चाहिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. मानव प्रजनन प्रौद्योगिकी में अभिनव प्रगति के संदर्भ में "प्राक्केन्द्रिक स्थानांतरण ”(Pronuclear Transfer) का प्रयोग किस लिये होता है। (2020)

(a) इन विट्रो अंड के निषेचन के लिये दाता शुक्राणु का उपयोग
(b) शुक्राणु उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं का आनुवंशिक रूपांतरण
(c) स्टेम (Stem) कोशिकाओं का कार्यात्मक भ्रूूणों में विकास
(d) संतान में सूत्रकणिका रोगों का निरोध

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • प्राक्केन्द्रिक स्थानांतरण/प्रोन्यूक्लियर ट्रांसफर में प्रोन्यूक्लियर का एक युग्मनज से दूसरे युग्मनज में स्थानांतरण होता है। इस तकनीक के लिये पहले स्वस्थ दान किये गए अंडे (सूत्रकणिका दाता द्वारा प्रदान किया गया) के निषेचन की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही इच्छुक माँ के प्रभावित अंडाणुओं को इच्छुक पिता के शुक्राणु के साथ निषेचित किया जाता है।
  • 'मैटरनल स्पिंडल ट्रांसफर' नामक एक तकनीक का उपयोग करके मातृ DNA को दाता महिला के अंडे में डाला जाता है, जिसे बाद में पिता के शुक्राणु का उपयोग करके निषेचित किया जाता है। यह प्रक्रिया मौजूदा इन-विट्रो-फर्टिलाइज़ेशन (IVF) उपचारों में सहायता के लिये विकसित की गई थी, जिसमें माताओं को माइटोकॉन्ड्रियल रोग होते हैं।
  • मातृ DNA में उत्परिवर्तन सूत्रकणिका वाले रोग का एक कारण है, रोगों का एक विषम समूह कभी-कभी शैशवावस्था या बचपन में भी समय से पहले मृत्यु का कारण बन सकता है । अधिकांश माइटोकॉन्ड्रियल रोगों में विशिष्ट उपचार की कमी होती है और जिन महिलाओं में प्रेरक उत्परिवर्तन होता है, उनकी संतानों में रोग फैलने का खतरा अधिक होता है। अतः विकल्प (D) सही उत्तर है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

बंदरगाहों को सशक्त बनाने के लिये CSR दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व, सागर सामाजिक सहयोग, बंदरगाह, प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण अधिनियम, 2021

मेन्स के लिये:

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पत्तन,पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय (Ministry of Ports, Shipping & Waterways) ने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के लिये नए दिशा-निर्देश- 'सागर सामाजिक सहयोग' जारी किये हैं, जिसका उद्देश्य स्थानीय समुदाय के मुद्दों को अधिक सहयोगात्मक और त्वरित तरीके से संबोधित करने के लिये बंदरगाहों को सशक्त बनाना है।

दिशा-निर्देश संबंधी प्रमुख बिंदु:

  • CSR फंडिंग:
    • भारत में बंदरगाह अपने निवल वार्षिक लाभ का एक विशिष्ट प्रतिशत CSR गतिविधियों के लिये आवंटित करेंगे। बंदरगाहों के लिये CSR बजट उनके वार्षिक राजस्व पर आधारित होगा, विभाजन इस प्रकार होगा:
      • 100 करोड़ रुपए से कम वार्षिक राजस्व वाले बंदरगाह CSR पर 3-5% खर्च करेंगे।
      • यदि बंदरगाहों का वार्षिक राजस्व 500 करोड़ रुपए से अधिक है तो वे 0.5-2% हिस्सा निवेश करेंगे।
      • संबंधित CSR परियोजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन और निगरानी को सुनिश्चित करने के लिये कुल सीएसआर व्यय का 2% बंदरगाहों द्वारा परियोजना निगरानी के लिये प्रदान किया जाएगा।
  • CSR समिति:
    • प्रत्येक प्रमुख बंदरगाह CSR पहलों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने के लिये प्रमुख बंदरगाह के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में एक कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व समिति की स्थापना करेगा।
    • समिति में दो अन्य सदस्य शामिल होंगे। CSR परियोजनाओं को प्रमुख बंदरगाहों की व्यावसायिक योजनाओं में लागू किया जाना चाहिये, जिससे उनके संचालन से संबंधित सामाजिक और पर्यावरणीय चिंताओं का समाधान किया जा सके।
    • प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिये एक CSR योजना भी तैयार करनी होगी।
  • आवंटन और केंद्रित क्षेत्र:
    • CSR परियोजनाएँ और कार्यक्रम प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण अधिनियम, 2021 की धारा 70 में निर्दिष्ट गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
      • अधिनियम की धारा 70 के अनुसार, संगठन धनराशि का उपयोग अपने कर्मचारियों, ग्राहकों आदि के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, कौशल विकास, प्रशिक्षण और मनोरंजक गतिविधियों के क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास सहित सामाजिक लाभ प्रदान करने के लिये कर सकता है।
    • CSR व्यय का 20% ज़िला स्तर पर सैनिक कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर के साथ राष्ट्रीय युवा विकास निधि के लिये भी निर्धारित किया जाना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त 78% धनराशि समुदाय को लाभ पहुँचाने वाली सामाजिक और पर्यावरण कल्याण पहल के लिये निर्देशित की जानी चाहिये।
      • इनमें पेयजल, शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, विद्युत के लिये गैर-पारंपरिक और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) हेतु आजीविका संवर्द्धन, सामुदायिक केंद्र तथा छात्रावास से संबंधित परियोजनाएँ शामिल हैं।
    • बंदरगाहों द्वारा CSR कार्यक्रमों के अंतर्गत परियोजना की निगरानी के लिये कुल CSR व्यय का 2% आवंटित किया जाता है।

