इन्फोग्राफिक्स
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और यूरोपीय मुक्त व्यापार संगठन
प्रिलिम्स के लिये:यूरोपीय मुक्त व्यापार संगठन (EFTA), EFTA के साथ भारत के प्रमुख निर्यात और आयात, व्यापार एवं आर्थिक भागीदारी समझौता (TEPA) मेन्स के लिये:गैर-यूरोपीय देशों के साथ व्यापार बढ़ाने हेतु भारत की रणनीति, भारत की व्यापार नीति और अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव, यूरोपीय देशों के साथ भारत का व्यापार संबंध। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित एक बैठक में भारत एवं यूरोपीय मुक्त व्यापार संगठन (European Free Trade Association- EFTA) के चार यूरोपीय देशों ने व्यापार और आर्थिक भागीदारी समझौते (Trade and Economic Partnership Agreement- TEPA) हेतु वर्ष 2018 से रुके हुए संवाद को पुनः शुरू करने की इच्छा व्यक्त की है।
- TEPA का उद्देश्य दोनों क्षेत्रों के बीच टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करके बाज़ार पहुँच एवं निवेश प्रवाह को बढ़ावा देकर द्विपक्षीय व्यापार तथा आर्थिक सहयोग को बढ़ाना है।
यूरोपीय मुक्त व्यापार संगठन:
- EFTA एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसे वर्ष 1960 में उन यूरोपीय राज्यों हेतु एक वैकल्पिक व्यापार ब्लॉक के रूप में स्थापित किया गया था जो यूरोपीय संघ (European Union- EU) में शामिल होने में असमर्थ या इसके अनिच्छुक थे।
- EFTA में आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विटज़रलैंड शामिल हैं, जो यूरोपीय संघ का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन विभिन्न समझौतों के माध्यम से इसके एकल बाज़ार तक उनकी पहुँच है।
- EFTA भारत का 9वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जो वर्ष 2020-21 में भारत के कुल व्यापार का लगभग 2.5% हिस्सा है।
- EFTA को भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुएँ वस्त्र, रसायन, रत्न एवं आभूषण, मशीनरी और फार्मास्यूटिकल्स हैं।
- EFTA से भारत द्वारा आयात की जाने वाली मुख्य वस्तुएँ मशीनरी, रसायन, कीमती धातुएँ और चिकित्सा उपकरण हैं।
व्यापार और आर्थिक भागीदारी समझौता (TEPA):
- उद्देश्य:
- TEPA का उद्देश्य उत्पादों की एक विस्तृत शृंखला पर टैरिफ एवं गैर-टैरिफ बाधाओं को समाप्त/कम करके भारत और EFTA के बीच व्यापार एवं निवेश के अवसरों में वृद्धि करना है।
- इसका उद्देश्य सेवा प्रदाताओं और निवेशकों के लिये निष्पक्ष एवं पारदर्शी बाज़ार पहुँच की स्थिति सुनिश्चित करना, बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा और प्रवर्तन पर सहयोग को बढ़ाना है।
- TEPA का उद्देश्य विवाद समाधान के प्रभावी तंत्र के साथ-साथ व्यापार प्रक्रियाओं एवं सीमा शुल्क सहयोग को सुविधाजनक बनाना है।
- व्याप्ति:
- TEPA एक व्यापक समझौता है जिसमें वस्तुओं तथा सेवाओं का व्यापार, निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार, प्रतिस्पर्द्धा, सरकारी खरीद, व्यापार सुगमता, व्यापार उपचार, विवाद समाधान और आपसी हित के अन्य क्षेत्र शामिल हैं।
- हालिया घटनाक्रम:
- प्रतिभागियों ने वैश्विक आर्थिक और व्यापार वातावरण द्वारा उत्पन्न चुनौतियों को स्वीकार किया।
- भागीदार देशों ने रचनात्मक और व्यावहारिक तरीके से द्विपक्षीय व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी के मुद्दों को संबोधित करने पर सहमति व्यक्त की।
- भारत ने TEPA वार्ताओं में लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण पर वार्ता को शामिल करने का प्रस्ताव रखा।
- भारत आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिये प्रतिबद्ध है।
EFTA देशों के साथ भारत के संबंध:
- भारत और स्विट्ज़रलैंड संबंध:
- तकनीकी और वैज्ञानिक सहयोग पर एक अंतर-सरकारी फ्रेमवर्क के समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिससे ‘भारत-स्विस संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रम’ (ISJRP) की शुरुआत हुई।
- भारतीय कौशल विकास परिसर और विश्वविद्यालय, पुणे में इंडो-स्विस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस तथा आंध्र प्रदेश में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र जैसे संस्थानों के माध्यम से दोनों देशों के बीच कौशल प्रशिक्षण सहयोग की सुविधा है।
- स्विट्ज़रलैंडभारत में 12वाँ सबसे बड़ा निवेशक है, अप्रैल 2000 और सितंबर 2019 के बीच यह भारत में हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का लगभग 1.07% था।
- भारत और स्विट्ज़रलैंड संबंध:
- सतत् विकास के लिये नीली अर्थव्यवस्था पर भारत-नॉर्वे टास्क फोर्स का गठन वर्ष 2020 में किया गया था।
- नार्वे की 100 से अधिक कंपनियों ने भारत में खुद को स्थापित किया है।
- नॉर्वेजियन पेंशन फंड ग्लोबल संभवतः भारत के सबसे बड़े एकल विदेशी निवेशकों में से एक है।
- नॉर्वे के संस्थानों का चेन्नई में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास और पवन ऊर्जा संस्थान के बीच अकादमिक सहयोग है।
- नार्वे की कंपनी पिक्ल (Piql) भारतीय स्मारकों के लिये एक डिजिटल संग्रह बनाने में शामिल थी।
- भारत और आइसलैंड संबंध:
- भारत और आइसलैंड ने वर्ष 1972 में राजनयिक संबंध स्थापित किये और वर्ष 2005 से उच्च स्तरीय यात्राओं और आदान-प्रदान के साथ संबंधों को मज़बूत किया है।
- भारत और आइसलैंड लोकतंत्र, कानून के शासन एवं बहुपक्षवाद के साझा मूल्यों को साझा करते हैं।
- आइसलैंड ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिये भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया।
- भारत और आइसलैंड व्यापार, नवीकरणीय ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, शिक्षा, संस्कृति तथा विकास में सहयोग करते हैं।
- आर्थिक सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं, जैसे- दोहरा कराधान अपवंचन समझौता।
- भारत और लिकटेंस्टीन संबंध:
- दोनों देशों के बीच आपसी सम्मान और सहयोग पर आधारित मैत्रीपूर्ण संबंध हैं।
- दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2016-17 में 1.59 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
- दोनों देशों ने अपने संबंधों को मज़बूत करने के लिये उच्च स्तरीय बैठकों का आदान-प्रदान किया है।
- दोनों देशों ने दोहरा कराधान अपवंचन समझौते जैसे आर्थिक सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
