भारतीय समाज
भारत की घटती कुल प्रजनन दर
- 26 Nov 2021
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प्रिलिम्स के लिये:कुल प्रजनन दर, प्रतिस्थापन दर मेन्स के लिये:कुल प्रजनन दर में कमी के कारण और इसके प्रभाव, इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (NFHS 2019-21) के नवीनतम आँकड़े जारी किये गए हैं।
- ये आँकड़े ‘कुल प्रजनन दर’ (TFR: प्रति महिला पर कुल बच्चों की औसत संख्या) के संबंध में गिरावट की प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।
प्रमुख बिंदु
- ‘कुल प्रजनन दर’ के विषय में:
- सामान्य शब्दों में कुल प्रजनन दर (TFR) का तात्पर्य उन बच्चों की कुल संख्या से है जो किसी महिला के अपने जीवनकाल में पैदा होते है या होने की संभावना होती है।
- प्रति महिला लगभग 2.1 बच्चों के टीएफआर को ‘प्रतिस्थापन स्तर’ कहा जाता है। प्रति महिला 2.1 बच्चों से कम टीएफआर इंगित करता है कि एक पीढ़ी स्वयं को प्रतिस्थापित करने हेतु पर्याप्त बच्चे पैदा नहीं कर रही है, अंततः जनसंख्या में एकमुश्त कमी आई है।
- टीएफआर में कमी की प्रवृत्ति:
- दशकों तक चले परिवार नियोजन कार्यक्रम के कारण ‘कुल प्रजनन दर’ वर्ष 2015-16 में रिपोर्ट किये गए 2.2 से गिरकर इस वर्ष 2.0 तक पहुँच गई है।
- टीएफआर शहरी क्षेत्रों में 1.6 और ग्रामीण भारत में 2.1 है।
- 1950 के दशक में कुल प्रजनन दर 6 या उससे अधिक थी।
- इसका कारण मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार है।
- दशकों तक चले परिवार नियोजन कार्यक्रम के कारण ‘कुल प्रजनन दर’ वर्ष 2015-16 में रिपोर्ट किये गए 2.2 से गिरकर इस वर्ष 2.0 तक पहुँच गई है।
- टीएफआर में गिरावट के कारण:
- महिला सशक्तीकरण: नवीनतम आँकड़े प्रजनन क्षमता, परिवार नियोजन, विवाह की आयु और महिला सशक्तीकरण से संबंधित कई संकेतकों पर महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्शाते हैं, इन सभी ने टीएफआर में कमी लाने में योगदान दिया है।
- गर्भनिरोधक: साथ ही वर्तमान में आधुनिक गर्भनिरोधक पद्धति के उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- अखिल भारतीय स्तर पर गर्भनिरोधक प्रसार दर 54% से बढ़कर 67% हो गई है।
- रिवर्सिबल स्पेसिंग: नई ‘रिवर्सिबल स्पेसिंग’ (बच्चों के बीच अंतर) विधियों की शुरुआत, नसबंदी के परिणामस्वरूप मज़दूरी मुआवज़ा प्रणाली और छोटे परिवार के मानदंडों को बढ़ावा देने जैसी कार्यवाहियों ने पिछले कुछ वर्षों में बेहतर प्रदर्शन किया है।
- सरकार द्वारा किये गए प्रयास: भारत लंबे समय से जनसंख्या नियंत्रण पर काम कर रहा है। वास्तव में राष्ट्रीय स्तर पर परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू करने वाला भारत पहला देश था और अब हम जो उत्साहजनक परिणाम देख रहे हैं, वे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा एक साथ किये गए निरंतर, ठोस प्रयासों के कारण हैं।
संबंधित सरकारी पहलें:
- प्रधानमंत्री की अपील: वर्ष 2019 में अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने देश से अपील की थी कि जनसंख्या नियंत्रण भी देशभक्ति का एक रूप है।
- मिशन परिवार विकास: सरकार ने सात उच्च फोकस वाले राज्यों में 3 और उससे अधिक के टीएफआर वाले 146 उच्च प्रजनन क्षमता वाले ज़िलों में गर्भ निरोधकों और परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने के लिये वर्ष 2017 में ‘मिशन परिवार विकास’ शुरू किया।