दिशा-निर्देशों का महत्त्व:

दिशा-निर्देश बंदरगाहों को सामुदायिक कल्याण और विकास को बढ़ावा देने तथा CSR गतिविधियों को प्रत्यक्ष रूप से प्रारंभ करने में सक्षम बनाते हैं।

  • स्थानीय समुदायों को भागीदार के रूप में शामिल करने वाले ढाँचे को अपनाकर CSR में सकारात्मक परिवर्तन लाने तथा प्रगति के लिये एक महत्त्वपूर्ण उत्प्रेरक बनने की क्षमता है।
  • दिशा-निर्देशों का उद्देश्य CSR को सकारात्मक परिवर्तन के लिये एक प्रबल शक्ति बनाना है। यह पहल अधिकतम शासन और समुदाय-केंद्रित विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility- CSR):

  • परिचय:
    • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा में यह दृष्टिकोण निहित है कि कंपनियों को पर्यावरण एवं सामाजिक कल्याण पर उनके प्रभावों का आकलन करना चाहिये और ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये, साथ ही सकारात्मक सामाजिक तथा पर्यावरणीय परिवर्तन को बढ़ावा देना चाहिये।
    • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के चार मुख्य प्रकार हैं:
      • पर्यावरणीय उत्तरदायित्व
      • नैतिक उत्तरदायित्व
      • परोपकारी उत्तरदायित्व
      • आर्थिक उत्तरदायित्व
    • कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व प्रावधान उन कंपनियों पर लागू होते हैं जिनका वार्षिक कारोबार 1,000 करोड़ रुपए एवं उससे अधिक है, या जिनकी कुल संपत्ति 500 करोड़ रुपए एवं उससे अधिक है, या उनका शुद्ध लाभ 5 करोड़ रुपए एवं उससे अधिक है।
      • इस अधिनियम में कंपनियों द्वारा एक CSR समिति गठित करना आवश्यक है जो निदेशक मंडल को एक कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व नीति की सिफारिश करेगी और समय-समय पर उसकी निगरानी भी करेगी।
  • CSR के अंतर्गत गतिविधियाँ:
    • कंपनी अधिनियम 2013 की अनुसूची VII के तहत निर्दिष्ट कुछ प्रमुख गतिविधियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
      • भुखमरी, गरीबी एवं कुपोषण का उन्मूलन करना और शिक्षा, लैंगिक समानता को बढ़ावा देना।
      • एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम (एड्स), ह्यूमन इम्यूनोडेफिसिएंसी वायरस और अन्य विकारों से लड़ना।
      • पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना।
      • इमारतों और ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों तथा कला के कार्यों की बहाली सहित राष्ट्रीय धरोहर, कला एवं संस्कृति का संरक्षण।
      • सशस्त्र बलों के शहीदों, युद्ध विधवाओं और उनके आश्रितों के लाभ के लिये उपाय करना।
      • ग्रामीण खेलों, राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त खेलों, पैरालंपिक खेलों तथा ओलंपिक खेलों को बढ़ावा देने के लिये प्रशिक्षण देना।
      • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष या सामाजिक-आर्थिक विकास और राहत के लिये केंद्र सरकार द्वारा स्थापित किसी अन्य कोष में योगदान देना।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व कंपनियों को अधिक लाभदायक तथा चिरस्थायी बनाता है। विश्लेषण कीजिये। (2017)

स्रोत: पी.आई.बी.


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