- लिकटेंस्टीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिये भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता है।
स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स
सामाजिक न्याय
विश्व विकास रिपोर्ट 2023
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, विश्व विकास रिपोर्ट, खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) मेन्स के लिये:रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ, चुनौतियाँ, अनुशंसाएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक ने विश्व विकास रिपोर्ट 2023: प्रवासी, शरणार्थी और समाज (World Development Report 2023: Migrants, Refugees & Societies) प्रकाशित की है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में रहने वाले लोगों की आय में 40% की वृद्धि की तुलना में काम के लिये दूसरे देश में प्रवास करने वाले भारतीयों की आय में 120% की वृद्धि हो सकती है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- आय में वृद्धि: अमेरिका में प्रवास करने वाले कम कुशल भारतीय नागरिकों की आय में लगभग 500% की वृद्धि देखी गई, इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात में इसमें लगभग 300% की वृद्धि देखने को मिली है।
- संयुक्त अरब अमीरात के अतिरिक्त खाड़ी सहयोग परिषद के देशों में प्रवास करने वालों को कम लाभ होगा।
- वैश्विक प्रवासन और शरणार्थियों का अवलोकन: वर्तमान में वैश्विक स्तर पर प्रवासियों की संख्या 184 मिलियन है, जो जनसंख्या का 2.3% है, जिसमें 37 मिलियन शरणार्थी शामिल हैं।
- प्रवासी चार प्रकार के होते हैं:
- कुशल आर्थिक प्रवासी (उदाहरण के लिये अमेरिका में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी पेशेवर अथवा GCC देशों में निर्माण कार्य से जुड़े श्रमिक)।
- कौशल वाले शरणार्थी जिनकी मांग है (जैसे- तुर्किये में सीरियाई उद्यमी)।
- व्यथित प्रवासी (उदाहरण के लिये संयुक्त राष्ट्र दक्षिणी सीमा पर कुछ अकुशल प्रवासी)।
- शरणार्थी (जैसे- बांग्लादेश में रोहिंग्या)।
- शीर्ष प्रवासन कॉरिडोर: मैक्सिको-अमेरिका, चीन-अमेरिका, फिलीपींस-अमेरिका और कज़ाखस्तान-रूस के साथ भारत-अमेरिका, भारत-GCC और बांग्लादेश-भारत की पहचान विश्व स्तर पर शीर्ष प्रवास कॉरिडोर के रूप में की गई है।
- प्रेषण (Rmittances) में वृद्धि: भारत, मैक्सिको, चीन और फिलीपींस सहित बड़ी प्रवासी आबादी वाले कुछ देशों में प्रेषण में वृद्धि हुई है।
- वित्त वर्ष 2021-22 में भारत को 89,127 मिलियन अमेरिकी डॉलर के रूप में अब तक का सर्वाधिक विदेशी आवक प्रेषण प्राप्त हुआ।
- वर्ष 2021 में कुल वैश्विक अनुमानित प्रेषण 781 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था जो वर्ष 2022 में बढ़कर 794 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- कामकाजी उम्र के वयस्कों में गिरावट: आगामी कुछ दशकों में कई देशों में कामकाजी उम्र के वयस्कों की हिस्सेदारी में तेज़ी से गिरावट आने की संभावना है।
- स्पेन में 21वीं सदी के अंत तक कामकाजी व्यक्तियों की संख्या में एक-तिहाई से अधिक की गिरावट आने की संभावना है।
संबद्ध चिंताएँ:
- वैश्विक असमानताएँ: विश्व बैंक के अनुसार, वास्तविक कमाई, रोज़गार की संभावनाओं, जनसांख्यिकीय रुझान और जलवायु लागत के संदर्भ में राष्ट्रों के बीच एवं राष्ट्रों के भीतर काफी अंतर है। परिणामस्वरूप प्रवासन की चुनौतियाँ और भी व्यापक एवं गंभीर होती जा रही हैं।
- नागरिकता का अभाव: बड़ी संख्या में लोगों के पास, जहाँ वे रहते हैं, उस देश की नागरिकता नहीं है। वैश्विक प्रवासी आबादी का आधे से भी कम लगभग 43% निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
- यह राज्यहीनता की समस्या के वैश्विक प्रकृति को रेखांकित करता है और इसका हल निकालने के लिये कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
- व्यथित प्रवास: कुछ प्रवासी वांछित कौशल के बिना ही दूसरे देश चले जाते हैं। इस प्रकार की गतिविधियाँ अक्सर व्यथित और विकट परिस्थितियों के कारण होती हैं।
आगे की राह
- मेल-उद्देश्य (Match-Motive) फ्रेमवर्क:
- "मैच" शब्द की व्याख्या श्रम अर्थशास्त्र में मिलती है और इसमें इस बात पर ध्यान ध्यान दिया जाता है कि प्रवासियों के कौशल और संबंधित विशेषताएँ गंतव्य देशों की आवश्यकताओं से कितनी अच्छी तरह सुमेलित हैं।
- "मोटिव" उन परिस्थितियों को संदर्भित करता है जिसके तहत एक व्यक्ति अवसर की तलाश में आगे बढ़ता है।
- यह इस बात को निर्धारित करता है कि प्रवासन से प्रवासियों, मूल देशों और गंतव्य देशों को किस हद तक लाभ होता है: मेल जितना मज़बूत होगा, लाभ उतना ही बड़ा होगा।
- प्रवासन को रणनीतिक रूप से प्रबंधित करना:
- मूल देशों को श्रमबल प्रवासन को अपनी विकास रणनीति का एक स्पष्ट हिस्सा बनाने की आवश्यकता है।
- कौशल मांग और सामाजिक समावेशिता को संतुलित करना:
- जिन राष्ट्रों में अप्रवासी जा रहे हैं, उन क्षेत्रों में अप्रवासन को बढ़ावा देना चाहिये जहाँ उनके कौशल की मांग अधिक है, उनके लिये समावेशन को सरल बनाना चाहिये और उनके नागरिकों पर पड़ने वाले किसी भी प्रकार के सामजिक प्रभाव से निपटने का प्रयास करना चाहिये।
- सुरक्षा सुनिश्चित करना:
- शरणार्थियों को इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा प्रदान करना चाहिये जो आर्थिक और सामाजिक रूप से टिकाऊ हो क्योंकि अधिकांश शरणार्थी स्थितियाँ कई वर्षों तक बनी रहती हैं।
- सीमा पार संबंधों को अलग तरीके से प्रबंधित करना:
- गंतव्य क्षेत्रों में अर्थव्यवस्थाओं की ज़रूरतों के साथ प्रवासियों के कौशल और विशेषताओं के मेल को मज़बूत करने के लिये द्विपक्षीय सहयोग का उपयोग किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:मेन्स:प्रश्न. पिछले चार दशकों में भारत के भीतर और भारत के बाहर श्रमिक प्रवासन की प्रवृत्तियों में परिवर्तन पर चर्चा कीजिये। (2015) |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
शासन व्यवस्था
सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023
प्रिलिम्स के लिये:सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015), सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023 और संबंधित चिंताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय (Bombay High Court ) ने कहा है कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 पैरोडी या व्यंग्य के माध्यम से सरकार की निष्पक्ष आलोचना को संरक्षण प्रदान नहीं करता है।
