इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-अमेरिका संबंध

  • 16 Apr 2022
  • 11 min read

यह एडिटोरियल 15/04/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “2+2 Meet: Delhi and DC are Seeking New Opportunities” लेख पर आधारित है। इसमें हाल के समय में अमेरिका के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल के समय में नई दिल्ली की ओर दौड़ लगाते दुनिया भर के राजनयिकों, अधिकारियों और मंत्रियों की लंबी सूची को देखें तो एक उभरती हुई वैश्विक महाशक्ति के रूप में भारत की भूमिका का अनुमान लगाना पर्याप्त आसान हो जाता है।

अमेरिका के संदर्भ में देखें तो भारत बाइडेन प्रशासन की ‘इंडो-पैसिफिक’ रणनीति का केंद्रबिंदु है और हाल ही में भारत के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री ने अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ '2+2' बैठक में भाग लिया है।

यद्यपि दोनों देश रूस-यूक्रेन संघर्ष—जो अभी वैश्विक भू-राजनीति के सबसे चिंताजनक मुद्दों में से एक है, पर एकसमान दृष्टिकोण नहीं रखते, किंतु मतभेदों से ऊपर उठना और निरंतर सहयोग सुनिश्चित करना दोनों देशों के पारस्परिक हित में है।

हाल के समय में भारत-अमेरिका संबंध

  • वर्तमान में भारत-अमेरिका द्विपक्षीय साझेदारी कोविड-19 से मुकाबला, महामारी के बाद आर्थिक पुनरुद्धार, जलवायु संकट व सतत् विकास, महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियाँ, आपूर्ति शृंखला लचीलापन, शिक्षा, प्रवासी समुदाय और रक्षा एवं सुरक्षा सहित विभिन्न विषयों को अपने दायरे में लेती है। 
  • भारत-अमेरिका संबंधों का विस्तार और गहनता अपूर्व है और इस साझेदारी के प्रेरक तत्व अभूतपूर्व वृद्धि कर रहे हैं।
    • यह संबंध अभी तक अद्वितीय बना रहा है क्योंकि यह दोनों स्तरों पर संचालित होता है: रणनीतिक अभिजात वर्ग के स्तर पर भी और लोगों के आपसी संपर्क के स्तर पर भी।
  • यद्यपि रूस-यूक्रेन संकट के प्रति भारत और अमेरिका की प्रतिक्रियाएँ पर्याप्त विरोधाभासी रहीं, हाल की बैठक में भारत के प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह मत व्यक्त किया कि दुनिया के दो प्रमुख लोकतंत्र पारस्परिक रूप से स्वीकार्य परिणामों पर पहुँचने के लिये अपने मतभेदों को दूर करने के इच्छुक हैं।
    • भारत और अमेरिका ने हाल के वर्षों में संबंधों में आई गर्माहट पर आगे बढ़ते रहने और व्यापक रणनीतिक दृष्टिकोण को न खोने की अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया है।

हाल ही में संपन्न 2+2 वार्ता के निष्कर्ष 

  • इस वार्ता में ‘स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस समझौता ज्ञापन’ पर हस्ताक्षर किये गए क्योंकि दोनों ही राष्ट्र बाह्य अंतरिक्ष और साइबर स्पेस में सहयोग को गहरा करना चाहते हैं ताकि इन दोनों ही ‘वाॅर-फाइटिंग डोमेन’ में क्षमताओं को विकसित किया जा सके।
    • वे संयुक्त साइबर प्रशिक्षण एवं अभ्यास का विस्तार करते हुए एक आरंभिक ‘रक्षा कृत्रिम बुद्धिमत्ता वार्ता’ (Defence Artificial Intelligence Dialogue) आयोजित करने पर भी सहमत हुए।
  • भारत और अमेरिका के बीच रक्षा साझेदारी भी तेज़ी से बढ़ रही है जहाँ अमेरिकी रक्षा मंत्री ने रेखांकित किया है कि दोनों देशों ने ‘‘हिंद-प्रशांत के वृहत भूभाग में हमारी सेनाओं की परिचालन पहुँच का विस्तार करने और अधिक निकटता से समन्वय करने के लिये नए अवसरों की पहचान की है।’’ 
  • अमेरिका ने स्पष्ट रूप से यह उल्लेख भी किया कि चीन भारत के साथ सीमा पर ‘दोहरा उपयोग अवसंरचना’ (dual-use infrastructure) का निर्माण कर रहा है और यह भारत के संप्रभु हितों की रक्षा के लिये उसके साथ खड़ा रहेगा।

अमेरिका भारत से दूर क्यों हो सकता है?