- राष्ट्रीय परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना (NFPIS): यह योजना वर्ष 2005 में शुरू की गई थी, इस योजना के तहत नसबंदी के बाद मृत्यु, जटिलता और विफलता की स्थिति के लिये ग्राहकों का बीमा किया जाता है।
- नसबंदी करने वालों के लिये मुआवज़ा योजना: इस योजना के तहत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय वर्ष 2014 से नसबंदी कराने के लिये लाभार्थी और सेवा प्रदाता (टीम) को मुआवज़ा प्रदान करता है।
- घटते TFR का महत्त्व:
- जनसंख्या स्थिरीकरण: TFR का 2 होना देश में लंबी अवधि में जनसंख्या की स्थिरता का एक "निश्चित संकेतक" है। 2.1 का TFR एक ऐसा लक्ष्य है जिसे हर देश हासिल करना चाहता है।
- TFR के 2 तक कम होने का मतलब है कि भारत ने जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य हासिल कर लिया है।
- इसका अनिवार्य रूप से यह अर्थ है कि भारत को एक बहुत बड़ी आबादी के विकास की चुनौती को लेकर बहुत अधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
- त्वरित आर्थिक विकास: अगले 2-3 दशकों में युवा जनसंख्या शक्ति त्वरित आर्थिक विकास का अवसर प्रदान करेगी।
- हालाँकि त्वरित विकास का लाभ उठाने के लिये भारत को कौशल के साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश करना चाहिये।
- जनसंख्या वृद्धि में कमी: इसका मतलब यह भी है कि जहाँ भारत की आबादी के दुनिया में सबसे अधिक होने की संभावना वर्ष 2024-2028 के बीच थी, उसमें अब देरी होगी।
- जनसंख्या स्थिरीकरण: TFR का 2 होना देश में लंबी अवधि में जनसंख्या की स्थिरता का एक "निश्चित संकेतक" है। 2.1 का TFR एक ऐसा लक्ष्य है जिसे हर देश हासिल करना चाहता है।
- चिंताजनक रुझान:
- महिला नसबंदी में वृद्धि: सर्वेक्षण से पता चलता है कि 2015-16 में 36% के मुकाबले महिला नसबंदी में 38% वृद्धि हुई है।
- महिला नसबंदी में वृद्धि से पता चलता है कि परिवार नियोजन की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर बनी हुई है, पुरुष इस प्रक्रिया में भाग नहीं ले रहे हैं और "ज़िम्मेदारी से पीछे हट रहे हैं"।
- कम TFR संबंधी चिंताएँ: TFR प्रति महिला 2.1 बच्चों से कम है, यह दर्शाता है कि वर्तमान पीढ़ी स्वयं के प्रतिस्थापन हेतु पर्याप्त बच्चों को जन्म नहीं दे रही है, जिससे जनसंख्या में एकमुश्त कमी आई है।
- इस प्रकार TFR 2 से कम (जैसा कि भारत में शहरी क्षेत्रों में होता है) होने की अपनी समस्याएँ होती हैं। उदाहरण के लिये घटती जनसंख्या से वृद्ध जनसंख्या में वृद्धि होगी, जैसा कि चीन में हो रहा है।
- महिला नसबंदी में वृद्धि: सर्वेक्षण से पता चलता है कि 2015-16 में 36% के मुकाबले महिला नसबंदी में 38% वृद्धि हुई है।
आगे की राह
- व्यवहार परिवर्तन संचार रणनीति: सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिये एक लक्षित सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार रणनीति अपनानी चाहिये कि पुरुष भी परिवार नियोजन की ज़िम्मेदारी लें।
- पर्यावरण संरक्षण: जनसंख्या स्थिरीकरण का मतलब यह नहीं है कि भारत अपना ध्यान पर्यावरण संरक्षण से हटा सकता है।