- आईटी नियम सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 से अधिकार प्राप्त करते हैं, जो भारत में इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स को कानूनी मान्यता देता है।
सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023:
- मध्यवर्ती संस्थानों के लिये अनिवार्य:
- कोई भी प्लेटफॉर्म हानिकारक अस्वीकृत ऑनलाइन गेम और उनके विज्ञापनों की अनुमति नहीं दे सकता है।
- उन्हें भारत सरकार के बारे में गलत जानकारी साझा नहीं करनी चाहिये, जैसा कि एक तथ्य-जाँच इकाई द्वारा पुष्टि की गई है।
- एक ऑनलाइन मध्यस्थ- जिसमें फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तथा एयरटेल, जियो एवं वोडाफोन आइडिया जैसे इंटरनेट सेवा प्रदाता शामिल हैं, को केंद्र सरकार से संबंधित सामग्री की मेज़बानी न करने के लिये "उचित प्रयास" करना चाहिये जिसे "तथ्य-जाँच इकाई" द्वारा "नकली या भ्रामक" के रूप में पहचाना जाता है तथा आईटी मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया जा सकता है।
- स्व-नियामक निकाय:
- ऑनलाइन गेमिंग प्रदान करने वाले प्लेटफॉर्म को एक स्व-नियामक निकाय (SRB) के साथ पंजीकरण करना होगा जो यह निर्धारित करेगा कि खेल "अनुमति" है या नहीं।
- प्लेटफॉर्म को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ऑनलाइन गेम में कोई जुआ या सट्टेबाज़ी का तत्त्व शामिल न हो। उन्हें कानूनी आवश्यकताओं, मानकों और माता-पिता के नियंत्रण जैसी सुरक्षा सावधानियों का भी पालन करना चाहिये।
- सेफ हार्बर का दर्जा खत्म किया जाना:
- यदि आगामी तथ्य-जाँच इकाई द्वारा किसी भी जानकारी को नकली के रूप में चिह्नित किया जाता है, तो मध्यवर्ती संस्थाओं को इसे हटाने की आवश्यकता होगी, ऐसा न करने पर वे अपने सेफ हार्बर को खोने का जोखिम उठाएंगी, जो उन्हें तीसरे पक्ष की सामग्री के खिलाफ मुकदमेबाज़ी से बचाता है।
- सोशल मीडिया साइट्स को ऐसे पोस्ट हटाने होंगे और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को ऐसी सामग्री के URL को ब्लॉक करना होगा।
- यदि आगामी तथ्य-जाँच इकाई द्वारा किसी भी जानकारी को नकली के रूप में चिह्नित किया जाता है, तो मध्यवर्ती संस्थाओं को इसे हटाने की आवश्यकता होगी, ऐसा न करने पर वे अपने सेफ हार्बर को खोने का जोखिम उठाएंगी, जो उन्हें तीसरे पक्ष की सामग्री के खिलाफ मुकदमेबाज़ी से बचाता है।
प्रमुख आईटी नियम, 2021:
- सोशल मीडिया प्लेटफार्म द्वारा सावधानी बरतना अनिवार्य करना:
- विशेष तौर पर आईटी नियम (2021) सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अपने प्लेटफॉर्म पर सामग्री के संबंध में कड़ी निगरानी करने के लिये बाध्य करते हैं।
- उपयोगकर्त्ताओं की ऑनलाइन सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करना:
- इस प्रकार व्यक्तियों को पूर्ण या आंशिक नग्नता या यौन क्रिया में दिखाने या छेड़छाड़ की प्रकृति सहित प्रतिरूपण की प्रकृति आदि में मध्यवर्ती संस्थाएँ व्यक्तियों के निजी क्षेत्रों को उजागर करने वाली सामग्री की पहुँच संबंधी शिकायतों की प्राप्ति के 24 घंटों के अंदर उन्हें हटा या अक्षम कर देंगी।।
- उपयोगकर्त्ताओं को गोपनीयता नीतियों के संदर्भ में शिक्षित करना:
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की गोपनीयता नीतियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उपयोगकर्त्ताओं को कॉपीराइट सामग्री और ऐसी किसी भी विषय-वस्तु को प्रसारित न करने के संदर्भ में शिक्षित किया जाए, जो मानहानिकारक, नस्लीय या जातीय रूप से आपत्तिजनक, पीडोफिलिक, भारत की एकता, अखंडता, रक्षा, सुरक्षा या संप्रभुता हेतु खतरा या विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध अथवा किसी समकालीन कानून का उल्लंघन करता हो।
चुनौतियाँ:
- अस्पष्ट परिभाषा:
- यह संशोधन झूठी खबरों/फेक न्यूज़ को परिभाषित करने में विफल है, साथ ही सरकार की तथ्य-जाँच इकाई को राज्य से जुड़े "किसी भी व्यवसाय के संबंध में" किसी भी समाचार की सटीकता की पुष्टि करने की अनुमति देता है।
- अपरिभाषित शब्दों का उपयोग, विशेष रूप से वाक्यांश "कोई भी व्यवसाय" सरकार को यह तय करने की अनियंत्रित शक्ति देता है कि लोग इंटरनेट पर क्या देख, सुन और पढ़ सकते हैं।
- फेक न्यूज़ को लेकर स्पष्टता का अभाव:
- IT नियम, 2023 गलत या भ्रामक जानकारी को परिभाषित नहीं करते हैं, न ही वे तथ्य-जाँच इकाई हेतु योग्यता और प्रक्रियाओं को परिभाषित करते हैं।
- इसने फेक न्यूज़ के रूप में क्या योग्य है, यह निर्धारित करने की सरकार की अत्यधिक शक्ति के बारे में चिंता जताई है क्योंकि नियम शब्द की स्पष्ट परिभाषा प्रदान नहीं करते हैं।
- जानकारी हटाना:
- तथ्य-जाँच इकाई द्वारा गलत समझी जाने वाली जानकारी को मध्यवर्ती संस्थाएँ हटा देंगी, केवल राज्य को यह निर्धारित करने की शक्ति है कि क्या सही है।
- नया विनियमन सरकार को यह तय करने की शक्ति प्रदान करता है कि कौन-सी सूचना फर्ज़ी/गलत है तथा बिचौलियों को फर्ज़ी या गलत माने जाने वाले पोस्ट को हटाने के लिये मज़बूर करके सेंसरशिप का उपयोग करे।
- उच्चतम न्यायालय के निर्णय का उल्लंघन:
- श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि अभिव्यक्ति/वाक् को सीमित करने वाले कानून न तो संदिग्ध होने चाहिये, न ही व्यापक अनुप्रयोग योग्य (‘Neither be Vague nor Over-broad’)।
आगे की राह
- गलत सूचनाओं और फर्ज़ी/भ्रामक खबरों से निपटने के लिये सरकार एवं बिचौलिये एल्गोरिदम तथा तथ्य-जाँच वेबसाइट्स जैसे प्रौद्योगिकी समाधानों का उपयोग कर सकते हैं।
- बिचौलिये स्व-नियामक उपायों को भी लागू कर सकते हैं जैसे कि सामग्री की निगरानी करना तथा तथ्यों की जाँच करने वाली वेबसाइट्स के साथ कार्य करना।
- इसके अतिरिक्त सेंसरशिप के खतरों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने एवं मुक्त वाक्/अभिव्यक्ति को बढ़ावा देने हेतु सोशल मीडिया अभियानों, कार्यशालाओं एवं सार्वजनिक मंचों पर चर्चा जैसे उपायों का उपयोग कर सकते हैं।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्त्व अधिनियम 2010
प्रिलिम्स के लिये:पूरक मुआवज़े पर अभिसमय (Convention on Supplementary Compensation- CSC), परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्त्व अधिनियम, 2010, न्यूक्लियर पावर कारपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCIL) मेन्स के लिये:असैनिक परमाणु दायित्त्व कानून: प्रावधान और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