  • मज़बूत भारत-रूस संबंध: भारत-अमेरिका संबंध में रूस कोई नया कारक नहीं है। प्रतिबंधों के बीच भी भारत ने रूस से कच्चे तेल के आयात में कमी लाने के बजाय वृद्धि ही की है। रूस द्वारा भारत के लिये कम मूल्यों पर इसकी पेशकश की गई थी।
    • भारत-रूस रक्षा संबंध भी भारत-अमेरिका संबंधों में एक अवरोध बना रहा है।
      • भारत द्वारा रूस से ‘S-400 ट्रायम्फ मिसाइल रक्षा प्रणाली' की खरीद पर अमेरिकी CAATSA कानून के अनुपालन को लेकर भी लंबे समय से चर्चा जारी है।
      • हालाँकि अमेरिका स्पष्ट रूप से यह भी समझता है कि भारत पर प्रतिबंध लगाने जैसा कोई भी कदम उनके संबंधों को फिर दशकों पीछे घसीट ले जाएगा।
    • अमेरिका की स्पष्ट चेतावनी (कि जो देश रूस पर प्रतिबंधों को दरकिनार करने या किसी प्रकार उसकी पूर्ति करने का सक्रिय प्रयास करेंगे, परिणाम भुगतेंगे) के बावजूद भारत और रूस डॉलर-आधारित वित्तीय प्रणाली को दरकिनार कर द्विपक्षीय व्यापार कर सकने के तरीके तलाश रहे हैं।
  • चीन के साथ सहयोग की भारत की संभावनाएँ: हाल के वर्षों में चीन ने अपनी अमेरिकी नीति के चश्मे से भूभाग में भारत के किसी भी कदम की समीक्षा की है, लेकिन यूक्रेन पर भारत के रुख के बाद बीजिंग में एक पुनर्विचार की शुरुआत हुई है।
    • हाल में चीन के विदेश मंत्री की भारत यात्रा एक वृहत रणनीतिक ‘रीसेट’ की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था, जो भारत को ‘क्वाड’ से दूर करने की आवश्यकता से प्रेरित था।
      • अपनी यात्रा के दौरान चीन के विदेश मंत्री ने दक्षिण एशिया में भारत की पारंपरिक भूमिका की रक्षा के साथ ही ‘चीन-भारत प्लस’ (China-India Plus) के रूप में विकास परियोजनाओं पर सहयोग करने का दृष्टिकोण प्रकट किया और इसके लिये एक वर्चुअल G-2 के निर्माण की पेशकश की।
    • जबकि म्याँमार, ईरान और अफगानिस्तान जैसे देशों में भारतीय और अमेरिकी नीतियाँ भिन्न हैं, चीन ऐसा विषय है जो दोनों देशों को एक साथ जोड़ता है।
      • यदि अभी चीन के साथ भारत के संबंधों के पुनर्निर्माण का अवसर बनता है तो यह अमेरिका के साथ भारत के संबंधों को बदल देगा और ‘क्वाड’ की प्रभावशीलता पर सवाल उठाएगा।

आगे की राह 

  • भारत-अमेरिका सैन्य सहयोग: राजनीतिक मामलों की अमेरिकी विदेश मंत्री विक्टोरिया नूलैंड ने अपनी हाल की भारत यात्रा के दौरान स्वीकार किया कि ‘‘रक्षा आपूर्ति के लिये रूस पर भारत की निर्भरता महत्त्वपूर्ण है’’ और यह ‘‘उस युग में सोवियत संघ और रूस से सुरक्षा समर्थन की विरासत है जब अमेरिका भारत के प्रति कम उदार रहा था।”
    • हालाँकि, आज की नई वास्तविकताओं के साथ इस द्विपक्षीय संलग्नता के प्रक्षेपवक्र के आकार लेने के साथ यह उपयुक्त समय होगा जब अमेरिका भारत को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ-साथ सह-उत्पादन और सह-विकास के माध्यम से अपना रक्षा विनिर्माण आधार बनाने में मदद करे।
  • अवसरों की खोज: भारत अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में—जो एक अभूतपूर्व परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, एक अग्रणी खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है। यह अपनी वर्तमान स्थिति का उपयोग अपने महत्त्वपूर्ण हितों को आगे बढ़ाने के अवसरों का पता लगाने के लिये कर सकता है।
    • भारत और अमेरिका आज इस संदर्भ में सही अर्थों में रणनीतिक साझेदार हैं कि यह परिपक्व प्रमुख शक्तियों के बीच ऐसी साझेदारी है जो पूर्ण अभिसरण की तलाश नहीं कर रही है, बल्कि निरंतर संवाद सुनिश्चित कर और असहमतियों को नए अवसरों को गढ़ने में निवेश कर मतभेदों का प्रबंधन कर रही है।
  • सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग: यूक्रेन संकट के परिणामस्वरूप चीन के साथ रूस का बढ़ा हुआ संरेखण चीन से मुकाबले के लिये केवल रूस पर भरोसा कर सकने की भारत की क्षमता को जटिल बनाता है। इसलिये अन्य सुरक्षा क्षेत्रों में सहयोग जारी रखना दोनों देशों के हित में है।
    • चीनी सेना की बढ़ती अंतरिक्ष क्षमताओं को लेकर व्याप्त चिंताएँ अमेरिका-भारत द्विपक्षीय संबंधों में अंतरिक्ष शासन को भी एक प्रमुख विषय बनाती है।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘यद्यपि यूक्रेन मामले में रूस की निंदा को लेकर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद रहे हैं, यह विवेकपूर्ण होगा कि ‘इंडो-पैसिफिक’ और चीन से मुकाबले के वृहत रणनीतिक तस्वीर से ध्यान नहीं हटाया जाए।’’ चर्चा कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2