वर्तमान में महाराष्ट्र के जैतापुर में छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टर बनाने की योजना, जो कि विश्व की सबसे बड़ी विचाराधीन परमाणु ऊर्जा उत्पादन साइट है, भारत के परमाणु दायित्त्व कानून से संबंधित मुद्दों के कारण एक दशक से अधिक समय से विलंबित है।
असैन्य परमाणु दायित्त्व पर कानून:
- परिचय:
- असैन्य परमाणु दायित्त्व पर कानून यह सुनिश्चित करता है कि परमाणु घटना या आपदा के कारण पीड़ितों को हुई क्षति के लिये मुआवज़ा उपलब्ध कराया जाए और यह भी निर्धारित करता है कि उस क्षति के लिये कौन उत्तरदायी होगा।
- अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन:
- परमाणु क्षति हेतु IAEA नागरिक दायित्त्व पर कई अंतर्राष्ट्रीय कानूनी उपकरणों के लिये डिपॉज़िटरी के रूप में कार्य करता है। इनमें परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्त्व पर वियना अभिसमय और परमाणु क्षति के लिये पूरक मुआवज़े पर अभिसमय शामिल हैं।
- न्यूनतम राष्ट्रीय मुआवज़ा राशि सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वर्ष 1997 में पूरक मुआवज़ा पर व्यापक अभिसमय (CSC) को अपनाया गया था।
- भारत ने वर्ष 2016 में CSC की पुष्टि की है।
- परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्त्व अधिनियम, 2010 (India’s Civil Liability for Nuclear Damage Act- CLNDA):
- उद्देश्य:
- भारत ने वर्ष 2010 में परमाणु दुर्घटना के पीड़ितों हेतु एक त्वरित मुआवज़ा तंत्र स्थापित करने के लिये CLNDA को अधिनियमित किया था।
- संचालकों पर देयता:
- CLNDA के अनुसार, परमाणु संयंत्र के संचालक सख्त और बिना किसी गलती के दायित्त्व के अधीन हैं, जिसका अर्थ है कि वह किसी भी लापरवाही एवं नुकसान हेतु उत्तरदायी हैं।
- यह निर्दिष्ट करता है कि दुर्घटना के कारण हुए नुकसान के मामले में संचालकों को 1,500 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान करना होगा।
- इसके लिये संचालकों को बीमा या अन्य वित्तीय सुरक्षा के माध्यम से देयता को कवर करने की भी आवश्यकता होती है।
- सरकार की भूमिका:
- CLNDA अपेक्षा करता है कि यदि नुकसान का दावा 1,500 करोड़ रुपए से अधिक है तो सरकार हस्तक्षेप करेगी।
- इसने सरकारी देयता राशि को रुपए में 300 मिलियन विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights- SDR) के बराबर तक सीमित कर दिया है।
- आपूर्तिकर्त्ता देयता उपबंध: यह ध्यान देने की बात है कि वर्ष 1984 में भोपाल गैस त्रासदी हेतु दोषपूर्ण पुर्जे काफी हद तक ज़िम्मेदार थे, सरकार ने CLNDA में संचालकों की देयता के अलावा आपूर्तिकर्त्ता देयता को शामिल करने के लिये CSC के प्रावधानों से परे जाकर देयता सुनिश्चित की है।
- इस प्रावधान के तहत यदि कोई परमाणु घटना दोषपूर्ण उपकरण अथवा सामग्री, खराब सेवाओं या आपूर्तिकर्त्ता कर्मचारियों के आचरण के परिणामस्वरूप होती है, तो परमाणु संयंत्र का संचालक आपूर्तिकर्त्ता से संपर्क कर उचित मदद की मांग कर सकता है।
- उद्देश्य:
नोट:
- CSC के अनुसार, "केवल" दो परिस्थितियों में किसी राष्ट्र का राष्ट्रीय कानून एक आपूर्तिकर्त्ता को उत्तरदायी ठहराने के लिये संचालक को "मदद का अधिकार" प्रदान कर सकता है:
- अगर यह अनुबंध में विशेष रूप से वर्णित है।
- अगर परमाणु घटना "नुकसान पहुँचाने के इरादे से किये गए किसी कार्य अथवा चूक के परिणामस्वरूप होती है"।
परमाणु सौदों में आपूर्तिकर्त्ता दायित्त्व खंड:
- विदेशी और घरेलू आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये बाधक: यह देखते हुए कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास आपूर्तिकर्त्ताओं से नुकसान की मांग की अनुमति देने वाला कानून है, परमाणु उपकरणों के घरेलू और विदेशी दोनों निर्माता भारत के साथ परमाणु समझौते को लागू करने के लिये अनिच्छुक रहे हैं।
- आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये अधिक जोखिमपूर्ण: आपूर्तिकर्त्ताओं ने CLNDA के तहत संभावित रूप से असीमित देयता के संपर्क में आने के बारे में चिंता जताई है क्योंकि मुआवज़े की राशि कानून के तहत तय नहीं है क्योंकि यह ऑपरेटर के लिये तय की गई है।
- चूँकि मुआवज़े की राशि आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये कानून द्वारा उस प्रकार निर्धारित नहीं है जैसा कि संचालकों के लिये निर्धारित है, आपूर्तिकर्त्ताओं ने CLNDA के तहत संभावित रूप से असीमित दायित्त्वों को लेकर चिंता व्यक्त की है।
- इसके अतिरिक्त उन्होंने इस अस्पष्टता को भी उजागर किया है कि क्षति के मामले में मुआवज़े हेतु कितनी राशि को पृथक रखना है।
- स्पष्टता की कमी में अन्य कानून शामिल हैं: 'परमाणु क्षति' के प्रकारों पर एक व्यापक परिभाषा के अभाव में अधिनियम संभावित रूप से अन्य नागरिक कानूनों के माध्यम से ऑपरेटर और आपूर्तिकर्त्ताओं के खिलाफ नागरिक देयता के दावों को लाने की अनुमति देता है।
- आपराधिक देयता को आकर्षित करता है: अधिनियम किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के अतिरिक्त किसी अन्य कानून के तहत ऑपरेटर के खिलाफ कार्यवाही करने से नहीं रोकता है। यह जहाँ भी लागू हो, ऑपरेटर और आपूर्तिकर्त्ता के खिलाफ आपराधिक देयता का अनुसरण करने की अनुमति देता है।
CLNDA के साथ अन्य समस्याएँ :
- मुआवज़े पर मौद्रिक सीमा: अधिनियम एक निश्चित मौद्रिक सीमा तक देयता तय करता है (ऑपरेटरों के लिये 1,500 करोड़ रुपए और सरकार के लिये विशेष आहरण अधिकार के तहत 300 मिलियन रुपए)। इस तरह की सीमा के साथ सबसे बड़ी समस्या ऐसी स्थितियों में पैदा होती है जब नुकसान सीमा से अधिक हो जाता है।
- अधिनियम स्पष्ट रूप से सीमा से अधिक नुकसान की लागत के संबंध में कोई प्रावधान प्रदान नहीं करता है।
- करदाताओं पर बोझ: भारत में ये संयंत्र सरकार के स्वामित्त्व वाले हैं और NPCIL के माध्यम से संचालित होते हैं। अंततः ऐसी आपदाओं की क्षतिपूर्ति आम करदाताओं द्वारा वहन की जाएगी।
- अतिरिक्त लागतों की उपेक्षा: चेरनोबिल जैसी विगत घटनाओं से ज्ञात हुआ है कि परमाणु घटना के लिये दोषी पक्ष को परमाणु अपशिष्ट की सफाई एवं सुरक्षित निपटान जैसी अतिरिक्त लागतें वहन करनी चाहिये, जो महँगी हैं तथा इसमें अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
- हालाँकि अधिनियम इन अतिरिक्त लागतों के लिये कोई प्रावधान नहीं करता है।
- कोई विदेशी अधिकार क्षेत्र नहीं: भारत कई विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं से आपूर्ति करता है जो भारतीय कानून के अनुसार विदेशी संस्थाएँ हैं। भारतीय मुआवज़े की मांग के लिये विदेशी न्यायालय में नहीं जा सकते।
आगे की राह
- विदेशी आपूर्तिकर्त्ता से मुआवज़ा मांगे जाने की स्थिति में विदेशी न्यायालयों तक पहुँच प्राप्त करने के लिये अतिरिक्त प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के प्रावधान किये जाने चाहिये। अंतर्राष्ट्रीय समझौते या एक मज़बूत विवाद समाधान तंत्र बनाया जा सकता है।
- आपूर्तिकर्त्ताओं को विश्वास में लेने हेतु उनकी देनदारी की सीमा भी सुनिश्चित होनी चाहिये तथा बीमा राशि की भी अधिकतम सीमा निश्चित होनी चाहिये।
- अस्पष्टता के समाधान हेतु कानून में संशोधन किया जाना चाहिये और आपराधिक दायित्त्व के प्रावधानों को आसान बनाया जाना चाहिये या आपराधिक कार्यवाही के दायरे को स्पष्ट किया जाना चाहिये।
- वैकल्पिक वित्तपोषण तंत्र का अन्वेषण किया जाना चाहिये, जैसे कि बीमा या एक समर्पित निधि जो यह सुनिश्चित करे कि आर्थिक भार पूरी तरह से करदाताओं पर नहीं है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: d प्रश्न. भारत में क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई.ए.ई.ए सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं, जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020) (a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का। उत्तर: b मेन्स:प्रश्न. बढ़ती ऊर्जा की आवश्यकताओं को देखते हुए क्या भारत को अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करते रहना चाहिये? परमाणु ऊर्जा से जुड़े तथ्यों और आशंकाओं पर चर्चा कीजिये। (2018) प्रश्न. भारत में परमाणु विज्ञान और प्रौद्योगिकी की वृद्धि एवं विकास का विवरण दीजिये। भारत में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर कार्यक्रम के क्या लाभ हैं? (2017) |
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
सर्वोच्च न्यायालय ने ESZ आदेश में किया संशोधन
प्रिलिम्स के लिये:पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र/इको-सेंसिटिव ज़ोन, राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (2002-2016) मेन्स के लिये:ESZ के आसपास गतिविधियाँ, ESZ का महत्त्व, ESZ से संबद्ध चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने संरक्षित वनों के आसपास इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) के संबंध में पूर्व के अपने फैसले को संशोधित करते हुए कहा कि ESZ पूरे देश में एक समान नहीं हो सकते हैं, अतः इसे विशिष्ट संरक्षित क्षेत्र के अनुरूप होने की आवश्यकता है।
ESZ पर सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के फैसले:
- पूर्व के फैसले:
- जून 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि देश भर में संरक्षित वनों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास न्यूनतम एक किलोमीटर के क्षेत्र को ESZ के रूप घोषित किया जाना चाहिये।
- न्यायालय का मानना था कि ESZ संरक्षित क्षेत्रों के लिये "शॉक अब्ज़ॉर्बर" के रूप में कार्य करेगा और अतिक्रमण, अवैध खनन, निर्माण तथा पर्यावरण एवं वन्य जीवन को नुकसान पहुँचाने वाले अन्य गतिविधियों को रोकने में मदद करेगा।
- न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को 6 महीने के भीतर ESZ को सूचित करने तथा अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया था।
- जून 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि देश भर में संरक्षित वनों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास न्यूनतम एक किलोमीटर के क्षेत्र को ESZ के रूप घोषित किया जाना चाहिये।
- फैसले को चुनौती देने हेतु केंद्र और राज्यों का तर्क:
- जून 2022 के आदेश के कारण वनों की परिधि में सैकड़ों गाँव प्रभावित हुए। ESZs पूरे देश में एक समान नहीं हो सकते हैं और इन्हें मामला-दर-मामला आधार पर तय किया जाता है।
- भौगोलिक विशेषताओं, जनसंख्या घनत्त्व, भूमि उपयोग पैटर्न और प्रत्येक संरक्षित क्षेत्र के अन्य कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
- यह आदेश ESZ में रहने वाले लोगों की विकास गतिविधियों और उनकी आजीविका के साथ-साथ वन विभाग के संरक्षण प्रयासों को बाधित करेगा।
सर्वोच्च न्यायालय के संशोधित आदेश के प्रमुख बिंदु:
- न्यायमूर्ति बी.आर. गवई (भूषण रामकृष्ण गवई) ने केंद्र तथा राज्यों की दलीलों पर सहमति जताई और अपने पिछले आदेश में यह कहते हुए संशोधन किया कि:
- ESZ घोषित करने का उद्देश्य पर्यावरण और वन्यजीवों की रक्षा करना है।
- जून 2022 के आदेश का सख्ती से पालन करने से अधिक नुकसान होगा क्योंकि इससे मानव-पशु संघर्ष में वृद्धि होगी, ग्रामीणों के लिये बुनियादी सुविधाएँ बाधित होंगी और संरक्षित क्षेत्रों के आसपास पर्यावरण-विकास संबंधित गतिविधियाँ प्रभावित होंगी।
- केंद्र और राज्यों को अपने प्रस्तावों के अनुसार या 6 महीने के भीतर विशेषज्ञ समितियों की सिफारिशों के अनुसार ESZ को अधिसूचित करना चाहिये।
- हालाँकि राष्ट्रीय उद्यानों/वन्यजीव अभयारण्यों के भीतर और उनकी सीमा से 1 किमी. के क्षेत्र के भीतर खनन की अनुमति नहीं होगी।
पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र/इको-सेंसिटिव ज़ोन:
- शासी विधान:
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत MoEFCC की राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (2002-2016) में निर्धारित किया गया है कि राज्य सरकारों को राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं के 10 किमी. के भीतर आने वाली भूमि को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों (ESZs) के रूप में घोषित करना चाहिये।
- विस्तार:
- हालाँकि 10 किलोमीटर के नियम को एक सामान्य सिद्धांत के रूप में कार्यान्वित किया गया है, लेकिन इसके अनुप्रयोग की सीमा अलग-अलग हो सकती है।
- पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण एवं विस्तृत क्षेत्रों, जिनका क्षेत्रफल 10 किमी. से अधिक हो, को केंद्र सरकार द्वारा ESZ के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है।
- ESZs के भीतर प्रतिबंधित गतिविधियाँ:
- वाणिज्यिक खनन
- आरा मिलें
- प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग
- प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएँ
- लकड़ी का व्यावसायिक उपयोग
- अनुमत गतिविधियाँ:
- कृषि या बागवानी प्रथाएँ
- वर्षा जल संचयन
- जैविक खेती
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग
- हरित प्रौद्योगिकी को अपनाना
- महत्त्व:
- ESZs इन-सीटू संरक्षण में मदद करते हैं
- वनों की कमी एवं मानव-पशु संघर्ष को कम करते हैं
- नाजुक पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव को कम करते हैं
- ESZs संबंधी चुनौतियाँ:
- जलवायु परिवर्तन के कारण ESZs पर भूमि, जल और पारिस्थितिक तनाव पैदा हो रहा है।
- वन अधिकार कमज़ोर होने के कारण वन समुदायों के जीवन एवं आजीविका पर प्रभाव।
आगे की राह
- विशिष्ट संरक्षित क्षेत्रों के लिये ESZ का निर्माण:
- सर्वोच्च न्यायालय के संशोधित आदेश में स्वीकार किया गया है कि ESZ पूरे देश में एक समान नहीं हो सकते हैं और मामले-दर-मामले के आधार पर निर्णय लेने की आवश्यकता है।
- यह दृष्टिकोण सुनिश्चित कर सकता है कि ESZ प्रत्येक संरक्षित क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं और कमज़ोरियों के अनुरूप हैं और परिधि में रहने वाले लोगों पर किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को कम करते हैं।
- हितधारकों के साथ परामर्श:
- ESZ तय करने की प्रक्रिया में केंद्र और राज्यों को स्थानीय समुदायों, वन विभागों, पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों सहित सभी हितधारकों को शामिल करना चाहिये।
- यह सुनिश्चित कर सकता है कि अंतिम निर्णय में सभी पक्षों की चिंताओं और सुझावों पर विचार कर उनका समाधान किया जाए।
- ESZ तय करने की प्रक्रिया में केंद्र और राज्यों को स्थानीय समुदायों, वन विभागों, पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों सहित सभी हितधारकों को शामिल करना चाहिये।
- संरक्षण और विकास को संतुलित करना:
- संशोधित आदेश में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि ESZ घोषित करने का उद्देश्य नागरिकों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में बाधा डालना नहीं है बल्कि पर्यावरण और वन्य जीवन की रक्षा करना है।
- इसलिये केंद्र एवं राज्यों को संरक्षित क्षेत्रों और परिधि में रहने वाले लोगों की विकास संबंधी ज़रूरतों के बीच संतुलन बनाना चाहिये।
- यह ESZ में पर्यावरणीय पर्यटन, स्थायी आजीविका और हरित बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देकर प्राप्त किया जा सकता है।
- संशोधित आदेश में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि ESZ घोषित करने का उद्देश्य नागरिकों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में बाधा डालना नहीं है बल्कि पर्यावरण और वन्य जीवन की रक्षा करना है।
- निगरानी और प्रवर्तन:
- संशोधित आदेश केंद्र और राज्यों को छह महीने के अंदर ESZ को सूचित करने और अनुपालन रिपोर्ट दर्ज करने का निर्देश देता है।
- यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि किसी भी प्रकार की अवैध गतिविधिय, अतिक्रमण या उल्लंघन को रोकने के लिये ESZs की निगरानी की जाए और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।
- यह नियमित निरीक्षण, निगरानी और उल्लंघनकर्त्ताओं के लिये दंड का प्रावधान कर किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किस वर्ग के आरक्षित क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को जैवभार एकत्र करने और उसके उपयोग की अनुमति नहीं है? (2012) (a) जैव मंडलीय आरक्षित क्षेत्रों में उत्तर: (b) |
स्रोत: द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
छत्तीसगढ़ में वामपंथी उग्रवाद
प्रिलिम्स के लिये:वामपंथी उग्रवाद (LWE), सामरिक जवाबी आक्रामक अभियान (TCOCs), समाधान सिद्धांत, विशेष अवसंरचना योजना (SIS), ग्रेहाउंड्स, ऑपरेशन ग्रीन हंट मेन्स के लिये:वामपंथी उग्रवाद (LWE), कारण, संबंधित चुनौतियाँ और इससे निपटने के लिये सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ राज्य के दंतेवाड़ा ज़िले में माओवादियों द्वारा IED (इम्प्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) से हमला किया गया जिसमें पुलिस के ज़िला रिज़र्व गार्ड (DRG) के दस कर्मियों और उनके असैनिक वाहन चालक के मारे जाने की सूचना मिली।
- अप्रैल 2021 में माओवादियों द्वारा सुरक्षा बलों के 22 जवानों को मारे जाने की घटना के दो वर्ष से अधिक समय बाद इस प्रकार की घटना हुई है।
वामपंथी उग्रवाद:
- परिचय:
- वामपंथी उग्रवाद (Left-wing Extremism- LWE) एक राजनीतिक विचारधारा है जो कट्टरपंथी समाजवादी, साम्यवादी अथवा अराजकतावादी विचारों पर चलती है और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में हिंसा एवं आतंकवाद का सहारा लेना इनकी विशेषता है।
- ये अक्सर पूंजीवाद, साम्राज्यवाद और स्थापित राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्था का विरोध करते हुए पाए जाते हैं और एक क्रांतिकारी समाजवादी या साम्यवादी राज्य की स्थापना करना चाहते हैं।
- लक्ष्य:
- LWE (वामपंथी उग्रवाद) समूह अपनी कार्य प्रणाली (एजेंडे) को आगे बढ़ाने हेतु सरकारी संस्थानों, विधि प्रवर्तन एजेंसियों अथवा निजी संपत्तियों को निशाना बना सकते हैं।
- वामपंथी उग्रवाद का अक्सर सरकारों एवं कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा विरोध किया जाता है जो इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थिरता के लिये खतरे के रूप में देखते हैं।
- LWE (वामपंथी उग्रवाद) समूह अपनी कार्य प्रणाली (एजेंडे) को आगे बढ़ाने हेतु सरकारी संस्थानों, विधि प्रवर्तन एजेंसियों अथवा निजी संपत्तियों को निशाना बना सकते हैं।
छत्तीसगढ़ में वामपंथी उग्रवाद की स्थिति:
- छत्तीसगढ़, भारत का एकमात्र राज्य है जहाँ माओवादियों की उपस्थिति महत्त्वपूर्ण बनी हुई है वर्तमान में इसकी बड़े हमलों को अंजाम देने की क्षमता बरकरार है।
- विगत 5 वर्षों (2018-22) के दौरान समस्त माओवादी हिंसा का एक-तिहाई से अधिक और इसके कारण होने वाली सभी मौतों का 70% से 90% छत्तीसगढ़ में देखा गया है।
- छत्तीसगढ़ में अब भी यह समस्या बनी हुई है। आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में राज्य पुलिस की सक्रिय भागीदारी ने माओवादी समस्याओं को समाप्त करने में मदद करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- हालाँकि वामपंथी उग्रवाद के उन्मूलन की यह प्रक्रिया छत्तीसगढ़ में देरी से शुरू हुई है, तब तक पड़ोसी राज्यों की पुलिस पहले ही माओवादियों को उनके राज्यों से छत्तीसगढ़ में खदेड़ चुकी थी, जिससे यह क्षेत्र माओवादी प्रभाव का एक केंद्र बन गया था।
- बस्तर में सड़कों, कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे की अनुपस्थिति तथा प्रशासन की न्यूनतम उपस्थिति के कारण माओवादियों का प्रभाव इस क्षेत्र में बना हुआ है, साथ ही भय एवं सद्भावना जैसे मेल-जोल की वजह से उन्हें स्थानीय समर्थन का लाभ मिला है।
देश में वामपंथी उग्रवाद की वर्तमान स्थिति:
- सरकार के अनुसार, वर्ष 2010 के बाद से देश में माओवादी हिंसा में 77% की कमी आई है।
- गृह मंत्रालय (MHA) के अनुसार, परिणामी मौतों (सुरक्षा बलों + नागरिकों) की संख्या वर्ष 2010 में 1,005 के सर्वकालिक उच्च स्तर से 90% कम होकर वर्ष 2022 में 98 हो गई है।
- कई कारकों के कारण देश में माओवादियों और उनसे जुड़ी हिंसा का प्रभाव लगातार कम हो रहा है:
- माओवादियों के गढ़ में सुरक्षा बलों की ओर से प्रभावी प्रयास।
- सड़कें एवं नागरिक सुविधाएँ पहले की तुलना में सुलभ हैं।
- युवाओं में माओवादी विचारधारा के प्रति एक आम मोहभंग, जिसने विद्रोही आंदोलन को नए नेतृत्त्व से वंचित कर दिया है।
वामपंथी उग्रवाद को नियंत्रित करने हेतु सरकार की पहल:
- समाधान (SAMADHAN) सिद्धांत वामपंथी उग्रवाद की समस्या का एकमात्र समाधान है। इसमें विभिन्न स्तरों पर तैयार की गई अल्पकालिक नीति से लेकर दीर्घकालिक नीति तक सरकार की संपूर्ण रणनीति शामिल है। समाधान (SAMADHAN) का पूर्ण रूप है:
- S- स्मार्ट लीडरशिप
- A- एग्रेसिव स्ट्रेटेजी
- M- मोटिवेशन एंड ट्रेनिंग
- A- एक्शनेबल इंटेलिजेंस
- D- डैशबोर्ड बेस्ड KPI (की परफॉरमेंस इंडिकेटर) एंड KRA (की रिज़ल्ट एरिया)
- H- हांर्नेस्सिंग टेक्नोलॉजी
- A- एक्शन प्लान फॉर इच थिएटर
- N- नो एक्सेस टू फाइनेंसिंग
- 2015 में राष्ट्रीय नीति और कार्ययोजना: इसमें बहु-आयामी दृष्टिकोण शामिल है जिसमें सुरक्षा उपाय, विकास पहल और स्थानीय समुदायों के अधिकारों को सुनिश्चित करना शामिल है।
- गृह मंत्रालय केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) बटालियनों की तैनाती, हेलीकाप्टरों एवं UAV के प्रावधान और भारतीय आरक्षित वाहिनी (IRB) आदि की मंज़ूरी के माध्यम से बड़े पैमाने पर राज्य सरकारों का समर्थन कर रहा है।
- राज्य पुलिस के आधुनिकीकरण और प्रशिक्षण के लिये पुलिस बलों का आधुनिकीकरण (MPF), सुरक्षा संबंधी व्यय (SRE) योजना और विशेष अवसंरचनात्मक ढाँचा योजना (SIS) के तहत निधियन किया जाता है।
- विशेष केंद्रीय सहायता (SCA) योजना के तहत अधिकांश वामपंथी उग्रवाद प्रभावित (LWE) ज़िलों को विकास के लिये धन भी प्रदान किया जाता है।
- आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम: वर्ष 2018 में लॉन्च किये गए आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम का उद्देश्य उन ज़िलों में तेज़ी से बदलाव लाना है जिन्होंने प्रमुख सामाजिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम प्रगति दिखाई है।
- ग्रेहाउंड्स: ग्रेहाउंड्स को वर्ष 1989 में विशिष्ट नक्सल विरोधी बल के रूप में स्थापित किया गया था।
- ऑपरेशन ग्रीन हंट: इसे वर्ष 2009-10 में शुरू किया गया था और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की गई थी।
- बस्तरिया बटालियन: छत्तीसगढ़ में CRPF ने एक बस्तरिया बटालियन की स्थापना की, जिसके लिये स्थानीय आबादी से सिपाही लिये गए, जो भाषा और इलाके को जानते थे, तथा खुफिया जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
- इस इकाई में अब 400 सिपाही (Recruits) हैं और इसका नियमित रूप से छत्तीसगढ़ में संचालन किया जाता है।
वामपंथी उग्रवाद से निपटने में चुनौतियाँ:
- व्यापक भौगोलिक फैलाव: वामपंथी उग्रवादी समूह दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में काम करते हैं, घने जंगल, पहाड़ी इलाके और जहाँ उचित बुनियादी ढाँचे की कमी होती है, जिससे सुरक्षा बलों के लिये उन्हें ट्रैक करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- स्थानीय समुदायों का समर्थन: LWE समूहों को अकसर स्थानीय समुदायों का समर्थन प्राप्त होता है जो सरकार द्वारा उपेक्षित और हाशिये पर महसूस करते हैं।
- विकास की कमी: वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्र आमतौर पर अविकसित होते हैं। बुनियादी सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुँच के कारण यह चरमपंथी विचारधाराओं के लिये उपजाऊ ज़मीन की तरह होती है।
- राजनीतिक समर्थन: LWE समूहों को अकसर कुछ राजनीतिक दलों और नेताओं का समर्थन प्राप्त होता है जो उन्हें अपने हितों के लिये इस्तेमाल करते हैं। जिस कारण सरकार के लिये राजनीतिक प्रतिक्रिया का जोखिम उठाए बिना उनके विरुद्ध कड़ा रुख अपनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
आगे की राह
- सामाजिक-आर्थिक विकास: सरकार को वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार पर ध्यान देने की आवश्यकता है जैसे कि बुनियादी ढाँचे में निवेश, रोज़गार के अवसर पैदा करना और शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा तक बेहतर पहुँच प्रदान करना।
- लक्षित सुरक्षा संचालन: सुरक्षा बलों को खुफिया-आधारित दृष्टिकोणों का उपयोग करते हुए और संपार्श्विक क्षति से बचने के लिये वामपंथी उग्रवाद समूहों के विरुद्ध लक्षित संचालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- पुनर्वास और पुनः एकीकरण: सरकार को पूर्व चरमपंथियों को शिक्षा, प्रशिक्षण, रोज़गार के साथ-साथ मनोसामाजिक समर्थन प्रदान करके पुनर्वास और पुनःएकीकरण सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. पिछड़े क्षेत्रों में बड़े उद्योगों का विकास करने के सरकार के लगातार अभियानों का परिणाम जनजातीय जनता और किसानों, जिनको अनेक विस्थापनों का सामना करना पड़ता है, का विलगन (अलग करना) है। मल्कानगिरि एवं नक्सलबाड़ी पर ध्यान केंद्रित करते हुए वामपंथी उग्रवादी विचारधारा से प्रभावित नागरिकों को सामाजिक तथा आर्थिक संवृद्धि की मुख्यधारा में फिर से लाने की सुधारक रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2015) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
PRET और बिग कैच-अप पहल
प्रिलिम्स के लिये:उभरते खतरों के प्रति तत्परता और लचीलापन (PRET) नामक पहल, बिग कैच-अप पहल, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (IHR), यूनिसेफ मेन्स के लिये:कोविड-19 महामारी के प्रभाव पर काबू पाने हेतु पहल |
चर्चा में क्यों?
कोविड-19 महामारी के प्रत्युत्तर में दो पहलें- PRET और द बिग कैच-अप समान स्तर एवं भविष्य के विस्फोटक विप्लवों से बचने के लिये बेहतरीन तत्परता हासिल करने के साथ-साथ बच्चों की टीकाकरण दरों को बढ़ावा देने हेतु शुरू की गई हैं।
PRET पहल:
- परिचय:
- उभरते खतरों के लिये तैयारी और लचीलापन (PRET) पहल विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा शुरू की गई थी एवं अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (IHR), 2005 के तहत संचालित होती है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के प्रबंधन हेतु एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय कानूनी साधन है।
- पहल की घोषणा जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में आयोजित ग्लोबल मीटिंग फॉर फ्यूचर रेस्पिरेटरी पैथोजन पेंडमिक में की गई थी।
- उभरते खतरों के लिये तैयारी और लचीलापन (PRET) पहल विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा शुरू की गई थी एवं अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (IHR), 2005 के तहत संचालित होती है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के प्रबंधन हेतु एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय कानूनी साधन है।
- उद्देश्य:
- यह रोगजनकों के समूहों हेतु उनके संचरण के तरीके के आधार पर महामारी की तैयारी में सुधार करने पर केंद्रित है।
- महामारी की तैयारी के तीन स्तर: यह स्वीकार करता है कि महामारी की तैयारी हेतु प्रासंगिक प्रणालियों एवं क्षमताओं के तीन स्तर हैं:
- जो सभी या बहु-खतरों का निवारण (Cross-Cutting) करता है।
- जो रोगजनकों (श्वसन, अर्बोवायरस आदि) के समूहों हेतु प्रासंगिक हैं।
- जो एक रोगजनक के लिये विशिष्ट हैं।
- समन्वित प्रयास:
- अपने प्रयासों के हिस्से के रूप में WHO एक अनौपचारिक समन्वय मंच प्रदान करता है जिसे रेस्पिरेटरी पैथोजन्स पार्टनर्स एंगेजमेंट फोरम (R-PEF) के रूप में जाना जाता है, जो WHO एवं अन्य पक्षकारों को नियोजित गतिविधियों तथा घटनाओं के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
नोट:
- फरवरी 2023 में WHO ने महामारी संधि का शून्य मसौदा जारी किया, जिसका उद्देश्य वैश्विक एवं राष्ट्रीय स्तर पर महामारी से निपटने हेतु तैयारी करना है।
- यह महामारी और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के प्रति तत्परता एवं प्रतिक्रिया हेतु वैश्विक समन्वय एवं सहयोग बढ़ाने का आह्वान करता है।
बिग-कैचअप पहल:
- परिचय:
- इसे WHO, यूनिसेफ, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा टीकाकरण एजेंडा 2030 तथा कई अन्य वैश्विक और राष्ट्रीय स्वास्थ्य भागीदारों के साथ शुरू किया गया था, जो टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिये एक लक्षित वैश्विक प्रयास है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य आबादी को खसरा, डिप्थीरिया, पोलियो और पीला बुखार जैसे रोगों को टीके के माध्यम से बच्चों के जीवन को बचाना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करना है।
- मुख्य लक्ष्य:
- यह पहल 20 देशों- अफगानिस्तान, अंगोला, ब्राज़ील, कैमरून, चाड, DPRK, DRC, इथियोपिया, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस, सोमालिया, मेडागास्कर, मैक्सिको, मोज़ाम्बिक, म्याँमार, तंजानिया और वियतनाम पर विशेष ध्यान देगी जहाँ ऐसे अधिकांश बच्चे टीके की खुराक लेने से चूक गए हैं।
- योजना की मुख्य विशेषताएँ:
- हेल्थकेयर वर्कफोर्स में वृद्धि करना
- स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार
- समुदायों के भीतर विश्वास और टीकों की मांग का निर्माण
- टीकाकरण बहाल करने के लिये अंतराल और बाधाओं को संबोधित करना
- आवश्यकता:
- टीकाकरण के स्तर में 100 से अधिक देशों में गिरावट दर्ज की गई क्योंकि महामारी ने स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया था और साथ ही चिकित्सा आपूर्ति के आयात एवं निर्यात को भी बाधित कर दिया था।
- सख्त लॉकडाउन उपायों, यात्रा प्रतिबंधों और घटते वित्तीय एवं मानव संसाधनों से स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच और अधिक जटिल हो गई थी।
- भारत विश्व के उन 20 देशों में शामिल है, जहाँ वर्ष 2021 में लगभग 75 प्रतिशत बच्चे रोकथाम योग्य लेकिन गंभीर बीमारियों के खिलाफ आवश्यक टीकाकरण से चूक गए हैं।
- टीकाकरण हेतु भारत के प्रयास:
- महामारी के परिणामस्वरूप, टीकाकरण के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई है और कुछ देशों ने पहले ही काफी प्रगति दिखानी शुरू कर दी है।
- भारत वर्ष 2022 में आवश्यक टीकों में एक सुदृढ़ रिकवरी दर्ज करने में सफल रहा।
- टीकाकरण हेतु भारत की प्रमुख पहलें हैं:
- महामारी के परिणामस्वरूप, टीकाकरण के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई है और कुछ देशों ने पहले ही काफी प्रगति दिखानी शुरू कर दी है।
नोट:
- विश्व टीकाकरण सप्ताह WHO द्वारा समन्वित एक स्वास्थ्य अभियान है जो प्रत्येक वर्ष अप्रैल के अंतिम सप्ताह में मनाया जाता है।
- इसका उद्देश्य सभी उम्र के लोगों को बीमारी से बचाने हेतु वैक्सीन के उपयोग को बढ़ावा देना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारत सरकार द्वारा चलाया गया 'मिशन इंद्रधनुष' किससे संबंधित है? (2016) (a) बच्चों और गर्भवती महिलाओं का प्रतिरक्षण उत्तर: (a) प्रश्न. कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2020) |